आसवन की विधि में कौन कौन सी प्रक्रिया है? - aasavan kee vidhi mein kaun kaun see prakriya hai?

आसवन की विधि में कौन कौन सी प्रक्रिया है? - aasavan kee vidhi mein kaun kaun see prakriya hai?

प्रयोगशाला में आसवन का प्रदर्शन: 1: गरम करने का साधन 2: Still pot 3: Still head 4: तापमापी/क्वथनांक ताप 5: कंडेंसर 6: शीतल जल प्रवेश मार्ग 7: शीतल जल निकास मार्ग 8: संग्राहक फ्लास्क 9: निर्वात/गैस इनलेट 10: Still receiver 11: ऊष्मा नियंत्रण 12: Stirrer speed control 13: Stirrer/heat plate 14: Heating (Oil/sand) bath 15: Stirring means e.g.(shown), anti-bumping granules or mechanical stirrer 16: Cooling bath.[1]

आसवन (Distillation) किसी मिश्रित द्रव के अवयवों को उनके वाष्पन-सक्रियताओं (volatilities) के अन्तर के आधार पर उन्हें अलग करने की विधि है। यह पृथक्करण की भौतिक विधि है न कि रासायनिक परिवर्तन अथवा रासायनिक अभिक्रिया।

व्यावसायिक दृष्टि से आसवन के बहुत से उपयोग हैं। कच्चे तेल (क्रूड आयल) के विभिन्न अवयवों को पृथक करने के लिये इसका उपयोग किया जाता है। पानी का आसवन करने से उसकी अशुद्धियाँ (जैसे नमक) निकल जातीँ हैं और अधिक शुद्ध जल प्राप्त होता है।

परिचय[संपादित करें]

आजकल आसवन शब्द पुराने की अपेक्षा अधिक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। भभके में वाष्पवान्‌ द्रव्य को उड़ाना और उड़ी हुई भाप को ठंडा करके फिर चुआ लेना, यह सबकी सब प्रक्रिया आसवन कहलाती है। आसवन का उद्देश्य किसी वाष्पवान्‌ अंश को अन्य अवाष्पवान्‌ अंशों से पृथक्‌ किए जा सकते हैं। पुराने समय में आसवन की इस विधि का उपयोग केवल आसवों अर्थात्‌ मदिरा के समान पेय तैयार करने में किया जाता था, पर आजकल आसवन द्वारा अनेक रासायनिक द्रव्यों का शोधन किया जाता है। आसवन की एक साधारण परिभाषा यह है कि विलयन में से विलायक को भाप बनाकर उड़ाना और फिर उसे संघनित कर लेना। इस परिभाषा के भीतर 'साधारण आसवन' और 'प्रभाजित आसवन', दोनों सम्मिलित हैं। आसवन से मिलती जुलती एक विधि का नाम ऊर्ध्वपातन है। ऊर्ध्वपातन में वाष्पवान्‌ ठोस पदार्थ भभके में गरम करके उड़ाया जाता है और फिर उस भाप को ठंडा करके ठोस शुद्ध पदार्थ प्राप्त कर लिया जाता है।

लोकसाहित्य में ""आसव शब्द सुरा या मदिरा के अर्थ में प्रयुक्त होता है। द्राक्षासव, उशीरासव आदि आसव आयुर्वेद ग्रंथों में प्रसिद्ध हैं। सौत्रामणी के प्रकरण में आसुता सुरा का सबसे पुराना उल्लेख यजुर्वेद के १९वें अध्याय में मिलता है। सुराधनी कुंभी वह पात्र था जिसमें तैयार की हुई सुरा रखी जाती थी। अकुंर निकले हुए धान और जौ से सुरा बनाने में सोंठ, पुनर्नवा, पिप्पली आदि औषधियों का प्रायोग किया जाता था। लगभग तीन रात ये पदार्थ पानी में सड़ते रहते थे और फिर उबाल और छानकर सुरा तैयार की जाती थी।

प्रकृति में आसवन का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण समुद्र के खारे पानी में से पानी की भाप का उठना, फिर भाप का वायुमंडल के ठंडे भाग में पहुँचकर ठंडा होना और शुद्ध जल के रूप में बरसना है। वर्षा का जल एक प्रकार से शुद्ध आसुत जल है, परंतु बरसते समय यह साधारण वायुमंडल से अपद्रव्य का शोषण कर लेता है।

आसवन की विधि में कौन कौन सी प्रक्रिया है? - aasavan kee vidhi mein kaun kaun see prakriya hai?

औद्योगिक आसवन के लिये बने टॉवर

प्रयोगशालाओं और कारखानों में आसवन के निमित्त जिस उपकरण का प्रयोग किया जाता है उसके मुख्यतया तीन अंग होते हैं:

(१) भभका, (२) संघनित्र और (३) ग्राही।

भभके में वह मिश्रण रखा जाता है जिसमें से वाष्पवान्‌ अंश पृथक्‌ करना होता है। ये भभके उपयोगानुसार काच, तांबे, लोहे अथवा मिट्टी के बने होते हैं। शराब बनाने के कारखानों में बहुधा तांबे के बने भभकों का प्रयोग होता हैं। और प्रयोगशालाओं में कांच के भभकों का। भभके के नीचे भट्ठी या गरम करने के निमित्त किसी उपयोगी साधन का प्रयोग किया जाता है। भभके में से उड़ी हुई भाप संघनित्र में पहुँचती है। संघनित्र अनेक प्रकार के प्रचलित हैं। सभी संघनित्रों का उद्देश्य यह होता है कि भाप शीघ्र से शीघ्र और भली भांति ठंडी हो जाए। यह आवश्यक है कि संघनित्र में अधिक से अधिक पृष्ठ उस हवा या पानी के संपर्क में आए जिसके द्वारा भाप को ठंडा होना है। तांबा गरमी का अच्छा चालक है। इसकी नलिकाएं (पाइप) यथेष्ट पतली बन सकती है; अत: कारखानों में अधिकतर तांबे के ही संघनित्रों का व्यवहार किया जाता है। वस्तुत: संघनित्र वह उपकरण है जिसमें गरम भाप एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचते-पहुँचते ठंडी हो जाए। जिन द्रव्यों के क्वथनांक बहुत ऊँचे हैं, उनकी भाप हवा से ठंडी की जा सकती है। इसके लिए वायुसंघनित्र काम में लाए जाते हैं। ऐल्कोहल, बेंज़ीन, ईथर आदि द्रवों की भापों को ठंडा करने के लिए ऐसे संघनित्रों का प्रयोग होता है जिनमें पानी के प्रवाह का प्रबंध हो। आसवन उपकरण का तीसरा अंग ग्राही है। यह वह पात्र है जिसमें भाप के ठंडा हो जाने पर बना हुआ द्रव इकठ्‌ठा किया जा सके। ग्राही भी सुविधानुसार अनेक प्रकार के होते हैं।

प्रकार[संपादित करें]

औद्योगिक उपयोग के लिये निर्मित एक आसवन स्तम्भ का आरेख

तीन प्रकार के आसवन महत्वपूर्ण माने जाते हैं - प्रभाजित आसवन, निर्वात आसवन और भंजक आसवन।

प्रभाजित आसवन (fractional distillation) द्वारा विलयन, अर्थात्‌ मिश्रण, में से उन द्रवों को पृथक्‌ किया जा सकता है जिनके क्वथनांक पर्याप्त भिन्न हों। द्रवों का वाष्प प्रभाजित आसवन के संघनित्रों में इस प्रकार क्रमश: ठंढा किया जा सकता है कि ग्राही में पहले वे द्रव ही चुए जो सापेक्षत: ठंढा किया जा सकता है जो सापेक्षत: अधिक वाष्पवान्‌ हों। इस काम के लिए जिन भभकों का उपयोग किया जाता है उनमें ताप धीरे धीरे बढ़ता है।

निर्वात आसवन (vacuum distillation) के लिए ऐसा प्रबंध किया जाता है कि भभके और संघनित्र के भीतर की वायु पंप द्वारा बहुत कुछ निकल जाए। विलयन के ऊपर वायु की दाब कम होने पर विलायकों का क्वथनांक भी कम हो जाता है और वे सापेक्षत: आति न्यून ताप पर ही आसवित किए जा सकते हैं।

भंजक आसवन (destructive distillation) एक प्रकार का शुष्क आसवन होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण कोयले का आसवन है। पत्थर के कोयले में पानी का अंश तो कम ही होता है, पर जब वह अधिक तप्त किया जाता है तो उसके प्रभंजन (टूटने) द्वारा अनेक पदार्थ बनते हैं जिन्हें भाप बनाकर उड़ाया और फिर ठंडा करके ठोस या द्रव किया जा सकता है। प्रभंजन में कुछ ऐसी भी गैसें बन सकती हैं जो ठंडी होने पर द्रव या ठोस तो न बनें, पर गैस रूप में ही जिनकी उपयोगिता हो; उदाहरणत:, संभव है, इन गैसों का उपयोग हवा के साथ जलाकर प्रकाश अथवा उष्मा पैदा करने में किया जा सकता हो। पत्थर के कोयले से प्रभंजक आसवन से इस प्रकार की गैसों के अतिरिक्त क्रियोज़ोट, नैफ्थैलीन आदि पदार्थ प्राप्त किए जा सकते हैं। मिट्टी के तेल का भी प्रभंजक आसवन किया जा सकता है।

साधारण आसवन का उपयोग इत्र तैयार करने में भी किया जाता है। इत्र तैयार करने में भाप, आसवन का प्रयोग किया जाता है। पानी की भाप के साथ साथ इत्र उड़ाए जाते हैं और संघनित्र में ठंडा करके पानी और इत्र का मिश्रण ग्राही में प्राप्त किया जाता है।

उपयोग[संपादित करें]

व्यापारिक रूप से आसवन के कई उपयोग है-

  • क्रूड ऑयल के प्रभाजी आसवन से ईंधन और अन्य अनेकों पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  • आसवन के द्वारा वायु को इसके अवयवों (आक्सीजन, नाइट्रोजन, आर्गान आदि) में विभाजित किया जाता है जो औद्योगिक उपयोग में आतीं हैं।
  • औद्योगिक रसायन के क्षेत्र में, रासायनिक संश्लेषण द्वारा निर्मित किये गये द्रवों को आसवित करके अलग किया जाता है।
  • किण्वित उत्पादों का आसवन करने से आसवित पेय प्राप्त होते हैं जिनमें अल्कोहल की मात्रा अधिक होती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Laurence M. Harwood, Christopher J. Moody (13 जून 1989). Experimental organic chemistry: Principles and Practice (Illustrated संस्करण). Oxford: WileyBlackwell. पपृ॰ 141–143. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0632020171.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • प्रभाजी आसवन
  • भापीय आसवन (steam distillation )
  • निर्वात आसवन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Alcohol distillation
  • Case Study: Petroleum Distillation
  • "Binary Vapor-Liquid Equilibrium Data". Chemical Engineering Research Information Center. मूल (searchable database) से 29 अगस्त 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 मई 2007.

आसवन की विधि में कौन कौन सी प्रक्रिया घटित होती है?

आसवन विधि : जब किसी द्रव में घुलनशील ठोस अशुद्धि उपस्थित होती है तो मिश्रण को गर्म किया जाता है जिससे द्रव वाष्पित हो जाता है और द्रव की इस वाष्प को आगे अन्य किसी पात्र में एकत्रित करके ठंडा (संघनन) किया जाता है जिससे यह द्रव शुद्ध अवस्था में प्राप्त हो जाता है और चूँकि ठोस पदार्थ वाष्पित नहीं हो सकता है इसलिए यह उसी ...

आसवन की प्रक्रिया क्या होती है?

आसवन (Distillation) किसी मिश्रित द्रव के अवयवों को उनके वाष्पन-सक्रियताओं (volatilities) के अन्तर के आधार पर उन्हें अलग करने की विधि है। यह पृथक्करण की भौतिक विधि है न कि रासायनिक परिवर्तन अथवा रासायनिक अभिक्रिया।

आसवन कितने प्रकार हैं?

उत्तर- निर्वात आसवन, एक आसवन प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत आसुत होने वाले तरल मिश्रण के ऊपर के दाब को इसके वाष्प दाब से कम कर दिया जाता है (आमतौर पर वायुमंडलीय दाब से कम) जिसके कारण सबसे अधिक वाष्पशील द्रवों (जिनका क्वथनांक सबसे कम होता है) का वाष्पीकरण होता है। III. भंजक आसवन (Destructive distillation) क्या हैं?

आसवन विधि द्वारा पदार्थों को अलग करने के लिए क्या आवश्यक हैं?

आसवन विधि से पदार्थ को पृथक करने के लिए मिश्रित पदार्थों का द्रव्य होना आवश्यक है। आसवन विधि द्वारा द्रव्य पदार्थों को पृथक किया जाता है। आसवन विधि से पदार्थ को पृथक करने के लिए मिश्रित पदार्थों के क्वथनांक का अंतर कम से कम 25°C से अधिक होना चाहिए।