दूसरे घर का गुरु क्या फल देता है? - doosare ghar ka guru kya phal deta hai?

वैदिक ज्योतिष: जानें कुंडली में देवगुरु बृहस्पति का प्रभाव

दूसरे घर का गुरु क्या फल देता है? - doosare ghar ka guru kya phal deta hai?
भोपालPublished: Apr 10, 2020 12:12:35 am

जानिये क्या कहती है आपकी कुंडली...

दूसरे घर का गुरु क्या फल देता है? - doosare ghar ka guru kya phal deta hai?

Devguru Jupiter effect as per vedic jyotish in your horoscope

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को ‘गुरु’ कहा जाता है। सप्ताह में इसका दिन बृहस्पतिवार माना गया है। इसका रंग पीला व रत्न पुखराज होता है। ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह कुंडली में स्थित 12 भावों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालता है। इन प्रभावों का असर हमारे प्रत्यक्ष जीवन पर पड़ता है। यह एक शुभ ग्रह है, अतः जातकों को इसके शुभ फल प्राप्त होते हैं।

कुंडली के दूसरे भाव में बृहस्पति की महत्ता

दूसरे घर का गुरु क्या फल देता है? - doosare ghar ka guru kya phal deta hai?

कुंडली के दूसरे भाव में गुरू के प्रभाव जानने से पहले हमें, कुंडली के दूसरे भाव और गुरू दोनों के गुण, दोष और स्वभाव को जानना होगा। कुंडली का दूसरा भाव धन स्थान या कुटुंब स्थान के नाम से जाना जाता है। इसका संबंध धन, चल-अचल संपत्ति, कुटुंब, वाणी, वंश, धन संग्रह, रत्न, लाभ-हानि, महत्वाकांक्षा और विरासत संपत्ति जैसे क्षेत्रों से होता है। यदि किसी कुंडली के दूसरे भाव में गुरू मौजूद हो, तो वे कुंडली के दूसरे भाव से मिलने वाले प्रभावों को नियंत्रित करने का कार्य करने लगते हैं, और अपने गुण, स्वभाव के अनुरूप जातक को फल देने लगते हैं।वैदिक ज्योतिष में गुरू ग्रह के लिए जीव, अंगिरा, वाचस्पति, बृहस्पति, सुर गुरू जैसे नामों का उल्लेख मिलता है। गुरू को ग्रहों में प्रधान पद प्राप्त है, वे अन्य ग्रहों की अपेक्षा अधिक विस्तृत एवं भारी है, इसलिए उन्हें गुरू कहा जाता है। गुरू धर्म के कारक हैं, और धार्मिक प्रवृत्तियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं। गुरू जातक को ज्ञान वान, विद्वान, गंभीर, विश्वासपात्र, विनयशील, आदर्शवादी, महत्वाकांक्षी, गुणवान और सदाचारी बनाने का कार्य करते हैं। गुरू के सकारात्मक और लाभदायक प्रभावों के कारण ही कुंडली में गुरू को अमृत के समान माना गया है। कुंडली के दूसरे भाव में गुरू के प्रभावों की बात करें, तो कुंडली के दूसरे भाव में गुरू आर्थिक, वित्तीय, भाग्य या किस्मत, आर्थिक लाभ या हानि और रिश्तों को प्रभावित करने का कार्य कर सकते हैं।

सकारात्मक लक्षण/प्रभाव

कुंडली के दूसरे भाव में गुरू की मौजूदगी जातक को धन व संपत्ति के मामले में भाग्यशाली बनाने का कार्य करती है। गुरू के प्रभाव में जातक संपन्न और समृद्धीशील होते हैं। अन्य लोगों को ऐसे जातकों से जलन और ईर्ष्या हो सकती है। सांसारिक और काम सुख में उनकी रूचि उन्हें अपनी समृद्धि और संपन्नता बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित कर सकती है। उनकी मजबूत आत्म छवि या उनकी आत्म मूल्य की भावना उनके सफलता प्राप्त करने की संभावनाओं को मजबूती देने का कार्य करते हैं।कुंडली के दूसरे भाव में गुरू के प्रभाव में जातक जीवन के लभगभ प्रत्येक क्षेत्र में विस्तार और समृद्धि प्राप्त करता है। लेकिन दूसरे घर में गुरू के प्रभाव से जातक के खर्च भी बढ़ने लगते हैं, और जातक अधिक खर्च करने की संभावना रखता है। ऐसे जातक उन चीजों पर भी पैसा खर्च कर सकते हैं, जिनकी वास्तव में उन्हें कोई खास आवश्यकता नहीं है। आमतौर पर ऐसे जातक पैसे खर्च करने के मामले में बड़े दिल वाले होते हैं। कुंडली के दूसरे स्थान पर गुरू जातक को उदारता और दूर दृष्टि प्रदान करते हैं। ऐसे जातक पूँजी से धन निर्माण में माहिर होते हैं और काफी संपत्ति जोड़ने का कार्य करते हैं। ऐसे जातक न सिर्फ अमीर होते हैं, बल्कि वे अमीर दिखाई भी देते हैं, उनका रहन सहन और तौर तरीके लोगों को प्रभावित करने का कार्य करते हैं। ऐसे जातकों के मित्र और मिलने जुलने वाले लोग भी संपन्न और धनाड्य होते हैं। क्या आपकी कुंडली में भी हैं धन योग? आप इसका पता लगा लगा सकते हैं, अपनी जन्म कुंडली से।

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कुंडली के दूसरे घर में गुरू जातक को सकारात्मक शिष्ट प्रवृत्ति प्रदान करने का कार्य करते है। जिसके कारण जातक अपने आसपास के वातावरण के साथ ही आम जन मानस में भी ख्याति प्राप्त करता है। कुंडली के दूसरे भाव में गुरू जातक को न केवल सकारात्मक शिष्ट स्वभाव प्रदान करते है, बल्कि उन्हें आशावादी बनाने का भी कार्य करते है। ऐसे जातक सकारात्मक सोच, शिष्ट व्यवहार और अपनी आशावादीता को कुशल शब्दों में पिरोकर लोगों तक पहुंचाने का कार्य करते है जिससे उनकी छवि अधिक बेहतर और उनके संबंध मजबूत होते है। इन जातकों का ऐसा व्यवहार इन्हें व्यापार और व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करने का कार्य करता है।

नकारात्मक लक्षण/प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में गुरू को बेहद मंगलकारी ग्रह माना गया है, कुंडली के दूसरे भाव में बैठे गुरू भी कई मायनों में सकारात्मक और लाभकारी गुणों का ही संचार करते हैं। लेकिन कभी-कभी कुंडली में कुछ ऐसी परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है, जिससे गुरू के सकारात्मक प्रभाव भी कुछ विकार उत्पन्न करने का कार्य करने लगते हैं। कुंडली के दूसरे भाव में गुरू से प्रभावित जातक सुख और आराम पसंद होते हैं। ऐसे जातक भौतिकवादी सुख और विलासिता का आनंद लेने के लिए लंबी यात्राएं कर सकते हैं। गुरू ब्राह्मण वर्ण के सत्वगुणी ग्रह हैं, और उनका रस मिष्ठ एवं मधुर है। इसी के साथ उनके सुख-सुविधा और भोगविलास में डूब जाने की भी अधिक संभावना होती है। क्या आपको भी मिल पाएंगे इस साल सारे भौतिक सुख? जानने के लिए प्राप्त करें अपना वार्षिक राशिफल।

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कुंडली के दूसरे घर में गुरू जातक को मीठे-मिष्ठान के प्रति अधिक आकर्षित करने का कार्य करता है। ऐसे जातकों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए, अधिक मीठे व्यंजन खाने से बचना चाहिए। ऐसे जातकों का वजन अधिक और शरीर चौड़ा हो सकता है। शरीर के भारीपन के कारण उन्हें कुछ स्वस्थ्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। लेकिन अपने खाने पीने की कुछ आदतों पर नियंत्रण कर वे अपने स्वास्थ्य और जीवन के अन्य क्षेत्रों में अधिक बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। कुंडली के दूसरे स्थान पर बैठे गुरू जातक को सामान्यतः अधिकांश क्षेत्रों में लाभ देने का कार्य करते हैं, लेकिन उन अवसरों का लाभ उठाने के लिए उनका अधिक सजग और स्वस्थ्य रहना आवश्यक है।

निष्कर्ष

कुंडली के दूसरे भाव में गुरू की मौजूदगी जातक के आर्थिक, वित्तीय, भाग्य या किस्मत, आर्थिक लाभ-हानि और रिश्तों को प्रभावित कर सकती है। कुंडली के दूसरे भाव में गुरू के प्रभाव से जातक संपन्न और समृद्धि प्राप्त करता है। इसी के साथ उन्हें सुख, सुविधा, वैभव और आमोद-प्रमोद में भी आनंद मिलता है। हालांकि कई मामलों में ऐसे जातकों को विलासिता और सुख सुविधा में डूबे हुए भी देखा गया है, लेकिन सही समझ के साथ ऐसी परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। ऐसे जातकों को अपने शरीर और स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की जरूरत होती है। उन्हें अत्यधिक या अस्वास्थ्यकर भोजन से परहेज करने की भी सलाह है।

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स टीम

गुरु 6 भाव में गोचर हो तो क्या होता है?

बृहस्पति धन, ज्ञान और सौभाग्य का कारक होता है। यदि बृहस्पति छठे भाव में गोचर कर रहा है, तो यह आपके पेशेवर जीवन में सफलता प्राप्त करने और व्यक्तिगत जीवन खुशहाली लाने में आपकी मदद कर सकता है।

गुरु नीच का कब होता है?

जन्म कुंडली में गुरु के 10वीं राशि मकर में स्थित होने पर वह नीच का होता है।

गुरु अशुभ कब होता है?

कैसे होता गुरु खराब- * यदि बृहस्पति कुंडली की उच्च राशि के अलावा 2, 5, 9, 12वें भाव में हो तो भी शुभ होता है, लेकिन लोग अपने कर्मों से इसे अशुभ कर लेते हैं। * घर में हवा आने वाले रास्ते यदि खराब हैं तो गुरु भी खराब हो जाएगा। * दक्षिण का द्वार भी ‍गुरु के खराब होने की निशानी है।

गुरु बारहवें भाव में हो तो क्या होता है?

बारहवें भाव में गुरु जातक लोभी और लालची भी होता है। बारहवां घर बृहस्पति और राहु के संयुक्त प्रभाव में होता है जो कि एक दूसरे के शत्रु होते हैं यदि जातक अच्छा आचरण करता है, धार्मिक प्रथाओं को मानता है और सभी के लिए अच्छा चाहता है, तो वह खुशहाल होगा और रात में आरामदायक नींद का आनंद ले पाएगा। जातक अमीर और शक्तिशाली होगा।