भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट की जीवनी, गणित में योगदान और सिद्धांत | Indian Mathematician Aryabhatt Histoy, Biography, contribution to mathematics in Hindi Show
आर्यभट्ट प्राचीन भारत के सबसे महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री थे. विज्ञान और गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है. उनके द्वारा की गयी खोज आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. पुरे विश्व में ‘कॉपरनिकस’ से लगभग 1 हज़ार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और वह सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती हैं.
आर्यभट्ट का जन्म और शिक्षा (Aryabhatta Birth and Education)आर्यभट्ट के जन्म का वर्ष तो सत्यापित हैं परन्तु उनके जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों की आज भी अलग अलग मत हैं. इनके जन्म स्थान के कोई प्रमाणिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं. आर्यभट्ट का जन्म ई.स. 476 व शक संवत् 398 में अश्मक, महाराष्ट्र में हुआ था. परन्तु कुछ इतिहासकारों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म बिहार के पटना में हुआ था. प्राचीन समय में पटना का नाम पाटलीपुत्र था. यहाँ के कुसुमपुर में इनका जन्म स्थान माना जाता हैं. इतिहासकारों के अनुसार आर्यभट्ट के समय उच्च शिक्षा हेतु प्रसिद्ध विश्वविद्यालय कुसुमपुर में स्थित था. इसलिये उन्होंने शिक्षा वहीँ से ग्रहण की थी. परन्तु इस बात के प्रामाणिक और ठोस प्रमाण मौजूद नहीं हैं. आर्यभट्ट की रचनाएं (ग्रंथ)आर्यभट्ट ने कई ग्रंथों की रचना की लेकिन वर्तमान समय में उनकी चार पुस्तकें ही मौजूद हैं. जिनके नाम – आर्यभटीय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत हैं. आर्यभट्ट 3\-0 सिद्धांत ग्रन्थ पूरा नहीं हैं इस किताब के सिर्फ 34 श्लोक की उपलब्ध हैं. इनकी बहुत सी रचनाएँ विलुप्त हो चुकी हैं. आर्यभट्ट इनका सबसे प्रमुख और लोकप्रिय ग्रन्थ हैं. एक अन्य भारतीय गणितज्ञ भास्कर ने अपने लेखों में इस ग्रन्थ को आर्यभटीय लिखा हैं. इनके कार्यों का वर्णन इस ग्रन्थ में मिलता हैं. इस ग्रन्थ में अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति का विस्तृत वर्णन किया गया हैं. आर्यभटीय ग्रन्थ में कुल 121 श्लोक हैं. प्रत्येक श्लोक की पंक्ति बहुत ही सार गर्भित हैं. जिन्हें अलग-अलग विषयों के आधार पर चार भागों में विभक्त किया गया हैं. जो कि इस प्रकार हैं. गीतिकापद (13 श्लोक)आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में सूर्य, चन्द्रमा समेत पहले पांच ग्रहो, हिंदु कालगणना और त्रिकोणमिती जैसे विषयों की व्याख्या की गई हैं. गणितपद (33 श्लोक)आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित पर संक्षिप्त जानकारी दी गयी हैं. कालक्रियापद (25 श्लोक)आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में हिंदुकाल गणना समेत ग्रहो और ज्योतिष की गतियों पर जानकारी दी गई है गोलपद (50 श्लोक)आर्यभट्ट ग्रन्थ के इस भाग में स्पेस साइंस, ग्रहों की गतियों, सूर्य से दूरी, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी हैं. आर्यभट्ट सिद्धांत (Arya siddhanta)आर्यभट्ट की इस रचना में निम्नलिखित खगोलीय यंत्रो और उपकारणों का उल्लेख मिलता हैं.
आर्यभट्ट का गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में योगदान (Aryabhatta Contribution)पाई की खोज (Pi Invention)आर्यभट्ट ने पाई का मान दशमलव के चार अंकों तक बताया. इस खोज का वर्णन करते हुए आर्यभट्ट ने अपनी किताब गणितपाद में लिखा हैं कि सौ में चार जोड़ें, फिर आठ से गुणा करें और फिर 62,000 जोड़ें और 20,000 से भागफल निकालें, इससे प्राप्त उत्तर पाई का मान होगा. [ ( 4 + 100) * 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832 पृथ्वी की परिधि (Earth Circumference)आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि की लम्बाई की गणना की. जो उन्होंने लंबाई 39,968.05 किलोमीटर बताई थी जो असल लंबाई (40,075.01 किलोमीटर) से सिर्फ 0.2 प्रतीशत कम है. आधुनिक विज्ञान के लिए आज भी यह आश्चर्य का विषय हैं कि उस समय इस तरह की गणना किस प्रकार संभव हैं. शून्य की खोज (Zero Invention)आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार किया. उन्होंने अपने ग्रन्थ में एक श्लोक लिखा है कि- एकं च दश च शतं च सहस्रं तु अयुतनियुते तथा प्रयुतम्. अर्थात “एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, कोटि, अर्बुद तथा बृन्द में प्रत्येक पिछले स्थान वाले से अगले स्थान वाला दस गुना है. अन्य शब्दों में कहे तो किसी संख्या के आगे शुन्य लगाते ही उसका मान 10 गुना बढ़ जाता हैं.’ त्रिकोणमिति (Aryabhatta Contribution in Trigonometry)आर्यभट्ट का त्रिकोणमिति के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं. इन्होने अपने ग्रन्थ आर्य सिद्धांत में ज्या (sin), कोज्या (cosine), उत्क्रम ज्या (versine) तथा व्युज्या (inverse sine) की परिभाषा की, जिससे त्रिकोणमिति का जन्म हुआ. आर्यभट्ट ने सबसे पहले ज्या (sin) और वर्साइन (versine) (1 − cos x) की सारणी (table) 3.75° के अन्तराल पर 0° से 90°तक के कोण के लिए बनाई. बीजगणित (Aryabhatta Contribution in Algebra)आर्यभट्ट ने वर्गों एवं घनो की श्रृंखला के जोड़(sum of the series of cube and square upto n numbers) के सूत्र का भी आविष्कार किया. & खगोल विज्ञान (Aryabhatta Contribution in astronomy)आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं. आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर रूप से घुमती हैं. जिसके कारण आकाश में तारो की स्थिति में परिवर्तन होता हैं. गोलपाद में स्पेस साइंस की बहुत महत्वपूर्ण जानकारी की व्याख्या की गई हैं. आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथो में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के वैज्ञानिक कारणों को बताया हैं. उन्होंने यह भी लिखा हैं कि चंद्रमा और अन्य ग्रह के पास अपना स्वयं का प्रकाश नहीं होता हैं. वे सूर्य के परावर्तित प्रकाश से प्रकाशमान होते हैं. आर्यभट्ट ने यह भी बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करने में 23 घंटें, 56 मिनिट और 1 सेकेण्ड का समय लेती हैं और एक साल ने 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनिट और 30 सेकेंड होते हैं. आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि (circumference) की लंबाई 39,968.05 किलोमीटर बताई थी जो वास्तविक लंबाई (40,075.01 किलोमीटर) से सिर्फ 0.2 प्रतिशत कम हैं. आर्यभट्ट ने सूर्य से ग्रहों की दूरी की गणना की थी. उनके द्वारा की गणना आज के आधुनिक विज्ञान के द्वारा की गणना के समकक्ष हैं. सूर्य से पृथ्वी की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर हैं. जिसे 1 AU ( Astronomical unit) भी कहा जाता हैं.
आर्यभट्ट ने यह भी बताया कि सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित हैं. पृथ्वी और अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं. आर्यभट्ट उपग्रह और वैज्ञानिक संस्थान (Aryabhatta Satellite and Institutes)भारत सरकार द्वारा अपना पहला उपग्रह 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में छोड़ा गया था जिसका नाम आर्यभट्ट रखा था. वर्ष 1976 में अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को के द्वारा आर्यभट्ट की 1500वीं जयंती का आयोजन किया गया था. (ISRO) इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन द्वारा वायुमंडल के संताप मंडल में जीवाणुओं की खोज की थी. जिनमे से एक प्रजाति का नाम बैसिलस आर्यभट्ट रखा गया हैं. भारत के नैनीताल में एक वैज्ञानिक संस्थान का नाम ‘आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान’ रखा गया है. आर्यभट्ट की मृत्यु (Aryabhatta Death)आर्यभट्ट की मृत्यु ई.स. 550 (74 वर्ष) में हुई थी. इसे भी पढ़े :
आर्यभट्ट ने क्या खोज की है?किंतु भारतीय गणितज्ञों में प्रथम-स्मरणीय आर्यभट ही हैं, जिन्होंने विश्व में सबसे पहले यह अनुमान लगाया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। राष्ट्रीय गणित दिवस के परिप्रेक्ष्य में हमारी यह प्रस्तुति भारत के इसी महान गणितज्ञ को समर्पित है।
आर्यभट्ट की विश्व को क्या क्या देन है?पाँचवीं शताब्दी में भारत में आर्यभट्ट द्वारा अंक संज्ञाओं का आविष्कार हुआ था। संख्याओं के छोटे भागों को व्यक्त करने के लिए दशमलव प्रणाली प्रयोग में आई। अंकों को दस चिन्हों के माध्यम से व्यक्त करने की प्रथा का प्रादुर्भाव सर्वप्रथम भारत में ही हुआ था। आज पूरी दुनिया में जीरो पॉपुलर है।
आर्यभट कहाँ के निवासी थे?इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था।
आर्यभट्ट का जन्म कब हुआ और कहां?476 ईस्वी, पाटलिपुत्रआर्यभट / जन्म की तारीख और समयnull
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