Show गरीबी रेखा: नए आंकड़े और एक कदम आगे20 मार्च 2012 इमेज स्रोत, AFP इमेज कैप्शन, आंकड़ों के मुताबिक भारत की आबादी का 37 फीसदी हिस्सा ग़रीबी रेखा से नीचे है. सोमवार को योजना आयोग की ओर से जारी पिछले पांच साल के तुलनात्मक आंकड़ें कहते हैं कि 2004-05 से लेकर 2009-10 के दौरान देश में गरीबी 7 फीसदी घटी है और गरीबी रेखा अब 32 रुपये प्रतिदिन से घटकर 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन हो गई है. योजना आयोग की ओर से सोमवार को जारी गरीबी के आंकड़े एक बार फिर उस बहस को छेड़ सकते हैं जिसका दारोमदार इस बात पर है कि भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में गरीबी रेखा की परिभाषा क्या हो. सोमवार को जारी योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है. यानि अब शहर में 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन और गांवों में 22 रुपये 42 पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता. नए फार्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रुपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रुपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है. इससे एक बार फिर उस विवाद को हवा मिल सकती है जो योजना आयोग द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर किए गए हलफनामे के बाद शुरू हुआ था. इसमें आयोग ने 2004-05 में गरीबी रेखा 32 रुपये प्रतिदिन तय किए जाने का उल्लेख किया था. इसके बाद भारत में खाद्य सुरक्षा अधिकारों को लेकर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने योजना आयोग के प्रमुख मोंटेक सिंह अहलूवालिया को चुनौती दी थी कि वो अपने बयान पर अमल करते हुए ख़ुद 32 रुपए में एक दिन का ख़र्च चला कर दिखाएं. 'मकसद ग़रीबों की संख्या को घटाना'विश्लेषकों का कहना है कि योजना आयोग की ओर से निर्धारित किए गए ये आंकड़े भ्रामक हैं और ऐसा लगता है कि आयोग का मक़सद ग़रीबों की संख्या को घटाना है ताकि कम लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का फ़ायदा देना पड़े. भारत में ग़रीबों की संख्या पर विभिन्न अनुमान हैं. आधिकारिक आंकड़ों की मानें, तो भारत की 37 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है. जबकि एक दूसरे अनुमान के मुताबिक़ ये आंकड़ा 77 प्रतिशत हो सकता है. भारत में महंगाई दर में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. कई विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे में मासिक कमाई पर ग़रीबी रेखा के आंकड़ें तय करना जायज़ नहीं है. साल 2011 मई में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि ग़रीबी से लड़ने के लिए भारत सरकार के प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो पा रहं हैं. रिपोर्ट में कहा गया था कि भ्रष्टाचार और प्रभावहीन प्रबंधन की वजह से ग़रीबों के लिए बनी सरकारी योजनाएं सफल नहीं हो पाई हैं. भारत में वापस लौटी सामूहिक गरीबीदुनिया में सबसे तेजी से गरीबी कम करने वाले भारत में 45 साल के बाद एक साल में सबसे ज्यादा गरीब बढ़े On: Wednesday 07 April 2021 2020 में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबों की तादाद बढ़ाने वाले देश के तौर पर भारत का नाम दर्ज हो रहा है। फोटो: विकास चौधरीकोरोना महामारी भारत में ऐसे समय आई, जब देश में एक दशक में सबसे कम आर्थिक वृद्धि दर्ज की गई थी। सुस्त अर्थव्यवस्था ने असंगत रूप से ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यादा असर डाला, जहां देश के बहुसंख्यक उपभोक्ता और गरीब रहते हैं। यहां तक कि बिना किसी आधिकारिक आंकड़े के हम यह मान सकते हैं कि गांवों में एक साल में गरीबी बढ़ी है। पिछले साल तक बेरोजगारी बढ़ रही थी, उपयोग की जाने वाली चीजों पर खर्चा कम हो रहा था, और जनता के लिए किया जाने वाला विकास कार्य स्थिर था। यही तीनों कारक एक साथ यह दर्शाते हैं कि कोई अर्थव्यवस्था कितनी बेहतर है। अब 2021 पर आते हैं, गांवों में रहने वाले ज्यादातर असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले और गरीब हैं। पिछले एक साल से वे अनियमित काम पा रहे हैं। कठिन हालात में गुजर बसर करने के उनके किस्से अब सामने भी आ रहे हैं। लोगों ने खाने में कटौती करनी शुरु कर दी है। राशन के दाम बढ़ने से लोगों ने दाल खाना बंद कर दिया। लोगों को रोजगार देने वाली मनरेगा जैसी योजना उनके काम की मांग को पूरा नहीं कर पा रही। तमाम लोग अपनी छोटी सी जमा पूंजी पर गुजारा कर रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर के तेज होने के चलते पूरी तरह निराशा के हालात बन रहे हैं। कोई यह दलील दे सकता है कि अर्थव्यवस्था का बुरा दौर बीत चुका है और हाशिये के लोगों के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं। सवाल यह है कि इसका नतीजा क्या रहा ? विश्व बैंक के आंकडों के आधार पर प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि कोरोना के बाद की मंदी के चलते देश में प्रतिदिन दो डालर या उससे कम कमाने वाले लोगों की तादाद महज पिछले एक साल में छह करोड़ से बढ़कर 13 करोड़, चालीस हजार यानी दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। इसका साफ संकेत है कि भारत 45 साल बाद एक बार फिर ‘सामूहिक तौर पर गरीब देश’ बनने की ओर बढ़ रहा है। इसके साथ ही 1970 के बाद से गरीबी हटाने की ओर बढ़ रही देश की निर्बाध यात्रा भी बाधित हो चुकी है। पिछली बार आजादी के बाद के पहले 25 सालों में गरीबी में बढ़त दर्ज की गई थी। तब, 1951 से 1954 के दौर में गरीबों की आबादी कुल आबादी के 47 फीसद से बढ़कर 56 फीसद हो गई थी। हाल के सालों में भारत ऐसे देश के तौर पर उभरा था, जहां गरीबी कम करने की दर सबसे ज्यादा थी। 2019 के गरीबी के वैश्विक बहुआयामी संकेतकों के मुताबिक, देश में 2006 से 2016 के बीच करीब 27 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर निकाला गया। इसके उलट 2020 में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबों की तादाद बढ़ाने वाले देश के तौर पर भारत का नाम दर्ज हो रहा है। देश में 2011 के बाद गरीबों की गणना नहीं हुई है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के हिसाब से 2019 में देश में करीब 36 करोड़, 40 लाख गरीब थे, जो कुल आबादी का 28 फीसद है। कोरोना के कारण बढ़े गरीबों की तादाद इन गरीबों में जुड़ेगी। दूसरी ओर, शहरी क्षे़त्रों में रहने वाले लाखों लोग भी गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुमान के मुताबिक, मध्यम वर्ग सिकुड़ कर एक तिहाई रह गया है। कुल मिलाकर चाहे पूरी आबादी के बात करें या देश को भौगोलिक खंडों में बांटकर देखें, देश में करोड़ों लोग या तो गरीब हो चुके हैं या गरीब होने की कगार पर हैं। क्या यह एक अस्थायी स्थिति है ? सामान्य धारणा यह है कि आर्थिक प्रगति होने पर तमाम लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ जाएंगे। लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे होगा ? लोगों ने खर्च कम कर दिया है या वे खर्च करने के लायक ही नहीं बचे हैं। उन्होंने अपनी सारी बचत गंवा दी है, जिससे भविष्य में भी उनके खर्च करने की क्षमता कम हो चुकी है। सरकार भी इस त्रासदी के दौर में नापतौल कर ही लोगों को राहत दे रही है। इसका मतलब है कि यह आर्थिक स्थिति फिलहाल बनी रहेगी। महामारी की तरह इससे निकलने का रास्ता भी अभी तय नहीं है। गरीबी का आकलन कौन करता है?ग़रीबी रेखा निर्धारण से जुडी समितियां
इसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमश: एक वयस्क के लिए 2,400 और 2,100 कैलोरी की न्यूनतम दैनिक ज़रुरत को आधार बनाया गया था। नीति आयोग भारत सरकार की आधिकारिक एजेंसी है, जो राज्यों में और पूरे देश के लिए समग्र रूप से गरीबी रेखा से नीचे के लोगों का आकलन करने का काम करती है।
गरीबी के आंकड़े कौन जारी करता है?सरकार के प्रयास:
नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक' (Multidimensional Poverty Index- MPI) जारी किया जाता है।
भारत में गरीबी का आकलन कौन सा?गरीबी रेखा के आकलन का आधार
यह समिति ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एक वयस्क के लिए क्रमशः 2400 और 2100 कैलोरी की न्यूनतम दैनिक आवश्यकता के आधार पर गरीबी रेखा निर्धारित करती है।
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कौन करता है?भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण कौन करता है? योजना आयोग (अब नीति आयोग) हर वर्ष के लिए समय-समय पर गरीबी रेखा और गरीबी अनुपात का सर्वेक्षण करता है जिसके सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) बड़े पैमाने पर घरेलू उपभोक्ता व्यय के सैंपल सर्वे लेकर कार्यान्वित करता है।
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