नमस्कार दोस्तों ये पोस्ट Rajasthan ka Ekikaran के बारे में है इस पोस्ट में आप Rajasthan ka Ekikaran in Hindi, raj gk, राजस्थान का एकीकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करोगे हमारी ये पोस्ट Rajasthan GK की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है जो की BSTC, RAJ. POLICE, PATWARI. REET , SI, HIGH COURT, पटवारी राजस्थान पुलिस और rpsc में पूछा जाता है Show
एकीकरण के समय राजस्थान में कुल 3 ठिकाने और 19 रियासते थी राजस्थान के ठिकाने व शासक निम्नलिखित हैं
एकीकरण के समय लावा ठिकाना जयपुर मे था जबकि वर्तमान में लावा ठिकाना टोंक जिले में स्थित हैं । राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा ठिकाना कुशलगढ़ था । राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा ठिकाना लावा ( 20 वर्गमील ) था । केन्द्र शासित प्रदेशएकीकरण के समय राजस्थान का एकमात्र केन्द्रशासित प्रदेश अजमेर मेरवाडा था । अजमेर मेरवाडा की अलग से विधानसभा थी, जिसे धारासभा के नाम से जाना जाता था । अजमेर-मेरवाडा की विधानसभा में कुल 30 सदस्य थे । इस विधानसभा के प्रथम व एकमात्र मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय थे । अजमेर-मेरवाडा ‘सी’ श्रेणी का राज्य था । एजेन्ट टू गवर्नर जनरल (ए.जी.जी.)एजेन्ट टू गर्वनर जनरल का संस्थापक विलियम बैंटिक को माना जाता है । विलियम बैंटिक ने 1832 में राजपूताना प्रेजीडेन्सी नामक संस्था की स्थापना की, जिसका प्रमुख नियंत्रण अधिकारी A G G था और इसका मुख्यालय अजमेर में रखा गया ।
एकीकरण के समय राजस्थान में चार राजनीतिक एजेंसियाँ थी
राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में हुआ जो निम्नलिखित है प्रथम चरण : मत्स्य संघ 18 मार्च, 1948 ई.मत्स्य संघ – अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली व नीमराणा ठिकाना ( 4+ 1 ) सिफारिश – के. एम. मुन्शी की सिफारिश पर प्रथम चरण का नाम मत्स्य संघ रखा गया । राजधानी – अलवर राजप्रमुख – उदयभान सिंह ( धोलपुर) । मत्स्य संघ के बनने में युगल किशोर चतुर्वेदी का अत्यधिक सहयोग रहा । युगल किशोर चतुर्वेदी को दूसरा जवाहरलाल नेहरू के उपनाम से जाना जाता है । उद्घाटनकर्ता – N V गाॅडगिल (नरहरी विष्णु गॉडगिल) मत्स्य संघ का उद्घाटन 17 मार्च, 1948 ई. को होने वाला था किन्तु भरतपुर शासक के छोटे भाई जाट नेता देशराज ने इस संघ को जाट विरोधी बताया और जाटों से संघ का निर्माण रोकने के लिए आह्वान किया, इसके फलस्वरूप जाटों का एक प्रतिनिधि इस संघ में शामिल किया गया और तभी 18 मार्च , 1948 ई. को इस संघ का उद्घाटन हो सका । मत्स्य संघ का विधिवत् उद्घाटन 18 मार्च, 1948 ई. को एन वी. गॉडगिल (नरहरि विष्णु गॉडगिल ) के द्वारा लौहागढ़ दुर्ग ( भरतपुर) में किया गया मत्स्य संघ का क्षेत्रफल लगभग 12,000 वर्ग किमी. जनसंख्या । 18.38 लाख एवं वार्षिक आय 184 लाख रुपए थी । दूसरा चरण राजस्थान संघ – 25 मार्च, 1948 ई.राजस्थान संघ/पूर्व राजस्थान – डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, किशनगढ़, टोंक, बूंदी, कोटा, झालावाड़ व कुशलगढ़ ठिकाना (9+ 1 ) राजधानी – कोटा राजप्रमुख – भीमसिंह (कोटा) उप राजप्रमुख – लक्ष्मण सिंह (डूंगरपुर) प्रधानमंत्री – गोकुल लाल असावा (शाहपुरा) उद्घाटनकर्ता – एन.वी. गाॅडगिल उद्घाटन – दूसरे चरण का उद्घाटन कोटा दुर्ग में किया गया । पूर्व राजस्थान संघ का क्षेत्रफल 16807 वर्ग किमी. जनसंख्या लगभग 2305 लाख एवं वार्षिक आय 200 करोड़ रुपए से अधिक थी । जब मेवाड के महाराणा भूपालसिंह ने राजस्थान संघ में शालि होने से मना कर दिया तो श्री माणिक्य लाल वर्मा ने मेवाड के महाराणा का विरोध करते हुए कहा कि ‘ मेवाड़ की बीस लाख जनता के भाग्य का फैसला अकेले महाराणा और उनके प्रधानमंत्री सर राममूर्ति नहीं कर सकते इससे मेवाड में महाराणा के विरोध में पूरी जनता उतर आई । इससे बचने के लिए 23 मार्च, 1948 ई. को मेवाड के महाराणा ने वी पी. मेनन के पास उसके प्रधानमंत्री सर राममूर्ति को तीन माँगों के साथ भेजा और पूर्व राजस्थान संघ के उद्धाटन की तारीख को 25 मार्च से आगे बढ़ाने का आग्रह किया । मेवाड़ के महाराणा भूपालसिंह की तीन शर्ते –
भोपाल सिंह एकीकरण के समय एकमात्र अपाहिज व्यक्ति था तीसरा चरण : संयुक्त राजस्थान – 18 अप्रैल, 1948 ई.संयुक्त राजस्थान – राजस्थान संघ + उदयपुर ( 10+1 ) राजधानी – उदयपुर राजप्रमुख – भूपालसिंह (मेवाड) उप-राजप्रमुख – भीमसिंह (कोटा) प्रधानमंत्री – माणिक्यलाल वर्मा (मेवाड) सिफारिश – पंडित जवाहरलाल नेहरू की सिफारिश पर माणिक्यलाल वर्मा को संयुक्त राजस्थान का प्रधानमंत्री बनाया गया । उद्घाटन – तीसरे चरण का उद्घाटन कोटा दुर्ग में किया गया । संयुक्त राजस्थान संघ का क्षेत्रफल 29,777 वर्ग मील, जनसंख्या 42 ,60,918 तथा वार्षिक आय 3,016 करोड़ रुपये थी । भारतीय महाद्वीप में मेवाड का स्थान कहाँ होगा, इसका निर्णय तो मेरे पूर्वज शताब्दियों पूर्व कर चुके है । यदि वे देश के प्रति गद्दारी करते तो मुझे भी आज हैदराबाद जैसी बडी रियासत विरासत में मिलती । पर न तो मेरे पूर्वजों ने ऐसा किया और न मैं ऐसा करूँगा । मेवाड महाराणा भूपाल सिंह जोधपुर के राव राजा हणूत सिंह के पाकिस्तान में विलय के प्रस्ताव पर चौथा चरण : वृहद राजस्थान – 3० मार्च, 1949 ई.वृहद राजस्थान – संयुक्त राजस्थान + जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर व बीकानेर + लावा ठिकाना ( 14+2 ) राजधानी – जयपुर सिफारिश – श्री पी. सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर जयपुर को राजधानी बनाया गया राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया के दोरान राज्य की राजधानी के मुद्दे को सुलझाने के लिए बी आर. पटेल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था । महाराज प्रमुख – भोपाल सिंह (मेवाड) राजप्रमुख – मानसिंह द्वितीय (जयपुर) उपराजप्रमुख – भीमसिंह (कोटा) प्रधानमंत्री – हीरालाल शास्त्री( जयपुर) शिक्षा का विभाग – बीकानेर वन विभाग – कोटा कृषि विभाग – भरतपुर खनिज विभाग – उदयपुर पांचवां चरण : वृहत्तर राजस्थान ( संयुक्त वृहत्त राजस्थान) 15 मई, 1949 ई.वृहत्तर राजस्थान – वृहद राजस्थान + मत्स्य संघ ( 18+3 ) सिफारिश – शंकरराव देव समिति की सिफारिश पर मत्स्य संघ को वृहत्तर राजस्थान में मिलाया गया । राजधानी – जयपुर राज प्नमुख – मानसिंह द्वितीय (जयपुर) । प्रधानमंत्री – हीरालाल शास्त्री (जयपुर) । उद्घाटनकर्ता – सरदार वल्लभ भाई पटेल । मत्स्य संघ को राजस्थान में मिलाने के लिए शंकर देवराय, हिम्मत सिंह, आर.के माधव एवं प्रभुदयाल का महत्वपूर्ण सहयोग रहा । छठा चरण : राजस्थान संघ 26 जनवरी, 1950 ई.राजस्थान संघ – वृहत्तर राजस्थान + सिरोही, आबू दिलवाडा (19+3) राजधानी – जयपुर महाराज प्रमुख – भूपालसिंह राजप्रमुख – मानसिंह द्वितीय 26 जनवरी 1950 ई. को राजस्थान को ‘बी’ श्रेणी में शामिल किया गया अखिल भारतीय देशी लोक परिषद’ की राजपूताना प्रांतीय सभा के महामंत्री हीरालाल शास्त्री ने 10 अप्रैल, 1948 ई. को सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास एक तार भेजा जिसमें लिखा था, कि ‘हमें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि उदयपुर संयुक्त राजस्थान में शामिल हो रहा है, इससे
सिरोही का राजस्थान में मिलना और भी अवश्यंभावी हो गया है, फिर हमारे लिए सिरोही का अर्ध है गोकुल भाई बिना गोकुलभाई के हम राजस्थान को नहीं चला सकते सरदार पटेल ने पं. नेहरू को इस पत्र का जवाब देते हुए लिखा कि,” सिरोही के संबंध में मेरी इन लोगों से कई बार बातचीत हुई है । पर सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद ही हम इस निर्णय पर पहुंचते हैं, कि सिरोही गुजरात में ही होना चाहिए । उन्हें सिरोही नहीं चाहिए उन्हें तो गोकुल भाई भट्ट चाहिए । उनकी यह माँग सिरोही को राजस्थान के दिए बिना पूरी की जा सकती है । सरदार पटेल एक अत्यंत चतुर राजनीतिज्ञ थे उन्होंने 26 जनवरी, 1950 ई. को पर्यटक स्थल माउंट आबू( सिरोही ) का एक भाग गुजरात प्रांत में जबकि गोकुल भाई भट्ट का जन्म स्थान हाथल गाँव सहित सिरोही का शेष भाग राजस्थान को दे दिया । गोकुल भाई भट्ट ने माउण्ट आबू के राजस्थान में विलय में महत्वपूर्ण योगदान दिया । सिरोही का राजस्थान संघ में विलय दो चरणों में पूर्ण हुआ सातवां चरण : वर्तमान राजस्थान 1 नवम्बर, 1956 ई.वर्तमान राजस्थान – राजस्थान संघ + आबू दिलवाड़ा + अजमेर मेरवाड़ा + सुनेल टप्पा – सिरोंज क्षेत्र ( 19+3+1 ) राजधानी – जयपुर सिफारिश – राज्य पुनर्गठन आयोग (अध्यक्ष-फजल अली) की सिफारिश पर अजमेर मेरवाड़ा, आबू दिलवाडा व सुनेल टप्पा को वर्तमान राजस्थान में मिलाया गया । राजस्थान के झालावाड़ का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में मिला दिया गया । राज्य पुनर्गठन आयोग भाषाई समस्याओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 22 दिसम्बर, 1953 ई. को एक राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की । जस्टिस फजल अली को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया और पं. ह्रदयनाथ कुंजरू तथा सरदार पान्निकर इसके सदस्य चुने गए । इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट सितम्बर, 1955 ई. को भारत सरकार को सौप दी । इस रिपोर्ट के आधार पर संसद ने नवम्बर, 1956 ई. में राज्य पुनर्गठन अधिनियम बनाया । इस अधिनियम के द्वारा अ, ब एवं स राज्यों के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया गया तथा राजप्रमुख के पद को भी समाप्त कर राज्यपाल का नया पद सृजित किया गया । राज्यपाल – गुरूमुख निहालसिंह मुख्यमंत्री – मोहनलाल सुखाडिया Rajasthan ka Ekikaran Chart/Sarni
Rajasthan ka Ekikaran महत्वपूर्ण तथ्यअखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के राजपूताना प्रान्तीय सभा का अधिवेशन 9 सितम्बर, 1946 को हुआ । इसमे नेहरूजी ने कर्नल जेम्स टॉड के राजस्थान शब्द का दूसरी बार 117 वर्ष बाद प्रयोग किया । यह शब्द एकीकरण के छठे चरण में वैधानिक रूप से राजपूताना की जगह प्रयोग में लाया जाने लगा ।
बाँसवाड़ा के शासक चंद्रवीर सिंह ने एकीकरण विलयपत्र पर हस्ताक्षर करते समय कहा था कि ’ मैं अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ । ‘
राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ । जो कि निम्नलिखित है
राजस्थान के एकीकरण में 8 वर्ष 7 महीने 14 दिन का समय लगा राजस्थान में एकीकरण के समय 19 रियासतें, 3 ठिकाने व एक केंद्रशासित प्रदेश अजमेर मेरवाडा था । भारत में एकीकरण के समय 565 रियासतें थी भारत में एकीकरण के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने वाली 562 रियासतें थी । 3 रियासतों ने एकीकरण विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए जो कि निम्नलिखित है कश्मीर, हैदराबाद, जूनागत (गुजरात)
अलवर रियासत के शासक तेजसिंह के दीवान नारायण भास्कर खरे ने महात्मा गाँधी की हत्या के कुछ दिन पूर्व नाथूराम गोडसे व उसके सहयोगी परचुरे को अलवर में शरण दी थी । महात्मा गाँधी की हत्या के सन्देह में अलवर के शासक तेज सिंह व दीवान एन बी. खरे को 7 फरवरी, 1948 को दिल्ली में नजरबन्द करके रखा गया । अलवर रियासत ने भारत का प्रथम स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया था । भारत सरकार के रियासती विभाग ने 6-8 अगस्त, 1945 ई. मे श्रीनगर में हुई बैठक में यह भी घोषणा कर दी थी कि वह रियासत ही अपना पृथक अस्तित्व रख सकती है जिसकी आबादी 10 लाख या उससे अधिक हो तथा उसकी वार्षिक आय एक करोड़ या उससे अधिक हो । उपर्युक्त शर्त को पूरा करने वाली राजस्थान में निम्नलिखित रियासतें थीं –जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर एकीकरण के समय वे रियासतें जो राजस्थान में नहीं मिलना चाहती थीं, निम्नलिखित है –
जोधपुर के महाराजा हनुवंत सिंह जिन्ना से मिलने के लिए दिल्ली गए। वीपी. मेनन हनुबंत सिंह को दिल्ली में बहाने से वायसराय भवन में माउंटबेटन के पास ले गए । जहाँ मजबूरन हनुवंत सिंह को राजस्थान के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े हनुवंत सिंह ने वीपी. मेनन पर ‘ पैन पिस्टल’ तानकर मेनन से कहा कि मैं तुम्हारे दबाव मे नहीं आने वाला हूँ । तभी. वहाँ माउंट बेटन आ गया । माउंट बेटन वे हनुवंत सिंह से पैन पिस्टल लेकर उनको वहाँ से विदा किया । वर्तमान में यह पैन पिस्टल इंग्लैंड के एक क्लब में रखी हुई है । वी पी. मेनन के प्रयास तथा लार्ड माउंटबेटन के दबाव के कारण जोधपुर शासक अपनी रियासत को पाकिस्तान में विलय करने का विचार त्याग कर बृहद् राजस्थान संघ में मिलने को तैयार हो गया ।
रियासती विभाग ने भरतपुर और धौलपुर रियासत की जनता की राय जानने के लिए डॉ. शंकरदेव राय समिति का गठन किया गया । इस समिति में दो सदस्य श्री प्रभुदयाल व श्री आर. के. सिंघावा को नियुक्त किया गया । इस समिति के दो सदस्यों ने दो राज्यों का दौरा कर वहाँ की जनता की रास जानकर अपनी रिपोर्ट तैयार की जिसमें लिखा था कि दोनों रियासतों की अधिकांश जनता बृहद् राजस्थान में मिलने के पक्ष में हैं । एकीकरण के समय भरतपुर , धौलपुर रियासतों पर जनता की राय जानने के लिए एम.एस.जैन कमेटी का गठन किया गया था । डॉ. शंकर देव राय समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए मई, 1949 ई. को मत्स्य संघ को ‘ वृहद् राजस्थान संघ ‘ में मिलाकर इसका नाम ‘संयुक्त वृहद् राजस्थान संघ’ किए जाने की विज्ञप्ति जारी की, जो 15 मई, 1949 को साकार हुई ।
एकीकरण के समय सर्वाधिक धरोहर राशि( पोते बाकी )बीकानेर रियासत के द्वारा वृहत् राजस्थान को जमा करवाई गई ।
जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर रियासत जो कि पाकिस्तान की सीमा पर स्थित थे वहाँ रेगिस्तान व अनुपजाऊ मिट्टी तथा यातायात एवं संचार साधनों की कमी के कारण आर्थिक रूप से पिछड़े हुए थे । v p मेनन ने इन तीनों रियासतों को काठियावाड में मिलाकर एक केन्द्र शासित राज्य बनाने की योजना बनाई, जिससे उनको सरकार के द्वारा हर संभव सहायता दी जा सके । जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर तीनों राज्यों की जनता की भावना राजस्थान में मिलने की थी और उसी समय समाजवादी दल के नेता श्री राममनोहर लोहिया ने राजस्थान आंदोलन समिति की स्थापना कर जयपुर, जोधपुर , बीकानेर , जैसलमेर व मत्स्य संघ को संयुक्त राजस्थान में मिलाने की माँग की । मानसिंह द्वितीय ने वी पी. मेनन को राजपूताना की रियासतों को तीन संघों में विभाजित करने का सुझाव दिया
महाराजा मानसिंह द्वितीय दो शर्तो के साथ वृहद् राजस्थान संघ में मिलने के लिए तैयार हुआ
मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह ने राजस्थान, गुजरात और मालवा के छोटे-बड़े राज्यों को मिलाकर एक बडी इकार्ई राजस्थान यूनियन बनाने के उद्देश्य से 25 – 26 जून, 1946 ई. को उदयपुर में राजाओं का सम्मेलन आयोजित किया । डूंगरपुर महारावल लक्ष्मणसिंह वृहत्तर डूंगरपुर का निर्माण करना चाहता था उसने डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कुशलगढ़, लावा और प्रतापगढ के राज्यों को मिलाकर बागड़ संघ का निर्माण करने का प्रयास किया मगर महारावल लक्ष्मणसिंह को भी अपने प्रयासों मे सफलता नही मिली । कोटा महाराव भीमसिंह कोटा, बूंदी और झालावाड राज्यों को मिलाकर एक वृहत्तर कोटा राज्य के निर्माण में लग गया किन्तु पारस्परिक अविश्वास, ईर्ष्या एवं अपना पृथक अस्तित्व बनाये रखने की महत्वकांक्षा के कारण हाड़ौती संघ अस्तित्व में नहीं आ सका । जयपुर के महाराजा द्वारा राजपूताना संघ बनाने का प्रयास किया गया । सितम्बर, 1946 ई. को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद ने भी यह कह दिया कि राजस्थान की कोई भी रियासत अपने आप में भारतीय संघ में शामिल होने योग्य नहीं है, अत: समस्त राजस्थान को एक ही इकाई के रूप में भारतीय संघ में सम्मिलित होना चाहिए 1946 में संविधान निर्मात्री सभा में राजस्थान से मनोनीत सदस्य
महाराणा भूपालसिंह ने 23 मई , 1947 ई. को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का उदयपुर में ही दूसरा सम्मेलन बुलाया और उसमें उपस्थित सभी राजाओ को महाराणा ने चेतावनी देते हुए कहा कि ‘ हम लोगों ने मिलकर रियासतों की यूनियन नहीं बनवाई तो सभी रियासतें जो प्रांतों के समकक्ष नहीं है निश्चित रूप से समाप्त हो जाएगी । आजादी के समय जैसलमेर का शासक महारावल जवाहर सिंह ( 1914 49 ई. ) था । राजस्थान का antim agg कौन था?राजस्थान संघ में विलय हुई रियासतों में कोटा बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया।
राजस्थान का पहला agg कौन था?राजस्थान का प्रथम AGG एजेंट मि. लॉकेट था। बीकानेर महाराजा सरदार सिंह एकमात्र नरेश थे जो विद्रोह को दबाने राज्य की सीमा से बहार गए।
राजपूताना की प्रथम रियासत कौन थी?राजपूताना में 23 रियासतें, एक सरदारी, एक जागीर और अजमेर-मेवाड़ का ब्रिटिश जिला शामिल थे. शासक राजकुमारों में अधिकांश राजपूत थे. कहा जाता है कि जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर और उदयपुर सबसे बड़े राज्य थे. विभिन्न चरणों में इन राज्यों का एकीकरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया.
राजस्थान का पहला एजेंटों गवर्नर जनरल कौन था?1857 की क्रांति के समय राजस्थान में पोलिटिकल एजेंट -
लेकिन 1845 में ग्रीष्मकाल में माउंट आबू (सिरोही ) स्थानांतरित कर दिया गया । इसका मुख्य अधिकारी ए जी जी (AGG - agent to governor general) होता था सभी रियासतें इसके नियंत्रण में थी। उस समय भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक थे।
|