पिछले कई सालों से तराई एन्वायरन्मेन्टल फ़ाउन्डेशन गोण्डा जिले के सभी तालाबों और सरयू नदी (बहराइच और गोण्डा जिला) में कछुवों के विभिन्न प्रजातियों के उप्लब्धता एवं उनकी संख्या तथा इन कछुवों कें शिकार और उनके व्यापार के बारे में लगातार सर्वे कर रही है। इस कार्य को हम मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट चेन्नई के मार्गदर्शन से कर रहें हैं। कछुवों के बारे में जानकारी एकत्र करते हुये हमें सरयू नदी और उनके किनारों पर रहने वाले लोगों और समुदायों की बहुत सी समस्याओं के बारे में भी जानकारी होती गयी और इस सर्वे में कुछ जबरदस्त चौकाने वाले तथ्य भी सामने आयें जिससे सरयू नदी का अस्तित्व ही खतरे में दिख रहा है। Show
सरयू नदी का संक्षिप्त परिचयइस नदी का भगवान श्री राम के जन्म स्थान अयोध्या से हो कर बहने के कारण हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है। रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने सरयू में ही जल समाधि ली थी। ऐसी भी मान्यता है कि हर वर्ष तीर्थराज प्रयाग देव रुप में आकर सरयू में स्नान करके अपने को धन्य मानते है। सरयू नदी का वर्णन ऋग वेद में भी मिलता है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस नदी के पानी में चर्म रोगों को दूर करने की अद्भुत शक्ति है। लोगों का ऐसा भी मानना है कि इस नदी के अन्दर सब कुछ समाहित करने की अपुर्व ताकत भी है। अगर हम इस नदी की परिस्थितिकी तंत्र के बारे में बात करे तो ये नदी निरंतर बहने के बावजूद एक बहुत बड़े वेटलैण्ड की तरह भी लगती है। इस नदी में मछलियों और कछुवों के अलावा बहुत तरह के जलीय छोटे-बड़े जीव-जन्तु रहते है। इस नदी में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ भी हैं जो नदी के पानी को शुद्ध करने के साथ साथ पानी में कुछ औषधीय शक्ति को भी बढ़ाती हैं। लेकिन 2007-08 के सर्वे के दौरान एक महत्वपुर्ण जानकारी सामने आयी। अप्रैल माह से सरयू में मछलियों का शिकार तेज हो जाता है लेकिन पसका क्षेत्र के पास करीब 10 किलोमीटर के दायरे में सरयू नदी के पानी में नहाने से बदन में खुजली की शिकायत शुरू हो गयी जिसके कारण इस क्षेत्र में लोग नदी में उतरने से कतराने लगे जिस के कारण यहाँ मछलियों का बहुत कम शिकार हो पाया। इस तरह की घटना को प्रकृति का अपने को इन्सानों के हाथों से बचाने का एक तरीका कहें या फिर हम इन्सानों का प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का एक परिणाम। सरयू नदी का प्रदूषणचीनी की मिलों का अनुपयोगी प्रदूषित जल और कचड़ा बह कर इस नदी में आ रहा है और सरयू नदी के जल से मिल कर ये पूरे नदी को ही प्रदूषित कर रही है और कई बार तो इस प्रदूषण के कारण बहुत से जलीय जीव-जन्तुओं को बहुत बड़ी संख्या में एक साथ मरते हुये भी देखा गया है। सरयू में अवैध बंधिया
नदियों में किसी भी तरह का बाँध बाँधना वो भी एक किनारे से दूसरे किनारे तक गैरकानूनी है लेकिन ये दृश्य नदी में हर 10 से 15 किमी. पर देखने को मिल जायेगा। बाँध बनाने के अलग अलग तरीके प्रयोग में लाये जा रहे है। कोई लकड़ी के लठ्ठों को गाड़ कर उसमें जाल लगा कर पानी को बाँध रहा है तो कोई बाँस को गाड़ कर उसमें बाँस की चटाई बुन कर नदी को बाँध रहा है। कुछ लोगों ने तो मच्छरदानी को ही लगा कर नदी को बाँध दिया है। सभी बधियों में एक बात की समानता है कि जिस समिति के हिस्से में जो नदी का ठेका आया है वो उस हिस्से को पूरी तरह से साफ या नष्ट करने में लगा है। इन सब कार्यों के लिये विशेष रूप से बिहार से बाँध बनाने वाले और शिकार करने वाले बुलाए जाते हैं। इस तरह के बाँध के कारण नदी के पानी का बहाव अवरूद्ध हो रहा है जिसके कारण मछलियाँ, कछुवें और अन्य जीव जन्तु नदी के दो बाँधों के बीच में फँस जाते है जिससे उनका ठीक तरह से विकाश नहीं हो पाता है। बरसात में ये मछलियाँ नदी के बहाव के विपरीत दिशा की तरफ जा कर अण्डे देती है लेकिन बरसात के बाद जब ये मछलियाँ नदी के बहाव की तरफ वापस होती है तो उस समय नदी पर फिर से बाँध बधनी सुरू हो जाती है ऐसे हालत में ये मछलियाँ दो बाँधों के बीच में फँस जाती हैं और उनका पूरे नदी में घूमना बन्द हो जाता है। जो मछली जिन दो बधियों के बीच में होती है वो वहीं कैद हो जाती है और ये पूरे नदी में बराबर तरीके से नहीं फैल पाती है। इस कारण नदी के कुछ समितियों को तो काफी मात्रा में मछलियाँ मिल जाती है लेकिन कुछ समितियों को खाने के भी लाले पड़ जाते है। जगह जगह से बह कर आने वाली गन्दगी भी इन बधियों के बीच में फस जाती है जो कुछ समय के बाद सड़ कर पानी को प्रदूषित कर के पानी में तरह तरह के बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु और कीटाणु को जन्म देती है जिससे पानी में रहने वाले जीव जन्तुओं के अलावा नदी के किनारे रहने वाले लोग भी विभिन्न तरह की बिमारियों का शिकार हो जाते है। हमें नदी के सर्वे के दौरान इस तरह के बहुत से दृश्य देखने को मिले जिसमें बधिया के पास कई प्रजाति के कछुवें मरे मिले। मछलियों के शिकार के लिये प्रयोग जाल
छोटी मछलियाँ (बच्चें) पकड़ना तो मना ही है और इन्हे सुखा कर बेचना तो और भी बड़ा अपराध है लेकिन लोग बहुत बड़ी संख्या में इन्हे सुखा कर बेच रहे है क्योंकि ताजी बेचने पर इसका सही दाम नहीं मिल पाता है। हमने ये भी देखा कि जिन महीनों में मछलियाँ अण्डे देने लगती है उस समय नदी पर शिकार पर पाबन्दी हो जाती है (नीचे की चित्र में तारीख देखें) लेकिन उस समय भी लोग शिकार में लगे रहते हैं। ऐसी दशा में उन मछलियों का भी शिकार हो जाता है जिनके पेट में अण्डे होते हैं जिसके कारण दिन प्रति दिन नदी में मछलियों की संख्या में तेजी से गिरावट हो रही है। स्थानीय समुदाय के लोगों, खास तौर पर बुजुर्गो से बात करने पर ये बात और स्पष्ट हो गयी कि नदी में शिकार के नियमों के पालन न करने के कारण नदियों में मछलियों की संख्या में निरंतर गिरावट हो रही है। स्थानीय लोगों और मछुआरा समुदाय के लोगो की समस्याएं
क्या जिन लोगों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिये सरकार इन नीतियों को लागू कर रही है उन लोगो तक ये योजनायें पहुंच रही है और अगर पहुंच रही है तो क्या वे इन योजनाओं का पूरा लाभ पा रहे है ? इस प्रश्न का उत्तर ही इन मछुआरा समुदाय के लोगो की वास्तविक परेशानियों को ठीक से उजागर कर सकता है। ऐसा नहीं है कि सरकार की नीतियों में किसी तरह की कोई कमी है। सरकार ने मछुआरों के उत्थान के लिये अलग अलग समितियों का गठन किया लेकिन समस्या ये है कि इस समुदाय के ज्यादातर लोग अनपढ़ है कुछ लोग सिर्फ थोड़ा बहुत ही पढ़े है इसी कारण धीरे धीरे सरकार द्वारा गठित उसकी समिति पर दूसरे अन्य जाति और समुदाय के लोगों का वर्चश्व स्थापित हो जाता है। कुछ समय के बाद समिति का कागजी अध्यक्ष अपनी ही समिति में मजदूरों की तरह कार्य करने लगता है। कुछ समितियों के अध्यक्ष को अन्य जाति अथवा समुदाय के लोगों द्वारा पैसे का लालच देकर समिति पर कब्जा करने की बात भी जानकारी में आयी है। कभी कभी समिति के पास मछलियों को पकड़ने के लिये प्रयाप्त संसाधन नहीं होते हैं ऐसी परिस्थिति में इस तरह की समितियाँ किसी अन्य लोगो के हाथ अपने पानी के ठेके को बेंच देते हैं। सबसे अन्त में कुछ दबंग लोग इन समितयों पर अपना अधिकार स्थापित कर लेते है। जो लोग नदी से ही अपना और अपने परिवार का पालन करते है उन लोगो को दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हो रही है और यही कारण है कि परिवार की जरूरी जरूरतो को पूरा करने के लिये इन लोगो को अनेक तरह के गैरकानूनी कार्यो में अपने को लगाना पड़ता है। निष्कर्ष
शासन और प्रशासन से आपेक्षित सहयोग
(लेखक वन्य जीव सरंक्षण व उनके अध्ययन में 'तराई एन्वाइरनमेंन्टल फ़ाउन्डेशन गोन्डा' द्वारा बेहतर सामूहिक प्रयास कर रहे हैं। गोण्डा जनपद में निवास, इनसे [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं) सरयू नदी में स्नान करने से क्या होता है?सरयू नदी में स्नान ईश्वर से एकीकार होने जैसा है,सरयू का स्पर्श भगवान सुख का अनुभव देता है तथा वाल्मीकि रामायण में सरयू जल को गन्ने के रस की तरह मीठा कहा गया है तो सरयू जल का पान अर्थात पीना भगवान के गुणों को धारण करने की तरह है।
अयोध्या सरयू में स्नान के दौरान एक आदमी ने अपनी पत्नी को किस कर लिया फिर आज के रामभक्तों ने क्या किया देखें?वीडियो में पत्नी अपने पति को बचाने की कोशिश करती है, लेकिन लोग उसके पति को पीटते रहते हैं। भीड़ पहले इस जोड़े को पानी से बाहर निकालती है और फिर पति को पीटना शुरू कर देती है। आपत्ति जताने वालों का कहना था कि उनके परिवार भी वहीं मौजूद थे। ये पति-पत्नी वहां सबके सामने किस करने लगे, जो उन्हें सहन नहीं हुआ।
सरयू नदी का पुराना नाम क्या है?सरयू नदी (अन्य नाम घाघरा, सरजू, शारदा) हिमालय से निकलकर उत्तरी भारत के गंगा मैदान में बहने वाली नदी है जो बलिया और छपरा के बीच में गंगा में मिल जाती है। अपने ऊपरी भाग में, जहाँ इसे काली नदी के नाम से जाना जाता है, यह काफ़ी दूरी तक भारत (उत्तराखण्ड राज्य) और नेपाल के बीच सीमा बनाती है।
सरयू नदी का नाम सरयू क्यों पड़ा?उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपक पड़े. ब्रह्मा ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डाल कर उसे सुरक्षित कर लिया. इस जल को महापराक्र मी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला. यही जलधारा सरयू नदी कहलाई.
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