ट्राँसफार्मर या परिणामित्र एक वैद्युत मशीन है जिसमें कोई चलने या घूमने वाला अवयव नहीं होता। विद्युत उपकरणों में सम्भवतः ट्राँसफार्मर सर्वाधिक व्यापक रूप से प्रयुक्त विद्युत साषित्र (अप्लाएन्स) है। यह किसी एक विद्युत परिपथ (circuit) से अन्य परिपथ में विद्युत प्रेरण द्वारा धारा की आवर्ती को बिना बदले विद्युत उर्जा स्थान्तरित करता है। ट्राँसफार्मर प्रत्यावर्ती धारा(AC)के साथ कार्य कर सकता है, एकदिश धारा (direct current) के साथ नहीं। ट्राँसफार्मर एक-फेजी, तीन-फेजी या बहु-फेजी हो सकते है। यह सभी विद्युत मशीनों में सर्वाधिक दक्ष (एफिसिएंट) मशीन है। आधुनिक युग में परिणामित्र वैद्युत् तथा इलेक्ट्रॉनी उद्योगों का अभिन्न अंग बन गया है। Show
किसी ट्राँसफार्मर में एक, दो या अधिक वाइन्डिंग हो सकती हैं। दो वाइंडिंग वाले ट्रान्सफार्मर के प्राथमिक (प्राइमरी) एवं द्वितियक (सेकेण्डरी) वाइण्डिंग के फेरों (टर्न्स) की संख्या एवं उनके विभवान्तरों में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है: इस सूत्र से स्पष्ट है कि प्राइमरी वोल्टता के दिये हुए मान के लिये प्राइमरी एवं सेकेणडरी वाइण्डिंग के फेरों की संख्या का उचित चयन करके हम द्वितीयक वाइंडिंग में इच्छित विभवान्तर प्राप्त कर सकते हैं। जब द्वितीयक वाइंडिंग का विभवान्तर प्राथमिक वाइंडिंग के विभवान्तर से अधिक होता है तो ऐसे ट्राँसफार्मर को उच्चायी परिणामित्र (स्टेप-अप ट्राँसफार्मर) कहते हैं। इसके विपरीत जब द्वितीयक वाइंडिंग का विभवान्तर प्राथमिक वाइंडिंग के विभवान्तर से कम होता है तो ऐसे परिणामित्र को अपचायी परिणामित्र (स्टेप-डाउन ट्राँसफार्मर) कहते हैं। उपयोग[संपादित करें]ट्रान्सफार्मर का मुख्य उपयोग विद्युत शक्ति को अधिक वोल्टता से कम वोल्टता में या कम वोल्टता से अधिक वोल्टता में बदलना है । ऐसा करने से विद्युत उर्जा के उपयोग में सुविधा और दक्षता आती है। ध्यातव्य है कि आदर्श ट्रान्सफार्मर उर्जा या शक्ति उत्पन्न नहीं करता, न ही शक्ति का परिवर्तन (एम्प्लिफिकेशन) करता है, न ही आवृत्ति बदलता है। ट्रान्सफार्मर का मुख्य उपयोग विद्युत शक्ति को अधिक वोल्टता से कम वोल्टता में या कम वोल्टता से अधिक वोल्टता में बदलना है (जहाँ, जैसी आवश्यकता हो)। ऐसा करने से विद्युत उर्जा के उपयोग में सुविधा और दक्षता आती है। ध्यातव्य है कि आदर्श ट्रान्सफार्मर ऊर्जा या शक्ति उत्पन्न नहीं करता, न ही शक्ति का परिवर्धन (या, एम्प्लिफिकेशन) करता है, न ही आवृत्ति बदलता है। परिणामित्र के प्रतीक[संपादित करें]पोल पर कसा हुआ त्रि-फेजी ट्रान्सफार्मर परिचय[संपादित करें]कोर-टाइप तथा शेल-टाइप ट्रांसफॉर्मर : कोर-टाइप में कोर के चारो ओर वाइंडिंग होती है ; शेल-टाइप में वाइंडिंग के बाहर कोर होती है। विभिन्न प्रकार की वाइण्डिण्ग्ग : ट्रान्सफॉर्मर कुण्डलियों का कटा-हुआ
दृश्य प्रतीक: परिणामित्र सम्भवतः सर्वाधिक व्यापक रूप से उपयोग में आनेवाला वैद्युत साषित्र (appliance) है। उद्योगों में दिष्ट धारा की अपेक्षा प्रत्यावर्ती धारा को जो प्रमुखता है उसका सारा श्रेय केवल परिणामित्र को है। यह ऐसा साधित्र है जो 'निम्नवोल्टता की उच्च धारा' को 'उच्च वोल्टता की निम्न धारा' में और 'उच्च वोल्टता की निम्नधारा' को 'निम्नवोल्टता की उच्च धारा' में बदलता है। बदलने का यह काम ऊर्जा की न्यूनतम हानि से और साधित्र में बिना किसी गतिमान भाग की सहायता के सम्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए, १०० वोल्ट की १०,००० वाट विद्युत-शक्ति के परिणमन के लिए १०० ऐम्पियर धारा आवश्यक होती है जबकि वही विद्युत-शक्ति १०,००० की वोल्टता पर भेजने के लिए केवल १ ऐम्पियर धारा पर्याप्त होती है। अत: दूसरी स्थिति में पहली की अपेक्षा बहुत ही कम व्यासवाला और इस कारण सस्ता चालक आवश्यक होता है। परिणामित्र का कार्यसंचालन माइकेल फैरेडे की एक अद्वितीय खोज (१८३१ ई.) पर आधारित है, जिसके अनुसार परिपथ में प्रेरित विद्युतवाहक बल (e.m.f.), परिपथ द्वारा परिबद्ध क्षेत्र के आरपार चुंबकीय फ्लक्स (flux) के परिवर्तन की समय दर के के बराबर होता है। सरलतम रूप में परिणामित्र में दो अलग अलग कुंडलियाँ (windings) होती हैं, जिनका चुंबकीय परिपथ एक ही होता है। शक्ति के प्रवाह की दिशा के अनुसार परिणामित्र के कुंडलनों का अभिनिर्धारण किया जाता है (अर्थात किस कुण्डली को पाराथमिक कहेंगे और किसे द्वितीयक)। प्राथमिक कुण्डली वह है जिसे प्रत्यावर्ती विद्युतऊर्जा के स्रोत से जोड़ते हैं और द्वितीयक वह है जिसे लोड (load) से। विद्युतचुम्बकीय प्रेरण द्वारा ऊर्जा प्राथमिक कुण्डली से द्वितीयक कुंडलन में स्थानांतरित होती है। आदर्श परिणामित्र के क्रियासंचालन् की विशेषताएँ हैं :
व्यवहारतः यह आदर्श स्थिति दुष्प्राप्य है। परिणामित्र की प्राथमिक कुंडली से जुड़ी संभरण वोल्टता चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न करती है, जो परिणामित्र के पटलित (laminated) क्रोड से संबद्ध होती है। परिणामित्र के प्राथमिक कुंडली से जुड़ी हुई प्रत्यावर्ती वोल्टता Ep को उच्चतम चुंबकीय फ्लक्स के घनत्व Bm, पटलित क्रोड की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A, प्रत्यावर्ती धारा की आवृर्ती धारा की आवृत्ति f तथा प्राथमिक कुंडली में लपेटों को संख्या N1 के पदों में व्यक्त किया जाता है: Ep = 4.44 f N1 A Bmप्राथमिक कुंडली में प्रवाहित धारा द्वारा उत्पन्न प्रत्यावर्ती चुंबकीय फ्लक्स द्वितीयक कुंडली की लपेटों को भी संबद्ध करता है। प्राथमिक और द्वितीयक कुंडलियों में अंतर केवल लपेटों की संख्या का होता है, अत: द्वितीयक कुंडली में प्रेरित वोल्टता का प्रभावी मान Es = 4.44 f N2 A Bmइस प्रकार प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टता का निम्नलिखित अनुपात प्राप्त होता है: Ep/Es = N1/N2प्राथमिक कुंडली की वोल्टता को बढ़ाने के आवश्यकता पड़ने पर प्राथमिक कुंडली में लपेटों की सख्या N1 को द्वितीयक कुंडली की लपेटों की संख्या N2 से कम रखा जाता है। इस प्रकार के परिणामित्र को उच्चायी (step up) परिणामित्र कहते हैं और प्राथमिक कुंडली की वोल्टता यदि द्वितीयक की वोल्टता से अधिक है तो प्राथमिक कुंडली में लपेटों की संख्या N1 द्वितीयक कुंडली की लपेटों की संख्या N2 से बड़ी होगी। इस प्रकार के परिणामित्र को अपचायी (step down) परिणामित्र कहते हैं। सामान्यत: परिणामित्र का स्वरूप निम्नलिखित बातों से निर्धारित होता है:
परिणामित्र की दक्षता[संपादित करें]सामान्य लोड पर साधारण शक्ति परिणामित्र की दक्षता (efficiency) बहुत अधिक होती है, जो छोटे परिणामित्रों में ९०% से लेकर बड़े परिणामित्रों में ९८% तक विचरित होती है। सामान्यतः प्रतिशत में व्यक्त परिणामित्र की दक्षता को इस प्रकार अभिव्यक्त कर सकते हैं : परिणामित्रों की तात्कालिक दक्षता और दिन भर की दक्षता में अन्तर होता है। परिणामित्र के नियंत्रण (रेगुलेशन) का अर्थ होता है निवेश (input) वोल्टता के स्थिर रहने पर पूर्ण लोड की स्थिति में द्वितीयक वोल्टता और बिना लोड की स्थिति में द्वितीयक वोल्टता का संबंध। प्रतिशत के रूप में व्यक्त करने पर नियंत्रण को अधोलिखित रूप में परिभाषित कर सकते हैं: नियंत्रण = (बिना लोड की स्थिति में द्वितीयक वोल्टता - पूर्ण लोड की स्थिति में द्वितीयक वोल्टता) x 100 / पूर्ण लोड की स्थिति में द्वितीयक वोल्टताछोटे परिणामित्रों के लिए नियंत्रण २ से ५ प्रतिशत और बड़ों के लिए लगभग १ प्रतिशत के क्रम (order) का होता है। ट्रांसफॉर्मर के भाग[संपादित करें]ट्रांसफॉर्मर के विभिन्न अवयव ट्रान्सफार्मर के मुख्यतः दो भाग होते हैं: १) कोर - जो किसी चुम्बकीय पदार्थ की बनायी जाती है। (किन्तु विशेष परिस्थितियों में वायु-क्रोडी ट्रान्सफार्मर भी बनाये जाते हैं) २) वाइंडिंग - जो ताँबा, अलमुनियम या किसी अन्य सुचालक के तारों अथवा बस-बार से बनायी जाती है। इसके अतिरिक्त कुचालक (इन्सुलेटर) आदि भी प्रयोग किये जाते हैं जो वाइण्डिंग के फेरों को आपस में या कोर से छुने से रोकते हैं। ट्रांसफॉर्मर तेल का प्रयोग उच्च वोल्टता के परिणामित्रों में किया जाता है जो ब्रेकडाउन शक्ति अधिक होने से स्पार्क आदि रोकते हैं तथा कोर व कुंड्लियों से उष्मा सोखकर उसे ठंडा करते हैं। परिणामित्र को ठंडा रखने के लिये तेल के अलावा एवं कई अन्य शीतकों का प्रयोग भी किया जाता है जैसे पानी एवं गैस आदि। विविध[संपादित करें]
ट्रांसफॉर्मर का तुल्य परिपथ[संपादित करें]ट्रान्सफॉर्मर के प्रकार तथा विविध उपयोग[संपादित करें]कार्यसिद्धान्त एक होते हुए भी ट्रान्सफॉर्मर विविध आकार-प्रकार के होते हैं। इनके अनेक उपयोग हैं। अलग-अलग उपयोग के लिए डिजाइन किए गए ट्रान्सफॉर्मर में अलग-अलग विशिष्टताएँ होतीं हैं। उदाहरण के लिए शक्ति ट्रान्सफॉर्मर, पल्स ट्रान्सफॉर्मर से अनेक दृष्टियों से अलग है। कुछ प्रमुख ट्रान्सफॉर्मर निम्नलिखित हैं-
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
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ट्रांसफार्मर कितने केवीए के होते हैं?अपचायक ट्रांसफॉर्मर Step-down Transformer
1,2.2, 8.8, 6.6 या 11 Kv होता है अत: उसे 400 V में परिवर्तित करने के लिए अपचायक ट्रांसफॉमर प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार 22,33, 66, 110, 132, 220 एवं 440 kV विद्युत उप-केन्द्रों पर आवश्यक निम्न वोल्टेज का आउटपुट तैयार करने के लिए भी अपचायक ट्रांसफॉर्मर प्रयोग किए जाते हैं।
ट्रांसफार्मर कितने वोल्ट का होता है?ट्रांसफार्मर का उपयोग करके सबसे पहले ज्यादा Volt वाले AC करेंट को 220 Volt से 12 Volt में बदला जाता है। Volt को कम करने के बाद उस करेंट को फिर रेक्टिफायर का इस्तेमाल करके AC करेंट से DC करेंट में बदला जाता है। जिसके बाद उसका उपयोग आसानी से DC उपकरण को चलाने में किया जाता हैं।
ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं उनके नाम?ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं।. कोर (Core) टाइप ट्रांसफार्मर (Core Type Transformer). शेल टाइप ट्रांसफार्मर (Shell Type Transformer). बेरी टाइप ट्रांसफार्मर (Berry Type Transformer). स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Step Up Transformer). स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर ( Step Down Transformer). करंट ट्रांसफार्मर क्या है ? (. ट्रांसफार्मर में कौन सा तेल प्रयोग किया जाता है?परिणामित्र तेल या ट्रान्सफॉर्मर ऑयल (Transformer oil या insulating oil) का उपयोग ट्रान्सफार्मरों, उच्च वोल्तता के संधारित्रों, उच्च वोल्टता के स्विचों एवं सर्किट ब्रेकरों आदि में किया जाता है। ट्रान्सफॉर्मर तेल का विद्युत इन्सुलेशन का गुण उत्तम होता है जो उच्च ताप पर बना रहता है।
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