सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजन का रूप है? - saamaajik antar kab aur kaise saamaajik vibhaajan ka roop hai?

विषयसूची

  • 1 समाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं समझाइये?
  • 2 सामाजिक विभाजन और सामाजिक विभिन्नता में क्या अंतर है?
  • 3 हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती है कैसे?
  • 4 लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है कैसे?
  • 5 भारत में सामाजिक विभाजन का क्या आधार है?
  • 6 राष्ट्रीय एकता को खंडित होने के क्या परिणाम होते हैं?

समाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं समझाइये?

इसे सुनेंरोकेंसमाजिक अंतर का अर्थ है किसी समूह में कुछ आधारों पर अंतर जैसे कि प्रजाति, धर्म ,जाति, रंग, भाषा इत्यादि। जब कुछ सामाजिक अंतर कुछ और समाजिक अंतरों के सैट से हाथ मिला लेते हैं तो सामाजिक विभाजन बन जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि जब कुछ समाजिक अंतर एक दूसरे से मिल जाते हैं तो यह सामाजिक विभाजन बन जाते हैं।

बेल्जियम में सामाजिक विभाजन का आधार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंदेश का आकार चाहे बड़ा हो या छोटा, सामाजिक विभाजन मौजूद हैं। बेल्जियम में कई समुदाय हैं, हालांकि यह एक छोटा देश है, भारत एक बड़ा देश है और इसमें कई समुदाय हैं। स्वीडन और जर्मनी का उदाहरण लें, प्रवासियों की आमद के कारण समाजों में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। फिर भी वे विघटित नहीं हुए हैं।

सामाजिक विभाजन और सामाजिक विभिन्नता में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: समाजिक विभिन्नता का अर्थ है कि एक समूह के लोग अपनी जाति, धर्म, भाषा, सभ्यता के कारण भिन्न होते है। जब एक सामाजिक विभिन्नता दूसरी सामाजिक भिन्नता से जुड़ जाती है, तो यह सामाजिक विभाजन बन जाती है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते है।

राजनीतिक विभेद क्या है?

इसे सुनेंरोकेंराजनीतिक सिद्धांत में प्राकृतिक असमानताओं और समाजजनित असमानताओं में अंतर किया जाता है। प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती हैं।

हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती है कैसे?

इसे सुनेंरोकेंप्रश्न 1. हर एक सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती । कैसे? उत्तर :- हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती है क्योंकि सामाजिक विभाजन का कोई आधार नही होता है जो व्यक्ति जिस जाति या समुदाय में जन्म लेता है वह उसी जाति या समुदाय का हो जाता है।

सामाजिक विभिन्नता की किसी देश में उपस्थिति क्या उसकी एकता के लिए घातक है?

इसे सुनेंरोकेंलोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिद्वंद्विता का माहौल होता है। इस प्रतिद्वंद्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ़ जा सकता है।

लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है कैसे?

  1. लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया राजनीति पर भी पड़ती है।
  2. लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढ़ंग से अपनी शिकायतें जाहिर करना संभव है।
  3. लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है।
  4. लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।

सामाजिक विभाजनों का प्रमुख आधार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसमाजिक विभाजन का मुख्य आधार धर्म, जाती, लिंग, क्षेत्रतीयता इत्यादि होते है। समाजिक विभाजन तब होता है, जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। भारत में विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच अभिव्यक्ति एवं पहचान के लिए सत्ता के विभाजन होता है।

भारत में सामाजिक विभाजन का क्या आधार है?

सामाजिक विभाजन क्या है?

इसे सुनेंरोकेंजाति, धर्म, रंग, क्षेत्र आदि के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा परस्पर गलत व्यवहार करना, आपसी संघर्ष को सामाजिक विभाजन कहते हैं। इसके तीन निर्धारण तत्व हैं – (i) स्वयं की पहचान की चेतना, (ii) विभिन्न समुदायों की माँगों को राजनीतिक दलों द्वारा प्रस्तुत करने का तरीका तथा (iii) माँगों के प्रति सरकार की सोच।

राष्ट्रीय एकता को खंडित होने के क्या परिणाम होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंराष्ट्रीय एकता खंडित होने के अनेक दुष्परिणाम होते हैं। राष्ट्रीय एकता खंडित होने का तात्पर्य है कि वह राष्ट्र कमजोर हुआ है। यदि किसी राष्ट्र के नागरिकों में असहिष्णुता जन्म लेने लगती है और उनके बीच पारस्परिक वैमनस्य पनपता है तो राष्ट्रीय एकता प्रभावित होती है।

इसे सुनेंरोकेंप्रत्येक सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले सकता है। समाजिक अंतर का अर्थ है किसी समूह में कुछ आधारों पर अंतर जैसे कि प्रजाति, धर्म ,जाति, रंग, भाषा इत्यादि। जब कुछ सामाजिक अंतर कुछ और समाजिक अंतरों के सैट से हाथ मिला लेते हैं तो सामाजिक विभाजन बन जाते हैं।

 सामाजिक विभाजन तब होती है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते है। सवर्णो और दलितों का अंतर् एक समाजिक विभाजन है कयोंकि दलित संपूर्ण देश में आमतौर पर गरीब वंचित एवं बेघर है और भेदभाव का शिकार है जबकि सवर्ण आम तौर पर सम्पन्न एवं सुविधायुक्त है अर्थात दलितों को महसूस होने लगता है की वे दूसरे समुदाय के है। अतः हम कह सकते है की जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरो से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगो को यह महसूस होने लगता है की वे दूसरे समुदाय के होते है तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है। 

Upvote(0)   Downvote   Comment   View(1742)

सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं समझाइए?

Solution : सामाजिक विभिन्नता का अर्थ है, जाति , धर्म , भाषा अथवा संस्कृति के कारण लोगों के समूहों में अंतर होना। यह सामाजिक विभाजन तब बन जाता है जब कुछ सामाजिक विभिन्नताएं किसी अन्य सामाजिक विभिन्नताओं से मिल जाती है दूसरे शब्दों में , जब दो या दो से अधिक सामाजिक मिल जाती हैं तो एक सामाजिक विभाजन बन जाता है।

हर सामाजिक विभिनता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेते कैसे?

प्रश्न 1. हर एक सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेतीकैसे? उत्तर :- हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नही लेती है क्योंकि सामाजिक विभाजन का कोई आधार नही होता है जो व्यक्ति जिस जाति या समुदाय में जन्म लेता है वह उसी जाति या समुदाय का हो जाता है।

सामाजिक विभेद और सामाजिक विभाजन में क्या अंतर है?

समाजिक विभिन्नता का अर्थ है कि एक समूह के लोग अपनी जाति, धर्म, भाषा, सभ्यता के कारण भिन्न होते है। जब एक सामाजिक विभिन्नता दूसरी सामाजिक भिन्नता से जुड़ जाती है, तो यह सामाजिक विभाजन बन जाती है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते है।

सामाजिक विभाजन क्या होते हैं?

Solution : जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र आदि के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा परस्पर गलत व्यवहार करना, आपसी संघर्ष को सामाजिक विभाजन कहते हैं