बाजार-दर्शन Show लेखक- जैनेंद्र कुमार पाठ का सारांश बाजार-दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के साथ-साथ अर्थनीति एवं दर्शन से संबंधित प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास किया गया है। बाजार का जादू तभी असर करता है जब मन खाली हो| बाजार के जादू को रोकने का उपाय यह है कि बाजार जाते समय मन खाली ना हो, मन में लक्ष्य भरा हो| बाजार की असली कृतार्थता है जरूरत के वक्त काम आना| बाजार को वही मनुष्य लाभ दे सकता है जो वास्तव में अपनी आवश्यकता के अनुसार खरीदना चाहता है| जो लोग अपने पैसों के घमंड में अपनी पर्चेजिंग पावर को दिखाने के लिए चीजें खरीदते हैं वे बाजार को शैतानी व्यंग्य शक्ति देते हैं| ऐसे लोग बाजारूपन और कपट बढाते हैं | पैसे की यह व्यंग्य शक्ति व्यक्ति को अपने सगे लोगों के प्रति भी कृतघ्न बना सकती है | साधारण जन का हृदय लालसा, ईर्ष्या और तृष्णा से जलने लगता है | दूसरी ओर ऐसा व्यक्ति जिसके मन में लेश मात्र भी लोभ और तृष्णा नहीं है, संचय की इच्छा नहीं है वह इस व्यंग्य-शक्ति से बचा रहता है | भगतजी ऐसे ही आत्मबल के धनी आदर्श ग्राहक और बेचक हैं जिन पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई असर नहीं होता | अनेक उदाहरणों के द्वारा लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि एक ओर बाजार, लालची, असंतोषी और खोखले मन वाले व्यक्तियों को लूटने के लिए है वहीं दूसरी ओर संतोषी मन वालों के लिए बाजार की चमक-दमक, उसका आकर्षण कोई महत्त्व नहीं रखता। प्रश्न१ - पर्चेजिंग पावर किसे कहा गया है, बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? उत्तर- पर्चेजिंग पावर का अर्थ है खरीदने की शक्ति। पर्चेजिंग पावर के घमंड में व्यक्ति दिखावे के लिए आवश्यकता से अधिक खरीदारीकरता है और बाजार को शैतानी व्यंग्य-शक्ति देता है। ऐसे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। प्रश्न२ -लेखक ने बाजार का जादू किसे कहा है, इसका क्या प्रभाव पड़ता है? उत्तर- बाजार की चमक-दमक के चुंबकीय आकर्षण को बाजार का जादू कहा गया है, यह जादू आंखों की राह कार्य करता है। बाजार के इसी आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर भी खरीदने को विवश हो जाते हैं। प्रश्न३ -आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-मन खाली होना- मन में कोई निश्चित वस्तु खरीदने का लक्ष्य न होना। निरुद्देश्य बाजार जाना और व्यर्थ की चीजों को खरीदकर लाना। मन भरा होना- मन लक्ष्य से भरा होना। जिसका मन भरा हो वह भलीभाँति जानता है कि उसे बाजार से कौन सी वस्तु खरीदनी है, अपनी आवश्यकता की चीज खरीदकर वह बाजार को सार्थकता प्रदान करता है। मन बंद होना-मन में किसी भी प्रकार की इच्छा न होना अर्थात अपने मन को शून्य कर देना। प्रश्न४ - ‘जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है।’ यहां किस बल की चर्चा की गयी है? उत्तर- लेखक ने संतोषी स्वभाव के व्यक्ति के आत्मबलकी चर्चा की है। दूसरे शब्दों में यदि मन में संतोष हो तो व्यक्ति दिखावे और ईर्ष्या की भावना से दूर रहता है उसमें संचय करने की प्रवृत्ति नहीं होती। प्रश्न५ - अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र कब बन जाता है? उत्तर- जब बाजार में कपट और शोषण बढ़ने लगे, खरीददार अपनी पर्चेचिंग पावर के घमंड में दिखावे के लिए खरीददारी करें | मनुष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए| खरीददार और दुकानदार एक दूसरे को ठगने की घात में लगे रहें , एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखाई दे तो बाजार का अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र बन जाता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना है। प्रश्न६-भगतजी बाजार और समाज को किस प्रकार सार्थकता प्रदान कर रहे हैं? उत्तर- भगतजी के मन में सांसारिक आकर्षणों के लिए कोई तृष्णा नहीं है। वे संचय, लालच और दिखावे से दूर रहते हैं। बाजार और व्यापार उनके लिए आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन मात्र है। भगतजी के मन का संतोष और निस्पृह भाव, उनको श्रेष्ठ उपभोक्ता और विक्रेता बनाते हैं। प्रश्न ७ _ भगत जी के व्यक्तित्व के सशक्त पहलुओं का उल्लेख कीजिए | उत्तर-निम्नांकित बिंदु उनके व्यक्तित्व के सशक्त पहलू को उजागर करते हैं।
प्रश्न7-बाजार की सार्थकता किसमें है? उत्तर- मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ही बाजार की सार्थकता है। जो ग्राहक अपनी आवश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं वे बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। जो विक्रेता, ग्राहकों का शोषण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नही करते वे भी बाजार को सार्थक बनाते हैं। गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर बाजार मे एक जादू है। वह जादू आँख की तरह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है । जेब खाली पर मन भरा न हो तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी, तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी-चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को जरूर सेंक मिल जाता है पर इससे अभिमान को गिल्टी की खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ देगी ? पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा उपाय है वह यह कि बाजार जाओ तो खाली मन न हो । मन खाली हो तब बाजार न जाओ कहते हैं, लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार फैला का फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ न कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना। प्रश्न-1 बाजार के जादू को लेखक ने कैसे स्पष्ट किया है ? उत्तर- बाजार के रूप का जादू आँखों की राह से काम करता हुआ हमें आकर्षित करता है। बाजार का जादू ऐसे चलता है जैसे लोहे के ऊपर चुंबक का जादू चलता है। चमचमाती रोशनी में सजी फैंसी चींजें ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करती हैं| इसी चुम्बकीय शक्ति के कारण व्यक्ति फिजूल सामान को भी खरीद लेता है | प्रश्न-2 जेब भरी हो और मन खाली तो हमारी क्या दशा होती है ? उत्तर- जेब भरी हो और मन खाली हो तो हमारे ऊपर बाजार का जादू खूब असर करता है। मन, खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण मन तक पहुँच जाता है और उस समय यदि जेब भरी हो तो मन हमारे नियंत्रण में नहीं रहता। प्रश्न-3 फैंसी चीजों की बहुतायत का क्या परिणाम होता है? उत्तर- फैंसी चीजें आराम की जगह आराम में व्यवधान ही डालती है। थोड़ी देर को अभिमान को जरूर सेंक मिल जाती है पर दिखावे की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है। प्रश्न-4 जादू की जकड़ से बचने का क्या उपाय है ? उत्तर- जादू की जकड़ से बचने के लिए एक ही उपाय है, वह यह है कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो, मन खाली हो तो बाजार मत जाओ। बाजार का बाजारूपन कौन लोग बनाते है?लेखक का मानना है कि बाजार को सार्थकता वह मनुष्य देता है जो अपनी जरूरत को पहचानता है। जो केवल पर्चेजिंग पॉवर के बल पर बाजार को व्यंग्य दे जाते हैं, वे न तो बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं।
बाजारूपन का क्या अर्थ है?बाजार में बेकार की चीजों को आकर्षक बनाकर बेचना Page 3 बाज़ारूपन कहलाता है। जो विक्रेता अपनी दुकानों में चमक दमक नहीं रखते तथा अनावश्यक चीजें नहीं बेचते है तथा वे ग्राहक जो आवश्यक चीजे नहीं खरीदते तथा बाज़ारूपन प्रभावित नहीं होते है बाजार को सार्थकता प्रदान करते है।
मनुष्य को बाजार कब नहीं जाना चाहिए?मनुष्य को तब बाजार नहीं जाना चाहिए, जब उसका मन खाली हो। 'बाजार दर्शन' पाठ में लेखक कहता है कि मनुष्य को बाजार के मोह माया से बचने के लिए, बाजार के आकर्षण से बचने के लिए अपने मन को खाली लेकर बाजार नहीं जाना चाहिए। यदि उसका मन खाली होगा तो वह तरह-तरह की चीजों की तरफ आकर्षित होगा और उन्हें खरीदने के लिए लालायित होगा।
बाजारूपन बढ़ने से क्या होता है?बाज़ार को अपनी आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि दिखाने के लिए प्रयोग में लाना। इस प्रकार हम अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लाते हैं, तो हम बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं। हमें वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती है, बस हम दिखाने का प्रयास करते हैं कि हम यह खरीद सकते हैं।
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