काव्यखंड (संवत् 1975) द्विवेदीकाल में प्रवर्तित खड़ी बोली की काव्यधारा
धारती की प्यास बुझाने को, वह घहर रही थी घनसेना। कलकल बहती थी रणगंगा, अरिदल को डूब नहाने को।
हँस पड़े कुसुमों में छविमान, जहाँ जग में पदचिद्द पुनीत। यह अभिनव मानव प्रजा सृष्टि। विश्वमय हे परिवर्तन! बिना दुख के सब सुख नि:सार, बिना ऑंसू के जीवन भार। मधुप निकर कलरव भर, वरुणा की कचर कविता की मूल भावना क्या है?अरी वरुणा की शांत कछार कविता वरुणा नदी को संबोधित कर कर लिखी गई है कड़ना नदी का किनारा तमाम ऋषि-मुनियो तपस्वी एवं गौतम बुद्ध को भी शांति और अध्यात्मिक वातावरण प्रदान करती है यहा ऋषि-मुनि इसी तपोभूमि पर देवताओं के जन्म पृथ्वी पर स्वर्ग की कल्पना बुद्धि और हृदय के पारस्परिक अधिकारियों आदि विषयों पर बहस किया करते थे।
ले चल मुझे भुलावा देकर की भाषा क्या?ले ले चल मुझे भुलावा देकर कविता में कवि ने पलायन वादी दृष्टिकोण को दर्शाया है। कवि कविता में एक ऐसे स्थान को खोज रहे हैं जिसमें कोई सांसरिकता ना हो। सत्य हो और निश्चल हो।
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