पुरुष और नारी का नायक कौन है - purush aur naaree ka naayak kaun hai

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  • ‘पुरुष को नारी के अस्तित्व को स्वीकारना होगा तभी मिलेगा सही अर्थों में समानता का दर्जा’

‘पुरुष को नारी के अस्तित्व को स्वीकारना होगा तभी मिलेगा सही अर्थों में समानता का दर्जा’

पुरुष को नारी का अस्तित्व स्वीकारना होगा। जब पुरुष नारी के अस्तित्व को स्वीकार करेगा, तभी नारी को समाज में सही अर्थों में समानता का दर्जा प्राप्त होगा। नारी को अपने लिए स्वयं अन्याय के खिलाफ खड़ा होना होगा। जब नारी स्वावलंबी बनकर आगे बढ़ेगी तो एक आदर्श समाज का निर्माण होगा। यह कहना है गवालियर की मानस मर्मज्ञा एवं महासाध्वी हेमलता मुदगिल का। वे गुरूवार को पुरानी अनाज मंडी स्थित अग्रवाल सत्संग भवन में श्रीराम कथा में प्रवचन दे रही थी।

उन्होंने कहा कि नारी की अस्मिता इतनी सस्ती भी नहीं होनी चाहिए कि कोई भी उसकी कीमत लगा ले। समाज में हर बार यह सवाल उठता है कि नारी को उसके अधिकार दो, नारी को सम्मान दो। कोई यह सवाल नहीं उठाता है कि पुरुष को उसके अधिकार दो। अथवा पुरुष को सम्मान दो। कानून ने महिला और पुरुष को समान अधिकार दिए हैं। महिला एवं पुरुषों का समान अधिकार और समान सम्मान होना चाहिए। महिला आज किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं है।

उन्होंने कहा कि नारी को आगे बढ़ने के लिए शॉर्टकट तलाशने बंद करने होंगे। नारी को सबसे पहले अपने सम्मान को स्वीकारना होगा। आज की नारी अबला नहीं है। जरूरत है नारी को स्वयं को पहचानने की। बदलते समय में नारी की भूमिका भी बदल रही है। नए परिवेश में उन्हें अपने कर्तव्यों से मुख नहीं मोड़ना चाहिए। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया। इस अवसर पर विश्व हिंदु परिषद उत्तर प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष राघवेंद्र सिंह, गोहाना निवार एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश गुप्ता, अशोक जैन, कृष्णा जैन, समिति के अध्यक्ष सतीश गोयल, सुशील गोयल, सुनील गोयल, सतीश, मुकेश जैन, पवन गर्ग, सुरेंद्र बंसल, कृष्ण बंसल, देवेंद्र आदि उपस्थित थे।

गोहाना. अग्रवाल सत्संग भवन में श्रीराम कथा सुनतीं महिलाएं।

गोहाना. अग्रवाल सत्संग भवन में श्रीराम कथा सुनतीं महिलाएं।

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  • पुरुष और नारी एक गाड़ी के दो पहिए, दोनों को मिलना चाहिए सम्मान

पुरुष और नारी एक गाड़ी के दो पहिए, दोनों को मिलना चाहिए सम्मान

नारीऔर पुरुष समाज के दो पहिए हैं। एक पहिया भी अगर कमजोर पड़ेगा तो परिवार की गाड़ी ठीक से नहीं चल पाएगी। महिलाओं को शुरू से दबाया जाता है, ताकि वह किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ आवाज ना उठा सकें। आज महिलाएं भले ही अपना परचम लहराएं, पर उन्हें घर में ही वह सम्मान नहीं मिलता जो उन्हें मिलना चाहिए। यह बातें रविवार को ऑक्सीजन मूवमेंट के संडे डिस्कशन के दौरान कही गयी। ऑक्सीजन मूवमेंट की तरफ से रविवार को छात्र-छात्राओं के लिए नारी के सम्मान पर परिचर्चा आयोजित की गई। डिस्कशन के दौरान विभिन्न स्कूल कॉलेजों के छात्र छात्राओं ने अपनी बात रखी।

महिलाओं को सम्मान देने से ही

प्रसन्न होंगे देवी-देवता

परिचर्चाके दौरान ऑक्सीजन मूवमेंट के संयोजक बिनोद सिंह ने कहा कि हम नारी को सम्मान देंगे तब ही हमारे देवी देवता प्रसन्न होंगे। महिला घरेलू हों या कामकाजी हमें उनकी रिस्पेक्ट करनी चाहिए। संस्था की कॉर्डिनेटर पूजा कुमारी ने कहा कि नारी और पुरुष दोनों को समान दर्जा मिलेगा तब ही समाज का बेहतर विकास होगा। कोमल कुमारी ने कहा कि अगर हम किसी भी लड़की का अपमान करते हैं तो हमारे घर की स्त्रियां भी सुरक्षित नहीं रह सकती हैं। पीयूष कुमार का कहना है कि आज औरतें ही किसी ना किसी रूप में औरतों को प्रताड़ित कर रही हैं। कार्यक्रम में अर्चना रानी, निशांत कुमार, प्रेरणा, सोनाली, शशि, प्रीती, बबीता और सूरज कुमार आदि कई छात्र छात्राओं ने अपनी राय बताई। परिचर्चा के अंत में तीन लीडर का चयन किया गया है। संत क्राईस्ट किड्स अकादमी के पीयूष कुमार को फर्स्ट, संत जोसफ स्कूल की दिव्या को सेंकेंड पोजीशन और राम लखन सिंह हाई स्कूल की कोमल कुमारी को थर्ड प्राइज मिला।

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नारी को पुरुष और पुरुष को नारी न बनाएं, दोनों एक दुसरे के पूरक हैं; इन्हें पूरक ही रहने दे, दुश्मन न बनाएं.

कहाँ जा रहे हैं हम? क्यूँ जा रहे हैं हम; अंधे, बहरे और गूंगों की तरह लोगों के कदम में कदम मिला कर, पीछे-पीछे चलते हुए? मेरे घर में इस बात की कमी है, समाज में ये बहुत बड़ा रोग है, ये लोग देश के लिए अभिशाप हैं- सिर्फ बातें और बातें. आग से भरी हुई, विष का बीज बोती, थोड़ी सच और थोड़ी झूठ बातें. मैं नारी के साथ हूँ, तुम नहीं हो; कभी कोई पुरुष इस तरह के सवाल उठता है तो कभी महिलाएं. मैं पूछता हूँ, क्या आपको नहीं लगता की नारी शशक्तिकरण की चाह में हमने एक इंसानों की एक नयी जमात तैयार कर ली है, जिसे एक दुसरे से प्यार नहीं, घृणा है?
एक दुसरे पर लांछन लगते हुए, क्या हमने स्वयं के अस्तित्व को भुलाना शुरू नहीं किया? जहाँ जाता हूँ, हर जगह मुझे बस एक ही बात सुनाई देती है- महिलाएं अब पहले जैसी नहीं रहीं, अब वो शशक्त और स्वावलंबी हो गयी हैं. अच्छी बात है, लेकिन उनके शशक्तिकरण को पुरुष समाज झेल नहीं पा रहा ऐसा कैसे कह सकते हैं आप? मैं मानता हूँ की हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है और इसमें कुछ विकृतियाँ हैं, जिन्हें बदलने की जरुरत है. नारियों पर हुए अत्याचार की बात भी मानता हूँ मैं, उन्हें उनके सही हक़ से दूर रखने की बात का भी समर्थन करता हूँ मैं.
लेकिन मैं पूछता हूँ, की क्यूँ सहते रहे हम ज़ुल्मो सितम जब रास्ते और भी हैं. मैं इस बात को नहीं मानता की नारी कमजोर है. अगर आप पर अत्याचार हो रहा है तो विरोध करें. लोग कहते हैं की हर नारी काली नहीं बन सकती. मैं पूछता हूँ क्यूँ नहीं बन सकती? उन्हें इतिहास का एक उदहारण दे दूँ; कलिंगा पर जब अशोका ने हमला किया था तो, वहां की स्त्रियाँ ही थीं जिन्होंने उनको भारतीय स्त्री के शक्ति का एहसास कराया था.
भारत, आर्यावर्त या हिंदुस्तान जो भी नाम लें आप, स्त्री शक्ति के इस देश में जहाँ स्त्री हमेशा पूजनीय रही, ये अचानक से बदलाव कैसे और क्यूँ आया? क्या स्त्री दोषी नहीं? इस कलयुग में अगर आपको जीना है तो खुद को सबल बनाना पड़ेगा. रोने की बजाय अगर तलवार उठा कर अत्याचार का सामना करें. और अगर आप विरोध नहीं कर सकते और लड़ नहीं सकते तो मौन हो अत्याचार सहें.
आज बहुत सी चीजों को बदलने की जरुरत है. लेकिन हम क्या करें, हम इन्सान हैं, हम जैसे हैं वैसा ही सोचते हैं. एक सोच मन में आई और उस सोच को सच मान कर पूरी दुनिया को उसी सोच के साथ देखना शुरू कर देते हैं. नारी के विषय में जब बात छिड़ी है तो मैं आज समाज को एक और सच से अवगत करना चाहूँगा.
बहुत पीछे जाने की जरुरत नहीं है, मैं पिछले ३०-४० वर्षों के इतिहास को खंगाल रहा हूँ. बात शुरू करना चाहूँगा, स्वतंत्र भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री, स्वर्गीय इंदिरा गाँधी जी से. जिन्हें भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री बनाने का गौरव प्राप्त हुआ; पंडित जवाहर लाल नेहरु, एक पुरुष की बेटी थीं वो. जेल की चारदीवारी में बंद होने के बावजूद, जिसने उनका मार्गदर्शन अपने लिखे अविस्मरनीय और प्रोत्साहित करने वाले पत्रों से किया, वो भी एक पुरुष ही था.

किरण बेदी, भारत की अद्वितीय पुत्री, क्या उन्होंने अपने लेख में ये कभी लिखा की उनके पिता ने उनके पढने पर पाबन्दी लगाई थी, या फिर कल्पना चावला जिसने अंतरीक्ष के सीने पे भारतीय नारी के विजय की पताका फहरायी थी, क्या कभी उनके पिता ने उनके विजय अभियान में रुकावट बनने की कोशिश की?
हमें आदत हो गयी है, सिर्फ विकृतियों को देखने की. आदत सही भी है, लेकिन उस विकृति के कारन को जाने बिना पुरे समाज पर उसका कलंक मढ़ देना कहाँ की चतुराई है?

मैं भयभीत हूँ, भयभीत हूँ मैं उन बुद्धिजीवियों से जो नारी का पक्ष लेने की बात करते हैं. जो बात करते हैं नारी पीड़ा की, पक्ष धरते हैं उनको बल देने की और अपने इस प्रयास में जाने-अनजाने, नारी और पुरुष दोनों के मन में नफरत के बीज बो रहे हैं. जहाँ तक रही मेरी बात, तो मैं न पुरुष हूँ, न महिला; मैं इंसान हूँ, वो इंसान जिसे इश्वर ने प्रेम का पाठ पढ़ने के लिए पैदा किया.

मैं समाज के हर व्यक्ति से ये आग्रह करूँगा की, समाज की कुरीतियों का विरोध अवश्य करें. महिलाओं को सम्मान दें, क्यूंकि हम भारतवर्ष के वासी हैं, और हमारे देश मैं नारी, पत्नी नहीं माँ है. लेकिन कुछ विकृत मानसिकता के लोगों द्वारा किये गए कुकृत्यों को पुरे समाज से जोड़ कर न देखें. ये औरत और नारी के संबंधों में एक ऐसी खाई ले आएगा जिसे पाटना मुश्किल हो जाएगा. समय रहते हम अभी न चेते तो वो दिन दूर नहीं जब दुनिया में एक तीसरी जमात खड़ी होगी जो न पुरुष होगा और न नारी.
नारी को पुरुष और पुरुष को नारी न बनाएं, दोनों एक दुसरे के पूरक हैं; इन्हें पूरक ही रहने दे, दुश्मन न बनाएं.

पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह क्या बन जाता है?

प्रेमचन्द ने कहा है कि “पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है. किन्तु नारी जब नर के गण सीखती है तब वह राक्षसी हो जाती है।”

पुरुष की परिभाषा क्या है?

पुरुष की परिभाषा: वे व्यक्ति जो संवाद के समय भागीदार होते हैं, उन्हें पुरुष कहा जाता है। जैसे: मेरा नाम सचिन है।

छाया के अनुसार स्त्री पुरुष के जीवन में क्या महत्व रखती है?

छाया के अनुसार स्त्री पुरुष के जीवन में क्या महत्व रखती है? उत्तर: छाया के अनुसार जिस प्रकार कविता पुरुष के सूने मन को प्रसन्न कर देती है वैसे ही स्त्री भी पुरुष के बोझिल मन को बहलाने का साधन है। जब पुरुष जीवन के संघर्षों का सामना करते हुए थक जाता है तब वह स्त्री पर अपना सारा प्रेम और अरमान लुटाता है।

स्त्री और पुरुष में क्या अंतर होता है?

महिलाओं में प्रजनन की क्षमता होती है,जो पुरुष वर्ग में नहीं होती। महिलाओं में गर्भाशय होता है जो पुरुषों में नहीं पाया जाता। महिलाओं की त्वचा पुरुषों के मुकाबले ज्यादा नाजुक होती है। पुरुषों के पैरों ,सीने आदि हिस्सों में महिलाओं के तुलना में अधिक बाल होते हैं।