परिवार में बुजुर्गों की क्या अहमियत होती है?

HomeMotivational topicsहमारे बुजुर्ग|हमारी धरोहर|बुजुर्गों का परिवार में महत्व

हमारे बुजुर्ग|हमारी धरोहर|बुजुर्गों का परिवार में महत्व

हमारे बुजुर्ग|हमारी धरोहर|बुजुर्गों का परिवार में महत्व Our Elder's | Our Heritage | Importance of Elders in the family in Hindi

जिस तरह बचपन में माता-पिता ने हमारी अंगुली पकड़ कर हमें चलना सिखाया उस तरह अब हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम हर कदम पर उनका साथ दें।

Show

परिवार में बुजुर्गों की क्या अहमियत होती है?

बुजुर्गों का परिवार में महत्व Importance of Elders in the family in Hindi

इंसान सब कुछ भूल सकता है, लेकिन अपने पूर्वज नहीं। इनके बिना हमारा इतिहास बिल्कुल बेकार है और इतिहास बोध से कटे हुए समाज जड़ों से टूटे हुए पेड़ के समान होते हैं। "जिस घर के अंदर बड़े बुजुर्गों का आदर और सम्मान नहीं किया जाता उस परिवार में सुख, समृद्धि, संतुष्टि और स्वाभिमान कभी नहीं आ सकता। बुजुर्ग हमारा स्वाभिमान होते हैं। बुजुर्ग हमारी धरोहर है। उन्हें सहेजने की जरूरत होती है" अगर हम परिवार में स्थाई रूप से सुख-शांति और समृद्धि पाना चाहते हैं, तो परिवार में बुजुर्गों का सम्मान अवश्य करें।

इन्हें चाहिए हमारा साथ

आजकल अकेले रहने वाले बुजुर्गों के साथ लूटपाट और हत्या की खबरें अक्सर सुनने को मिलती है। वाकई आजकल महानगरों में अकेले रहने वाले बुजुर्गों का जीवन असुरक्षित होता जा रहा है। ऐसी खबरें सुनकर हमें दुख तो होता है, पर अगले ही पल हम अपनी दिनचर्या से जुड़े कार्यों में बिजी हो जाते हैं, पर ऐसी दुखद घटनाओं पर थोड़ा रुक कर हमें दोबारा सोचने की जरूरत है। आखिर हमारे बुजुर्गों के साथ ऐसा क्यों हो रहा है? आज के दौर में यह एक ऐसा महत्वपूर्ण सवाल है। जिसका जवाब हमें ही ढूंढना होगा।

और भी पढ़ें➡️ नाजुक होते हैं, "रिश्ते" इन्हें संभाल कर रखिए। खूबसूरत रिश्ते और उनका महत्व।

घर की रौनक है बुजुर्ग Elderly is the Beauty of the House in Hindi 

मां बाप अपनी संतानों को हर तरह की असुविधा और तकलीफों से दूर रखने की यथा संभव कोशिश करते हैं। माता-पिता अपने दायित्व को निभाते निभाते अपनी तकलीफों और ख्वाहिशों को भूल जाते हैं। लेकिन एक वक्त के बाद शरीर पूरी तरह से थक जाता है, और शिथिल पड़ जाता है। जिस वजह से वह कमाने में लाचार हो जाते हैं। तब मां-बाप अपनी लाडली संतानों से अपेक्षा करते हैं कि वह उन्हें अपमानित या प्रताड़ित ना करें।

सेहत से जुड़ी मुश्किलें 

जब तक बुजुर्गों की सेहत ठीक रहती है, वह किसी से कोई शिकायत नहीं करते। बल्कि बेटे बहु के साथ रहने वाले बुजुर्ग घरेलू कार्यों में उनकी सहायता भी करते हैं। लेकिन जैसे ही उनकी सेहत में गिरावट आने लगती है, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। चिकित्सा सुविधाओं की बढ़ती उपलब्धता जहां एक ओर बुजुर्गों के लिए वरदान साबित हो रही है। वहीं इसकी वजह से देश में वरिष्ठ नागरिकों की औसत आयु में तेजी से वृद्धि हो रही है। अगर सेहत साथ ना दे तो खास उम्र के बाद मौत कब है उन्हें परेशान करने लगता है। करोल बाग में रहने वाली 72 वर्षीय सुष्मिता शर्मा कहती हैं, खुश रहने की बहुत कोशिश करती हूं, पर एक-एक करके हम उम्र लोगों को संसार से जाते देखकर बार-बार मेरे मन में यही ख्याल आता है कि अब मेरे जाने का भी वक़्त करीब आ रहा है। मौत से डरती नहीं और जीवन के अंतिम समय में होने वाली शारीरिक पीड़ाओं की आशंका मुझे बहुत डराती है।

और भी पढ़ें➡️माता-पिता और बच्चों का रिश्ता Parent and Child Relationship

सिक्के का दूसरा पहलू

आजकल चारों और इस बात की निंदा हो रही है, की युवा पीढ़ी गैर जिम्मेदार होती जा रही है और वह अपने माता-पिता का ख्याल नहीं रखती। वाकई यह स्थिति चिंताजनक है। लेकिन इसके लिए केवल युवाओं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस संदर्भ में समाजशास्त्री डॉ ऋतुराज सारस्वत कहती हैं, 'समय के साथ सामाजिक स्थितियों में थोड़ा बदलाव आना स्वाभाविक है क्योंकि इसके बिना समाज का विकास रुक जाएगा। जहां तक बुजुर्गों की स्थिति का सवाल है तो किसी भी समस्या के दो पहलू होते हैं। अक्सर लोग ऐसी शिकायतें करते हैं कि उनकी संतान उनका ख्याल नहीं रखती, तो सभी को यह भी याद रखना चाहिए कि किसी भी इंसान का व्यक्तित्व 1 दिन में नहीं बनता। बचपन में उसकी परवरिश जिस ढंग से की जाती है। बड़े होने के बाद वे अपने माता-पिता के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं। सभी को यह बात समझने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारी संताने वैसे ही बनती है। जैसा हम उन्हें बनाते हैं। बच्चों को अच्छी परवरिश देना माता-पिता की जिम्मेदारी होती है। लेकिन इसके बदले उनसे बहुत ज्यादा उम्मीद रखना ही बुढ़ापे में दुख का सबसे बड़ा कारण है। सभी को अपने भविष्य की आर्थिक सुरक्षा के बारे में शुरू से ही तैयारी करनी चाहिए, ताकि रिटायरमेंट के बाद व्यक्ति अपनी जरूरतें खुद पूरी कर सके शुरू से ही अपने सामाजिक संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे रिश्ते किसी इन्वेस्टमेंट की तरह होते हैं। जिनके लिए नियमित रूप से थोड़ा समय और पैसे खर्च करने की जरूरत होती है। यह बात हमेशा याद रखें कि वृद्धावस्था में पुराने दोस्त रिश्तेदार और पड़ोसी ही मददगार होते हैं। आजकल ज्यादातर परिवारों में एक या दो ही संताने होती है। अगर उन्हें कैरियर की वजह किसी दूसरे शहर या देश में शिफ्ट होना पड़े तो ऐसी स्थिति के लिए माता-पिता को पहले से ही मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए। बुजुर्गों को अपना सामाजिक दायरा विस्तृत करना चाहिए सबसे जरूरी बात यह है कि बुजुर्ग अपनी बढ़ती उम्र को बीमारी ना समझें और जहां तक संभव हो सामाजिक रूप से सक्रिय रहने की कोशिश करें। हां जब उनका शरीर थकने लगे तो ऐसी स्थिति में संतानों को भी यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों ना हो। अंतत: बुजुर्ग माता-पिता उन्हीं की जिम्मेदारी हैं।

कैसे कम हो दूरियां

अगर दोनों पीढ़ियां एक-दूसरे की जरूरतों और भावनाओं का ख्याल रखना सीख जाएं तो इससे कई समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी। बुजुर्गों को भी आराम और पर्सनल स्पेस की जरूरत होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आजकल महानगरों के अपार्टमेंट्स में एक ही साथ दो फ्लैट की बुकिंग का चलन बढ़ रहा है ताकि दोनों पीढ़ियों की जीवन शैली में अंतर की वजह से किसी को असुविधा ना हो। अपने बेटे के पास वाले फ्लैट में रहने की वजह से बुजुर्ग भी खुद को अकेला महसूस नहीं करते। आप ने भी यह महसूस किया होगा कि आजकल शहरों में रहने वाले बुजुर्गों का एक ऐसा भी तबका है, जो समय के साथ आने वाले बदलाव के अनुसार खुद को ढालने की पूरी कोशिश करता है। आपको अपने आसपास कई वरिष्ठ नागरिक बहुत आसानी से मिल जाएंगे, जो इंटरनेट और मोबाइल के नए एप्लीकेशंस का इस्तेमाल सीख कर बदलते वक्त के साथ कदम मिलाकर चल रहे हैं। अब बिलों के भुगतान, शॉपिंग हर तरह के टिकट बुकिंग और बैंक संबंधी अन्य कार्यों के लिए उन्हें दूसरे पर निर्भर नहीं देना पड़ता। इसी तरह अब उन्हें मालूम है, कि छोटी-छोटी बातों को लेकर नई पीढ़ी को ज्यादा रोक-टोक पसंद नहीं है इसलिए वह अपनी युवा संतानों के निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचते हैं। युवाओं को भी ऐसे बुजुर्गों का साथ बहुत पसंद आता है जो उनके साथ दोस्ताना व्यवहार करते हैं। जिन परिवारों में ऐसे खुले दिल के लोग होते हैं वहां का माहौल खुशनुमा बना रहता है।

यह भी ना भूलें 

  • सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि परिवार के बुजुर्ग सदस्य हमेशा स्वस्थ रहें। इसके लिए उनका नियमित मेडिकल चेकअप बेहद जरूरी है।
  • उन्हें स्वस्थ खान-पान और जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करें वह और एक्सरसाइज भी जरूरी है।
  • चाहे कितनी भी व्यस्तता हो कम से कम सुबह और रात को सोने से पहले उनके साथ बातचीत के लिए 10-15 मिनट जरूर निकालें। लंच टाइम में अगर आप उनसे केवल इतना ही पूछ लें कि 'आपने खाना खाया या नहीं' ऐसी छोटी-छोटी बातों से भी उन्हें बहुत खुशी मिलती है।
  • अपने बच्चों को शुरू से ही ग्रैंडपेरेंट्स का सम्मान करना सिखाएं।
  • अंत में, सबसे जरूरी बात आजकल ज्यादातर परिवारों में एक या दो संतानें होती हैं और आज के माता-पिता बेटियों को भी बेटे की तरह पढ़ने और आगे बढ़ने का पूरा अवसर देते हैं। इसलिए अगर परिवार में एक ही बेटी हो या किसी वजह से भाई माता-पिता से दूर रहता हो, तो ऐसे में बेटी की भी यह जिम्मेदारी बनती है, कि वह अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखें।

एक नजर आंकड़ों पर

  • बुजुर्गों के लिए कार्यरत स्वयंसेवी संस्था हेल्पएज इंडिया द्वारा 4.5 हजार लोगों पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जो प्रमुख तथ्य सामने आए वे इस प्रकार हैं:-
  • सर्वेक्षण के मुताबिक देश के 19 शहरों में बुजुर्गों की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। उनमें मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और भुवनेश्वर प्रमुख हैं।
  • बुजुर्गों को प्रश्नावली भरने को दी गई थी, उसमें लगभग 44% लोगों ने यह स्वीकारा कि सार्वजनिक स्थलों पर उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है।
  • देश के 53% बुजुर्ग ऐसा मानते हैं कि समाज में उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
  • सार्वजनिक स्थलों पर किसी बात की जानकारी मांगने पर 64% लोग उनके साथ बुरे लहजे में बात करते हैं।
  • सार्वजनिक स्थलों की लाइन में आगे खड़े होने पर 12% बुजुर्गों को आसपास मौजूद लोगों की उग्र प्रतिक्रिया देनी पड़ती है।
  • सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक मेंटिनेस एंड वेलफेयर ऑफ सीनियर सिटीजन एक्ट पर सही ढंग से अमल नहीं हो रहा। सिर्फ परिवारों के टूटने से दिक्कतें बढ़ी हैं और भाइयों के बीच होने वाले संपत्ति विवाद की वजह से बुजुर्ग माता-पिता को घर से बेदखल करने के मामले सामने आ रहे हैं। हालांकि इस एक्ट के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर बेटा या बेटी अपने अभिभावक को प्रताड़ित करता है तो माता-पिता उसे अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं।
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से मिल रही शिकायतों के आधार पर 18% बुजुर्ग अपनी ही संस्थानों द्वारा उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं।
  • एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के सरकारी अस्पतालों में 26% बुजुर्गों के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है।

बड़े बुजुर्गों का हमारे जीवन में क्या महत्व है? What is the importance of elders in our life in Hindi?

हमारे बच्चे अक्सर हमारे बुजुर्गों से ही कहानियां सुना करते हैं और बुजुर्गों से ही बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं। बच्चों के अंदर मिल बांट कर खाने की भावनाओं को बुजुर्ग विकसित करते हैं। जॉइंट फैमिली में बच्चे अनुशासन और संस्कार बुजुर्गों से ही सीखते हैं। जहां पर बच्चे अपने माता-पिता को बड़े बुजुर्गों का सम्मान और आदर करते हुए देखते हैं, तो उनके अंदर भी अपने बड़ों का सम्मान और इज्जत करने की भावना जागृत होती है।

बुजुर्ग शब्द का अर्थ क्या है? What is the meaning of the word elderly in Hindi?

कुल और वंश का प्रतिष्ठित और पूज्य व्यक्ति।।

वृद्ध और पूज्य व्यक्ति।

बाप दादा।

पुरख ।

वृद्धावस्था क्या है? What is old age in Hindi?

वृद्धावस्था यानी कि बुढ़ापा। वृद्धावस्था जिंदगी की उस अवस्था को कहते हैं, जिस वक्त इंसान की उम्र जीवन की औसत काल के समीप या उससे ज्यादा हो जाती है। वृद्धा अवस्था आहिस्ता आहिस्ता आने वाली अवस्था है जो एक प्राकृतिक वह स्वाभाविक घटना है बृद्ध का शाब्दिक अर्थ-- बढ़ा हुआ, पका हुआ और परिपक्व।

परिवार में बुजुर्गों का क्या महत्व होता है?

जिस परिवार में बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता उस परिवार में सुख, संतुष्टि और स्वाभिमान नहीं आ सकता। हमारे बड़े बुज़ुर्ग हमारा स्वाभिमान हैं, हमारी धरोहर हैं। उन्हें सहेजने की जरूरत है। यदि हम परिवार में स्थायी सुख, शांति और समृध्दि चाहते हैं तो परिवार में बुजुर्गों का सम्मान करें।

घर के बुजुर्गों का घर में क्या महत्व होता है विषय पर 60 से 80 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखें?

एजिंग कल्याण चिंता के दायरे से परे चला गया है, और इसे एक विकासात्मक चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत में 8.2% बुजुर्ग हैं (जो 60 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष हैं) और भारत में 9.0% बुजुर्ग महिला आबादी (भारत की जनगणना, 2011)। कुल मिलाकर, 2001 की जनगणना की तुलना में बुजुर्गों का प्रतिशत 8.6% है, जो कि 7.4% था।

घर में बड़े बुजुर्गों का होना बहुत लाभदायक होता है कैसे?

इस संबंध में कुछ प्रासंगिक विवरणों के लिए नीचे दिए गए बॉक्स को देखिए । यही नहीं, अनेक बच्चे, युवा और वृद्धजन अपने परिवारों से अलग हो जाते हैं और अपने दम पर ही जीवनयापन करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं। उनको अपनी आवश्यकताओं को खुद ही पूरा करने में कठिनाई होती है।

अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है अपने विचार 40 से 50 शब्दों में लिखिए?

बुजुर्गों को खाने-पीने के लिए उनका मुँह ताकना पड़ता है। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हम इन बुजुगों की संतान हैं । उनको पर्याप्त सम्मान देना और उनकी हर प्रकार से देखरेख करना हमारा फर्ज है। बुजुर्गों की प्रसन्नता और उनके आशीर्वाद से ही परिवार फूलता-पे- फूलता और खुशहाल रहता है।