पैर टेढ़ा क्यों हो जाता है? - pair tedha kyon ho jaata hai?

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बिना सर्जरी ठीक हो सकते हैं बच्चों के टेढ़े मेढ़े पैर

गर्भ के समय या पूर्व में मां ने स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल अधिक किया है तो इससे नवजात के पैर जन्म से टेढ़े हो सकते हैं। जिसे क्लब फुट बीमारी कहा जाता है। जिसका बिना सर्जरी इलाज किया जा सकता है। बच्चे...

पैर टेढ़ा क्यों हो जाता है? - pair tedha kyon ho jaata hai?

लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 13 Jul 2014 10:18 PM

गर्भ के समय या पूर्व में मां ने स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल अधिक किया है तो इससे नवजात के पैर जन्म से टेढ़े हो सकते हैं। जिसे क्लब फुट बीमारी कहा जाता है। जिसका बिना सर्जरी इलाज किया जा सकता है। बच्चे के पैरों का सामान्य विकास होने के इंतजार करने में अधिकतर माता पिता दो से तीन साल की उम्र में ही ऐसे बच्चों के इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। जबकि जल्दी इलाज शुरू कर विकलांगता सही होने की संभावना अधिक रहती है। दिल्ली के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में इसका निशुल्क इलाज किया जाता है, जहां अब तक 2100 बच्चों को ठीक किया जा चुका है।

एम्स के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. शाह आलम खान ने बताया जेनेटिक कारणों के अलावा अधिक स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल, खून की कमी या जुड़वा बच्चे होने की सूरत में गर्भ में नवजात के पैरों का सामान्य विकास नहीं हो पाता, जिसकी वजह से पैर विकृत या विकलांग हो जाते हैं। ऐसे बच्चों को जन्म के तुरंत बाद पहचाना जा सकता है, जिन अस्पतालों में क्लबफुट का इलाज उपलब्ध वह इसे जन्म के बाद ही शुरू कर देते हैं। जबकि विशेषज्ञों की सलाह पर क्लब फुट सोसाइटी से भी संपर्क कर इलाज कराया जा सकता है।

चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अनिल अग्रवाल ने बताया कि इलाज के लिए टीनोटॉमी विधि से बच्चों को विशेष तरह का प्लास्टर चढ़ाया जाता है, इसके बाद विशेष जूतों की सहायता से पैरों को सही एंगल (40 डिग्री) दिया जाता है। पूरी तरह ठीक होने पर 10 से 12 साल का समय लगता है। एम्स सहित दिल्ली के सात सरकारी अस्पतालों में क्लब फुट का इलाज किया जाता है। क्योर इंटरनेशनल के डॉ. संतोष जार्ज ने बताया क्लबफुट के दिल्ली में बीते तीन साल में 2100 बच्चों का इलाज किया जा चुका है, जबकि अब तक देश भर में 4000 बच्चें सही हो चुके हैं। जबकि वर्ष 2008 से पहले ऐसे बच्चों को विकलांगों की श्रेणी में रखा जाता था।

क्या है टीनोटॉमी
बच्चों की एड़ी को सही एंगल देने के लिए टीनाटॉमी के बाद प्लास्टर चढ़ाया जाता है, इसके लिए डॉक्टर एड़ी में हल्का कट लगाते हैं, विकृत 90 डिग्री के एंगल के पैरों में टीनाटॉमी की जरूरत अधिक होती है। कई बार बच्चों को एक पैर में विकलांगता की शिकायत होती है, जबकि कभी दोनों पैरों में विकलांगता होती है। टीनोटॉमी के बाद विशेष तरह के जूतों (स्पीन्ट) से विकृति को दूर करते हैं। प्रक्रिया में बच्चों की बोन ग्राफ्टिंग नहीं होती है।

कब कहां इलाज
चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय - बुधवार
दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल- सोमवार
महर्षि वाल्मिकी अस्पताल बावाना- गुरुवार
लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज और कलावती सरन बाल चिकित्सालय- बुध व शुक्र
सेंट स्टीफेंस अस्पताल- शनिवार
सफदरजंग अस्पताल - सोमवार
नोट- लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में भी क्लबफुट क्योर शुरू किया जा चुका है, सभी केन्द्रों पर बच्चों का निशुल्क इलाज किया जाता है।

सात महीने की उम्र में 11 प्लास्टर
बिहार के भागलपुर जिले से क्लबफुट बच्चे का इलाज कराने आए बिरजू यादव ने बताया कि सात महीने के उनके बेटे जय सच्चिदानंद के पैर जन्म से सामान्य नहीं थे, बच्चे के इलाज के लिए अस्थाई रूप से सोनीपत में रह रहे हैं। अब तक 11 बार प्लास्टर चढ़ चुका है। धीरे-धीरे विकृति दूर होगी, प्लास्टर के बाद विशेष जूतों से बच्चे का इलाज किया जाएगा। जिसे बच्चों को सोते हुए भी पहनना पड़ता है।

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पैर टेढ़ा होने का क्या कारण है?

​जन्म से टेढ़े पैर होने का कारण माता-पिता या परिवार में पहले से किसी को क्लबफुट की बीमारी है, तो बच्चे को भी यह बीमारी हो सकती है। क्लबफुट के पारिवारिक इतिहास से संबंधित महिला गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करती है, तो बच्चे में इसका जोखिम बढ़ जाता है। जन्मजात स्थितियां भी इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हैं।

पैर कैसे सीधा करें?

निनामा ने बताया प्लास्टर चढ़ाने और स्ट्रेपिंग आदि के प्रयोग से इस बीमारी को 90 प्रतिशत तक ऑपरेशन के बिना ठीक किया जा सकता है। फिजियोथेरेपी से लाभ होता है। इसके बाद पैर का माइनर ऑपरेशन किया जाता है। पैर का साइज सीधा करने को बच्चों को स्पेशल जूते में चलना पड़ता है।

चपटे पैर का वैज्ञानिक नाम क्या है?

धनुर्जानु (Bow-leg) का वैज्ञानिक नाम 'जीनू वेरम' (Genu varum) है।

यदि किसी बच्चे के पैर जन्म से तिरछे हो तो कितने दिन तक ठीक कर सकते है?

सर्जरी और प्लास्टर, 8 हफ्ते का इलाज इसके मरीजों को लेकर सर्जरी भी जाती है या बच्चे के पैर की उंगली से लेकर घुटने के ऊपर तक प्लास्टर लगाया जाता है। प्लास्टर पैर को खींचकर सही स्थिति में रखता है और करीब 8 हफ्ते तक ये प्रक्रिया अपनाई जाती है।