वर्तमान में वनों के संरक्षण एवं विकास के लिए राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy In Hindi) को अपनाया गया है । Show
1988 में घोषित राष्ट्रीय वन नीति को क्रियाशील बनाने के लिए अगस्त 1999 में एक 20 वर्ष की दीर्घ अवधि वाली राष्ट्रीय वानिकी कार्य योजना लागू की गई है, जिसका उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना तथा देश के एक - तिहाई भाग को वृक्षो / वनों से ढकना है । राष्ट्रीय वन नीति क्या है?भारत की राष्ट्रीय वन नीति में देश के कुल 33 प्रतिशत भू - भाग के वनाच्छादित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । राष्ट्रीय वन नीति के अंतर्गत पर्वतीय भागों में 65 प्रतिशत एवं मैदानों में 20 से 25 प्रतिशत भू - भाग वनाच्छादित होने चाहिए । भारत के वन संरक्षण अधिनियम 1980 तथा राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में वन संरक्षण एवं वर्गीकरण हेतु स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं । राष्ट्रीय वन नीति ( National Forest Policy )इसके अंतर्गत अनेक उपायों के माध्यम से वनों एवं सकल भौतिक पर्यावरण के सरंक्षण के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं । वास्तव में वनों से ही सकल जैव जगत, जल, वायु, भूमि आदि को स्वच्छ रखने का आधार मिलता है तथा वन ही समस्त पारिस्थिकीय परिवेश को हरा - भरा एवं सन्तुलित बनाये रखते हैं । ये भी पढ़ें वन किसे कहते है एवं भारत में वनों का वितरण व विस्तारभारत में वन संसाधन संरक्षण के उपाय एवं वनों का विकासभारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट 2020राष्ट्रीय वन नीति (National Forest policy In Hindi)भारत उन कुछ देशो में से है, जहाँ 1894 से ही वन नीति लागू है । इसे 1952 और 1988 में संशोधित किया गया । संशोधित वन नीति का मुख्य आधार वनों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास है । इसके मुख्य लक्ष्य है -( 1 ) पारिस्थितिकीय सन्तुलन के संरक्षण और पुनर्स्थापना द्वारा पर्यावरण सन्तुलन को बनाए रखना, ( 2 ) प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण, ( 3 ) नदियों, झीलों और जलाशयों के जलग्रहण क्षेत्र में भूमि कटावा और वनों के क्षरण पर नियन्त्रण, ( 4 ) राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों तथा तटवर्ती क्षेत्रों में रेत के टीलों के विस्तार को रोकना, ( 5 ) व्यापक वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के माध्यम से वन - वृक्षो के आच्छादन मे महत्त्वपूर्ण वृद्धि करना, ( 6 ) ग्रामीण और आदिवासी जनसंख्या के लिए ईंधन की लकड़ी, चारा तथा अन्य छोटी - मोटी वन उपज आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कदम उठाना, ( 7 ) राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन उत्पादों में वृद्धि, ( 8 ) वन उत्पादों के सही उपयोग को बढ़ावा देना और लकड़ी का अनुकूलतम विकल्प खोजना और ( 9 ) इन उद्देश्य की पूर्ति और वर्तमान वनो पर दबाव कम करने के लिए बड़े पैमाने पर आम जनता विशेषकर महिलाओं का अधिकतम सहयोग प्राप्त करना । वन नीति के अनुसार वनों का वर्गीकरणवन नीति के अनुसार भारतीय वनों को निम्न चार भागों में बाँटा गया है -( 1 ) सुरक्षित वन ( Protected Forests ) -ये वे वन है जो राष्ट्र की भौतिक एवं पर्यावरणीय आश्यकताओं के लिए आवश्यक है । इन्हें संरक्षित वन भी कहा जाता है । इनकी मौजूदगी अधिकांशत: पहाड़ी क्षेत्रों, नदी - घाटियो, तटीय भागों में है । इन वनों को न केवल सरकार की ओर से सुरक्षा प्रदान की गई है वरन जहाँ कहीं इनमें कमी आई है वहाँ सुधार के लिए वृक्षारोपण भी किया जाता है । ( 2 ) राष्ट्रीय वन ( National Forests ) -देश की सुरक्षा, यातायात, उद्योग तथा सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन वनों की आवश्यकता है । ऐसे वनों में इमारती काष्ठ की खेती एवं अविचारपूर्ण विदोहन आदि पर रोक लगाई गई है । ( 3 ) ग्राम्य वन ( Village Forests ) -इनका महत्त्व गांवों और निकटवर्ती नगरों के लिए सस्ते ईंधन की उपलब्धि कराना है जिससे गोबर के कण्डे आदि का ईंधन के रूप में प्रयोग रोका जा सके एवं खेतों में खाद के रूप में व्यवहत किया जा सके । साथ ही इन वनों से कृषि - यन्त्रों एवं अन्य ग्रामीण आवश्यकताओं के लिए सीमित मात्रा में लकड़ी ग्रामवालों को मिलती है । ( 4 ) वृक्ष वन ( Tree Lands ) -इन वनों का विकास देश की भौतिक आवश्यकताओं के लिए किया जाना है । इन्हें रोपित वन भी कहा जाता है । इन्हें पूर्व बन्य क्षेत्रों, परती एवं बंजर भूमि तथा खाली पड़ी भूमि में लगाया जाता है । वन - महोत्सव ( Van - Mahotsava )सन् 1952 की वन नीति के अनुसार जुलाई 1952 से भारत सरकार ने वन - महोत्सव ( Van - Mahotsava ) मनाना आरम्भ किया है । प्रतिवर्ष जुलाई - अगस्त मास में वृक्षारोपण सप्ताह मनाया जाता है । वन महोत्सव आन्दोलन का मूल आधार है -"वृक्ष का अर्थ जल है, जल का अर्थ रोटी है और रोटी ही जीवन है।" ये भी पढ़ें वन किसे कहते है एवं भारत में वनों का वितरण व विस्तारभारत में वन संसाधन संरक्षण के उपाय एवं वनों का विकासभारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट 2020नई वन नीति ( New Forest Policy )वर्ष 1952 के पश्चात् 1978 में राष्ट्रीय वन नीति को संशोधित किया गया । बाद में 1988 में भारत सरकार द्वारा जो नवीन वन नीति की घोषण की गई उसके अंतर्गत इन प्रमुख बातो पर बल दिया गया है - ( अ ) पर्यावण सुधार,
नवीन वन नीति के प्रमुख बिन्दु हैं -( i ) पहाड़ी और नदियों के कटाव वाले क्षेत्रों में वन विस्तार करना । ( ii ) वनों की उत्पादकता में वृद्धि सुनिश्चित करना । ( iii ) पर्यावरण सन्तुलन के लिए वनों की कटाई करना । ( iv ) वन पर आधारित उद्योगों में कुटीर एवं लघु उद्योग ही स्थापित करने की मान्यता देना । ( v ) ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों के व्यतियों का वनों में आवश्यक हक सुनिश्चित करना । 1988 में घोषित वन नीति को क्रियाशील बनाने के लिए अगस्त, 1999 में एक 20 वर्षीय दीर्घकालीन राष्ट्रीय वानिकी कार्य योजना लागू की गई जिसका उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना तथा देश के एक - तिहाई भाग को वृक्षों / वनों से आच्छादित करना है । इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय वन नीति 1988 का अनुसरण करते हुए आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नष्ट हो चुके वनों को फिर से भरा - भरा करने के कार्य में स्थानीय लोगों को शामिल करने के लिए शत - प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रयोजित योजना प्रारम्भ की गई है । इस योजना का नाम 'अवक्रमित वनों को उपभोग के आधार पर पुनर्जीवित करने के लिए जनजातीय और ग्रामीण निर्धन वर्ग संगठन' है । इस योजना का उद्देश्य आदिवासियों को रोजगार मुहैया करवाना है । आगामी 20 वर्षों के लिए वृहत् रणनीतिक योजना रूप में राष्ट्रीय वन्य कार्यक्रम ( एम ० एफ ० ए ० पी ० ) भी तैयार किया गया है । इस कार्यक्रम का उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना तथा देश के एक - तिहाई भाग को वनों से आवरित करना है । वनों को नष्ट होने से बचाने और उनके विकास के लिए ग्रामीण समुदायों की सहायता लेने के उद्देश्य से संयुक्त वन प्रबन्धन की अवधारणा शुरू की गई है । संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है । सभी 28 राज्यों ने संयुक्त वन प्रबन्धन प्रस्ताव पारित कर दिये हैं । 84,632 संयुक्त वन प्रबन्धन समितियाँ बनाई गई हैं । देश भर में लगभग एक करोड़, 73 लाख 30 हजार हैक्टेअर वन भूमि को इस कार्यक्रम के अंतर्गत लाया गया है और 1,06,479 संयुक्त वन प्रबंधन समितियाँ कार्यरत हैं । राष्ट्रीय वन आयोग की स्थापना कब हुई?वनों और वन - जीवन क्षेत्र के कामकाज की समीक्षा कर इसमें सुधार के सुझाव देने हेतु राष्ट्रीय वन आयोग का गठन पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी ० एन ० कृपाल की अध्यक्षता में 7 फरवरी, 2003 को वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय द्वारा किया गया था । आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी ० एन ० कृपाल ने 26 मार्च, 2006 को अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपी । रिपोर्ट में आयोग ने प्रत्येक राज्य की अलग वन नीति बनाए जाने की सिफारिश की है । राष्ट्रीय वन आयोग ( National Forest Commission )पर्यावरण को साफ - सुथरा रखने व वन्य जीवों के पर्यावास के आधार पर वनों व आच्छादित वनों को बढ़ाने पर राष्ट्रीय वन आयोग ने विशेष बल दिया है । रिपोर्ट के अनुसार जल की उपलब्धता वनों पर ही निर्भर है, जबकि नदियों के प्रवाह क्षेत्र का भी सम्बन्ध बनो से है । इस आधार पर उद्योगों के कारण वनों व जल को होने वाली क्षति की भरपाई के लिए उन पर लगने वाले उपकर को 2 के स्थान पर 4 प्रतिशत किए जाने की सिफारिश की गई है । साथ ही उसका आधा भाग सम्बन्धित राज्य के वन विभाग को मिलना चाहिए । यदि ऐसा नहीं होता तो भी उद्योगों से अभी 2 प्रतिशत वसूले जाने वाले उपकर में से ही राज्यों को उसका आधा भाग दिए जाने की सिफारिश की है । समन्वित वन सुरक्षा योजना ( Integrated Forest Protection Scheme )वनों की आग की रोकथाम और प्रबन्धन तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र और सिक्किम में वन क्षेत्र का विकास सम्बन्धी दो योजनाओं को मिलाकर समन्वित वन सुरक्षा योजना तैयार की गई है । इस योजना के अंतर्गत केन्द्र सरकार शत - प्रतिशत वित्तीय अनुदान देती है । यह योजना दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत देश के सभी राज्यो एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में लागू की गई है । इस योजना के अंतर्गत दो योजनाओं को सम्मिलित किया गया है । पहला मूलभूत विकास इसके अंतर्गत है -( 1 ) सर्वेक्षण की कार्ययोजना और सीमांकन, ( 2 ) वन सुरक्षा के लिए मूलभूत सुविधाओं का विकास । दूसरा जंगल की आग की रोकथाम और प्रबन्धन । यह दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत पूरे देश में लागू की गई है तथा इसे आगामी योजनाओ के दौरान भी जारी रखा गया है । योजना आयोग ने ग्यारहवीं योजना के दौरान इसका नाम बदलकर वन प्रबन्धन का तीव्रीकरण दिया है । इस योजना के आधारित विषयों को व्यापक बनाने के लिए आई ० एफ ० पी ० एस ० अर्थात् अवसंरचना विकास तथा दावानल नियन्त्रण प्रबन्धन के विद्यमान तत्त्वों के अतिरिक्त तत्त्वों को इसमें सम्मिलित किया है । ये दो तत्त्व है -( 1 ) विशिष्ट वनस्पति तथा पारिस्थितिक तन्त्र के संरक्षण तथा पुनर्स्थापन एवं ( 2 ) पवित्र वृक्ष कुँज का रक्षण तथा संरक्षण । ये भी पढ़ें वन किसे कहते है एवं भारत में वनों का वितरण व विस्तारभारत में वन संसाधन संरक्षण के उपाय एवं वनों का विकासभारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट 2020राष्ट्रीय वनारोपण एवं पारिस्थितिकी विकास बोर्ड ( National Afforestation and Eco - Development Board )राष्ट्रीय वनारोपण और पारिस्थितिकी विकास बोर्ड की स्थापना 1992 में की गई । इसके उत्तरदायित्वों में देश में वनारोपण, पारिस्थितिकी कायम रखना तथा पारिस्थितिकी विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना सम्मिलित है । इस बोर्ड ने वनारोपण को प्रोत्साहित करने और प्रबन्धन की रणनीति तैयार करने के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की हैं । इससे राज्यों को निर्धारित क्षेत्र में वनारोपण व संयुक्त वन प्रबन्धन की भागीदारी योजना प्रक्रिया के द्वारा बायोमास उत्पादन बढ़ाने के लिए पारिस्थितिकी विकास पैकेज तैयार करने में मदद मिलती है । सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से राष्ट्रीय वनारोपण कार्यक्रम - दसवीं पंचवर्षीय योजना में प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्यों में 25 प्रतिशत वनारोपण और वृक्षारोपण का लक्ष्य भी सम्मिलित है । इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय ने राष्ट्रीय वनारोपण एवं पारिस्थितिकी बोर्ड के तत्त्वाधान में एक महत्वाकांक्षी वनारोपण कार्यक्रम शुरू किया है ताकि जनता के सहयोग से देश में वनों की सतत देखभाल हो सके । मन्त्रालय की सभी योजनाएं 'राष्ट्रीय वनारोपण कार्यक्रम' के अंतर्गत चलाई जा रही है । राष्ट्रीय वनारोपण कार्यक्रम के अंतर्गत अनेक परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है । जिसमें उपयुक्त भूमि पर वृक्षारोपण करने का लक्ष्य है । पूर्वोत्तर राज्यों में अधिकांश परियोजनाएँ झूम खेती ( स्थानान्तरित कृषि ) के लिए अमल में लाई जा रही है । हरियाली परियोजना ( Hariyali Project )27 जनवरी, 2003 से प्रारम्भ हरियाली परियोजना के अंतर्गत ग्रामीणों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाता है । वृक्ष लगाने वाले व्यक्ति को वनरक्षक के रूप में नियुक्त कर पंचायत के माध्यम से 100 रुपए प्रति माह का पारितोषिक उसे प्रदान किया जाता है । एक माह के पश्चात् इनमें से 75 या अधिक वृक्ष जीवित रहने पर उस वनकर्मी पर पारितोषिक तीन गुना कर दिया जाता है । 50 से 75 तक वृक्ष जीवित रहने पर इसे दोगुना किया जाता है । वनरक्षक यदि 50 या इससे कम पौधों को ही जीवित रख पाने में सफल रहता है, तो उसे इस पद से हटा दिया जाता है । भारतीय वन का उद्देश्य क्या था?भारतीय वन अधिनियम 1927 के उद्देश्य:
किसी क्षेत्र को आरक्षित वन, संरक्षित वन या ग्राम वन घोषित करने के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को परिभाषित करना। आरक्षित वन के अंदर निषिद्ध वन अपराधों को परिभाषित करना और उल्लंघन पर दंड निर्धारित करना। वनों और वन्यजीवों के संरक्षण को अधिक जवाबदेह बनाना।
राष्ट्रीय वन नीति का निर्माण एवं संशोधन कब किया गया?वर्ष 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति को लागू किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य वनों के विनाश रोकना तथा वनों की सुरक्षा एवं संरक्षण को बढ़ावा देना है।
राष्ट्रीय वन नीति कब लागू की गई?राष्ट्रीय वन नीति, 1988.
भारत में वन आयोग की स्थापना कब की गई थी?राष्ट्रीय वन आयोग की स्थापना कब हुई? वनों और वन - जीवन क्षेत्र के कामकाज की समीक्षा कर इसमें सुधार के सुझाव देने हेतु राष्ट्रीय वन आयोग का गठन पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी ० एन ० कृपाल की अध्यक्षता में 7 फरवरी, 2003 को वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय द्वारा किया गया था ।
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