संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?

Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन  Important Questions and Answers. 

RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1. 
इस्तमरारी बन्दोबस्त (स्थायी बन्दोबस्त) कब लागू हुआ?
(अ) 1765 ई
(ब) 1772 ई
(स) 1784 ई
(द) 1793 ई।
उत्तर:
(द) 1793 ई।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 2. 
इस्तमरारी बन्दोबस्त किसके शासनकाल में लागू हुआ? 
(अ) वॉरेन हेस्टिंस 
(ब) मैकाले
(स) कार्नवालिस 
(द) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(स) कार्नवालिस 

प्रश्न 3. 
स्थायी बन्दोबस्त मुख्यतः कहाँ लागू हुआ? 
(अ) बंगाल 
(ब) मद्रास 
(स) बम्बई
(द) पंजाब। 
उत्तर:
(अ) बंगाल 

प्रश्न 4. 
अंग्रेजों ने रैयत शब्द का प्रयोग किया
(अ) जमींदारों के लिए 
(ब) ब्रिटिश लोगों के लिए 
(स) किसानों के लिए 
(द) इन सभी के लिए। 
उत्तर:
(स) किसानों के लिए 

प्रश्न 5. 
पाँचवी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब पेश की गई थी? 
(अ) सन् 1801 में 
(ब) सन् 1808 में 
(स) सन् 1813 में 
(द) सन् 1857 में। 
उत्तर:

प्रश्न 6. 
फ्रांसिस बुकानन कौन था?
(अ) एक चिकित्सक 
(ब) अंग्रेज अधिकारी 
(स) एक यात्री 
(द) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(स) एक यात्री 

प्रश्न 7.
बम्बई दक्कन में किसानों का विद्रोह कब हुआ? .
(अ) 1875 में 
(ब) 1878 में 
(स) 1881 में 
(द) 1885 में। 
उत्तर:
(अ) 1875 में 

प्रश्न 8. 
उस अर्थशास्त्री की पहचान कीजिए, जिसके विचारों के अनुसार ब्रिटिश अधिकारी 1820 के दशक में महाराष्ट्र के कार्य करने लगे।
(अ) डेविड रिकार्डो 
(ब) थेम्स रॉबर्ट 
(स) जॉन स्टुअर्ट मिल 
(द) वाल्टर बेघॉट 
उत्तर:
(अ) डेविड रिकार्डो 

प्रश्न 9. 
बम्बई दक्कन में पहला राजस्व बन्दोबस्त किस दशक में किया गया?
(अ) 1810 के 
(ब) 1820 के 
(स) 1830 के 
(द) 1840 के। 
उत्तर:
(ब) 1820 के 

प्रश्न 10.
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गयी
(अ) 1870 ई. में 
(ब) 1875 ई. में 
(स) 1878 ई. में 
(द) 1980 ई. में।
उत्तर:
(स) 1878 ई. में 

सुमेलित प्रश्न 

प्रश्न 1. 
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए

खण्ड 'क'

खण्ड'ख' 

(व्यवस्था)

(क्षेत्र)

(1) रैयतवाड़ी व्यवस्था

उत्तर प्रदेश

(2) अकबर

बंगाल

(3) शाहजहाँ

मद्रास 

(4) औरंगजेब

दक्षिण भारत 

उत्तर:

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख' 

(व्यवस्था)

(क्षेत्र) 

(1) रैयतवाड़ी व्यवस्था

मद्रास 

(2) अकबर

दक्षिण भारत 

(3) शाहजहाँ

बंगाल 

(4) औरंगजेब

उत्तर प्रदेश


प्रश्न 2. 
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिएखण्ड 'क'

खण्ड 'क'

खण्ड'ख

(विद्रोह)

(नेता)

(1) कच्छ विद्रोह

चित्तूर सिंह 

(2) खासी विद्रोह

कान्हू तथा सिद्ध

(3) रायोसी विद्रोह

राय भारमल

(4) संथाल विद्रोह

तीरत सिंह 

उत्तर:

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख'

(विद्रोह)

(विद्रोह

(1) कच्छ विद्रोह

राय भारमल 

(2) खासी विद्रोह

तीरत सिंह 

(3) रायोसी विद्रोह

चित्तूर सिंह 

(4) संथाल विद्रोह

कान्हू तथा सिद्धू 


अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
भारत में सर्वप्रथम औपनिवेशिक शासन कहाँ स्थापित हुआ? 
उत्तर:
भारत में सर्वप्रथम औपनिवेशिक शासन बंगाल में स्थापित हुआ। 

प्रश्न 2.
इस्तमरारी बंदोबस्त क्या था? 
उत्तर:
वह स्थायी भू-राजस्व व्यवस्था जिसके अन्तर्गत ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जींदार को अदा करनी होती थी, इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था कहलाती थी। 

प्रश्न 3. 
बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था कब व किसने लागू की ?
अथवा इस्तमरारी बन्दोबस्त कब एवं किस क्षेत्र में लागू किया गया ?
उत्तर:
बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त व्यवस्था 1793 ई. में चार्ल्स कार्नवालिस ने लागू की। 

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 4. 
बंगाल में बड़े जमींदारों की सम्पदाएँ नीलाम क्यों कर दी जाती थीं? 
उत्तर:
क्योंकि बड़े जींदार प्रायः पूरा राजस्व नहीं चुका पाते थे। 

प्रश्न 5. 
प्रायः 'राजा' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता था? 
उत्तर:
शक्तिशाली जर्मीदारों के लिए। 

प्रश्न 6. 
अमला क्या था? 
उत्तर:
राजस्व एकत्रित करने के लिए जींदार का जो अधिकारी गाँव में जाता था, उसे अमला कहा जाता था। 

प्रश्न 7. 
बंगाल के धनी किसानों को किस नाम से जाना जाता था? 
उत्तर:
बंगाल के धनी किसानों को जोतदार नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 8. 
नीचे दिए गए प्रवाह चार्ट का अध्ययन कीजिए और भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रारम्भ की गई राजस्व प्रणाली का नाम ज्ञात कीजिए:
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त। 

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?

प्रश्न 9. 
इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किए जाने के समय बद्रवान का राजा कौन था? 
उत्तर:
राजा तेजचंद। 

प्रश्न 10. 
पाँचवीं रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में कब पेश की गयी? 
उत्तर:
1813 ई. में पाँची रिपोर्ट संसद में पेश की गयी। 

प्रश्न 11. 
पहाड़िया लोग कौन थे? 
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में राजमहल की पहाड़ियों के आसपास रहने वाले लोगों को पहाड़िया कहा जाता था। 

प्रश्न 12. 
पहाड़िया लोग किस प्रकार की खेती करते थे? 
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम कृषि करते थे। 

प्रश्न 13. 
कुदाल एवं हल किन लोगों के जीवन का प्रतीक माना जाता है?  
उत्तर:
कुदाल को पहाड़िया लोगों तथा हल को संथालों के जीवन का प्रतीक माना जाता है। 

प्रश्न 14. 
संथाली विद्रोह का नेता कौन था? 
उत्तर:
संथाली विद्रोह का नेता सिद्धू मांझी था। 

प्रश्न 15. 
पुणे के सूपा गाँव का किसान आन्दोलन किनके विरोध में हुआ था? 
उत्तर:
साहूकार व अनाज के व्यापारियों के विरोध में। 

प्रश्न 16. 
बम्बई दक्कन में प्रथम राजस्व बन्दोबस्त कब किया गया? 
उत्तर:
1820 के दशक में बम्बई दक्कन में प्रथम राजस्व बन्दोबस्त किया गया। 

प्रश्न 17. 
ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1857 ई. में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना हुई। 

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1) 

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक बंगाल में जमींदारों की भू-सम्पदाएँ नीलाम क्यों कर दी जाती थीं?
अथवा 
बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त के बाद बहुत-सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई? दो कारण दीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक बंगाल में 1793 ई. में इस्तमरारी बन्दोबस्त के तहत ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जींदार को देनी होती थी। जो जमींदार निश्चित राजस्व राशि नहीं चुका पाते थे उनसे राजस्व वसूली के लिए उनकी भू-सम्पदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं।

प्रश्न 2. 
औपनिवेशिक बंगाल में जमींदार अपनी जमींदारी को छिनने से कैसे बचाते थे ?
उत्तर:
(i) औपनिवेशिक बंगाल में जींदारों के एजेंट नीलामी में स्वयं बोली लगाते थे। बाद में रकम अदा नहीं करने पर ईस्ट इंडिया कम्पनी फिर सस्ते में उन्हीं जर्मीदारों को जमीन दे देती थी। इसके अतिरिक्त जमींदार अपनी जमींदारी को छिनने से बचाने के लिए अन्य तरीके भी अपनाते थे।

(ii) राजस्व की माँग में परिवर्तन नहीं किया जा सकता था। वस्तुतः सूर्यास्त विधि (कानून) के अनुसार, यदि निश्चित तारीख पर सूर्य अस्त होने तक भुगतान नहीं आता था तो जींदारी को नीलाम किया जा सकता था।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 3. 
चार्ल्स कार्नवालिस कौन था?
उत्तर:
चार्ल्स कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर था जिसने 1793 ई. में बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया था। इसने अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम में ब्रिटिश सेना का नेतृत्व किया।

प्रश्न 4. 
सूर्यास्त विधि (कानून) क्या था ?
उत्तर:
जमींदारों द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी को एक निश्चित तारीख को सूर्यास्त तक राजस्व जमा कराना अनिवार्य था। राजस्व जमा न होने की दशा में उनकी जींदारी नीलाम की जा सकती थी। इसे ही सूर्यास्त विधि (कानून) कहा जाता था।

प्रश्न 5. 
जमींदारों को नियन्त्रित करने एवं उनकी स्वायत्तता को सीमित करने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कौन-कौन से कदम उठाए ? 
अथवा 
अगर आप ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी होते तो बंगाल में जमींदारों की शक्ति को नियन्त्रित व विनियमित करने के लिए क्या प्रयास करते?
उत्तर:

  1. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया। 
  2. सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया। 
  3. इन जमींदारों को कम्पनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के अधीन कर दिया गया। 
  4. जमींदारों से स्थानीय न्याय व स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गयी। 

प्रश्न 6. 
जमींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था? 
उत्तर:
जींदार को किसानों से राजस्व एकत्रित करने में निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता था

  1. कभी-कभी खराब फसल होने पर किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था। 
  2. उपज की नीची कीमतों के कारण भी किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था। 
  3. कभी-कभी किसान जानबूझकर स्वयं भी भुगतान में देरी कर देते थे। 

प्रश्न 7. 
जोतदार जमींदारों का विरोध क्यों व कैसे करते थे ?
उत्तर:
जोतदार गाँव में अपना प्रभाव एवं नियन्त्रण बढ़ाने के लिए जमींदारों का विरोध करते थे। जोतदार जमींदारों द्वारा गाँव की जमा (लगान) को बढ़ाने के प्रयत्नों का विरोध करते थे तथा जमींदारों के अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोकते थे व उन पर निर्भर किसानों को अपने पक्ष में एकजुट रखते थे।

प्रश्न 8. 
ब्रिटिश अधिकारियों ने पहाड़ी लोगों के स्थान पर संथालों को बसाने की नीति क्यों अपनायी ?
उत्तर:
ब्रिटिश अधिकारी राजमहल की पहाड़ियों को साफ करके कृषि करवाना चाहते थे, जबकि पहाड़ी लोग ऐसा करने के लिए तैयार नहीं थे। संथालों ने इस कार्य में रुचि ली जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश अधिकारियों ने पहाड़ी लोगों के स्थान पर संथालों को बसाने की नीति अपनायी।

प्रश्न 9. 
दामिन-ए-कोह के बारे में आप क्या जानते हो ?
अथवा 
दामिन-ए-कोह क्या था?
उत्तर:
सन् 1832 में अंग्रेजों ने राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में जमीन के एक बहुत बड़े क्षेत्र को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया, जिसे संथालों की भूमि घोषित किया गया। यहां उन्हें स्थायी कृषि करनी थी। इसे ही दामिन-ए-कोह कहा गया।

प्रश्न 10. 
रैयतवाड़ी व्यवस्था किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार द्वारा बम्बई दक्कन में लागू की गयी राजस्व प्रणाली को रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा जाता था जिसके अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी।

प्रश्न 11. 
"रैयतवाड़ी प्रथा ने बम्बई दक्कन के रैयतों को संकट की स्थिति में डाल दिया।" कोई तीन उदाहरण देकर इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

  1. रैयतवाड़ी प्रथा के अन्तर्गत माँगा गया राजस्व इतना अधिक था कि अनेक स्थानों पर किसान अपने गाँव से नए क्षेत्रों में पलायन कर गए। 
  2. वर्षा की कमी के कारण फसल खराब होने पर किसानों के लिए राजस्व अदा करना असम्भव हो जाता था। इस स्थिति में भी कलेक्टर बड़े अधिकारियों को खुश करने के लिए अत्यन्त कठोरतापूर्वक राजस्व वसूलने का प्रयत्न करते थे। ।
  3. किसानों के राजस्व नहीं अदा कर पाने पर उनकी फसलों को जब्त कर पूरे गाँव पर जुर्माना लगा दिया जाता था। 

प्रश्न 12. 
1830 के दशक में किसानों को ऋण क्यों लेने पड़े ?
उत्तर:
1832 ई. के पश्चात् कृषि उत्पादों में तेजी से गिरावट आयी जिससे किसानों की आय में और भी तेजी से गिरावट आ गयी। इसके अतिरिक्त 1832-34 के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्र अकाल की चपेट में आ गये जिससे जन-धन की भारी हानि हुई। किसानों के पास इस संकट का सामना करने के लिए खाद्यान्न नहीं था। राजस्व की बकाया राशियाँ बढ़ती गर्दी जिसके परिणामस्वरूप किसानों को ऋण लेने पड़े।

प्रश्न 13. 
साहूकारों ने किसानों को ऋण देने से मना क्यों कर दिया ?
उत्तर:
1865 ई. में अमेरिका का गृहयुद्ध समाप्त हो गया और वहाँ कपास का उत्पादन पुनः प्रारम्भ हो गया तथा ब्रिटेन को भारतीय कपास के निर्यात में निरन्तर गिरावट आती गयी। साहूकारों ने कपास की गिरती कीमतों को देखते हुए किसानों को ऋण देने से मना कर दिया। 

प्रश्न 14. 
इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए राजकीय प्रतिवेदनों के प्रयोग में क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए ?
उत्तर:
राजकीय प्रतिवेदन सरकार की दृष्टि से तैयार किये जाते हैं जो पूरी तरह विश्वसनीय नहीं होते हैं अतः इन्हें सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। इनका प्रयोग करने से पहले समाचार-पत्रों, गैर-राजकीय वृत्तान्तों, वैधानिक अभिलेखों एवं मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ इनका मिलान करके इनकी विश्वसनीयता की जाँच की जानी आवश्यक है। 

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1. 
बर्दवान के राजा की भू-सम्पदाएँ क्यों नीलाम की गयीं ?
उत्तर:
1797 ई. में बर्दवान के राजा की कई सम्पदाएँ नीलाम कर दी गईं क्योंकि बद्रवान के राजा पर ईस्ट इंडिया कम्पनी के राजस्व की एक बड़ी राशि बकाया थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा यह नियम बनाया गया था कि जो जींदार निश्चित समय पर निर्धारित राजस्व राशि जमा नहीं करायेगा उसकी जींदारी नीलाम कर दी जाएगी। इस हेतु नीलामी में बोली लगाने के लिए अनेक खरीददार थे। खरीददारों में सबसे ऊँची बोली लगाने वाले व्यक्ति को भू-सम्पदाएँ तथा जमींदारी बेच दी गयी लेकिन यह खरीदारी फर्जी थी क्योंकि बोली लगाने वालों में से 95 प्रतिशत लोग राजा के ही एजेंट थे। वैसे राजा की जमीनें अर्थात् भू-सम्पदाएँ खुले रूप से बेच दी गयी थी लेकिन उनकी जमींदारी का नियन्त्रण पूर्व राजाओं के हाथों में ही रहा। राजा शब्द का प्रयोग तत्कालीन बंगाल में शक्तिशाली जमींदारों के लिए किया जाता था।

प्रश्न 2. 
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के दोषों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जमींदारों की भू-सम्पदाओं की नीलामी व्यवस्था के निम्नलिखित दोष थे. 

  1. भू-सम्पदाओं की नीलामी में बोली लगाने के लिए अनेक खरीददार होते थे और सम्पदाएँ सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को बेच दी जाती थीं। बोली लगाने वालों की हैसियत की कोई जाँच-पड़ताल नहीं की जाती थी।
  2. भू-सम्पदाओं की नीलामी के अनेक खरीददार लोग, जींदार के ही नौकर या एजेंट होते थे जो जमींदार की ओर से ही जमीनों को खरीदते थे।
  3. भू-सम्पदाओं की नीलामी में 95 प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी होती थी। .
  4. वैसे जमींदारी की जमीनें खुले तौर पर बेच दी जाती थीं पर उनकी जमींदारी का नियन्त्रण उन्हीं के हाथों में रहता था।

प्रश्न 3. 
ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू करने के पीछे क्या विचार था ?
उत्तर:
1770 के दशक तक औपनिवेशक शासन में बंगाल की ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजरने लगी थी क्योंकि अकालों की बार-बार पुनरावृत्ति हो रही थी और खेती की पैदावार कम होती जा रही थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी यह सोचते थे कि कृषि, व्यापार एवं राज्य के राजस्व संसाधन तभी विकसित किए जा सकेंगे जब कृषि में निवेश को प्रोत्साहन दिया जाएगा। ऐसा तभी होगा जब सम्पत्ति के अधिकार प्राप्त कर लिए जायेंगे तथा राजस्व माँग की दरों को स्थायी रूप दे दिया जाएगा। यदि राज्य द्वारा राजस्व माँग स्थायी रूप से निर्धारित कर दी जाएगी तो कम्पनी को राजस्व की नियमित रूप से राशि प्राप्ति हो सकेगी।

उद्यमी भी अपने पूँजी निवेश से एक निश्चित लाभ कमाने की उम्मीद रख सकेंगे क्योंकि राज्य अपने दावे में वृद्धि करके लाभ की राशि नहीं छीन सकेगा। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों का यह मत था कि इस प्रक्रिया से छोटे किसानों व धनी भू-स्वामियों का ऐसा वर्ग भी उत्पन्न होगा जिसके पास कृषि में सुधार हेतु पूँजी व उद्यम दोनों होंगे तथा ब्रिटिश शासन से प्रोत्साहन  प्राप्त कर यह वर्ग कम्पनी के प्रति वफादार बना रहेगा। अत: कम्पनी के अधिकारियों के मध्य एक लम्बे वाद-विवाद के पश्चात् बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों के साथ इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया गया।

प्रश्न 4. 
भूमि का इस्तमरारी बन्दोबस्त क्या था ? संक्षेप में बताइए।
अथवा 
स्थायी बन्दोबस्त पद्धति की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1773 ई. में सर्वप्रथम बंगाल में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा शुरू किया गया भूमि का इस्तमरारी बन्दोबस्त स्थायी भूमि व्यवस्था थी जिसके अन्तर्गत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जर्मादार को अदा करनी होती थी। इस व्यवस्था को कम्पनी के अधिकारियों के मध्य परस्पर लम्बे वाद-विवाद के पश्चात् बंगाल के राजाओं व ताल्लुकदारों के साथ लागू किया गया था। अब उन्हें जींदारों के रूप में वर्गीकृत किया गया था तथा उन्हें सदैव के लिए एक निर्धारित राजस्व अदा करना था। इस व्यवस्था के अनुसार जींदार गाँव में भू-स्वामी न होकर वह राज्य का मात्र राजस्व संग्राहक बन गया। जींदारों के अधीन अनेक, कभी-कभी तो 400 तक गाँव होते थे।

एक जर्मीदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलकर एक राजस्व संपदा का रूप ले लेते थे। कम्पनी समस्त संपदा पर कुल माँग निर्धारित करती थी जिसके पश्चात् जमींदार यह निर्धारित करता था कि भिन्न-भिन्न गाँवों से राजस्व की कितनी-कितनी माँग पूरी करनी होगी तथा इसी के अनुसार वह उन गाँवों से राजस्व एकत्रित करता था। जींदार से यह आशा की जाती थी कि वह कम्पनी को नियमित रूप से राजस्व राशि प्रदान करेगा। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसकी भू-सम्पदाएँ नीलाम कर दी जायेंगी।

प्रश्न 5. 
औपनिवेशिक बंगाल में जमींदार अपने क्षेत्र से राजस्व की वसूली किस प्रकार करते थे ?
उत्तर:
औपनिवेशिक बंगाल में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व वसूली हेतु जमींदारों को क्षेत्र दे रखे थे जिसे जमींदारी कहा जाता था। एक जमींदार की जींदारी में अनेक गाँव होते थे जिनकी संख्या 400 तक होती थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी एक जींदारी के समस्त गाँवों को मिलाकर उसे एक सम्पदा मानकर उस पर राजस्व की माँग लागू करती थी। उसके पश्चात् जमींदार विभिन्न गाँवों से वसूले जाने वाले राजस्व की दरें निर्धारित करता था। राजस्व वसूल करने के लिए जींदारों द्वारा एक अधिकारी की नियुक्ति की जाती थी जिसे 'अमला' कहा जाता था। यह अमला ही जींदार के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में प्रत्येक गाँव से राजस्व अर्थात् लगान वसूल करता था तत्पश्चात् जमींदार एकत्रित राशि को कम्पनी (सरकार) के आदेशानुसार उसके खजाने में जमा करवाता था। 

प्रश्न 6. 
कार्नवालिस की इस्तमरारी (स्थायी) बंदोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक एवं नकारात्मक परिणाम बताइए। 
उत्तर:
सकारात्मक परिणाम-कार्नवालिस की इस्तमरारी (स्थायी) बन्दोबस्त व्यवस्था के सकारात्मक परिणाम निम्नलिखित

  1. कम्पनी की आय निश्चित हो गयी तथा उसे बजट बनाने में आसानी हुई। 
  2. जमींदार को ही स्थायी रूप से भूमि का स्वामी मान लिया गया अतः उसने अपनी भूमि को उपजाऊ बनाने का प्रयास किया। 
  3. कम्पनी के कर्मचारियों की संख्या सीमित हो गयी तथा राजस्व वसूलने के लिए अधिक धन तथा बल की आवश्यकता नहीं रही। 
  4. इस्तमरारी (स्थायी) बन्दोबस्त का सबसे बड़ा लाभ बंगाल के जींदारों को हुआ। अब उन्हें सरकार को किसी प्रकार की भेंट नहीं देनी पड़ती थी। 
  5. कम्पनी को कम्पनी भक्त जमींदारों की प्राप्ति हो गयी।

नकारात्मक परिणाम-इस्तमरारी (स्थायी) बन्दोबस्त के नकारात्मक परिणाम निम्नलिखित थे- 

  1. आरम्भ में अनेक जमींदार किसानों से लगान नहीं वसूल सके, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जाँदारी विक गयी। 
  2. भूमि की माप तथा भू-राजस्व का निर्धारण सही ढंग से नहीं हो पाया था। 
  3. आशाओं के विपरीत जींदारों ने अपनी जमीन के सुधार पर कोई ध्यान नहीं दिया। 

प्रश्न 7. 
ईस्ट इंडिया कम्पनी के काल में जमींदारों की असफलता के क्या कारण थे? 
उत्तर:
ईस्ट इंडिया कम्पनी के काल में जींदारों की असफलता के निम्नलिखित कारण थे

  1. राजस्व की प्रारंभिक माँगें बहुत ऊँची थीं, ऐसा इसलिए किया गया कि आगे कृषि की कीमतों में वृद्धि होने पर राजस्व नहीं बढ़ाया जा सकता था। इस हानि को पूरा करने के लिए दरें ऊँची रखी गयीं। इसमें यह दलील दी गई कि जैसे ही कृषि का उत्पादन बढ़ेगा, वैसे ही धीरे-धीरे जींदारों का बोझ कम होता जाएगा।
  2. यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें नीची थीं जिससे रैयत के लिए जमींदार को उनकी देय राशियाँ चुकाना मुश्किल था। 
  3. राजस्व असमान था तथा फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का सही समय पर भुगतान करना जरूरी था।
  4. इस्तमरारी बन्दोबस्त ने प्रारम्भ में जमींदारों की शक्ति को रैयतों (किसानों) से राजस्व इकट्ठा करने और अपनी जमींदारी का प्रबन्धन करने तक ही सीमित कर दिया था।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 8. 
18वीं शताब्दी के दौरान बंगाल के जमींदारों की सत्ता को ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा किस प्रकार नियन्त्रित किया गया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
18वीं शताब्दी के दौरान ईस्ट इंडिया कम्पनी जमींदारों को पूर्णत: महत्व देने के साथ ही उन्हें नियन्त्रित और विनियमित करना चाहती थी। कम्पनी जींदारों की सत्ता को अपने वश में रखकर उनकी स्वायत्तता को भी सीमित करना चाहती थी। अत: कम्पनी ने जींदारों की सैन्य-टुकड़ियों को भंग कर दिया तथा सीमा शुल्क समाप्त कर उनकी कचहरियों को स्वयं के द्वारा नियुक्त कलेक्टर की देखरेख में रख दिया। कम्पनी ने जींदारों से स्थानीय न्याय तथा स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति को वापस ले लिया। समयानुसार कलेक्टर का कार्यालय सत्ता के एक विकल्पी केन्द्र के तौर पर उभरा तथा जर्मीदारों के अधिकार को पूर्ण रूप से सौमित व प्रतिबंधित कर दिया गया। 

प्रश्न 9. 
जमींदारों को गाँव में किसानों से राजस्व वसूलने में कौन-कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था?
अथवा 
जमींदारों के लिए राजस्व वसूली एक समस्या क्यों थी? 
उत्तर:
जींदारों को गाँवों में किसानों से राजस्व वसूलने में निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था

  1. कभी-कभी खराब फसल तथा उपज की नीची कीमत के कारण किसानों के लिए राजस्व का भुगतान करना कठिन हो जाता था। 
  2. किसान जान-बूझकर भी लगान जमा करने में देरी करते थे।
  3. धनवान रैयत और गाँव के मुखिया जोतदार एवं मंडल जींदार को परेशानी में देखकर बहुत खुश होते थे क्योंकि जींदार आसानी से उन पर अपनी ताकत का प्रयोग नहीं कर सकता था। जमींदार मुकदमा तो चला सकता था, परन्तु न्यायिक प्रक्रिया लम्बी होने से उसे उस मुकदमे से राजस्व वसूली में कोई लाभ नहीं मिल पाता था।
  4. किसान की आमदनी कम होने के कारण जींदार को लगान वसूली में कठिनाई आती थी। 

प्रश्न 10. 
पहाड़िया लोगों की आजीविका किस प्रकार की थी? .
अथवा 
पहाड़िया लोगों के जीवन की विशेषताएँ बताइए।
अथवा 
राजमहल की पहाड़ियों के पहाड़ी लोगों की जीविका के स्रोतों की परख कीजिए। 
उत्तर:
पहाड़िया लोगों की आजीविका/जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. पहाड़ी लोग झूम खेती किया करते थे। वे भूमि के एक टुकड़े को साफ करके उस पर सीमित समय के लिये कृषि कार्य करते थे। 
  2. अधिकांश पहाड़ी लोग अपने खाने के लिये दालें, ज्वार-बाजरा आदि उगाते थे। 
  3. पहाड़ी लोग जंगल में शिकार भी करते थे। 
  4. पहाड़ी लोग जंगलों से खाने के लिए महुआ इकट्ठा करते थे तथा शहर में बेच दिया करते थे। 
  5. पहाड़ी लोग बेचने के लिए रेशम के कोया, राल तथा काठ-कोयला बनाने के लिये लकड़ियाँ एकत्रित करते थे। 
  6. पेड़ों के नीचे जो छोटे-छोटे पौधे उग आते थे अथवा परती जमीन पर जो घास-फूस उग आती थी वह पहाड़ी लोगों के पशुओं के लिये चारागाह बन जाते थे। 
  7. पहाड़ी लोग खेती के लिये कुदाल तथा हल का प्रयोग करते थे। 
  8. पहाड़ियों को अपना मूलाधार बनाकर पहाड़ी लोग उन मैदानों पर आक्रमण करते थे जहाँ किसान स्थायी खेती करते थे। 

प्रश्न 11. 
"पहाड़िया लोगों का जीवन जंगल से जुड़ा हुआ था।" उपर्युक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा 
अठारहवीं शताब्दी के अन्त के दशकों में राजमहल की पहाड़ियों के पहाड़ी लोगों की आर्थिक और सामाजिक दशाओं का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
पहाड़िया लोगों का जीवन जंगल से जुड़ा हुआ था जो जंगल से खाने के लिए महुआ के फूल इकट्ठे करते थे, बेचने के लिए रेशम के कोया, राल और काठ-कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे तथा आम के पेड़ों की छौंव में आराम करते थे। वे पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे और यह भूमि उनकी पहचान और जीवन का आधार थी। वे बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे। उनके मुखिया लोग अपने समूह में एकता बनाए रखते थे। आपसी लड़ाई-झगड़े आपस में ही निपटा लेते थे तथा अन्य जातियों और मैदानी लोगों के साथ झगड़ा होने पर अपनी जनजाति का नेतृत्व करते थे।

प्रश्न 12. 
पहाडिया लोग मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण क्यों करते रहते थे? 
उत्तर:
पहाड़िया लोग मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण करते थे क्योंकि

  1. पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण अधिकांश रूप से अपने आपको अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे।
  2. इन हमलों के माध्यम से पहाड़िया लोग मैदानों में बसे हुए समुदायों पर अपनी शक्ति को दिखलाते थे। 
  3. पहाड़िया लोगों द्वारा ऐसे आक्रमण बाहरी लोगों के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिए भी किए जाते थे।
  4. पहाड़िया लोगों द्वारा किए जाने वाले आक्रमण मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से पथकर, खिराज आदि वसूलने के लिए भी किये जाते थे।

प्रश्न 13. 
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली को क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली-रैयतवाड़ी को लागू किया गया जिसको लागू करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. 1810 ई. के पश्चात् उपज की कीमतों में वृद्धि होने से बंगाल के जींदारों की आय में वृद्धि हुई, लेकिन कम्पनी की आय में वृद्धि नहीं हुई, क्योंकि इस्तमरारी बन्दोबस्त के अनुसार कम्पनी बढ़ी हुई आय में अपना दावा नहीं कर सकती थी।
  2. अपने वित्तीय साधनों में वृद्धि की इच्छा से ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भू-राजस्व को अधिकाधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचारविमर्श किया। इसलिए उन्नीसवीं शताब्दी में कम्पनी शासन में सम्मिलित किए गए प्रदेशों में नए राजस्व बंदोबस्त किए गए।
  3. रैयतवाड़ी बंदोबस्त को स्थायी बन्दोबस्त के कुप्रभावों से बचाने के लिए लागू किया गया। 

प्रश्न 14. 
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त किस प्रकार से इस्तमरारी बन्दोबस्त से भिन था? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 ई. में सर्वप्रथम बंगाल में लॉर्ड कार्नवालिस.द्वारा शुरू किया गया था। यह स्थायी भू-राजस्व व्यवस्था थी जिसके अन्तर्गत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो जींदार को अदा करनी होती थी। जींदार अपनी भूमि किसानों को बाँट देते थे और उनसे मनचाहा कर वसूल करते थे। इस व्यवस्था का सबसे अधिक लाभ बड़े जींदारों ने उठाया, परन्तु इससे छोटे किसानों की स्थिति खराब हो गयी, कम्पनी की आमदनी में भी वृद्धि नहीं हुई, इसके विपरीत रैयतवाड़ी बन्दोबस्त में सरकार उन किसानों से कर वसूल करती थी जो स्वयं कृषि करते थे। कम्पनी व कृषकों के मध्य से मध्यस्थों को हटा दिया गया। कम्पनी द्वारा की गयी यह व्यवस्था इस्तमरारी बन्दोबस्त की अपेक्षा अधिक अच्छी थी। इससे कृषकों के साथ-साथ सरकार की भी आय में वृद्धि हुई।

प्रश्न 15. 
अंग्रेजों ने भू-राजस्व को एकत्रित करने के लिए तीन व्यवस्थाएँ (स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी बन्दोबस्त, मालबाड़ी बन्दोबस्त) चलायी। आप इन तीनों में से किसे किसानों के लिए सबसे बेहतर मानेंगे ?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अधिक से अधिक राजस्व की वसूली करने के लिए इन तीनों व्यवस्थाओं को प्रारम्भ किया जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में लागू की गयीं। इन तीनों व्यवस्थाओं के हानिकारक परिणाम हुए, परन्तु इनमें से रैयतवाड़ी व्यवस्था अन्य दोनों व्यवस्थाओं से बेहतर थीं क्योंकि इसमें किसानों से सीधा सम्बन्ध बनाया गया। सरकार तथा किसानों के मध्य बिचौलिये (जमींदार) नहीं थे। इस व्यवस्था में भूमि का मालिक किसान को ही माना गया, परन्तु किसानों को निश्चित भू-राजस्व अंग्रेजों को अदा करना पड़ता था। स्थायी बन्दोबस्त में जींदारों को भूमि का मालिक बना दिया गया था जिससे जींदार किसानों का शोषण करते थे, जबकि महालबाड़ी व्यवस्था में पूरे महाल (गाँव) को राजस्व देने के लिए जिम्मेदार बनाया गया।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 16. 
आप यह कैसे कह सकते हैं कि अंग्रेजों ने भू-राजस्व व्यवस्थाएँ इसलिए लागू की क्योंकि वे अधिक से अधिक भू-राजस्व प्राप्त करना चाहते थे? 
उत्तर:
पहाड़िया लोगों का जीवन जंगल से जुड़ा हुआ था जो जंगल से खाने के लिए महुआ के फूल इकट्ठे करते थे, बेचने के लिए रेशम के कोया, राल और काठ-कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे तथा आम के पेड़ों की छाँव में आराम करते थे। वे पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे और यह भूमि उनकी पहचान और जीवन का आधार थी। वे बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे। उनके मुखिया लोग अपने समूह में एकता बनाए रखते थे। आपसी लड़ाई-झगड़े आपस में ही निपटा लेते थे तथा अन्य जातियों और मैदानी लोगों के साथ झगड़ा होने पर अपनी जनजाति का नेतृत्व करते थे।

प्रश्न 12. 
पहाड़िया लोग मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण क्यों करते रहते थे? 
उत्तर:
पहाड़िया लोग मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण करते थे क्योंकि

  1. पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण अधिकांश रूप से अपने आपको अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे।
  2. इन हमलों के माध्यम से पहाड़िया लोग मैदानों में बसे हुए समुदायों पर अपनी शक्ति को दिखलाते थे। 
  3. पहाड़िया लोगों द्वारा ऐसे आक्रमण बाहरी लोगों के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिए भी किए जाते थे।
  4. पहाड़िया लोगों द्वारा किए जाने वाले आक्रमण मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से पथकर, खिराज आदि वसूलने के लिए भी किये जाते थे।

प्रश्न 13.
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली को क्यों लागू किया गया? 
उत्तर:
बम्बई दक्कन में राजस्व की नई प्रणाली-रैयतवाड़ी को लागू किया गया जिसको लागू करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. 1810 ई. के पश्चात् उपज की कीमतों में वृद्धि होने से बंगाल के जींदारों की आय में वृद्धि हुई, लेकिन कम्पनी की आय में वृद्धि नहीं हुई, क्योंकि इस्तमरारी बन्दोबस्त के अनुसार कम्पनी बढ़ी हुई आय में अपना दावा नहीं कर सकती थी।
  2. अपने वित्तीय साधनों में वृद्धि की इच्छा से ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भू-राजस्व को अधिकाधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचारविमर्श किया। इसलिए उन्नीसवीं शताब्दी में कम्पनी शासन में सम्मिलित किए गए प्रदेशों में नए राजस्व बंदोबस्त किए गए।
  3. रैयतवाड़ी बंदोबस्त को स्थायी बन्दोबस्त के कुप्रभावों से बचाने के लिए लागू किया गया। 

प्रश्न 14. 
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त किस प्रकार से इस्तमरारी बन्दोबस्त से भिन था? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 ई. में सर्वप्रथम बंगाल में लॉर्ड कार्नवालिस.द्वारा शुरू किया गया था। यह स्थायी भू-राजस्व व्यवस्था थी जिसके अन्तर्गत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो जींदार को अदा करनी होती थी। जर्मांदार अपनी भूमि किसानों को बाँट देते थे और उनसे मनचाहा कर वसूल करते थे। इस व्यवस्था का सबसे अधिक लाभ बड़े जींदारों ने उठाया, परन्तु इससे छोटे किसानों की स्थिति खराब हो गयी, कम्पनी की आमदनी में भी वृद्धि नहीं हुई, इसके विपरीत रैयतवाड़ी बन्दोबस्त में सरकार उन किसानों से कर वसूल करती थी जो स्वयं कृषि करते थे। कम्पनी व कृषकों के मध्य से मध्यस्थों को हटा दिया गया। कम्पनी द्वारा की गयी यह व्यवस्था इस्तमरारी बन्दोबस्त की अपेक्षा अधिक अच्छी थी। इससे कृषकों के साथ-साथ सरकार की भी आय में वृद्धि हुई।

प्रश्न 15. 
अंग्रेजों ने भू-राजस्व को एकत्रित करने के लिए तीन व्यवस्थाएँ (स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी बन्दोबस्त, महालबाड़ी बन्दोबस्त) चलायी। आप इन तीनों में से किसे किसानों के लिए सबसे बेहतर मानेंगे?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अधिक से अधिक राजस्व की वसूली करने के लिए इन तीनों व्यवस्थाओं को प्रारम्भ किया जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में लागू की गयीं। इन तीनों व्यवस्थाओं के हानिकारक परिणाम हुए, परन्तु इनमें से रैयतवाड़ी व्यवस्था अन्य दोनों व्यवस्थाओं से बेहतर थी क्योंकि इसमें किसानों से सीधा सम्बन्ध बनाया गया। सरकार तथा किसानों के मध्य बिचौलिये (जींदार) नहीं थे। इस व्यवस्था में भूमि का मालिक किसान को ही माना गया, परन्तु किसानों को निश्चित भू-राजस्व अंग्रेजों को अदा करना पड़ता था। स्थायी बन्दोबस्त में जींदारों को भूमि का मालिक बना दिया गया था जिससे जर्मादार किसानों का शोषण करते थे, जबकि महालबाड़ी व्यवस्था में पूरे महाल (गाँव) को राजस्व देने के लिए जिम्मेदार बनाया गया।

प्रश्न 16. 
आप यह कैसे कह सकते हैं कि अंग्रेजों ने भू-राजस्व व्यवस्थाएँ इसलिए लागू की क्योंकि वे अधिक से अधिक भू-राजस्व प्राप्त करना चाहते थे?
उत्तर:
ऐसा हम इस कारण से कह सकते हैं कि अंग्रेजों को भारत में ब्रिटिश शासन को मजबूत करने के लिए तथा युद्धों में विजय प्राप्त करने के लिए धन की आवश्यकता थी इसलिए अंग्रेजों ने भू-राजस्व व्यवस्थाएँ लागू की। इसके अतिरिक्त कम्पनी के कर्मचारी सभी तरह से धन को एकत्रित करके इंग्लैण्ड भेज देते थे। इसलिए अंग्रेजों ने अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करने के लिए भू-राजस्व व्यवस्था लागू की।

प्रश्न 17. 
दक्कन दंगा आयोग की स्थापना क्यों की गयी? आयोग की रिपोर्ट क्या थी?
उत्तर:
जब किसान विद्रोह दक्कन में फैला तो प्रारम्भ में बम्बई की कम्पनी सरकार ने विद्रोह को दबाने में कोई रुचि नहीं दिखाई लेकिन जब विद्रोह तीव्र गति से फैला तो भारत सरकार ने बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों की छानबीन हेतु एक आयोग की नियुक्ति करे। अत: बम्बई सरकार ने जिस आयोग की नियुक्ति की उसे दक्कन दंगा आयोग के नाम से जाना गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए राजस्व की माँग को दोषी न मानकर समस्त दोष साहूकारों एवं ऋणदाताओं का माना जिन्होंने मूलधन पर गलत ब्याज लगा रखा था। 

प्रश्न 18. 
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट की आलोचनात्मक समीक्षा निम्न प्रकार है

  1. आयोग को विशेष रूप से जाँच करने के लिए कहा गया था कि क्या विद्रोह का कारण सरकार की राजस्व माँग थी। 
  2. आयोग के अनुसार किसानों के गुस्से का कारण सरकारी माँग नहीं थी। 
  3. औपनिवेशिक रिकॉर्ड में बार-बार साहूकारों को दोषी ठहराया गया।
  4. स्पष्टत: औपनिवेशिक सरकार यह मानने को तैयार नहीं थी कि सरकारी कार्यवाही के कारण जनता में असंतोष उत्पन्न हुआ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय को विस्तार से समझाइए ।
अथवा 
"बंगाल के कई ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जोतदार शक्तिशाली हुए।" इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी काल में बंगाल में जोतदारों के उदय को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

  1. 18वीं शताब्दी में बंगाल में उदित होने वाले धनी किसानों को जोतदार कहा गया जिन्होंने गाँवों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। कई स्थानों पर इन्हें हवलदार, गाँटीदार अथवा मंडल भी कहा जाता था।
  2. उन्नीसर्वां शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक आते-आते जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े प्राप्त कर लिये थे जो एक हजार एकड़ में फैले हुए थे।
  3. जोतदारों का गाँवों के स्थानीय व्यापार एवं साहूकारों के कारोबार पर भी नियन्त्रण था। वे अपने क्षेत्र के निर्धन किसानों पर भी अपनी शक्ति का अधिक प्रयोग करते थे।
  4. जोतदारों की भूमि का एक बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था जो स्वयं अपना हल लाते थे, खेतों में मेहनत करते थे एवं फसल उत्पन्न होने के पश्चात् उपज का आधा भाग जोतदारों को प्रदान करते थे।
  5. गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति से अधिक प्रभावशाली थी। जींदार तो शहरों में रहते थे, जबकि जोतदार गाँवों में रहते थे जिस कारण उनका गाँव के अधिकांश निर्धन लोगों पर सीधा नियन्त्रण रहता था।
  6. जोतदारों का जींदारों से संघर्ष चलता रहता था जिसके निम्न कारण थे
    • जब जींदार गाँव की लगान बढ़ाने का प्रयास करते थे तो जोतदार उसका विरोध करते थे।
    • जोतदार जर्मीदारों के अधिकारियों को अपना कर्तव्य-पालन करने से रोकते थे। 
    • जो लोग जोतदारों पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे। 
    • जोतदार जींदारों को परेशान करने की नीयत से किसानों द्वारा जमींदार को दिए जाने वाले राजस्व के भुगतान में जानबूझकर देरी करने के लिए उकसाते थे। 
    • जब जींदारों की भू-सम्पदाएँ नीलाम होती थीं तो जोतदार उनकी जमीनों को खरीद लेते थे जो जींदारों को अच्छा नहीं लगता था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि बंगाल में जोतदार शक्तिशाली बनकर उभरे। उनके उदय से जींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 2. 
ईस्ट इंडिया कम्पनी की भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों द्वारा किस प्रकार प्रतिरोध किया गया?
अथवा 
ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों का जमींदारों ने कौन-कौन सी नई रणनीतियाँ बनाकर प्रतिरोध किया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों की स्थिति उभर रही थी लेकिन जर्मीदारों की सत्ता पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई थी। राजस्व की अत्यधिक माँग एवं अपनी भू-सम्पदा को ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा नीलाम करने की समस्या से निपटने के लिए कुछ नयी रणनीति बनाकर जमींदारों ने ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रतिरोध किया। नई रणनीतियाँ निम्नलिखित र्थी

(i) जमींदारों द्वारा अपनी भू-सम्पदा का स्त्रियों को हस्तान्तरण: जींदार अपनी जमींदारी को नीलामी से बचाने के लिए अपनी भू-सम्पदा के कुछ भाग को अपने परिवार की स्त्रियों के नाम हस्तान्तरित कर देते थे क्योंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी महिलाओं के हिस्से की नीलामी नहीं करती थी। उदाहरण के लिए; बद्रवान के राजा (जींदार) ने अपनी जींदारियों का एक हिस्सा अपनी माता को दे दिया क्योंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियमानुसार स्त्रियों की सम्पत्ति को नहीं छीना जाता था।

(ii) नकली नीलामी: जींदारों ने अपने एजेंटों को नीलामी के दौरान खड़ा करके नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। वे जानबूझकर ईस्ट इंडिया कम्पनी या अंग्रेज अधिकारियों को परेशान करने के लिए राजस्व माँग का भुगतान नहीं करते थे
और रकम जानबूझकर रोक लेते थे जिससे भुगतान न की गई बकाया राशि बढ़ती जाती थी। जब भू-सम्पदा का कुछ हिस्सा नीलाम किया जाता था तो जमींदार के व्यक्ति ही अन्य खरीददारों के मुकाबले ऊँची-ऊँची बोलियाँ लगाकर सम्पत्ति को खरीद लेते थे। आगे चलकर उन्होंने खरीद की राशि को अदा करने से इंकार कर नीलाम की गई भू-सम्पदा के सौदे को अनिश्चित स्थिति में लटका दिया। एक ही भू-सम्पदा पर ऐसी प्रक्रिया वे कई बार कराते थे जिसके फलस्वरूप कम्पनी के अधिकारी परेशान होकर जींदार को ही नीची कीमत पर भू-सम्पदा नीलाम कर देते थे। इस प्रकार के सौदे बड़े पैमाने पर हुए।

(iii) अन्य तरीके: जमींदार लोग भू-सम्पदा को परिवारजनों के नाम स्थानान्तरित करने या फर्जी बिक्री दिखाकर अपनी भू-सम्पदा को छिनने से बचाने के साथ-साथ कुछ अन्य तरीके भी अपनाते थे। यदि ईस्ट इंडिया कम्पनी के किसी अधिकारी की
की भ-सम्पदा को कोई बाहर का व्यक्ति खरीद लेता था तो उसे कब्जा प्राप्त नहीं हो पाता था। कभी-कभी पुराने जर्मीदार के लठियाल नये खरीददार को धमका कर अथवा मारपीट कर भगा देते थे। कभी-कभी पुराने किसान नये जींदार को लोगों की जमीन में घुसने नहीं देते थे।

परिणाम-19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कृषि उत्पादों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गयी। इसलिए जो जर्मीदार 1790 के दशक की परेशानियों को झेलने में सफल हो गये, उन्होंने अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना लिया। राजस्व के भुगतान सम्बन्धी नियमों को भी कुछ लचीला बना दिया गया जिसके फलस्वरूप गाँवों पर जमींदार की पकड़ और मजबूत हो गयी लेकिन आगे चलकर 1930 के दशक की घोर मंदी की हालत में अन्तत: जींदारों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा और ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों ने अपनी स्थिति और अधिक मजबूत कर ली। . 

प्रश्न 3.
ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गयी पाँचवीं रिपोर्ट क्या थी ? विस्तार से बताइए।
अथवा 
भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन एवं क्रियाकलापों के विषय में तैयार की गई पाँचवीं रिपोर्ट का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
पाँचवीं रिपोर्ट का क्या उद्देश्य था? इसकी आलोचना किस आधार पर की गई थी?
अथवा
अठारहवीं शताब्दी के अंतिम दशकों की 'पाँचवी रिपोर्ट' की आलोचनात्मक परख कीजिए। 
उत्तर:
पाँचवीं रिपोर्ट-पाँची रिपोर्ट 1813 ई. में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गयी थी। यह उन रिपोर्टों में से पाँचीं थी जो भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन एवं क्रियाकलापों के बारे में तैयार की गयी थी। इस रिपोर्ट में 1002 पृष्ठ थे तथा इसके परिशिष्ट के रूप में 200 से अधिक पृष्ठ थे। इस रिपोर्ट में जमींदारों एवं रैयतों की अर्जियाँ, भिन्न-भिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व सम्बन्धी आँकड़े एवं अधिकारियों द्वारा बंगाल एवं मद्रास के राजस्व एवं न्यायिक प्रशासन पर लिखित टिप्पणियाँ सम्मिलित थीं।
पाँचवीं रिपोर्ट के उद्देश्य: पाँचवीं रिपोर्ट के निम्नलिखित उद्देश्य थे
(i) ईस्ट इंडिया कम्पनी के एकाधिकार का विरोध-जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1760 के दशक के मध्य में बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित की तभी से इंग्लैण्ड में उसके क्रियाकलापों पर बारीकी से नजर रखी जाने लगी। ब्रिटेन में अनेक ऐसे व्यापारिक समूह थे जो भारत व चीन के साथ व्यापार पर ईस्ट इंडिया कम्पनी के एकाधिकार के विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि उस शाही आदेश को निरस्त कर दिया जाए जिसके अनुसार कम्पनी को यह अधिकार प्रदान किया गया था। ब्रिटेन में भारत के साथ व्यापार करने के इच्छुक निजी व्यापारियों की संख्या बढ़ती जा रही थी। कई राजनीतिक समूहों का तो यह भी कहना था कि बंगाल की जीत का लाभ केवल ईस्ट इंडिया कम्पनी को ही प्राप्त हो रहा है, सम्पूर्ण ब्रिटिश राष्ट्र को नहीं।

(ii) कम्पनी के कुशासन एवं अव्यवस्थित प्रशासन पर बहस-ईस्ट इंडिया कम्पनी के कुशासन एवं अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचनाओं पर ब्रिटेन की संसद में वाद-विवाद होने लगा। कम्पनी अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण एवं लोभ-लालच की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार-पत्रों में खूब उछाला गया।

(iii) ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम-ब्रिटिश संसद ने भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को नियन्त्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में अनेक अधिनियम पारित किए। कम्पनी को मजबूर किया गया कि वह भारत के प्रशासन के सम्बन्ध में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद को भेजे।

(iv) कई समितियों की नियुक्ति-ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन की जाँच के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा कई समितियों की नियुक्ति की गयी। ऐसी समितियों जाँच करने के पश्चात् अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद को भेजती थीं। पाँचवीं रिपोर्ट भी ऐसी ही एक प्रवर समिति द्वारा तैयार की गयी थी। यह रिपोर्ट भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन के स्वरूप पर ब्रिटिश संसद में गम्भीर वाद-विवाद का आधार बनी।

आलोचना का आधार: बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों के सम्बन्ध में पाँचवीं रिपोर्ट में दिए गए साक्ष्य बहुमूल्य थे, परन्तु ऐसी राजकीय रिपोर्टों का सावधानीपूर्वक अध्ययन एवं समझना अति आवश्यक है। हमें यह जानने की आवश्यकता है कि यह रिपोर्ट किसने और किस उद्देश्य से लिखी। आधुनिक शोधों से यह जानकारी मिलती है कि पाँचीं रिपोर्ट में दिए गए तर्कों और साक्ष्यों को बिना किसी आलोचना के स्वीकार नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4. 
संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में कैसे पहुँचे? इसमें ब्रिटिश अधिकारियों की क्या भूमिका रही? विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा 
उन परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए, जिनके अन्तर्गत अंग्रेज अधिकारियों ने उनीसवीं शताब्दी में संथालों को राजमहल की पहाड़ियों की परिधि में बसने के लिए आमन्त्रित किया था।
अथवा
हल और कुदाल के बीच की लड़ाई बहुत लम्बी चली।" इस कथन को 18वीं सदी के दौरान राजमहल की पहाड़ियों में रहने वाले संथाल और पहाड़ी लोगों के सन्दर्भ में सिद्ध कीजिए।
अथवा 
दामिन-ए-कोह किस प्रकार अस्तित्व में आया?
उत्तर:
संथाल-संथाल एक जनजाति है। संथाल 1780 के दशक के आसपास बंगाल में आने लगे थे, जींदार लोग खेती के लिए नयी भूमि तैयार करने एवं कृषि का विस्तार करने के लिए उन्हें भाड़े पर रखते थे। वे एक प्रकार से खानाबदोश जीवन जी रहे थे।

संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में पहुँचना व ब्रिटिश अधिकारियों की भूमिका:
जब ब्रिटिश अधिकारी राजमहल की पहाड़ियों में रहने वाले पहाड़ी लोगों को स्थायी कृषि करने के लिए सहमत नहीं कर पाये तो उनका ध्यान संथाल जनजाति के लोगों पर गया। पहाड़िया लोग जंगल काटने के लिए हल का प्रयोग करने को तैयार नहीं थे और अब भी उपद्रवी व्यवहार करते थे। इसके विपरीत संथाल आदर्श बाशिंदे दिखाई देते थे क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई संकोच नहीं था। वे भूमि को पूरी क्षमता के साथ जोतते थे। अतः ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों में स्थायी खेती करने के लिए सहमत कर लिया और उन्हें वहाँ बसाना प्रारम्भ कर दिया।

1832 ई. के आसपास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों ने एक बड़े भू-भाग को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया जो दामिन-ए-कोह कहलाया। इसे संथालों की भूमि घोषित किया गया, इसलिए उन्हें इसी प्रदेश के भीतर रहना था, हल चलाकर खेती करनी थी एवं स्थायी किसान बनना था। संथालों को दी जाने वाली भूमि के अनुदान-पत्र में यह शर्त थी कि उन्हें दी गयी भूमि के कम से कम दसवें भाग को साफ करके पहले 10 वर्षों के भीतर ही जोतना होगा। इस सम्पूर्ण क्षेत्र का सर्वेक्षण करके उसका मानचित्र तैयार किया गया। इसमें चारों ओर खम्बे गाढ़कर इसकी परिसीमा निर्धारित की गई। इस प्रकार इसे मैदानी क्षेत्र के स्थायी कृषकों की भूमि एवं पहाड़िया लोगों की भूमि से अलग कर दिया गया।

दामिन-ए-कोह के सीमांकन के पश्चात् संथालों की बस्तियों का विस्तार बड़ी तीव्र गति से हुआ। 1838 ई. में संथालों के गाँवों की संख्या 40 थी जो 1851 ई. में बढ़कर 1473 तक पहुँच गयी। इसी अवधि में संथालों की जनसंख्या 3000 से बढ़कर 82000 से भी अधिक हो गयी। खेती का विस्तार होने से ईस्ट इंडिया कम्पनी के राजस्व में भी वृद्धि होने लगी। संथाल लोग व्यापारिक खेती करने के साथ-साथ व्यापारियों एवं साहूकारों से लेन-देन भी करने लगे।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 5. 
फ्रांसिस बुकानन कौन था? इसके दिए गए विवरण का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन का परिचय-फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 ई. से 1815 ई. तक कार्यरत रहा। कुछ समय के लिए वह लॉर्ड वेलेजली का शल्य चिकित्सक भी रहा। कलकत्ता में रहने के दौरान उसने एक चिड़ियाघर की स्थापना की जो कलकत्ता अलीपुर चिड़ियाघर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बंगाल सरकार के अनुरोध पर उसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उसका विचार था कि राजस्व की वृद्धि हेतु जंगलों को कृषि भूमि में बदलना ही होगा। 1815 ई. में बुकानन बीमार हो गये और इंग्लैण्ड वापस चले गये। 

फ्रांसिस बुकानन द्वारा दिया गया विवरण: बुकानन की यात्राएँ व सर्वेक्षण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए विकास एवं प्रगति का आधार थे। इनके विवरण को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है

1. बुकानन ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अनुरोध पर प्रारंभिक अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले भारतीय भू-खण्ड का विस्तृत सर्वेक्षण किया। बुकानन का छोड़ा हुआ विवरण संथालों के बारे में, राजमहल के पहाड़िया लोगों के बारे में और अनेक अन्य बातों के विषय में हमें विस्तृत जानकारी देता है लेकिन उसका छोड़ा विवरण न तो पूर्णतया व्यर्थ है और न ही शत-प्रतिशत विश्वसनीय, क्योंकि वह कम्पनी का कर्मचारी था। उसकी यात्राएँ केवल भू-दृश्य के प्यार और अज्ञात की खोज से ही प्रेरित नहीं थी।

2. बुकानन ने राजमहल के पहाड़ी क्षेत्रों और उन इलाकों में जहाँ संथाल लोग रहते थे, नक्शानवीसों, सर्वेक्षकों, पालकी उठाने वाले कुलियों आदि बड़े दल के साथ सभी जगह यात्रा की थी। उनकी यात्रा का खर्च ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी उठाया करती थी क्योंकि सर्वेक्षण के माध्यम से कम्पनी को सूचनाएँ चाहिये थीं जो कि बुकानन उनकी आशा के अनुरूप इकट्ठी करता था।

3. बुकानन को कम्पनी के अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से यह निर्देश दे रखे थे कि उसे क्या-क्या देखना है। सर्वेक्षण के अधीन क्षेत्रों में क्या-क्या खोजना है और क्या लिखना है। जब कभी वह अपने काफिले के साथ किसी गाँव में जाता था तो ग्रामीण लोग उसे सरकार के एक एजेंट के रूप में देखा करते थे।

4. बुकानन ने विशाल वनों से जुड़े परिदृश्यों और वहाँ से सरकार को सम्भवतः राजस्व देने वाले प्रांवों का सर्वेक्षण किया, खोज यात्राएँ आयोजित की और जानकारी इकट्ठी करने के लिए कम्पनी के माध्यम से भू-वैज्ञानिकों, भूगोलवेत्ताओं, वनस्पति वैज्ञानिकों, चिकित्सकों का सहयोग व सेवाएँ प्राप्त की।

5. बकानन एक अदभुत योग्यता और अन्वेषण शक्ति रखने वाला असाधारण व्यक्ति था. वह जहाँ भी गया वहीं उसने पत्थरों व चट्टानों और वहाँ की भूमि के विभिन्न स्तरों तथा परतों को ध्यानपूर्वक देखा। उसने वाणिज्यिक दृष्टिकोण से मूल्यवान पत्थरों और खनिजों को खोजने का प्रयास किया। उसने लौह अयस्क, अभ्रक, ग्रेनाइट और साल्टपीटर से सम्बन्धित समस्त स्थानों का पता लगाया।

6. बुकानन ने सावधानीपूर्वक नमक बनाने और कच्चा लोहा निकालने की स्थानीय पद्धतियों का निरीक्षण भी किया।

7. जब बुकानन किसी भू-दृश्य के बारे में लिखता था तो वह केवल यह नहीं लिखता था कि भ-दृश्य कैसा था. बल्कि वह यह भी लिखता था कि उसे किस प्रकार अधिक उत्पादक बनाया जा सकता है अथवा वहाँ कौन-कौन सी फसलें बोयी जा सकती हैं अथवा कौन-कौन से पेड़ काटे जा सकते हैं अथवा उगाये जा सकते हैं। उसकी सूक्ष्म दृष्टि एवं प्राथमिकताएँ स्थानीय निवासियों से भिन्न होती थीं।

8. प्रगति के सम्बन्ध में बुकानन का आकलन आधुनिक पश्चात्य विचारधारा द्वारा निर्धारित होता था। वह निश्चित रूप से वनवासियों की जीवन शैली का आलोचक था। वह यह भी महसूस करता था कि वनों को कृषि भूमि में बदलना ही होगा। 

प्रश्न 6. 
दक्कन विद्रोह के कारण, स्वरूप एवं परिणामों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
किसानों द्वारा दक्कन में विद्रोह करने के क्या कारण थे? उस विद्रोह का क्या परिणाम निकला? विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा 
दक्कन की रैयत ने ऋणदाताओं, व्यापारियों एवं साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दक्कन विद्रोह: 19वीं शताब्दी में भारत के विभिन्न प्रान्तों के किसानों ने साहूकारों एवं अनाज के व्यापारियों के विरुद्ध अनेक विद्रोह किए। ऐसा ही एक विद्रोह सन् 1875 ई. में रैयत (किसानों) द्वारा दक्कन में किया गया जिसे दक्कन विद्रोह के नाम से जाना जाता है। यह विद्रोह पूना एवं अहमदनगर व उसके आसपास के क्षेत्रों में फैला था।

दक्कन विद्रोह के कारण: किसानों द्वारा दक्कन में विद्रोह करने के प्रमख कारण निम्नलिखित थे
(i) ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा राजस्व में वृद्धि करना-1820 के दशक में दक्कन में रैयतवाड़ी नामक नयी राजस्व व्यवस्था लागू की गई जिसमें राजस्व की माँग ऊँची रखी गयी। इस नयी राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत राजस्व की राशि सीधे ही रैयत के साथ तय की जाती थी। कम्पनी द्वारा राजस्व की राशि को बढ़ा दिया गया था जिसे चुकाने की स्थिति में रैयत नहीं थे।

(ii) जबरन राजस्व वसूली-नये राजस्व बन्दोबस्त के तहत बढ़े हुए राजस्व को प्रभारी जिला कलेक्टर जबरन वसूलते थे। यदि किसान समय पर राजस्व जमा नहीं कर पाते थे तो उनकी फसल जब्त कर ली जाती थी एवं सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना ठोक दिया जाता था।

(iii) कृषि उत्पादों की कीमतों में तीव्र गति से गिरावट आना-1832 ई. के पश्चात् कृषि उत्पादों की कीमतों में तीव्र गति से गिरावट आयी जिसके फलस्वरूप किसानों की आमदनी में और भी गिरावट आयी।

(iv) अकाल का पड़ना-1832-34 ई. के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में अकाल की स्थिति ने किसानों को बर्बाद कर दिया। दक्कन का एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में चला गया तथा जनसंख्या का आधा भाग भी काल का ग्रास बन गया। जो लोग शेष बचे थे उनके पास पेट भरने के लिए भी खाद्यान्न नहीं था, लेकिन राजस्व की बकाया राशियाँ आसमान छूने लगी थीं।

(v) ऋणदाताओं की मनमानी व्याज दर-कम्पनी का राजस्व चुकाने एवं दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए किसानों को ऋणदाताओं से ऋण लेना पड़ा जिसके लिए उन्होंने मनमाना व्याज वसूल किया। कोई किसान यदि ऋण के चक्कर में फंस गया तो उसका निकलना मुश्किल हो जाता था। कर्ज बढ़ता गया और उधार की राशि बकाया रहती गई तथा ऋणदाताओं पर किसानों की निर्भरता बढ़ती गई। किसान कर्ज के बोझ के नीचे दबते चले गये।

(vi) ऋण के स्रोत का सूख जाना-1865 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृहयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् वहाँ कपास का उत्पादन पुनः प्रारम्भ हो गया, जिससे ब्रिटेन में भारतीय कपास की मांग में निरन्तर गिरावट आती चली गयी। कपास की कीमतों में भी निरन्तर गिरावट आने लगी जिससे व्यापारी तथा साहूकारों ने किसानों से अपने पुराने ऋण वापस माँगना प्रारम्भ कर दिया। वहीं दूसरी ओर सरकार ने राजस्व की माँग में वृद्धि कर दी जिसके फलस्वरूप रैयत पर दोतरफा दबाव पड़ गया। किसानों ने ऋणदाताओं की शरण ली लेकिन उन्हें ऋणदाताओं से ऋण प्राप्त न हो सका।

(vii) अन्याय का अनुभव–ऋणदाताओं द्वारा रैयत को ऋण देने से इंकार किये जाने से रैयत समुदाय में क्रोध उत्पन्न हो गया। वे इस बात से नाराज थे कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा है। ऋणदाता लोग देहात के परम्परागत मानकों अर्थात् रीति-रिवाजों का उल्लंघन कर रहे थे। वे ऋणदाताओं को कुटिल एवं धोखेबाज समझने लगे थे।

विद्रोह का स्वरूप: दक्कन का यह आन्दोलन 12 मई, 1875 ई. को पूना (पुणे) जिले के सूपा नामक गाँव से प्रारम्भ हुआ था। सूपा विपणन केन्द्र था जहाँ अनेक व्यापारी एवं साहूकार रहते थे।
12 मई, 1875 ई. को सूपा के आसपास के गांवों के किसानों ने एकत्र होकर साहूकारों व व्यापारियों से उनके बहीखातों एवं ऋणबन्ध-पत्रों की मांग करते हुए हमला कर दिया। बहीखाते जला दिए गए, अनाज लूट लिया गया एवं साहूकारों व व्यापारियों के घरों में आग लगा दी गयी।

पूना से यह विद्रोह अहमदनगर में फैल गया जो धीरे-धीरे 6500 वर्ग किमी क्षेत्र में फैल गया जिससे तीस से अधिक गाँव प्रभावित हुए। विद्रोह का स्वरूप सभी जगह एक जैसा हो गया था। इन हमलों से घबराकर साहूकार और व्यापारी अपने-अपने घरों व सम्पत्ति को छोड़कर भाग गये।

विद्रोह का परिणाम

(i) विद्रोह का दमन:जब सुपा से प्रारम्भ यह विद्रोह तेजी से फैलने लगा तो अधिकारियों को यह 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम जैसा महसूस हुआ। ब्रिटिश अधिकारियों ने तीव्रता से कार्यवाही करते हुए विद्रोही किसानों के गाँवों में पुलिस थाने स्थापित कर दिए तथा शीघ्र ही सेना बुला ली गयी। विद्रोहियों को गिरफ्तार करके उन्हें दण्डित किया गया लेकिन इस विद्रोह को दबाने में कई महीने लग गये।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

(ii) दक्कन दंगा आयोग की स्थापना-दंगा फैलने पर प्रारम्भ में बम्बई की सरकार ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया, लेकिन भारत सरकार के दबाव पड़ने पर उसने दंगों की छानबीन हेतु एक जाँच आयोग की स्थापना की जिसने विस्तृत जाँच करके 1878 ई. में अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की। 

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि विद्रोह का कारण साहूकारों एवं ऋणदाताओं के प्रति किसानों का क्रोध था जो उन पर अन्याय कर रहे थे। सरकारी राजस्व की माँग इसके लिए जिम्मेदार नहीं थी लेकिन यह रिपोर्ट एकपक्षीय थी क्योंकि औपनिवेशिक सरकार अपनी गलती नहीं मानना चाहती थी, जबकि राजस्व की बढ़ती हुई माँग के कारण ही किसानों को साहूकारों से ऋण उनकी शर्तों पर लेना पड़ा जो इस विद्रोह का प्रमुख कारण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 7. 
महाराष्ट्र के कपास निर्यात में गिरावट के पश्चात् ऋणदाता एवं रैयत के मध्य सम्बन्धों में तनाव के क्या कारण थे ?
अथवा 
रैयत ऋणदाताओं के प्रति किन-किन कारणों से नाराज थे? विस्तारपूर्वक बताइए।
अथवा 
रैयत ऋणदाताओं को कुटिल एवं धोखेबाज क्यों समझ रहे थे? विस्तार से बताइए।
अथवा 
'परिसीमन कानून' क्या था? इसे 19वीं शताब्दी का रैयतों के खिलाफ अत्याचार का प्रतीक क्यों माना गया था? कोई तीन कारण लिखिए। 
अथवा
1859 ई. में अंग्रेजों द्वारा पारित परिसीमन कानून' के प्रभाव की जाँच कीजिए।
अथवा 
इन परिस्थितियों की परख कीजिए, जिन्होंने 1859 ई. में अंग्रेजों को परिसीमन कानून' बनाया। 
उत्तर:
ऋणदाताओं एवं रैयत के मध्य सम्बन्धों में तनाव के कारण .
(i) अन्याय का अनुभव: महाराष्ट्र से कपास निर्यात में गिरावट आने के पश्चात् ऋणदाताओं ने रैयत (किसानों) को ऋण देने से इंकार कर दिया जिससे किसान क्रोधित हो गये। उन्हें इस बात का दुख नहीं था कि वे कर्ज में डूबते जा रहे हैं बल्कि वे इस बात से दुखी थे कि ऋणदाता इतना संवेदनहीन कैसे हो गया है कि उनकी दशा पर उसे दया भी नहीं आ रही है। ऋणदाता देहात के परम्परागत मानकों अर्थात् रीति-रिवाजों का उल्लंघन कर रहे थे।

(ii) ऋणदाताओं द्वारा खातों में धोखाधड़ी करना: ऋणदाताओं द्वारा किसानों के साथ धोखाधड़ी की जाने लगी। किसान ऋणदाता की कुटिलता एवं धोखेबाजी को समझने लगे थे। उनकी शिकायत थी कि ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करते हैं एवं कानून की आँखों में धूल झोंकते हैं। ऋणदाताओं द्वारा किसानों से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा लिये जाते थे अथवा अंगूठा लगवा लिया जाता था। किसानों को यह भी पता नहीं चल पाता था कि वे किस पर हस्ताक्षर कर रहे हैं अथवा अंगूठा लगा रहे हैं। उन्हें बन्ध पत्र में ऋणदाता द्वारा भरी जाने वाली किसी भी बात का पता नहीं चलता था। किसानों को त्राण की आवश्यकता के कारण ऋणदाताओं की मनमानी का शिकार होना पड़ता।

(iii) परिसीमन कानून एवं ऋणदाताओं की चालाकी: रैयत द्वारा ऋणदाताओं की शिकायतें मिलने पर अंग्रेज सरकार ने-1859 ई. में एक परिसीमन कानून पारित कर दिया। इसमें यह प्रावधान किया गया कि ऋणदाता और रैयत के बीच हस्ताक्षरित ऋण-पत्र केवल तीन वर्षों के लिए मान्य होगा। इस कानून का उद्देश्य ब्याज को एक लम्बे समय तक संचित होने से रोकना था, परन्तु ऋणदाताओं ने अपनी चतुरता से इस कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लिया। ऋणदाता कर्ज अदा न कर पाने पर तीन वर्ष पश्चात् मूलधन एवं उसके ब्याज को जोड़कर पुनः मूलधन के रूप में दर्ज कर रैयत से नया बंधपत्र भरवा लेता था। अब इस मूलधन पर पुन: नए सिरे से ब्याज लगने लगता था।

दक्कन दंगा आयोग को प्राप्त याचिकाओं में किसानों ने यह बतलाया कि ऋणदाता उन्हें ठगने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे थे, जैसे-ऋण चुकाने पर भी रसीद नहीं देना, बंधपत्रों में जाली आँकड़े भरना, किसानों की फसल नीची कीमत पर खरीदना एवं अन्ततः किसानों की धन-सम्पत्ति पर ही अधिकार कर लेना।

(iv) रैयत की मजबूरी: रैयत को ऋणदाताओं द्वारा धोखा दिए जाने की जानकारी थी, परन्तु उन्हें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऋण के लिए ऋणदाताओं के जाल में फंसना ही पड़ता था। समय के साथ-साथ किसान यह समझने लगे कि उनके कष्टों का कारण बंध-पत्रों एवं दस्तावेजों की यह नयी व्यवस्था है। उनसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लिये जाते अथवा अंगूठे के निशान लगवा लिये जाते थे। उन्हें यह भी पता नहीं होता था कि कैसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर रहे हैं या अँगूठे का निशान लगा रहे हैं। उन्हें उनके बारे में भी कोई जानकारी नहीं होती थी जो ऋणदाता बंध-पत्रों में लिख देते थे। रैयत तो प्रत्येक लिखे हुए शब्द से डरने लगी थी, परन्तु वह लाचार थी क्योंकि उन्हें जीवित रहने के लिए ऋण चाहिए था एवं ऋणदाता बिना कानूनी दस्तावेजों के ऋण देने को तैयार नहीं थे। इस प्रकार रैयत दुखी थे जिसके फलस्वरूप ऋणदाताओं एवं रैयत के मध्य तनाव उत्पन्न हो गया जो दक्कन विद्रोह के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित हुआ।

स्रोत आधारित प्रश्न

निर्देश-पाठ्य पुस्तक में बाक्स में दिये गए स्रोतों में कुछ जानकारी दी गई है जिनसे सम्बन्धित प्रश्न दिए गए हैं। स्रोत तथा प्रश्नों के उत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं। परीक्षा में स्रोतों पर आधारित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

स्रोत-1
दिनाजपुर के जोतदार 

बुकानन ने बताया कि उत्तरी बंगाल के दिनाजपुर जिले के जोतदार किस प्रकार जमींदार के अनुशासन का प्रतिरोध और उनकी शक्ति की अवहेलना किया करते थे भूस्वामी इस वर्ग के लोगों को पसन्द नहीं करते थे, लेकिन यह स्पष्ट है कि इन लोगों का होना बहुत जरूरी था क्योंकि इनके बिना जरूरतमंद काश्तकारों को पैसा उधार कौन देता जोतदार, जो बड़ी-बड़ी जमीनें जोतते हैं, बहुत ही हठीले और जिद्दी हैं और यह जानते हैं कि जमींदारों का उन पर कोई वश नहीं चलता।

वे तो अपने राजस्व के रूप में कुछ थोड़े से रुपये ही देते हैं और लगभग हर किस्त में कुछ-न-कुछ बकाया रकम रह जाती है। उनके पास उनके पट्टे की हकदारी से ज्यादा जमीनें हैं। जमींदार की रकम के कारण, अगर अधिकारी उन्हें कचहरी में बुलाते थे और उन्हें डराने-धमकाने के लिए घंटे-दो-घंटे कचहरी में रोक लेते हैं तो वे तुरन्त उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी थाना (पुलिस थाना) या मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच जाते हैं और कहते हैं कि जमींदार के कारिंदों ने उनका अपमान किया है। इस प्रकार राजस्व की बकाया रकर्मों के मामले बढ़ते जाते हैं और जोतदार छोटे-छोटे रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते हैं

प्रश्न 1. 
जोतदार नामक वर्ग के प्रति भू-स्वामी वर्ग का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर:
जोतदार वर्ग के लोगों को भू-स्वामी पसन्द नहीं करते थे लेकिन यह स्पष्ट है कि इन लोगों का होना बहुत आवश्यक था क्योंकि इनके बिना जरूरतमंद काश्तकारों को पैसा उधार कौन देता। जमींदार को रकम न देने के कारण वे काश्तकारों को अपने अधिकारियों के द्वारा कचहरी में बुलाते थे और उन्हें डराने-धमकाने के लिए कुछ समय कचहरी में ही रोक लेते थे। इस तरह भू-स्वामी अपने आदमियों के माध्यम से काश्तकारों का अपमान किया करते थे।

प्रश्न 2. 
यह बताइए कि जोतदार जमींदारों की सत्ता का किस प्रकार प्रतिरोध किया करते थे?
उत्तर:
जोतदार बड़े-बड़े खेतों को जोतते थे। जींदारों का उन पर कोई नियंत्रण नहीं था। वे राजस्व की रकम बहुत कम देते थे तथा राजस्व को बकाया रखते थे। जमींदार के आदमियों द्वारा डराये-धमकाये जाने पर फौजदारी थाने में उनके खिलाफ शिकायत करते थे कि उन्होंने उनका अपमान किया है। इस तरह राजस्व की बकाया राशि बढ़ती चली जाती थी और जोतदार छोटे-छोटे रैयतों को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते थे। इस तरह जोतदार जमींदारों की सत्ता का प्रतिरोध किया करते थे।

स्रोत-2
पाँचवीं रिपोर्ट से उद्धृत

जमींदारों की हालत और जमीनों की नीलामी के बारे में पाँची रिपोर्ट में कहा गया है
राजस्व समय पर नहीं वसूल किया जाता था और काफी हद तक जमीनें समय-समय पर नीलामी पर बेचने के लिए रखी जाती थीं। स्थानीय वर्ष 1203, तदनुसार सन् 1796-97 में बिक्री के लिए विज्ञापित जमीन की निर्धारित राशि (जुम्मा) 28,70,061 सिक्का रु. थी और वह वास्तव में 17,90,416 रु. में बेची गई और 14,18,756 रु. की राशि जुम्मा के रूप में प्राप्त हुई। स्थानीय संवत् 1204, तद्नुसार सन् 1797-98 में 26,66,191 सिक्का रु. के लिए जमीन विज्ञापित की गई 22,74,076 सिक्का रु. की जमीन बेची गई और क्रय राशि 21,47,580 सिक्का रु. थी। बाकीदारों में कुछ लोग देश के बहुत पुराने परिवारों में से थे। ये थे नदिया, राजशाही, विशनपुर (सभी बंगाल के जिले) आदि के राजा  साल दर साल उनकी .जागीरों के टूटते जाने से उनकी हालत बिगड़ गई। उन्हें गरीबी और बरबादी का सामना करना पड़ा और कुछ मामलों में तो सार्वजनिक निर्धारण की राशि को यथावत बनाए रखने के लिए राजस्व अधिकारियों को भी काफी कठिनाइयाँ उठानी पडीं।

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न-जिस लहजे में साक्ष्य अभिलिखित किया गया है, उससे आप रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों के प्रति रिपोर्ट लिखने वाले के रुख के बारे में क्या सोचते हैं? आँकड़ों के जरिये रिपोर्ट में क्या दर्शाने की कोशिश की गई है? क्या इन दो वषों के आँकड़ों से आपके विचार से किसी भी समस्या के बारे में दीर्घकालीन निष्कर्ष निकालना सम्भव होगा?
उत्तर:

  1. यहाँ लिखने का लहजा यह दर्शाता है कि जमीनों पर राजस्व अधिक होने के कारण अत्यधिक नीलामी होती थी, किन्तु जोतदारों की हठधर्मिता के कारण नीलामी की पूर्ण राशि प्राप्त नहीं होती थी।
  2. आँकड़ों के जरिए यह बताने का प्रयास किया गया है कि नीलामी में राजस्व की राशि कम प्राप्त होती थी।
  3. यहाँ एक सीमा तक दीर्घकालिक निर्णय निकाले जा सकते हैं।

स्रोत-3

संथालों के बारे में बुकानन के विचार

नई जमीनें साफ करने में वे बहुत होशियार होते हैं लेकिन नीचता से रहते हैं। उनकी झोपड़ियों में कोई खाड़ नहीं होती और दीवारें सीधी खड़ी की गई छोटी-छोटी सटी हुई लकड़ियों की बनी होती हैं जिन पर भीतर की ओर लेप (पलस्तर) लगा होता है। झोपड़ियाँ छोटी और मैली-कुचैली होती हैं; उनकी छत सपाट होती हैं, उनमें उभार बहुत कम होता है।

प्रश्न 1.
स्ट इंडिया कम्पनी के एजेंट के रूप में बुकानन की भूमिका का परीक्षण कीजिए। 
उत्तर:
ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेंट के रूप में बुकानन नक्शानवीसों, सर्वेक्षकों, पालकी उठाने वाले कुलियों आदि के बड़े दल के साथ सर्वत्र यात्रा करता था तथा कम्पनी के लिए जरूरी सूचनाओं को एकत्रित करता था। उसे स्पष्ट हिदायत दी जाती थी कि क्या देखना, खोजना तथा लिखना है। इस दौरान उसने वाणिज्यिक दृष्टि से मूल्यवान पत्थरों और खनिजों को खोजने का प्रयास किया तथा लौह खनिज एवं अबरक, ग्रेनाइट और साल्टपीटर से सम्बन्धित सभी स्थानों की खोज की। 

प्रश्न 2. 
संथालों के आर्थिक क्रियाकलापों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
संथाल लोग अपनी पहले वाली खानबदोश जिन्दगी को छोड़कर एक जगह बस गए थे तथा बाजार के लिए बहुत-सी वाणिज्यिक फसलों की खेती करने लगे थे तथा व्यापारियों और साहूकारों के साथ अब वे लेन-देन करने लगे थे।

प्रश्न 3. 
बुकानन ने संथालों की रहन-सहन की दशाओं का किस प्रकार वर्णन किया है? 
उत्तर:
बुकानन के अनुसार संथालों का रहन-सहन नीचता वाला था। उनकी झोपड़ियों में कोई बाड़ नहीं होती थी तथा उनकी दीवारें सीधी खड़ी की गई छोटी-छोटी सटी हुई लकड़ियों से बनी होती थीं। इन पर अन्दर की तरफ लेप (प्लास्टर) लगा होता था। उनकी झोंपड़ियाँ छोटी तथा मैली-कुचैली होती थी तथा उनकी छत सपाट होती थी जिनमें उभार नाममात्र का ही होता था।

स्रोत-6

उस दिन सूपा में: 

16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस आयुक्त को लिखा
शनिवार दिनांक 15 मई को सपा में आने पर मुझे इस उपद्रव का पता चला। एक साहूकार का घर पूरी तरह जला दिया गया; लगभग एक दर्जन मकानों को तोड़ दिया गया और उनमें घुसकर वहाँ के सारे सामान को आग लगा दी गई। खाते पत्र, बांड, अनाज, देहाती कपड़ा, सड़कों पर लाकर जला दिया गया, जहाँ राख के ढेर अब भी देखे जा सकते हैं। मुख्य कांस्टेबल ने 50 लोगों को गिरफ्तार किया। लगभग 2000 रु. का चोरी का माल छुड़ा लिया गया। अनुमानतः 25,000 रु. से अधिक की हानि हुई। साहूकारों का दावा है कि 1 लाख रु. से ज्यादा का नुकसान हुआ है।

दक्कन दंगा आयोग 

प्रश्न 1. 
पूना का जिला मजिस्ट्रेट सूपा कब गया? 
उत्तर:
15 मई, 1875 को। 

प्रश्न 2. 
सूपा में विद्रोहियों द्वारा क्या नुकसान किया गया?
उत्तर:
सूपा में विद्रोहियों ने एक साहूकार के मकान को पूर्णत: जला दिया था तथा लगभग एक दर्जन मकानों को तोड़कर उनमें रखे सामान में आग लगा दी।

प्रश्न 3. 
साहूकारों के अनुसार सूपा अग्निकांड में कितने का नुकसान हुआ? 
उत्तर:
लगभग 1 लाख रु. से अधिक का नुकसान हुआ।

स्रोत-7

समाचार-पत्र में छपी रिपोर्ट

'रैयत और साहूकार' शीर्षक नामक निम्नलिखित रिपोर्ट 6 जून, 1876 के 'नेटिव ओपीनियन' नामक समाचार-पत्र में छपी और उसे मुम्बई के नेटिव न्यूज पेपर्स की रिपोर्ट में यथावत उद्धृत किया गया (हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है)
“वे (रैयत) सर्वप्रथम अपने गाँवों की सीमाओं पर यह देखने के लिए जासूसी करते थे कि क्या कोई सरकारी अधिकारी आ रहा है और अपराधियों को समय रहते उनके आने की सूचना दे देते हैं। फिर वे एक झुंड बनाकर अपने ऋणदाताओं के पास जाते हैं और उनसे उनके प्रमाण-पत्र और अन्य दस्तावेज मांगते हैं और इन्कार करने पर ऋणदाताओं पर हमला करके छीन लेते हैं। यदि ऐसी किसी घटना के समय कोई सरकारी अधिकारी उन गाँवों की ओर आता हुआ दिखाई दे जाता है तो गुप्तचर अपराधियों को इनकी खबर पहुँचा देते हैं और अपराधी समय रहते ही तितर-बितर हो जाते हैं।

प्रश्न- लेखक द्वारा प्रयुक्त भाषा अथवा शब्दावली से अक्सर उसके पूर्वाग्रहों का पता चल जाता है, स्रोत-7 को सावधानीपूर्वक पढ़िए और उन शब्दों को छाँटिए जिनसे लेखक के पूर्वाग्रहों का पता चलता है। चर्चा कीजिए कि उस इलाके का रैयत उसी स्थिति का किन शब्दों में वर्णन करता होगा?
उत्तर:
नेटिव ओपीनियन' समाचार-पत्र में पूर्णरूप से लेखक ने रैयत के प्रति अपना पूर्वाग्रह रखा है, जिसे हम निम्नलिखित शब्दों में समझ सकते हैं
(1) जासूस अथवा गुप्तचर: लेखक ने ग्राम रक्षकों को जासूस कहा है जो कि असत्य है।

(2) अपराधी: लेखक ने भोले वनवासियों को अपराधी कहा है जो कि उसके पूर्वाग्रह की पराकाष्ठा है।
लेखक ने इस समाचार-पत्र में रैयत का विवरण हमलावरों अथवा आतंकवादियों के रूप में किया है। यह विचारधारा ब्रिटिश कम्पनी की सोच को स्पष्ट करती है।

स्रोत-10

कर्ज़ कैसे बढ़ते गए

दक्कन दंगा आयोग को दी गई अपनी याचिका में एक रैयत ने यह स्पष्ट किया कि ऋणों की प्रणाली कैसे काम करती थी :
एक साहूकार अपने कर्जदार को एक बंधपत्र के आधार पर 100 रु. की रकम 3-2 आने प्रतिशत की मासिक दर पर उधार देता है। कर्ज लेने वाला इस रकम को बांड पास होने की तारीख से आठ दिन के भीतर वापस अदा करने का करार करता है। रकम वापस अदा करने के लिए निर्धारित समय के तीन साल बाद साहूकार अपने कर्जदार से मूलधन तथा ब्याज दोनों को मिला कर बनी राशि (मिश्रधन) के लिए एक अन्य बांड उसी ब्याज दर से लिखवा लेता है और उसे संपूर्ण कर्जा चुकाने के लिए 125 दिन की मोहलत दे देता है। तीन साल और 15 दिन बीत जाने पर कर्जदार द्वारा एक तीसरा बांड पास किया जाता... (यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है) 2 वर्ष के अंत में 1,000 रु. की राशि पर उसका कुल व्याज 2,028 रु. 10 आना 3 पैसे हो जाता है।

प्रश्न 1. 
रैयत साहूकारों से ऋण किस उद्देश्य के लिए प्राप्त करते थे?
उत्तर:
रैयत राजस्व अदा करने, अपनी जरूरत की चीजों को जुटाने, अपने हल-बैल खरीदने तथा बच्चों की शादियाँ करने के उद्देश्य से साहूकारों से ऋण प्राप्त करते थे। 

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 2. 
ऋाण की प्रणाली की रैयत ने किस प्रकार व्याख्या की?
उत्तर:
रैयत के अनुसार साहूकार एक बंधपत्र के आधार पर ₹100 की रकम 3.2 आने प्रतिशत की मासिक दर पर उधार देता है। इसमें कर्जदार बांड पास होने की तारीख को आठ दिन के भीतर रकम वापस अदा करने का करार करता है। इस निर्धारित समय के तीन साल बाद साहूकार कर्जदार से मूलधन और ब्याज के साथ बनी राशि (मिश्रधन) के लिए एक अन्य बांड समान व्याज दर पर लिखवाकर कुल रकम वापस अदा करने के लिए 125 दिन का समय देता है। तीन साल और 15 दिन बीतने पर कर्जदार द्वारा एक तीसरा बांड पास किया जाता और यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है।

प्रश्न 3. 
आप यह कैसे सोचते हैं कि रैयतों द्वारा ऋण लेने का तरीका उनके लिए दुःख लाया? (CBSE 2019)
उत्तर:
रैयतों द्वारा ऋण लेने का तरीका उनके लिए दुःख लाया, यह इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है

  1. साहूकार ऋण चुकाने पर रैयत को उसकी रसीद नहीं देते थे। 
  2. वे बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे। 
  3. रैयतों की फसल नीची कीमतों पर लेते थे तथा अंतत: उनकी धन-संपत्ति को ही कब्जा लेते थे।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओ में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रश्न 

प्रश्न 1. 
'स्थायी बन्दोबस्त' किसके साथ किया गया ?
(क) जमींदारों के साथ 
(ख) ग्रामीण समुदायों के साथ 
(ग) मुकद्दमों के साथ 
(घ) किसानों के साथ। 
उत्तर:
(क) जमींदारों के साथ 

प्रश्न 2. 
निम्न में से किसने रैयतवाड़ी व्यवस्था प्रारम्भ की?
(क) लॉर्ड कार्नवालिस 
(ख) थॉमस मुनरो 
(ग) वॉरेन हेस्टिंग्स 
(घ) लॉर्ड डलहौजी। 
उत्तर:
(ख) थॉमस मुनरो 

प्रश्न 3. 
निम्न में से कौन-सा सुमेलित है?
(क) लॉर्ड कार्नवालिस - स्थायी बन्दोबस्त
(ख) लॉर्ड विलियम बैंटिंक - विलय नीति 
(ग) लॉर्ड कैनिंग - सती प्रथा का अन्त
(घ) लॉर्ड डलहौजी - सहायक सन्धि प्रणाली। 
उत्तर:
(क) लॉर्ड कार्नवालिस - स्थायी बन्दोबस्त

प्रश्न 4. 
लॉर्ड कार्नवालिस ने राजस्व बन्दोबस्त की निम्न में से किस व्यवस्था को लागू किया? 
(क) रैयतवाड़ी 
(ख) काश्तकारी 
(ग) महालवाड़ी 
(घ) इस्तमरारी। 
उत्तर:
(घ) इस्तमरारी। 

प्रश्न 5. 
भू-राजस्व के कौन-से समझौते में राजाओं और ताल्लुकदारों को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गई?
(क) स्थायी समझौता 
(ख) पट्टीदारी समझौता 
(ग) रैयतवाड़ी समझौता 
(घ) महाल समझौता।
उत्तर:
(क) स्थायी समझौता 

प्रश्न 6. 
ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन के दौरान किस राजस्व बन्दोबस्त के अन्तर्गत राजस्व एकत्र करने और उसे कम्पनी को अदा करने की जिम्मेदारी गाँव के मुखिया को सौंपी गई?
(क) जींदारी बन्दोबस्त 
(ख) स्थायी बन्दोबस्त 
(ग) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त 
(घ) महालवाड़ी बन्दोवस्त। 
उत्तर:
(घ) महालवाड़ी बन्दोवस्त। 

प्रश्न 7. 
निम्नलिखित में से किसके द्वारा बंगाल का स्थायी मालगुजारी बन्दोबस्त शुरू किया गया था?
(क) क्लाइव 
(ख) हेस्टिंग्स
(ग) वेलेजली 
(घ) कार्नवालिस 
उत्तर:
(घ) कार्नवालिस 

प्रश्न 8. 
अंग्रेजों द्वारा बनाई गई भू-व्यवस्था की निम्न प्रणालियों में से कौन-सी कृषकों के हितों को अधिक सुरक्षा प्रदान करती थी?
(क) बंगाल प्रान्त की स्थायी भू-व्यवस्था
(ख) मद्रास प्रान्त की रैयतवाड़ी भू-व्यवस्था 
(ग) मध्यवर्ती प्रान्त की जींदारी भू-व्यवस्था
(घ) संयुक्त प्राप्त की मालगुजारी भू-व्यवस्था। 
उत्तर:
(क) बंगाल प्रान्त की स्थायी भू-व्यवस्था

प्रश्न 9. 
भारत में राजस्व एकत्र करने में 'स्थायी बन्दोबस्त' की प्रणाली शुरू की गई थी-
(क) कर्जन द्वारा 
(ख) डलहौजी द्वारा 
(ग) हेस्टिंग्स द्वारा 
(घ) कार्नवालिस द्वारा। 
उत्तर:
(घ) कार्नवालिस द्वारा। 

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे?
 

प्रश्न 10. 
निम्नलिखित में से किन स्थानों पर रैयतवाड़ी बन्दोबस्त लागू किया गया था?
(क) उत्तर प्रदेश और पंजाब
(ख) उत्तर पश्चिमी प्रान्त और पंजाब 
(ग) मद्रास और बम्बई
(घ) बंगाल और बिहार। 
उत्तर:
(ग) मद्रास और बम्बई

प्रश्न 11. 
निम्नलिखित में से किसने मद्रास में रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू की थी?
(क) लॉर्ड हेस्टिंग्स 
(ख) लॉर्ड वेलेजली 
(ग) सर थॉमस मुनरो 
(घ) लॉर्ड कैनमारा। 
उत्तर:
(ग) सर थॉमस मुनरो 

प्रश्न 12. 
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के विषय में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? 
1. इसने काश्तकारों को भू-स्वामियों के रूप में मान्यता दी।  
2. यह अस्थायी बन्दोबस्त था। 
3. यह स्थायी बन्दोबस्त की अपेक्षा बाद में प्रारम्भ किया गया। नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए
(क) केवल 1 और 2 
(ख) 1,2 और 3 
(ग) केवल ।
(घ) केवल 2 और 3
उत्तर:
(ख) 1,2 और 3 

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे स्पष्ट कीजिए?

संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में वहाँ के जंगलों का सफाया करते हुए आगे बढ़ते रहे। वे इमारतों की लकड़ियों को काटते हुए, जमीनों को जोतते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे। वह वहां चावल तथा कपास की खेती करते और धीरे-धीरे आगे आकर उस क्षेत्र में बड़ी संख्या में घुसते चले जाते।

संथालों और पहाड़ियों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी कैसे?

हल और कुदाल के बीच की यह लड़ाई बहुत लंबी चली। सन्‌ 1810 के अंत में, बुकानन ने गंजुरिया पहाड़, जो कि राजमहल श्रंखलाओं का एक भाग था, को पार किया और आगे के चट्‌टानी प्रदेश के बीच से निकलकर वह एक गाँव में पहुँच गया। वैसे तो यह एक पुराना गाँव था पर उसके आस-पास की जमीन खेती करने के लिए अभी-अभी साफ की गई थी

संथाल ओं की शक्ति और पहाड़ियां जीवन के प्रति क्या थे?

इन पहाड़ियों को अपना मूलाधार बनाकर, पहाड़िया लोग बराबर उन मैदानों पर आक्रमण करते रहते थे जहाँ किसान एक स्थान पर बस कर अपनी खेती-बाड़ी किया करते थेपहाड़ियों द्वारा ये आक्रमण ज्यादातर अपने आपको विशेष रूप से अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे

संथाल और पहाड़ियों में क्या अंतर है?

पहाड़िया लोग उस ज़मीन पर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और चार बाजरा उगाते थे। इस प्रकार वे अपनी आजीविका के लिए जंगलों और चरागाहों पर निर्भर थे। किन्तु संथाल अपेक्षाकृत स्थायी खेती करते थे। ये परिश्रमी थे और इन्हें खेती की समझ थी।