रामविलास शर्मा के गांव का नाम क्या था? - raamavilaas sharma ke gaanv ka naam kya tha?

रामविलास शर्मा के गांव का नाम क्या था? - raamavilaas sharma ke gaanv ka naam kya tha?

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रामविलास शर्मा

डॉ॰ रामविलास शर्मा (१० अक्टूबर, १९१२- ३० मई, २०००) आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि थे। पेशे से अंग्रेजी के प्रोफेसर, दिल से हिन्दी के प्रकांड पंडित और गहरे विचारक, ऋग्वेद और मार्क्स के अध्येता, कवि, आलोचक, इतिहासवेत्ता, भाषाविद, राजनीति-विशारद ये सब विशेषण उन पर समान रूप से लागू होते हैं।

जीवन परिचय[संपादित करें]

उन्नाव जिला के ऊँचगाँव सानी में जन्मे डॉ॰ रामविलास शर्मा ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम॰ए॰ किया और वहीं अस्थाई रूप से अध्यापन करने लगे। १९४० में वहीं से पी-एच॰डी॰ की उपाधि प्राप्त की। १९४३ से आपने बलवंत राजपूत काॅलेज, आगरा में अंग्रेजी विभाग में अध्यापन किया और अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे। १९७१-७४ तक कन्हैयालाल माणिक मुंशी हिन्दी विद्यापीठ, आगरा में निदेशक पद पर रहे। १९७४ में सेवानिवृत्त हुए।

डॉ॰ रामविलास शर्मा के साहित्यिक जीवन का आरंभ १९३४ से होता है जब वह सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के संपर्क में आये। इसी वर्ष उन्होंने अपना प्रथम आलोचनात्मक लेख 'निरालाजी की कविता' लिखा जो चर्चित पत्रिका 'चाँद' में प्रकाशित हुआ। इसके बाद वे निरंतर सृजन की ओर उन्मुख रहे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद डॉ॰ रामविलास शर्मा ही एक ऐसे आलोचक के रूप में स्थापित होते हैं, जो भाषा, साहित्य और समाज को एक साथ रखकर मूल्यांकन करते हैं।[1] उनकी आलोचना प्रक्रिया में केवल साहित्य ही नहीं होता, बल्कि वे समाज, अर्थ, राजनीति, इतिहास को एक साथ लेकर साहित्य का मूल्यांकन करते हैं। अन्य आलोचकों की तरह उन्होंने किसी रचनाकार का मूल्यांकन केवल लेखकीय कौशल को जाँचने के लिए नहीं किया है, बल्कि उनके मूल्यांकन की कसौटी यह होती है कि उस रचनाकार ने अपने समय के साथ कितना न्याय किया है।

प्रकाशित कृतियाँ[संपादित करें]

डॉ॰ रामविलास शर्मा का लेखन बहुआयामी है। मुख्य रूप से साहित्य के आलोचक होते हुए भी उन्होंने भाषाविज्ञान, इतिहास तथा समाज एवं संस्कृति के सन्दर्भों में सुविस्तीर्ण लेखन किया है। उनकी पूर्व प्रकाशित कुछ पुस्तकें संशोधित-परिवर्धित रूप में भिन्न नामों से प्रकाशित हुईं। साहित्यिक आलोचना की तीन पुस्तकों -- प्रगति और परम्परा (1949), संस्कृति और साहित्य (1949) तथा साहित्य : स्थायी मूल्य और मूल्यांकन (1968) की सामग्रियाँ बाद में अन्य संकलनों में संकलित कर ली गयीं[2] तथा ये तीनों पुस्तकें स्थायी रूप से अप्राप्य हो गयीं। अद्यतन रूप से उपलब्ध उनकी पुस्तकों की सूची आगे प्रस्तुत की गयी है।

साहित्यिक आलोचना[संपादित करें]

  1. प्रेमचन्द -1941
  2. भारतेन्दु युग -1943 (परिवर्द्धित संस्करण भारतेन्दु युग और हिन्दी भाषा की विकास परम्परा -1975)
  3. निराला -1946
  4. प्रेमचन्द और उनका युग -1952
  5. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र -1953 (परिवर्द्धित संस्करण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ -1985)
  6. प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ -1954
  7. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना -1955
  8. विराम चिह्न -1957 (संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण-1985)
  9. आस्था और सौन्दर्य -1961 (संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण-1990)
  10. निराला की साहित्य साधना-1 (जीवनी) -1969
  11. निराला की साहित्य साधना-2 (आलोचना) -1972
  12. निराला की साहित्य साधना-3 (पत्राचार संग्रह एवं बृहद् भूमिका) -1976
  13. महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण -1977
  14. नयी कविता और अस्तित्ववाद -1978
  15. परम्परा का मूल्यांकन -1981
  16. भाषा, युगबोध और कविता -1981
  17. कथा विवेचना और गद्यशिल्प -1982
  18. मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य -1984
  19. भारतीय साहित्य के इतिहास की समस्याएँ -1986
  20. भारतीय साहित्य की भूमिका -1996 ('संगीत का इतिहास' भी मूलतः इसी में है।)
  21. प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि (सन् 1990 में 'रूपतरंग और प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि' में अन्तर्वर्ती तृतीय खंड के रूप में प्रकाशित; परिशिष्ट आदि को छोड़कर कुल 160 पृष्ठों की पाठ्य सामग्री[3])

भाषा-समाज और भाषाविज्ञान[संपादित करें]

  1. भाषा और समाज -1961
  2. भारत की भाषा समस्या (1978, 'राष्ट्रभाषा की समस्या' नाम से मूलतः 1965 में)
  3. भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी-1 (आर्यभाषा केन्द्र और हिन्दी जनपद) -1979
  4. भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी-2 (इंडोयूरोपियन परिवार की भारतीय पृष्ठभूमि) -1980
  5. भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी-3 (नाग-द्रविड़-कोल और हिन्दी प्रदेश) -1981
  6. ऐतिहासिक भाषाविज्ञान और हिन्दी भाषा -2001 (संपादक- डॉ॰ राजमल बोरा; प्रस्तुत पुस्तक में मुख्यतः छात्रों को ध्यान में रखकर 'भाषा और समाज' एवं 'भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी' से 'हिन्दी भाषा का इतिहास' से सम्बद्ध सामग्री[4] का सुव्यवस्थित संकलन है।)

इतिहास, समाज और संस्कृति एवं दर्शन[संपादित करें]

  1. मानव सभ्यता का विकास -1956
  2. सन् सत्तावन की राज्यक्रान्ति -1957 (संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण सन् सत्तावन की राज्यक्रान्ति और मार्क्सवाद -1990)
  3. भारत में अंग्रेज़ी राज और मार्क्सवाद (दो खण्डों में) -1982
  4. मार्क्स और पिछड़े हुए समाज -1986
  5. मार्क्स, त्रोत्स्की और एशियाई समाज -1986
  6. स्वाधीनता संग्राम : बदलते परिप्रेक्ष्य -1992
  7. भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद -1992
  8. पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद -1994
  9. भारतीय नवजागरण और यूरोप -1996
  10. इतिहास दर्शन -1995
  11. भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश (दो खण्डों में) -1999
  12. गाँधी, आम्बेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएँ -2000
  13. भारतीय सौन्दर्य-बोध और तुलसीदास -2001 (अपूर्ण)
  14. पाश्चात्य दर्शन और सामाजिक अन्तर्विरोध- थलेस से मार्क्स तक -2001 (प्रस्तुत पुस्तक में डॉ॰ रामविलास शर्मा की 4 मौलिक पुस्तकों-- 'भारतीय नवजागरण और यूरोप', 'इतिहास दर्शन', मार्क्स और पिछड़े हुए समाज' तथा 'भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद' से विषय-सम्बद्ध सामग्री का मुरली मनोहर प्रसाद सिंह द्वारा किया गया सुव्यवस्थित संकलन है।)

कविता-नाटक-उपन्यास[संपादित करें]

  1. चार दिन (उपन्यास) -1936
  2. 'तार सप्तक' में संकलित कविताएँ -1943
  3. महाराजा कठपुतली सिंह (प्रहसन) -1946
  4. पाप के पुजारी (नाटक) -1936
  5. बुद्ध वैराग्य तथा प्रारम्भिक कविताएँ -1997 (सन् 1929 से 1936 के बीच लिखित कविताएँ[5])
  6. सदियों के सोये जाग उठे (सन् 1945-47 में लिखित कविताएँ[6]) -1988
  7. रूपतरंग -1956 (सन् 1935 से 1956 के बीच लिखित कुछ कविताएँ; सन् 1990 में रूपतरंग और प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि में अंतर्वर्ती प्रथम खंड के रूप में समाहित)

आत्मकथा-साक्षात्कार-पत्रसंवाद-सम्पादकीय[संपादित करें]

  1. मेरे साक्षात्कार (1994)
  2. अपनी धरती अपने लोग (आत्मकथा, तीन खण्डों में) -1996
  3. आज के सवाल और मार्क्सवाद (साक्षात्कार) -2001
  4. मित्र-संवाद (केदारनाथ अग्रवाल से पत्र व्यवहार; प्रथम संस्करण-1992; परिवर्धित संस्करण, दो खंडों में, 2010)
  5. अत्र कुशलं तत्रास्तु (2004, अमृतलाल नागर से पत्रव्यवहार)
  6. भाषा, साहित्य और जातीयता ('समालोचक' पत्रिका में लिखित सम्पादकीय लेख एवं पुस्तक-समीक्षाओं का एकत्र संकलन) -2012

आंग्ल कृतियाँ[संपादित करें]

  1. An introduction to the English romantic poetry -1946 (Kitab Mahal, Allahabad)
  2. Nineteenth century poets -1967 (revised edition of originaly 'studies in nineteenth century poetry' published in 1961.)
  3. Essays on Shakespearean Tragedy -1965 (Shivlal Agarwal and company, Agra; new edition- Anamika publishers and distributors, New Delhi, 1998)
  4. keats and the pre-Raphaelites -2005 (Anamika publishers and distributors, New Delhi

सम्पादित कृतियाँ[संपादित करें]

  1. गीतिमाला -1948
  2. जहाज और तूफान (परिजनों द्वारा लिखित रिपोर्ताज, रेखाचित्र एवं संस्मरण, दो खंडों में) -1965
  3. घर की बात -1983
  4. लोकजागरण और हिन्दी साहित्य (87 पृष्ठों की विस्तृत भूमिका सहित आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंधों का संग्रह) -1985
  5. प्रगतिशील काव्यधारा और केदारनाथ अग्रवाल -1986
  6. तीन महारथियों के पत्र (23 पृष्ठों की भूमिका सहित) -1997
  7. कवियों के पत्र (39 पृष्ठों की भूमिका सहित) -2000

अनुवाद[संपादित करें]

  1. भक्ति और वेदान्त -1933 (मूल लेखक- स्वामी विवेकानन्द)
  2. राजयोग -1936 (मूल लेखक- स्वामी विवेकानन्द)
  3. कर्मयोग -1936 (मूल लेखक- स्वामी विवेकानन्द)
  4. सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास -1944
  5. कार्ल मार्क्स और उनके सिद्धान्त -1952 (मूल लेखक- एंगेल्स, लेनिन और स्टालिन)
  6. माओत्से तुंग ग्रंथावली (प्रथम भाग) -1957
  7. निकोला वप्त्सारोव की कविताएँ -1960 ('रूपतरंग और प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि' के अंतर्वर्ती द्वितीय खंड के रूप में समाहित)
  8. आज का भारत -1947 (मूल लेखक- रजनी पाम दत्त)
  9. पूँजी (खंड-2) 1974 (मूल लेखक- कार्ल मार्क्स; प्रगति प्रकाशन, मॉस्को से प्रकाशित इस पुस्तक में डॉ॰ रामविलास शर्मा के अनुवाद की भाषा को परिवर्तित कर दिया गया था, जिस पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने इसे अपना अनुवाद मानने से इनकार कर दिया।)


उपर्युक्त सभी विषयों की अनेक पुस्तकों के संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण बाद में प्रकाशित हुए हैं, उन्हें ही पढ़ना चाहिए। ये सभी पुस्तकें अब राजकमल, वाणी, किताबघर, हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, साहित्य अकादेमी एवं साहित्य भंडार प्रकाशनों से प्रकाशित हैं।

ऐसे सामान्य पाठक जो प्रमुख चुनिन्दा अंशों को ही पढ़ना चाहें, उनके लिए सर्वोत्तम संकलन है संकलित निबन्ध (सं॰ अजय तिवारी, नेशनल बुक ट्रस्ट)

रामविलास शर्मा पर केन्द्रित विशिष्ट साहित्य[संपादित करें]

  1. रामविलास शर्मा लेखक- शंभुनाथ, प्रकाशक- साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-2011
  2. डॉ॰ रामविलास शर्मा : नवजागरण एवं इतिहास लेखन, लेखक- कर्मेन्दु शिशिर, प्रकाशक- विभा प्रकाशन, 50, चाहचंद, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण-2015
  3. रामविलास शर्मा का महत्त्व, लेखक- रविभूषण, प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण- 2018
  4. हिन्दी आलोचना की परंपरा और डॉ. रामविलास शर्मा, लेखक - डॉ. कालूराम परिहार (ISBN : 978-81-7975-246-3) प्रकाशक : अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रा. लि., नई दिल्ली (2009)


शर्मा जी पर केन्द्रित अनेक पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित होते रहे हैं, जिनमें उपलब्ध और विशेष पठनीय हैं -

  1. रामविलास शर्मा - सं॰-विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ('दस्तावेज' का विशेषांक, पुस्तक रूप में वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
  2. हिन्दी के प्रहरी : डाॅ. रामविलास शर्मा - सं॰-विश्वनाथ त्रिपाठी, अरुण प्रकाश ('वसुधा' का विशेषांक, पुस्तक रूप में वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
  3. युगपुरुष रामविलास शर्मा - सं॰-जय नारायण बुधवार, प्रमिला बुधवार ('कल के लिए' का विशेषांक, पुस्तक रूप में स्वराज प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
  4. उद्भावना अंक-104, नवंबर-दिसंबर 2012, रामविलास शर्मा महाविशेषांक, अतिथि संपादक- प्रदीप सक्सेना (पुस्तक रूप में रामविलास शर्मा का ऐतिहासिक योगदान, संपा॰ प्रदीप सक्सेना, अनुराग प्रकाशन, नयी दिल्ली से, प्र॰ सं॰-2013)
  5. समकालीन भारतीय साहित्य, अंक-167 (मई-जून 2013)
  6. रामविलास शर्मा और हिन्दी आलोचना, संपादक- रविनन्दन सिंह, हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण 2016 (हिन्दुस्तानी (पत्रिका) अक्टूबर-दिसंबर 2012 के रामविलास शर्मा स्मृति अंक का पुस्तकीय रूप)
  7. भारतीय नवजागरण और रामविलास शर्मा का चिंतन, संपादक- रविरंजन, प्रकाशक- हिन्द-युग्म, दिल्ली, प्रथम संस्करण-2017 (सन् 2012 में प्रकाशित 'लोकचेतना वार्ता' के रामविलास शर्मा विशेषांक का पुस्तकीय रूप)
समग्रता में विचार करने वाले दो अति महत्त्वपूर्ण/अवश्य पठनीय आलेख -
  1. अपने-अपने रामविलास - प्रणय कृष्ण ['जनमत' 2002 में प्रकाशित; 2012 में पुनः प्रकाशित। प्रणय कृष्ण की पुस्तक 'शती स्मरण' (स्पाॅट क्रिएटिव सर्विसेज, 43 बी, लिडिल रोड, जॉर्ज टाउन, इलाहाबाद से प्रकाशित) में संकलित।]
  2. 'मैं' और 'वे' के बीच रामविलास शर्मा का ज्ञानकांड - अभय कुमार दुबे ('तद्भव'-26, अक्तूबर 2012 में प्रकाशित। वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित अभय कुमार दुबे की पुस्तक 'हिंदी में हम' में हिंदी का ज्ञानकाण्ड शीर्षक से संकलित।)

हिंदी जाति की अवधारणा[संपादित करें]

हिंदी जाति की अवधारणा रामविलास शर्मा के जातीय चिंतन का केंद्रीय बिंदु है। भारतीय साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन तथा वैश्विक साहित्य से अन्तर्क्रिया के द्वारा रामविलास जी ने साहित्य के जातीय तत्वों की प्रगतिशील भूमिका की पहचान की है।

डॉ॰ रामविलास शर्मा और भारत का इतिहास[संपादित करें]

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद डॉ॰ रामविलास शर्मा ही एक ऐसे आलोचक के रूप में स्थापित होते हैं, जो भाषा, साहित्य और समाज को एक साथ रखकर मूल्यांकन करते हैं। उनकी आलोचना प्रक्रिया में केवल साहित्य ही नहीं होता, बल्कि वे समाज, अर्थ, राजनीति, इतिहास को एक साथ लेकर साहित्य का मूल्यांकन करते हैं। अन्य आलोचकों की तरह उन्होंने किसी रचनाकार का मूल्यांकन केवल लेखकीय कौशल को जाँचने के लिए नहीं किया है, बल्कि उनके मूल्यांकन की कसौटी यह होती है कि उस रचनाकार ने अपने समय के साथ कितना न्याय किया है।

इतिहास की समस्याओं से जूझना मानो उनकी पहली प्रतिज्ञा हो। वे भारतीय इतिहास की हर समस्या का निदान खोजने में जुटे रहे। उन्होंने जब यह कहा कि आर्य भारत के मूल निवासी हैं, तब इसका विरोध हुआ था। उन्होंने कहा कि आर्य पश्चिम एशिया या किसी दूसरे स्थान से भारत में नहीं आए हैं, बल्कि सच यह है कि वे भारत से पश्चिम एशिया की ओर गए हैं। वे लिखते हैं - ‘‘दूसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व बड़े-बड़े जन अभियानों की सहस्त्राब्दी है।

इसी दौरान भारतीय आर्यों के दल इराक से लेकर तुर्की तक फैल जाते हैं। वे अपनी भाषा और संस्कृति की छाप सर्वत्र छोड़ते जाते हैं। पूँजीवादी इतिहासकारों ने उल्टी गंगा बहाई है। जो युग आर्यों के बहिर्गमन का है, उसे वे भारत में उनके प्रवेश का युग कहते हैं। इसके साथ ही वे यह प्रयास करते हैं कि पश्चिम एशिया के वर्तमान निवासियों की आँखों से उनकी प्राचीन संस्कृति का वह पक्ष ओझल रहे, जिसका संबंध भारत से है। सबसे पहले स्वयं भारतवासियों को यह संबंध समझना है, फिर उसे अपने पड़ोसियों को समझाना है।

भुखमरी, अशिक्षा, अंधविश्‍वास और नए-नए रोग फैलाने वाली वर्तमान समाज व्यवस्था को बदलना है। इसके लिए भारत और उसके पड़ोसियों का सम्मिलित प्रयास आवश्‍यक है। यह प्रयास जब भी हो, यह अनिवार्य है कि तब पड़ोसियों से हमारे वर्तमान संबंध बदलेंगे और उनके बदलने के साथ वे और हम अपने पुराने संबंधों को नए सिरे से पहचानेंगे। अतीत का वैज्ञानिक, वस्तुपरक विवेचन वर्तमान समाज के पुनर्गठन के प्रश्‍न से जुड़ा हुआ है।’’ (पश्चिम एशिया और ऋग्‍वेद पृष्ठ 20)

भारतीय संस्कृति की पश्चिम एशिया और यूरोप में व्यापकता पर जो शोधपरक कार्य रामविलासजी ने किया है, इस कार्य में उन्होंने नृतत्वशास्त्र, इतिहास, भाषाशास्त्र का सहारा लिया है। शब्दों की संरचना और उनकी उत्पत्ति का विश्‍लेषण कर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आर्यों की भाषा का गहरा प्रभाव यूरोप और पश्चिम एशिया की भाषाओं पर है।

वे लिखते हैं - ‘‘सन्‌ 1786 में ग्रीक, लैटिन और संस्कृत के विद्वान विलियम जोंस ने कहा था, ‘ग्रीक की अपेक्षा संस्कृत अधिक पूर्ण है। लेटिन की अपेक्षा अधिक समृद्ध है और दोनों में किसी की भी अपेक्षा अधिक सुचारू रूप से परिष्कृत है।’ पर दोनों से क्रियामूलों और व्याकरण रूपों में उसका इतना गहरा संबंध है, जितना अकस्मात उत्पन्न नहीं हो सकता। यह संबंध सचमुच ही इतना सुस्पष्ट है कि कोई भी भाषाशास्त्री इन तीनों की परीक्षा करने पर यह विश्‍वास किए बिना नहीं रह सकता कि वे एक ही स्रोत से जन्मे हैं। जो स्रोत शायद अब विद्यमान नहीं है।

इसके बाद एक स्रोत भाषा की शाखाओं के रूप में जर्मन, स्लाव, केल्त आदि भाषा मुद्राओं को मिलाकर एक विशाल इंडो यूरोपियन परिवार की धारणा प्रस्तुत की गई। 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध में तुलनात्मक और ऐतिहासिक भाषा विज्ञान ने भारी प्रगति की है। अनेक नई-पुरानी भाषाओं के अपने विकास तथा पारस्परिक संबंधों की जानकारी के अलावा बहुत से देशों के प्राचीन इतिहास के बारे में जो धारणाएँ प्रचलित हैं, वे इसी ऐतिहासिक भाषा विज्ञान की देन हैं। आरंभ में यूरोप के विद्वान मानते थे कि उनकी भाषाओं को जन्म देने वाली स्रोत भाषा का गहरा संबंध भारत से है। यह मान्यता मार्क्स के एक भारत संबंधी लेख में भी है।’’

अँग्रेजों के प्रभुत्व से भारतीय जनता की मुक्ति की कामना करते हुए उन्होंने 1833 में लिखा था, ‘‘हम निश्‍चयपूर्वक, न्यूनाधिक सुदूर अवधि में उस महान और दिलचस्प देश को पुनर्जीवित होते देखने की आशा कर सकते हैं, जहाँ के सज्जन निवासी राजकुमार साल्तिकोव (रूसी लेखक) के शब्दों में इटैलियन लोगों से अधिक चतुर और कुशल हैं, जिनकी अधीनता भी एक शांत गरिमा से संतुलित रहती है, जिन्होंने अपने सहज आलस्य के बावजूद अँग्रेज अफसरों को अपनी वीरता से चकित कर दिया है, जिनका देश हमारी भाषाओं, हमारे धर्मों का उद्गम है और जहाँ प्राचीन जर्मन का स्वरूप जाति में, प्राचीन यूनान का स्वरूप ब्राह्यण में प्रतिबिंबित है।’’ (पश्चिम एशिया और ऋग्‍वेद पृष्ठ 21)

डॉ॰ रामविलास शर्मा मार्क्सवादी दृष्टि से भारतीय संदर्भों का मूल्यांकन करते हैं, लेकिन वे इन मूल्यों पर स्वयं तो गौरव करते ही हैं, साथ ही अपने पाठकों को निरंतर बताते हैं कि भाषा और साहित्य तथा चिंतन की दृष्टि से भारत अत्यंत प्राचीन राष्ट्र है। वे अँग्रेजों द्वारा लिखवाए गए भारतीय इतिहास को एक षड्यंत्र मानते हैं।

उनका कहना है कि यदि भारत के इतिहास का सही-सही मूल्यांकन करना है तो हमें अपने प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना होगा। अँग्रेजों ने जान-बूझकर भारतीय इतिहास को नष्ट किया है। ऐसा करके ही वे इस महान राष्ट्र पर राज कर सकते थे। भारत में व्याप्त जाति, धर्म के अलगाव का जितना गहरा प्रकटीकरण अँग्रेजों के आने के बाद होता है, उतना गहरा प्रभाव पहले के इतिहास में मौजूद नहीं है। समाज को बाँटकर ही अँग्रेज इस महान राष्ट्र पर शासन कर सकते थे और उन्होंने वही किया भी है। सर्व प्रथम नवजागरण शब्द का प्रयोग इनके द्वारा ही १९७७ में लिखे गये पुस्तक "महाविर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण" में हुुआ।

सम्मान[संपादित करें]

  • १९७० - 'निराला की साहित्य साधना' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार
  • १९८८ - शलाका सम्मान
  • १९९० - भारत भारती पुरस्कार
  • १९९१ - 'भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी' के लिए व्यास सम्मान
  • १९९९ - साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सम्मान
  • २००० - शताब्दी सम्मान (११ लाख रुपये)

पुरस्कारों में प्राप्त राशियों को उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। उन राशियों को हिन्दी के विकास में लगाने को कहा।

शताब्दी वर्ष २०१२-१३[संपादित करें]

2012-2013 रामविलास शर्मा का जन्म-शताब्दी वर्ष था। रामविलास शर्मा के ऊपर अपना व्याख्यान देते हुये वीर भारत तलवार ने कहा था कि रामविलास शर्मा की मृत्यु ने हिन्दी मीडिया को झकझोर कर रख दिया था। वे कहते हैं-

रामविलास जी की मृत्यु के बाद जो हिन्दी अखबार प्रकाशित हुए, उन सबों ने मुख्य पृष्ठ पर उनकी मृत्यु के समाचार को प्रमुखता से जगह दी।…बड़ी-बड़ी सुर्खियाँ लगाईं। ऐसा कि 11 सितंबर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर जो हमला हुआ था, उसकी भी सुर्खियां ऐसी न थी। हिन्दी के किसी अन्य साहित्यकार को यह यह सम्मान प्राप्त नहीं है। …मुझे नहीं लगता कि पूरे हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु की मृत्यु के बाद किसी और की मृत्यु के समाचार को इतनी प्रमुखता मिली होगी जितनी रामविलास जी की।

इससे हम रामविलास शर्मा की लोकप्रियता और उनके जाने से हुए क्षति दोनों का अनुमान लगा सकते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • हिन्दी जाति
  • हिन्दी नवजागरण
  • बंगाल का नवजागरण

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "डॉ॰ रामविलास शर्मा के आलोचना सिद्धांत" (एचटीएमएल). वेबदुनिया. अभिगमन तिथि १० नवंबर २००९.
  2. अपनी धरती अपने लोग, खंड-2, रामविलास शर्मा, किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1996, पृष्ठ-246.
  3. रूपतरंग और प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि, रामविलास शर्मा, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-2013, पृष्ठ-149 से 310.
  4. ऐतिहासिक भाषाविज्ञान और हिन्दी भाषा, डॉ॰ रामविलास शर्मा, संपादक- डॉ॰ राजमल बोरा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-2001, पृष्ठ-20 एवं 22.
  5. डॉ॰ रामविलास शर्मा, बुद्ध वैराग्य तथा प्रारम्भिक कविताएँ, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-2019, पृष्ठ-5.
  6. डॉ॰ रामविलास शर्मा, सदियों के सोये जाग उठे, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, द्वितीय संस्करण-2006, पृष्ठ-5.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • राम विलास शर्मा की रचनाएँ कविता कोश में Archived 2010-10-23 at the Wayback Machine
  • गद्यकोश पर डॉ॰ रामविलास शर्मा की रचनाएँ
  • कोई सोचे कि साहित्य खत्म हो जाएगा तो बेवकूफी है Archived 2012-10-31 at the Wayback Machine : रामवि‍लास शर्मा
  • एक विराट व्यक्तित्व की आत्मीय यादें (विश्वनाथ त्रिपाठी)
  • रामविलास शर्मा का प्रतिऔपनिवेशिक चिंतन (हिन्दी समय)
  • रामविलास शर्मा के आलोचना सिद्धान्त[मृत कड़ियाँ] (वेबदुनिया)
  • रामविलास शर्मा का भाषाविज्ञान विमर्श
  • हिन्दी के प्रहरी : डॉ॰ रामविलास शर्मा (गूगल पुस्तक; सं॰ - विश्वनाथ त्रिपाठी, अरुण प्रकाश)
  • भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण (गूगल पुस्तक ; लेखक - रामविलास शर्मा)
  • निराला की साहित्य साधना (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • भाषा और समाज (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • भारत के प्राचीन भाषा-परिवार और हिन्दी, खण्ड-3 (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • ऐतिहासिक भाषाविज्ञान और हिन्दी भाषा (गूगल पुस्तक ; लेखक - रामविलास शर्मा)
  • परम्परा का मूल्यांकन (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • मार्क्स और पिछड़े हुए समाज (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • इतिहास दर्शन (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • भारतीय साहित्य की भूमिका (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)
  • भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश, खण्ड-2 (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ॰ रामविलास शर्मा)

लेखक रामविलास शर्मा के गांव का नाम क्या था?

रामविलास शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के ऊँचगाँव-सानी गाँव में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. तथा पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की।

रामविलास शर्मा जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

10 अक्तूबर 1912, उन्नाव, भारतरामविलास शर्मा / जन्म की तारीख और समयnull

रामविलास शर्मा की मृत्यु कब और कहां हुई?

रामविलास शर्मा (जन्म- 10 अक्टूबर, 1912, उचगाँव सानी, उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 30 मई, 2000, भारत) आधुनिक हिन्दी साहित्य में सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि थे।

अपनी धरती अपने लोग किसकी आत्मकथा है?

वृन्दावनलाल वर्मा : अपनी कहानी वृन्दावनलाल वर्मा की आत्मकथा है।