Show
पाठ्यक्रम (curriculum) से तात्पर्य होता है शिक्षण विषय की पाठ्यवस्तु की रूप रेखा जो किसी विषय के लिए निर्धारित की गयी है। उदहारण के लिए उच्च विद्यालय में गणित विषय में किन –किन प्रकरणों की कितनी पाठ्यवस्तु अथवा प्रकरणों को पढ़ने के लिए निर्धारित किया गया हैं। जिस परीक्षा में प्रश्नों को करने के लिए दिया जायेगा शिक्षक छात्रों को उन्ही प्रकरणों को पढ़ा कर परीक्षा के लिए तैयार करता है। उसे गणित के पाठ्यवस्तु या syllabus कहते है इसे शिक्षण नियोजित किया जाता है। इसे भी पढ़िए: पाठ्यक्रम की उपयोगिता,मैस्लो का अभिप्रेरणा सिद्धांत(Maslow pyramid in Hindi), importance of education शिक्षा का महत्व पाठ्यक्रम का अर्थ क्या है (curriculum meaning in hindi)पाठ्यक्रम को अंग्रेजी भाषा में curriculum कहा जाता है। यह लैटिन भाषा के शब्द से लिया गया हैै। जिसका अर्थ है – दौड़ का मैदान। शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यक्रमबालक के लिए दौड़ का मैदान है जिस प्रकार एक दौड़ने वाला दौड़ के मैदान को पार करके दौड़ जीत सकता है। उसी प्रकार बालक भी पाठ्यक्रम (curriculum) रूपी दौड़ के मैदान को पार करके शिक्षा रूपी दौड़ के मैदान को जीत सकता है। अतः शाब्दिक अर्थ के अनुसार पाठ्यक्रम वह मार्ग है जिस पर चलते हुए बालक शिक्षा के उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है। पाठ्यक्रम की परिभाषा क्या है१.फ्रोबेल के अनुसार :- “पाठ्यक्रम सम्पूर्ण मानव जाति के ज्ञान एवं अनुभव का प्रतिरूप होना चाहिए।’’ २.जी एस
ब्यूचैम्प के अनुसार:- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत का वर्णन करें Pathykram nirman ke siddhant bataiyeविद्यालय में शिक्षण विषयों हेतु पाठ्यक्रम(curriculum) तैयार करने के मुख्य सिध्दांत इसे भी पढ़िए:थार्नडाइक का उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत,स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत 1. विद्यार्थी – केंद्रीयत का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम(curriculum) छात्रों की रुचि (intrested)आवश्यकताएं योग्यताओं वृत्तियों स्थितियों तथा उसके विकास स्तर के अनुकूल होना चाहिए इसमें छात्रों को उचित विकास के लिए समृद्ध अनुभव प्राप्त होने चाहिए दूसरे अर्थों में बच्चों को पाठयक्रम का केंद्रीय तत्व बनाना चाहिए। 2. समुदाय – केंद्रीयत का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम का विकास/निर्माण करते समय छात्रों की आवश्यकताओं के साथ-साथ समुदाय की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। वास्तव में सामुदायिक जीवन से ही पाठ्यक्रम(curriculum) की रचना की जानी चाहिए। यह समुदाय की आवश्यकताओं एवं समस्याओं पर आधारित होनी चाहिए। यह सामुदायिक जीवन की ही प्रतिपूर्ति होनी चाहिए। इसमें समुदायिक जीवन की महत्वपूर्ण विशेषताओं प्रतिबिंबित होनी चाहिए यह सामुदायिक वातावरण के अनुकूल होना चाहिए। 3. क्रिया-केंद्रीयत का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम और क्रियाओं पर केंद्रित होना चाहिए जिनमें छात्र रुचि लेते हैं। इसमें खेल क्रियाओं, रचनात्मक क्रियाओं तथा प्रोजेक्ट क्रियाओं के लिए अवसर मिलने चाहिए। दूसरे शब्दों में यह 'काम द्वारा सीखने' के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। 4. विविधता का सिध्दांत :-विविधता पाठ्यक्रम के विकास/निर्माण का एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत है। पाठ्यक्रम(curriculum) का आधार व्यापक होना चाहिए क्योंकि संकीर्ण पाठ्यक्रम से व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओं को विकसित नहीं किया जा सकता। प्रत्येक स्तर पर पाठकों की विभिन्न आवश्यकताओं एवं रुचिओं का ध्यान रखना चाहिए और पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत विभिन्नता के लिए स्थान होना चाहिए। 5. लचीलेपन का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए और प्रत्येक स्तर के बालकों की आवश्यकता पर आधारित होना चाहिए। यह सगाज की परिवर्तित स्थितियों के अनुकूल होना चाहिए और इसमें शिक्षा दर्शन एवं शिक्षा मनोविज्ञान का नवीनतम विकास प्रतिबिम्बत होना चाहिए। लचीला पाठ्यक्रम(curriculum) बच्चों की आवश्यकताओं के अनुकूल हो सकता है। 6. एकीकरण / सह संबंध का सिध्दांत :-शिक्षा का रूप हमेशा विकसित होते रहता है इसलिए पाठ्यक्रम के निर्माण या विकास करते समय हमें एकीकरण या सह संबंध विषयों या क्रियाओं पर भी ध्यान रखना चाहिए ताकि बच्चे का संबंध करते हुए उसे अच्छी तरह से समझ सके और उन्हें अपने आने वाले दिनों में बहुत फायदे हो सके। 7.अनुभव की समयता का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम(curriculum) अनुभव की समग्रता पर आधारित होना चाहिए। पाठ्यक्रम के अंतर्गत स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले प्रकरण ही सम्मिलित नहीं बल्कि इसमें वे संपूर्ण अनुभव सम्मिलित है जिन्हें छात्र स्कूल में कक्षा में, पुस्तकालय में, प्रयोगशाला में तथा कार्यशाला में होने वाली बहुमुखी क्रियाओं तथा अध्यापकों तथा कार्यशाला में होने वाली बहुमुखी क्रियाओं तथा अध्यापकों और छात्रों के कई अनौपचारिक संबंधों में प्राप्त करता है। 8. उपयोगिता का सिध्दांत :-उपयोगिता पाठ्यक्रम निर्माण का एक महत्वपूर्ण आधार है। पाठ्यक्रम(curriculum) में उन प्रकरणों को सम्मिलित करना चाहिए जो छात्रों के भविष्य में उपयोगी सिद्ध हो और जो उन्हें समाज के योग्य सदस्य बनाने में सहायता प्रदान करें। 9. सुरक्षा सिध्दांत :-पाठ्यक्रम में उन विषयों को शामिल करना चाहिए जो सभ्यता एवं संस्कृति की सुरक्षा में सहायक सिद्ध हो। सुरक्षात्मक दृष्टिकोण भी चुनाव पर आधारित होना चाहिए अर्थ अर्थ पाठ्यक्रम(curriculum) में सम्मिलित किये जाने वाले प्रकरणों तथा क्रियाओं को सावधानी से चुना जाना चाहियें। 10. रचनात्मक प्रशिक्षण का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम का विकास निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इससे छात्रों की रचनात्मक योग्यता को प्रोत्साहन मिले। रेमंट ने ठीक ही कहा है कि "वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए बनाए के पाठ्यक्रम का झुकाव निश्चित रूप से रचनात्मक विषयों की ओर होना चाहिए।"मानव संस्कृति में जो कुछ सर्वोत्तम है मानव की रचनात्मक योग्यता का परिणाम है। 11. लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम(curriculum) का इस प्रकार से विकास/निर्माण करना चाहिए कि वह लोकतंत्रिक मूल्यों का विकास करें। लोकतांत्रिक देशों में प्राइमरी सेकेंडरी तथा उच्च शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करने के लिए यह महत्वपूर्ण सिद्धांत है। 12. समन्वय का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम में अनौपचारिक एवं औपचारिक शिक्षा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष शिक्षा सामान्य एवं विशिष्ट शिक्षा उदार एवं व्यवसाय शिक्षा तथा शिक्षा के व्यक्तिगत एवं सामाजिक उद्देश्यों का समन्वय होना चाहिए। 13. जीवन के लिए तैयारी का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम को छात्रों के जीवन के लिए तैयारी करनी चाहिए। अतः पाठ्यक्रम(curriculum) में क्रियाएं शामिल होनी चाहिए जो छात्रों को भविष्य के लिए तैयार करने में सहायक हो और वे भविष्य में जटिल समस्याओं की विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के योग्य हो सकें। 14. सार्थकता का सिध्दांत :-पाठ्यक्रम का विकास/निर्माण करते समय अधिगम अनुभव के चयन एवं आयोजन में सार्थकता का भी ध्यान रखना चाहिए। जिन छात्रों के लिए पाठ्यक्रम निर्मित किया जा रहा है, उनके वातावरण एवं वर्तमान आवश्यकताओं की दृष्टि से उनके लिए सार्थक बातों का पाठ्यक्रम निर्माणकर्ता को ध्यान रखना चाहिए। सार्थकता वर्तमान, पिछड़े अनुभव तथा भविष्य में काम आने वाली बातों का ध्यान रखने की अपेक्षा करती है। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम (curriculum) में शामिल की जाने वाली बातों की सार्थकता अथवा निरर्थकता की परख भूत वर्तमान एवं भविष्य के परिपेक्ष्य में करनी चाहिए। 15. निरंतरता का सिध्दांत :-किसी कक्षा में पाठ्यक्रम का विकास/निर्माण करते समय या ध्यान रखना चाहिए कि वह एक तरफ तो पहले पड़ी हुई बातों से संबंधित रहे तथा दूसरी तरफ आगे की कक्षाओं में जो कुछ पढ़ना है उसके लिए आधार का कार्य करें। इस प्रकार सभी कक्षाओं में भूत वर्तमान और भविष्य में प्रदान किए जाने वाले अधिगम अनुभव में पर्याप्त रूप से निरंतरता बनी रहनी चाहिए। 16. मानवीय मूल्यों के विकास का सिध्दांत :-वर्तमान मूल्यों में भौतिकता की चकाचौंध में गिरावट आ गई है। सभ्यता नैतिकता से दूर दौड़ती प्रतीत हो रही है। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में इस गिरावट पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। इसकी शुरुआत प्राथमिक कक्षाओं से ही की जानी चाहिए ताकि छात्रों में उचित मानवीय मूल्यों का विकास हो सके। इस दृष्टि से स्कूल के पाठ्यक्रम(curriculum) में मानवीय मूल्यों के विकास के लिए आवश्यक विषय सामग्री, क्रियाओं एवं अनुभवों को अनिवार्य तौर पर शामिल किया जाना चाहिए। 17.बुनियादी ज्ञान एवं कौशलों का सिध्दांत :-आज के आधुनिक युग में बुनियादी ज्ञान एवं कौशलों का बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि आज का आधुनिक युग वैज्ञानिक तौर से आगे बढ़ रही है इसके साथ ही छात्रों में बुनियादी ज्ञान एवं उनके कौशलों को विकसित करने के लिए पाठ्यक्रम(curriculum) में इसे भी शामिल करना ही चाहिए ताकि उन्हें भविष्य में इनसे फायदा हो सकें। निष्कर्ष :- स्कूलों में जहां पाठ्यक्रम के
सिद्धांत(principles of curriculum) सबसे स्पष्ट थे और स्कूल स्तर पर पूछताछ के रूप में शिक्षण अच्छी तरह से संबंधित था पाठ्यक्रम के सिद्धांतों से यही निष्कर्ष निकलता है के पाठ्यक्रम छात्रों की रुचियों, आवश्यकताओं योग्यताओं वृत्तियों सिद्धांत हो तथा उसके विकास स्तर के अनुकूल होना चाहिए और विद्यार्थियों के लिए हर प्रकार का ज्ञान प्रदान करने की सुविधा हो अर्थात जिसके द्वारा बालक अपना बौद्धिक शारीरिक संवेगात्मक मानसिक नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास करने में समर्थ हो। पाठ्यक्रम का क्षेत्र (scope of curriculum)पाठ्यक्रम का क्षेत्र व्यापक होता है इसे हम इस रूप में देख सकते हैं-
पाठ्यक्रम का महत्व (importance of curriculum)पाठ्यक्रम को निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण बनाया गया है जो इस प्रकार से हैं:-
पाठ्यक्रम की आवश्यकता (need of curriculum)पाठ्यक्रम की आवश्यकता हमारे लिए निम्नलिखित बातों पर निर्धारित है:-
पाठ्यक्रम की वहनता (utility of curriculum)
इन्हें भी पढ़िए:
पाठ्यक्रम विकास के चरण कौन कौन से हैं?पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया के सोपान. शैक्षिक आवश्यकताओं की पहचान. शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण. विषय वस्तु का चयन एवं संगठन. अधिगम अनुभवों का चयन एवं संगठन. मूल्यांकन. पाठ्यक्रम निर्माण के कितने सोपान हैं?अधिकांश लेखकों एवं शिक्षा शास्त्रियों ने चार सोपानों का उल्लेख किया है। वे इस प्रकार हैं- उद्देश्यों का चयन करना, पाठ्यवस्तु का चयन करना तथा उसकी व्यवस्था करना, अधिगम अनुभवों हेतु शिक्षण विधियों का चयन करना, उनकी व्यवस्था करना तथा मूल्यांकन एवं परीक्षा प्रणाली का निर्धारण करना।
पाठ्यक्रम के निर्माण के मुख्य आधार कौन कौन से हैं?पाठ्यचर्या/पाठ्यक्रम निर्माण के आधार. दार्शनिक आधार हमारे जीवन अथवा शिक्षा के उद्देश्य मूलतः हमारे जीवन दर्शन पर आधारित होते है। ... . समाजशास्त्रीय आधार ... . राजनैतिक आधार ... . आर्थिक आधार ... . मनोवैज्ञानिक आधार ... . वैज्ञानिक आधार ... . समय की माँग. पाठ्यक्रम निर्माण प्रक्रिया क्या है?पाठ्यक्रम निर्माण का अर्थ (Meaning of Curriculum Development) जब शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों एवं विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार की क्रमबद्ध विधि द्वारा योजना बनाई जाती है करना है तो उसे पाठ्यक्रम निर्माण कहते हैं।
|