तुला लग्न का देवता कौन है? - tula lagn ka devata kaun hai?

किस्मत कनेक्शन: जानिए तुला लग्न की ख़ास बातें

किस्मत कनेक्शन: जानिए तुला लग्न की ख़ास बातें

आज किस्मत कनेक्शन में हम बताएंगे तुला लग्न की ख़ास बातें. तुला लग्न में विशेष दशाओं में मोती धारण कर सकते हैं. इससे भावनात्मक समस्याओं और अध्यात्मिक मामलों में लाभ होगा. तुला लग्न का स्वामी शुक्र है. यह वायु तत्व प्रधान लग्न है. इस लग्न के लिये बुध, शुक्र और शनि मित्र हैं. सूर्य, मंगल और बृहस्पति शत्रु हैं. चन्द्रमा इस लग्न के लिए सम है. इसके अलावा इस एपिसोड में पंडित शैलेंद्र पांडेय बताएंगे आपका दैनिक राशिफल और कई सारी लकी टिप्स. देखिए किस्मत कनेक्शन.

Today in Kismat Connection we will tell you about the Tula Lagna (Libra ascendant). In this episode we are going to talk about some tips for Tula lagna. Pandit Shailendra Pandey will give you some tips for making your day fortunate. You will also get to know about your daily horoscope, watch Kismat Connection.

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  • तुला लग्न का देवता कौन है? - tula lagn ka devata kaun hai?

  • तुला लग्न का देवता कौन है? - tula lagn ka devata kaun hai?

आकाश में 180 डिग्री से लेकर 210 डिग्री तक के भाग को तुला लग्न (tula lagna) के रूप में माना जाता है. यानि जिस जातक का जन्म के समय यह भाग आसमान के पूर्वी क्षितिज में होता है उसकी राशि को तुला (tula rashi) माना जाता है. तुला राशि वायु तत्व वाली राशि है. इसका स्वामी शुक्र है. तुला राशि के लोग निष्पक्ष, सामाजिक तथा राजनयिक होते हैं.

तुला लग्न में चंद्र (tula lagna me chandra)

तुला लग्न में चंद्र दशम भाव का अधिपति होता है. दशम भाव का अधिपति होने के कारण चंद्र राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतृत्व, विदेश यात्रा, पैतृक संपत्ति जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. आपकी कुंडली में यदि चंद्रमा की स्थिति बलशाली है तो ये आपको शुभ फल देता है. अगर आपके चंद्र की स्थिति कमजोर है तो उपरोक्त विषय में आपको अशुभ फल मिलते हैं.

तुला लग्न में सूर्य (tula lagna me surya)

तुला लग्न में सूर्य ग्यारहवे भाव का अधिपति होता है. ग्यारहवे भाग का अधिपति होने के कारण सूर्य लोभ, लाभ गुलामी, संतान हीनता, कन्या संतति, रिश्तेदार, रिश्वतखोरी, बेईमानी जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. उपरोक्त विषय पर यदि आप जानकारी देखना चाहते हैं तो कुंडली में सूर्य की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए.

तुला लग्न में मंगल (tula lagna me mangal)

तुला लग्न में मंगल दूसरे और सातवे भाव का अधिपति होता है. दूसरे भाव के अधिपति होने के कारण मंगल कुल, आंख, नाक, कान, गला, स्वर, आभूषण, सौंदर्य, गायन कुटुंब का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं सातवे भाव का अधिपति होने के कारण मंगल स्त्री, कामवासना, चोरी, झगड़ा, अशांति, उपद्रव, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

तुला लग्न में बुध (tula lagna me budh)

तुला लग्न में बुध नवम भाव का अधिपति होता है. नवे भाव का अधिपति होने के कारण बुध धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्ममा, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, पिता का सुख, तीर्थ यात्रा, दान, इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. अगर आपका बुध बलशाली स्थान पर है तो उपरोक्त विषय में आपको शुभ फल मिलते हैं और अगर आपका बुध कमजोर है तो आपको अशुभ फल मिलेंगे.

तुला लग्न में गुरू (tula lagna me guru)

तुला लग्न में गुरू तीसरे भाव का अधिपति होता है. तीसरे भाव का अधिपति होने के के कारण बृहस्पति नौकर, चाकर, सहोदर, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्यूटर, मोबइल, अकाउंट्स, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, दासता, योगाभ्यास जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. उपरोक्त विषय के बारे में जानने के लिए आपको अपनी कुंडली में गुरू के स्थान का अध्ययन करना चाहिए.

तुला लग्न में शुक्र (tula lagna me shukra)

तुला लग्न में शुक्र पहले और आठवे स्थान का अधिपति होता है. पहले स्थान का अधिपति होने के कारण शुक्र आपके रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख-दुख, विवेक, मस्तिष्क, व्यक्ति के स्वभाव, आकृति और उसके संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है. वहीं आठवे स्थान के अधिपति के रूप में शुक्र व्याधि, जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचारधारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, जेलयात्रा, अस्पताल, भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

तुला लग्न में शनि (tula lagna me shani)

तुला लग्न में शनि चौथे और पांचवे भाव का अधिपति होता है. चैथे भाव के अधिपति के होने के कारण शनि भूमि भवन, वाहन, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल-कपट, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थों का सेवन, धन संचय, झूठा आरोप, अफवाह, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है.

तुला लग्न में राहु (tula lagna me raahu)

तुला लग्न में राहु बारहवे भाव का अधिपति है. बारहवे भाव के अधिपति होने के कारण राहु निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लंपटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. राहु की बलशाली स्थिति आपको शुभ फल देती है लेकिन अगर आपका राहु कमजोर है तो उसके विपरीत ही होता है.

तुला लग्न में केतु (tula lagna me ketu)

तुला लग्न में केतु छठे भाव का अधिपति होता है. छठे भाव का अधिपति होने के कारण केतु बीमारी, कर्ज, दुश्मन, चिंता, शंका, पीड़ा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी, साहूकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, अच्छा या बुरा व्यसन जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. इनकी जानकारी के लिए आपको कुंडली में केतु के स्थान का अध्ययन करना चाहिए.

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तुला लग्न का स्वामी कौन है?

तुला लग्न का स्वामी शुक्र है. यह वायु तत्व प्रधान लग्न है. इस लग्न के लिये बुध, शुक्र और शनि मित्र हैं.

तुला लग्न वालों को क्या पहनना चाहिए?

लग्न के अनुसार तुला लग्न मैं जातक हीरा, नीलम, और पन्ना रत्न धारण कर सकते है। लग्न के अनुसार तुला लग्न मैं जातक को मूंगा, पुखराज, मोती, और माणिक्य रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए

तुला लग्न में कौन से ग्रह की पूजा करनी चाहिए emergencia?

तुला लग्न में शुक्र ग्रह का फल शुक्र देवता इस लग्न कुंडली में पहले और आठवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश होने के कारण वह कुंडली के अति योगकारक ग्रह माने जातें हैं। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नवम, दशम और एकादश भाव में शुक्र देवता उदय अवस्था में अपनी दशा -अंतरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।

तुला लग्न का भाग्योदय कब होता है?

तुला लग्न का भाग्योदय कब होता है ? : Tula Rashi Ke Bhagyoday Kab Hota Hai : भाग्य का उदय 24 वर्ष की आयु में हो सकता है। यदि 24 वर्ष की आयु में भाग्योदय न हो तो इसके बाद 25 वर्ष की आयु में, 32 वर्ष की आयु में, 33 वर्ष की आयु में, 35 वर्ष की आयु में Tula Rashi Ke Bhagyoday होता है ।