भारतीय समाज के जनसांख्यिकीय पहलुओं की समस्याओं की व्याख्या करें। - bhaarateey samaaj ke janasaankhyikeey pahaluon kee samasyaon kee vyaakhya karen.

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भारतीय जनसंख्या की प्रमुख विशेषताएँ | भारतीय जनसंख्या में जनांकिकीय विशेषताएं

  • भारतीय जनसंख्या के प्रमुख लक्षण या विशेषताएं (Main Characteristics of Indian Population)-
    • जनसंख्या का आकार अथवा जनसंख्या वृद्धि (Size of Population or Population Growth)-
    • जन्म व मृत्यु दर (Birth and Mortality Rate) –
    • जनसंख्या का घनत्व (Density of Population)-
    • ग्रामीण व शहरी जनसंख्या (Rural and Urban Population)-
    • स्त्री-पुरुष अनुपात (Sex Ratio) –
    • जनसंख्या का शैक्षिक अनुपात (Educational Ratio of Population)-
    • आयु संरचना (Age Composition)-
    • व्यावसायिक वितरण (Occupational Distribution)-
    • प्रत्याशित आयु (Life Expectancy)-
    • विभिन्न जातियों व धर्मों के बाद भी धर्म निरपेक्षता-
    • निष्कर्ष (Conclusion) –
      • अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

भारतीय जनसंख्या के प्रमुख लक्षण या विशेषताएं (Main Characteristics of Indian Population)-

  1. जनसंख्या का आकार अथवा जनसंख्या वृद्धि (Size of Population or Population Growth)-

विश्व में भारतवर्ष की जनसंख्या चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारतवर्ष की जनसंख्या ।02.70 करोड़ थी जबकि चीन की जनसंख्या 1 अरब 28 करोड़ है। 18वीं शताब्दी तक भारत की जनसंख्या लगभग 12 करोड़ मूल्यांकित की गई थी।

  1. जन्म व मृत्यु दर (Birth and Mortality Rate) –

जन्म व मृत्यु दर से तात्पर्य प्रति हजार जनसंख्या के पीछे जन्म दर व मृत्यु दर को व्यक्त किया जाता है। देश 1991 ई0 के अनुसार जन्मदर 29.5 प्रति हजार व मृत्यु दर 9.8 प्रति हजार घोषित हुई है, जबकि 1901 के अनुसार जन्म व मृत्युदर क्रमशः 49.2 व 42.6 प्रति हजार लगभग समान थी, क्योंकि उस समय जनसंख्या वृद्धि दर 6.6 प्रति हजार थी।

इस प्रकार भारतवर्ष में जन्मदर व मृत्यु दर दोनों की कमी आयी है परन्तु जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर अधिक तेजी से घट रही हे जिसका प्रमुख कारण स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि तथा महामारियों एवं घातक बीमारियों पर नियंत्रण है।

2001 की जनगणना के अनुसार मृत्युदर 42.6 प्रति हजार से घटकर 9.0 प्रति हजार रह गई है एवं जन्मदर भी घटकर 26.1% प्रति हजार रह गई है।

भारत वर्ष में सर्वाधिक जन्म दर उत्तर प्रदेश व बिहार में 2.8% जबकि सबसे कम जन्म दर केरल में 1.2% है।

  1. जनसंख्या का घनत्व (Density of Population)-

देश के जनसंख्या घनत्व से इसकी सघनता का ज्ञान होता है। जनसंख्या के घनत्व का अर्थ प्रति किलोमीटर जनसंख्या के निवास से है। इसे जन - भूमि अनुपात (Man-Land ratio) भी कहते हैं। चूकि भारतवर्ष में जनसंख्या की वृद्धि हो रही है, अतः देश में जनसंख्या घनत्व अथवा प्रति किमी0 निवासित जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है किन्तु जनसंख्या के घनत्व में जनसंख्या व देश का क्षेत्रफल सम्पूर्ण पहलू है।

भारत विश्व में एक मध्यम जन-सघनता का देश है, क्योंकि भारत की जनसंख्या का घनत्व 398 व्यक्ति प्रति किमी0 है तो अमेरिकी में 24, रूस में 13 व्यक्ति, कनाडा में 4 व्यक्ति व आस्ट्रेलिया में 2 व्यक्ति प्रति किमी0 है। भारत के विभिन्न प्रदेशों का जनसंख्या घनत्व भी समान नहीं है, क्योंकि दिल्ली प्रदेश में जहाँ 9,249 व्यक्ति प्रति किमी0 निवास करते हैं जबकि बंगाल में 767, उत्तर प्रदेश में 473. पंजाब में 403, बिहार में 497, गुजरात में 211, महाराष्ट्र में 257, हरियाणा में 372, हिमाचल प्रदेश में 93, मेघालय में 79 व नागालेंड में 73 व्यक्ति प्रति किमी0 निवास करते हें ।

  1. ग्रामीण व शहरी जनसंख्या (Rural and Urban Population)-

भारतीय जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या की अधिकता व शहरी जनसंख्या की अल्पता है।

भारतवर्ष में 1991 की जनगणना के अनुसार 84.6 करोड़ जनसंख्या में से 62.8 करोड़ लोग ग्रामों में ओर 21.7 कराड़ लाग शहरों व कस्बों में निवास करते थे फलतः देश की 74.2% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों व 25.8% जनसंख्या शहरी है। जबकि विकसित देश इंग्लेंड की 92% जापान 76%, अमेरिका 74% व रूस की 66% जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती है।

भारतीय जनसंख्या औद्योगीकरण, ग्रामीण पिछडेपन व रोजगार आदि के कारण ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर आकर्षित है। फलतः घीरे-धीरे देश में शहरीकरण हो रहा है, क्योंकि भारत में जहाँ 1901 ई() में शहरी जनसंख्या ।7% थी उसमें 1991 तक 6 गुरनी वृद्धि हुई है, जबकि दूसरी ओर ग्रामीण जनसंख्या में केवल ढाई गुनी ही वृद्धि हो पायी है।

  1. स्त्री-पुरुष अनुपात (Sex Ratio) –

जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात अरथवा लिंगमूलक रचना (Sex Composition) महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्त्री-पुरुष अनुपात से जन्म व मृत्युदर, विवाह दर व उत्पत्ति दर प्रभावित होती है। यदि किसी देश में लिंग अनुपात असंतुलित हो तो सामाजिक व नैतिक बुराइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

भारतवर्ष में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की जनसंख्या कम है जैसे उ0 प्र0 में प्रति हजार पुरुष पर 898 स्त्रियाँ, आन्ध्र प्रदेश में 972, बिहार में 921, राजस्थान में 922 हे। केवल केरल राज्य ही ऐसा है जहाँ प्रति 1000 पुरुषों पर 1058 स्त्रियाँ हैं।

  1. जनसंख्या का शैक्षिक अनुपात (Educational Ratio of Population)-

जनसंख्या का शैक्षिक अनुपात गुणात्मक पहलू है। यदि देश के निवासियों का साक्षरता अनुपात ऊँचा है तो देश आर्थिक सामाजिक व राजनैतिक घटकों में विकास करता है। निक्षरता प्रत्येक क्षेत्र में बाधक है। भारत में जनगणना 2001 के अनुसार साक्षरता दर 65.38 हैं, जबकि विकसित देशों में साक्षरता दर 95% या शत-प्रतिशत है।

स्वतंत्रता के बाद 50 वर्षों में साक्षरता दर के आँकड़े स्फूर्तिदायक हें, क्योंकि 1991 में साक्षरता दर 18.33% थी वह बढ़कर 2001 में 65.38 है, जबकि विकसित देशों में साक्षरता दर 95% या शत-प्रतिशत है।

भारत में सर्वाधिक साक्षरता दर केरल प्रदेश में है जहाँ 90.92% साक्षर हैं जिसमें 94.20% पुरुष व महिलाये 87.86% शिक्षित है। जबकि न्यूनतम साक्षरता दर बिहार में है, जहाँ केवल 47.53% जनसंख्या शिक्षित हैं। उ0 प्र0 में 57.36% जनसंख्या है जिसमें 70.23% पुरुष व 42.98% महिलायें साक्षर हैं।

  1. आयु संरचना (Age Composition)-

किसी देश की जनसंख्या का विशिष्ट लक्षण आयु संरचना वयमूलक रचना होती है।, क्योंकि जनसंख्या में आयु-वर्ग के अनुसार ही कार्यशील जनसमूह का ज्ञान होता है।

भारत में 2001 की जनगणना के अनुसार (0-6) वर्ष के बच्चो की जनसंख्या 15, 17, 63, 145 थी जो कुल जनसंख्या का 15.2% है।

भारतवर्ष में आश्रितों की जनसंख्या भी अधिक दिखाई देती है, क्योंकि देश के 40% बच्चों के साथ युवा रोजगार 16.6% व वृद्धों के 6% का कुल योग 62.6% होता है। अतः देश में कार्यशील जनसंख्या कम है। प्रो0 सैण्डवर्ग ने कहा है कि यदि किसी देश में कुल जनसंख्या के 40 प्रतिशत केवल बच्चे हैं तो वहाँ जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही होगी।

  1. व्यावसायिक वितरण (Occupational Distribution)-

देश के अर्थतन्त्र पर जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है, क्योंकि जिस देश की अधिक जनसंख्या का प्रतिशत कृषि व्यवसाय में संलग्न हो, वह देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा होता है। इसके विपरीत जिस देश में अधिक जनसंख्या उद्योग व अन्य व्यवसायों में संलग्न हो, आर्थिक दृष्टि से ऐसा देश समृद्ध व विकसित होता है।

  1. प्रत्याशित आयु (Life Expectancy)-

सरल भाषा में प्रत्याशित आयु से तात्पर्य किसी देश के निवासी जन्म के बाद कितने वर्ष तक जीवित रहने की आशा कर सकते हैं। वह उस देश की प्रत्याशित आयु कहलाती है। अतः प्रत्याशित आयु से तात्पर्य जीवन आयु से होता है।

भारतवर्ष की अप्रत्याशित आयु 1901 ई0 से पूर्व लगभग 20 वर्ष थी, 1951 में 32 वर्ष, 1971 में 44.6 वर्ष, 1995 में 56 वर्ष थी जो वर्तमान में 65 वर्ष हो गयी है जबकि केरल राज्य में प्रत्याशित आयु 72 वर्ष है।

  1. विभिन्न जातियों व धर्मों के बाद भी धर्म निरपेक्षता-

भारतीय जनसंख्या की एक विशेषता है कि देश में विभिन्न जातियों, धर्म, रहन-सहन, भोजन, आवास के अन्तर्गत अनेकता में एकता का लक्षण विद्यमान है, किन्तु राष्ट्र के विकास एवं एकता में धर्मनिरपेक्षता के दर्शन होते हैं। जबकि विश्व के अन्य देशों जैसे अमेरिका, इंग्लेण्ड आदि में ईसाई तथा ईराक, ईरान, कुर्वैत आदि देशों में केवल मुसलमान भी पाये जाते हैं। किन्तु भारत में विश्व के प्रत्येक समुदाय के लोग मौलिक अधिकारों के साथ भारतीय हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार देश में 72.7% हिन्दू व 27.3% अन्य जातियाँ रहती हैं।

निष्कर्ष (Conclusion) –

भारत में जनसंख्या एक गंभीर समस्या है। क्योंकि देश में लगभग 8 करोड़ बेरोजगार नवयुवक, 27 करोड़ से अधिक गरीब, पात्र 30% प्राकृतिक साधनों का उपयोग आदि तथ्यों से भारत के भविष्य का अनुमान स्वतः हो जाता है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण का एक प्राथमिक अर्थव्यवस्था के सत्ताधारियों, समाजसेवियों, बुद्धिज्ीवियों व नवयुवकों को एक दीर्घकालीन आर्थिक नीति का निर्माण कर सतत् विकास की प्रक्रिया का मार्ग चुनना ही पड़ेगा।

अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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जनसांख्यिकीय समस्याएं क्या है?

जनसंख्या की वृद्धि की समस्या अन्य अनेक समस्याओं को पैदा करती है । प्रतिवर्ष उत्पादित खाद्यान्न अपर्याप्त हो जाता है और जो है, वह महँगा हो जाता है । इसी हिसाब से अन्य उपयोगी वस्तुओं के दाम भी बढ़ते हैं । सरकार के पास काम की कमी हो जाती है, अत: बेकारी भी बढ़ती जाती है ।

सामाजिक जनसांख्यिकी का क्या अर्थ है?

औपचारिक जनसांख्यिकी के अध्ययन का लक्ष्य, जनसंख्या की प्रक्रियाओं के मापन तक सीमित है, जबकि सामाजिक जनसांख्यिकी जनसंख्या अध्ययन का अधिक व्यापक क्षेत्र, एक जनसंख्या को प्रभावित करने वाले आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और जैविक प्रक्रियाओं के बीच संबंधों का विश्लेषण करता है।

जनसांख्यिकी क्या है सामाजिक जनसांख्यिकी के विकास के बारे में चर्चा करें?

जनसांख्यिकीय विषय में एक अन्य उल्लेखनीय सिद्धांत है: जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत। इसका तात्पर्य यह है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के समग्र स्तरों से जुड़ी होती है एवं प्रत्येक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है।

जनसांख्यिकी कितने प्रकार के होते हैं?

गोरखपुर में जनसँख्या वृद्धि :.