देश भक्त कौन था जिस का मजाक उड़ाया गया? - desh bhakt kaun tha jis ka majaak udaaya gaya?

लोकसभा चुनाव के बीच सियासी दल एक दूसरे पर निशाना साधने से नहीं चूक रहे. इसी कड़ी में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी विरोधियों का जमकर मजाक उड़ाते नजर आए. मौका फतेहाबाद में एक चुनावी सभा का था, जिसमें मनोहर लाल खट्टर ने गठबंधन करने वाली पार्टियों पर हमला बोला. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का मजाक उड़ाते हुए खट्टर ने कहा- जिस पार्टी का जो चुनाव चिह्न हो, उसकी माला बनाकर उनके गले में डाल दो. देखें ये वीडियो.

Haryana chief minister Manohar Lal Khattar on Thursday launched a scathing attack on opposition parties forming alliance to dethrone Narendra Modi led BJP government from power in 2019 Lok Sabha elections. While addressing a public gathering in Fatehabad, he also mocked the party symbols of other political parties. Mocking the symbol of Aam Aadmi Party, which is a broom, he said, people should make garland of the party symbol and put around the neck of their party leaders. Watch this video for more details.

(ख) हालदार साहब को लगा कि कैप्टन जो मूर्ति का चश्मा बदलता रहता था, पान वाले ने उसका मजाक उड़ाया था। नेता जी की प्रतिमा देशभक्ति की परिचायक थी। हालदार साहब को यह कतई पसन्द नहीं था कि प्रतिमा से संबंधित किसी चीज का कोई मजाक उड़ाए। वे बार-बार सोचते कि उस कौम का क्या होगा जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिन्दगी सब कुछ देश पर न्योछावर करने वालों पर हँसती है। उन्हें बहुत खराब लगा कि देश भक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।

(ग) दूसरी बार मूर्ति देखने पर हालदार साहब ने देखा कि मूर्ति का चश्मा बदल गया था। साईकिल पर चश्मे बेचने वाला मूर्ति का चश्मा बदल दिया करता था। मोटे फ्रेम वाले चश्मे की जगह तार के फ्रेम वाले चश्मे ने ले ली थी।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [2 × 4 = 8]
(क) ‘बालगोबिन भगत’ पाठ में किन सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है?
(ख) महावीर प्रसार द्विवेदी शिक्षा-प्रणाली में संशोधन की बात क्यों करते हैं?**
(ग) ‘काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक हैं – कथन का क्या आशय है?
(घ) वर्तमान समाज को संस्कृत कहा जा सकता है या ‘सभ्य ? तर्क सहित उत्तर दीजिए ।**
उत्तर:
(क) बालगोबिन भगत पाठ में दर्शाई गई सामाजिक रूढ़ियाँ

  • समाज में स्त्री द्वारा मृतक को आग देने का नियम नहीं था, पर बालगोबिन ने पुत्र के क्रिया कर्म के समय पतोहू द्वारा आग दिलाई। यह उस समय के नियम के विरुद्ध था।
  • उन्होंने पतोहू के भाई को बुलाकर पतोहू के पुनर्विवाह पर जोर दिया।

(ग) काशी में बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक-दूसरे के पूरक हैं। काशी आज भी बिस्मिल्ला खाँ के सुर पर सोती और जागती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि काशी के पास बिस्मिल्ला खाँ जैसा हीरा रहा है जो दो कौमों को एक होने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [5]
हमारें हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।
(क) ‘हारिल की लकरी’ किसे कहा गया है और क्यों? [2]
(ख) तिनहिं लै सौंपौ’ में किसकी ओर क्या संकेत किया गया है? [2]
(ग) गोपियों को योग कैसा लगता है? क्यों? [1]
उत्तर:
(क) गोपियाँ “हारिल की लकरी’ श्रीकृष्ण के लिए कहती हैं। क्योंकि जैसे हारिल पक्षी लकड़ी के आश्रय को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के आश्रय को नहीं छोड़ सकतीं। उन्होंने मन-क्रम-वचन पूरी तरह से श्रीकृष्ण को पकड़ रखा है।

(ख) गोपियाँ उद्धव को कहती हैं कि हम तो पूरी तरह कृष्णमय हो गई हैं और हमें योग की जरूरत नहीं है। हमारा मन भ्रमित नहीं है। इस योग की आवश्यकता तो उनको है। जिनका मन चकरी के समान घूमता रहता है, एक जगह नहीं लगता, इसलिए इस योग को ऐसे लोगों को सौंप दो।

(ग) गोपियाँ कहती हैं कि योग उन्हें कड़वी ककड़ी की तरह लगता है जिसे खाया या निगला नहीं जा सकता है। गोपियाँ यह भी कहती हैं कि वे पूरी तरह कृष्णमय हो गई

प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रत्येक लगभग 20 शब्दों में लिखिए : [2 × 4 = 8]
(क) जयशंकर प्रसाद के जीवन के कौन-से अनुभव उन्हें आत्मकथा लिखने से रोकते हैं ?**
(ख) बादलों की गर्जना का आह्वान कवि क्यों करना चाहता है? ‘उत्साह कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘कन्यादान’ कविता में व्यक्त किन्हीं दो सामाजिक कुरीतियों को उल्लेख कीजिए।
(घ) संगतकार की हिचकती आवाज उसकी विफलता क्यों नहीं
उत्तर:
(ख) बादलों की गर्जना” से तात्पर्य क्रांतिकारी स्वर भरना है। कविता के माध्यम से कवि क्रांति की आवश्यकता को चिन्हित करता है। बादल क्रांति के प्रतीक हैं। यह क्रांति रूपी बादल पीड़ित प्यासे जन की आकांक्षाओं को पूरी करेगा और दूसरी तरफ वही बादल नई कल्पना और नए अंकुर उगाएगा।

(ग) कन्यादान कविता में उल्लेखित कुरीतियाँ

  • बाल विवाह-लड़कियों की शादी उनके सयानी होने से पहले (18 वर्ष की आयु से पहले) कर दी जाती थी।
  • समाज में लड़कियाँ केवल घर की चारदीवारी तक सीमित रहती थीं। उन्हें अपने वेश-भूषा, रूप-सौन्दर्य पर ध्यान न देकर केवल घर के चूल्हे-चौके पर ध्यान देना होता था।

(घ) यद्यपि संगतकार की आवाज कमजोर और काँपती हुई थी, परन्तु वह आवाज की कमी उसकी विफलता नहीं थी। वह प्रयास करता था कि गायक के रूप में उसकी आवाज मुख्य गायक से अधिक महत्त्वपूर्ण न हो जाए। इसलिए यह उसकी विफलता नहीं, मनुष्यता का सूचक है। वह दूसरों को आगे बढ़ाता और स्वयं को पीछे रखता है।

प्रश्न 11.
“आज आपकी रिपोर्ट छाप हूँ तो कल ही अखबार बंद हो जाए” -स्वतंत्रता संग्राम के दौर में समाचार-पत्रों के इस रवैये पर ‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ के आधार पर जीवन-मूल्यों की दृष्टि से लगभग १५० शब्दों में चर्चा कीजिए।” [4]
अथवा
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर बताइए कि विज्ञान के दुरुपयोग से किन मानवीय मूल्यों की क्षति होती हैं ? इसके लिए हम क्या कर सकते हैं ?**

खण्ड “घ”

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं
के आधार पर 200 से 250 शब्दों में निबन्ध लिखिए। .[10]
(क) महानगरीय जीवन

  • विकास की अंधी दौड़
  • संबंधों का ह्रास
  • दिखावा

(ख) पर्वो का बदलता स्वरूप

  • तात्पर्य
  • परंपरागत तरीके
  • बाजार का बढ़ता प्रभाव

(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं

  • समय का महत्त्व
  • समय नियोजन
  • समय आँवाने की हानियाँ

उत्तर:
(क) महानगरीय जीवन
वर्तमान समय में भारत के अनेक प्रमुख नगर महानगरों में परिवर्तित होते जा रहे हैं। एक नई महानगरीय सभ्यता पनपती जा रही है। आज के दौर में विकास की अंधी दौड़ में हर एक इन्सान उसका हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा है। जबकि असलियत यह है कि यह विकास की दौड़ बाहर से देखने पर जितनी लुभावनी लगती है, लोगों को इसमें नौकरी और व्यापार के अवसर दिखाई देते हैं। जिससे उनकी आय उन्हें मोह लेने वाली लगती है। परन्तु जब उन्हें वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। तो उनके सारे सपने बिखर जाते हैं, असलियत में जिन्दगी बहुत कठिनाइयों भरी होती है। महानगरों में रहने की समस्या बहुत ज्यादा है। अच्छे घरों के लिए बहुत किराया देना पड़ता है। झुग्गी-झोंपड़ी पहले तो रहने वाली नहीं होती बल्कि साथ में गन्दगी, स्वच्छता की कमी रहती है। महानगरों में पहुँचकर जिन्दगी की कठिनाइयों को झेलते-झेलते आपसी संबंधों का ह्मस शुरू हो जाता है। रिश्ते चाहे माता-पिता के साथ हों, पति-पत्नी के बीच हों, बच्चों के साथ, रिश्तेदारियों में दोस्ती, आदि में किसी के पास भी वक्त नहीं होता और उनके सम्बन्ध के बीच खटास आने लगती है। इसमें कुछ कारण तो आदमी के रहने की जगह से काम करने की जगह के बीच दूरियों और उसमें लगता समय जो कभी-कभी 12 से 14 घण्टे रोजाना का होता है, बहुत बड़ा हाथ है।

पर इन सबके बावजूद महानगरों की चमक-दमक का आकर्षण गांवों के लोगों को अपनी तरफ खींचता है। महानगरों में खाने-पीने की कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। बढ़ते हुए ट्रांसपोर्ट की वजह से वहाँ का वातावरण बहुत प्रदूषित रहने लगा है। इसलिए न वहाँ शुद्ध हवा मिलती है और न ही शुद्ध जल । महानगरों में मध्यम वर्गीय नौकरी-पेशा लोगों को एक और समस्या का सामना करना पड़ता है, वह है दिखावा या दूसरे शब्दों में आन-बान-शान का दिखावा । घर में, आस-पड़ोस में कोई समारोह हो तो ब्यूटी पार्लर, पहनने वाले एक-एक कपड़े और आभूषण का नया होना एक अनिवार्य अंग बन गया है और अगर घर में या रिश्तेदारी में शादी समारोह हो तो लेन-देन का दिखावा अपने चरम पर पहुँच जातो है। इन सब बातों को सामने रखें तो महानगरीय जिन्दगी ‘ में आराम कम और कठिनाइयाँ ज्यादा हैं।

(ख) पर्वो का बदलता स्वरूप समय के साथ-साथ हमारे सभी पर्व और त्योहारों का स्वरूप बदलता जा रहा है। पहले किसी भी पर्व में लोग पूरे उत्साह से भाग लिया करते थे, मंदिरों में पूरी श्रद्धा से पूजा-पाठ चला करता था। प्रत्येक घर में किसी न किसी रूप में एक मंदिर भी हुआ करता था। परन्तु आधुनिक युग में लोगों के पास समय को अभाव रहने लगा। जो लोग किसी पर्व को मनाते भी हैं उनमें ज्यादातर सिर्फ औपचारिकता दिखाने लग गए हैं। भारत में कई पर्व ऐसे भी हुआ करते थे जिसमें आदमी और औरतें दिन-भर का उपवास रखते थे, परन्तु अब इसमें किसी की कोई रुचि नहीं बची।

पर्वो व त्योहारों के परंपरागत तरीके को हम अगर याद करें, तो त्योहार किसी राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के मुख्य अंग, स्वरूप एवं प्रतीक हुआ करते हैं। उनसे यह जाना जाता है कि कोई राष्ट्र, वहाँ रहने । वाली जातियों, उनकी सभ्यता और संस्कृति कितनी अपनत्वपूर्ण, जीवंत और प्राणवान है। पुराने वक्त में त्योहारों और पर्यों के अवसर पर ये घर-परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्यों को समीप आने, मिल बैठने, एक-दूसरे के सुख-आनंद को साझा बनाने के अवसर होते थे।

पर्वो और त्योहारों के बदलते स्वरूप के लिए आज बाजार का बढ़ता प्रभाव है। किसी भी पर्व को लोकप्रिय बनाने के लिए उससे सम्बन्धित गानों की सीडी छोटे बड़े नये-नये स्टाइल के कपड़े, चुन्नियाँ आदि पहले से मिलनी शुरू हो जाती हैं। बाजार के बदलते और बढ़ते प्रभाव के कारण दिवाली चाइनीज पटाख़ों से भर जाती है।

(ग) बीता समय फिर लौटता नहीं समय यानी वक्त एक ऐसी चीज़ है कि एक बार वो बीत जाये तो फिर नहीं आता और इस बात का मलाल रहता है। कि वह काम समय पर क्यों नहीं किया। विशेषतः आफिस में, समय पर काम न होने से कई बार आर्थिक नुकसान तक हो जाता है। इसलिए सभी को समय के महत्व को समझना जरूरी है। समय वह धन है जिसका सदुपयोग न करने से वह व्यर्थ चला जाता है। हमें समय का महत्त्व तब पता लगता है जब दो मिनट के विलंब के कारण गाड़ी छूट जाती है। जीवन में वही व्यक्ति सफल हो पाते हैं। जो समय का पालन करते हैं। लोगों को अपने समय को नियोजित करने की कला भी आनी चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को एक मीटिंग में जाना है, एक अफसर से अलग मीटिंग है, और शाम को अपनी शादी की सालगिरह की पार्टी भी देनी है, तो इसमें हर एक काम के लिए समय निकालना पड़ेगा।

कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बेकार की बातों में समय को आँवा देते हैं। मनोरंजन के नाम पर भी बहुत समय आँवाया जाता है। बहुत से व्यक्ति समय गॅवाने में जैसे-मोबाईल पर गेम खेलने, बेकार की व्हाट्स ऐप पर बातें लिखने में आनंद का अनुभव करते हैं, परन्तु यह प्रवृत्ति हानिकारक है। समय के ऊपर तुलसीदास ने ठीक ही कहा है
“समय चूकि पुनि का पछताने, का वर्षा जब कृषि सुखाने”

प्रश्न 13.
आपके क्षेत्र के पार्क को कूड़ेदान बना दिया गया था। अब पुलिस की पहल और मदद से पुनः बच्चों के लिए खेल का मैदान बन गया है। अतः आप पुलिस आयुक्त को धन्यवाद पत्र लिखिए। [5]
अथवा
पटाखों से होने वाले प्रदूषण के प्रति ध्यान आकर्षित करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।
उत्तर:
अपनी पता
परीक्षा भवन
क. ख. ग.,
नई दिल्ली-1100XX
सेवा में,
पुलिस आयुक्त
पश्चिमी दिल्ली
दिनांक-18 मई, 20XX
(3) विषय-आभार व्यक्त करने हेतु।
महोदय, हम मदनपुर निवासी इस क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों और आपको धन्यवाद देना चाहते हैं। हम दिल से आभारी रहेंगे। इस क्षेत्र के पार्क में पिछले कुछ वर्षों में कूड़ा फेंक–फेंक कर उसे कूड़ाघर में तब्दील कर दिया था।

परन्तु पुलिस से मीटिंग के बाद, पार्क के पास एक बोर्ड लगवाया गया कि उस क्षेत्र में कूड़ा फेंकना मना है। पुलिस विभाग के एक सब-इंस्पेक्टर की नियुक्ति ने कूड़ा डालने वालों को वहाँ आने से मना कर दिया। फिर आसपास के रिहायशी इलाकों वाले लोगों के साथ पार्क में एक फुटपाथ का निर्माण कर पार्क को एक नया रूप मिला। अब सुबह और शाम को लोग पार्क में घूमने आने लगे हैं और इसका श्रेय पुलिस विभाग को मिलना चाहिए।