सामाजिक भेदभाव की उत्पत्ति के लिए उत्तरदाई कारक कौन कौन से हैं? - saamaajik bhedabhaav kee utpatti ke lie uttaradaee kaarak kaun kaun se hain?

सामाजिक भेदभाव @ जाति पांति

सामाजिक भेदभाव विभिन्न रूपों में समाज में उपस्थित हैं जैसे जातिगत भेदभाव, लैंगिक (महिला और पुरुष),वर्ण आधारित (काले गोरे- अमेरिका और यूरोप में), लम्बे छोटे, इत्यादि। कल यह दुसरे रूप में था आज अलग रूप में है नए वाले कल में दुसरे रूप में होगा। जितने भी भेदभाव हैं उसमे सभी एक दुसरे को नीचा दिखने का प्रयास करते हैं यदि ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उनमे हीन भावना उत्पन्न हो जाती है।जहाँ तक जाती और वर्ण का सवाल है तो इस पर में कुछ प्रकाश डालना चाहूँगा कि वर्ण व्यवस्था भारत में वैदिक काल से हैउत्पन्न जिसमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वश्य और शुद्र के रूप में वर्णित है। परन्तु अछूत जाति या अछूत वर्ण  का वर्णन कही नहीं मिलता। दलित एक नया क्लास पता नहीं कहाँ से जोड़ दिया गया जिसका सही सही समय और परिस्थिति ज्ञात नहीं कि कैसे इसका जन्म हुआ। चारों वर्णों के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं परन्तु जो शुद्र वर्ण है उसका मतलब था service provider (सेवा देने वाले)।जाति व्यवस्था बहुत की निंदनीय व्यवस्था थी। परन्तु आज नहीं पायी जाती। आज सभी वर्ण या जाति के लोग हर तरह का कार्य करते है, सभी जाति के लोग व्यापार, सेवा में, नौकरियों में, सेना में, राजनीति इत्यादि। हर जगह हर जाति के लोग है। सामान्यतः जाति का मतलब था कि ब्राह्मण शिक्षा देने का कार्य करेंगे, क्षत्रिय समाज की सुरछा करेंगे, वैश्य खेती बारी और व्यापार करेंगे, शुद्र सेवा प्रदान करेंगे। यह सब अनुवांशिक था अर्थात जो जिस जाति का है उसके घर जन्म लेने वाल भी उसी जाति का होगा। इस वर्ण व्यवस्था को भगवान् बुद्ध ने पहली बार मजबूत चुनौती दी थी और कहा कि समाज में व्यक्ति की जाति जन्म से नहीं कर्म पर आधारित होती है। यदि कोई वैश्य कुल में जन्म लेता है और सैनिक है तो वह क्षत्रिय है. यदि कोई शुद्र वर्ण का व्यक्ति शिक्षक है तो वह ब्राह्मण है।भगवान् बुद्ध के इस विचार से पूरा हिन्दुस्तान प्रभावित था और समाज में बहुत बड़ी धार्मिक और सामाजिक क्रांति आई थी। पर अफ़सोस इस बात पर है कि जो भगवान बुद्ध भारत में जन्में उसी धरती पर उनके उपदेशों और विचारों का प्रभाव नहीं पड़ा और दुनिया के अन्य देश उन्ही के संदेशों, उपदेशों का पालन करते हुए आज विश्व में सामाजिक और आर्थिक उन्नति से दुनिया में लोहा मनवा रहे है। वह चाहे जापान हो (एक मात्र एशियाई देश जो कि बहुत पहले से ही विकसित देशों में शुमार है) अथवा चीन। परन्तु हम आज भी जाती पांति के ही गुण गाने में लगे है और अपना समय अपनी छमता सब बर्बाद कर रहे हैं।खैरजहाँ तक जाती पांति का प्रश्न है तो मैं यह कहना चाहूँगा कि इस प्रकार की सामजिक कुरीति केवल भारत में ही नहीं थी बल्कि विश्व के सभी भाग में थी, चाहे वह अफ्रीका के विभिन्न देश हों, जापान हो ,चीन, नेपाल, श्री लंका , कोरिया , स्पेन,  फ्रांस और भी कई. जिन देशों में लोग बाहर से आकर बसे जैसे कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि वहां जाति की जगह काले गोरे, धनी, निर्धन, कुलीन और मजदूर इत्यादि विभाजन समाज में मौजूद थे। अतः केवल भारत को दोष देना कि सारी कुरीतियाँ यहीं थी यह सही नहीं है। इस प्रकार का सामजिक वर्गीकरण जबसे मानव सभ्यता का विकास हुआ और मनुष्य ने बस्तियों में रहने लगा तब से समाज में स्थापित है। इसका मुख्य कारण यह था कि शुरू में मनुष्य का ज्ञान ज्यादा विकसित नहीं था, संचार के साधन ज्यादा सुलभ नहीं थे जिससे विभिन्न प्रकार की सभ्यताओं से लोग संपर्क में नहीं थे। जहाँ गरीबी अशिक्ष ज्यादा थी वहां इसका प्रतिकूल प्रभाव अधिक था। परन्तु जैसे जैसे लोकतंत्र स्थापित होने लगी और विज्ञान, संचार, टेक्नोलॉजी, औद्योगिकीकरण बढ़ने लगा वैसे वैसे समाज से कुप्रथाएं कम होने लगीं। आज हम इस प्रकार की सामाजिक कुरीतियाँ वही ज्यादा पाते है जो देश या समाज औद्योगिक अर्थव्यवस्था से पिछड़े हुए देश हैं और आर्थिक रूप से कमजोर हैं। जहाँ आर लोगों के पास रोजगार कम हैं उनके पास समय ज्यादा है और वो ऐसे समय का दुरूपयोग करते हैं और इससे जातिवाद जैसी कुरीतियाँ और भी मजबूत होती हैं।   अतः लोगों को कि यह अवधारणा कि फलां जाती ने फलां जाती पर अत्याचार किया था इस तरह की बातों को लेकर यदि जीते रहे तो जीवन के आनंद को महसूस नहीं कर पायेंगे, दुनिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है तकनिकी विकास से आज जो लोग पुरानी सोच के हैं और ज्यादा घुमते फिरते नहीं हैं वो समझ ही नहीं पाए कि अचानक इतना बड़ा बदलाव कहाँ से आ गया। वो चुकी पुराने विश्वासों और मतों के साथ जीते रहे और संचार की सुविधाओं से दूर रहने पर वो समाज में आये बदलाव को समझ नहीं पाए, आज भी जाती पांति की ही  बात करते मिलते है।अतः आज भी समाज में भेदभाव है और जब तक मानव सभ्यता है यह आगे भी जारी रहेगा बस उसका स्वरुप बदलेगा। क्यूंकि यह स्वतः उत्पन्न संरचना है जो कि केवल मनुष्य की स्वाभाव (Governs by Human nature) से निर्धारित होती है। यदिगाँवमें,चाहेवोक्षत्रियहीक्यूँहोंपरन्तुउनमेभीऊंचेवालेठाकुर,नीचेवालेठाकुर,ब्राह्मणमेंभीऊंचेवालेब्राह्मण,नीचेवालेब्राह्मण,इत्यादि.जिनकेपासअधिकखेतीहैवोबड़ेकाश्तकार,जिनकेपासकमखेतीहैवोछोटेकाश्तकार,बड़ेव्यापारी,छोटेव्यापारी,इत्यादिइसप्रकारसेसामाजिकवर्गीकरणहरजगहहैऔरवर्गीकरणशास्वतहैकेवलबड़ेसमूहोंमेंहीनहींपरन्तुइनकास्वरुपउनसमाजोंके भी अन्दरकईरूपोंमेंउपस्थितहैआज बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिसके पास ऐपिल आई फ़ोन है वो छोटा मोबाइल रखने वाले को अपने से नीचा समझते हैं, जो लोग चार पहिया गाड़ियों से चलते हैं उन्हें मोटर साईकिल वाला नीचा नजर आता है, जो मोटर साईकिल से चलता है उसे साईकिल वाला नीचा नजर आता है। यह सभी सामाजिक भेदभाव (social stratification) के ही स्वरुप हैं।भेदभाव (Stratification) शास्वत है और हमेशा रहेगा अतः हमें समाज में यह जहर नहीं फैलाना चाहिए की हमारे जाती के साथ लोगों में ऐसा बर्ताव किया था और न ही उसका बदला लेने की कोशिश की जाये।बेहतर यह होगा की कोई भी सामाजिक बुराई का विरोध करना चाहिए और उसे समाज से निकलने का प्रयास हर संभव प्रयास करना चाहिए। सामाजिक बुराई समाज में जब तक रहेगीं केवल नुकसान ही पहुचाती रहेंगी। हमें अपने सोच को भी दुरुस्त रखना पड़ेगा और आधुनिक समाज के अनुसार अपनी सोच में बदलाव का प्रयास भी करना चाहिए।
मेरे साथ भेदभाव : मेरी शारीरिक लम्बाई हाई स्कूल तक की क्लास तक, पूरे क्लास में सबसे कम थी। मेरे सभी सहपाठी मुझे छोटू छोटू कह कर पुकारते थे. स्कूल में जब प्रार्थना के लिए लाइन लगती थी तो सबसे छोटे होने की वजह से लाइन में सबसे आगे खड़ा किया जाता था. यह सब मुझे बहुत बुरा लगता था. लेकिन में भी निकला भीम राव आंबेडकर, मैंने अपने साथ हो रहे इस भेदभाव के खिलाफ, अपना विरोध प्रदर्शन भगवान् के सामने शुरू किया. विरोध पूरी तरह से याचक की तरह, आज की तरह से नहीं कि, आरक्षणमागने के लिए ट्रेन और सड़क मार्गों को बाधित कर माग मनवाई जाय, जब भी पूजा करता तो भगवान् के सामने केवल एक मुद्दा, हे भगवान मुझे लम्बा कर दो। रोज पूजा के बाद अपनी याचिका भगवान् के सामने लगा देता था। भगवान् भी परेशान होकर तथास्तु कर ही दिया और क्लास ११ से मेरी लम्बाई बढ़ने लगी। लम्बा होने के लिए मैंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, शायद इश्वर ने कुछ ऐसा जुगाड़ किया की मेरी लम्बाई बढ़ाने का जुगाड़ हो गया। एक दोस्त के यहाँ गया तो उसके यहाँ कद लम्बा करें नमक १५ रुपये की किताब देखी, लेकिन १५ रुपये देख कर खरीदने की हिम्मत नहीं हुई, फिर उससे उस किताब को एक दिन के लिए उधर ले गया और फिर उसके सभी व्यायाम को पूरी निष्ठा से और रूटीन में लगकर शुरू किया। इश्वर की कृपा से लम्बा होना शुरू को गया। लेकिन मेरा दोस्त जिसके यहाँ से वो किताब में लाया था वो छोटा ही रह गया. शायद मैंने भगवान् के सामने अपना ज्यादा ही विरोध प्रदर्शन कर दिया था और वो नहीं कर पाया। शारीरिक लम्बाई भी एक सामजिक भेदभाव (stratification) का हिस्सा है.

सामाजिक भेदभाव की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी कारक कौन कौन से है?

समुदाय का सदस्य नहीं मानते क्योंकि उनकी जाति या उनका पंथ अलग होता है । । इस प्रकार हम सभी की एक से ज्यादा पहचान होती है। इसी तरह लोग एक से ज़्यादा सामाजिक समूहों का हिस्सा हो सकते हैं।

सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का प्रमुख कारण क्या है?

सामाजिक विभेद का सबसे मुख्य कारण जन्म को माना जाता है। किसी व्यक्ति का जन्म किसी परिवार विशेष में होता है। उस परिवार का संबंध किसी न किसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा क्षेत्र से होता है। इस तरह उस व्यक्ति विशेष का संबंध भी उसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र से हो जाता है।

सामाजिक भेदभाव का क्या कारण है?

भारत सहित किसी भी देश में होने वाले भेदभाव का प्रमुख कारण पूर्वाग्रह है। पूर्वाग्रह का तात्पर्य किसी व्यक्ति में संचित उन भावनाओं से है जिसके कारण वह किसी व्यक्ति अथवा समूह के प्रति सकारात्मक व नकारात्मक रुझान रखता है।

सामाजिक भेदभाव की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्पत्ति क्या है?

सामाजिक विभाजन अधिकांशत: जन्म पर आधारित होता है। सामान्य तौर पर अपना समुदाय चुनना हमारे वंश में नहीं होता। हम सिर्फ इस आधार पर किसी खास समुदाय के सदस्य हो जाते है कि हमारा जन्म उस समुदाय के एक परिवार में हुआ होता है।