साखी शब्द किस संस्कृत शब्द से विकसित है - saakhee shabd kis sanskrt shabd se vikasit hai

प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवी ‘कबीरदास ‘जी है। इसमें कबीर ने मीठी बोली बोलने और दूसरों को दुःख न देने की बात कही है

व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते है कि हमें अपने मन का अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसमे हमारा अपना तन मन भी सवस्थ रहे और दूसरों को भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख प्राप्त हो।

कस्तूरी कुंडली बसै ,मृग ढूँढै बन माँहि।
ऐसैं घटि- घटि राँम है , दुनियां देखै नाँहिं।।

कुंडली – नाभि
मृग – हिरण
घटि घटि – कण कण

प्रसंग -:  प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इसके कवी कबीरदास जी है इसमें कबीर कहते है कि संसार के लोग कस्तूरी हिरण की तरह  हो गए है जिस तरह हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर प्राप्ति के लिए भटक रहे है।

व्याख्या -: कबीरदास जी कहते है कि जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु  वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।

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जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नांहि।
सब अँधियारा मिटी गया , जब दीपक देख्या माँहि।।

मैं – अहम् ( अहंकार )
हरि – परमेश्वर
अँधियारा – अंधकार

प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर जी मन में अहम् या अहंकार के मिट जाने के बाद मन में परमेश्वर के वास की बात कहते है।

व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि जब इस हृदय में ‘मैं ‘ अर्थात मेरा अहंकार था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं था परन्तु अब हृदय में अहंकार नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है।  जब परमेश्वर नमक दीपक के दर्शन हुए तो अज्ञान रूपी अहंकार का विनाश हो गया।

साखी शब्द किस संस्कृत शब्द से विकसित है - saakhee shabd kis sanskrt shabd se vikasit hai
साखी शब्द किस संस्कृत शब्द से विकसित है - saakhee shabd kis sanskrt shabd se vikasit hai

सुखिया सब संसार है , खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रोवै।।

सुखिया – सुखी
अरु – अज्ञान रूपी अंधकार
सोवै – सोये हुए
दुखिया – दुःखी
रोवै – रो रहे

प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी है। इसमें कबीर जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे है हैं।

व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं।

बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै ,जिवै तो बौरा होइ।।

बिरह – बिछड़ने का गम
भुवंगम -भुजंग , सांप
बौरा – पागल

प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गयी है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और अगर रह भी जाता है तो वह पागल हो जाता है।

व्याख्या -: कबीरदास जी कहते हैं कि जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम सांप बन कर लोटने  लगता है तो उस पर न कोई मन्त्र असर करता है और न ही कोई दवा असर करती है। उसी तरह राम अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों  जैसी हो जाती है।

निंदक नेड़ा राखिये , आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना , निरमल करै सुभाइ।।

निंदक – निंदा करने वाला
नेड़ा – निकट
आँगणि – आँगन
साबण – साबुन
निरमल – साफ़
सुभाइ – स्वभाव

प्रसंग-: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवी कबीदास जी हैं। इसमें कबीरदास जी निंदा करने वाले व्यक्तियों को अपने पास रखने की सलाह देते हैं ताकि आपके स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आ सके।

व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए। हो सके तो अपने आँगन में ही उनके लिए घर बनवा लेना चाहिए अर्थात हमेशा अपने आस पास ही रखना चाहिए।  ताकि हम उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को सुधर सकें। इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही साफ़ हो जायेगा।

पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ।
ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ।

पोथी – पुस्तक
मुवा – मरना
भया – बनना
अषिर – अक्षर
पीव – प्रिय

प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर जी पुस्तक ज्ञान को महत्त्व न देकर ईश्वर – प्रेम को  महत्त्व देते हैं।

व्याख्या -: कबीर जी कहते है कि इस संसार में मोटी – मोटी पुस्तकें (किताबें ) पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित (ज्ञानी ) नहीं बन सका।  यदि किसी व्यक्ति ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता अर्थात ईश्वर प्रेम ही एक सच है इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी है।

हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।

जाल्या – जलाया
आपणाँ – अपना
मुराड़ा – जलती हुई लकड़ी , ज्ञान
जालौं – जलाऊं
तास का – उसका

प्रसंग -: प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर मोह – माया रूपी घर को जला कर  अर्थात त्याग कर ज्ञान को प्राप्त करने की बात करते हैं।

व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह -माया रूपी घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है।  अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल ( लकड़ी ) है यानि ज्ञान है। अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह – माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।
 
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साखी प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

(क ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये

प्रश्न 1 -: मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है ?

उत्तर -: कबीरदास जी के अनुसार जब आप दूसरों के साथ मीठी भाषा का उपयोग करोगे तो उन्हें आपसे कोई शिकायत नहीं रहेगी। वे सुख का अनुभव करेंगे और जब आपका मन शुद्ध और साफ़ होगा परिणामस्वरूप आपका तन भी शीतल रहेगा।

प्रश्न 2 -: दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है ? साखी के सन्दर्भ में स्पष्ट किजिए।

उत्तर -: तीसरी साखी में कबीर का दीपक से तात्पर्य ईश्वर दर्शन से है तथा अँधियारा से तात्पर्य अज्ञान से है।  ईश्वर को सर्वोच्च ज्ञान कहा गया है अर्थात जब किसी को सर्वोच्च ज्ञान के दर्शन हो जाये तो उसका सारा अज्ञान दूर होना सम्भव है।

प्रश्न 3 -: ईश्वर कण – कण में व्याप्त है , पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ?

उत्तर -: कबीरदास जी दूसरी साखी में स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर कण कण में व्याप्त है ,पर हम अपने अज्ञान के कारण उसे नहीं देख पाते क्योंकि हम ईश्वर को अपने मन में खोजने के बजाये मंदिरों और तीर्थों में खोजते हैं।

प्रश्न 4 -: संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतिक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -: कबीरदास के अनुसार संसार के वे सभी व्यक्ति जो बिना किसी चिंता के जी रहे हैं वे सुखी हैं तथा जो ईश्वर वियोग में जी रहे हैं वे दुखी हैं। यहाँ ‘सोना ‘ ‘अज्ञान ‘ का और ‘जागना ‘ ईश्वर – प्रेम ‘ का प्रतिक है।  इसका प्रयोग यहाँ इसलिए हुआ है क्योंकि कुछ लोग अपने अज्ञान के कारण बिना चिंता के सो रहे हैं और कुछ लोग ईश्वर को पाने की आशा में सोते हुए भी जग रहे हैं।

प्रश्न 5 -: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है ?

उत्तर -: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने आस पास रखने का उपाय सुझाया है। उनके अनुसार निंदा करने वाला व्यक्ति जब आपकी गलतियां निकालेगा तो आप उस गलती को सुधार कर अपना स्वभाव निर्मल बना सकते हैं।

प्रश्न 6 -: ‘ ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ ‘ – इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?

उत्तर -: ‘ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ ‘ – इस पंक्ति में कवि ईश्वर प्रेम को महत्त्व देते हुए कहना चाहता है कि ईश्वर प्रेम का एक अक्षर ही किसी व्यक्ति को पंडित बनाने के लिए काफी है।

प्रश्न 7 -: कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता प्रकट कीजिए।

उत्तर -: कबीर की साखिओं में अनेक भाषाओँ का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।  उद्धृत साखिओं की भाषा की विशेषता यह है कि इसमें भावना की अनुभूति ,रहस्यवादिता तथा जीवन का संवेदनशील संस्पर्श तथा सहजता को प्रमुख स्थान दिया गया है।

( ख ) निम्नलिखित पंक्तिओं के भाव स्पष्ट कीजिये

(1 )  ‘ बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ। ‘

भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि जब किसी मनुष्य के मन में अपनों से बिछड़ने का गम रूपी साँप जगह बना लेता है तो कोई दवा ,कोई मंत्र काम नहीं आते।

(2 ) ‘ कस्तूरी कुंडलि बसै ,मृग ढूँढ़ै बन माँहि। ‘

भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि अज्ञान के कारण कस्तूरी हिरण पूरे वन में कस्तूरी की खुसबू के स्त्रोत को ढूंढता रहता है जबकि वह तो उसी के पास नाभि में विद्यमान होती है।

( 3 ) ‘ जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नहीं। ‘

भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि अहंकार और ईश्वर एक दूसरे के विपरीत हैं जहाँ अहंकार है वहां ईश्वर नहीं ,जहाँ ईश्वर है वहां अहंकार का वास नहीं होता।

( 4 ) ‘ पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ। ‘

भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि किताबी ज्ञान किसी को पंडित नहीं बना सकता , पंडित बनने के लिए ईश्वर – प्रेम का एक अक्षर ही काफी है।

 

प्रश्न 8 – कबीर जी अपनी साखी के द्वारा भ्रमित लोगों के बारे में क्या कहते हैं ?

उत्तर – कबीर जी अपनी साखी के द्वारा भ्रमित लोगों के बारे में कहते हैं कि लोगों के मन में यह भ्र्म है कि ईश्वर देवालयों और तीर्थों में वास करते हैं जिस कारण लोग ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढते हैं । परन्तु ईश्वर संसार के कण – कण में विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।

 

प्रश्न 9 – कबीर दास  जी के भाव सौंदर्य की दो विशेषताएँ बताइए। 

उत्तर –  कबीर दास भारत के सबसे बड़े कवियों में से एक है। उनकी कविता भारत में सबसे प्रसिद्ध कविताएं हैं। कबीर दास के भाव सौंदर्य की कई विशेषताएं थी। 

(क) ईश्वर के समक्ष सबकी समानता – अपने दोहों के द्वारा कबीर दास जी सभी प्राणियों को सीख देना चाहते हैं कि जब ईश्वर किसी के साथ भेदभाव नहीं करते तो उनका भी कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी भी प्राणी को निचा दिखाए। 

(ख) जाति – प्रथा का विरोध – जाति – प्रथा समाज की एक ऐसी बुराई है जो सदियों से हमारे समाज को खोखला करती आ रही है। कबीर दास जी ने अपने दोहों में जाति प्रथा के विरुद्ध जागरूकता फैलाने की पूर्ण कोशिश की। 

 

प्रश्न 10 – कबीर दास ने साखी के अनुसार साधु से कौन सी बातें पूछने से इंकार किया है ?

उत्तर – कबीर दास ने साखी के अनुसार साधु से उसकी जाति पूछने से इंकार किया है क्योंकि साधु से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करनी चाहिए , उनसे ज्ञान लेना चाहिए। क्योंकि जब आप तलवार लेने जाते हैं तो मोल तलवार का होता है न की उसकी म्यान का , उसी तरह साधु की जाति का मोल नहीं होता उसके ज्ञान का होता है। 

साखी शब्द का अर्थ क्या है?

साखी संस्कृत 'साक्षित्‌' (साक्षी) का रूपांतर है। संस्कृत साहित्य में आँखों से प्रत्यक्ष देखने वाले के अर्थ में साक्षी का प्रयोग हुआ है। कालिदास ने कुमारसंभव (5,60) में इसी अर्थ में इसका प्रयोग किया है।

साखी शब्द का अर्थ क्या है Class 10?

'साखी ' शब्द ' साक्षी ' शब्द का ही (तद्भव ) बदला हुआ रूप है। साक्षी शब्द साक्ष्य से बना है। जिसका अर्थ होता है -प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात जो ज्ञान सबको स्पष्ट दिखाई दे। यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान किया जाता है।

कबीर की साखी में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?

कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अर्थात राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली है , पर 'रमैनी' और 'सबद' में गाने के पद है , जिनमें काव्य की ब्रजभाषा और कहीं – कहीं पूर्वी बोली का भी व्यवहार है ।

साखी और दोहे में क्या अंतर है?

दोहा मात्रिक छंद होता है। साखी शब्द संस्कृत के शब्द साक्षी से लिया गया है। इसका अर्थ लिया गया है साक्ष्य। इसे उपदेश के रूप में भी जाना जाता है।