These Sample Papers are part of CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 2 Show निर्धारित समय : 3 घण्टे सामान्य निर्देश * इस प्रश्न-पत्र में चार खण्ड हैं खण्ड (क) : अपठित अंश प्र. 1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए उत्साह आनन्द और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में किसी-न-किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो। (i) विशेष रूप से प्रेरणा देने वाले सुख की क्या विशेषता होती है? प्र. 2. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए कहीं रहूँ कैसे भी, मुझको प्यारा यह इंसान है, खण्ड (ख) : व्यावहारिक व्याकरण प्र. 3. निम्नलिखित वाक्यों के रचना के आधार पर भेद लिखिए प्र. 4. निम्नलिखित वाक्यों को वाच्य के अनुसार परिवर्तित कीजिए प्र. 5. निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों का पद-परिचय दीजिये प्र. 6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए खण्ड (ग) : पाठ्य पुस्तक एवं पूरक पाठ्य पुस्तक प्र. 7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए प्र. 8. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए प्र.9. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे प्रश्नों के उत्तर लिखिए प्र. 10. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए प्र. 11. “यह बात अखबार वालों तक न पहुँचे।” ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में मूर्तिकार द्वारा कहे गए इस वाक्य से समाज में आ रहे परिवर्तन पर प्रकाश डालिए। अथवा ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति का दोहन करने, पर्यावरण-संरक्षण के प्रति असावधान रहने का उल्लेख किया गया है। आप एक जागरूक नागरिक का कर्तव्य निभाते हुए ऐसे लोगों को किस प्रकार समझाएँगे? विचार करके लिखिए। खण्ड (घ) : लेखन प्र. 12. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर 200 से 250 शब्दों में निबंध लिखिए।
(ख) समय की कमी से जूझता महानगरीय जीवन
(ग) छात्र असंतोष
प्र. 13. अपने क्षेत्र में मच्छरों के प्रकोप का वर्णन करते हुए उचित कार्रवाई के लिए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिये। अथवा ग्रीष्मावकाश में आपके पर्वतीय मित्र ने आपको आमंत्रित कर अनेक दर्शनीय स्थलों की सैर कराई। इसके लिए उसका आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद-पत्र लिखिए। प्र. 14. किसी ऑनलाइन शॉपिंग कम्पनी की ओर से 25-50 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए। अथवा पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लगभग 25-50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए। उत्तरमाला खण्ड (क) उत्तर 1. (i) विशेष रूप से प्रेरणा देने वाले सुख की यह विशेषता होती है कि जब किसी भी कारण से मनुष्य किसी व्यक्ति के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है और उसे पूरा करता है तब ही वह सुख प्राप्त करता है। उत्तर 2. (i) “मेरा तो आराध्य आदमी देवालय हर द्वार है”, पंक्ति से कवि का आशय नाम आदमी से है। अर्थात् यदि हमारे मन में प्यार है, तो हमारे मन में ही राम का वास रहता है। अतः हमें मंदिर-मस्जिद जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। खण्ड (ख) उत्तर 3. (क) सरल वाक्य। उत्तर 4. (क) कूजन कुंज में आस-पास के पक्षी द्वारा संगीत का अभ्यास किया जाता है। उत्तर 5. (क) छात्र-जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग। उत्तर 6. (क) वीर रस के संचारी भाव आवेग, हर्ष, गर्व आदि हैं। खण्ड (ग) उत्तर 7. (क) काशी की संस्कृति को ‘गंगा-जमुनी संस्कृति’ कहने का अभिप्राय है कि काशी में साम्प्रदायिक सद्भावना से परिपूर्ण वातावरण है। काशी में हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग मिलजुलकर रहते हैं। दोनों ही धर्मों के लोग एक-दूसरे के जज्बातों का सम्मान करते हैं और यहाँ दोनों धर्मों के लोग एक-दूसरे के रीति-रिवाजों व त्योहारों को परस्पर प्रेम व श्रद्धा के साथ मनाते हैं। (ख) काशी की संस्कृति को गंगा-जमुनी संस्कृति कहा गया है। यह संस्कृति उदारता, प्रेम व भाईचारे की संस्कृति है। इसमें धार्मिक कट्टरता नहीं दिखाई देती है। इसकी हवा में मजहबी मेलजोल व भाईचारे की खुशबू है। हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदाय के लागों में एक-दूसरे के रीति-रिवाजों व त्योहारों के प्रति श्रद्धा का भावना रहती है। अतः इससे सिद्ध होता है कि काशी साम्प्रदायिक सौहार्द से भरी नगरी रही है। (ग) “अभी जल्दी ही बहुत कुछ इतिहास बन चुका है। अभी आगे बहुत कुछ इतिहास बन जाएगा’-लेखक का यह कथन काशी में हो रहे धार्मिक, सांस्कृतिक एवं अन्य परिवर्तनों की ओर संकेत कर रहा है, किन्तु इतने परिवर्तनों में भी दो कौमों को जोड़ने वाले संगीत के स्वर आज भी अपना पुनीत कार्य कर रहे हैं। उत्तर 8. (क) कस्बे का एक गरीब फेरीवाला जिसे बूढ़ा कैप्टन कहते थे, वह शरीर से मरियल और अपंग था। उसका काम था गली-गली घूमकर चश्मे बेचना। लोगों ने उसका नाम ‘कैप्टन’ इसलिए रख दिया था क्योंकि वह सुभाषचन्द्र बोस और उनकी देशभक्ति की कायल था। उसे यह बात आहत करती थी कि सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति पर चश्मा नहीं था।
(ग) ‘एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका और उनके पिता के मध्य मनमुटाव का प्रमुख कारण वैचारिक अंतर था। पिताजी यह तो चाहते थे कि उनकी बेटी घर में आए लोगों के बीच उठे-बैठे, किन्तु उन्हें लेखिका को हड़तालें करवाना, नारे-लगाना, लड़कों के साथ आन्दोलन करते हुए सड़कों पर घूमना आदि बिल्कुल भी पसन्द नहीं था, जबकि लेखिका अपने पिताजी द्वारा दी गई उत्तर 9. (क) ‘तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान, मृतक में भी डाल देगी जान’-पंक्ति के आधार पर दंतुरित मुस्कान की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(ख) यदि बच्चे की माँ माध्यम न बनी होती, तो कवि बच्चे की दंतुरित मुस्कान को देखने के सुख से वंचित रह जाता। तब न तो शिशु उसे देखकर अठखेलियाँ करता और न ही मन को छूने वाली यह मुस्कान बिखेरता। उत्तर 10. (क) लक्ष्मण ने परशुराम को वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान और क्षोभरहित बताते हुए कहा कि आप जैसे महान् मुनि को अपशब्द कहना शोभा नहीं देता। आप शूरवीर हैं। शूरवीर अपनी करनी युद्ध में दिखाते हैं, बातों से अपना वर्णन नहीं करते । शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर अपने प्रताप की डग मारने वाले कायर होते हैं। उत्तर 11. प्रस्तुत पाठ में मूर्तिकार द्वारा कहे गए इस वाक्य से समाज में आ रहे परिवर्तन की ओर संकेत किया गया है। मूर्तिकार के पात्र द्वारा लेखक ने समाज में गिरते हुए नैतिक मूल्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। मूर्तिकार ने जीवित व्यक्ति की नाक को मूर्ति पर लगाने का सुझाव दिया है, परन्तु इस विनती के साथ कि यह बात अखबार वालों तक न पहुँचे। वह पैसे की तंगी से जूझ रहा था, इसीलिए उसने ऐसा सुझाव दिया। यद्यपि वह जानता है कि उसका यह सुझाव नैतिक दृष्टि से ठीक नहीं है, परन्तु पैसे की खातिर उससे कुछ भी करवाया जा सकता है। समाज का यही वर्ग धन की शक्ति के आगे विवश हो जाता है और धन के अभाव में मूल्यों का त्याग करने से भी नहीं चूकता। अतः समाज में धन की लोलुपता बढ़ती जा रही है, जिससे समाज पथ-भ्रष्ट हो गया है। अथवा ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति का दोहन करने, पर्यावरण-संरक्षण के प्रति असावधान रहने आदि का उल्लेख किया गया है। वास्तव में, इन उल्लेखों से यह लगता है कि जैसे बुद्धिजीवी होते हुए भी मनुष्य ने प्रकृति की ओर से अपनी आँखें बिल्कुल पूँद ली हैं। लोगों को समझाने के लिए मैं एक जागरूक नागरिक का कर्तव्य निभाते हुए ‘मुड़ो, प्रकृति की ओर’ नामक एक जागरूकता अभियान चलाता तथा पहले इसे अपने नगर में आरम्भ करता। अपने साथ कुछ अन्य जागरूक युवाओं को लेकर इसे जिले में, मंडल में, प्रदेश में और फिर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का प्रयास करता। इसके लिए मैं नुक्कड़ नाटक व मंडलियों की भी मदद लेता और उनसे स्थान-स्थान पर नुक्कड़ नाटक का आयोजन करवाता। मुझे पता है कि किसी भी अभियान को सफल बनाने में आजकल मीडिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, अतः मैं मीडिया की भी मदद लेता। खण्ड (घ) उत्तर 12. (क) शिक्षा को निजीकरण भूमिका-शिक्षा का निजीकरण अर्थात् शिक्षण संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपना और साथ ही उनका व्यवसायीकरण करना। आज भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में शिक्षण संस्थाओं के निजीकरण की आवश्यकता महसूस क्यों की गयी ? इसकी वजह है हमारी भारतीय सरकार, जो केवल 2.8% ही शिक्षा पर व्यय करती है। यही कारण है कि सरकारी शिक्षा प्रणाली कमजोर हो गई है और लोगों को निजी संस्थाओं की तरफ पलायन करना पड़ रहा है। निजीकरण के सकारात्मक प्रभाव-शिक्षा के निजीकरण से अक्षमता, भ्रष्टाचार, शिक्षण उपकरण, प्रयोगशालाएँ और पुस्तकालयों जैसे मानवीय संसाधनों के अपर्याप्त उपयोग को दूर किया जा सका है। इस तरह के संस्थानों में शिक्षा प्रदान किये जाने से छात्रों को अच्छी व उच्च शिक्षा प्राप्त हो सकी है। इसने शिक्षा के स्तर में सुधार, विकास व फैलाव में बहुत मदद की है और साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाया है। शिक्षा के निजीकरण से दुष्प्रभाव-यह केवल आर्थिक रूप से समृद्ध वर्ग के लिए अनुकूल है, इसने अंग्रेजी शिक्षा को विस्तृत रूप प्रदान किया है। मध्यम व निम्न वर्ग के लोग इन संस्थानों का शुल्क भी नहीं दे पाते हैं, जिस कारण बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। यह समर्थ और असमर्थ के बीच एक खाई उत्पन्न करती है। उपसंहार-शैक्षिक संस्थानों के प्रशासकों के लिए समय आ गया है कि शिक्षा की पवित्रता और महत्ता को महसूस करें और इसका व्यवसायीकरण न करें। सरकार उचित कानून बनाकर शिक्षा के निजीकरण से उत्पन्न समस्याओं को रोके ताकि देश की नींव को सुरक्षित रखा जा सके। (ख) समय की कमी से जूझता महानगरीय जीवन महानगर की जीवन-शैली-मनुष्य जितना प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है, उतनी ही उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती जा रही हैं। अपनी इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह एक स्थान से दूसरे स्थान को पलायन कर रहा है। इसी क्रम में मनुष्य ने अच्छे जीवन-यापन के लिए शहर की ओर कदम बढ़ाए। महानगरीय जीवन को एक महत्वपूर्ण आकर्षण होता है और वह आकर्षण है-आधुनिकता की चमक-दमक। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज महानगरीय जीवन समय की कमी से जूझ रहा है। ऐसा लगता है कि महानगरों में जीवन दौड़ रहा है। यहाँ हर कोई व्यस्त है। रेल की गति से दौड़ते महानगरों में आदमी की दिनचर्या इतनी व्यस्त हो चुकी है कि उसे दिन के 24 घंटे भी कम लगने लगे हैं। सुबह से लेकर शाम तक काम, काम ही बस काम। आराम के लिए तो महानगर के लोगों को समय ही नहीं है। उन्नति की अंधी दौड़-हमारे देश में दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई तथा मुम्बई की गणना महानगरों में की जाती है। इन महानगरों का विशेष आकर्षण है। इन-महानगरों में विश्व की आधुनिकतम सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ रोजगार के साधन हैं तथा शिक्षा एवं परिवहन की अच्छी व्यवस्था है। यहाँ की गगनचुंबी इमारतें जनसाधारण के लिए कौतूहल का विषय बनती हैं। ये इमारतें महानगरों के सौंदर्य में चार चाँद लगा देती हैं। महानगरों में पाई जाने वाली इन सुख-सुविधाओं की ओर जनसाधारण सहज आकर्षित होता है। वह यहाँ कभी बेहतर जिन्दगी की लालसा में तो कभी रोजगार की तलाश में आता है तथा यहीं का होकर रह जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि महानगरीय जीवन संपन्न लोगों के लिए ही वरदान है। मानवीय मूल्यों का पतन-बेहतर आमदनी के कारण ये सम्पन्न व्यक्ति कार, ए.सी. तथा विलासिता की वस्तुओं का प्रयोग कर स्वर्गिक सुख की अनुभूति करते हैं। इसके अलावा चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएँ, खाद्य वस्तुओं की बे-मौसम उपलब्धता, न्यायालय, पुस्तकालय इत्यादि की समुचित व्यवस्था महानगर का आकर्षण बढ़ाते हैं जिससे यह वरदान जैसा लगता है। महानगरों की बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में मूलभूत सुविधाओं में वृद्धि न होने से यहाँ अधिकतम निवासियों का जीवन दूभर हो गया है। एक ओर गगनचुंबी रूपी इमारतें चाँद हैं, तो वहीं उसमें लगा दाग ये झुग्गी-झोपड़ियाँ। यहाँ एक ओर तो सम्पन्न लोगों के पास बीस-बीस कमरे हैं, तो वहीं दूसरी ओर एक कमरे में बीस-बीस लोग रहने को विवश हैं। इसके अलावा यहाँ न पीने को शुद्ध पानी है और न साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा है। मानवीय मूल्यों का पतन हो रहा है। कृत्रिमता-आज मशीनों से खेलते-खेलते मनुष्य भी पूरी तरह मशीन ही बनता जा रहा है। इस यांत्रिक युग में वह पैसा छापने की मशीन बन गया है। आज उसके पास दूसरों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने व अपने परिवार के लिए भी समय का अभाव है। उसकी इस अति व्यस्तता ने उसको भौतिक सुख-सुविधाएँ तो दी हैं, किन्तु उसके जीवन में सुख-चैन के उन पलों को छीन लिया है, जिसमें प्रेम पनपता था, रिश्तों में मजबूती आती थी, एक-दूसरे के सुख-दुख के पलों में समान भागीदारी होती थी तथा आपसी विश्वास की नाजुक डोर मजबूत होती थी। तनावे-आज महानगरों में पारिवारिक तनाव, घुटन, निराशा, सगे रिश्ते-नातों में तनातनी आदि लोगों के सामाजिक जीवन में दिखाई देने लगी हैं। वृद्धाश्रम में अपनों द्वारा ठुकराए वृद्धों की संख्या का बढ़ना, जीवन का अपने तक ही सिमट जाना, सामाजिकता का दायरा सिकुड़ना इसी व्यस्तता से उपजी विसंगतियाँ हैं। संयमित जीवन-शैली अपनाने का आह्वान-मनुष्य को चाहिए कि दौड़ते-भागते इसे जीवन में कुछ समय अपने व अपनों के लिए जरूर निकालें, वरना इस दौड़ने-भागने में सुख-चैन जैसे शब्द उसके जीवन के शब्दकोश से हटते बहुत अधिक देर नहीं लगेगी और वह उस सुकून के लिए तरस जाएगा, जो उसकी रूह में समाकर उसे चैन देती है। (ग) छात्र असंतोष भूमिका–छात्र असंतोष का आशय है-विद्यार्थियों को वर्तमान शिक्षा एवं शिक्षा प्रणाली से असंतुष्ट होना। विद्यार्थियों की यह असंतुष्टि किसी पाठ्यक्रम को लेकर हो सकती है, शिक्षण प्रक्रिया को लेकर हो सकती है अथवा परीक्षा के मापदंड को लेकर हो सकती है। हम कई बार देखते हैं कि कुछ विद्यार्थियों को उनके पसंदीदा पाठ्यक्रमों अथवा स्थानों में प्रवेश नहीं मिल पाने के कारण भी उनमें असंतोष की भावना घर कर लेती है। सम्पन्न परिवारों के बच्चे तो अधिक शुल्क देकर निजी शिक्षण संस्थाओं में मनपसंद पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने में सफल रहते हैं, किन्तु निर्धन विद्यार्थियों के सामने धन के अभाव में पढ़ाई छोड़ने या पारम्परिक सस्ते पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। इस स्थिति में उनके भीतर स्वाभाविक रूप से शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना उत्पन्न हो जाती है और वे सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र को कोसने लगते हैं। छात्र असंतोष का प्रभाव-सूचना प्रौद्योगिकी के इस उन्नत युग में भी व्यावसायिक शिक्षा की अपेक्षित व्यवस्था भारत में अब तक नहीं हो पाई है। इसके कारण शिक्षित बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। शिक्षा के निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों की बाढ़ तो आ गई, किन्तु इन संस्थानों में विद्यार्थियों का अत्यधिक शोषण होता है। अतः विद्यार्थियों के पास कुंठित होकर अपनी किस्मत को कोसने के अलावा और कोई रास्ता शेष नहीं बचता। शिक्षा का उद्देश्य-शिक्षा जीवनभर चलने वाली एक प्रक्रिया है, इसलिए समाज एवं देश के लिए इसके उद्देश्य का निर्धारण करना आवश्यक है, चूँकि समाज एवं देश में समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं, इसलिए शिक्षा के उद्देश्य में भी समय के अनुसार परिवर्तन होते हैं। इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों की स्थापना पर्याप्त संख्या में करनी होगी। इसके अतिरिक्त राजनीति को शिक्षा से दूर रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इन संस्थाओं में शिक्षक एवं कर्मचारी अपनी मनमानी कर विद्यार्थियों का भविष्य चौपट न कर पाएँ। उपसंहार-छात्र असंतोष को दूर करने के लिए सबसे पहले देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर इसे वर्तमान समय के अनुरूप करना होगा। उत्तर 13. सेवा में, हमारे क्षेत्र में मच्छरों की अधिकता का बड़ा कारण है-पानी के जमे हुए तालाब और गली-मुहल्लों में फैली चौड़ी-चौड़ी गंदी नालियाँ। उन कच्ची नालियों को व्यवस्थित करने की कोई व्यवस्था नहीं हुई है। मुहल्ले के सफाईकर्मी इस ओर ध्यान नहीं देते, इसलिए नालियों में सदा मल जमा रहता है। लोग अपने घरों के गंदे जल को बाहर यूँ ही बिखरा देते हैं, जिससे मार्गों के गड्ढे भर जाते हैं। नगरपालिका इसके प्रति लापरवाह है। हमने कई बार निवेदन किया है कि हमारे क्षेत्र के तालाब को भरवा दिया जाए, जिससे मच्छरों का मुख्य अड्डा समाप्त हो जाए, किन्तु इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया। इस बार अत्यधिक वर्षा के कारण जगह-जगह जल भराव हो गया है। सब जगह कीचड़, मल और बदबूदार जल का प्रकोप हो गया है। अतः मैं पुनः अनमोल नगर के निवासियों की ओर से आप से साग्रह प्रार्थना करता हूँ कि मच्छरों को समाप्त करने के लिए घरों में मच्छरनाशक दवाई छिड़कने की व्यवस्था की जाए। मलेरिया से बचने के लिए कुनैन बाँटने की व्यवस्था की जाए तथा पूरे क्षेत्र की सफाई के व्यापक प्रबंध किए जाएँ। आशा है आप शीघ्र कार्यवाही करेंगे। अथवा अ.ब.स. मधुर स्मृति ! प्रिय चेतन ! तुम्हारे निमंत्रण पर मैं इन खूबसूरत दर्शनीय स्थलों का आनन्द उठा सका। इसके लिए मेरे पास धन्यवाद के योग्य शब्द नहीं हैं। बस इतना कहूँगा-आभार ! धन्यवाद! उत्तर 14. We hope the CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 2 help you. If you have any query regarding CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 2, drop a comment below and we will get back to you at the earliest. कर्म में आनंद अनुभव करने वाले का नाम क्या है?कर्म में आनन्द अनुभव करनेवालों ही का नाम कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनन्द भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फल-स्वरूप लगते हैं। अत्याचार का दमन और क्लेश का शमन करते हुए चित्त में जो उल्लास और तुष्टि होती है वही लोकोपकारी कर्म-वीर का सच्चा सुख है।
कर्म के आनदं का अनभु व करनेवालों का नाम क्या है?कर्म में आनन्द अनुभव करने वालों का नाम ही कर्मण्य है।
लेखक के अनुसार सच्चा उत्साह कौन होता है?अत: हम कह सकते हैं कि कर्म भावना प्रधान उत्साह ही सच्चा उत्साह है। फल भावना प्रधान उत्साह तो लोभ ही का एक प्रच्छन्न रूप है। उत्साह वास्तव में कर्म और फल की मिली जुली अनुभूति है जिसकी प्रेरणा से तत्परता आती है।
प्रत्येक कर्म में किसका योग होता है?प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है । कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती हैं। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है, उसी प्रकार बुद्धि से भी काम करवाती है ।
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