मतदान प्रक्रिया के बारे में संक्षिप्त - matadaan prakriya ke baare mein sankshipt

सिवान । स्थानीय निकाय चुनाव को ले प्रशासनिक तैयारी तेज हो गई है। बुधवार को जिला परिषद सभागार में निकाय चुनाव के प्रतिनियुक्त पीठासीन पदाधिकारी, दंडाधिकारी व मतदान पदाधिकारियों को मतदान संबंधी प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें मतदान की विधि व प्रक्रिया के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।

नोडल पदाधिकारी सह जिला आपूर्ति पदाधिकारी देवेन्द्र कुमार दर्द ने प्रशिक्षण देते हुए बताया कि पीठासीन पदाधिकारी के रूप में तैनात सीओ मतदान के संपूर्ण प्रक्रिया के प्रभारी होंगे। उन्होंने बताया कि मतदान में मतपत्र व मतपेटिका का प्रयोग किया जाएगा जिसमें मतदाता बैलेट पेपर के माध्यम से अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। मतदान के दिन पीठासीन पदाधिकारी मतदान पदाधिकारी प्रथम, द्वितीय व तृतीय को मतदान केन्द्र पर बैठने की विधिवत व्यवस्था करेंगे। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण समाप्ति के चार मत्वपूर्ण प्रपत्र को भरना आवश्यक है जिसमें पहला पीठासीन पदाधिकारी डायरी, पीठासीन दूसरा घोषणा पत्र, तीसरे पेपर सील लेखा चौथा मत पत्र लेखा है। उन्होंने पीठासीन पदाधिकारी, मतदान पदाधिकारी व दंडाधिकारी को प्रत्येक स्तर पर तत्परता से प्रशिक्षण लेने को कहा। हर हाल में 4 जुलाई को फिर से होने वाले मतदान संबंधी प्रशिक्षण में दूर कर ले। इसके बाद भी किसी स्तर पर कोई समस्या से निर्वाचन शाखा से संपर्क कर दूर कर ले।

इस भूमिका में होंगे तीनों मतदान पदाधिकारी

विप चुनाव में पीठासीन पदाधिकारी के रूप में सीओ व दंडाधिकारी के रूप में बीडीओ को तैनात किया गया है। इसके अतिरिक्त उनके साथ अंचल व प्रखंड कार्यालय के तीन वरीय पदाधिकारियों को मतदान पदाधिकारी प्रथम, द्वितीय व तृतीय की जिम्मेदारी दी गई। मतदान पदाधिकारी प्रथम पर मतदाता सूची के लिए प्रभारी होंगे। मतदाता के पहचान के उत्तरदायी होने के साथ उनपर अमिट स्याही लगाने का जिम्मा होगा। मतदाता उनके पास पहुंचेंगे तो पहचान कर मतदाता के नम्बर को जोड़ से पढ़ेगे ताकि पी टू व पोलिंग एजेंट तक उनकी आवाज पहुंच सके। आपत्ति नहीं होने पर मतदाता विवरणी को चिन्हित करते हुए अमिट स्याही लगा मतदान पदाधिकारी द्वितीय के पास भेजेंगे। वहीं पी टू के पास बैलेट पेपर का प्रभार होगा वहीं बैलेट पेपर के काउंटर फाइल पर सीरियल नम्बर दर्ज कर हस्ताक्षर या अंगुठा का निशान ले बैलेट पेपर सौंप देंगे। यहां से मतदाता पी थ्री के पास पहुंचेगा। उनपर बैलेट पेपर व मार्क का प्रभार होगा। साथ ही पी थ्री मतदाताओं को बैलेट पेपर फोल्ड करने सहित अन्य जानकारी देंगे।

अंक का ही इस्तेमाल वैध

विप चुनाव में वोटिंग प्रक्रिया आम चुनाव से अलग होती है। इसके तहत मतदाता चुनाव में भाग्य आजमा रहे सभी प्रत्याशियों का वोट दे सकते है। इसके लिए मतदाताओं को बैलेट पेपर पर प्रत्याशियों के चिन्ह पर अपने पसंद के अनुसार क्रमांक (1,2,3,4...) लिखना होगा। अगर किसी मतदाता ने भूल वश अंक की जगह शब्द में एक दो या वन टू लिख दिया तो उसके मत को रद्द कर दिया जाएगा।

नोटा का भी रहेगा प्रावधान

विप चुनाव में भाग्य अजमा रहे प्रत्याशी में अगर किसी मतदाता को कोई प्रत्याशी पसंद नहीं है और वह अपना नहीं देना चाहते है तो इसलिए भी प्रावधान है। बैलेट पेपर पर प्रत्याशी के साथ नोटा का भी विकल्प होगा जिसे मतदाता अपनी पसंद बना सकते है।

मतदान (voting) निर्णय लेने या अपना विचार प्रकट करने की एक विधि है जिसके द्वारा कोई समूह (जैसे कोई निर्वाचन क्षेत्र या किसी मिलन में इकट्ठे लोग) विचार-विनिमय तथा बहस के बाद कोई निर्णय ले पाते हैं। मतदान की व्यवस्था के द्वारा किसी वर्ग या समाज का सदस्य राज्य की संसद या विधानसभा में अपना प्रतिनिधि चुनने या किसी अधिकारी के निर्वाचन में अपनी इच्छा या किसी प्रस्ताव पर अपना निर्णय प्रकट करता है। इस दृष्टि से यह व्यवस्था सभी चुनावों तथा सभी संसदीय या प्रत्यक्ष विधिनिर्माण में प्रयुक्त होती है। अधिनायकवादी सरकार में अधिनायक द्वारा पहले से लिए गए निर्णयों पर व्यक्ति को अपना मत प्रकट करने के लिये कहा जा सकता है, परंतु अपने निर्णयों को आरोपित करने के अधिनायक के विभिन्न ढंग इस प्रकार के मतदान को केवल औपचारिक प्रविधि तक समीती कर देते ह

प्राचीन भारत में गुटिकापात (lot) के अतिरिक्त मतदान द्वारा भी अधिकारियों के निर्वाचन की व्यवस्था थी। धार्मिक संस्थाओं में, विशेषत: बौद्ध संघों में, निर्वाचन के निश्चित नियमों का पालन किया जाता था। "चुल्लबग्ग" में सक्य द्वारा मतदान की तीन प्रविधियों का उल्लेख है : गुप्त मतदान, कान में कहकर मत प्रकट करने की, प्रविधि तथा खुला मतदान। गुप्त मतदान के लिये बौद्ध संघ मतपरिपत्र के रूप में रंगीन काष्ठ शलाकाओं का प्रयोग करते थे। शलाकाओं का संग्राहक मतदाताओं को रंगों के अर्थ समझाकर उनके मत संग्रह करता था और बहुमत का निर्णय मान्य होता था। यूरोप में प्राचीन यूनान तथा इटली में मतदान की व्यवस्था अंकुर रूप में विद्यमान थी। प्राचीन राजतंत्रों में यह प्रचलन था कि कुछ गंभीर विषयों पर स्वयं निर्णय लेने के पूर्व राजा अपनी प्रजा की सहमती प्राप्त करने के लिये उसे आमंत्रित करे। ऐसी सभाओं में मत प्रकट करने का ढंग मौखिक था। एथेंस में गुटिकापात के अतिरिक्त जहाँ मतदान की व्यवस्था थी वहाँ हाथ उठाकर मत प्रकट करने की प्रथा थी। परंतु किसी व्यक्ति के सामाजिक स्तर पर प्रभाव डालने वाले विषयों पर गुप्त मतदान की व्यवस्था नहीं थी।। रोम में ईदृ पूदृ दूसरी शताब्दी तक मतदान का ढंग "विभाजन" का (अर्थात् एक मत के लोगों का दूसरे मत के लोगों से अलग हो जाना) था। परंतु अधिकतर मतदाताओं का सामंतों पर आर्थिक तथा सामाजिक अवलंब होने के कारण यह व्यवस्था स्वतंत्र मतदान के लिये उपयुक्त न हो सकी। अत: विधान द्वारा मतपरिपत्र की व्यवस्था की गई जिसके लिये मोमरंजित काष्ठशलाका प्रयुक्त होती थी।

आधुनिक जनतंत्रों के मतदान के महत्त्व तथा उसकी प्रणाली के संबंध में विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं। इन सिद्धांतों के फलस्वरूप, आवश्यकता के समय संघर्ष निवारण की सामाजिक प्रविधि के रूप में; शासन सत्ता के प्रति अनुवृत्ति प्राप्त करने के ढंग के रूप में; सामाजिक संघर्ष के बीच सामंजस्य स्थापित करने के साधन के रूप में; ठीक परिस्थितियों में ठीक निर्णय प्राप्त करने की पद्धति के रूप में, सामाजिक आवश्यकताओं तथा असंतोषों को अनावृत्ति की व्यवस्था के रूप में; तथा अल्पसंख्यकों को राज्य के लाभों से वंचित रखने की व्यवस्था से बचाने के ढंग के रूप में, मतदान को मान्यता प्राप्त हुई है। हाल में, इस समस्या पर यथेष्ट ध्यान दिया जाने लगा है कि जिन्हें मताधिकार प्राप्त है वे किस सीमा तक इस अधिकार के प्रयोग में भाग लेने का कष्ट करते हैं। इस विषय में की गई खोज के अनुसार उन जनतंत्रात्मक देशों के लोग मतदान में अधिकतम संख्या में भाग लेते हैं जहाँ "अनिवार्य मतदान" की व्यवस्था अपनाई गई है। अनिवार्य मतदान का सिद्धांत सर्वप्रथम विस्तार के साथ स्विट्जरलैंड के सेंटगैलेन नामक कैंटन में व्यवहृत हुआ जिसके लिये सन् 1835 ईदृ में इसे कैंटन ने जिला परिषद्के चुनावों में अकारण भाग न लेनेवालों के लिये विधान द्वारा अर्थदंड की व्यवस्था की। यह व्यवस्था स्विस नागरिकों को मताधिकार के उत्तरदायित्व का अनुभव कराने में सफल हुई है। साथ ही, इस व्यवस्था के फलस्वरूप मतदाताओं को मतदान में संमिलित होने के लिये उन्हें घर से बाहर लाने का राजनीतिक संगठनों का कार्यभार भी हल्का हुआ है। इसी प्रकार बवेरिया ने सन् 1881 ईदृ में, बुलगेरिया ने सन् 1882 ईदृ तथा बेल्जियम ने सन् 1893 ईदृ अनिवार्य मतदान की व्यवस्था अपनाई। बवेरिया की व्यवस्था के अनुसार यदि मतदाताओं की पूरी संख्या के एक तिहाई से अधिक लोग मतदान में भाग नहीं लेते तो अनुपस्थित मतदाताओं को पुन: चुनाव कराने का पूरा व्यय वहन करना पड़ेगा। बेल्जियम ने अनुपस्थित मतदाताओं के लिये तीन दंड निर्धारित किए अंतर्विवेक पर—अर्थ दंड, सार्वजनिक भर्त्सना या कहे लज्जनवित करना तथा मताधिकार अपहरण।

अनिवार्य मतदान के विपक्ष में सामान्यत: यह कहा जाता है कि यह व्यवस्था आधारित आपत्ति करनेवाले (conscientious objector) के लिये कोई स्थान नहीं छोड़ती, तथापि मतदान न करने वालों का चरित्र उतना महत्वपूर्ण विषय नहीं है जितना इस बात पर ध्यान देना कि मत प्राप्त करने के लिये किन साधनों का प्रयोग किया जाता है। यदि किसी देश में अनुचित साधनों द्वारा केवल विशिष्ट उद्देश्यों एवं स्वार्थों की पूर्ति के लिये सचेष्ट राजनीतिक संगठन ही मतदाताओं को मतदान में संमिलित होने की प्रेरणा देते हैं, तथा इस प्रकार अपने पक्ष में उनके मत संग्रह करते हैं तो निश्चय ही निर्वाचन तथा मतदान का प्रबंध सरकार के हाथों सौपना अधिक श्रेयस्कर होगा ताकि यह कार्य अधिक उत्तरदायित्व के साथ संपन्न हो सके।

वोट देने का अधिकार क्या है?

राज्य के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने के हेतु, अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार कहते हैं। जनतांत्रिक प्रणाली में इसका बहुत महत्व होता है।

मतदान से आप क्या समझते हैं?

यदि किसी देश में अनुचित साधनों द्वारा केवल विशिष्ट उद्देश्यों एवं स्वार्थों की पूर्ति के लिये सचेष्ट राजनीतिक संगठन ही मतदाताओं को मतदान में संमिलित होने की प्रेरणा देते हैं, तथा इस प्रकार अपने पक्ष में उनके मत संग्रह करते हैं तो निश्चय ही निर्वाचन तथा मतदान का प्रबंध सरकार के हाथों सौपना अधिक श्रेयस्कर होगा ताकि यह ...

भारत में सबसे पहले मतदान कब हुआ?

श्याम सरन नेगी, (जन्म:1 जुलाई 1917) कल्पा, हिमाचल प्रदेश में एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक हैं जिन्होंने 1951 में हुए स्वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में सबसे पहला मतदान किया।

गुप्त मतदान द्वारा मतदान का क्या महत्व है?

यह प्रणाली राजनीतिक गोपनीयता के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक साधन है। गुप्त मतदान का उपयोग विभिन्न मतदान प्रणालियों के साथ किया जाता है । एक गुप्त मतदान का सबसे मूल रूप कागज के खाली टुकड़ों का उपयोग करता है, जिस पर प्रत्येक मतदाता अपनी पसंद लिखता है।