दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता का प्रतिपाद्य क्या है? - din jaldee jaldee dhalata hai kavita ka pratipaady kya hai?

यह कविता बच्चन के काव्य-संग्रह ‘एक गीत’ में संकलित है। अपनी पहली पत्नी श्यामा की अकाल मृत्यु से खिन्न कवि एक लंबे अंतराल के बाद पुन: कवि-कर्म की ओर प्रवृत्त होता है और अपनी पत्नी के बिछोह का दर्द अपनी कविताओं में उँडेल देता है। यह कविता पत्नी की अकाल मृत्यु से उत्पन्न दु:ख, वेदना, पीड़ा और एकाकीपन के बोध की अभिव्यक्ति है। कवि को लगता है कि उसकी पत्नी पारलौकिक जगत से उसे आमंत्रित कर रही है, दिशा-बोध दे रही है। वह उसे कर्म-पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है।

इस कविता में कवि कहता है कि काल की गति बड़ी ही विलक्षण है। पता ही नहीं चल पाता कि दिन कब ढल गया। यात्री के मन में घर पहुँचने का उत्साह है अत: वह तेजी से कदम बढ़ाता है। रात्रि गहन और लंबी है। उसे भय है कि कहीं जीवन-पथ में ही काल-रात्रि न आ जाए। अत: दिन भर का थका-माँदा पथिक रात के अंधकार के आने से पहले ही अपनी मंजिल पर पहुँच जाना चाहता है।

कवि देखता है कि पक्षियों को भी संध्या के समय अपने-अपने घोंसलों में पहुँचने की जल्दी है। उसे घोंसलों में प्रतीक्षारत अपने शावकों के पास पहुँचने की आतुरता है। अत: उनके पंखों में ताजगी और सस्फूर्तउड़ान का अनुभव है जो उसे दिन ढलने से पहले ही घोंसलों में पहुँचने का उपक्रम करने को प्रेरित करता है।

लेकिन कवि स्वयं निराश है। उसके घर में ऐसा कोई नहीं है जो उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो, कोई उससे मिलने के लिए व्याकुल नहीं है, फिर भला वह घर लौटने की जल्दबाजी क्यों करे! एक आलस्य एवं विषाद का अहसास उसे घेर लेता है। उसका मन कुंठा से भर जाता है तब वह अपनी कर्म-गति में शिथिलता का अनुभव करने लगता है। उसका हृदय मृत पत्नी को याद करके विह्वल हो उठता है। वह देखता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढल जाएगा, फिर पूरी रात उसे पत्नी की स्मृति मथने लगेगी। इसी कष्टकारक विछोह की आत्मस्मृतिमूलक अभिव्यंजना ही इस कविता में व्यक्त हुई है। कवि के आत्मपीड़न की अभिव्यक्ति ही इस कविता का प्रतिपाद्य है।

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Class 12 Hindi Aroh Chapter 1 CBSE NCERT Solutions

NCERT Solutions Class12 Hindi ArohBook:National Council of Educational Research and Training (NCERT)Board:Central Board of Secondary Education (CBSE)Class:12th ClassSubject:Hindi ArohChapter:1Chapters Name:आत्मपरिचय, दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैMedium:Hindi

आत्मपरिचय, दिन जल्दी-जल्दी ढलता है Class 12 Hindi Aroh NCERT Books Solutions

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आत्मपरिचय, दिन जल्दी जल्दी ढलता है


(अभ्यास-प्रश्न)


प्रश्न 1. कविता एक और जगजीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ- विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

सर्वप्रथम कवि जग जीवन का भार ढ़ोने की बात करता है। इसका भाव यह है कि कवि संसार से पूर्णतया अलग नहीं हुआ है। संसार की समस्याओं के प्रति वह भी सचेत है परंतु वह अपनी कविता द्वारा संसार के कष्टों व दुखों को दूर करना चाहता है।

इससे रास्ते पर चलते चलते कवि को यह अनुभव होता है कि संसार उसकी उपेक्षा कर रहा है। वह संसार के व्यवहार से दुखी है। संसार की जड़ परंपराएँ तथा रूढ़ियाँ कवि के मार्ग को रोकना चाहती है परंतु कवि इन बाधाओं की परवाह नहीं करता। वह अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ता है।

प्रश्न 2. जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

लोग जो सांसारिक सुख सुविधाओं का संग्रह करने में सक्रिय हैं; उनको 'दाना' कहा गया है परंतु कवि का अपना दृष्टिकोण अलग है। वह ऐसे लोगों को मूर्ख समझता है जो धन-संपत्ति के पीछे भाग रहे हैं। वह सांसारिक सफलताओं को व्यर्थ समझता है और अपने मन में प्रेम के गीत लिए फिरता है।

प्रश्न 3. "मैं और, और जग और, कहाँ का नाता" पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।

इस पंक्ति में प्रयुक्त 'और' शब्द में यमक अलंकार प्रय#2379;ग हुआ है। प्रथम एवं तृतीय और का अर्थ 'अन्य' अर्थात 'भिन्न' या 'अलग'। तीसरा 'और' सांसारिक मोहमाया से लिप्त आम व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ है तथा पहला 'और' कवि अपनी भावनाओं से जोड़ता है। दूसरे 'और' का प्रयोग 'तथा' के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 4. शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?

शीतल वाणी में आग से कवि का अभिप्राय है कि उसका अपना स्वभाव कोमल एवं शांत है। परंतु उसके मन में प्रेम विरह की आग विद्यमान है। कवि प्रेम-हीन तथा स्वार्थी संसार से घृणा करता है। वह तो प्रेम व मस्ती का जीवन जीना चाहता है।

प्रश्न 5. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?

बच्चे इस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे कि उनके माता-पिता उनके लिए भोजन सामग्री लेकर आ रहे होंगे। वे शीघ्र घर पहुँचकर उन्हें भोजन देंगे और साथ ही उनसे प्रेम भी करेंगे। पक्षी भली प्रकार जानता है कि उसके भूखे बच्चे उसकी तथा भोजन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वात्सल्य भाव पक्षी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि उसे जल्दी से अपने शावकों के पास पहुँचना है।

प्रश्न 6. 'दिन जल्दी जल्दी ढलता है' की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' पंक्ति गीत का मुखड़ा है। इसकी आवृत्ति से प्रेम जन्य व्याकुलता का पता चलता है। प्रेम के क्षण बड़े प्रिय लगते हैं। अतः प्रेम के क्षणों के बीतने का पता ही नहीं चलता। यह गीत प्रेम के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। कवि कहता है कि प्रेम मानव जीवन को उत्साह, उमंग, उल्लास प्रदान करता है। प्रेम के कारण मनुष्य को लगता है कि दिन जल्दी निकल रहा है।

आत्मपरिचय


(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


प्रश्न 1:

'आत्मपरिचय' कविता में कवि हरिवश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के किन पक्षों को उभारा है?

उत्तर -

'आत्मपरिचय' कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के निम्नलिखित पक्षों को उभारा है-

1. कवि अपने जीवन में मिली आशा-निराशाओं से संतुष्ट है।

2. वह (कवि) अपनी धुन में मस्त रहने वाला व्यक्ति है।

3. कवि संसार को मिथ्या समझते हुए हानि-लाभ, यश अपयश, सुख दुख को समान समझता है।

4. कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह वाणी के माध्यम से अपना आक्रोश प्रकट करता है।

प्रश्न 2:

'आत्मपरिचय' कविता पर प्रतिपाद्य लिखिए।

उत्तर -

'आत्मपरिचय' कविता के रचयिता का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खुट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है। वह अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने दुविधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।

प्रश्न 3:

'दिन जल्दी - जल्दी ढलता है। कविता का उद्देश्य बताइए।

उत्तर -

यह गीत प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की कृति 'निशा निमंत्रण' से उद्धत है। इस गीत में कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश को व्यक्त करता है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचलता यानी तेजी भर सकता है। इससे हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने से बच जाते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है।

प्रश्न 4:

'आत्मपरिचय' कविता को द्वष्टि में रखते हुए कवि के कथ्य को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर -

‘आत्मपरिचय' कविता में कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता, क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्धों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।

प्रश्न : 5

कौन सा विचार दिन ढलने के बाद लौट रहे पंथी के कदमों को धीमा कर देता हैं? 'बच्चन के गीत के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर -

कवि एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा है। शाम के समय उसके मन में विचार उठता है कि उसके आने के इंतजार में व्याकुल होने वाला कोई नहीं है। अतः वह किसके लिए तेजी से घर जाने की कोशिश करे। शाम होते ही रात हो जाएगी और कवि की विरह-व्यथा बढ़ने से उसका हृदय बेचैन हो जाएगा। इस प्रकार के विचार आते ही दिन ढलने के बाद लौट रहे पंथी के कदम धीमे हो जाते हैं।

प्रश्न 6:

यदि मंजिल दूर हो तो लोगों की वहाँ पहुँचने की मानसिकता कैसी होती हैं?

उत्तर -

मंजिल दूर होने पर लोगों में उदासीनता का भाव आ जाता है। कभी-कभी उनके मन में निराशा भी आ जाती है। मंजिल की दूरी के कारण कुछ लोग घबराकर प्रयास करना छोड़ देते हैं। कुछ व्यर्थ के तर्क वितर्क में उलझकर रह जाते हैं। मनुष्य आशा व निराशा के बीच झूलता। रहता है।

प्रश्न 7:

कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?

उत्तर -

कवि भावनाओं को प्रमुखता देता है। वह सांसारिक बंधनों को नहीं मानता। वह वर्तमान संसार को उसकी शुष्कता एवं नीरसता के कारण नापसंद करता है। वह बार-बार वह अपनी कल्पना का संसार बनाता है तथा प्रेम में बाधक बनने पर उन्हें मिटा देता है। वह प्रेम को सम्मान देने वाले संसार की रचना करना चाहता है।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है


(अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


प्रश्न 8:

‘दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

‘दिन जल्दी जल्दी ढलता है' कविता प्रेम की महत्ता पर प्रकाश डालती है। प्रेम की तरंग ही मानव के जीवन में उमंग और भावना की हिलोर पैदा करती है। प्रेम के कारण ही मनुष्य को लगता है कि दिन जल्दी-जल्दी बीता जा रहा है। इससे अपने प्रियजनों से मिलने की उमंग से कदमों में तेजी आती है तथा पक्षियों के पंखों में तेजी और गति आ जाती है। यदि जीवन में प्रेम हो तो शिथिलता आ जाती है।

आत्मपरिचय


(पठित काव्यांश)


निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.

मैं जग - जीवन का मार लिए फिरता हूँ

फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ।

कर दिया किसी ने प्रकृत जिनको कर

मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ

मैं स्नेह सुरा का पान किया करता हूँ।

मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हैं।

जग पूछ रहा उनको जो जग की गाते

मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।

प्रश्न

(क) जगजीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं। ऐसे में भी वह क्या कर लेता है?

(ख) स्नेह-सुरा से कवि का क्या आशय हैं।

(ग) आशय स्पष्ट कीजिए जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते।

(घ) 'साँसों के तार' से कवि का क्या तात्पर्य हैं? आपके विचार से उन्हें किसने झकृत किया होगा?

उत्तर -

(क) जगजीवन का भार लिए फिरने से कवि का आशय है सांसारिक रिश्ते-नातों और दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा पूरा है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है।

(ख) स्नेह सुरा से आशय है प्रेम की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन झंकृत होता रहता है।

(ग) जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते' का आशय है-यह संसार उन लोगों की स्तुति करता है जो संसार के अनुसार चलते हैं और उसका गुणगान करते है।

(घ) साँसों के तार' से कवि का तात्पर्य है-उसके जीवन में भरा प्रेम रूपी तार, जिनके कारण उसका जीवन चल रहा है। मेरे विचार से उन्हें कवि की प्रेयसी ने झंकृत किया होगा।

प्रश्न 2.

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ।

मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ

है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता

मैं स्वप्न का संसार लिए फिरता हूँ।

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ।

सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ

जग भव सागर तरने की नाव बनाए

मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।

प्रश्न

(क) कवि के हृदय में कौन सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यक्ति क्यों है?

(ख) 'निज उर के उद्गार व उपहार' से कवि का क्या तात्पर्य हैं? स्पष्ट कीजिए

(ग) कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?

(घ) संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता हैं?

उत्तर -

(क) कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण व्यथित है।

(ख) 'निज उर के उद्गार का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा है।निज उर के उपहार से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बॉटना चाहता है।

(ग) कवि को संसार इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उसके दृष्टिकोण के अनुसार संसार अधूरा है। उसमें प्रेम नहीं है। वह बनावटी व झूठा है।

(घ) संसार में रहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कष्टों को सहना पड़ेगा। इसलिए मनुष्य को हंसते हुए जीना चाहिए।

प्रश्न 3.

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ

उन्माद में अवसाद लिए फिरता हूँ।

जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर

मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हैं।

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?

नादान वहीं हैं हाथ जहाँ पर दाना

फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे

मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना

प्रश्न

(क) 'यौवन का उन्माद' का तात्यय बताइए।

(ख) कबि की मनःस्थिति कैसी है?

(ग) नादान' कौन है तथा क्यों?

(घ) संसार के बारे में कवि क्या कह रहा हैं।

(ड) कवि सीखे ज्ञान की क्यों भूला रहा है?

उत्तर -

(क) कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अतः वह निराश भी है।

(ख) कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह रो रहा है क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है।

(ग) कलावा किवादक वाहमेंली लोग कनादन कहा है वे वाहन सह पाते कसंसार असाय, मायाजाल है।

(घ) कवि संसार के बारे में कहता है कि यहाँ लोग जीवन सत्य जानने के लिए प्रयास करते हैं, परंतु वे कभी सफल नहीं हुए। जीवन का सच आज तक कोई नहीं जान पाया।

(ड) कवि संसार से सीखे ज्ञान को भुला रहा है क्योंकि उससे जीवन-सत्य की प्राप्ति नहीं होती, जिससे वह अपने मन के कहे अनुसार चल सके।

प्रश्न 4.

मैं और और जग और कहाँ का नाता,

मैं बना बना कितने जग रोज मिटाता,

जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,

मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ

शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ

हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,

मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।

प्रश्न

(क) कवि और संसार के बीच क्या संबंध हैं?

(ख) कवि और संसार के बीच क्या विरोधी स्थिति हैं?

(ग) 'शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ से कवि का क्या तात्पर्य होने

(घ) कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं।

उत्तर -

(क) कवि और संसार के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मर्जी के संसार बनाता व मिटाता है।

(ख) कवि को सांसारिक आकर्षणों का मोह नहीं है। वह इन्हें ठुकराता है। इसके अलावा वह अपने अनुसार व्यवहार करता है, जबकि संसार में लोग अपार धन-संपत्ति एकत्रित करते हैं तथा सांसारिक नियमों के अनुरूप व्यवहार करते हैं।

(ग) उक्त पंक्ति से तात्पर्य यह है कि कवि अपनी शीतल व मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह दूसरों को भी जाग्रत कर सके।

(घ) कवि के पास प्रेम महल के खंडहर का अवशेष (भाग) है। संसार के बड़े-बड़े राजा प्रेम के आवेग में राजगद्दी भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।

प्रश्न 5.

मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना,

मैं फूट पडा, तुम कहते छंद बनाना,

क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए

मैं दुनिया का हूँ एक क्या दीवान

में बीवानों का वेश लिए फिरता हूँ।

मैं मादकता निद्भाशष लिए फिरता ही

जिसकी सुनकर ज़य शम झुके लहराए,

मैं मरती का संदेश लिए फिरता हूँ।

प्रश्न

(क) कवि की किस बात को संसार क्या समझता हैं?

(ख) कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता हैं और क्यों?

(ग) कवि की मनोदशा कैसी हैं?

(घ) कवि संसार को क्या संदेश देता हैं? संसार पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है?

उत्तर -

(क) कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है।

(ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है।

(ग) कवि की मनोदशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में चूर है। उसके गीतों पर दुनिया झूमती है।

(घ) कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर संसार झूमता है, झुकता है तथा आनंद से लहराता है।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है


(पठित काव्यांश)


प्रश्न 1.

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

हो जाए न पथ में रात कहीं

मंजिल भी तो है दूर नहीं

यह सोच थक दिन का पथी भी जल्दी जल्दी चलता है

दिन जल्दी जल्दी ढोलता हैं।

प्रश्न

(क) हो जाए न पथ में यहाँ किस पथ की ओर कवि ने सकेत किया हैं?

(ख) पथिक के मन में क्या आशका हैं?

(ग) पथिक के तेज चलने का क्या कारण हैं?

(घ) कवि दिन के बारे में क्या बताता हैं?

उत्तर -

(क) हो जाए न पथ में-के माध्यम से कवि अपने जीवन-पथ की ओर संकेत कर रहा है, जिस पर वह अकेले चल रहा है।

(ख) एक नमें बाहआशंक हैकिपिरपाँच से पिहलेकहरा नहजए राहने केकरण से किना पहा सकता हैं।

(ग) पधिक तेज इसलिए चलता है क्योंकि शाम होने वाली है। उसे अपना लक्ष्य समीप नजर आता है। रात न हो जाए, इसलिए वह जल्दी चलकर अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है।

(घ) कवि कहता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। दूसरे शब्दों में, समय परिवर्तनशील है। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।

प्रश्न 2.

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

नीड़ों से झाँक रहे होंगे-

यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

प्रश्न

(क) बच्चे किसका इंतजार कर रहे होंगे तथा क्यों?

(ख) चिड़ियों के घोंसलों में किस दृश्य की कल्पना की गई हैं?

(ग) चिड़ियों के परों में चंचलता आने का क्या कारण हैं?

(घ) इस अशा से किस मानव-सत्य को दशाया गया है?

उत्तर -

(क) बच्चे अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि चिड़ियì#2366; (माँ) के पहुँचने पर ही उनके भोजन इत्यादि की पूर्ति होगी।

(ख) कवि चिड़ियों के घोंसलों में उस दृश्य की कल्पना करता है जब बच्चे माँ बाप की प्रतीक्षा में अपने घरों से झाँकने लगते हैं।

(ग) चिड़ियों के परों में चंचलता इसलिए आ जाती है क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की चिंता में बेचैनी हो जाती है। वे अपने बच्चों को भोजन, स्नेह व सुरक्षा देना चाहती हैं।

(घ) इस अंश से कवि माँ के वात्सल्य भाव का सजीव वर्णन कर रहा है। वात्सल्य प्रेम के कारण मातृमन आशंका से भर उठता है।

प्रश्न 3.

मुझसे मिलने को कौन विकल?

मैं होऊँ किसके हित चंचला?

यह प्रश्न शिथिल करता पद को भरता उर में विहवलता हैं।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

प्रश्न

(क) कवि के मन में कौन से प्रश्न उठते हैं?

(ख) कवि की व्याकुलता का क्या कारण हैं?

(ग) कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं।

(घ) 'मैं होऊँ किसके हित चचल?' का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

(क) कवि के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं-

(i) उससे मिलने के लिए कौन उत्कंठित होकर प्रतीक्षा कर रहा है?

(ii) वह किसके लिए चंचल होकर कदम बढ़ाए?

(ख) कवि के हृदय में व्याकुलता है क्योंकि वह अकेला है। प्रिया के वियोग की वेदना इस व्याकुलता को प्रगाढ़ कर देती है। इस कारण उसके मन में अनेक प्रश्न उठते हैं।

(ग) कवि अकेला है। उसका इंतजार करने वाला कोई नहीं है। इस कारण कवि के मन में भी उत्साह नहीं है, इसलिए उसके कदम शिथिल हो जाते हैं।

(घ) 'मैं होऊ किसके हित चंचल' का आशय यह है कि कवि अपनी पत्नी से दूर होकर एकाकी जीवन बिता रहा है। उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वह किसके लिए बेचैन होकर घर जाने की चंचलता दिखाए।

आत्मपरिचय


काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न


पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:

● वियोग श्रृंगार रस का प्रयोग हुआ है।

● सहज, सरल, प्रवाहमयी तथा संगीतात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है।

● इस गीत पर उमर खय्याम की रुबाइयाँ का प्रभाव देखा जा सकता है।

● गीत की भाषा में विषय के अनुसार मस्ती, कोमलता, मादकता और मधुरता विद्यमान है।

● शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हैं।

कीर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हैं।

कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर

मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हैं।

मैं स्नेह सुा का पान किया करता हूँ।

मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ।

जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते

मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।

प्रश्न

(क) 'फिर भी और किसी ने का प्रयोग वैशिष्ट बताइए।

(ख) काव्याश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिएए ।

(ग) काव्यांश की अलंकार योजना बताइए।

उत्तर -

(क) 'फिर भी पद का अर्थ यह है कि संसार में बहुत परेशानियों हैं। किसी ने पद का अर्थ है-पत्नी, प्रियजन या गुरु।

(ख) कवि अपने प्रेम को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करता है। वह कष्टों के बावजूद संसार को प्रेम बाँटता है। वह सांसारिक नियमों की परवाह नहीं करता। वह संसार की स्वार्थ प्रवृत्ति पर कटाक्ष करता है।

(ग) कवि ने 'जग-जीवन, साँसों के तार, स्नेह-सुरा में रूपक अलंकार का प्रयोग किया है। किया करता' तथा 'जो जग में अनुप्रास अलंकार है।

2

में जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ।

सुख दुख दोनों में मग्न रहा करता हैं,

जय भव सागर तरने की नाव बनाए,

मैं भव-मौज पर मस्त बहा करता हूँ।

प्रश्न

(क) काव्याशा का भाव संदर्य स्पष्ट कीजिए।

(ख) रस एव अलकार सबधी सौंद्वय बताइए।

(ग) प्रयुक्त भाषा-शिल्य पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर -

(क) इस काव्यांश में कवि ने प्रेम की दीवानगी को व्यक्त किया है। वह हर स्थिति में मस्त रहने की बात कहता है। वह संसार के कष्ट में ही मस्ती-भरा जीवन जीता है।

(ख)

• कवि ने श्रृंगार रस को उन्मुक्त अभिव्यक्ति की है।

• 'भव-सागर व 'भव-मौजों में रूपक अलंकार है।

• 'नाव' व 'अग्नि में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।

• दोनों में मग्न रहा करता हूँ में अनुप्रास अलंकार है।

(ग)

• भावानुकूल, सहज एवं सरल खड़ी बोली में सजीव अभिव्यक्ति है।

• भाषा में तत्सम शब्दावली की प्रधानता है एवं प्रवाहमयता है।

• गेयता का गुण विद्यमान है।

3

मैं और और जग और कहाँ का नाता,

में बना-बना कितने जग रोज मिटाता,

जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,

मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता'

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ

शीतल वाणी में आग लिए फिरता हैं।

हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर

मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हैं।

प्रश्न

(क) 'और जग और का भाव स्पष्ट कीजिए।

(ख) 'शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कजिए।

(ग) काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

(क) 'और जग और' का अर्थ यह है कि सिार कवि की भावनाओं को नहीं समझता। कवि प्रेग की दुनिया में खोया रहता है, जबकि संसार संग्रहवृत्ति में विश्वास रखता है। अतः दोनों में कोई संबंध नहीं है, एकरूपता नहीं है।

(ख) इरा पंक्ति का भाव यह है कि कवि अपनी शीतल और मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहरा, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह अन्य लोगों को भी जाग्रत कर सके।

(ग)

• कवि ने श्रृंगार रस की सुंदर अभिव्यक्ति की है।

• जग जिस वैभव में विशेषण विपर्यय हैं।

• 'कहाँ का नाता' में प्रश्न अलंकार है तथा 'बना-बना' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

• अनुप्रास अलंकार की छटा है-कहाँ का, जग जिस, ‘पृथ्वी पर', 'प्रति पग।

• और शब्द की आवृत्ति प्रभावी है। यहाँ यमक अलंकार है जिसके अर्थ हैं-भिन्न, व (योजक) ।

• लिए फिरता हूँ की आवृत्ति से मस्ती एवं लयात्मकता आई है।

• खड़ी बोली का प्रभावी प्रयोग है।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है


काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न


पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:

● 'जल्दी-जल्दी' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।

● सहज, सरल, साहित्यिक तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।

● शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

● कोमलकांत पदावली के कारण इस गीत में संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।

● प्रसाद गुण तथा वात्सल्य भाव का सुंदर परिपाक हुआ है।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं।

हो जाए न पथ में रात कहीं

मंजिल भी तो है दूर नहीं

यह सोच थका दिन का पथ भी जल्दी-जल्दी चलता हैं।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

नीडों से झाँक रहे होंगे

यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चचलता है।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं।

प्रश्न

(क) काव्यांश की भाषागत दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

(ख) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,

नीड़ों से झाँक रहे होंगे।

(ग) 'पथ', 'मंजिल' और रात' शब्द किसके प्रतीक हैं?

उत्तर -

(क) इस काव्यांश की भाषा सरल, संगीतमयी व प्रवाहमयी है। इसमें दृश्य बिंध है।जल्दी जल्दी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

(ख) इन पंक्तियों में पक्षियों के वात्सल्य भाव को दर्शाया गया है। बच्चे माँ बाप के आने की प्रतीक्षा में धौंसलों से झाँकने लगते हैं। वे माँ की ममता के लिए व्यग्न हैं।

(ग) पथ', 'मंजिल' और 'रात क्रमश 'मानव-जीवन के संघर्ष, परमात्मा से मिलने की जगह तथा मृत्यु के प्रतीक हैं।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?

'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' इस तथ्य की ओर संकेत करता है जीवन की घड़ियाँ जल्दी बीतती जाती हैं अत: लक्ष्य तक पहुँचने के प्रयास में देरी मत करो। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। समय गतिशील एवं परिवर्तनशील है। यह किसी के रोके रुकता नहीं।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में दिन का पंथी कौन है?

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है कविता में दिन का पंथी किसे माना गया है? (घ) प्रत्याशा को। उत्तर :- (ख) सूर्य को।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता का उद्देश्य क्या है?

उत्तर इस कविता में कवि ने प्रेम की व्यग्रता और जल्दी जाने की चाह को व्यक्त किया है। जहाँ एक ओर पथिक अपने प्रियजनों से मिलने के लिए जल्दीजल्दी चलता है, वहीं दूसरी ओर अपने बच्चों के विषय में सोचकर पक्षियों के पंखों में फड़फड़ाहट भर जाती है।

कविता का मूलभाव क्या है?

कविता में कवि द्वारा प्रयोग किए गए इन शब्दों की पुनरावृत्ति मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। कवि के अनुसार मनुष्य को संघर्षमय जीवन में स्वयं के लिए सुखों की अभिलाषा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि सुविधाभोगी मनुष्य का संघर्ष शक्ति समाप्त हो जाती है।