उस भाषा को सम्पर्क भाषा (lingua franca) कहते हैं जो किसी क्षेत्र में सामान्य रूप से किसी भी दो ऐसे व्यक्तियों के बीच प्रयोग हो जिनकी मातृभाषाएँ अलग हैं। इसे कई भाषाओं में 'लिंगुआ फ़्रैंका' (lingua franca) कहते हैं। इसे सेतु-भाषा, व्यापार भाषा, सामान्य भाषा या वाहन-भाषा भी कहते हैं। मानव इतिहास में सम्पर्क भाषाएँ उभरती रही हैं। Show
उदाहरण[संपादित करें]आधुनिक काल में विश्व की सम्पर्क भाषा अंग्रेज़ी है। उदाहरण के लिए यदि कोई जापानी भाषा और स्वाहिली भाषा के मातृभाषी आपस में बातचीत करें तो वे आमतौर पर अंग्रेज़ी का ही प्रयोग करेंगे हालांकि अंग्रेज़ी उनमें से किसी की भी मातृभाषा नहीं है।[1] अलग-अलग स्थानों पर ऐसी अनेक सम्पर्क भाषाएँ मिलती हैं। भारतीय उपमहाद्वीप और उसके आसपास के क्षेत्रों में हिन्दी भारत के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, तिब्बत, अफ़्ग़ानिस्तान, श्रीलंका, इत्यादि में बहुत लोगों द्वारा समझी जाती है, आंतरिक भारत में भी अंतरराजकीय भाषीय अंतर को अंग्रेजी ने कम किया है। भूतपूर्व सोवियत संघ के बिखरने के बाद उसमें सम्मिलित क्षेत्रों में आपस में अभी भी रूसी भाषा का प्रयोग होता है, मसलन यदि मध्य एशिया के उज़बेकिस्तान और यूरोप के युक्रेन के व्यक्ति आपस में बात करें तो वे साधारण रूप से रूसी भाषा का प्रयोग करेंगे हालांकि रूसी उन दोनों ही की मातृभाषा नहीं है।[2] भारत की सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी[संपादित करें]भारत में ‘हिन्दी’ बहुत पहले सम्पर्क भाषा के रूप में रही है और इसीलिए यह बहुत पहले से ‘राष्ट्रभाषा’ कहलाती है क्योंकि हिन्दी की सार्वदेशिकता सम्पूर्ण भारत के सामाजिक स्वरूप का प्रतिफल है। भारत की विशालता के अनुरूप ही राष्ट्रभाषा विकसित हुई है जिससे उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम कहीं भी होने वाले मेलों- चाहे वह प्रयाग में कुम्भ हो अथवा अजमेर शरीफ की दरगाह हो या विभिन्न प्रदेशों की हमारी सांस्कृतिक एकता के आधार स्तंभ तीर्थस्थल हों- सभी स्थानों पर आदान-प्रदान की भाषा के रूप में हिन्दी का ही अधिकतर प्रयोग होता है। इस प्रकार इन सांस्कृतिक परम्पराओं से हिन्दी ही सार्वदेशिक भाषा के रूप में लोकप्रिय है, विशेषकर दक्षिण और उत्तर के सांस्कृतिक सम्बन्धों की दृढ़ शृंखला के रूप में हिन्दी ही सशक्त भाषा बनीं। हिन्दी का क्षेत्र विस्तृत है। सम्पर्क भाषा हिन्दी का आयाम सबसे व्यापक और लोकप्रिय है जिसका प्रसार क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर से बढ़कर भारतीय उपमहाद्वीप तक है। शिक्षित, अर्धशिक्षित, अशिक्षित, तीनों वर्गों के लोग परस्पर बातचीत आदि के लिए और इस प्रकार मौखिक माध्यम में जनभाषा हिन्दी का व्यवहार करते हैं। भारत की लिंग्वे फ्रांका, लैंग्विज आव वाइडर कम्युनिकेशन, पैन इंडियन लैंग्विज, अन्तर प्रादेशिक भाषा, लोकभाषा, भारत-व्यापी भाषा, अखिल भारतीय भाषा- ये नाम ‘जनभाषा’ हिन्दी के लिए प्रयुक्त होते हैं। भारत की बहुभाषिकता के ढाँचे में हिन्दी की विभिन्न भौगोलिक और सामाजिक क्षेत्रों के अतिरिक्त भाषा-व्यवहार के क्षेत्रों में भी सम्पर्क सिद्धि का ऐसा प्रकार्य निष्पादित कर रही है जिसका, न केवल कोई विकल्प नहीं, अपितु जो हिन्दी की विविध भूमिकाओं को समग्रता के साथ निरूपित करने में भी समर्थ है। हिन्दी ने पिछले हजार वर्षों में विचार-विनिमय का जो उत्तरदायित्व निभाया है वह एक अनूठा उदाहरण है। कुछ लोगों की यह धारणा है कि हिन्दी पहले ‘राष्ट्रभाषा’ कहलाती थी, बाद में इसे ‘सम्पर्क भाषा’ कहा जाने लगा और अब इसे ‘राजभाषा’ बना देने से इसका क्षेत्र सीमित हो गया है। वस्तुतः यह उनका भ्रम है। जैसाकि पहले उल्लेख किया जा चुका है कि हिन्दी सदियों से सम्पर्क भाषा और राष्ट्रभाषा एक साथ रही है और आज भी है। भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितम्बर, 1949 को इसे राजभाषा के रूप में स्वीकार कर लेने से उसके प्रयोग का क्षेत्र और विस्तृत हुआ है। जैसे बंगला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम आदि को क्रमश: बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल आदि की राजभाषा बनाया गया है। ऐसा होने से क्या उन भाषाओं का महत्व कम हो गया है? निश्चय ही नहीं। बल्कि इससे उन सभी भाषाओं का उत्तरदायित्व और प्रयोग क्षेत्र पहले से अधिक बढ़ गया है। जहाँ पहले केवल परस्पर बोलचाल में काम आती थी या उसमें साहित्य की रचना होती थी, वहीं अब प्रशासनिक कार्य भी हो रहे हैं। यही स्थिति हिन्दी की भी है। इस प्रकार हिन्दी सम्पर्क और राष्ट्रभाषा तो है ही, राजभाषा बनाकर इसे अतिरिक्त सम्मान प्रदान किया गया है। आन्तरिक स्तर पर हिन्दी अपनी बोलियों के व्यवहारकर्ताओं के बीच सम्पर्क की स्थापना करती रही है और अब भी कर रही है, तथा बाह्य स्तर पर वह अन्य भारतीय भाषा भाषी समुदायों के मध्य एकमात्र सम्पर्क भाषा के रूप में उभर आई है जिसके अब विविध आयाम विकसित हो चुके हैं। कुल मिलाकर हिन्दी का वर्तमान गौरवपूर्ण है। उसकी भूमिका आज भी सामान्य-जन को जोड़ने में सभी भाषाओं की अपेक्षा सबसे अधिक कारगर है। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
संपर्क भाषा से आप क्या समझते हैं?उस भाषा को सम्पर्क भाषा (lingua franca) कहते हैं जो किसी क्षेत्र में सामान्य रूप से किसी भी दो ऐसे व्यक्तियों के बीच प्रयोग हो जिनकी मातृभाषाएँ अलग हैं। इसे कई भाषाओं में 'लिंगुआ फ़्रैंका' (lingua franca) कहते हैं। इसे सेतु-भाषा, व्यापार भाषा, सामान्य भाषा या वाहन-भाषा भी कहते हैं।
राजभाषा राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा से आप क्या समझते हैं?राष्ट्रभाषा राष्ट्र / देश के लोगों की संपर्क भाषा होती है जबकि राजभाषा केवल सरकार के कामकाज की भाषा होती है। अधिकतर देशों में दोनों एक ही भाषा होती है। राष्ट्रभाषा का विकास स्वतः स्फूर्त और प्रवाहमान होता है, जबकि राजभाषा शासन तंत्र की नीतियों के संयोजन का साधन।
राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा में क्या अंतर है?अतः राष्ट्रभाषा आमजन की भाषा होती है और किसी राष्ट्र के प्रायः अधिकांश या बड़े भूभाग और जनसँख्या के द्वारा बोली और समझी जाती है। एक राष्ट्रभाषा किसी राष्ट्र की बहुसंख्य आबादी की न केवल रोजमर्रा की भाषा होती है बल्कि यह समूचे राष्ट्र में संपर्क भाषा का भी काम करती है। राष्ट्रभाषा किसी राष्ट्र की पहचान होती है।
राष्ट्रभाषा भाषा से आप क्या समझते हैं?Answer: किसी भी देश या राष्ट्र द्वारा किसी भाषा को जब अपने किसी राजकार्य के लिए भाषा घोषित किया जाता है या अपनाया जाता है तो उसे राष्ट्र भाषा जाना जाता है। अर्थात जब कोई देश किसी भाषा को अपनी राष्ट्र की भाषा घोषित करता है तो उसे ही राष्ट्र भाषा के लिए जाना जाता है।
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