Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Important Questions and Answers. Show
RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययनवस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. सुमेलित प्रश्न प्रश्न 1.
उत्तर:
उत्तर:
प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1) प्रश्न 1. प्रश्न 2. (ii) राजस्व की माँग में परिवर्तन नहीं किया जा सकता था। वस्तुतः सूर्यास्त विधि (कानून) के अनुसार, यदि निश्चित तारीख पर सूर्य अस्त होने तक भुगतान नहीं आता था तो जींदारी को नीलाम किया जा सकता था। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11.
प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2) प्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न 3. उद्यमी भी अपने पूँजी निवेश से एक निश्चित लाभ कमाने की उम्मीद रख सकेंगे क्योंकि राज्य अपने दावे में वृद्धि करके लाभ की राशि नहीं छीन सकेगा। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों का यह मत था कि इस प्रक्रिया से छोटे किसानों व धनी भू-स्वामियों का ऐसा वर्ग भी उत्पन्न होगा जिसके पास कृषि में सुधार हेतु पूँजी व उद्यम दोनों होंगे तथा ब्रिटिश शासन से प्रोत्साहन प्राप्त कर यह वर्ग कम्पनी के प्रति वफादार बना रहेगा। अत: कम्पनी के अधिकारियों के मध्य एक लम्बे वाद-विवाद के पश्चात् बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों के साथ इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किया गया। प्रश्न 4. एक जर्मीदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलकर एक राजस्व संपदा का रूप ले लेते थे। कम्पनी समस्त संपदा पर कुल माँग निर्धारित करती थी जिसके पश्चात् जमींदार यह निर्धारित करता था कि भिन्न-भिन्न गाँवों से राजस्व की कितनी-कितनी माँग पूरी करनी होगी तथा इसी के अनुसार वह उन गाँवों से राजस्व एकत्रित करता था। जींदार से यह आशा की जाती थी कि वह कम्पनी को नियमित रूप से राजस्व राशि प्रदान करेगा। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसकी भू-सम्पदाएँ नीलाम कर दी जायेंगी। प्रश्न 5. प्रश्न 6.
नकारात्मक परिणाम-इस्तमरारी (स्थायी) बन्दोबस्त के नकारात्मक परिणाम निम्नलिखित थे-
प्रश्न 7.
प्रश्न 8. प्रश्न 9.
प्रश्न 10.
प्रश्न 11. प्रश्न 12.
प्रश्न 13.
प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 12.
प्रश्न 13.
प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18.
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. (i) जमींदारों द्वारा अपनी भू-सम्पदा का स्त्रियों को हस्तान्तरण: जींदार अपनी जमींदारी को नीलामी से बचाने के लिए अपनी भू-सम्पदा के कुछ भाग को अपने परिवार की स्त्रियों के नाम हस्तान्तरित कर देते थे क्योंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी महिलाओं के हिस्से की नीलामी नहीं करती थी। उदाहरण के लिए; बद्रवान के राजा (जींदार) ने अपनी जींदारियों का एक हिस्सा अपनी माता को दे दिया क्योंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियमानुसार स्त्रियों की सम्पत्ति को नहीं छीना जाता था। (ii) नकली नीलामी: जींदारों ने अपने एजेंटों को नीलामी के दौरान खड़ा करके नीलामी की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। वे जानबूझकर ईस्ट इंडिया कम्पनी या अंग्रेज अधिकारियों को परेशान करने के लिए राजस्व माँग का भुगतान नहीं करते थे (iii) अन्य तरीके: जमींदार लोग भू-सम्पदा को परिवारजनों के नाम स्थानान्तरित करने या फर्जी बिक्री दिखाकर अपनी भू-सम्पदा को छिनने से बचाने के साथ-साथ कुछ अन्य तरीके भी अपनाते थे। यदि ईस्ट इंडिया कम्पनी के किसी अधिकारी की परिणाम-19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कृषि उत्पादों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गयी। इसलिए जो जर्मीदार 1790 के दशक की परेशानियों को झेलने में सफल हो गये, उन्होंने अपनी सत्ता को सुदृढ़ बना लिया। राजस्व के भुगतान सम्बन्धी नियमों को भी कुछ लचीला बना दिया गया जिसके फलस्वरूप गाँवों पर जमींदार की पकड़ और मजबूत हो गयी लेकिन आगे चलकर 1930 के दशक की घोर मंदी की हालत में अन्तत: जींदारों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा और ग्रामीण क्षेत्रों में जोतदारों ने अपनी स्थिति और अधिक मजबूत कर ली। . प्रश्न
3. (ii) कम्पनी के कुशासन एवं अव्यवस्थित प्रशासन पर बहस-ईस्ट इंडिया कम्पनी के कुशासन एवं अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचनाओं पर ब्रिटेन की संसद में वाद-विवाद होने लगा। कम्पनी अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण एवं लोभ-लालच की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार-पत्रों में खूब उछाला गया। (iii) ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम-ब्रिटिश संसद ने भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को नियन्त्रित करने के लिए अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में अनेक अधिनियम पारित किए। कम्पनी को मजबूर किया गया कि वह भारत के प्रशासन के सम्बन्ध में नियमित रूप से अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद को भेजे। (iv) कई समितियों की नियुक्ति-ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन की जाँच के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा कई समितियों की नियुक्ति की गयी। ऐसी समितियों जाँच करने के पश्चात् अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद को भेजती थीं। पाँचवीं रिपोर्ट भी ऐसी ही एक प्रवर समिति द्वारा तैयार की गयी थी। यह रिपोर्ट भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन के स्वरूप पर ब्रिटिश संसद में गम्भीर वाद-विवाद का आधार बनी। आलोचना का आधार: बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों के सम्बन्ध में पाँचवीं रिपोर्ट में दिए गए साक्ष्य बहुमूल्य थे, परन्तु ऐसी राजकीय रिपोर्टों का सावधानीपूर्वक अध्ययन एवं समझना अति आवश्यक है। हमें यह जानने की आवश्यकता है कि यह रिपोर्ट किसने और किस उद्देश्य से लिखी। आधुनिक शोधों से यह जानकारी मिलती है कि पाँचीं रिपोर्ट में दिए गए तर्कों और साक्ष्यों को बिना किसी आलोचना के स्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रश्न 4. संथालों का राजमहल की पहाड़ियों में पहुँचना व ब्रिटिश अधिकारियों की भूमिका: 1832 ई. के आसपास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों ने एक बड़े भू-भाग को संथालों के लिए सीमांकित कर दिया जो दामिन-ए-कोह कहलाया। इसे संथालों की भूमि घोषित किया गया, इसलिए उन्हें इसी प्रदेश के भीतर रहना था, हल चलाकर खेती करनी थी एवं स्थायी किसान बनना था। संथालों को दी जाने वाली भूमि के अनुदान-पत्र में यह शर्त थी कि उन्हें दी गयी भूमि के कम से कम दसवें भाग को साफ करके पहले 10 वर्षों के भीतर ही जोतना होगा। इस सम्पूर्ण क्षेत्र का सर्वेक्षण करके उसका मानचित्र तैयार किया गया। इसमें चारों ओर खम्बे गाढ़कर इसकी परिसीमा निर्धारित की गई। इस प्रकार इसे मैदानी क्षेत्र के स्थायी कृषकों की भूमि एवं पहाड़िया लोगों की भूमि से अलग कर दिया गया। दामिन-ए-कोह के सीमांकन के पश्चात् संथालों की बस्तियों का विस्तार बड़ी तीव्र गति से हुआ। 1838 ई. में संथालों के गाँवों की संख्या 40 थी जो 1851 ई. में बढ़कर 1473 तक पहुँच गयी। इसी अवधि में संथालों की जनसंख्या 3000 से बढ़कर 82000 से भी अधिक हो गयी। खेती का विस्तार होने से ईस्ट इंडिया कम्पनी के राजस्व में भी वृद्धि होने लगी। संथाल लोग व्यापारिक खेती करने के साथ-साथ व्यापारियों एवं साहूकारों से लेन-देन भी करने लगे। प्रश्न 5. फ्रांसिस बुकानन द्वारा दिया गया विवरण: बुकानन की यात्राएँ व सर्वेक्षण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए विकास एवं प्रगति का आधार थे। इनके विवरण को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है 1. बुकानन ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अनुरोध पर प्रारंभिक अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले भारतीय भू-खण्ड का विस्तृत सर्वेक्षण किया। बुकानन का छोड़ा हुआ विवरण संथालों के बारे में, राजमहल के पहाड़िया लोगों के बारे में और अनेक अन्य बातों के विषय में हमें विस्तृत जानकारी देता है लेकिन उसका छोड़ा विवरण न तो पूर्णतया व्यर्थ है और न ही शत-प्रतिशत विश्वसनीय, क्योंकि वह कम्पनी का कर्मचारी था। उसकी यात्राएँ केवल भू-दृश्य के प्यार और अज्ञात की खोज से ही प्रेरित नहीं थी। 2. बुकानन ने राजमहल के पहाड़ी क्षेत्रों और उन इलाकों में जहाँ संथाल लोग रहते थे, नक्शानवीसों, सर्वेक्षकों, पालकी उठाने वाले कुलियों आदि बड़े दल के साथ सभी जगह यात्रा की थी। उनकी यात्रा का खर्च ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी उठाया करती थी क्योंकि सर्वेक्षण के माध्यम से कम्पनी को सूचनाएँ चाहिये थीं जो कि बुकानन उनकी आशा के अनुरूप इकट्ठी करता था। 3. बुकानन को कम्पनी के अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से यह निर्देश दे रखे थे कि उसे क्या-क्या देखना है। सर्वेक्षण के अधीन क्षेत्रों में क्या-क्या खोजना है और क्या लिखना है। जब कभी वह अपने काफिले के साथ किसी गाँव में जाता था तो ग्रामीण लोग उसे सरकार के एक एजेंट के रूप में देखा करते थे। 4. बुकानन ने विशाल वनों से जुड़े परिदृश्यों और वहाँ से सरकार को सम्भवतः राजस्व देने वाले प्रांवों का सर्वेक्षण किया, खोज यात्राएँ आयोजित की और जानकारी इकट्ठी करने के लिए कम्पनी के माध्यम से भू-वैज्ञानिकों, भूगोलवेत्ताओं, वनस्पति वैज्ञानिकों, चिकित्सकों का सहयोग व सेवाएँ प्राप्त की। 5. बकानन एक अदभुत योग्यता और अन्वेषण शक्ति रखने वाला असाधारण व्यक्ति था. वह जहाँ भी गया वहीं उसने पत्थरों व चट्टानों और वहाँ की भूमि के विभिन्न स्तरों तथा परतों को ध्यानपूर्वक देखा। उसने वाणिज्यिक दृष्टिकोण से मूल्यवान पत्थरों और खनिजों को खोजने का प्रयास किया। उसने लौह अयस्क, अभ्रक, ग्रेनाइट और साल्टपीटर से सम्बन्धित समस्त स्थानों का पता लगाया। 6. बुकानन ने सावधानीपूर्वक नमक बनाने और कच्चा लोहा निकालने की स्थानीय पद्धतियों का निरीक्षण भी किया। 7. जब बुकानन किसी भू-दृश्य के बारे में लिखता था तो वह केवल यह नहीं लिखता था कि भ-दृश्य कैसा था. बल्कि वह यह भी लिखता था कि उसे किस प्रकार अधिक उत्पादक बनाया जा सकता है अथवा वहाँ कौन-कौन सी फसलें बोयी जा सकती हैं अथवा कौन-कौन से पेड़ काटे जा सकते हैं अथवा उगाये जा सकते हैं। उसकी सूक्ष्म दृष्टि एवं प्राथमिकताएँ स्थानीय निवासियों से भिन्न होती थीं। 8. प्रगति के सम्बन्ध में बुकानन का आकलन आधुनिक पश्चात्य विचारधारा द्वारा निर्धारित होता था। वह निश्चित रूप से वनवासियों की जीवन शैली का आलोचक था। वह यह भी महसूस करता था कि वनों को कृषि भूमि में बदलना ही होगा। प्रश्न 6. दक्कन विद्रोह के कारण: किसानों द्वारा दक्कन में विद्रोह करने के प्रमख कारण निम्नलिखित थे (ii) जबरन राजस्व वसूली-नये राजस्व बन्दोबस्त के तहत बढ़े हुए राजस्व को प्रभारी जिला कलेक्टर जबरन वसूलते थे। यदि किसान समय पर राजस्व जमा नहीं कर पाते थे तो उनकी फसल जब्त कर ली जाती थी एवं सम्पूर्ण गाँव पर जुर्माना ठोक दिया जाता था। (iii) कृषि उत्पादों की कीमतों में तीव्र गति से गिरावट आना-1832 ई. के पश्चात् कृषि उत्पादों की कीमतों में तीव्र गति से गिरावट आयी जिसके फलस्वरूप किसानों की आमदनी में और भी गिरावट आयी। (iv) अकाल का पड़ना-1832-34 ई. के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में अकाल की स्थिति ने किसानों को बर्बाद कर दिया। दक्कन का एक-तिहाई पशुधन मौत के मुँह में चला गया तथा जनसंख्या का आधा भाग भी काल का ग्रास बन गया। जो लोग शेष बचे थे उनके पास पेट भरने के लिए भी खाद्यान्न नहीं था, लेकिन राजस्व की बकाया राशियाँ आसमान छूने लगी थीं। (v) ऋणदाताओं की मनमानी व्याज दर-कम्पनी का राजस्व चुकाने एवं दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए किसानों को ऋणदाताओं से ऋण लेना पड़ा जिसके लिए उन्होंने मनमाना व्याज वसूल किया। कोई किसान यदि ऋण के चक्कर में फंस गया तो उसका निकलना मुश्किल हो जाता था। कर्ज बढ़ता गया और उधार की राशि बकाया रहती गई तथा ऋणदाताओं पर किसानों की निर्भरता बढ़ती गई। किसान कर्ज के बोझ के नीचे दबते चले गये। (vi) ऋण के स्रोत का सूख जाना-1865 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृहयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् वहाँ कपास का उत्पादन पुनः प्रारम्भ हो गया, जिससे ब्रिटेन में भारतीय कपास की मांग में निरन्तर गिरावट आती चली गयी। कपास की कीमतों में भी निरन्तर गिरावट आने लगी जिससे व्यापारी तथा साहूकारों ने किसानों से अपने पुराने ऋण वापस माँगना प्रारम्भ कर दिया। वहीं दूसरी ओर सरकार ने राजस्व की माँग में वृद्धि कर दी जिसके फलस्वरूप रैयत पर दोतरफा दबाव पड़ गया। किसानों ने ऋणदाताओं की शरण ली लेकिन उन्हें ऋणदाताओं से ऋण प्राप्त न हो सका। (vii) अन्याय का अनुभव–ऋणदाताओं द्वारा रैयत को ऋण देने से इंकार किये जाने से रैयत समुदाय में क्रोध उत्पन्न हो गया। वे इस बात से नाराज थे कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा है। ऋणदाता लोग देहात के परम्परागत मानकों अर्थात् रीति-रिवाजों का उल्लंघन कर रहे थे। वे ऋणदाताओं को कुटिल एवं धोखेबाज समझने लगे थे। विद्रोह का स्वरूप: दक्कन का यह आन्दोलन 12 मई, 1875 ई. को पूना (पुणे) जिले के सूपा नामक गाँव से प्रारम्भ हुआ था। सूपा विपणन केन्द्र था जहाँ अनेक व्यापारी एवं साहूकार रहते थे। पूना से यह विद्रोह अहमदनगर में फैल गया जो धीरे-धीरे 6500 वर्ग किमी क्षेत्र में फैल गया जिससे तीस से अधिक गाँव प्रभावित हुए। विद्रोह का स्वरूप सभी जगह एक जैसा हो गया था। इन हमलों से घबराकर साहूकार और व्यापारी अपने-अपने घरों व सम्पत्ति को छोड़कर भाग गये। विद्रोह का परिणाम (i) विद्रोह का दमन:जब सुपा से प्रारम्भ यह विद्रोह तेजी से फैलने लगा तो अधिकारियों को यह 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम जैसा महसूस हुआ। ब्रिटिश अधिकारियों ने तीव्रता से कार्यवाही करते हुए विद्रोही किसानों के गाँवों में पुलिस थाने स्थापित कर दिए तथा शीघ्र ही सेना बुला ली गयी। विद्रोहियों को गिरफ्तार करके उन्हें दण्डित किया गया लेकिन इस विद्रोह को दबाने में कई महीने लग गये। (ii) दक्कन दंगा आयोग की स्थापना-दंगा फैलने पर प्रारम्भ में बम्बई की सरकार ने इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया, लेकिन भारत सरकार के दबाव पड़ने पर उसने दंगों की छानबीन हेतु एक जाँच आयोग की स्थापना की जिसने विस्तृत जाँच करके 1878 ई. में अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि विद्रोह का कारण साहूकारों एवं ऋणदाताओं के प्रति किसानों का क्रोध था जो उन पर अन्याय कर रहे थे। सरकारी राजस्व की माँग इसके लिए जिम्मेदार नहीं थी लेकिन यह रिपोर्ट एकपक्षीय थी क्योंकि औपनिवेशिक सरकार अपनी गलती नहीं मानना चाहती थी, जबकि राजस्व की बढ़ती हुई माँग के कारण ही किसानों को साहूकारों से ऋण उनकी शर्तों पर लेना पड़ा जो इस विद्रोह का प्रमुख कारण सिद्ध हुआ। प्रश्न 7. (ii) ऋणदाताओं द्वारा खातों में धोखाधड़ी करना: ऋणदाताओं द्वारा किसानों के साथ धोखाधड़ी की जाने लगी। किसान ऋणदाता की कुटिलता एवं धोखेबाजी को समझने लगे थे। उनकी शिकायत थी कि ऋणदाता खातों में धोखाधड़ी करते हैं एवं कानून की आँखों में धूल झोंकते हैं। ऋणदाताओं द्वारा किसानों से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा लिये जाते थे अथवा अंगूठा लगवा लिया जाता था। किसानों को यह भी पता नहीं चल पाता था कि वे किस पर हस्ताक्षर कर रहे हैं अथवा अंगूठा लगा रहे हैं। उन्हें बन्ध पत्र में ऋणदाता द्वारा भरी जाने वाली किसी भी बात का पता नहीं चलता था। किसानों को त्राण की आवश्यकता के कारण ऋणदाताओं की मनमानी का शिकार होना पड़ता। (iii) परिसीमन कानून एवं ऋणदाताओं की चालाकी: रैयत द्वारा ऋणदाताओं की शिकायतें मिलने पर अंग्रेज सरकार ने-1859 ई. में एक परिसीमन कानून पारित कर दिया। इसमें यह प्रावधान किया गया कि ऋणदाता और रैयत के बीच हस्ताक्षरित ऋण-पत्र केवल तीन वर्षों के लिए मान्य होगा। इस कानून का उद्देश्य ब्याज को एक लम्बे समय तक संचित होने से रोकना था, परन्तु ऋणदाताओं ने अपनी चतुरता से इस कानून को घुमाकर अपने पक्ष में कर लिया। ऋणदाता कर्ज अदा न कर पाने पर तीन वर्ष पश्चात् मूलधन एवं उसके ब्याज को जोड़कर पुनः मूलधन के रूप में दर्ज कर रैयत से नया बंधपत्र भरवा लेता था। अब इस मूलधन पर पुन: नए सिरे से ब्याज लगने लगता था। दक्कन दंगा आयोग को प्राप्त याचिकाओं में किसानों ने यह बतलाया कि ऋणदाता उन्हें ठगने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे थे, जैसे-ऋण चुकाने पर भी रसीद नहीं देना, बंधपत्रों में जाली आँकड़े भरना, किसानों की फसल नीची कीमत पर खरीदना एवं अन्ततः किसानों की धन-सम्पत्ति पर ही अधिकार कर लेना। (iv) रैयत की मजबूरी: रैयत को ऋणदाताओं द्वारा धोखा दिए जाने की जानकारी थी, परन्तु उन्हें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऋण के लिए ऋणदाताओं के जाल में फंसना ही पड़ता था। समय के साथ-साथ किसान यह समझने लगे कि उनके कष्टों का कारण बंध-पत्रों एवं दस्तावेजों की यह नयी व्यवस्था है। उनसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लिये जाते अथवा अंगूठे के निशान लगवा लिये जाते थे। उन्हें यह भी पता नहीं होता था कि कैसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर रहे हैं या अँगूठे का निशान लगा रहे हैं। उन्हें उनके बारे में भी कोई जानकारी नहीं होती थी जो ऋणदाता बंध-पत्रों में लिख देते थे। रैयत तो प्रत्येक लिखे हुए शब्द से डरने लगी थी, परन्तु वह लाचार थी क्योंकि उन्हें जीवित रहने के लिए ऋण चाहिए था एवं ऋणदाता बिना कानूनी दस्तावेजों के ऋण देने को तैयार नहीं थे। इस प्रकार रैयत दुखी थे जिसके फलस्वरूप ऋणदाताओं एवं रैयत के मध्य तनाव उत्पन्न हो गया जो दक्कन विद्रोह के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित हुआ। स्रोत आधारित प्रश्न निर्देश-पाठ्य पुस्तक में बाक्स में दिये गए स्रोतों में कुछ जानकारी दी गई है जिनसे सम्बन्धित प्रश्न दिए गए हैं। स्रोत तथा प्रश्नों के उत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं। परीक्षा में स्रोतों पर आधारित प्रश्न पूछे जा सकते हैं। स्रोत-1 बुकानन ने बताया कि उत्तरी बंगाल के दिनाजपुर जिले के जोतदार किस प्रकार जमींदार के अनुशासन का प्रतिरोध और उनकी शक्ति की अवहेलना किया करते थे भूस्वामी इस वर्ग के लोगों को पसन्द नहीं करते थे, लेकिन यह स्पष्ट है कि इन लोगों का होना बहुत जरूरी था क्योंकि इनके बिना जरूरतमंद काश्तकारों को पैसा उधार कौन देता जोतदार, जो बड़ी-बड़ी जमीनें जोतते हैं, बहुत ही हठीले और जिद्दी हैं और यह जानते हैं कि जमींदारों का उन पर कोई वश नहीं चलता। वे तो अपने राजस्व के रूप में कुछ थोड़े से रुपये ही देते हैं और लगभग हर किस्त में कुछ-न-कुछ बकाया रकम रह जाती है। उनके पास उनके पट्टे की हकदारी से ज्यादा जमीनें हैं। जमींदार की रकम के कारण, अगर अधिकारी उन्हें कचहरी में बुलाते थे और उन्हें डराने-धमकाने के लिए घंटे-दो-घंटे कचहरी में रोक लेते हैं तो वे तुरन्त उनकी शिकायत करने के लिए फौजदारी थाना (पुलिस थाना) या मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच जाते हैं और कहते हैं कि जमींदार के कारिंदों ने उनका अपमान किया है। इस प्रकार राजस्व की बकाया रकर्मों के मामले बढ़ते जाते हैं और जोतदार छोटे-छोटे रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते हैं प्रश्न 1. प्रश्न 2. स्रोत-2 जमींदारों की हालत और जमीनों की नीलामी के बारे में पाँची रिपोर्ट में कहा गया है प्रश्न-जिस लहजे में साक्ष्य अभिलिखित किया गया है, उससे आप रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों के प्रति रिपोर्ट लिखने वाले के रुख के बारे में क्या सोचते हैं? आँकड़ों के जरिये रिपोर्ट में क्या दर्शाने की कोशिश की गई है? क्या इन दो वषों के आँकड़ों से आपके विचार से किसी भी समस्या के बारे में
दीर्घकालीन निष्कर्ष निकालना सम्भव होगा?
स्रोत-3 संथालों के बारे में बुकानन के विचार नई जमीनें साफ करने में वे बहुत होशियार होते हैं लेकिन नीचता से रहते हैं। उनकी झोपड़ियों में कोई खाड़ नहीं होती और दीवारें सीधी खड़ी की गई छोटी-छोटी सटी हुई लकड़ियों की बनी होती हैं जिन पर भीतर की ओर लेप (पलस्तर) लगा होता है। झोपड़ियाँ छोटी और मैली-कुचैली होती हैं; उनकी छत सपाट होती हैं, उनमें उभार बहुत कम होता है। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. स्रोत-6 उस दिन सूपा में: 16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस आयुक्त को लिखा दक्कन दंगा आयोग प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. स्रोत-7 समाचार-पत्र में छपी रिपोर्ट 'रैयत और साहूकार' शीर्षक नामक निम्नलिखित रिपोर्ट 6 जून, 1876 के 'नेटिव ओपीनियन' नामक समाचार-पत्र में छपी और उसे मुम्बई के नेटिव न्यूज पेपर्स की रिपोर्ट में यथावत उद्धृत
किया गया (हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है) प्रश्न- लेखक द्वारा प्रयुक्त भाषा अथवा शब्दावली से अक्सर उसके पूर्वाग्रहों का पता चल जाता है, स्रोत-7 को सावधानीपूर्वक पढ़िए और उन शब्दों को छाँटिए जिनसे लेखक के पूर्वाग्रहों का पता चलता है। चर्चा कीजिए कि उस इलाके का रैयत उसी स्थिति का किन शब्दों में वर्णन करता होगा? (2) अपराधी: लेखक ने भोले वनवासियों को अपराधी कहा है जो कि उसके पूर्वाग्रह की पराकाष्ठा है। स्रोत-10 कर्ज़ कैसे बढ़ते गए दक्कन दंगा आयोग को दी गई अपनी याचिका में एक रैयत ने यह स्पष्ट किया कि ऋणों की प्रणाली कैसे काम करती थी : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओ में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न
7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों तक कैसे पहुँचे स्पष्ट कीजिए?संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में वहाँ के जंगलों का सफाया करते हुए आगे बढ़ते रहे। वे इमारतों की लकड़ियों को काटते हुए, जमीनों को जोतते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे। वह वहां चावल तथा कपास की खेती करते और धीरे-धीरे आगे आकर उस क्षेत्र में बड़ी संख्या में घुसते चले जाते।
संथालों और पहाड़ियों के बीच लड़ाई हल और कुदाल के बीच लड़ाई थी कैसे?हल और कुदाल के बीच की यह लड़ाई बहुत लंबी चली। सन् 1810 के अंत में, बुकानन ने गंजुरिया पहाड़, जो कि राजमहल श्रंखलाओं का एक भाग था, को पार किया और आगे के चट्टानी प्रदेश के बीच से निकलकर वह एक गाँव में पहुँच गया। वैसे तो यह एक पुराना गाँव था पर उसके आस-पास की जमीन खेती करने के लिए अभी-अभी साफ की गई थी।
संथाल ओं की शक्ति और पहाड़ियां जीवन के प्रति क्या थे?इन पहाड़ियों को अपना मूलाधार बनाकर, पहाड़िया लोग बराबर उन मैदानों पर आक्रमण करते रहते थे जहाँ किसान एक स्थान पर बस कर अपनी खेती-बाड़ी किया करते थे। पहाड़ियों द्वारा ये आक्रमण ज्यादातर अपने आपको विशेष रूप से अभाव या अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिए किए जाते थे।
संथाल और पहाड़ियों में क्या अंतर है?पहाड़िया लोग उस ज़मीन पर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और चार बाजरा उगाते थे। इस प्रकार वे अपनी आजीविका के लिए जंगलों और चरागाहों पर निर्भर थे। किन्तु संथाल अपेक्षाकृत स्थायी खेती करते थे। ये परिश्रमी थे और इन्हें खेती की समझ थी।
|