भारत की पहली सवाक फिल्म कौन सी थी class 8 - bhaarat kee pahalee savaak philm kaun see thee chlass 8

प्रश्न 2: पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: अर्देशिर ईरानी ने 1929 में हॉलीवुड की बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी थी। इसी फिल्म से उन्हें आलम आरा बनाने की प्रेरणा मिली थी। उन्होंने पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को अपनी फिल्म का आधार बनाया था।

प्रश्न 3: विट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप में हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुन: नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर: विट्ठल की उर्दू अच्छी नहीं होने के कारण उन्हें आलम आरा के नायक के रूप में हटा दिया गया। विट्ठल उस समय के सफल कलाकार हुआ करते थे। वे नाराज हो गये और उन्होंने अर्देशिर ईरानी पर मुकदमा दायर कर दिया। उनका मुकदमा उस समय के मशहूर वकील जिन्ना ने लड़ा था। विट्ठल मुकदमा जीत गये और अंतत: आलम आरा के नायक बने। यहाँ पर यह जाहिर होता है कि कैसे एक कलाकार अपने अहं के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

प्रश्न 4: सवाक फिल्म के निर्माता निर्देशक अर्देशिर ईरानी को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है?

उत्तर: सम्मानकर्ताओं ने अर्देशिर को ‘भारतीय सवाक फिल्मों का पिता’ कहा। अर्देशिर ने कहा कि वो इतनी बड़ी उपाधि के लायक नहीं थे बल्कि उन्होंने देश के लिए अपना भरसक योगदान करने की कोशिश की थी। लेखक ने इस प्रसंग में अर्देशिर की विनम्रता की तारीफ की है।

प्रश्न 5: मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर जब सिनेमा बोलने लगा उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।

उत्तर: बोलती फिल्म के आने से अभिनेताओं को अपनी अभिनय शैली में परिवर्तन करना पड़ा होगा। उन्हें अपनी भाषा और बोलने की कला को नये परिवेश के हिसाब से ढ़ालना पड़ा होगा।

दर्शकों के लिए सिनेमा को समझ पाना आसान हो गया होगा। उनका रोमांच भी बढ़ गया होगा। वे ज्यादा आसानी से कल्पना की दुनिया में डूब जाते होंगे।

आवाज रिकार्ड करने की नई तकनीक खोजने की जरूरत पड़ी होगी जिससे शोर कम किया जा सके।

प्रश्न 6: डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुंह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?

उत्तर: जब किसी एक भाषा की फिल्म में दूसरी भाषा की आवाज डाली जाती है तो उसे डब करना कहते हैं। हर भाषा की अपनी बारीकियां होती हैं। चाहे कितना भी अच्छा डब करने वाला कलाकार हो और कितनी भी आधुनिकतम तकनीक इस्तेमाल हो, भाषा की बारीकियों का अंतर नहीं मिटाया जा सकता है।

जब भारत में केबल टीवी नया-नया आया था तब यहाँ के डब करने वाले कलाकार सीख ही रहे थे। उस समय वे बहुत अच्छा प्रभाव नहीं डाल पाते थे। अब ज्यादातर फिल्मों में डबिंग बहुत अच्छी हो गई है। अब बहुत गौर से देखने पर ही तालमेल का अंतर देखा जा सकता है।


पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है? लिखिए।


पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को 1956 में सम्मानित किया गया। सम्मान करने वालों ने उन्हें ‘भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता’ कहा। अर्देशिर ने इस मौके पर कहा-”मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।”

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सवाक् शब्द वाक् के पहले ‘स’ लगाने से बना है। स उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। हित. परिवार. विनय, चित्र. बल, सम्मान।


शब्द उपसर्ग नया शब्द अर्थ
हित स सहित हित का अर्थ भलाई व सहित-हित के साथ।
परिवार स सपरिवार परिवार का अर्थ है माता-पिता, पति-पत्नी व बच्चों का साथ-साथ रहना सपरिवार-परिवार सहित।
विनय स सविनय विनय का अर्थ है प्रार्थना और सविनय-प्रार्थना सहित।
चित्र स सचित्र चित्र का अर्थ है कोई भी तस्वीर और सचित्र-चित्रों सहित।
बल स सबल बल अर्थात् शक्ति सबल-शक्ति के साथ।
सम्मान स ससम्मान सम्मान का अर्थ है आदर व ससम्मान-आदर सहित।
इन सभी शब्दों में ‘स’ उपसर्ग का प्रयोग हुआ है जो ‘सहित’ व ‘के साथ’ का भाव प्रकट करता है।
 

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जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।


जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर लिखा था-’वे सभी सजीव हैं. सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए; उनको बोलते; बातें करते देखो।’
‘अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए’ यह पंक्ति दर्शाती है कि फिल्म में अठहत्तर चेहरे थे अर्थात् फिल्म में अठहत्तर लोग काम कर रहे थे।

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उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। इन दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिंदी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं-अ/अन, नि, दु, क/कु, स/सु, अध, बिन, औ आदि।
पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-
मूल शब्द      उपसर्ग       प्रत्यय        शब्द
वाक्            स            -             सवाक्
लोचन          सु            आ            सुलोचना
फिल्म          -             कार          फिल्मकार
कामयाब        -             ई             कामयाबी
इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।


(i) मूल शब्द      उपसर्ग     नया शब्द
1. दान            आ          आदान
2. राग            अनु         अनुराग
3. कार            उप          उपकार
4. भाग्य          दुर्           दुर्भाग्य
5. काल           पुरा          पुराकाल
6. कर्म           सत्          सत्कर्म
7. गुण           औ           औगुण
8. पुत्र            कु            कुपुत्र
9. बंध           नि            निबंध
10. ज्ञान        अ            अज्ञान
11. पका       अध           अधपका
12. खाए       बिन          बिनखाए
13. यश       सु              सुयश
14. कोण     सम            समकोण
15. जान     सु              सुजान

(ii) मूल शम्शब्दरत्यय नया शब्द
1. पढ़   ना     पढ़ना
2. ओढ़  नी    ओढ़नी
3. लड़   आई  लड़ाई
4. चिकना  आहट  चिकनाहट
5. सज  आवट  सजावट
6. विशेष  तय।  विशेषतया
7. कट  वाई  कटवाई
8. कवि  त्व  कवित्व
9. चाचा ऐस चचेरा
10. चमक चमकीला
11. एक ता एकता
12. लेख क लेखक
13. ध्यान पूर्वक ध्यानपूर्वक
14. काला पन कालापन
15. मन औती मनौती

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मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें. साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।


यह सत्य है कि मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है पर जब वह बोलने लगी तो उसमें अनेक परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन अभिनेता. दर्शक और तकनीकी दृष्टि से हुए जो निम्न प्रकार से हैं-
(1) अभिनेता-पहले मूक फिल्मों में पहलवान शरीर वाले करतब दिखाने वाले और उछल कूद करने वाले अभिनेताओं को प्रमुखता दी जाती थी लेकिन जब फिल्म बोलने लगी तो संवाद बोलना प्रमुख हो गया। एसे में पढ़े-लिखे अभिनेताओं को प्रमुखता दी गई क्योंकि संवाद शुद्ध व सही रूप में बोले जाने जरूरी थे। समयानुसार कई बार संवादों में परिवर्तन भी करना पड़ता था।
(2) दर्शक-बोलने वाली फिल्मों ने दर्शकों की रुचि में अपार परिवर्तन ला दिया। उन्हें फिल्मे सच के धरातल पर दिखाई देने लगी। अब फिल्मों में सार्वजनिक झलक दिखाई देने लगी।
(3) तकनीकी दृष्टि-तकनीकी स्वरूप में भी अब काफी परिवर्तन आ गया। पहला परिवर्तन ध्वनि के कारण हुआ और दूसरा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कृत्रिम प्रकाश देने से आया। भाषा में भी बदलाव आ गया। अब परिष्कृत भाषा का प्रयोग होने लगा। वाद्य यंत्रों का भी प्रयोग बढ़ गया क्योंकि अब गीत गाए जाने लगे थे।

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पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए। 


पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्दशिर एम. ईरानी को प्रेरणा हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ से मिली। पारसी रंगमंच के नाटक को आधार बनाकर ‘आलम आरा’ फिल्म की पटकथा लिखी गई।

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भारत की पहली सवाक फिल्म कौन थी class 8?

आलमआरा (विश्व की रौशनी) 1931 में बनी हिन्दी भाषा और भारत की पहली सवाक (बोलती) फिल्म है।

भारत की पहली सवाक् फिल्म कौन सी थी?

दिन था शनिवार, तारीख़ 14 मार्च और वर्ष 1931. इसी दिन मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा हॉल में आर्देशिर ईरानी निर्देशित 'आलम आरा' रिलीज़ हुई. ये भारत की पहली बोलती फ़िल्म (टॉकी) थी.

पहली भारतीय सवाक फिल्म कब और कहाँ प्रदर्शित हुई?

यह फिल्म 14 मार्च 1931 को मुंबई के 'मैजेस्टिक' सिनेमा में प्रदर्शित हुईफिल्म 8 सप्ताह तक 'हाउसफुल' चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे भड़कीली फैंटेसी' फिल्म करार दिया था मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी ।

सवाक फिल्मों का क्या अर्थ है?

जो फिल्म बोलने वाली होती है उसे सवाक् कहते हैं। यह शब्द वाक् शब्द से बना है जिसका अर्थ है बोलना। 'स' उपसर्ग लगने से हुआ सवाक् अर्थात् बोलने सहित।