Show 1-आंदोलननर्मदा नदी घाटी पर 30 बड़ी, 136 मझौली और 3000 लघु बिजली परियोजनाएं बनी हैं. टिहरी बांध परियोजना के खिलाफ 1970 के दशक में शुरू हुए विरोध की तरह नर्मदा परियोजना का भी विरोध शुरू हो चुका था. इसे मुकम्मल पहचान मिली नर्मदा बचाओ आंदोलन से जो संभवतः देश में सबसे लंबी अवधि तक चलते रहने वाले जनांदोलनों में अग्रणी है. सफलता या विफलता से नहीं, आंदोलन ने अपनी जिजीविषा, इरादों और अपने प्रभावों से देश दुनिया में उन सबका ध्यान भी खींचा जो विकास, पर्यावरण और मानवाधिकारों की बहसों से जुड़े हैं. Table of Contents
लेकिन विकास परियोजनाओं को लगातार मिल हरी झंडी और एक के बाद एक निवेश से जुड़े सरकारी फैसलों को देखें तो ये सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि आखिर ऐसे आंदोलनों का भविष्य क्या है. नर्मदा बचाओ आंदोलन का 35 साल का सफर दिखाता है कि आखिर कैसे ये आंदोलन इतने लंबे समय से टिका रह पाया. और कैसे इसके बिना देश में जनसंघर्षों और विकास के अंतर्विरोधो की बहस भी अधूरी रह जाती है. मोटे तौर पर हैरान कर देने वाले इस तथ्य की बारीकी में जाएं तो हमें संगठन का पारदर्शी और पदाधिकारविहीन लोकतांत्रिक स्वरूप, ठोस सुचिंतित और सुव्यवस्थित प्लानिंग, दीर्घ कार्ययोजना, संगठित, सुगठित, प्रतिबद्ध और समर्पित कार्यकर्ता और कुशल जनसंपर्क अभियान जैसे रणनीतिक कौशल देखने को मिलते हैं. इन्हें भी पढ़ें:- संतुलित बल किसे कहते हैं? और इन सबके पीछे पर्यावरण और समाजशास्त्र की विदुषी मेधा पाटकर का ऊर्जावान नेतृत्व भी है जिसकी तस्दीक अपने अपने ढंग से होती रही है. मेधा पाटकर से वैचारिक विरोध रखने वाले भी उनकी धाक मानते हैं और प्रशंसा किए बिना नहीं रहते. नर्मदा एवं टिहरी बांध आंदोलन का क्या कारण है-2-इस बांध के फायदे
3-बांध के विरोध का कारण
4-आजादी के समय ही बनी थी योजना–नर्मदा नदी घाटी पर बांध परियोजना के निर्माण की शुरुआती परिकल्पना नवाग्राम प्रोजेक्ट के नाम से 1947 में ही कर ली गयी थी. 1978 में इसे सरदार सरोवर परियोजना के नाम से जाना गया. 1961 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने परियोजना का उद्घाटन किया. नर्मदा के प्रवाह का आकलन करने के लिए 1969 में जस्टिस रामास्वामी की अगुवाई में नर्मदा जल विवाद ट्रिब्युनल का गठन किया गया. मई 1985 में विश्व बैंक के साथ मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों ने 45 करोड़ डॉलर कर्ज का समझौता किया. 1987 में बांध का काम शुरू हुआ और तीनों राज्यों के बांध विस्थापितों ने असहयोग आंदोलन छेड़ दिया और इसके बाद अगला दशक यानी 1990 का पूरा दशक नर्मदा आंदोलन से थरथराता रहा. पुलिस कार्रवाइयां, अदालती मामले, धरना प्रदर्शन, जुलूस, आक्रोश, अनशन- आंदोलन में स्वयंसेवियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हिस्सेदारी बढ़ती गयी. इन्हें भी पढ़ें:- राजनीतिक दलों के समक्ष विभिन्न चुनौतियां- Recommended
Post navigationटिहरी में किसानों द्वारा कौन सा आंदोलन किया गया था?80 के दशक के बाद यहां पहाड़ो पर भी हरित क्रांति जोर पकड़ने लगी थी। जिसके फलस्वरूप सरकारी वैज्ञानिकों द्वारा रसायनिक खेती पर जोर दिया जाने लगा। इसमें लोगों से कहा जाने लगा कि आप मिश्रित खेती को छोड़कर सोयाबीन उगाइये और धनवान बनिये। जिसके विरोध में विजय जरधारी ने बीज बचाओं आंदोलन का आह्नान किया गया।
बिहारी बांध में किसानों द्वारा कौन सा आंदोलन चला गया था?ये एक सदी पहले किसानों का पहला संगठित शांतिपूर्ण अहिंसात्मक आंदोलन था। गांधीजी 175 दिन बिहार के चंपारण में रुक कर आंदोलन चलाते रहे। बदले मे चंपारण ने इसे गांधीजी का नेतृत्व को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने वाला पहला आंदोलन बना दिया।
टिहरी बांध आंदोलन के जनक कौन है?सुन्दरलाल बहुगुणा (9 जनवरी सन 1927 - 21 मई 2021) भारत के एक महान पर्यावरण-चिन्तक एवं चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेता थे।
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. टिहरी बांध योजना क्या है?टिहरी बाँध टेहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी जिले में स्थित है। इसे स्वामी रामतीर्थ सागर बांध भी कहते हैं |यह बाँध हिमालय की दो महत्वपूर्ण नदियों पर बना है जिनमें से एकगंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी तथा दूसरी भीलांगना नदी है, जिनके संगम पर इसे बनाया गया है।
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