सब्सक्राइब करे youtube चैनल Show Social mobility in hindi meaning definition सामाजिक गतिशीलता क्या है | सामाजिक गतिशीलता किसे कहते है परिभाषा प्रकार अर्थ मतलब बताइए ? अवधारणा की विशेषता को समझाइए ? महत्व लिखिए ? प्रस्तावना समाजशास्त्र में एक संकल्पना के रूप में सामाजिक गतिशीलता का महत्व एकदम स्पष्ट है। किसी व्यक्ति अथवा समूह द्वारा समाज की स्थिति में अनुभव किया गया कोई परिवर्तन न केवल उस व्यक्ति या समूह पर प्रभाव डालता है बल्कि संपूर्ण समाज पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना की व्याख्या परोक्ष रूप से समाज में वर्गीकरण की पहचान कराती है। यह वर्गीकरण सामान्यतः शक्तिं, हैसियत और विशेषाधिकार के संदर्भ में किया जाता है। इससे किसी समाज में किसी व्यक्ति या समूह द्वारा शक्ति, हैसियत और विशेषाधिकारों को प्राप्त करने या खोने की समाजशास्त्रीय जाँच की संभावनाओं का मार्ग खुल जाता है। अन्य शब्दों में, अधिकारी-वर्ग की सीमा-रेखा से किसी के ऊपर जानें या नीचे आने से सामाजिक स्थिति अर्थात् सामाजिक गतिशीलता का पता लगता है।
सामाजिक स्थिति पर प्रभाव डालने में लगने वाला समय अलग-अलग समाज में अलगअलग होता है। सामाजिक गतिशीलता के अनेक आयाम हैं। सामाजिक गतिशीलता का समाजशास्त्र ऐसे विद्वानों के योगदानों से भरपूर है जिन्होंने अपने संबंधितं अध्ययन क्षेत्रों और एकत्रित आँकड़ों के आधार पर इस संकल्पना के बारे में सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। यह एकदम स्पष्ट है कि किसी स्थिति में परिवर्तन या तो सम-स्तरीय या फिर सोपानात्मक हो सकता है। अतः सामाजिक स्थिति में परिवर्तन को दो आरंभिक प्रकारों अर्थात् सम-स्तर गतिशीलता और ऊर्ध्व गतिशीलता के विश्लेषणात्मक रूप में समझा जा सकता है। गतिशीलता के प्रकार और रूप चूँकि सम-स्तर गतिशीलता में बड़े क्रमिक सोपानात्मक उतार-चढ़ाव नहीं होते। अतः सामाजिक गतिशीलता का सम-स्तरीय आयाम किसी समाज में स्थित स्तरीकरण की स्थिति पर अधिक प्रकाश नहीं डाल सकता। फिर भी यह समाज में स्थित विभाजन की प्रकृति का संकेत तो कर ही देता है। ऐसे विभाजन समाज में स्थिति के बड़े अंतर का आरंभिक संकेत नहीं देते। अधिक समकालीन समाजशास्त्री एंटोनी गिड्डन का विचार है कि आधुनिक सभ्यताओं में गतिशीलता की अनेक उप-दिशाएँ हैं। वह समस्तर गतिशीलता को ऐसी पार्श्व गतिशीलता के रूप में परिभाषित करता है जिसमें पड़ोसी नगरों या क्षेत्रों के बीच भौगोलिक संचलन शामिल हों। ऊर्ध्व गतिशीलता पी.सोरोकिन ऊर्ध्व सामाजिक गतिशीलता को बेहतर ढंग से इस प्रकार परिभाषित करता है कि इसमें किसी व्यक्ति (या सामाजिक वस्तु) का एक सामाजिक स्तर से दूसरे सामाजिक स्तर में संचलन हो। संचलन की दिशाओं के अनुसार दो प्रकार की सामाजिक गतिशीलताएँ होती हैं-(1) ऊपर की तरफ, तथा (2) नीचे की तरफ या क्रमशः ‘सामाजिक उत्थान‘ और ‘सामाजिक पतन‘। एंटोनी गिड्डन ऊर्ध्व गतिशीलता को ऊपर या नीचे की तरफ सामाजिक आर्थिक मानदंड संचलन के रूप में परिभाषित करता है। उसके अनुसार जो सम्पत्ति, आमदनी या हैसियत प्राप्त करते हैं वे ऊपर की तरफ गतिशील माने जाते हैं तथा जो इसके विपरीत संचलन करते हैं वे नीचे की तरफ गतिशील माने जाते हैं। गिड्डन के अनुसार आधुनिक सभ्यताओं में ऊर्ध्व तथा समस्तर (पार्श्व) गतिशीलता प्रायः एक-साथ होती है। प्रायः एक गतिशीलता से दूसरी गतिशीलता पैदा होती है। उदाहरण के लिए किसी शहर में एक कंपनी में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी अन्य शहर या देश में स्थित उस कंपनी की शाखा में पदोन्नति प्राप्त कर सकता है। गतिशीलता के रूप जब तक किसी समाज में सामाजिक स्थितियों का श्रेणीकरण है तब तक एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में संचलन की कम से कम सैद्धांतिक संकल्पना की संभावना होती है। ये परिवर्तन किसी व्यक्ति, समूह या यहाँ तक किसी सामाजिक मूल्य/ वस्तु द्वारा किए/महसूस किए जाते हैं। सामाजिक स्थिति के ऐसे परिवर्तनों को सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है। अभ्यास 1 यह परिवर्तन यदि नवीनतम रूप में महसूस किया जाता है तो इसे समस्तर सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है। यदि संचलन सोपानात्मक हो तो उसे ऊर्ध्व गतिशीलता कहा जाएगा। समाजशास्त्र में सोपानात्मक गतिशीलता जो ऊपर की तरफ या नीचे की तरफ होती हुई विभिन्न पहलुओं पर अधिक ध्यान दिया जाता है। सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विश्लेषण भी किया जा सकता है। कुछ महत्वपूर्ण रूप हैं-प्रतियोगी गतिशीलता और प्रायोजित गतिशीलता। प्रतियोगी गतिशीलता व्यक्ति या समूह अपने प्रयत्नों और उपलब्धियों द्वारा अपनाता है। जबकि प्रायोजित गतिशीलता में अवनत वर्ग के संघर्ष और प्रयत्नों के स्थान पर यह पहले से स्थापित उच्च सामाजिक समूहों या सरकारध्समाज द्वारा कुछ मुख्य मानदंडों के आधार स्वीकृत या प्रदान किए जाते हैं। गतिशीलता के आयाम और तात्पर्य परिवर्तित पारस्परिक गतिशीलता और अंतःपारंपरिक गतिशीलता विकल्प के रूप में विश्लेषण किया जा सकता है कि बच्चे अपने पिता या दादा की तरह उसी प्रकार के कार्य में कहाँ तक जाते हैं। पीढ़ी के बाद गतिशीलता को अंतःपारंपरिक गतिशीलता कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति के जीवन-काल में परिवर्तनों के किसी एक बिंदु से किया गया अध्ययन परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता के अध्ययन का विषय है। यदि अध्ययन दो या तीन पीढी के बाद परिवार में हुए परिवर्तनों के किसी एक बिंदु से किया जाए तो यह अंतःपारंपरिक गतिशीलता का विषय है। परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता को प्रमुख रूप से व्यावसायिक गतिशीलता के रूप में भी जाना जाता है। व्यावसायिक गतिशीलता के बारे में जानकारी लेने के लिए लोगों से अपने जीवन में किए गए कार्यों के बारे में पूछा जाता है। अमेरिकी व्यावसायिक संरचना का अध्ययन करते समय ब्लो और डंकन (1976) ने पाया कि किसी व्यक्ति का अपने कार्य की सोपान पर ऊपर चढ़ने में निम्नलिखित बातों का बहुत प्रभाव पड़ता है इस उदाहरण में प्रभाव की दिशा तीर द्वारा तथा प्रभावों का महत्व तीर बनाने वाली पंक्तियों की बढ़ती संख्या द्वारा दर्शाया गया है। व्यावसायिकता को अपनाने में कुछ परोक्ष तथ्य भी भूमिका निभाते हैं। छोटे परिवार प्रत्येक बच्चे को अधिक संसाधन, ध्यान तथा प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं। शीघ्र विवाह करने वालों की अपेक्षा विलंब से विवाह करने वालों के सफल होने की अधिक संभावना है। विलंब से विवाह करने की स्वीकृति एक दबे हुए व्यक्तित्व की विशेषता का संकेत हो सकती है, आदि। जीविका-संबंधी गतिशीलता या परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता का अध्ययन जिसमें कार्यजीवन के दौरानं व्यक्ति के परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है अपेक्षाकृत छोटी अवधि को शामिल करता है तथा वंश परंपरा को उस वर्ग ने कैसे अपनाया इसपर अधिक प्रकाश नहीं डालता। इस तरह के अध्ययन से इस प्रकार के समाज पर भी अधिक रोशनी नहीं पड़ती। कोई समाज किस सीमा तक मुक्त या बंद है, इसका निर्णय करने के लिए अभिभावकों तथा बच्चों में अपने व्यवसाय के एक जैसे बिंदुओं पर या समान आयु में तुलना करना हमेशा सही होता है। इस प्रकार, समाजशास्त्रीय अनुसंधान में अंतःपारंपरिक गतिशीलता अधिक उपयोगी है। गतिशीलता की सीमा यह जानना रुचिकर होगा कि लगभग सभी एक-दूसरे के निकट व्यावसायिक स्थितियों के बीच हैं। अधिक सीमा वाली (लाँग रेंज) गतिशीलता न के बराबर है। इसके विपरीत, फ्रेंक पार्किन ने अपने अध्ययन (1963) में हंगरी में पूर्व-साम्यवादी शासन में अधिक सीमा वाली (लाँग रेंज) गतिशीलता के अधिक उदाहरण देखे। नीचे की तरफ गतिशीलता यह प्रवृत्ति प्रायः मनोवज्ञानिक समस्याओं और चिंताओं से जुड़ी है जहाँ व्यक्ति अपनी आदतन जीवन-शैली को बनाए रखने में असफल हो गया। नीचे की तरफ गतिशीलता अत्यधिकता के कारण भी हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, अधेड़ अवस्था के वे व्यक्ति जिनका कार्य छूट जाता है, उन्हें दूसरा रोजगार नहीं मिल पाता। अतः वे पहले से कम आमदनी वाला कार्य करने लगते हैं। किसी भी प्रकार की परिवर्तित गतिशीलता के संदर्भो में नीचे की तरफ गतिशीलता में अधिकांशतः महिलाएँ होती हैं। ऐसा इसलिए है कि अधिकांश महिलाएँ अपना अभीष्ट व्यवसाय प्रसव के समय छोड़ देती हैं। परिवार का पालन करने के कुछ वर्षों बाद विलंब से वे वेतनभोगी कार्य करने लगती हैं, जो प्रायः पहले से कम आमदनी वाला होता है। ऊपर की तरफ गतिशीलता प्रायः यह माना जाता है कि परिवार एक सामाजिक इकाई है जिसके माध्यम से व्यक्ति को सामाजिक वर्ग संरचना में रखा जाता है। परिवार के माध्यम से बच्चा गैर-औद्योगिक समाजों में ये चीजें व्यक्ति की सामाजिक संरचनात्मक स्थिति का पता लगाने के लिए बड़ी प्रक्रिया का निर्माण कर सकती है। औद्योगिक समाजों में वंशानुगत प्रक्रिया संबंधों के द्वारा लगभग उसी सीमा तक वही सामाजिक स्थिति संप्रेषण की गारंटी नहीं लेती। लेकिन तब भी यह समाज की इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया को समाप्त नहीं करती। यहाँ पर यह जानना महत्वपूर्ण है कि उच्च उनि शैली और व्यवहार का अनुकरण (बहुत बार समय अपरिष्कृत या भिन्न होता है) पारंपरिक तथा आधुनिक समाजों में भी ऊपर की तरफ गतिशीलता के उपयोगी साधनों के रूप में कार्य करता है। गतिशीलता की संभावनाएँ संकीर्ण समाज में ऊर्ध्व गतिशीलता न के बराबर संभव है। कोलम्बिया और भारत में आधुनिकता से पूर्व कमोबेश समाज इसी प्रकार के थे। इसके विपरीत, एक मुक्त समाज में अधिक ऊर्ध्व सामाजिक गतिशीलता होती है। फिर भी, खुले समाज में लोग एक स्तर से दूसरे स्तर में बिना प्रतिरोध के नहीं जा सकते। प्रत्येक समाज में एक स्थापित मानदंड होता है। यह मानदंड उपयुक्त शिष्टाचार परिवार का श्रेणी में स्थान, शिक्षा या जातीय संबंध आदि के रूप में हो सकता है, जिसे उच्च सामाजिक स्तर में जाने से पूर्व लोगों द्वारा पूरा करना होता है। अधिकांश मुक्त समाजों में उच्च औद्योगीकरण की प्रवृत्ति होती है। ज्यों-ज्यों समाज औद्योगिक होता जाता है नए शिल्प और व्यवसाय आवश्यक हो जाते हैं। इस कारण पीछे वाले कार्य अनावश्यक हो जाते हैं। नए व्यवसायों का अर्थ है-अधिक वर्ग के लोगों के लिए गतिशीलता के अधिक अवसर। इसके अतिरिक्त, शहरीकरण से ऊर्ध्व गतिशीलता में वृद्धि होती है क्योंकि आरोपित मानदंड शहर के पहचान-रहित वातावरण में कम महत्वपूर्ण हो जाते हैं। लोग उपलब्धिपरक, प्रतिस्पर्धात्मक तथा अच्छी स्थिति के लिए प्रयास करते हैं। औद्योगिक समाजों में सरकार भी कल्याणकारी कार्यक्रम चलाती है जिससे गतिशीलता को बढ़ावा मिलता है। वास्तव में गतिशीलता से व्यावसायिक ढाँचे में परिवर्तन, मध्य और उच्च वर्ग के व्यवसायों की श्रेणी और अनुपात में वृद्धि तथा निचली श्रेणी के व्यवसायों में कमी हो जाती है। समाज के व्यावसायिक ढाँचे में परिवर्तन से उत्पन्न गतिशीलता को संरचनात्मक गतिशीलता (कभी-कभी आरोपित गतिशीलता भी) कहा जाता है। बॉक्स 29.01 अनेक विद्वानों ने पता लगाया कि औद्योगीकरण के पूँजीवाद से व्यापक रूप से नीचे की तरफ गतिशीलता हुई। सफेदपोश व्यवसायों ने ऊपर की तरफ गतिशीलता के अधिकांश जनसंख्या को पर्याप्त अनुकूलता प्रदान नहीं की। मार्क्सवादी सिद्धांत ने विद्वानों को यह दर्शाने के लिए प्रेरित किया कि बाद के पूँजीवाद की विवशताओं के कारण श्रम के उत्कर्ष की अपेक्षा क्रमिक रूप से उसका पता हुआ। इसके परिणामस्वरूप अत्यधिक मात्रा में सभी प्रकार की नीचे की तरफ गतिशीलता हुई। तुलनात्मक सामाजिक गतिशीलताएँ अतः सामाजिक गतिशीलता के वास्तविक अनुभव-जन्य अध्ययनों पर ध्यान देना उपयोगी होगा। इन अध्ययनों के निष्कर्ष एवं अनुमान जिनमें विभिन्न समाजों को शामिल किया गया है, वास्तविक रूप से निर्धारित सामाजिक स्थिति को सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना और रूपों के साथ संबंध स्थापित करने में हमारे लिए सहायक होंगे। हम सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाले अध्ययन कर सकते हैं। बॉक्स 29.02 गिर्हार्ड लेंस्की (1965) ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर हस्तचालित और मशीनी कार्य की एक निर्देशिका तैयार की। उसके अध्ययन ने दर्शाया कि पहले स्थान पर अमेरिका में गतिशीलता की दर 34 प्रतिशत है, लेकिन पाँच यूरोपीय देश लगभग उसके नजदीक हैं। ये ह-स्वीडन (32 प्रतिशत), इंगलैंड (31 प्रतिशत), डेनमार्क (30 प्रतिशत), नार्वे (30 प्रतिशत) तथा फ्रांस (29 प्रतिशत)। अतः हम देख सकते हैं कि औद्योगिक देशों में गतिशीलता दर एक-जैसा है। फ्रैंक पार्किन ने सामाजिक गतिशीलता की नई ऊँचाइयों वाला अभी तक का एक उपयुक्त एवं सारगर्भित अध्ययन किया। उसने पूर्वी यूरोप के प्राचीन साम्यवादी समाज के आँकड़े एकत्रित कर एक तुलना प्रस्तुत की। पार्किन ने हंगरी में एक अध्ययन के उदाहरण द्वारा सिद्ध किया कि 77 प्रतिशत प्रबंधक, प्रशासनिक तथा व्यावसायिक स्थिति वाले पुरुष और महिलाएँ किसान तथा मूलतः श्रमिक वर्ग के थे और 53 प्रतिशत चिकित्सक, वैज्ञानिक, तथा इंजीनियर भी ऐसे ही परिवारों से संबंधित थे। औद्योगिक विस्तार से पूर्वी यूरोप में सफेदपोश स्थितियों में वृद्धि होने के कारण निचले स्तर में गतिशीलता प्रदान की जो अमेरिका और यूरोप से भी अधिक थी। इस तथ्य ने श्रमिक वर्गों में प्रेरणा भर दी। ये अध्ययन बताते हैं कि सामाजिक गतिशीलता उसकी संभावनाएँ और तात्पर्य सभी विशिष्ट सामाजिक संदर्भो से जुड़े हुए हैं। अगले भाग में हम सामाजिक गतिशीलता के और अधिक नवीन अध्ययनों को देखेंगे जो अनुसंधान की सूक्ष्म तकनीकों का प्रयोग कर सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना के व्यापक सिद्धांतों के आधार पर किए गए हैं। सामाजिक गतिशीलता के किसी भी अध्ययन के अनेक आयाम होते हैं। यदि किसी व्यक्ति के जीवन काल में उसकी सामाजिक स्थितियों के परिवर्तन का पता लग जाए तो यह परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता का मामला है। यदि परिवर्तन दो या तीन पीढ़ियों के बाद होते हैं तो इसे अंतःपारंपरिक गतिशीलता का मामला माना जाएगा। सामाजिक स्थिति में परिवर्तन छोटे या अधिक दूरी वाले हो सकते हैं। गतिशीलता की रेंज में इस तथ्य का ध्यान रखा जाता है। प्रचलित विश्वास के विपरीत, आधुनिक औद्योगिक समाजों में भी नीचे की तरफ गतिशीलता भी काफी व्यापक है। आधुनिक औद्योगिक समाजों में उपलब्धिपरक मानदंड ही ऊपर की। तरफ गतिशीलता का मानदंड है। अधिकांश आधुनिक समाजों के बारे में माना जाता है कि वे अधिक खुली तथा अधिक सामाजिक गतिशीलता वाले होते हैं। फिर भी प्रत्येक समाज का अपना मानदंड है और गतिशीलता के प्रयासों में भी विभिन्न प्रकार से बाधाएँ आती हैं। सामान्यतः कहा जाए तो सभी औद्योगिक समाजों में कमोबेश गतिशीलता की बराबर मात्रा होती है। साम्यवादी समाज में इतने बंद नहीं होते हैं जैसे कि सोचा जाता है। सामाजिक गतिशीलता से क्या अभिप्राय है समझाइए?व्यक्तियों, परिवारों या अन्य श्रेणी के लोगों का समाज के एक वर्ग (strata) से दूसरे वर्ग में गति सामाजिक गतिशीलता (Social mobility) कहलाती है। इस गति के परिणामस्वरूप उस समाज में उस व्यक्ति या परिवार की दूसरों के सापेक्ष सामाजिक स्थिति (स्टैटस) बदल जाता है।
सामाजिक गतिशीलता क्या है सामाजिक गतिशीलता के प्रकारों का वर्णन कीजिए?सामाजिक गतिशीलता से मोटेतौर पर हमारा आशय व्यक्ति अथवा समूह की प्रस्थिति मे परिवर्तन से होता है। प्रस्थिति का एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु मे जाना क्षैतिज अथवा ऊर्ध्वाधर हो सकता है, जो किसी क्षेत्र विशेष जैसे, शिक्षा, व्यवसाय, आय, सामाजिक शक्ति एवं सामाजिक वर्ग या इनमे से कुछ अथवा सभी क्षेत्रों मे हो सकता है।
सामाजिक गतिशीलता क्या है इसके प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए?सामाजिक गतिशीलता में व्यक्ति के सामाजिक परिवर्तन की ओर संकेत करती है जबकि भौतिक गतिशीलता व्यक्ति व समूह का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण है। उदाहरण के लिए, एक शहर से दूसरे शहर जाना भौतिक गतिशीलता है, जबकि छोटे बाबू से बड़ा बाबू बन जाना सामाजिक गतिशीलता कहलाएगी।
सामाजिक गतिशीलता से क्या तात्पर्य है यह भारतीय समाज के लिए क्यों आवश्यक है?समाज किसी भी प्रकार का क्यों ना हो परंतु उसके व्यक्तियों एवं समूहों के सामाजिक स्तरों में परिवर्तन होता रहता है. यह बात दूसरी है कि कुछ समाजों में इस परिवर्तन के लिए अधिक अवसर होते हैं और कुछ समाजों में कम. व्यक्ति अथवा समूह के सामाजिक स्तर में होने वाले परिवर्तन को ही समाजशास्त्रीय भाषा में सामाजिक गतिशीलता कहते हैं.
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