श ष स निम्न में से कौन से व्यंजन हैं? - sh sh sa nimn mein se kaun se vyanjan hain?

व्यञ्जन वर्ण का प्रयोग वैसी ध्वनियों के लिए किया जाता है जिनके उच्चारण के लिये किसी स्वर की ज़रुरत होती है। ऐसी ध्वनियों का उच्चारण करते समय हमारे मुख के भीतर किसी न किसी अङ्ग विशेष द्वारा वायु का अवरोध होता है। जब हम व्यञ्जन बोलते हैं, हमारी जीभ मुह के ऊपर के हिस्से से रगड़कर उष्ण हवा बाहर आती है।

इस तालिका में सभी भाषाओं के व्यञ्जन गिये गये हैं, उनके IPA वर्णाक्षरों के साथ।

Plosives / स्पर्शअल्पप्राण
अघोषमहाप्राण
अघोषअल्पप्राण
घोषमहाप्राण
घोषनासिक्यकण्ठ्यक / kə /
k; English: skipख / khə /
kh; English: catग / gə /
g; English: gameघ / ghə /
gh; Aspirated /g/ङ / ŋə /
n; English: ringतालव्यच / tʃə /
ch; English: chatछ /tʃhə/
chhज / dʒə /
j; English: jamझ /dʒɦə/
jhञ / ɲə /
n; English: finchमूर्धन्यट / ʈə /
t; American Eng: hurtingठ / ʈhə /
th; Aspirated /ʈ/ड / ɖə /
d; American Eng: murderढ / ɖhə /
dh; Aspirated /ɖ/ण / ɳə /
n; American Eng: hunterदन्त्यत / t̪ə /
t; Spanish: tomateथ / t̪hə /
th; Aspirated /t̪/द / d̪ə /
d; Spanish: dondeध / d̪hə /
dh; Aspirated /d̪/न / nə /
n; English: nameओष्ठ्यप / pə /
p; English: spinफ / phə /
ph; English: pitब / bə /
b; English: boneभ / bhə /
bh; Aspirated /b/म / mə /
m; English: mine

नोट करें :

  • संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना। आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है।
  • हिन्दी में ण का उच्चारण ज़्यादातर ड़ँ की तरह होता है, यानि कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है। हिन्दी में क्षणिक और क्शड़िंक में कोई फ़र्क़ नहीं। पर संस्कृत में ण का उच्चारण न की तरह बिना ठोकर मारे होता था, फ़र्क़ सिर्फ़ इतना कि जीभ ण के समय मुँह की छत को कोमलता से छूती है।
  • इस पेज में ध्वन्यात्मक चिन्ह दिये गये हैं जो कुछ ब्राउसर पर शायद ठीक से न दिखें। (सहायता)
  • जहाँ भी चिन्ह् जोड़ी में गिये गये हैं, वहाँ दाहिने का चिह्न en:voiced consonant / घोष व्यञ्जन के लिए है और वायेँ का अघोष के लिए। शेडेड क्षेत्र उन ध्वनियों के लिये हैं जो असम्भव मानी जाती हैं।
  • द्वित्व व्यञ्जन या व्यञ्जन गुच्छ - सूत्र : समानस्य व्यञ्जनस्य समूह: इति 'लघु सिद्धान्त कौमुदी' जब दो समान व्यञ्जन एक साथ आए, तब वह द्वित्व व्यञ्जन या व्यञ्जन गुच्छ बन जाता है,जैसे: सच्ची,दिल्ली।

ध्यान दें कि महाप्राण ध्वनियों, जैसे ख, घ, फ, ध, आदि के लिए उसके अल्पप्राण चिह्न के बाद superscript में h का निशान लगाया जाता है, जैसे :

संयुक्त व्यंजन - जो व्यंजन 2 या 2 से अधिक व्यंजनों के मिलने से बनते हैं उन्हें संयुक्त व्यंजन कहा जाता है। संयुक्त व्यंजन एक तरह से व्यंजन का ही एक प्रकार है। संयुक्त व्यंजन में जो पहला व्यंजन होता है वो हमेशा स्वर रहित होता है और इसके विपरीत दूसरा व्यंजन हमेशा स्वर सहित होता है।


संयुक्त व्यंजन की हिंदी वर्णमाला में कुल संख्या 4 है जो की निम्नलिखित हैं।

क्ष - क् + ष = क्ष

त्र - त् + र = त्र

ज्ञ - ज् + ञ = ज्ञ

श्र - श् + र = श्र


संयुक्त व्यंजन से बने शब्दों के कुछ उदहारण इस प्रकार हैं।

क्ष - मोक्ष, अक्षर, परीक्षा, क्षय, अध्यक्ष, समक्ष, कक्षा, मीनाक्षी, क्षमा, यक्ष, भिक्षा, आकांक्षा, परीक्षित।

त्र - त्रिशूल, सर्वत्र, पत्र, गोत्र, वस्त्र, पात्र, सत्र, चित्र, एकत्रित, मंत्र, मूत्र, कृत्रिम, त्रुटि।

ज्ञ - ज्ञानी, अनभिज्ञ, विज्ञान, अज्ञात, यज्ञ, विज्ञापन, ज्ञाता, अज्ञान, जिज्ञासा, सर्वज्ञ, विशेषज्ञ, अल्पज्ञ।

श्र - विश्राम, आश्रम, श्राप, श्रुति, श्रीमान, कुलश्रेष्ठ, श्रमिक, परिश्रम, श्रवण, आश्रित, श्रद्धा, मिश्रण, श्रृंखला।

उत्क्षिप्त व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की उलटी हुई नोंक तालु को छू कर झटके से हट जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं, जैसे ड़, ढ। उष्म व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गरमाहट या सुरसुराहट-सी प्रतीत होती है, ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं जैसे श, ष, स और ह। स्पर्श व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का कोई-न-कोई भाग मुख के किसी-न –किसी भाग को स्पर्श करता है, स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। क से लेकर म तक 25 व्यंजन स्पर्श हैं। संयुक्त व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, जैसे क् + ष = क्ष, त् + र = त्र। अतः सही विकल्प उष्म व्यंजन है।

व्याकरण ज्ञान

व्याकरण वह शास्त्र है, जिसके द्वारा किसी भी भाषा के शब्दों और वाक्यों के शुद्ध स्वरूपों एवं शुद्ध प्रयोगों का विशद ज्ञान कराया जाता है अर्थात व्याकरण वह नीति या शास्त्र है, जिसके द्वारा भाषा अथवा साहित्य का शुद्ध रूप से अध्ययन किया जाता है। व्याकरण भाषा के नियमों का संकलन और विश्लेषण करता है और इन नियमों को स्थिर करता है। व्याकरण के ये सभी नियम भाषा को मानक एवं परिनिष्ठित बनाते हैं। व्याकरण स्वयं भाषा के नियम नहीं बनाता। अतः यह कहा जा सकता है कि-
व्याकरण वह शास्त्र है, जिसके द्वारा भाषा का शुद्ध मानक रूप निर्धारित किया जाता है।

व्याकरण के तीन अंग हैं- ध्वनि (वर्ण), शब्द और वाक्य।

व्याकरण के तीन मुख्य विभाग होते हैं-

  1. वर्ण विचार- इस भाग के अंतर्गत हम वर्णों का अध्ययन करते हैं अर्थात वर्णों के उच्चारण, रूप, आकार, भेद आदि के सम्बन्ध में अध्ययन करते हैं।
  2. शब्द विचार- इस भाग के अंतर्गत हम शब्दों की उत्पत्ति, भेद तथा प्रयोग आदि का अध्ययन करते हैं ।
  3. वाक्य विचार- इस भाग के अंतर्गत हम वाक्य निर्माण, उनके भेद, प्रयोग आदि पर विचार करते हैं ।

वर्ण श ष ह कौन से व्यंजन कहे जाते हैं?

जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गरमाहट या सुरसुराहट-सी प्रतीत होती है, ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं जैसे , , स और

ष कौन सा वर्ण है?

देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। उच्चारण की दृष्टि से यह पश्च-वर्त्स्य उलटित, अघोष संघर्षी है। संस्कृत से उत्पन्न कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे की षष्ठ, धनुष, सुषमा, कृषि, षड्यंत्र, संघर्ष और कष्ट। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध॰व॰) में इसके संस्कृत उच्चारण को [ʂ]के चिन्ह से लिखा जाता है।

श ष स को हिंदी में क्या कहते हैं?

(तालव्य) का उच्चारण जीभ के तालु से स्पर्श से होता है। (मूर्धन्य) का उच्चारण में जीभ मूर्धा को स्पर्श करती है। (दंत्य) का उच्चारण जीभ द्वारा दाँतो के स्पर्श से होता है। हिन्दी एक पूर्णतः वैज्ञानिक भाषा है यहा हर ध्वनि के लिये एक उच्चारण स्थान या वाग्यंत्र है .

श ष स ह व्यंजनों को ऊष्म व्यंजन क्यों कहा जाता है?

जिन वर्णों के उच्चारण से ऊष्मा का अनुभव हो मानो मुख से निस्तरित हवा गर्म लगे उसे ऊष्म व्यंजन कहा जाता है। ऐसे वर्ण हिंदी में चार हैं , ,, और ऊष्म व्यंजन – ', , , ' – इन चार वर्णों के उच्चारण में मुख से विशेष प्रकार की गर्म (ऊष्म) वायु निकलती है, इसलिए इन्हें ऊष्म व्यंजन कहते है ।