श्री सत्यनारायण भगवान की व्रत कथाॐ नमोः नारायणाय॥ Show
श्री सत्यनारायण भगवान की पूर्णिमा व्रत कथासत्यनारायण व्रत कथा का संदर्भ यह है कि पुराकाल में शौनकादि ऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के आश्रम पर पहुंचे, महर्षि सूत से प्रश्न करते हुए ऋषि गण पूछते हैं की लौकिक कष्ट मुक्ति, सांसारिक दुखों व कष्टों से मुक्ति पाने के लिए सरल उपाय क्या है? महर्षि सूत जी शौनकादि ऋषियों को बताते हैं कि यही प्रश्न नारद मुनि ने भगवान विष्णु
से किया था, और भगवान विष्णु ने नारद मुनि को सांसारिक दुखों से मुक्ति का सरल उपाय बताते हुए कहा, इसका एक ही सरल उपाय है वह है सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण भगवान की कथा प्रथम अध्यायकथा इस प्रकार है कि, एक बार नारद जी भगवान श्री हरि विष्णु के पास जाते हैं और उनकी
स्तुति करने लगे, यह देख श्री हरि विष्णु नारद जी से बोले - "हे भक्त आप किस प्रयोजन से यहां आए हैं तथा आपके मन में क्या है? मुझे बताइए!" भगवान विष्णु की बातें सुनकर नारद मुनि बोले- प्रभु इस व्रत को करने का क्या फल मिलता है? इसका विधान क्या है? तथा इस व्रत को किसने किया यह सब
विस्तार पूर्वक बताइए मेरी सुनने की इच्छा है। सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने के बाद सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए और बंधु बांधव व ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। कलियुग में यह सबसे छोटा सा उपाय है। श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। सत्यनारायण व्रत दूसरा अध्यायश्रीसूतजी बोले
- हे द्विजों! अब मैं पुनः पूर्वकाल में जिसने इस सत्यनारायण व्रत को किया था, उसे भलीभांति विस्तारपूर्वक कहूंगा। रमणीय काशी नामक नगर में कोई अत्यन्त निर्धन ब्राह्मण रहता था। भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह प्रतिदिन पृथ्वी पर भटकता रहता था। ब्राह्मण प्रिय भगवान ने उस दुखी ब्राह्मण को देखकर वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके उस द्विज से आदरपूर्वक पूछा - हे विप्र! प्रतिदिन अत्यन्त दुखी होकर तुम किसलिए पृथ्वी पर भ्रमण करते रहते हो। हे द्विजश्रेष्ठ! यह सब बतलाओ, मैं सुनना चाहता हूं। श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। सत्यनारायण व्रत तीसरा अध्यायश्री सूतजी बोले - श्रेष्ठ मुनियों! अब मैं पुनः आगे की
कथा कहूंगा, आप लोग सुनें। प्राचीन काल में उल्कामुख नाम का एक राजा था। वह जितेन्द्रिय, सत्यवादी तथा अत्यन्त बुद्धिमान था। वह विद्वान राजा प्रतिदिन देवालय जाता और ब्राह्मणों को धन देकर सन्तुष्ट करता था। कमल के समान मुख वाली उसकी धर्मपत्नी शीला, विनय एवं सौन्दर्य आदि गुणों से सम्पन्न तथा पतिपरायणा थी। राजा एक दिन अपनी धर्मपत्नी के साथ भद्रशीला नदी के तट पर श्रीसत्यनारायण का व्रत कर रहा था। उसी समय व्यापार के लिए अनेक प्रकार की पुष्कल धनराशि से सम्पन्न एक साधु नाम का बनिया वहां आया। भद्रशीला नदी के
तट पर नाव को स्थापित कर वह राजा के समीप गया और राजा को उस व्रत में दीक्षित देखकर विनयपूर्वक पूछने लगा। सत्यनारायण व्रत चौथा अध्यायश्रीसूत जी बोले - साधु बनिया मंगलाचरण कर और ब्राह्मणों को धन देकर अपने नगर के लिए चल पड़ा। साधु के कुछ दूर जाने पर भगवान सत्यनारायण की उसकी सत्यता की परीक्षा के विषय में जिज्ञासा हुई - 'साधो! तुम्हारी नाव में क्या भरा है?' तब धन के मद में चूर दोनों महाजनों ने अवहेलनापूर्वक हंसते हुए कहा - 'दण्डी संन्यासी! क्यों पूछ रहे हो? क्या कुछ मुद्रा लेने की इच्छा है? हमारी नाव में तो लता और पत्ते आदि भरे हैं।' ऐसी निष्ठुर वाणी सुनकर बोले - 'तुम्हारी बात सच हो जाय' - ऐसा कहकर दण्डी
संन्यासी को रूप धारण किये हुए भगवान कुछ दूर जाकर समुद्र के समीप बैठ गये। सत्यनारायण व्रत पांचवा अध्यायश्रीसूत जी बोले - श्रेष्ठ मुनियों! अब इसके बाद मैं दूसरी कथा कहूंगा, आप लोग सुनें। अपनी प्रजा का पालन करने में तत्पर तुंगध्वज नामक एक राजा था। उसने सत्यदेव के प्रसाद का परित्याग करके दुख प्राप्त किया। एक बार वह वन में बहुत से पशुओं को मारकर वटवृक्ष के नीचे आया। वहां उसने देखा कि गोपगण बन्धु-बान्धवों के साथ
संतुष्ट होकर भक्तिपूर्वक भगवान सत्यदेव की पूजा कर रहे हैं। राजा यह देखकर भी अहंकारवश न तो वहां गया और न उसे भगवान सत्यनारायण को प्रणाम ही किया। पूजन के बाद सभी गोपगण भगवान का प्रसाद राजा के समीप रखकर वहां से लौट आये और इच्छानुसार उन सभी ने भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इधर राजा को प्रसाद का परित्याग करने से बहुत दुख हुआ। कलियुग में तो भगवान सत्यदेव की पूजा विशेष फल प्रदान करने वाली है। भगवान विष्णु को ही कुछ लोग काल, कुछ
लोग सत्य, कोई ईश और कोई सत्यदेव तथा दूसरे लोग सत्यनारायण नाम से कहेंगे। अनेक रूप धारण करके भगवान सत्यनारायण सभी का मनोरथ सिद्ध करते हैं। कलियुग में सनातन भगवान विष्णु ही सत्यव्रत रूप धारण करके सभी का मनोरथ पूर्ण करने वाले होंगे। हे श्रेष्ठ मुनियों! जो व्यक्ति नित्य भगवान सत्यनारायण की इस व्रत-कथा को पढ़ता है, सुनता है, भगवान सत्यारायण की कृपा से उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। हे मुनीश्वरों! पूर्वकाल में जिन लोगों ने भगवान सत्यनारायण का व्रत किया था, उसके अगले जन्म का वृतान्त कहता हूं, आप लोग
सुनें। Shri Satyanarayan Vrat Katha in EnglishThe whole context of Satyanarayan Vrat Katha is that in ancient times, Shaunkadi Rishi reached the ashram of Maharishi Soot located at Naimisharanya. The sages ask Maharishi Sut that what is the simple remedy for liberation from worldly suffering, worldly happiness, prosperity and achievement of supernatural goal? Maharishi Soot tells the sages that Narad ji had asked a similar question to Lord Vishnu. Lord Vishnu told Narad ji that there is only one highway for liberation from worldly afflictions, worldly happiness, prosperity and attainment of supernatural goals, that is Satyanarayan Vrat. Satyanarayana means truthfulness, satyagraha, integrity. The attainment of happiness and prosperity in the world is possible only through truthful conduct. Truth is God. Satyacharan means worship of God, worship of God. SATYANARAYAN VRAT CHAPTER 1
श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। SATYANARAYAN
VRAT CHAPTER 2
श्री मन
नारायण-नारायण-नारायण। SATYANARAYAN VRAT CHAPTER 3
' Lord Satyanarayana
was again satisfied with this fast and he showed the dream to Nripashreshtha Chandraketu and said in the dream - 'Nrupashreshtha! Leave both the merchants in the morning and also give all the money which you have taken from them at this time, otherwise I will destroy you along with the kingdom, wealth and son.' श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। SATYANARAYAN VRAT CHAPTER 4
श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। SATYANARAYAN VRAT CHAPTER 5
In Kaliyuga, worship of Lord Satyadev is going to give special results. Some people call Lord Vishnu as Kaal, some people as Satya, some Ish and some Satyadev and others by the name Satyanarayan. By taking many forms, Lord Satyanarayana proves everyone's desire. In Kaliyuga, the eternal Lord Vishnu will be the one to fulfill everyone's wishes by taking the form of Satyavrat. O best sages! The person who reads, listens to this Vrat-Katha of Lord Satyanarayana regularly, all his sins are destroyed by the grace of Lord Satyanarayana. O sages! In the past, I tell the story of the next birth of those who had fasted for Lord Satyanarayan, you guys listen.
श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। Thus this fifth chapter of Shree Satyanarayan Vrat Katha was completed in Rewakhand under Sriskandpuran. सत्यनारायण भगवान की कथा करने से क्या लाभ मिलता है?'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं।
सत्यनारायण की कथा सुनने से क्या होता है?सत्यनारायण कथा को सुनने से भी सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सत्यनारायण कथा को सुनने वाले को उपवास अवश्य करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि श्री हरि विष्णु इससे जीवन की सभी समस्याओं को दूर करने में सक्षम हैं। स्कंद पुराण के अनुसार सत्यनारायण भगवान विष्णु का स्वरुप है।
सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से क्या होता है?श्री सत्यनारायण की कथा को एकादशी या पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इस व्रत के पीछे मूल उद्देश्य सत्य की पूजा करना है। इस व्रत में भगवान शालिग्राम का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाले उपासक को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान सत्यनारायण का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
घर में कथा कराने से क्या होता है?जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
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