विश्व राजनीति में अमेरिका वर्चस्व का क्या तात्पर्य है - vishv raajaneeti mein amerika varchasv ka kya taatpary hai

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व
शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही संयुक्त राज्य अमरीका विश्व की सबसे बड़ी ताकत बन कर उभरा अब उसे टक्कर देने वाली शक्ति विश्व में मौजूद नही थी। शीत युद्ध के बाद वाले दौर को अमरीकी प्रभुत्व या एक धु्रवीय विश्व का दौर कहा जाने लगा। सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही अमरीकी वर्चस्व प्रारम्भ हो गया। कुछ हद तक कहा जा सकता हैं कि अमेरीकी वर्चस्व की झलक तो सन् 1945 से ही नजर आने लगी थी जो 1991 में स्पष्ट हो गई।
नई विश्व व्यवस्था की शुरूआत
प्रथम खाड़ी युद्ध- ( 2 अगस्त 1990-28 फरवरी 1991 )-
इराक-कुवैत विवाद में इराक का दावा था कि कुवैत इराक का ही एक क्षेत्र हैं और इसे पुनः इराक में शामिल करने का प्रयास किया गया अतः इराक ने कुवैत पर हमला किया, इराक का कुवैत पर हमला करने का मुख्य कारण अपने आर्थिक दिवालियापन को दूर करना था। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के बहुत समझाने के बावजूद भी जब इराक नहीं माना तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने बल प्रयोग की अनुमति दी जिसे ‘‘नई विश्व व्यवस्था‘‘ का नाम दिया गया। इराक पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये गये तथा 34 देशों की 6,60,000 सैनिकों ने इस युद्व में हिस्सा लिया जिसमें 75 प्रतिशत सैनिक केवल अमरीका के थे। अतः देखा जाए तो यह युद्ध वास्तव में अमरीका और इराक के मध्य था जिसे ‘‘प्रथम खाड़ी युद्ध‘‘ के नाम से जाना जाता हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस सैन्य अभियान को ‘‘आॅपरेशन डेर्जट स्टाॅर्म‘‘ का नाम दिया। अमरीकी जनरल नार्मन श्वार्जकाॅव इस सैन्य अभियान के प्रमुख थे। इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद््दाम हुसैन ने इस युद्ध को ‘‘ सौ जंगों की एक जंग या सभी युद्धों की माँ कहा हैं‘‘। इराकी सेना के जल्दी की पाँव उखड़ गये और उसे कुवैत से हटना पड़ा। प्रथम खाडी युद्ध से यह जग जाहिर हो गया कि सैन्य क्षमता और प्रौद्योगिकी के मामले में अमरीका विश्व के बाकी देशों से काफी आगे निकल चुका हैं। इस युद्ध में अमेरिका के स्मार्ट बमों का प्रयोग किया जिसे लोगों ने घरों में टेलीवीजन पर देखा अतः इसे कम्प्यूटर युद्ध या वीडियों गेम वार की संज्ञा दी गई।
बिल क्लिंटन का दौर-
रिपब्लिकन पार्टी के जाॅर्ज बुश भले ही प्रथम खाड़ी युद्ध जीतेने में सफल रहे हो लेकिन सन् 1992 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बिल क्लिंटन से चुनाव हार गये। क्लिंटन लगातार आठ वर्षों तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे उन्होने अपनी नीति में परिवर्तन किया और विदेश नीति के बजाए घरेलु नीतियों पर ज्यादा ध्यान दिया मसलन लोकतन्त्र को बढ़ावा, पर्यावरण परिवर्तन, विश्व व्यापार में वृद्धि आदि।
बिल क्लिंटन के दौर में सैन्य कार्रवाईयां –
1. युगोस्लाविया के विरूद्ध कार्रवाई- युगोस्लाविया के कोसोवो प्रान्त में रहने वाले अल्बानियाई लोगों के आन्दोलनों को कुचलने के लिए सैन्य कार्रवाई की, अमेरिका के नेतृत्व में नाटो की सेना ने यूगोस्लाविया पर बमबारी की जिसके परिणामस्वरूप दो प्रमुख परिवर्तन हुए- युगोस्लाविया में स्लोबदान मिलोसेविच की सरकार का पतन हुआ तथा कोसोवो में नाटो की सेना का ठहराव हो गया।
2. आॅपरेशन इनफाइनाइट रीच-;व्चमतंजपवद प्दपिदपजम त्मंबीद्ध. सन् 1998 में आतंकवादी संगठन अलकायदा जिसका प्रमुख ओसामा बिन लादेन था को नैरोबी (केन्या) तथा दारे सलाम (तंजानिया) के अमरीकी दूतावासों पर हमले का दोषी ठहराया गया और जवाबी कार्रवाई करते हुए अमरीका ने सूडान और अफगानिस्तान स्थित अलकायदा के ठिकानों पर क्रूज मिसाइलों से हमले किए। इस कार्रवाई को अंजाम देने के लिए अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ से आज्ञा लेने या अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की परवाह नहीं कि जो विश्व में अमरीकी वर्चस्व को दर्शाता हैं।

9ध्11 और आतंकवाद के विरूद्ध विश्वव्यापी युद्ध-
11 सितम्बर 2001 को प्रातः 8 बजकर 46 मिनट पर अमरीका के वल्र्ड ट्रेड सेन्टर तथा पेन्टागन (अमरीकी रक्षा विभाग का मुख्यालय) विमानों के द्वारा जबरदस्त आतंकी हमला हुआ, जिसमें लगभग 3000 हजार लोग मारे गये। यह हमला चार विमानों के अपहरण करने की योजना को अंजाम देने के बाद हुआ जिसमें दो विमान न्यूयार्क के वल्र्ड ट्रेड सेन्टर की उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए व तीसरा विमान वर्जिनिया के आर्लिंगटन स्थित ‘‘पेन्टागन‘‘ से टकराया तथा एक विमान जिसे कांग्रेस की मुख्य इमारत व्हाइट हाऊस से टकराना था वह पेन्सिलवेनिया के खेत में जाकर गिरा। इस घटना की तुलना 1814 तथा 1941 की घटना से की। सन् 1814 में ब्रिटेन ने वांशिगटन डीसी में आंतक गतिविधियों को अजांम दिया तथा 1941 में जापानियों नें पर्ल हार्बर पर हमला किया था। (पर्ल हार्बर, होनोलूलू के पश्चिम में ओआहू द्वीप, पर एक लगून बंदरगाह है. बंदरगाह का अधिकांश हिस्सा और आसपास की भूमि अमरीकी नौसेना का गहरे पानी का नौसेना अड्डा है. यह अमेरिकी प्रशांत बेड़े का भी मुख्यालय है. 7 दिसम्बर, 1941 को जापानी साम्राज्य द्वारा पर्ल हार्बर पर हमले ने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में धकेल दिया.)
इस समय रिपब्लिकन पार्टी के जाॅर्ज डब्ल्यू बुश (पूर्व राष्ट्रपति एच.डब्ल्यू बुश के पुत्र) ने कठोर कदम उठाते हुए आतंकवाद के विरूद्ध विश्वव्यापी युद्ध के रूप में ‘‘आॅपरेशन एन्ड्युरिंग फ्रीडम‘‘ चलाया और इसका मुख्य निशाना बने आतंककारी संगठन ‘‘अलकायदा‘‘(ओसामा बिन लादेन द्धारा संचालित) तथा अफगानिस्तान का तालिबान शासन।
इराक पर आक्रमण (द्वितीय खाड़ी युद्ध)-
9/11 के हमले में जिम्मेदार ठहराये गये अलकायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन पर विजय पाने के बाद अमरीका ने अपना ध्यान इराक की ओर केन्द्रित किया और अमरीका ने पूरी दुनिया में यह खबर फैला दी की इराक अत्यन्त घातक हथियारों का जखीरा जमा कर रहा हैं जिससे पूरे विश्व की शांति को खतरा उत्पन्न हो गया हैं। अमरीका के नेतृत्व में 40 देशों के समूह ने जिसे ‘‘काॅलिएशन आॅफ वीलिंग्स‘‘ (आकांक्षियों का समूह) नाम दिया जिसने इराक के विरूद्ध 19 मार्च 2003 को युद्ध छेड़़ दिया जिसे आॅपरेशन इराकी फ्रीडम नाम दिया गया।
वास्तव में इराक के पास ऐसे कोई घातक हथियार नहीं मिले जिससे विश्व शांति को खतरा हो। अमरीका का इराक के विरूद्ध हमला करने प्रमुख कारण इराक के तेल भण्डारों पर कब्जा करना था तथा इराक में अपनी मनपसन्द की सरकार की स्थापना करना था। इस युद्ध में अमरीका के 3000 सैनिक मारे गये तथा इराक के लगभग 50000 नागरिक मारे गये। इस युद्ध से इराक में सद्दाम हुसैन की सरकार का तो पतन हो गया लेकिन अमरीका, इराक को शांत करने में सफल नही हो सका। अतः राजनीतिज्ञ सैन्य और राजनीतिक धरातल पर इस हमले को असफल हमला करार दिया हैं।

वर्चस्व—
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमरीका का पूरे विश्व पर दबदबा कायम हो गया था और विश्व एक ध्रुवीय व्यवस्था में तब्दील हो गया था। जब अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का केन्द्र एक हो तो भौतिकी शब्द एक धु्रवीय के बजाय वर्चस्व (हेगेमनी) शब्द का प्रयुक्त करना ज्यादा उचित प्रतीत होता हैं।
‘‘हेगेमनी‘‘ शब्द प्राचीन यूनान से लिया गया हैं क्यों कि यूनान में एथेन्स का बोलबाला था और अन्य नगर राज्यों की तुलना में एंथेस के प्रभुत्व को इंगित करने के लिए हेगेमनी शब्द प्रयुक्त होता था। आज पूरे विश्व पर अमरीका की हेगेमनी कायम हैं।
वर्चस्व सैन्य शक्ति के रूप में- सैन्य शक्ति के मामले में अमरीका विश्व के अन्य देशों से कई आगे निकल चुका हैं। अमरीका के पास ऐसे अचूक और घातक हथियार हैं जिससे वह घर बैठे दुनिया के किसी भी देश को निशाना बना सकता हैं। अमरीका के नीचे के 12 ताकतवर देश अपनी सैन्य सुरक्षा पर जितना खर्च करते हैं उससे अधिक तो अमरीका अकेले खर्च करता है ( अमरीका का सैन्य व्यय 455.9 अरब डाॅलर व अन्य 12 देशों का मिलाकर सैन्य व्यय 449.4 अरब डाॅलर हैं ) तथा सैन्य अनुसंधान में भी अमरीका दुनिया के अन्य देशों से कई आगे हैं।
वर्चस्व ढांचागत ताकत के रूप में- ढांचागत ताकत का संबंध अर्थव्यवस्था से हैं। अमरीकी ढांचागत ताकत का सर्वोत्तम उदाहरण समुद्री व्यापारिक मार्ग (सी लेन आॅव कम्यूनिकेशन) जहां अमरीका समुद्री व्यापारिक मार्गो के आवाजाही के नियमों को तय करता हैं। इसके साथ ही इन्टरनेट का अविष्कार भी अमरीका द्वारा ही हुआ हैं तथा दुनिया के सकल घरेलूू उत्पाद ;ळक्च्. एक वित्तीय वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्यद्ध में 28 प्रतिशत हिस्सेदारी अमरीका के पास हैं तथा चीन के पास पाँच व रूस और भारत के पास मात्र दो-दो प्रतिशत हिस्सेदारी हैं। इस बात से यह अनुमान लगाया जा सकता हैं कि अमरीका का आर्थिक ढांचा कितना मजबूत हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अमरीका ने ब्रेटनवुड प्रणाली ( इस प्रणाली के अन्तर्गत वैश्विक व्यापार के नियम तय किए गये थे जो अमरीका ने अपनें हितों के अनुकूल बनाए) लागू की जो आज विश्व अर्थव्यवस्था की बुनियादी संरचना हैं।
एम.बी.ए की डिग्री भी अमरीका की ढांचागत ताकत का एक अच्छा उदाहरण हैं। यूनिवर्सिटी आॅव पेंसिलवेनिया में में वाह्र्टन स्कूल के नाम से विश्व का प्रथम ‘‘बिजनेस स्कूल‘‘ सन् 1881 में खोला गया और आज दुनिया के प्रत्येक देश में एम. बी. ए एक प्रतिष्ठित डिग्री हो गई हैं।
( सकल घरेलू उत्पाद, इन्टरनेट, बे्रटनवुड प्रणाली, एम बी ए)
वर्चस्व सांस्कृतिक अर्थ में- सांस्कृतिक प्रभुत्व से आशय किसी देश के नागरिकों की जीवन शैली, विचारधारा, रहन-सहन के तौर तरीके से होता जिसे अन्य देश भी अपनाने का प्रयास करते हैं। अमरीका का सैन्य और ढांचागत वर्चस्व के साथ-साथ सांस्कृतिक वर्चस्व भी कायम हैं। शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के नागरिक भी अमरीका की भौतिक जीवन शैली से काफी प्रभावित था अमरीका में प्रचलित ‘‘नीली जीन्स‘‘ से वहां का युवा वर्ग बहुत प्रभावित था। आज शिक्षित भारतीय युवा वर्ग अमरीका में जाकर बसना चाहता हैं क्योंकि उसे वहां अपना भविष्य उज्ज्वल नजर आता हैं। शीत युद्ध के दौरान अमरीका को लगा कि वह सैन्य ताकत में सोवियत संघ को मात नहीं दे पायेगा तो उसने ढंाचागत और सांस्कृतिक प्रभुत्व को कायम करने का प्रयास किया और इसमें अमरीका सफल रहा।
अमरीकी शक्ति के रास्ते में अवरोध- इतिहास इस बात का गवाह हैं कि सर्वोच्यता का अंत उसके आंतरिक कलह से ही हुआ हैं और अमरीकी वर्चस्व की सबसे बड़ी बाधा भी उसके अन्दर ही हैं। हालांकि 9/11 की घटना के बाद वर्षो से ये अवरोध क्रियाशील नहीं थे लेकिन फिर से ये अवरोध प्रकट होने लगे हैं। जो निम्नांकित हैं।
1. संस्थागत संरचना- अमरीका में शासन के तीनों अंगो में शक्तियों का विभाजन इस प्रकार से हैं कि इससे कार्यकारी अंग को अमरीका की सैन्य शक्ति का असीमित व अमर्यादित प्रयोग करने से रोक लगाती हैं। (सन् 2007 में अमरीकी कांग्रेस द्वारा इराक से सेना वापस बुलाने का विधेयक पारित किया तो राष्ट्रपति ने उस विधेयक पर ‘‘वीटो‘‘ लागू करने की धमकी दे दी)
2. जनमत- अमरीका का जनमत बड़ा सचेत और जागरूक हैं तथा वहां के जनसंचार के साधन भी काफी उन्नत हैं जिससे वे प्रशासन को अनैतिक रूप से सैन्य गतिविधियों को संचालित करने पर लगाम लगाते हैं इसका श्रेष्ठ उदाहरण हैं कि अमरीका ने 2003 में इराक पर हमला किया तो उसकी पूरे विश्व में तो आलोचना हुई साथ ही अमरीका के नागरिको ने भी इसे उचित नहीं ठहराया।
3. नाटो- शीत युद्ध के दौरान अमरीका द्वारा संगठित एक सैन्य संगठन हैं इस संगठन में वे देश हैं जो लोकतान्त्रिक तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विश्वास रखते हैं जिससे इन देशों में बाजार मूलक अर्थव्यवस्था चलती हैं अतः यह संभवना बनती हैं कि ये देश ही अमरीकी वर्चस्व पर लगाम कस सकते हैं।
अमरीका से भारत के संबंध- शीत युद्ध के दौरान भारत का झुकाव सोवियत संघ की तरफ था लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत मित्रविहीन हो गया। भारत ने अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करते हुए आर्थिक उदारीकरण को अपनाया जिससे भारत अमरीका संबंधों में काफी सुधार हुआ हैं। हाल ही के वर्षों में भारत – अमरीका संबंधो के मध्य दो नई बातें उभर कर सामने आयी हैं पहली प्रौद्योगिकी (तकनीकी) तथा दूसरी अमरीका में बसे अनिवासी भारतीयों ( भारत से बाहर रहने वाला ऐसा व्यक्ति , जो भारत का नागरिक हो अथवा भारतीय मूल का व्यक्ति हो ) से संबंधित हैं। ये दोनों बातें आपस में जुड़ी हुई हैं जो निम्नांकित तथ्यों से स्पष्ट होती हैं।
1. साॅफ्टवयेर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का 65 प्रतिशत अमरीका को जाता हैं।
2. बोईंग कम्पनी के 35 प्रतिशत कर्मचारी भारतीय मूल के हैं।
3. सिलिकन वैली में 3 लाख भारतीय काम करते हैं।
4. उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की 15 प्रतिशत कम्पनियों की शुरूआत अनिवासी भारतीयों ने की हैं।
भारत के अमरीका के साथ कैसे संबंध हो यह तय कर पाना कोई आसान काम नहीं हैं फिलहाल भारत में तीन संभावित रणनीतियों पर बहस चल रही हैं।
1. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को सैन्य सन्र्दभ में देखें तो भारत को अमरीका से दूरी बनाई रखनी चाहिए।
2. भारत अमरीकी सुधरते संबंधों का फायदा उठाकर भारत को अमरीकी वर्चस्व का लाभ उठाना चाहिये।
3. भारत की अगुआई में विकासशील देशों का गठबंधन बनाना और सक्षम होने पर अमरीकी वर्चस्व का प्रतिकार करना।
वर्चस्व से कैसे निपटें ?
आज विश्व की एक ध्रुवीय व्यवस्था में अमरीकी प्रभुत्व से हर कोई चिंतित हैं, हर राष्ट्र यह सोच रहा हैं कि अमरीकी वर्चस्व कब तक चलेगा ? कब इसे चुनौती दी जाएगी ? लेकिन वर्तमान की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को देखते हुए लगता हैं कि निकट भविष्य में अमरीका को चुनौती देने वाला कोई देश नहीं हैं तथा अन्तर्राष्ट्रीय सरकार जैसी कोई चीज नहीं होती हैं । प्रत्येक राष्ट्र की अपनी चुनौतियां हैं। फिलहाल विश्व के अन्य देशों की आर्थिक स्थिति और सामरिक स्थिति से नहीं लगता की निकट भविष्य में अमरीकी वर्चस्व को कोई चुनौती दे पाएगा।
जनसंख्या, ससांधनों की प्रचुरता तथा प्रौद्योगिकी क्षमता के आधार पर विकसित हो रही भारत,चीन और रूस अमरीकी वर्चस्व को चुनौती दे सकते हैं लेकिन इन देशों के मध्य आपसी विभेद हैं। अतः कुछ कुटनीतिकारों का मानना हैं कि वर्चस्वजनित अवसरों के लाभ उठाने की रणनीति ज्यादा फायदेमन्द होगी जिससे देश अपनी आर्थिक वृद्धि दर, व्यापार की वृद्धि व तकनीकी का हस्तान्तरण कर सकेंगे। फिलहाल बैण्डवैगन नीति (ताकतवर देश के विरूद्ध जाने के बजाय उसके वर्चस्व तन्त्र में रहते हुए अवसरों का लाभ लेना ‘‘जैसी बहे बयार पीठ तैसी कीजै) ही कारगर साबित हो सकती हैं। देशों के सामने एक विकल्प यह भी हैं कि अमरीका के दबदबे से अपने को ‘‘छुपा‘‘ ले और यथासंभव उससे दूर रहे ताकि अमरीका के बेवजह क्रोध से बच सके। चीन, रूस और सोवियत संघ ने यह नीति अपना रखी हैं।
हाइवे आॅफ डेथ- कुवैत और बसरा के बीच का यह राजमार्ग न. 80 हैं। प्रथम खाड़ी युद्ध के दौरान 26-27 फरवरी 1991 को इराकी सैनिक कुवैत छोड़कर इराक जा रहे थे तब अमरीका ने जानबूझ कर इस हाइवे पर अमरीकी विमानों ने हमला किया, जिससे अफरी तफरी मच गई और इस हमले में कुवैती बन्दी और फिलीस्तीनी नागरिक शरणार्थी मारे गये। विद्वानों ने इस घटना को ‘‘युद्ध अपराध और जेनेवा समझौते‘‘ का उल्लघंन माना हैं।

महत्वपूर्ण प्रश्न-
1. अमरीकी वर्चस्व की शुरूआत कब हुई ?
2. इराक ने कुवैत पर कब हमला किया ?
3. 1992 में अमरीकी राष्ट्रपति जाॅर्ज बुश किससे हारे थे ?
4. जाॅर्ज बुश किस राजनीतिक पार्टी के नेता थे ?
5. बिल क्लिटंन ने किन मुद्दोें पर ध्यान दिया ?
6. बैण्ड वेगन नीति क्या हैं ?
7. ‘‘हाइवे आॅफ डेथ‘‘ को समझाइये ?
8. ‘‘काॅलिएशन आॅफ वीलिंग्स‘‘ को समझाइये ?
9. ‘‘बे्रटनवुड‘‘ नीति क्या थी ?
10. ‘‘छुपा‘‘ की रणनीति से आप क्या समझते हैं ?
11. विश्व में प्रथम एम.बी.ए स्कूल कब और कहां खोला गया ?
उत्तर सीमा 100 शब्द
1. अमरीकी राष्ट्रपति जाॅर्ज बुश ने ‘‘नई विश्व व्यवस्था‘‘ की संज्ञा किसे दी ?
2. निम्नांकित आॅपरेशन पर टिप्पणी कीजिए-
डेजर्ट स्ट्राॅर्म, इनफाइनाइट रीच, एन्ड्युरिंग फ्रीडम, इराकी फ्रीडम।
3. बिल क्लिंटन ने अपनी नीतियों में क्या परिवर्तन किया ?
4. वर्चस्व का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?
5. अमरीका द्वारा इराक पर आक्रमण के उद्देश्य बताईये ?
उत्तर सीमा 600 शब्द
1. 9/11 के आतंकी हमले और उसके प्रति अमरीका की प्रतिक्रिया को समझाइये ?
2. अमरीकी वर्चस्व को सैन्य ,ढांचागत व सांस्कृतिक अर्थों में समझाइये ?
3. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में क्या अमरीकी वर्चस्व हमेशा बना रहेगा ? अपने विचार स्पष्ट कीजिए ?
4. अमरीकी वर्चस्व की राह में कौन कौनसे व्यवधान हैं ?

विश्व राजनीति में अमेरिकी वर्चस्व का क्या तात्पर्य है?

अमेरिकी वर्चस्व की शुरुआत 1991 में हुई जब सोवियत संघ का विघटन हो गया और पूरा विश्व एक ध्रुवीय हो गया। वर्चस्व (Hegemony) शब्द का अर्थ है- सभी क्षेत्रों में (सैन्य,आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मात्र शक्ति का केंद्र होना।

अमेरिकी वर्चस्व क्या था?

वर्चस्व का मतलब ऐसी स्तिथि है जिसमे कोई देश विश्व में बाकि देशो के मुक़ाबले ज़्यादा मजबूत स्तिथि में हो, अमेरिकी वर्चस्व का मतलब भी ऐसी ही एक स्तिथि है। जिसमे अमेरिका विश्व में बाकि देशो के मुक़ाबले ज़्यादा ताक़तवर स्तिथि में था। यह ताक़त आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में थी।

विश्व राजनीति में अमेरिका का क्या तात्पर्य है?

अमेरिका एक विश्व शक्ति है तथा इस नाते उसके हित भी वैश्विक हैं । अत: विश्व राजनीति में अमेरिका के प्रभुत्व का तात्पर्य है कि अमेरिका अपने वैश्विक हितों को प्रभावित करने वाले विभिन्न वैश्विक मामलों में प्रभावी हस्तक्षेप कर उनका समाधान अपने हितों व इच्छा के अनुसार करने की क्षमता रखता है ।