पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले इसका अर्थ क्या होता है? - poorv chalane ke batohee baat kee pahachaan kar le isaka arth kya hota hai?

विषयसूची

  • 1 मार्ग में अनगिनत राही कौन सी निशानी छोड़ गए हैं?
  • 2 बाट की पहचान का अर्थ क्या होता है?
  • 3 बटोही और बाट का क्या अर्थ है?
  • 4 चलने के पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए?
  • 5 पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले का अर्थ क्या है?
  • 6 पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले में कौन सा अलंकार है?

मार्ग में अनगिनत राही कौन सी निशानी छोड़ गए हैं?

इसे सुनेंरोकेंतेरे मार्ग में कब कठिनाइयाँ और बाधाएँ आयेंगी, यह नहीं कहा जा सकता। यह भी नहीं कहा जा सकता कि तेरे जीवन के मार्ग में किस स्थान पर सुन्दर वन और उपवन मिलेंगे। तेरे जीवन में कब सुख-सुविधाएँ प्राप्त होंगी। यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता कि कब तेरी जीवन-यात्रा समाप्त होगी और कब तेरी मृत्यु होगी।

कवि ने ऐसा क्यों कहा जब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना?

इसे सुनेंरोकें’यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,जब असंभव, छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना। तू इसे अच्छा समझ, यात्रा इससे सरल बनेगी पूर्व चलने की बटोही, बाट की पहचान कर ले हरिवंश राय बच्चन की ये पंक्तियाँ हमें निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

बाट की पहचान का अर्थ क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंबटोही को चलने के पूर्व बाट की पहचान करने की सलाह कवि किस अभिप्राय से देता है? उत्तर : प्रस्तुत कविता में कवि बच्चन ने पथिक के माध्यम से यह प्रेरणा दी है कि मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले इसका अर्थ क्या होगा?

इसे सुनेंरोकेंपूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले- poorv chalane ke batohee, baat kee pahachaan kar le- हरिवंशराय बच्चन – harivansharaay bachchan- खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले। पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले। आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले।

बटोही और बाट का क्या अर्थ है?

इसे सुनेंरोकेंबाट अर्थात् रास्ते पर चलने वाला या चलता हुआ यात्री।

यात्रा और यात्री कविता को पढ़कर आपको क्या शिक्षा प्राप्त होती है?

इसे सुनेंरोकेंयात्रा और यात्री कविता का अर्थ… संदर्भ — यह कविता हिंदी के जाने-माने कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखी गई है। इस यात्रा में कवि ने जीवन रूपी यात्री को निरंतर चलने रहने के लिए प्रेरित किया है। भावार्थ — कवि कहता है, हे यात्री जीवन के इस सफर में तुझे हमेशा चलते ही रहना है।

चलने के पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: चलने के पूर्व बटोही को बाट (मार्ग) की भली-भाँति पहचान कर लेनी चाहिए।

कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे?

इसे सुनेंरोकेंकौन कहता है कि सपनों को ना आने दे हृदय में देखते सब है इन्हें अपनी उम्र अपने समय में और तू कर यत्न भी तो मिल नहीं सकती सफलता ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नैनो के निलय में किंतु जग के पंथ पर यदि स स्वप्न दो तो सत्य दो सौ स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो सत्य का भी ज्ञान कर ले पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर इसका अर्थ​

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले का अर्थ क्या है?

बाट की पहचान कर ले इस पंक्ति में बाट का क्या अर्थ है?

इसे सुनेंरोकेंपूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जबानी अनगिनत राही गए इस राह पर उनका पता क्या पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरो की निशानी यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है खोल इसका अर्थ पंथी पंथ का अनुमान कर ले पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले यह …

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले में कौन सा अलंकार है?

इसे सुनेंरोकेंExplanation: प्रान बटोही में रूपक अलंकार है।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले

पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,

हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी,

अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,

पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,

यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,

खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे,

है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे,

किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,

है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे

कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,

आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में,

देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,

और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,

ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में,

किन्तु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,

स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,

पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,

रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता,

रक्त की दो बूँद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,

आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों,

कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,

अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,

तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,

सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,

हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,

तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।

- हरिवंशराय बच्चन - harivansharaay bachchan

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले का अर्थ क्या है?

बटोही को चलने के पूर्व बाट की पहचान करने की सलाह कवि किस अभिप्राय से देता है? उत्तर : प्रस्तुत कविता में कवि बच्चन ने पथिक के माध्यम से यह प्रेरणा दी है कि मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले मैं कौन सा अलंकार है?

(ख) अलंकार―विरोधाभास, अनुप्रास। मूक होकर भी बोलने का गुण होने के कारण विरोधाभास अलंकार है। बाट की पहचान करले

बटोही का क्या तात्पर्य है?

बटोही संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बट + वाह (प्रत्य॰)] रास्ता चलनेवाला । पथिक । राही । सुसाफिर—उ॰ (क) ए पथ देखल कहँ बूढ़ बटोही

बटोही और बात का क्या अर्थ है?

[सं-पु.] - राहगीर; पथिक; मुसाफ़िर।