सहसंबंध के कितने प्रकार होते हैं? - sahasambandh ke kitane prakaar hote hain?

सहसंबंध के कितने प्रकार होते हैं? - sahasambandh ke kitane prakaar hote hain?

सहसंबंध का अर्थ एक दूसरे के सम्बन्ध से है। सुविधा की दृष्टि से ही हमनें एक निश्चित ज्ञान को पृथक-पृथक विषयों में विभाजित कर लिया है। वास्तव में कोई भी विषय अपने आप में पृथक नहीं है। इसी तरह जीव विज्ञान का अध्ययन भी रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान के नियमों के अभाव में सम्भव नहीं है। एक विषय को दूसरे विषय से सम्बन्धित कर पढाने से अधिगम अधिक होता है। ऐसी अपनायी गई शिक्षक प्रक्रिया को सहसंबंध कहते हैं।

सहसंबंध का अर्थ

सहसंबंध- correlation शब्द की उत्पत्ति co-relation से हुई है जिसका अर्थ है-पारस्परिक सम्बन्ध। सह-सम्बन्ध इस बात का सूचक होता है। दो विशेषताओं के बीच कितना अंतसंबंध है इससे इसकी जानकारी मिलती है। जैसे -किसी व्यक्ति कि दो विषय कि विशेषताओं का परीक्षण द्वारा मापन करना ओर प्रत्येक व्यक्ति के दोनों विषयों के अलग-अलग प्राप्ताकों को तालिका में जोड़ों के रुप में व्यवस्थित करके सांख्यिकीय गणना द्वारा दोनों में सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है उसे सह-सम्बन्ध कहते है।

सहसंबंध की परिभाषा

गिलफोर्ड के अनुसार - “सह-सम्बन्ध गुणांक वह अकेली संख्या है जो यह बताती है कि दो वस्तुएँ किस सीमा तक एक दूसरे से सह-सम्बन्धित है तथा एक के परिवर्तन दूसरे के परिवर्तनों को किस सीमा तक प्रभावित करते है।”

डी.एन. श्रीवास्तव के अनुसार - “जब दो चर राशियॉ इस प्रकार सम्बन्धित हो कि एक चर राशि के बढ़ने से दूसरी चर राशि बढ़े या धटे या इसके विपरीत हो तो उन दोनो चर राशियों में सह-सम्बन्ध पाया जाता है।”

बेलिस के अनुसार- “सह-सम्बन्ध का अभिप्राय है- आकडों के दो या अधिक विभिन्न समूहो की तुलना जिसके उसके सम्बन्ध को जाना जा सके और उस सम्बन्ध की मात्रा को अंकात्मक रुप में व्यक्त किया जा सके।”

मन के अनुसार - ‘‘सह सम्बन्ध दो चरों के बीच सन्न्किटता के स्तर का एक सांख्यिकीय मापन है।’’

मेहरसन एवं लेहमन के अनुसार - ‘‘व्यक्तियों के एक ही समूह से प्राप्त दो माप विन्यासों के बीच सम्बन्ध या ‘सहगमशीलता’ का स्तर द्योतक मापन है।’’

    सहसंबंध के प्रकार

    सहसंबंध तीन प्रकार का होता है -

    1. धनात्मक सहसंबंध 
    2. ऋणात्मक सहसंबंध 
    3. शून्य सहसंबंध 

    1. धनात्मक सहसंबंध

    जब किसी वस्तु, समूह अथवा घटना के किसी एक चर के मान में वृद्धि होने से दूसरे साहचर्य चर के मान में वृद्धि होती है अथवा उसके मान में कमी होने से दूसरे साहचर्य चर के मान में कमी होती है तो मान दोनों चरों के बीच पाए जाने वाले इस अनुरूप सम्बंध को धनात्मक सहसंबंध करते हैं। 

    उदाहरणार्थ किसी गैस का समान दाब पर तापक्रम बढ़ने से उसका आयतन बढ़ना अथवा तापक्रम कम होने से उसका आयतन कम होना गैस के दो चरौ- तापक्रम और आयतन के बीच धनात्मक सहसंबंध है।

    2. ऋणात्मक सहसंबंध 

    जब किसी वस्तु, समूह अथवा घटना के किसी एक चर के मान में वृद्धि होने से दूसरे साहचर्य चर के मान में कमी आती है अथवा उसके मान में कमी होने से दूसरे साहचर्य चर के मान में वृद्धि होती है तो इन दोनों चरों के बीच पाए जाने वाले इस प्रतिकूल सम्बंध को ऋणात्मक सहसंबंध कहते हैं। 

    उदाहरणार्थ किसी गैस का समान तापक्रम पर दाब बढ़ने से उसका आयतन कम होना अथवा दाब कम होने से उसका आयतन बढ़ना, गैस के दो चरों-दाब और आयतन के बीच ऋणात्मक सहसंबंध है।

    3. शून्य सहसंबंध

    जब किसी वस्तु , समूह अथवा घटना के किसी एक चर में परिवर्तन होने से दूसरे साहचर्य चर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता तो इन दोनों चरों के बीच के सम्बंध को शून्य सहसंबंध कहते हैं। 

    उदाहरणार्थ किसी गैस के आयतन के बढ़ने अथवा घटने से उसके रासायनिक सूत्र में कोई अन्तर न होना गैस के दो चरों- आयतन और रासायनिक सूत्र के बीच शून्य सहसंबंध है।

    सहसंबंध की उपयोगिता, आवश्यकता और महत्व

    विज्ञान का मूल आधार कार्य-कारण सम्बंध (Cause and Effect Relationship) है। इस सम्बंध की जानकारी के आधार पर किसी एक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन से किसी दूसरे क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन की भविष्यवाणी की जा सकती है। इस प्रकार विज्ञान के क्षेत्र में तो सहसंबंध की सबसे अधिक उपयोगिता है, उसकी सबसे अधिक आवश्यकता है और उसका सबसे अधिक महत्व है। 

    इस युग में मनोवैज्ञानिकों ने भी मानव व्यवहार के कारकों का पता लगाकर कार्य-कारण सम्बंधों की स्थापना की है। आज मानवीय व्यवहार में कार्य-कारण सम्बंधों को समझने के लिए सहसंबंध प्रविधियों (Correlation Techniques) का प्रयोग किया जाता है। 

    इस प्रकार आज मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में भी सहसंबंध की बड़ी उपयोगिता है, इसकी बड़ी आवश्यकता है और इसका बड़ा महत्व है। यहाँ शिक्षा के क्षेत्र में सहसंबंध की उपयोगिता, आवश्यकता एवं महत्व का संक्षेप में वर्णन प्रस्तुत है।

    1. दो विषयों के सहसंबंध की सहायता से किसी छात्र की एक विषय की योग्यता के आधार पर उसकी दूसरे विषय की योग्यता का अनुमान लगाया जा सकता है। 
    2. दो विषयों के सहसंबंध की सहायता से यदि उपरोक्त अनुमान सही न निकले तो यह निदान करना आवश्यक हो जाता है कि उसका कारण क्या है। निदान करने के बाद उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था की जाती है। 
    3. अध्ययन विषयों के सहसंबंध की सहायता से छात्रों को शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन देने में सहायता मिलती है। 
    4. क्रियात्मक अनुसन्धान में सहसंबंध  का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है।

    सहसंबंध की सीमाएँ

    1. किन्हीं दो विषयों के सहसंबंध से उनके बीच सहसम्बंधों के मूल कारणों का ज्ञान नहीं होता। 
    2. किन्हीं दो विषयों के सहसंबंध छात्रों की संख्या पर निर्भर करते हैं, छोटे समूह से प्राप्त सहसंबंध की अपेक्षा बड़े समूह से प्राप्त सहसंबंध अधिक विश्वसनीय होता है। 
    3. किन्हीं दो विषयों के बीच का सहसंबंध  विषयों की प्रकृति के साथ-साथ छात्रों की प्रकृति (योग्यता, रूचि और अभिरूचि) पर भी निर्भर करता है। अत: एक निदर्श से प्राप्त सहसंबंध दूसरे निदर्श पर उसी रूप में लागू नहीं किया जा सकता। 
    4. सहसम्बंध गुणांक का अर्थापन परिस्थितियों पर निर्भर करता है इसलिए उसकी व्याख्या करना थोड़ा कठिन कार्य है।

    सहसंबंध कितने प्रकार के होते हैं?

    सहसंबंध के प्रकार.
    धनात्मक सहसंबंध.
    ऋणात्मक सहसंबंध.
    शून्य सहसंबंध.

    सहसंबंध क्या है इसके प्रकार बताइए?

    सहसंबंध को आमतौर पर धनात्मक या ऋणात्मक सहसंबंध के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। जब चरों की गति एक ही दिशा में एक साथ होती है तो सहसंबंध को धनात्मक कहा जाता है। जब आय बढ़ती है तो उपभोग में भी वृद्धि होती है। अब आय में कमी होती है तो उपभोग भी कम हो जाता है।

    सहसंबंध के उपयोग क्या है?

    सहसंबंध का उपयोग दो या दो से अधिक चरों के मध्य संबंध का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है। यह दो या दो से अधिक चरों के मध्य संबंधों का मापन करता है । यह संबंध ना केवल धनात्मक या ऋणात्मक दिशा के संदर्भों में निर्धारित किया जाता है, अपितु उसके परिमाण मे भी मापा जाता है।

    सहसंबंध की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

    सहसंबंध उपलब्ध सांख्यिकीय डेटा के साथ दो मात्रात्मक चर के बीच प्रकार (सकारात्मक, नकारात्मक या कोई नहीं) और साहचर्य का स्तर (निकटता का परिमाण) की खोज करता है। यह कभी भी इस बात की जानकारी नहीं देता है कि उनके बीच क्या संबंध है। यह विश्लेषण मौलिक रूप से मात्रात्मक चर के बीच एक रैखिक संबंध की धारणा पर आधारित है