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लिखे भारतीय संविधान में संघात्मक व्यवस्था या फेडरल सिस्टम का प्रावधान है कनाडा देश से लिया गया है धन्यवाद Romanized Version भारत, क्षेत्र और जनसंख्या की दृष्टि से अत्यधिक विशाल और बहुत अधिक विविधताओं से परिपूर्ण है, ऐसी स्थिति में भारत के लिए संघात्मक शासन व्यवस्था को ही अपनाना स्वाभाविक था और भारतीय संविधान के द्वारा ऐसा ही किया गया है। संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि ’’भारत, राज्यों का एक संघ होगा।’’ लेकिन संविधान-निर्माता संघीय शासन को अपनाते हुए भी भारतीय संघ व्यवस्था की दुर्बलताओं को दूर रखने के लिए उत्सुक थे और इस कारण भारत के संघीय शासन में एकात्मक शासन के कुछ लक्षणों को अपना लिया गया है। वास्तव में, भारतीय संविधान में संघीय-शासन के लक्षण प्रमुख रूप से और एकात्मक शासन के लक्षण गौण रूप से विद्यमान हैं।[1] भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण[संपादित करें]भारतीय संघ व्यवस्था में संघात्मक शासन के प्रमुख रूप से चार लक्षण कहे जा सकते हैं:
भारतीय संविधान में संघात्मक शासन के ये सभी प्रमुख लक्षण विद्यमान हैं। भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण[संपादित करें]भारत एक अत्यन्त विशाल और विविधतापूर्ण देश होने के कारण संविधान-निर्माताओं के द्वारा भारत में संघात्मक शासन की स्थापना करना उपयुक्त समझा गया, लेकिन संविधान-निर्माता भारतीय इतिहास के इस तथ्य से भी परिचित थे कि भारत में जब-जब केन्द्रीय सत्ता दुर्बल हो गयी, तब-तब भारत की एकता भंग हो गयी और उसे पराधीन होना पड़ा। संविधान के ये एकात्मक लक्षण प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं: (1) शक्ति का विभाजन केन्द्र के पक्ष में (2) इकहरी नागरिकता (3) संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान (4) एकीकृत न्याय-व्यवस्था (5) संसद राज्यों की सीमाओं के परिवर्तन में समर्थ (6) भारतीय संविधान संकटकाल में एकात्मक (7) सामान्य काल में भी संघीय सरकार की असाधारण शक्तियां (8) मूलभूत विषयों में एकरूपता (9) राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा (10) राज्य सभा में इकाईयों को समान प्रतिनिधित्व नहीं (11) आर्थिक दृष्टि से राज्यों की केन्द्र पर निर्भरता (12) संविधान के संशोधन में संघ को अधिक शक्तियां प्राप्त होना (13) अन्तर्राज्य परिषद् और क्षेत्रीय परिषदें (14) भारतीय संघ में संघीय क्षेत्र भारतीय संघवाद की प्रवृत्तियाँ (Tendencies Of Indian Federalism)[संपादित करें]भारतीय संघवाद, संविधानविद् के . सी . व्हीयर के शब्दों में ‘ अर्द्धसंघीय ‘ है। ग्रेनविले ऑस्टिन ने इसे सहयोगी संघवाद कहा है। भीमराव अम्बेडकर ने इसे कठोर संघीय ढाँचा मानने से इन्कार किया है। मोरिस जोन्स ने इसे सौदेबाजी वाला संघवाद माना है। परन्तु यह सत्य है कि भारतीय संघवाद विशुद्ध सैद्धान्तिक संघवाद नहीं है और विशिष्ट बहुलवादी परिस्थितियों में इसे एकात्मक शक्ति प्रदान की गई है। केन्द्र को अत्यधिक शक्तिशाली बनाया गया है। विधायी कार्यकारी और न्यायिक – आपातकालीन सभी क्षेत्रों में अन्तिम व निर्णायक भूमिका केन्द्र की ही रखी गई है। अखिल भारतीय सेवाएँ, आपातकालीन उपबंध (धारा 352, 356, 360), वित्त आयोग इत्यादि संस्थागत रूप से केन्द्रीकरण के माध्यम रहे है। किन्तु ये सेवाएँ संघ एवं राज्य दोनों के लिए सामान्य है। संघ द्वारा नियुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य या तो संघ के किसी विभाग (जैसे – गृह अथवा प्रतिरक्षा) के अधीन नियोजित किए जा सकते हैं अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन । लोक सेवकों की सेवाएँ अन्तरणीय होती है। संघ के अधीन नियोजित किए जाने पर भी वे प्रश्नगत विषय पर लागू होने वाली संघ एवं राज्य दोनों द्वारा निर्मित विधियों का प्रशासन करते हैं । राज्यों के अधीन सेवा करते हुए भी अखिल भारतीय सेवा के सदस्य को केवल संघीय सरकार द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है । राज्य सरकार इस प्रयोजनार्थ अनुषंगी कार्यवाही शुरु करने हेतु सक्षम है । इस एकात्मक आत्मा वाले संघवाद का दूसरा पहलू यह भी है कि राज्यों को अनेक संस्थाओं के माध्यम से उचित महत्त्व और भागीदारी प्रदान की गई है । और अधिक पढें संन्दर्भ[संपादित करें]
2. भारतीय संघीय व्यवस्था के आधारभूत तत्व नीला : एकात्मक राज्य
संघवाद सरकार की एक प्रणाली है जिसमें सत्ता केंद्रीय प्राधिकरण और देश की विभिन्न घटक इकाइयों के बीच विभाजित होती है। एक संघ में सरकार के दो स्तर होते हैं:
इस अर्थ में, संघों की तुलना एकात्मक राज्यों से की जाती है। एकात्मक प्रणाली के अंतर्गत या तो सरकार का केवल एक स्तर होता है या उप-इकाइयाँ केंद्र सरकार के अधीनस्थ होती हैं। केंद्र सरकार प्रांतीय या स्थानीय सरकार को आदेश दे सकती है। लेकिन संघीय व्यवस्था में केंद्र सरकार राज्य सरकार को कुछ करने का आदेश नहीं दे सकती। राज्य सरकार की अपनी शक्तियां होती हैं जिसके लिए वह केंद्र सरकार के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है। ये दोनों सरकारें अलग-अलग लोगों के प्रति उत्तरदायी होती हैं। संघवाद की विशेषताएँ[संपादित करें]संघवाद की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
भारत : संघात्मक या एकात्मक[संपादित करें]प्रधानत: भारत के संविधान में संघात्मक संविधान की सभी उपर्युक्त विशेषताएँ विद्यमान हैं। किंतु भारतीय संघात्मक संविधान में कुछ विशिष्ट प्राविधान है जिनका समावेश अन्य संविधानों के कार्यसंचालन से उत्पन्न कठिनाइयों को दृष्टिगत करके किया गया है। उदाहरणार्थ, सबसे विशिष्ट तथ्य यह है कि भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी इसका निर्माण स्वतंत्र राष्ट्रों की किसी संविदा द्वारा नहीं हुआ है; बल्कि यह उन राज इकाइयों के मेल (यूनियन) से बना है जो परंतंत्र एकात्मक भारत के अंग के रूप में पहले से ही विद्यमान थे। दूसरी विशेषता यह है कि आपत्काल में भारतीय संविधान में एकात्मक संविधानों के अनुरूप केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए प्रावधान निहित हैं। तृतीय विशेषता यह है कि केवल एक नागरिकता (भारतीय नागरिकता) का ही समावेश किया गया है तथा एक ही संविधान केंद्र तथा राज्य दोनों ही सरकारों के कार्यसंचालन के लिए व्यवस्थाएँ प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त संविधान सभा के मतानुसार भारत एक शिशु गणतंत्र की अवस्था में है, अत: देश के तीव्र एवं सर्वतोमुखी विकास एवं उन्नति के लिए समय समय पर उपयुक्त प्रावधानों की आवश्यकता पड़ सकती है जिसके लिए संविधान संशोधन की तीन विभिन्न प्रक्रियाएँ दी गई हैं। केवल विशेष संघात्मक प्रावधानों के संशोधन के लिए ही राज्यों का मत आवश्यक है, बाकी संशोधन संसद् स्वयं कर सकती है। इस प्रकार संघात्मक संविधानों के विकास में भारतीय संविधान एक नई प्रवृत्ति, केंद्रीकरण, का सूत्रपात करता है। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
संघीय व्यवस्था कहाँ से ली गई है?इस प्रकार , भारत में संघीय व्यवस्था की अवधारणा कनाडा के संविधान से ली गई है।
भारत में संघीय व्यवस्था कहाँ से लिया गया है?भारतीय संघीय व्यवस्था कनाडा से प्रभावित है। भारत संघ में 28 राज्य तथा 9 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।
भारत में संघात्मक व्यवस्था कब शुरू हुई?26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान अपनाया गया था तभी से भारतीय नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्रता व समानता प्रदान की गई है। भारतीय संविधान में संघात्मक व्यवस्था को अपनाया गया है। इसमें राष्ट्रपति देश प्रमुख व प्रधानमंत्री सरकार प्रमुख होता है। भारत का प्रधानमंत्री बहुमत दल प्राप्त नेता को बनाया जाता है।
संघीय शासन व्यवस्था कब हुई थी?एक दलीय संघवाद (1952-1967); अभिव्यक्तिवादी संघवाद (1967-1989); बहुदलीय संघवाद (1989-2014) और एकदलीय प्रभुत्व वाले संघवाद की वापसी (2014 से अब तक).
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