झारखण्ड के लोक नृत्य Show
प्रकृति के अनुरूप हो संस्कृति का निर्माण होता है और संस्कृति का सर्वोतम उपादान है संगीत । संगीत में समाहित है- गायन, वदन और नर्त्तन । अप्रतिम है झारखण्ड की प्रकृति और संस्कृति. यहाँ की आदिम संस्कृति में ही विद्यमान है संगीत की अनगिनत स्वर लहरियाँ। संगीत के विना झारखण्ड निष्प्राण है। "सेन गे सुसन :, काजि के दुरङ, दूरी के टुमङ है अर्थात् चलना ही नृत्य है, बोलना ही संगीत और वक्ष व नितम्ब ही मांदर है। यह पुरानी कहावत है मुण्डारी और सदानी की। उराँव भी यहीं कहते है … एकना दिम तोकना क्यूथा दिम डण्डी। स्वर सभी का एक है, संस्कृति भी एक सी है। क्यों न हो,जब भूखंड की प्रकृति ही एक है। निश्चय ही बोलने से पहले मानव ने नाचना सीखा होगा । भूखे -प्यासे मानव ने जब अचानक फल-जल पाया होगा, मारे खुश के यह नाच उठा होगा। हाथों को बजाया होगा। मुख से किलकारियाँ मारी होगी। आनंद के अतिरेक में आदमी आज भी नाचने, गाने लगता है। झारखण्ड में प्राय : जितने प्रकार के नृत्य है, उतने ही प्रकार के लय, ताल एवं राग भी हैं । इसी से यहाँ की नृत्य मुद्राओं की शैली के अनुरूप उनके रागों के नाम हैं, यहीं इनको नैसर्गिकता और समरूपता है। झारखंडी समाज में नृत्य को खेलना, खेइल, खैलैक भी कहा जाता है। ' अखरा खैलेक' अर्थात् अखरा में नाचना, 'डमकच खेलइया के' तात्पर्य डमकच नाचने वाले कौ, जैसे प्रयोग चलते है। झारखंडी नृत्य का स्वरूप मौसम व ऋतुचक्र के अनुक्रम में परिवर्तित होता रहता है। अवसर विशेष के उपलक्ष में भी नृत्य आयोजित होते हैं, जैसे-फगुआ नाच, मंडा नृत्य, भगतिया है नाच, सोहराई नृत्य, दासाईं नाच, सरहुल नृत्य, करमा नाच,जतरानृत्य, नागे नाच आदि। झारखण्ड के अधिकांश नृत्य, भक्ति, श्रृंगार, करुण, चीर,शति रस के होते है, तो कुछ नृत्य युद्ध, शिकार, कृषि व जीवन से संबंधित विविध प्रकृति कै। इनके नृत्य संगीत में जीवन के कटु-मधु अनुभूतियों की अभिव्यक्तियों की प्रधानता रहती है।
डोमकच:
सामा—चकेवा:
किरतनिया:
भाकुली बंका:
विदेशिया:
संस्थाएं
झारखंड की लोक कला क्या है?संगीत और लोकनृत्य के क्षेत्र में भी झारखंड सम्पन्न है। एक्हरिया, डमकच, ओरजापी, झुमइर, फगुआ, वीर सेरेन, झीका, फिलसंझा, अधरतिया या भिनसरिया, डोड, असदी, झूमती या धुरिया या अन्य लोक गीत महत्वपूर्ण हैं। झारखंड के लोगों द्वारा गायन और नृत्य में संगीत और बजाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
लोक कला कितने प्रकार के होते हैं?भारत की लोक चित्रकला. मधुबनी चित्रकला. पट्टचित्र कला. पिथोरा चित्रकला. कलमकारी चित्रकला. कालीघाट चित्रकला. फर्श चित्रकला (पट चित्रकला). वर्ली चित्रकला. थांका चित्रकला. झारखंड का राष्ट्रीय नृत्य कौन सा है?➤छऊ नृत्य ➤यह झारखंड का सबसे महत्वपूर्ण लोक नृत्य है।
लोक कला का अर्थ क्या है?भारत की अनेक जातियों व जनजातियों में पीढी दर पीढी चली आ रही पारंपरिक कलाओं को लोककला कहते हैं। इनमें से कुछ आधुनिक काल में भी बहुत लोकप्रिय हैं जैसे मधुबनी और कुछ लगभग मृतप्राय जैसे जादोपटिया।
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