Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Questions and Answers. Show
JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगतJAC Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. उनमें साधुओं वाली सारी बातें थीं। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे; उन्हीं के गीत गाते रहते थे और उन्हीं के आदेशों पर चलते थे। वे कभी झठ नहीं बोलते थे और सदा खरा व्यवहार करते थे। हर बात साफ़-साफ़ करते थे; किसी से व्यर्थ झगड़ा नहीं करते थे। किसी की चीज़ को कभी छूते तक नहीं थे। वे दूसरों के खेत में शौच तक के लिए नहीं बैठते थे। उनके खेत में जो कुछ पैदा होता, उसे सिर पर रखकर चार कोस दूर कबीरपंथी मठ में ले जाते थे और प्रसाद रूप में जो कुछ मिलता, वहीं वापस ले आते थे। प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. उनकी पुत्रवधू ने ही अपने पति की चिता को अग्नि दी थी। उनकी जाति में विधवा के पुनर्विवाह को अनुचित नहीं मानते थे, परंतु उनकी पुत्रवधू इसके लिए तैयार नहीं थी। वह उन्हीं के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। लेकिन उन्होंने उसे यौवन की ऊँच-नीच का ज्ञान करवाया और पुनर्विवाह के लिए तैयार किया। इससे हम कह सकते हैं कि बालगोबिन पुरानी सामाजिक मान्यताओं के समर्थक नहीं थे। वे अपने स्वार्थ की अपेक्षा दूसरों के हित का ध्यान रखते थे। प्रश्न 8. उनका सारा शरीर खेत की गीली मिट्टी से लथ-पथ है। जिस प्रकार उनकी उँगलियाँ धान के पौधों को एक-एक करके पंक्तिबद्ध रूप दे रही थीं, उसी प्रकार उनका कंठ उनकी संगीत शब्दावली को स्वरों के ताल से ऊपरनीचे कर रहा था। ऐसे लग रहा था, जैसे कि संगीत के कुछ स्वर ऊपर स्वर्ग की ओर जा रहे हैं और कुछ स्वर धरती पर खेतों में काम करने वाले लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनका संगीत खेतों में काम करने वाले लोगों के तन में लय पैदा कर देता है, जिससे वहाँ का सारा वातावरण संगीतमय हो जाता है। रचना और अभिव्यक्ति – प्रश्न 9. वे मृत्यु को दुख का नहीं बल्कि आनंद मनाने का अवसर मानते थे। कबीर ने आत्मा को परमात्मा की प्रेमिका बताया है, जो मृत्यु उपरांत अपने प्रियतम से जा मिलती है। बालगोबिन भगत ने कबीर की वाणी का पालन करते हुए अपने पुत्र के मृत शरीर को फूलों से सजाया और पास में दीपक जलाया। वे स्वयं भी पुत्र के मृत शरीर के पास बैठकर पिया मिलन के गीत गाने लगे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी रोने के लिए मना कर दिया था। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा थी। प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. भगत ने बेटे के मोह में पड़कर शोक नहीं मनाया बल्कि उन्होंने उसकी मृत्यु को आनंद मनाने का अवसर बताया। वे शरीर के मोह में नहीं थे। वे मनुष्य की आत्मा से प्रेम करते थे। उनके अनुसार मृत्यु के बाद प्रेमिका रूपी आत्मा शरीर से निकलकर अपने प्रेमी रूपी परमात्मा से मिल जाती है। इसलिए उन्होंने बेटे मृत शरीर का श्रृंगार किया और मिलन के गीत गाए। भगत ने मृत्यु के सच को जान लिया था, इसलिए वे अपने बेटे के मोह में नहीं पड़े। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी शोक मनाने से मना कर दिया था। भाषा-अध्ययन – प्रश्न 14. पाठेतर सक्रियता – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. सब तरफ़ बड़ीबड़ी दुकानें हैं; शोरूम हैं; गगनचुंबी इमारते हैं; बड़े-बड़े मल्टीप्लैक्स हैं; लंबी-लंबी गाड़ियों की भरमार है। यहाँ प्रकृति की सुंदरता नहीं है। कहीं-कहीं गमलों में कुछ पौधे अवश्य दिखाई दे जाते हैं, लेकिन पेड़ों का अभाव है। मेरे नगर से कुछ दूरी पर एक नदी है, पर वह बुरी तरह से प्रदूषित है। नगर के कारखानों का कचरा उसी में गिरता है। वास्तव में गाँव के साफ़-सुथरे वातावरण से मेरे नगर की कोई तुलना नहीं है। यह भी जानें प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है। श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती – पलकें, खोलो, रैन सिरानी। JAC Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answersप्रश्न 1. अपने नियमों पर दृढ़ रहना, निजी आवश्यकताओं को सीमित करना, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील होना तथा मोह-माया के जाल से दूर रहने वाला व्यक्ति ही साधु हो सकता है। बालगोबिन भगत भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके अनुसार उनका जो कुछ भी है, वह मालिक की देन है; उस पर उसी का अधिकार है। इसलिए वे अपने खेतों की पैदावार कबीर मठ में पहुँचा देते थे। बाद में प्रसाद के रूप में जो मिलता, उसी से अपना निर्वाह करते थे। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु पर अपनी पुत्रवधू से सभी क्रिया-कर्म करवाए। वे समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। उन्होंने पुत्रवधू को पुनर्विवाह के लिए उसके घर भेज दिया था। वे अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ नहीं करते थे। उनके सभी कार्य परहित में होते थे। वे अंत तक अपने बनाए नियमों में विश्वास करते हुए जीते रहे। उन्होंने आत्मा के वास्तविक रूप को पहचान लिया था। वे कहते थे कि अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है, इसलिए उसका मोह व्यर्थ है। व्यक्ति को अपनी मुक्ति के लिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। इस पाठ के माध्यम से लेखक लोगों को पाखंडी साधुओं से सचेत करना चाहता है। पाठ हमें बताता है कि वास्तविक साधु वही होते हैं, जो समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत करें और समाज को पुरानी सड़ी-गली परंपराओं से मुक्त करवाएँ। प्रश्न 2. व्यक्तित्व – बालगोबिन भगत मँझोले कद के व्यक्ति थे। उनका रंग गोरा था। बाल सफ़ेद थे। वे लंबी दाढ़ी नहीं रखते थे। सफ़ेद बालों के कारण उनके चेहरे पर बहुत तेज़ था। वेशभूषा – बालगोबिन भगत बहुत कम कपड़े पहनते थे। उनके अनुसार शरीर पर उतने ही कपड़े पहनने चाहिए, जितने शरीर पर आवश्यक हों। वे कमर पर एक लँगोटी पहनते थे और सिर पर कनफटी टोपी पहनते थे। सरदियों में वे काली कमली ओढ़ते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन का टीका होता था। वह टीका नाक से शुरू होकर ऊपर तक जाता था। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला होती थी। व्यवसाय – बालगोबिन भगत का काम खेतीबाड़ी था। वे एक किसान थे। वे अपने खेत में धान की फसल उगाते थे। कबीर के भक्त – बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु थे। उन्होंने अपने जीवन में कबीर का जीवन-वृत्त उतार रखा था। वे कबीर को अपना साहब मानते थे और उनकी शिक्षाओं पर अमल करते थे। उनके अनुसार उनका जो कुछ था, वह सब साहब (कबीर) की देन था। मधुर गायक – बालगोबिन भगत एक मधुर गायक थे। उनका गीत सुनने वाला व्यक्ति अपनी सुध-बुध खोकर उसी में खो जाता था। वे कबीर के पद इस ढंग से गाते थे कि ऐसे लगता था, मानो सभी पद जीवित हो उठे हों। बालगोबिन भगत के संगीत का जादू सबको झूमने के लिए मजबूर कर देता था। संतोषी वृत्ति के व्यक्ति – बालगोबिन भगत संतोषी वृत्ति के व्यक्ति थे। उनकी निजी आवश्यकताएँ सीमित थीं। उनके खेत में जो पैदावार होती थी, वे उसे कबीर के मठ में पहुँचा देते थे। वहाँ से जो प्रसाद के रूप में मिलता था, उसी में अपनी गहस्थी का निर्वाह करते थे। परमात्मा से प्रेम – बालगोबिन भगत भगवान के निराकार रूप को मानते थे। उनके अनुसार आत्मा की मुक्ति के लिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। उन्होंने मृत्यु की यह सच्चाई जान ली थी कि अंत में शरीर में से आत्मा निकलकर परमात्मा में मिल जाती है। इसलिए परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। मोहमाया से दूर – बालगोबिन भगत मोहमाया से दूर थे। उन्हें केवल परमात्मा से प्रेम था। वे मोहमाया के किसी भी बंधन में नहीं बँधते थे। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु हुई, तो उन्होंने शोक मनाने की अपेक्षा उसे आनंद मनाने का अवसर माना। इस दिन उनके बेटे की आत्मा शरीर से मुक्त होकर परमात्मा से मिल गई थी। उन्होंने बेटे की मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नी को भी उसके घर भेज दिया था, ताकि वह पुनर्विवाह कर सके। वे किसी प्रकार के मोह में नहीं पड़ना चाहते थे। नियमों पर दृढ़ – बालगोबिन भगत अपने बनाए नियमों पर दृढ़ थे। वे किसी से बिना पूछे उसकी वस्तु व्यवहार में लाना तो दूर, छूते भी नहीं थे। गंगा-स्नान जाते समय मार्ग में कुछ भी नहीं खाते थे। उन्हें आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे अपनी दिनचर्या का पालन बीमारी में भी नियमपूर्वक करते रहे। सामाजिक परंपराओं के विरोधी – बालगोबिन भगत सामाजिक परंपराओं के विरोधी थे। उन्होंने अपने बेटे की मृत्यु के सभी क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से करवाए थे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को पुनर्विवाह के लिए मजबूर किया था। वे उसे अपने पास रखकर उसके मन को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। वे ऐसी सामाजिक मान्यताएँ नहीं मानते थे, जो किसी को दुख दें। बालगोबिन का चरित्र उनके साधुत्व को प्रकट करता है। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. पठित गद्याश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – दिए गए गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए – (क) बेटे की चिता को अग्नि किसने दी? (ख) श्राद्ध की अवधि के पूरा होते ही पतोहू को कहाँ भेजा दिया? (ग) ‘बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया’ से क्या आशय है? (घ) पति के निधन के पश्चात पतोहू भगत को छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहती थी? (ङ) पतोहू के भाई से उसकी दूसरी शादी रचाने के निर्देश में भगत की किस विचारधारा का परिचय मिलता है? उच्च चिंतन क्षमताओं एवं अभिव्यक्ति पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न – पाठ पर आधारित प्रश्नों को पढ़कर सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए (ख) बेटे की मृत्यु पर बालगोबिन आनंद मनाने की बात क्यों कहते हैं? (ग) भगत किसे अपना साहब मानते थे? (घ) बालगोबिन भगत की प्रभातफेरियाँ किस महीने से शुरू हो जाती थीं? महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – 1. न जाने वह कौन-सी प्रेरणा थी, जिसने मेरे ब्राह्मण का गर्वोन्नत सिर उस तेली के निकट झुका दिया था। जब-जब वह सामने आता, मैं झुककर उससे राम-राम किए बिना नहीं रहता। माना, वे मेरे बचपन के दिन थे, किंतु ब्राह्मणता उस समय सोलहो कला से मुझ पर सवार थी। दोनों शाम संध्या की जाती, गायत्री का जाप होता, धूप-हवन जलाए जाते, चंदन-तिलक किया जाता और इन सारी चेष्टाओं से ‘ब्रह्म’ को जानकर पक्का ‘ब्राह्मण’ बनने की कोशिशें होती-ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः! अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 2. बचपन में लेखक ब्राह्मण धर्म के अनुसार पूजा-पाठ करता था। ब्राह्मण होने के कारण वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ मानता था। वह सुबह-शाम दोनों समय संध्या आदि करता था। 3. लेखक गर्वोन्नत इसलिए था, क्योंकि वह ब्राह्मण था। उसे ब्राह्मण द्वारा किए जाने वाले सभी कार्य; जैसे-पूजा-पाठ, संध्या, धूप-हवन करना, चंदन-तिलक लगाना आदि; सबकुछ आता था। इसलिए वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझकर गर्वोन्नत था। 4. लेखक का सिर बालगोबिन भगत के सामने झुक गया था। वह जब भी उन्हें देखता था, उन्हें झुककर राम-राम करता था। वह उनके गुणों के कारण उनसे प्रभावित था और उन्हें आदर-मान देता था। वे अत्यंत साधु प्रकृति के व्यक्ति थे। 5. इस कथन से तात्पर्य है कि लेखक स्वयं को पक्का ब्राह्मण समझता था। वह ब्राह्मण द्वारा किए गए सभी कार्य जैसे-पूजा-पाठ, संध्या, हवन आदि करता था। इस प्रकार वह स्वयं को इन साधनों के द्वारा ब्रह्म को जानने वाला पक्का ब्राह्मण समझता था। 6. जो ब्रह्म को जानता है, वह ब्राह्मण है। 2. आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 2. बालगोबिन भगत पूरी तरह कीचड़ से सने हुए अपने खेत में रोपनी कर रहे थे। वे धान के पौधों को पंक्तिबद्ध रूप से खेत में रोप रहे थे। 3. बालगोबिन भगत अपने खेत में रोपनी करते हुए उच्च स्वर में मधुर-गीत गा रहे थे। 4. बालगोबिन का संगीत सुनकर खेलते हुए बच्चे झूमने लगते थे। उनका संगीत सुनकर स्त्रियाँ गुनगुनाने लगती थीं; हलवाहों के पैर ताल से उठते लगते थे। खेतों में रोपनी करने वाले भी मंत्रमुग्ध होकर क्रम से कार्य करने लगते थे। इस प्रकार बालगोबिन भगत का संगीत सब पर जादू-सा कर देता था। 3. गरमियों में उनकी ‘संझा’ कितनी उमसभरी शाम को न शीतल करती! अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मंडली उसे दहराती, तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से। उस ताल-स्वर के चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठे हैं। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत है! अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 2. प्रेमी-मंडली उन संगीत-प्रेमी लोगों की मंडली थी, जो बालगोबिन भगत के घर गरमियों की उमस भरी शाम के समय खंजड़ियाँ और करताल बजाकर उनके गाए पदों को दोहराते थे तथा वातावरण में उमस के स्थान पर शीतलता भर देते थे। 3. इस कथन का आशय है कि बालगोबिन भगत के गाए हुए पदों को दोहराते समय लोग इतने मग्न हो जाते थे कि वे अपने तन की सुध भूलकर मन से भक्ति रस में डूब जाते थे। उन्हें दीन-दुनिया की सुध नहीं रहती थी। वे मनोलोक में विचरण करने लगते थे। 4. इस प्रकार भक्ति-रस में लीन होकर वह क्षण आ जाता था, जब बालगोबिन भगत भावविभोर होकर खजड़ी बजाते हुए नाचने लगते थे तथा उनकी प्रेमी-मंडली के सदस्य भी उनके चारों ओर घेरा बनाकर नाचते थे। ऐसे समय में सारा वातावरण संगीत की ताल पर नाचता हुआ लगता था। 4. बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपे रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। घर में पतोहू रो रही है, जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं! हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नज़दीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था-वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 2. वे अपने बेटे की मृत देह के सामने ज़मीन पर बैठकर गीत गाने लगे। 3. उन्होंने अपनी पतोहू को रोने से मना किया और कहा, कि आज रोने का नही, बल्कि उत्सव मनाने का दिन है, क्योंकि उसके पति की आत्मा अब परमात्मा से मिल गई है। 4. बालगोबिन का विचार था कि मरने के बाद आत्मा परमात्मा में जाकर लीन हो जाती है। परमात्मा रूपी प्रियतम के वियोग में भटकती हुई आत्मा मृत्यु के बाद अपने प्रिय से जा मिलती है। 5. लेखक को लगता था कि कहीं बालगोबिन पागल तो नहीं हो गए, क्योंकि वे अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर शोक की बजाय आनंद मना रहे हैं तथा अपनी पतोहू को भी रोने के स्थान पर उत्सव मनाने के लिए कह रहे हैं। उन्हें मृत्यु आनंद मनाने का अवसर लगता है। 5. बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। उनकी जाति में पुनर्विवाह कोई नई बात नहीं, किंतु पतोहू का आग्रह था कि वह यहीं रहकर भगतजी की सेवा-बंदगी में अपने वैधव्य के दिन गुज़ार देगी। लेकिन, भगतजी का कहना थानहीं, यह अभी जवान है, वासनाओं पर बरबस काबू रखने की उम्र नहीं है इसकी। मन मतंग है, कहीं इसने गलती से नीच-ऊँच में पैर रख दिए तो। नहीं-नहीं, तू जा। इधर पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए! लेकिन भगत का निर्णय अटल था। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 2. श्राद्ध का समय समाप्त होते ही उन्होंने पतोहू के भाई को बुलाया और उसे अपनी बहन को साथ ले जाने के लिए कहा। उन्होंने उसके भाई को यह भी कहा कि अपनी बहन का दूसरा विवाह कर देना। 3. बालगोबिन भगत की पतोहू अपने भाई के साथ नहीं जाना चाहती थी; वह दूसरा विवाह भी नहीं करना चाहती थी। वह यहीं रहकर भगत जी की सेवा करना चाहती थी। वह उन्हें बुढ़ापे में बेसहारा छोड़कर नहीं जाना चाहती। वह उनके लिए खाना बनाना, बीमारी में देखभाल करना आदि कार्य करना चाहती थी। 4. बालगोबिन भगत के अनुसार पतोहू अभी जवान थी। उसके सामने सारा जीवन था, वह अकेले नहीं चल पाएगी। मनुष्य का मन चंचल होता है। वह भी कभी भटक सकती थी। इन सब बुराइयों से बचने के लिए ही वे अपनी पतोहू का विवाह कर देना चाहते थे। 5. इस कथन से भगत के चरित्र की दृढ़ता का पता चलता है कि वे अपनी कही हुई बात पर सदा अटल रहते थे। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। इसलिए वे अपनी पतोहू के तर्कों को नहीं मानते और उसे उसके भाई के साथ भेज देते हैं, जिससे वह उसका पुनर्विवाह करवा सके। बालगोबिन भगत Summary in Hindiलेखक-परिचय : जीवन – आधुनिक युग के निबंधकारों में श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म मुजफ्फरपुर जिले (बिहार) के बेनीपुर गाँव में सन 1899 ई० में हुआ। बचपन में ही इनके सिर से माता-पिता की छाया उठ गई थी। सन 1920 में गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर ये अध्ययन छोड़कर राष्ट्र-सेवा में लग गए। गांधीजी के दर्शन में इनकी विशेष आस्था थी। ‘रामचरितमानस’ के पठन-पाठन ने इन्हें साहित्य की ओर प्रेरित किया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें अनेक बार जेल की यातनाएँ सहन करनी पड़ी। सन 1968 ई० में इनका देहावसान हो गया। रचनाएँ – पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही ये पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखने लग गए थे। इन्होंने ‘बालक’, ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘नयी धारा’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। उपन्यास, नाटक, कहानी, यात्रा-विवरण, संस्मरण, निबंध आदि लगभग सभी गद्य विधाओं में बेनीपुरी जी की अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका पूरा साहित्य ‘बेनीपुरी रचनावली’ के आठ खंडों में प्रकाशित हुआ है। ‘पतितों के देश में’ (उपन्यास); ‘चिता के फूल’ (कहानी); ‘माटी की मूरतें’, ‘नेत्रदान’ तथा ‘मन और विजेता’ (रेखाचित्र); अंबपाली’ (नाटक); ‘गेहूँ और गुलाब’ (निबंध और रेखाचित्र); ‘पैरों में पंख बाँधकर’ (यात्रा विवरण); ‘जंजीरें और दीवारें’ (संस्मरण) आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। भाषा-शैली – इनकी भाषा ओजपूर्ण तथा सशक्त है। इसमें प्रांतीय शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इन्होंने खड़ी बोली के परिष्टत रूप का प्रयोग किया है। इन्होंने सामान्य बोलचाल के शब्दों में तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग किया है। बाक्य रचना स्वाभाविक है। ‘बालगोबिन भगत’ इनके द्वारा रचित रेखाचित्र है, जिसमें लेखक ने एक ऐसे चरित्र का उद्घाटन किया है जो अपनले का लोकनायक है। उसने रूढ़ियों से ग्रस्त समाज से टक्कर लेकर अपने युग में सर्वत्र क्रांतिकारी पग उठाए हैं। अपने पुराना को अपनी मोह से अग्नि दिलवाई और उसे पुनर्विवाह करने के लिए कहा। इस रेखाचित्र में मनोवृत्ति, मात्र, कंठ, अकस्मात, आपल जैसे तत्सप्प शब्दों के साथ-साथ लँगोटी, जाड़ा, तूल, खजड़ी, पियवा, रोपनी आदि देशज शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है। इनकी शैली भावपूर्ण, चित्रात्मक, विचारपूर्ण तथा कहीं-कहीं वर्णनात्मक हो गई है। कहीं-कहीं काव्यात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं। जैसे… उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता?’ आषाढ़ के आगमन का वर्णन अत्यंत ही सजीवता लिए हुए है। जैसे – ‘आषाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादलों से घिरा, धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही है।’ पाठ का सार : ‘बालगोबिन भगत’ के लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इस रेखाचित्र के माध्यम से उन्होंने एक ऐसे संन्यासी का वर्णन किया है, जो वेशभूषा या बाह्य-आडंबरों से संन्यासी नहीं लगता था। लेखक के अनुसार उसके संन्यासी होने का आधार मानवीय जीवन के प्रति प्रेम था। वह वर्ण-व्यवस्था और सामाजिक रूढ़ियों का विरोधी था। इस रेखाचित्र के माध्यम से हमें ग्रामीण जीवन की झलक देखने को मिलती है। लेखक बचपन में स्वयं को पक्का ब्राह्मण मानता था। वह ब्राह्मण की पहचान करवाने वाली सभी क्रियाएँ करता था। वह इस बात पर विश्वास करता था कि ब्रह्म का ज्ञाता केवल ब्राह्मण होता है। लेकिन एक तेली के आगे लेखक का गर्व से ऊँचा सिर स्वयं ही झुक जाता था। हमारे समाज में तेली का यात्रा के समय मिलना अच्छा नहीं समझा जाता। बालगोबिन भगत साठ वर्ष के मँझोले कद के गोरे-चिट्ठे भी व्यक्ति थे। वे केवल कमर में एक लँगोटी तथा कबीरपंथियों वाली कनपटी टोपी पहनते थे। सरदियों में एक काली कमली ओढ़ते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन का टीका तथा गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। बालगोबिन एक गृहस्थ व्यक्ति थे। उनके बेटा-बहू थे। वे खेती-बाड़ी का काम करते थे। बालगोबिन गृहस्थ होते हुए भी साधु थे। वे ‘कबीर’ की मान्यताओं को बहुत मानते थे। उन्हीं के गीतों को गाते थे। वे ‘कबीर’ को ‘साहब’ मानते थे। ‘कबीर की मान्यताओं के अनुसार वे न कभी झूठ बोलते थे, न किसी की चीज़ को हाथ लगाते थे और न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। उनकी हर चीज पर ‘साहब’ का अधिकार था। वे अपने खेत की पैदावार को सिर पर रख ‘कबीर’ के मठ पर जाते। उस पैदावार को भेट-स्वरूप चढ़ाते और जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसी में गुजारा करते थे। लेखक बालगोबिन भगत के गायन पर मुग्ध था। उनका गायन सदा सबको सुनने को मिलता था। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरे गाँव के आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था। इसका कारण यह था कि बालगोबिन रोपाई करते समय गाना गाते थे। उनके कंठ से निकला एक-एक शब्द ऐसा लगता था, जैसे कुछ ऊपर स्वर्ग की ओर तो कुछ पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अँधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। इन गीतों के अनुसार पिया साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने को अकेली समझती है, इसलिए बिजली की चमक से चौंक उठती है। जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अँधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी-स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। बालगोबिन का संगीत लेखक को गाँव के बाहर पोखर पर ले गया। वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गरमियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था। सब लोगों ने बालगोबिन भगत की संगीत-साधना की चरम-सीमा उस दिन देखी, जिस दिन उनका इकलौता बेटा मरा था। उनका बेटा दिमागी तौर पर सुस्त था। बालगोबिन उस पर अधिक ध्यान देते थे। उनके अनुसार ऐसे लोगों को अधिक-देखभाल और प्यार की आवश्यकता होती है। उनके बेटे की बहू बहुत सुघड़ और सुशील थी। उसने आते ही घर के सारे काम को सँभाल लिया था। उसने बालगोबिन भगत को दुनियादारी से काफी सीमा तक मुक्त कर दिया था। जिस दिन बालगोबिन का लड़का मरा, सारा गाँव उसके घर इकट्ठा हो गया। बालगोबिन को देखकर सभी लोग हैरान थे। उन्होंने अपने बेटे को आँगन में चटाई पर लिटा रखा था। उस पर सफ़ेद कपड़ा दे रखा था। कुछ फूल और तुलसी के पत्ते उस पर बिखेर रखे थे। पास में ही वे आसन पर बैठे गीत गा रहे थे। कमरे में उनकी पुत्रवधू बैठी रो रही थी। वे बीचबीच में उसे चुप करवाते और कहते कि उसे रोना नहीं चाहिए। यह समय तो उत्सव मनाने का है। उनके बेटे की आत्मा परमात्मा में मिल गई है। आज प्रियतमा का अपने पिया से मिलन हो गया है। यह तो आनंद की बात है। लेखक को लग रहा था कि वे पागल हो गए हैं। उन्होंने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपने बेटे की बहू से करवाया था। श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर उन्होंने बहू को उसके घर भेज दिया। उन्होंने उसके घरवालों को उसकी दूसरी शादी करवाने का आदेश दिया। बहू ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। वह उनके पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। उसे इस बात की बहुत चिंता थी कि बुढ़ापे में उनका ध्यान कौन रखेगा। लेकिन बालगोबिन भगत अपने कारण बहू का जीवन खराब नहीं करना चाहते थे और वे जवानी में संन्यास लेने के विरुद्ध थे। इसलिए उन्होंने उसे घर छोड़ने की धमकी दी कि यदि वह अपने पिता के घर नहीं गई, तो वे घर छोड़कर चले जाएंगे। उनकी यह बात सुनकर बहू अपने घर चली गई। बालगोबिन भगत के स्वभाव के अनुरूप ही उनकी मृत्यु हुई। वे प्रतिवर्ष पैदल ही गंगा-स्नान के लिए जाते थे। गंगा-स्नान के बहाने वे संतों से मिलते थे। गंगा उनके गाँव से तीस कोस दूर थी। वे घर से ही खा-पीकर चलते थे और लौटकर घर पर ही आकर खाते थे। रास्ते भर । वे गाते-बजाते जाते थे। उनको आने-जाने में चार दिन लग जाते थे। अब वे बूढ़े हो गए थे, लेकिन उनका लंबा उपवास और गायन लगातार चलता था। इस बार वे गंगा-स्नान से लौटकर आए, तो उनकी तबीयत खराब थी। बुखार में भी नियम-व्रत नहीं तोड़े। लोगों ने उन्हें सबकुछ छोड़कर आराम करने के लिए कहा, परंतु वे हँसकर टाल देते थे। एक दिन उन्होंने संध्या को गीत गाए, लेकिन रात को जीवन की माला का धागा टूट गया। लोगों को सुबह बालगोबिन भगत के गीतों का स्वर सुनाई नहीं दिया, तो उन्होंने देखा कि उनके शरीर से आत्मा निकलकर : परमात्मा से मिल गई थी। कठिन शब्दों के अर्थ : गर्वोन्नत – गर्व से ऊँचा। सोलहो कला – पूरी तरह से। खामखाह – बेवजह। कौंध – चमक। मँझोला – न बहुत बड़ा न बहुत छोटा। चरम उत्कर्ष – बहुत ऊँचाई पर। कमली – कंबल, गर्म कपड़ा। पतोहू – पुत्रवधू/ पुत्र की स्त्री। रोपनी – धान की रोपाई। कलेवा – सवेरे का नाश्ता। पुरवाई – पूर्व की ओर से बहने वाली हवा। अधरतिया – आधी रात। खजड़ी – ढफली के आकार का छोटा वाद्य-यंत्र। निस्तब्धता – सन्नाटा। प्रभाती – प्रातःकाल गाया जाने वाला गीत। लोही – प्रात:काल की लालिमा। कुहासा – कोहरा, धुंध। आवृत – ढका हुआ। कुष्टा – एक प्रकार की नुकीली घास। बोदा – कम बुद्धि वाला। मतंग – बादल, मेघ। संबल – सहारा। बालगोबिन भगत कैसे गाते थे?बालगोबिन जमीन पर बैठे अपने पुराने स्वर और तल्लीन भाव से गा रहे थे | गाने के बीच में वे अपनी पुत्रवधू को रोने के बदले उत्सव मनाने को कह रहे थे। वे कहते आत्मा और परमात्मा के मिलन से बढ़कर कोई आनन्द नहीं है। लेखक को वह कभी पागल लग रहा था, तो कभी उसमें उनका मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का दृढ़ विश्वास बोलता दिखाई दे रहा था।
बालगोबिन भगत कैसे आदमी थे?बालगोबिन भगत कबीर के पक्के भक्त थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और हमेशा खरा व्यवहार करते थे। वे किसी की चीज का उपयोग बिना अनुमति माँगे नहीं करते थे। उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण वे साधु कहलाते थे।
भगत सिर पर क्या पहनते थे?उनका चेहरा सदा सफेद बालों में चमकता रहता था। वे शरीर पर उतने ही कपड़े पहनते थे जितने शरीर को ढकने के लिए आवश्यक थे। कमर में एक लंगोटी बांधते थे और सिर कबीर पंथी कनफटी टोपी पहनते थे।
बालगोबिन भगत कैसे कद के थे 1 Point?बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु हमेशा उनका चेहरा सफेद बालों से ही जगमग किए रहता।. वे गुनगुनाने लगते हैं. हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं. रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं।. |