Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers. Class 10 Kshitij Chapter 12 Question
Answer HBSE प्रश्न 1. पाठ 12 लखनवी अंदाज के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2. Kshitij Class 10 Chapter 12 Question Answer HBSE प्रश्न 3. Class 10 Ch 12 Hindi Shitish Question Answer HBSE प्रश्न 4. रचना और अभिव्यक्ति- लखनवी अंदाज पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 5. Lakhnavi Andaaz Question Answer HBSE 10th Class प्रश्न 6. Lakhnavi Andaaz Summary HBSE 10th Class प्रश्न 7. भाषा-अध्ययन- लखनवी अंदाज प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 8. पाठेतर सक्रियता ‘किबला शौक फरमाएँ,’ ‘आदाब-अर्ज…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन
शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए। ‘खीरा… मेदे पर बोझ डाल देता है। क्या वास्तव में खीरा अपच करता है? किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए। खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा कीजिए। पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी’ ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढकर पढ़िए और संभव हो तो फिल्म भी देखिए। HBSE 10th Class Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answersविषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर Lakhnavi Andaaz Class 10 Solutions HBSE प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. अति लघुत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न
7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. लखनवी अंदाज़ गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (1) गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा,
हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों। प्रश्न- (ख) लेखक यह सोचकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा था कि यह डिब्बा बिल्कुल खाली होगा। उसमें कोई यात्री नहीं होगा। वह वहाँ बैठकर अपनी इच्छानुसार बाहर के दृश्य देख सकेगा और चिंतन-मनन कर सकेगा। (ग) लेखक के अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा बिल्कुल खाली नहीं था. अथवा डिब्बे का वातावरण बिल्कुल निर्जन नहीं था क्योंकि उसमें पहले से ही एक नवाबी स्वभाव वाला व्यक्ति बैठा हुआ था। इसलिए लेखक के लिए वहाँ बैठकर नई कहानी के विषय में सोचना संभव न हो सका। (घ) गाड़ी के डिब्बे की बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का एक सफेदपोश सज्ज़न बड़ी सुविधा से पालथी मारकर बैठा हुआ था। (ङ) लेखक जब गाड़ी में आया तो उसने वहाँ एक लखनवी नवाबी किस्म के व्यक्ति को अकेले बैठे देखा। उसे देखकर लेखक ने कल्पना की कि हो सकता है कि यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हो या फिर खीरे जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हो। (च) लेखक और पहले से बैठे व्यक्ति ने एक-दूसरे के प्रति अनजान, बेगानेपन और अवांछितों जैसा व्यवहार किया। मानो दोनों एक-दूसरे को अपने रास्ते में बाधा समझ रहे हों। पहले नवाबी स्वभाव वाले व्यक्ति ने लेखक की ओर से मुँह फेरा तो फिर उसने भी आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु उसकी ओर से ध्यान हटा लिया। इस प्रकार दोनों का एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं रहा। (छ) प्रस्तुत वाक्य के माध्यम को लेखक ने नवाबी स्वभाव वाले की विचित्रता को अभिव्यक्त किया है। वे स्वयं को बहुत ही नाजुक-मिज़ाज एवं सलीकेदार मनुष्य समझते हैं और दूसरों को हीन भाव से देखते हैं। उनकी ये विशेषताएँ कुछ अधिक बढ़ी-चढ़ी हुई होती हैं। वे अपने-आपको वास्तविकता से अधिक दिखाने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों की इस विचित्रता को दिखाने के लिए ‘नस्ल’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। मानो ये इंसान की नस्ल के न होकर अन्य किसी प्रजाति के लोग हों। (ज) पहले बैठे हुए सज्जन के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे हुए थे। (झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ में से लिया गया है। इसके रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। यह वर्ग दिखावटी शैली का आदी है तथा वास्तविकता से बेखबर रहता है। आशय/व्याख्या-लेखक को पास के स्टेशन तक की यात्रा करनी थी। इसलिए वह टिकट खरीदकर सेंकड क्लास के एक छोटे से डिब्बे में दौड़कर चढ़ गया। लेखक का अनुमान था कि डिब्बा खाली होगा, किंतु ऐसा नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का व्यक्ति बड़े आराम से बैठा हुआ था। उसने अपने सामने दो कच्चे खीरे तौलिए पर रखे हुए थे। लेखक के एकाएक डिब्बे में आ जाने से उस भद्रपुरुष की आँखों में एकांत चिंतन में बाधा का असंतोष स्पष्ट देखा जा सकता था। लेखक का अनुमान था कि शायद यह व्यक्ति भी कहानी लिखने की सूझ की चिंता में हो अथवा खीरे जैसी सस्ती वस्तु का शौक करते हुए देखे जाने के संकोच में हो। नवाब साहब ने लेखक की संगति करने की इच्छा व्यक्त नहीं की। लेखक ने भी आत्मसम्मान की रक्षा हेतु उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। कहने का भाव है कि दोनों ने एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया। (2) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे।… अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ? । – [पृष्ठ 78] प्रश्न- (ख) लेखक की पुरानी आदत थी कि जब वह अकेला होता तो तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगता था। लेखक होने के कारण वह कल्पना के आधार पर अपनी रचनाओं का निर्माण करता था। खाली समय में वह यही सोचता रहता था कि कौन-सी रचना लिखी जाए और उसका रूप-आकार कैसा होगा। (ग) लेखक ने जब गाड़ी के डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ नवाब साहब को देखकर सोचा होगा कि शायद ये इस डिब्बे में अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। उन्होंने अंदाज़ा लगाया होगा कि सेकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा। इसलिए उन्होंने किराया बचाने के लिए भी सेकंड क्लास का टिकट खरीदा होगा। किंतु अब वे नहीं चाहते कि कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में यात्रा करते हुए देखे। वे इसे अपनी तौहीन समझते होंगे। (घ) लेखक के मन में नवाबों के विषय में धारणा बन चुकी थीं कि ये नवाब अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं और सदा अपनी आन-शान के विषय में बढ़ा-चढ़ाकर बातें करने में लगे रहते हैं। वे स्वयं को ऊँचे दर्जे के प्राणी मानते हैं और ऊँचे दर्जे में यात्रा करके अपने आप को ऊँचे सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। यदि कभी सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करते देख लिए जाएँ तो अपनी तौहीन समझने लगते हैं। इसलिए ऐसे अवसर पर वे नज़रें चुराते फिरते हैं। (ङ) निश्चय ही लेखक स्वयं सेकंड क्लास के दर्जे में यात्रा करता है और इसी दर्जे में नवाब को बैठे देखकर उसमें कमियाँ निकालता है। वह अपने विषय में कहता है कि उसने एकांत में बैठकर नई कहानी के विषय में चिंतन करने हेतु ही ऐसा किया। यद्यपि नवाब ने भी किसी ऐसे ही कारण से मँझोले दर्जे में यात्रा करने का निश्चय किया होगा। किंतु लेखक की धारणा बन चुकी है कि नवाब हमेशा ही अपनी शान बघारते रहते हैं। अतः लेखक पूर्व धारणा से ग्रस्त होने के कारण ऐसा कहता है। (च) लेखक के अनुसार नवाब साहब ने अकेले में सफर करने के लिए, खीरे खाने के लिए खरीदे होंगे। किंतु अब खीरे इसलिए नहीं खा रहे होंगे कि कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें खीरे जैसी सामान्य वस्तु खाते देख रहा है। इससे उनकी तौहीन होगी। (छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘लखनवी अंदाज़’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में उन्होंने जहाँ एक ओर सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है वहीं दूसरी ओर लेखकों की कल्पनाशीलता को भी उजागर किया है। आशय/व्याख्या इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि लेखक कल्पनाशील एवं एकांतप्रिय होते हैं। वे आसपास के जीवन को गहराई से देखते हैं तथा मानव-मनोविज्ञान में भी रुचि रखते हैं। लेखक सामने बैठे नवाब साहब की असुविधा एवं संकोच के कारण का अनुमान लगाने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले में यात्रा करने के विचार से ही सेकंड क्लास की टिकट खरीदी हो क्योंकि आम लोग सेकंड क्लास में सफर नहीं करते। अब उन्हें यह बात भी अच्छी नहीं लगी होगी कि नगर का शिक्षित व्यक्ति उन्हें मध्य श्रेणी के दर्जे में सफर करते देखे। लेखक का अनुमान है कि उसने समय काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे, किंतु अब उन्हें किसी शिक्षित व्यक्ति के सामने खीरे खाने में संकोच हो रहा हो। कहने का भाव है कि नवाब साहब अपने-आपको अमीर व्यक्ति दिखाने का प्रयास कर रहे थे, जबकि वास्तव में वे थे नहीं। खीरा एक अति साधारण फल है। लेखक के सामने खीरा खाने से नवाब साहब की हेठी होती थी। इसलिए वह खीरे को कैसे खा सकता था। (3) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सँघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का बूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए। [पृष्ठ 79-80] प्रश्न- (ख) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों की ओर सतृष्ण नज़रों से देखा मानो वह खीरा खाने के लिए बहुत ही उतावले हों। (ग) नवाब साहब ने खिड़की से बाहर देखकर दीर्घ साँस इसलिए भरी थी क्योंकि वे चाहकर भी खीरा नहीं खा पा रहे थे। यही कारण था कि उन्हें खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकना पड़ा था। उनकी लंबी साँस ही उनकी खीरे को खाने की चाह को भी व्यक्त कर रही थी। (घ) नवाब साहब खीरे के स्वाद के आनंद में डूबे हुए थे, उनकी खुशबू से आनंदित होकर उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली थीं। (ङ) नवाब साहब खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर यह दर्शाना चाहते थे कि वे अब भी वही पुराने नवाब हैं। उनके शौक शाही हैं। उनमें किसी प्रकार का अंतर नहीं आया है। (च) नवाब साहब ने खीरे की कटी हुई फाँक को उठाया, अपनी ललचाई हुई दृष्टि से उन्हें अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद फाँक को भली-भाँति सूंघा। उन्हें ऐसा करने से बहुत आनंद प्राप्त हुआ। सूंघने के पश्चात् उन्हें खिड़की के बाहर फेंक दिया। (छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं श्री यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने सामंती वर्ग की दिखावा करने की आदत का व्यंग्यपूर्ण उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि नवाब साहब किस प्रकार अपनी नवाबी शान, खानदानी तहज़ीब, लखनवी अंदाज और नज़ाकत प्रकट करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आम व्यक्ति की तरह खीरा नहीं खाया, अपितु उसे सूंघ कर ही पेट भर लिया। आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि नवाब साहब ने बहुत ललचाई हुई आँखों से नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की चमकती हुई फाँकों को देखा। उन्होंने खिड़की की ओर देखकर एक लंबी साँस ली। इस प्रकार खीरे को देखकर लंबी साँस भरना नवाब साहब की विवशता को दर्शाता है। उन्होंने फाँक को हाथ में उठाया और सूंघा। स्वाद के आनंद का दिखावा करने के लिए पलकें बंद कर ली, किंतु मुँह में भर आए पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। कहने का भाव है कि भले ही नवाब साहब खीरा न खाने का ढोंग कर रहे थे, किंतु वास्तविकता तो यह थी कि खीरे को देखकर उसे खाने के लिए उनका मन ललचा रहा था। तब नवाब साहब ने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस प्रकार नवाब साहब ने सभी फाँकों को नाक के पास ले जाकर केवल सूंघकर उसका रसास्वादन करके उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दिया। कहने का भाव है कि नवाब साहब को फाँकों को इसलिए फैंकना पड़ा था क्योंकि वे चाहकर भी दूसरे व्यक्ति के सामने खीरे जैसी साधारण वस्तु नहीं खाना चाहते थे। उनके द्वारा ली गई लंबी साँस ही उनकी खीरा खाने की चाह को व्यक्त कर रही थी। (4) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफासत और नज़ाकत! प्रश्न- (ख) नवाब साहब को खीरे खाने की तैयारी में खीरे को धोने, साफ करने, सिरे काटकर मलने, छीलने, फाँके काटने, नमकमिर्च छिड़कने आदि कार्य करने और चाहकर भी उन्हें खा नहीं पाने के कारण थक गए थे। (ग) नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट
के नीचे से पानी का लोटा निकालकर खीरों को खिड़की के बाहर धोया और तौलिए से साफ किया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिरों को काटा (घ) नवाब साहब की जीवन-शैली देखकर लेखक ने मन-ही-मन सोचा कि केवल स्वाद और सुगंध की कल्पना से उनका पेट कैसे भरता होगा? जब खीरा सूंघकर फेंक दिया तो पेट की तीव्र भूख कैसे शांत होगी। ऐसा करने से भूख का शांत होना तो असंभव ही है। (ङ) लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के प्रयोग की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा था। वे किस प्रकार अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता तथा कोमलता का दिखावा करते हुए खीरे का रसास्वादन मात्र सूंघकर करते हैं। केवल अपनी शान-बान बघारने के लिए वे ऐसा क्यों करते हैं? वे सहज जीवन में शर्म अनुभव क्यों करते हैं। (च) नवाब साहब ने डकार लेकर यह बताना चाहा है कि उनका पेट सुगंध और कल्पना से ही भर गया है। साथ ही यह भी दिखाना चाहते हैं कि वे ऊँचे, श्रेष्ठ और सूक्ष्म स्वादप्रिय व्यक्ति हैं। (छ) नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताते हुए कहा कि खीरा होता तो बहुत ही स्वादिष्ट है, किंतु वह आसानी से पचता नहीं। इससे मेदे पर बोझा पड़ता है। इसलिए वे खीरा नहीं खाते। (ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से उद्धृत है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस गद्यांश में लेखक ने नवाबों के खीरा खाने की शैली अथवा केवल सूंघकर या कल्पना से पेट भरने के दिखावे पर कटाक्ष किया है। यहाँ लेखक ने नवाब द्वारा खीरा न खाने के बहाने को भी उजागर किया है। आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी और उसके प्रयोग से थककर लेट गए। लेखक को सम्मान में सिर झुकाना पड़ा कि यह है उनकी पारिवारिक शिष्टता, स्वच्छता और नाजुक मिज़ाजी अर्थात् कोमलता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने खीरा काटने व खाने में अपनी नवाबी शान-शौकतं को बड़ी सफाई से दिखाया। लेखक बताता है कि वह भली-भाँति देख रहा था कि खीरे को प्रयोग करने के इस ढंग को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, बढ़िया अथवा अमूर्त ढंग अवश्य कहा जा सकता है, किंतु क्या खीरा खाने के ऐसे ढंग से पेट की तृप्ति भी हो सकती है अर्थात् क्या खीरा सूंघने मात्र से पेट भर सकता है। लेखक को नवाब साहब द्वारा ली गई डकार का शब्द सुनाई दिया। इससे अनुमान लगाया जा सकता था कि वास्तव में ही नवाब साहब का पेट भर गया होगा। नवाब साहब ने डकार लेने के बाद लेखक की ओर देखकर कहा कि यह खीरा भी स्वादिष्ट होता है, किंतु होता बहुत भारी है। अभागा मेदे पर बोझ डाल देता है, अर्थात् जल्दी से हज़्म नहीं होता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने डकार मारने से यह सिद्ध करना चाहा है कि बड़े लोग साधारण तरीके से नहीं खाते। उनके अपने ही अंदाज होते हैं। लखनवी अंदाज़ Summary in Hindiलखनवी अंदाज़ लेखक-परिचय प्रश्न- कॉलेज के विद्यार्थी जीवन में ही ये क्रांतिकारी बन गए। भगतसिंह द्वारा सार्जेंट सांडर्स को गोली मारना, दिल्ली असेम्बली पर बम फेंकना तथा लाहौर में बम फैक्टरी पकड़े जाना आदि इन सभी षड्यंत्रों में उनका भी हाथ था। बाद में समाजवादी प्रजातंत्र सेना के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद के इलाहाबाद में, अंग्रेजों की गोली का शिकार हो जाने पर ये इस सेना के कमांडर नियुक्त हुए। 23 फरवरी, 1932 को अंग्रेजों से लड़ते हुए ये गिरफ्तार हो गए। इन्हें चौदह वर्ष की सज़ा हो गई। जेल में ही इन्होंने विश्व की अनेक भाषाओं; जैसे फ्रेंच, इटालियन, बांग्ला आदि का अध्ययन किया। जेल में ही इन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियाँ लिखीं। सन 1936 में जेल में ही इनका विवाह प्रकाशवती कपूर से हुआ। इनकी तरह वे भी क्रांतिकारी दल की सदस्या थीं। उनका झुकाव मार्क्सवादी चिंतन की ओर अधिक हुआ। उनकी कहानी ‘मक्रील’ के द्वारा उन्हें बहुत यश मिला। उनकी यह कहानी ‘भ्रमर’ नामक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी। उन्होंने हिंदी साहित्य की सेवा साहित्यकार और प्रकाशक दोनों रूपों में की। 26 दिसंबर, 1976 को उनकी मृत्यु हो गई। 2. प्रमुख रचनाएँ-यशपाल ने अनेक रचनाओं का निर्माण किया, उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं- ..
3. भाषा-शैली-भाषा के बारे में यशपाल जी का बड़ा ही उदार दृष्टिकोण रहा है। उन्होंने उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों से कभी परहेज़ नहीं किया। ‘लखनवी अंदाज’ कहानी में जहाँ एक ओर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, वहाँ दूसरी ओर उर्दू एवं सामान्य बोलचाल के शब्दों का भी प्रयोग है। इस कहानी की भाषा स्थान, काल तथा चरित्र की प्रकृति के अनुसार गठित हुई है। इसका कारण यह है कि उन्हें न तो संस्कृत के शब्दों से अधिक प्रेम था और न ही अंग्रेज़ी, उर्दू शब्दों से परहेज़। वे भाषा को अभिव्यक्ति का साधन मानते थे। अतः उन्होंने इस कहानी में भाषा का सरल, सहज एवं स्वाभाविक रूप में प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संवादात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया है। कुल मिलाकर लेखक ने सीधी-सादी और सामान्य हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है। प्रस्तुत कहानी में उर्दू मिश्रित हिंदी का प्रयोग किया गया है। लखनवी अंदाज़ कहानी का सार प्रश्न- लेखक को पास के स्टेशन तक ही यात्रा करनी थी। यद्यपि सेकंड क्लास में पैसे अधिक लगते थे। फिर भी सोचा कि नई कहानी के बारे में सोचने का और खिड़की से बाहर दृश्य देखने का अवसर भी मिल जाएगा। लेखक यही सोचकर सेकंड क्लास का टिकट लेकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। वहाँ पहले से ही एक सज्जन बैठे थे। उनका पहनावा लखनवी नवाबों जैसा था। वे सीट पर पालथी मारकर बैठे हुए थे। उनके सामने तौलिए पर दो ताज़ा-चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक के आने से उन्हें कुछ विघ्न अनुभव हुआ, किंतु लेखक ने इसकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। लेखक नवाब के विषय में अनुमान लगाने लगा कि उसे लेखक का आना अच्छा क्यों नहीं लगा होगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। किंतु लेखक ने इंकार कर दिया। नवाब ने दो खीरों को धोया, तौलिए से साफ किया। खीरों को चाकू से सिरों से काटकर उनके झाग निकाले और बहुत सलीके के साथ छीलकर काटा और उन पर नमक-मिर्च छिड़का। नवाब साहब का मुख देखकर ऐसा लगता था कि खीरे की फाँकें देखकर उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट को देखकर लेखक की खीरे खाने की इच्छा हो रही थी, किंतु लेखक एक बार इंकार कर चुका था, इसलिए अब नवाब द्वारा पुनः पूछे जाने पर आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु इंकार करना पड़ा। नवाब साहब भी खीरे की फाँकों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। उन्होंने खीरे की एक-एक फाँक उठाई, उन्हें सूंघा और खिड़की के बाहर फेंक दिया। बाद में नवाब ने लेखक की ओर देखा ऐसा लग रहा था जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का एक अनोखा ढंग है। लेखक मन-ही-मन सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब बोले कि खीरा खाने में बहुत अच्छा लगता है, किंतु अपच होने के कारण मेदे पर भारी पड़ता है। लेखक ने सोचा कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है तो बिना घटना, पात्र और विचार के नई कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती। कठिन शब्दों के अर्थ (पृष्ठ-78) मुफस्सिल = केंद्रीय स्थान। पैसेंजर ट्रेन = यात्री गाड़ी। उतावली = जल्दी में। फूंकार करना = तेज़ आवाज़ करना। दाम = कीमत। अनुमान = अंदाज़ा। प्रतिकूल = उल्टा। निर्जन = एकांत, खाली। बर्थ = रेल के डिब्बे में बैठने की सीट। सफेदपोश = भला व्यक्ति। नवाबी नस्ल = नवाबों के स्वभाव वाला। सुविधा = आराम। सहसा = अचानक। चिंतन = विचार करना। विघ्न = बाधा। असंतोष = संतोष न होना। अपदार्थ वस्तु = तुच्छ वस्तु। आँखें चुराना = नज़रें बचाना। असुविधा = जहाँ सुविधा न हो। किफायत = बचत। संगति = साथ। संकोच = शर्म। गवारा न होना = सहन न होना। वक्त काटना = समय व्यतीत करना। गौर करना = ध्यान देना। आदाब-अर्जु = स्वागत या अभिवादन की एक विधि। शौक फरमाना = आनंद लेना। भाँप लेना = जान लेना, समझ लेना। गुमान = भ्रम। हरकत = गति, कार्य। लथेड़ लेना = सम्मिलित करना। किबला = सम्मानपूर्ण संबोधन। (पृष्ठ-79) गोदकर = चुभाकर। एहतियात = सावधानी। हाज़िर = उपस्थित। करीने से = अच्छे ढंग से। सुर्जी = लाली। बुरकना = छिड़कना। स्फुरण = हिलना। भाव-भंगिमा = चेहरे पर उभरे हुए भाव। रईस = अमीर। असलियत = वास्तविकता। प्लावित होना = भर आना। पनियाती = रस से युक्त। मुँह में पानी आना = ललचाना। महसूस होना = अनुभव होना। मेदा = पाचन शक्ति। सतृष्ण = प्यास। दीर्घ निश्वास = लंबी साँस । पलकें मूंदना = आँखें बंद करना। (पृष्ठ-80) रसास्वादन = रस का स्वाद लेना। गर्व = अभिमान। गुलाबी आँखें = अभिमान से भरी नज़रें। तसलीम = सम्मान। सूक्ष्म = बारीक। नफीस = बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट = अमूर्त, जिसका स्थूल आकार न हो। नज़ाकत = कोमलता। उदर = पेट। नामुराद = अभागा। ज्ञान चक्षु = ज्ञान रूपी नेत्र। सकील = भारी। अपनी आदत के अनुसार नवाब साहब के विषय में क्या क्या सोचने लगे?लेखक-अपनी आदत के अनुसार नवाब साहब के विषय में क्या सोचने लगा ? उत्तरः कल्पना करने की आदत, नवाब साहब असुविधा और संकोच का कारण खोजने लगे। किफ़ायत के लिये सेकंड क्लास का टिकट, समय-काटने के लिये खीरे, खरीदना।
लेखक ने नवाब साहब के बारे में क्या सोचा?लेखक के अचानक डिब्बे में कूद पड़ने से नवाब-साहब की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न पड़ जाने का असंतोष दिखाई दिया तथा लेखक के प्रति नवाब साहब ने संगति के लिए कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया। इससे लेखक को स्वयं के प्रति नवाब साहब की उदासीनता का आभास हुआ।
लेखक के अनुसार नवाबों की प्रमुख विशेषता क्या है?➲ लेखक के अनुसार नवाबों की प्रमुख विशेषता स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ समझना है। ✎... 'लखनवी अंदाज' पाठ में लेखक ने नवाबों की विशेषता के बारे में बताया है कि नवाब लोग अपनी नवाबी ठसक से भरे रहते हैं।
लेखक कनखियों से देखकर क्या सोच रहे थे?हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से बच सकने के खयाल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं। नवाब साहब ने फिर एक बार हमारी ओर देख लिया, 'वल्लाह, शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है! ' दिया, 'शुक्रिया, इस वक्त तलब महसूस नहीं हो रही, मेदा भी ज़रा कमज़ोर है, किबला शौक फरमाएँ ।
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