शिवलिंग पर धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है - shivaling par dhatoora kyon chadhaaya jaata hai

  • शिवलिंग पर धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है - shivaling par dhatoora kyon chadhaaya jaata hai

    आखिर क्यों शिवजी को पसंद है भांग व धतूरा

    महादेव शिव शंभू को भोलेनाथ भी कहा जाता है क्योंकि वह अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनको आशीर्वाद देते हैं। इंसान हो या फिर असुर महादेव ने हर किसी पर अपनी कृपा बरसाई है। भगवान शिव कैलाश पर भी वास करते हैं और श्मशान में भी। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए मिठाई या खोाआ की जरूरत नहीं है बल्कि मुफ्त में मिलने वाले बेलपत्र, धतुरा और एक लोटा जल से खुश किया जा सकता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव को भांग और धतूरा आखिर क्यों पसंद है…

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    यह है इसके पीछे की कथा

    शिव महापुराण के अनुसार, अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने साथ मिलकर सागर मंथन किया था तो मंथन के दौरान अमृत से पहले हलाहल निकला था। यह विष इतना विषैला था कि इसकी अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, जिससे सृष्टि में हाहाकार मच गया था।

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    अचेत अवस्था में चले गए थे शिवजी

    सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष का पान कर लिया। विष को भगवान शिव ने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था, जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था और उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। विष शिवजी के मस्तिष्क पर चढ़ने लगा, जिसकी वजह से वह काफी व्याकुल हो गए और अचेत अवस्था में आ गए।

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    आदि शक्ति ने किया उपचार

    भगवान शिव की इस तरह की स्थिति से निकालना देवी-देवताओं की लिए बड़ी चुनौती बन गई थी। देवीभगवत् पुराण में बताया गया है कि देवताओं की ऐसी स्थिति से निकालने के लिए आदि शक्ति प्रकट हुईं और भगवान शिव का उपचार करने के लिए जड़ी-बूटियों और जल से उनका उपचार किया।

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    इस तरह शिवजी का हुआ उपचार

    आदि शक्ति के कहने पर देवताओं ने भगवान शिव के सिर पर भांग, धतूरा व बेलपुत्र रखा और निरंतर जलाभिषेक किया। जिसकी वजह से उनके मस्तिष्क का ताप कम हुआ। उस समय से भगवान शिव को भांग व धतूरा चढ़ाया जाता है। यह चीज भगवान शिव को बहुत प्रिय हैं इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इन चीजों को अर्पित किया जाता है।

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    औषधी के रूप में किया जाता है प्रयोग

    आर्युवेद में भी भांग व धतूरा को औषधि के तौर पर बताया गया है। वहीं शास्त्रों में बेलपत्र के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया है। अगर यह सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधी के रूप में कार्य करता है और शरीर को गर्म रखता है।

युक्ति से मुक्ति और विधि से सिद्धि प्राप्त होती है। परमात्मा शिव की आराधना से इहलोक और परलोक सिद्ध हो जाते हैं। हमारा जीवन सुख-शांति, समृद्धि और आनंद से भर जाता है। शास्त्रों-पुराणों में भगवान शिव को निराकार दिव्य ज्योति स्वरूप माना गया है। ज्योतिर्लिंग के रूप में परमेश्वर शिव को ब्रह्मा, विष्णु और देवी-देवताओं का आराध्य कहा गया है। भारत में चारों दिशाओं में स्थित बारह ज्योतिर्लिंग सृष्टि में शिव के दिव्य अवतरण और शक्तियों के साथ पुनर्मिलन का यादगार स्थान हैं। पूरी मानवता को ईश्वरीय ज्ञान, योग, मानवीय मूल्यों और देवी गुणों से सशक्त व सुसंस्कृत करने का स्मृति पीठ हैं।

परमात्मा शिव के दिव्य स्वरूप, श्रेष्ठ गुण, आलौकिक शक्ति और कल्याणकारी कर्तव्यों की याद में साल में एक बार महाशिवरात्रि मनाई जाती है। साथ ही, हर माह मासिक शिवरात्रि और सप्ताह में प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की उपासना की जाती है। यजुर्वेद में कहा गया है- ‘तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु।’ अर्थात, मेरे मन का प्रत्येक संकल्प शिवमय हो, यानि शुभ और कल्याणकारी हो। शिव ही मन के शुभ विचारों, एकाग्रता और प्रसन्नता के आधार हैं, शुद्ध संकल्पों के शाश्वत स्रोत हैं।

देखा जाए तो, शिव शब्द में ही उनका मंगलकारी कर्तव्य समाया हुआ है। ‘शि’ अक्षर का अर्थ है पाप नाशक और ‘व’ का अर्थ मुक्तिदाता है। परमेश्वर शिव के इस तत्त्व दर्शन को समझ जाने से तथा उनके श्रेष्ठ मत यानी श्रीमत पर चलने से, व्यक्ति आत्मोन्नति और परमात्मा की अनुभूति कर लेता है। वह पवित्र और पुण्यात्मा बन जाता है। सही अर्थों में जीवनमुक्ति, गति और सद्गति को प्राप्त कर लेता है।

शिवरात्रि वास्तव में शिव और शक्ति के मिलन का एक महान पर्व है। यह पर्व न केवल उपासकों को अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करता है, बल्कि उन्हें काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष और अभिमान आदि मनोविकारों से रोकता है। कहा जाता है कि मासिक शिवरात्रि के दिन व्रत, उपवास रखने और भगवान शिव की सच्चे मन से उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिव पुराण के अनुसार, जो सच्चे मन से इस व्रत को करता है, उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। इस व्रत का पालन आध्यात्मिक अर्थ में करने से व्यक्ति को परमात्मा शिव का वरदान हमेशा और सहज रूप से प्राप्त होता है।

शिवरात्रि मनाने की आध्यात्मिक विधि अत्यंत सरल और सहज है। परमात्मा शिव को प्रसन्न करने के लिए और उनसे सकारात्मक शक्ति व वरदानों को पाने के लिए सूर्योदय से पहले उठें। शिव के सत्य स्वरूप के ध्यान में कुछ पल बिताएं। मन, बुद्धि को अंतरात्मा और परमात्मा के रूहानी ज्योति स्वरूप में स्थित, स्थिर और एकाग्र करें। उनके श्रेष्ठ ज्ञान, गुण और कर्तव्यों का स्मरण करें।

शिव जी को धतूरा आदि चढ़ाएं। इसका भाव यह है कि अपनी समस्त विषाक्त प्रवृत्तियो व संस्कारों को परमात्मा शिव के चरणों में अर्पित कर दें। शिवलिंग पर जल और दूध अर्पण करें। इसका भाव यह है कि हम सद्गुणों को अपनाने तथा दुर्गुणों को त्यागने का दृढ़ संकल्प करें। शिवरात्रि पर उपवास करने का मतलब सिर्फ एक दिन भोजन का त्याग नहीं है, बल्कि मन और बुद्धि से सदा परमात्मा शिव के ‘उप’ यानी समीप वास करना है। तभी उनके स्नेह, सहयोग और सहभागिता का अनुभव हमेशा होता रहेगा। अगर भगवान शिव को ध्यान में हमेशा रखेंगे, तो वे हमारा ध्यान हमेशा रखेंगे।

शिवलिंग पर धतूरा चढ़ाने से क्या होता है?

भगवान शिव श्रंगार के रूप में धतूरा और बेल पत्र स्वीकारते हैं। शिवजी का यह उदार रूप इस बात की ओर इशारा करता है कि समाज जिसे तिरस्कृत कर देता है, शिव उसे स्वीकार लेते हैं। शिव पूजा में धतूरे जैसा जहरीला फल चढ़ाने के पीछे भी भाव यही है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में बुरे व्यवहार और कड़वी बाते बोलने से बचें।

धतूरे का फूल चढ़ाने से क्या होता है?

- धतूरे के फूल चढ़ाने से भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं। - दूर्वा से भगवान शिव की पूजा करने पर उम्र बढ़ती है। - मान्यताओं के अनुसार माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जीया। - उसके बाद उनका जन्म हिमालय राज के घर माता पार्वती के रूप में हुआ।

धतूरा कैसे चढ़ाया जाता है?

शिव जी को धतूरा आदि चढ़ाएं। इसका भाव यह है कि अपनी समस्त विषाक्त प्रवृत्तियो व संस्कारों को परमात्मा शिव के चरणों में अर्पित कर दें। शिवलिंग पर जल और दूध अर्पण करें।

शिवलिंग पर कौन सा फूल नहीं चढ़ाया जाता है?

श‍िवल‍िंग पर कभी न चढ़ाएं लाल रंग के फूल श‍िवल‍िंग पर कभी भी लाल रंग के फूल, केतकी और केवड़े के फूल नहीं चढ़ाए जाते। मान्‍यता है क‍ि इन वस्‍तुओं को चढ़ाने से पूजा का फल नहीं म‍िलता है। ध्‍यान रखें क‍ि श‍िवजी को केवल सफेद रंग के फूल चढ़ाने चाहिए।