पूर्वी और पश्चिमी हिन्दी में अन्तर | पूर्वी हिन्दी की बोलियाँ तथा विशेषताएँ Show
पूर्वी और पश्चिमी हिन्दी में अन्तरपूर्वी और पश्चिमी हिन्दी में भौगोलिक सीमा तथा पारस्परिक विरासत में अन्तर होने के कारण उच्चारणगत तथा व्याकरणिक भेद उत्पन्न हो गए। पूर्वी हिन्दी अर्धमागधी प्राकृत (या अपभ्रंश) से विकसित हुई। अर्धमागधी तक भारतीय भाषा के जो भी ध्वन्यात्मक तथा व्याकरणिक परिवर्तन घटित हुए वे स्वाभाविक रूप से पूर्वी हिन्दी में ग्रहीत हुए। पश्चिमी हिन्दी शौरसेनी प्राकृत में विकसित हई। इसे शौरसेनी की भाषिक विशेषताएं प्राप्त हुई। पूर्वी हिन्दी की सीमा पहाड़ी, बिहारी तथा पश्चिमी हिन्दी की सीमा का संस्पर्श करती है। सीमा प्रदेश की भाषा अपनी निकटतम भाषा से कुछ न कुछ प्रभावित होती है। इसी तरह पश्चिमी हिन्दी, पंजाबी, राजस्थानी, पहाड़ी, पूर्वी हिन्दी, मराठी भाषाओं की सीमा से जुड़ी होने के कारण इनसे कुछ प्रभावित हुई है।
जैसे-
पूर्वी हिन्दी की बोलियाँ तथा विशेषताएँ (वैशिष्ट्य )(1) अवधी- अवधी पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोली है, जो अवध प्रदेश के अन्तर्गत बोली जाती है। इस बोली का क्षेत्र फतेहपुर, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी जिलों में फैला हुआ है। अवधी बोलने वालों की संख्या लगभग 2 करोड़ है। साहित्यिक दृष्टि से अवधी समृद्व भाषा है। तुलसीकृत रामचरितमानस एवं जायसीकृत पद्मावत जैसे हिन्दी महाकाव्य इसी भाषा में लिखे गये हैं। अवधी के अन्य कवि हैं-नूर मोहम्मद, कुतुबन, मंझन, लालदास, नाभादास, अग्रदास, आदि। इस बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं- (1) अवधी में ‘ए’ का उच्चारण ‘अइ’ और ‘औ’ का उच्चारण ‘अउ’ रूप में होता है। जैसे- ऐसा > अइसा औरत > अउरत (2) अवधी भाषा के कुछ ध्वनि परिवर्तन निम्नवत् हैं- ण > न – गुण गुन य > ज – योग, > जोग क > ग- भक्त > भगत ल > र – अंजलि > अंजुरी व > ब- वाण > बान ष > ख- भाषा > भाखा (3) अवधी के दो प्रत्यय विशिष्ट हैं- इया, वा, यथा- डिब्बी > डिबिया खाट > खटिया बिल्ली >बिलइया रजिस्टर > रजिसटरवा जगदीश > जगदीसवा (4) भोजपुरी- भोजपुरी बोली पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार में बोली जाती है। इसके अनतर्गत बनारस, मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, बस्ती, आजमगढ़, शाहाबाद, चम्पारन, सारन तथा छोटा नागपुर जिले आते हैं। भोजपुरी में शिष्ट साहित्य बहुत कम लिखा गया किन्तु लोक साहित्य की प्रचुरता है। व्याकरणिक विशेषताएं-(i) भोजपुरी में यदि ‘ग’ और ‘घ’ से पूर्व अनुनासिक होता है तो इनके स्थान पर ‘इ’ हो जाता है। जैसे- अंगिया > अङ़िया टांग > टाङ लांग > लाङ् जांघ > जाङ (ii) भोजपुरी में अल्पप्राण ध्वनियां प्रायः महाप्राण ध्वनियों में बदल जाती है। जैसे- पेड़ > फेड़ भारत > भारथ वक्त > बखत पतंगा > फतिङगा (iii) भोजपुरी में ‘न’ स्थान पर प्रायः ‘ल’ का उच्चारण होता है। यथा- नोट > लोट नोटिस > लोटिस नरम > लरम नम्बर > लम्बर (iv) भोजपुरी में ‘ल’ के स्थान पर ‘र’ का प्रयोग होता है। जैसे- मछली > मछरी बाली > बारी गाली > गारी माला > सारा (5) छत्तीसगढ़ी- पूर्वी हिन्दी के अन्तर्गत आने वाली छत्तीसगढ़ी बोली का क्षेत्र रायपुर, बिलासपुर, संभलपुर, कांकेर, नांदगाँव, चाँदा, बस्तर एवं बिहार का कुछ भाग है। इसका उद्गम अर्द्ध मागधी अपभ्रंश से माना जाता है। छत्तीसगढ़ी बोली बोलने वालों की संख्या 50 लाख के लगभग है। साहित्य की रचना इस बोली में नहीं हुई, किन्तु लोक-साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इस बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं- (1) छत्तीसगढ़ी में कर्ता कारक में किसी परसर्ग का प्रयोग नहीं होता। कर्म कारक में ला, ले का प्रयोग होता है। करण कारक में ले, से का प्रयोग, सम्प्रदान में ला, वर, खाति का प्रयोग और अधिकरण कारक में माँ, पर का प्रयोग होता है। (2) कुछ ध्वनि परिवर्तन विशेष प्रकार के हैं, यथा- रास्ता > रसदा > रद्दा त > द शराब > सराप ब > प सीता > छीता स > छ इलाका > इलाखा क > ख (3) ‘इन’ प्रत्यय का प्रयोग स्त्रीलिंग में होता है; यथा- दुबे > दुबाइन बाघ > बधानिन हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक
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पश्चिमी हिंदी की प्रमुख विशेषता क्या है?खड़ी बोली (khadi boli) भी पश्चिमी हिंदी (pshcimi hindi) की प्रमुख बोली है, इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है। हिन्दुस्तानी, दक्खिनी हिंदी, उर्दू, साहित्यिक हिंदी और आधुनिक हिंदी का आधार यही खड़ी बोली ही है। khadi boli (खड़ी बोली) की लिपि देवनागरी है।
पूर्वी हिंदी क्या है?हिंदी का वो रूप जो भारत के पूर्वी भू भाग में बोला जाता है, उसे पूर्वी हिंदी कहते हैं। जॉर्ज गियर्सन ने हिंदी को दो भागों में विभाजित किया — पूर्वी हिंदी और पश्चिमी हिंदी। पूर्वी हिंदी प्रमुख रूप से पूर्वी भारत में बोली जाती है, इसके अंतर्गत तीन बोलियां आती हैं — अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी।
पश्चिमी हिंदी की कौन है?पश्चिमी हिन्दी
इसके अंतर्गत पाँच बोलियाँ हैं - खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रजभाषा, कन्नौजी और बुंदेली। खड़ी बोली अपने मूल रूप में मेरठ, रामपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बागपत के आसपास बोली जाती है। इसी के आधार पर आधुनिक हिंदी और उर्दू का रूप खड़ा हुआ। बांगरू को जाटू या हरियाणवी भी कहते हैं।
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