REET 2022 की परीक्षा के लिए समास के महत्तवपूर्ण प्रश्न : – इस पोस्ट में दिए गए सभी प्रश्न ( Samas Ke Important Questions ) परीक्षा की दृष्टि से महत्तवपूर्ण है तथा ये प्रश्न इस टॉपिक को लेकर आपकी समझ को विकसित करेंगे। Show समास के महत्तवपूर्ण प्रश्न ( Samas Ke Important Questions ) : –
आपको पोस्ट्स पसंद आ रही है तो कमेंट्स बॉक्स में कमेंट्स करके हमे फीडबैक दे ताकि हम और अच्छा अच्छा कंटेंट आपको दे सकें। ‘समास’ शब्द की उत्पति ‘सम्’ (उपसर्ग) + ‘आस’ (प्रत्यय) के मिलने से बना है। ‘सम’ का अर्थ होता है ‘पूर्णरूप’ से और ‘आस’ का अर्थ है ‘नजदीक आना’ अथार्त दो या दो से अधिक पदों का पूर्ण रूप से मिलना या नजदीक आना ‘समास’ कहलाता है। इसका शाब्दिक अर्थ ‘संक्षेपण’ होता है। परिभाषा- दो या दो से अधिक पदों के मेल को जिनके बीच के संयोजक शब्दों अथवा कारक चिह्नों का लोप हो जाए उसे समास कहते है जैसे- राधा और कृष्ण = राधाकृष्ण (राधाकृष्ण शब्द में ‘संयोयक’ चिह्न का लोप हो गया) राजा की माता = राजमाता (राजमाता शब्द में ‘कारक’ चिह्न का लोप हो गया) ‘समास’ का विलोम ‘व्यास’ होता है, और व्यास का शाब्दिक अर्थ विस्तार है। अतः दो या दो से अधिक पदों को मिलाकर एक ही पद बनाने की क्रिया समास है। दो या दो से अधिक पदों के मेल से बना एक ही पद समपद पद या सामासिक पद कहलाता है। ध्यान देने योग्य बातें- ‘समास’ में पदों का मेल होता है। ‘संधि’ में ध्वनियों और वर्णों का मेल होता है। ‘संयोजक’ में सीधे-सीधे जुड़ जाते है। समास विग्रह- समस्त पदों को खंडित कर, पदों को अलग-अलग करने की क्रिया ‘समास विग्रह’ कहलाता है। जैसे- सूर्यपुत्र = सूर्य का पुत्र (समास विग्रह है) समास की उपयोगिता: कम शब्दों में अधिक से अधिक बातें कहने के लिए समास का प्रयोग किया जाता है। समास का भेद दो आधार पर किया जा सकता है :
(क) अव्ययी भाव समास (ख) तत्पुरुष समास (ग) द्विगु समास (घ) कर्मधारय समास (ङ) बहुब्रीहि समास (च) द्वंद्व समास 2. पद की प्रधानता के आधार पर जिस समास का पूर्वपद प्रधान हो- अव्ययीभाव समास वह समास जिसका उत्तर पद प्रधान हो- तत्पुरुष समास जिसका अन्य पद प्रधान हो- बहुब्रीहि समास जिसका कोई एक नहीं अपितु सभी पद प्रधान हो- द्वंद्व समास (क) अव्ययीभाव समास- जिस समास में पूर्वपद की प्रधानता हो और सामासिक या समास पद अव्यय हो। अव्ययीभाव समास में केवल पूर्वपद ही नहीं, अपितु ‘समस्तपद’ भी एक अव्यय के सामान प्रयुक्त होता है। अव्ययीभाव समस्तपद का विग्रह इस प्रकार होगा: समस्तपद – विग्रह प्रतिदिन – प्रत्येक दिन में यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार बेखटके – बिना खटके के हाथोंहाथ – एक हाथ से दूसरे हाथ में भरपेट – पेट भरकर आजीवन – जीवन-पर्यंत ध्यानपूर्वक – ध्यान लगाकर अनुरुप – रूप के योग्य अजन्म – जन्म से लेकर गली-गली – प्रत्येक गली भरपूर – पूरा भरा हुआ यथोचित – जितना उचित हो रातोंरात – रात ही रात में हर घड़ी – प्रत्येक घड़ी या घड़ी-घड़ी प्रत्येक्ष – आँखों के सामने प्रतिवर्ष – हर-वर्ष या वर्ष-वर्ष द्वार-द्वार – हर एक द्वार यथानियम – नियम के अनुसार यथाविधि – विधि के अनुसार यथासाध्य – साध्य के अनुसार आमरण – मरण तक (ख) तत्पुरुष समास- तत्पुरुष समास में दूसरा खंड (उत्तर पद) प्रधान हो तथा पूर्वपद की विभक्ति अथवा उसके सूचक शब्द का लोप होकर एक स्वतंत्र पद बन जाए। उसे तत्पुरुष समास कहते है। जैसे- धर्मग्रंथ = धर्म का ग्रंथ राजकुमार = राज का कुमार तुलसीदास द्वारा कृत = तुलसीदासकृत तत्पुरुष समास में ‘कारक’ विभक्ति का लोप होता है, समस्त पद उसी नाम पुकारा जाता है। इस समास में लगने वाले कारक चिह्नों को से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि का लोप हो जाता है। तत्पुरुष समास- इसमेंदो कारक चिह्नों (कर्ता कारक और संबोधन) कारक के विभक्तियों का प्रयोग नहीं किया जाता है । करक चिह्नों के अनुसार इस समास के छह भेद है: कर्म तत्पुरुष समास कारण तत्पुरुष समास सम्प्रदान तत्पुरुष समास सम्बन्ध तत्पुरुष समास अधिकरण तत्पुरुष समास कर्म तत्पुरुष समास- यह समास में ‘को’ चिह्न के लोप से बना है। जैसे- यशप्राप्त- यश को प्राप्त माखनचोर – माखन को चुराने वाला स्वर्गगत – स्वर्ग को गया हुआ जेबकतरा – जेब को कतरने वाला रथचालाक – रथ को चलानेवाला गगनचुंबी – गगन को चूमने वाला परलोकगमन – परलोक को गमन शरणागत – शरण को आया हुआ आशातीत – आशा को लाँघकर गया हुआ कारक तत्पुरुष समास- यह समास दो कारक चिह्नों ‘से’ और ‘के द्वारा’ के लोप से बनता है। जैसे- शोकातुर – शोक से आतुर मनमाना – मन से माना हुआ शोकाकुल – शोक से आकुल रसभरा – रस से भरा हुआ अकालपीड़ित- अकाल से पीड़ित वाल्मिकिरचित – वाल्मीकि के द्वारा रचित सूररचित – सूर के द्वारा रचित सम्प्रदान तत्पुरुष समास: इस समास में ‘के लिए’ कारक चिह्नों का लोप होता है। जैसे- प्रयोगशाला – प्रयोग के लिए शाला यज्ञशाला – यज्ञ के लिए शाला गौशाला – गौओं के लिए शाला सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह रसोईघर – रसोई के लिए घर डाकगाडी – डाक के लिए गाड़ी पाठशाला – पाठ के लिए शाला लोकहितकारी- लोक के लिए हितकारी देवालय – देव के लिए आलय सभाभवन – सभा के लिए भवन अपादान तत्पुरुष समास: इस समास में अपादान कारक चिह्न ‘से’ का लोप होता है। जैसे- बंधनमुक्त – बंधन से मुक्त नेत्रहीन – नेत्र से हीन जीवनमुक्त – जीवन से मुक्त जलहीन – जल से हीन पापमुक्त – पाप से मुक्त जन्मांध – जन्म से अँधा रोगमुक्त – रोग से मुक्त विद्यारहित – विद्या से रहित गुणहीन – गुण से हीन धनहीन – धन से हीन सम्बन्ध तत्पुरुष समास: इस समास में ‘का’ ‘की’ ‘के’ का लोप होता है। जैसे- भारतरत्न – भारत का रत्न उद्योगपति – उद्योग का पति सेनापति – सेना का पति गृहस्वामी – गृह का स्वामी राजसभा – राजा की सभा जलधरा – जल की धरा पुष्पवर्षा – पुष्पों की वर्षा पराधीन – दूसरों के लिए अधिकरण तत्पुरुष समास: इसमें कारक के ‘में’ और ‘पर’ चिह्न का लोप होता है। जैसे- गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश जलज- जल में जन्मा आपबीती – आप पर बीती पर्वतारोहन – पर्वत पर आरोहण (ग) बहुब्रीहि समास- बहुब्रीहि दो शब्दों के मेल से बना है। बहु + ब्रीहि = बहुब्रीहि जिसमे ‘बहु’ का अर्थ होगा ‘बहुत सारे अर्थों का’ और ‘ब्रीहि’ का अर्थ होगा ‘निषेध करने वाला’ अथार्त बहुत सारे अर्थों का निषेध कर एक अर्थ को रखनेवाला समास को बहुब्रीहि समास कहते है। परिभाषा- वह समास जिसका अन्य पद प्रधान हो अथार्त सम्पूर्ण सामासिक हो पद का कोई अन्य अर्थ अभिव्यक्त हो उसे, बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे- नीलकंठ = शिव योगरूढ़ शब्दों में बहुब्रीहि समास होता है। जैसे उपसर्ग- उपसर्ग + शब्द (अन + अंग = अनंग अन्य अर्थ कामदेव प्रत्यय – शब्द + प्रत्यय (हल + धर = हलधर अन्य अर्थ बलराम शब्द – शब्द + शब्द (नील + कंठ = नीलकंठ अन्य अर्थ शिव जिस शब्द का अन्य अर्थ निकले वहाँ बहुब्रीहि समास होगा। जिस शब्द का अन्य अर्थ नहीं निकले वहाँ बहुब्रीहि समास नहीं होगा है। उदाहरण: जिस भी शब्द के अंत ‘पाणी’ जुड़ा हो वहा बहुब्रीहि समास ही होगा। चक्रपाणी = विष्णु वीणापाणि = सरस्वती वेदपाणी = ब्रहमा गदापाणी = विष्णु ‘नीलांबर’ शब्द को छोड़कर जिस भी शब्द के अंत में ‘अंबर’ हो वहा बहुब्रीहि समास होगा। पीतांबर = विष्णु रक्तांबर = दुर्गा बाघांबर = शिव दिगंबर = शिव ‘बालवाहिनी’ और ‘रोगीवाहिनी’ को छोड़कर जिस भी शब्द के अंत में ‘वाहन’ या ‘वाहिनी’ आ जाए वहाँ बहुब्रीहि समास होगा। मयूरवाहन = कार्तिकेय मूषकवाहन = गणेश गरुड़वाहन = विष्णु उलूकवाहन = लक्ष्मी वृषभवाहन = शिव सिंहवाहिनी = दुर्गा जिस भी शब्द के अंत में नयन, नेत्र, लोचन, अक्षि हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा त्रिलोचन = शिव त्रिनेत्र = शिव एकक्ष = शुक्राचार्य सस्त्राक्ष = इंद्र कमलनयन = विष्णु जिस भी शब्द के अंत में धर, धरा और धि होगा वहाँ बहुब्रीहि समास होगा मुरलीधर = कृष्ण गिरिधर = कृष्ण गंगाधर = शिव वंशीधर = कृष्ण वसुंधरा = धरती चंद्रधर = शिव चक्रधर = विष्णु जिस भी शब्द के अंत में ज, जा जुड़ा हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा। जलज = कमल सरोज = कमल मनोज = कामदेव अग्रज = बड़ा भाई अनुज = छोटा भाई गिरिजा = पार्वती शैलजा = पार्वती सिंधुजा = लक्ष्मी भूमिजा = सीता अग्रजा = बड़ी बहन अनुजा = छोटी बहन जिस भी शब्द में ईश / पति हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा रजनीश ईश = रजनीश = चन्द्रमा सटी +ईश = सतीश = शिव खग + ईश = खगेश = गरुड़ लंका +ईश = लंकेश = रावण गुडाका + ईश गुडाकेश = शिव अर्जुन रमा + ईश = रमेश = विष्णु कमला + ईश = कमलेश – विष्णु धन + ईश = धकेश = कुबेर वाक् + ईश= वागीश सरस्वती लंकापति = रावण द्वारकापति = कृष्ण उडुपति = चन्द्रमा रजनीपति – चन्द्रमा जिस भी शब्द में (उदर=पेट) जुड़ जाए वहाँ बहुब्रीहि समास होगा लंबा + उदर लंबोदर (गणेश) वृक +उदर = वृकोदर (भीम) काक +उदर = काकोदर (कृष्ण का पर्यायवाची) दाम + उदर = दामोदर (कृष्ण) जिसमे भी ‘द’ (देनेवाले) और ‘दा’ (देनेवाली) प्रत्यय आ जाए वहाँ बहुब्रीहि समास होगा जिसमे ‘कर’ प्रत्यय (करनेवाला) जुड़ा हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा दिनकर – सूर्य दिवाकर – सूर्य भा+कर = भास्कर (सूर्य) रजनीकर – चन्द्रमा प्रकयम = प्रलयंकर – शिव (घ) द्विगु समास: परिभाषा- वह समास जिसका पहला पद यानी पूर्व पद कोई संख्यावाची शब्द तथा उत्तर पद संज्ञा शब्द हो तथा सम्पूर्ण सामासिक पद का कोई अन्य अर्थ अभिव्यक्त नहीं हो उसे द्विगु समास कहते है। जैसे- चौराहा = चार राहों का समाहार ( चौराहा का कोई अन्य अर्थ नहीं निकल रहा है। अतः द्विगु समास है।) द्विगु समास तत्पुरुष समास का ही एक भेद है। अतः इसका उत्तर पद प्रधान होता है। ‘द्विगु’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है। ‘दो गायों का समूह’ अतः द्विगु शब्द में द्विगु समास ही है। त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार चतुष्पदी = चार पदों का समाहार अठन्नी = आठ आनों का समाहार चौराहा = चार राहों का समाहार तिराहा = तीन राहों का समाहार दोराहा = दो राहों का समाहार अष्टधातु = अष्ट धातुओं का समाहार पंचभुज = पाँच भुजाओं का समाहार इकट्ठा = एक स्थान पर स्थित इकलौता = एक ही है जो अठवारा = आठ बार या आठ दिनों तक लगने वाला बाजार शतक = शत संख्यानों का समाहार दशक =दस वर्षों का समाहार शताब्दी = शत अब्दों का (वर्षों) का समाहार सहस्त्राब्दी = सहस्त्र अब्दों का का समाहार दुधारी = दो धारों से युक्त दुमट = दो प्रकार की मिट्टी दोगुना = दो बार गुना दुअन्नी = दो आनों का समाहार दुमंजिला = दो मंजिलों से युक्त नवग्रह = नव ग्रहों का समूह पंसेरी = पाँच सेरों का समाहार दुपट्टा = दो पाट वाला सप्ताह = सप्त अहनों का समाहार दोलड़ा = दो लड़ियों से युक्त सप्तपदी = सप्त पदों का समाहार सतसई = सात सौ पदों का समाहार शप्तसती = शप्त शत पदों का समाहार चौगुना = चार बार गुणा नौगाँव = नौ गाँव का समूह नौलखा = नौ लाख रूपये के मूल्य का षड्गुण = षट् गुणों का समूह षडरस = षट् रसों का समाहार सप्तसिंधु = सप्त सिन्धुओं का समूह सतमासा = सात मासों का समूह पंचमुख = पाँच मुखों का समूह नवरत्न = नौ रत्नों का समूह पंचरात्र = पाँच रात्रियों का समूह नोट: निम्नलिखित शब्दों में द्विगु और बहुब्रीहि दोनों समास है, यदि विकल्प में दोनों हो तो इनके बहुब्रीहि समास ही माना जाएगा। अष्टाध्यायी = पाणिनि की रचना तिरंगा = भारतीय ध्वज नवरात्र = वे नव रात्रियाँ जिनमे दुर्गा की उपासना होती है पंचांग = कलेंडर चौपाया = पशु चारपाई = खाट / खट्वा चौपाई = एक छंद का नाम है चौपाई = एक छंद का नाम पंचतंत्र = विष्णुशर्मा की कहानियाँ त्रिफला = आँवला हरड बहेरा पंचगव्य = गाय का दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र पंचामृत = गाय का दूध, दही, घी, मीठी, शहद पंजाब = भारत का एक राज्य का ध्यान छमाही = मृत्यु के छह माह बाद की जाने वाली क्रिया चतुर्भुज = विष्णु अष्टभुजा = दुर्गा चौमासा = वर्षा के चार माह का प्रधानता चौपाल = गाँव के मध्य के जगह दूकान = भण्डार गृह त्रिगुण = सत, रज, तम त्रिताप = दैहिक, दैविक, भौतिक चतुर्वर्ग = धर्म, अर्थ, काम’ मोक्ष चतुर्वर्ग = ब्राहमण, क्षत्रिय वैश्य शुद्र चुरंगा = अस्थिर चौकन्ना = सावधान (ङ) कर्मधारय समास: परिभाषा- वह समास जिसके पदों में विशेष विशेषण अथवा उपमेय उपमान का संबंध हो तथा संपूर्ण सामासिक पद का कोई अन्य अर्थ भिव्यक्त नहीं हो, उसे कर्मधारय समास कहते है। विशेष्य- जिसकी विशेषता बताई जाए। विशेषण- जो किसी की विशेषता बताए उसे विशेषण कहते है। जैसे- नीलकमल = नीला (विशेषण) कमल (विशेष्य) उपमेय – जिसकी समानता बताई जाए वह उपमेय होगा। उपमान – जिससे समानता बताई जाए वहा उपमान होगा। जैसे – चरणकमल अथार्त ‘कमल रूपी चरण’ यहाँ- कमल ‘उपमान’ है और चरण ‘उपमेय’ है। नोट: कर्मधारय समास तत्पुरुष समास का ही भेद है। अतः इसका उत्तर पद प्रधान होता है। उदाहरण: अधमरा = अध है जो मरा अल्पेछा = अल्प है जो इच्छा कदाचार = कुत्सित है आचार जो कमतोल = काम तोलता है जो कृष्णसर्प = कृष्ण है जो सर्प कुलक्षण = कु है जो लक्षण कालीमिर्च = काली है जो मिर्च खुशबू = खुश (अच्छी) है जो बू (गंध) तलधर = तल में है जो घर गतांक = गत है जो अंक कोमलांगी = कोमल अंगों वाली है जो तीव्रदृष्टि = तीव्र है जो दृष्टि दीर्घजीवी = दीर्घ अवधी तक जीवित रहता है जो नवागंतुक = नव है जो आगतुक परमात्मा = परम है जो आत्मा परमाणु = परम है जो अणु परमायु = परम है जिसकी आयु दुराचार = दूर है जो आचार सुपाच्य = सु है पाच्य जो सुलभ्य = सु है जो लभ्य हीनार्थ = हीन है अर्थ जो बड़ाघर = बड़ा है जो घर शुभ्रवर्ण = शुभ्र है जो वर्ण सुदर्शन = सू है दर्शन जिसके मंदबुद्धि = मंद है बुद्धि जिसके महर्षि = महान है जो ऋषि रक्तकमल = रक्त के समान लाल है जो कमल सज्जन = सत्य है जो जन दुर्जन = दुर् है जो जन बहुमूल्य = बहुत है मूल्य जिसका महाराज = महान है जो राजा महाभोज = महान है जो भोज मीनाक्षी = मीन के सामान है आँख जिसकी श्यामपट = श्याम है जो पट शतपथ = सत्य है जो पथ (च) द्वंद्व समास – जिस समास का दोनों पद प्रधान हो, तथा विग्रह करने पर ‘और’ ‘एवं’ ‘अथवा’ ‘या’ में से किसी एक का लोप हो जाये उसे द्वंद्व समास कहते है। * द्वंद्व समास के समस्त पद में दोनों पद योजक चिह्न से जुड़े रहते हैं। * इसमें दोनों पद प्रधान होते है । * प्रत्येक दो पदों के बीच और, एवं, या, अथवा में से किसी एक का लोप पाया जाता है। * विग्रह करने पर दोनों शब्दों के ‘बीच’ अथवा ‘या’ आदि शब्द लिख दिया जाता है। द्वंद्व समास के तीन उपभेद हैं- इत्येत्तर द्वंद्व समाहार द्वंद्व वैकल्पिक द्वंद्व इत्येत्तर द्वंद्व समास – इत्येत्तर द्वंद्व समास में सभी पद प्रधान होते हैं प्रत्येक दो पदों के बीच ‘और’ का लोप हो जाता है उदहारण: सूर सागर – सूर और सागर ज्ञानविज्ञान – ज्ञान और विज्ञान आगपानी – आग और पानी गुणदोष – गुण और दोष अन्नजल – अन्न और जल आगेपीछे – आगे और पीछे नरनारी – नर और नारी लोटाडोरी – लोटा और डोरी तिरसठ – तीन और साठ शास्त्रास्त्र – शास्त्र और अस्त्र नोट: इतरेतर द्वंद्व समास में ऐसे संख्यावाची शब्दों का प्रयोग होता है। 1 से 10 तथा 10 से भाज्य संख्याओं (10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100) को छोड़कर अन्य समस्त संख्यावाची शब्दों को द्वंद्व समास माना जाता है, क्योंकि इनमे दो संख्याओं का मेल होता है। उदाहरण: पच्चीस – पाँच और बीस इक्यानबे – एक और नब्बे इकतालीस – एक और चालीस तिरसठ – तीन और साठ समाहार द्वंद्व समास- जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हो और दोनों पद बहुवचन में प्रयुक्त हो उसे समाहार द्वंद्व समास कहते है। इसके विग्रह के अंत में आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण: दाल रोटी – दाल, रोटी आदि चाय पानी – चाय, पानी आदि कपड़ा लत्ता – कपड़ा, लत्ता आदि साग पात – साग, पात आदि धन दौलत – धन, दौलत आदि पेड़ पौधे – पेड़, पौधे आदि वैकल्पिक द्वंद्व समास- जिस समास पद में दो विरोधी शब्द का प्रयोग हो और प्रत्येक दो पदों के बीच ‘या’ ‘अथवा’ में से किसी एक का लोप हो जाए, उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। दुगुना में कौन सा समास है?तत्पुरुष समास क्योकिइसक विग्रह होगा दो से गुना।
लीपा पोती में कौन सा समास है?दशानन = बहुव्रीहि समास / द्विगु समास लीपा-पोती = बहुव्रीहि समास / द्वन्द्व समास
दिनोदिन में कौन सा समास है?Dinodin Me Samas. दूधवाला कौन सा समास है?इसमे द्वंद्व समास है।।
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