विद्युत परिपथों को परिपथ आरेखों से क्यों निरूपित किया जाता है? - vidyut paripathon ko paripath aarekhon se kyon niroopit kiya jaata hai?

विद्युत परिपथ

विद्युत परिपथों को परिपथ आरेखों से क्यों निरूपित किया जाता है? - vidyut paripathon ko paripath aarekhon se kyon niroopit kiya jaata hai?

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एक सरल विद्युत परिपथ जो एक वोल्टेज स्रोत एवं एक प्रतिरोध से मिलकर बना है ब्रेडबोर्ड के ऊपर बनाया गया एक सरल परिपथ (मल्टीवाइव्रेटर) विद्युत अवयवों (वोल्टेज स्रोत, प्रतिरोध, प्रेरकत्व, संधारित्र एवं कुंजियों आदि) एवं विद्युतयांत्रिक अवयवों (स्विच, मोटर, स्पीकर आदि) का परस्पर संयोजन विद्युत परिपथ (Electric circuit) अथवा विद्युत नेटवर्क (electrical network) कहलाता है। विद्युत परिपथ बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हो सकते हैं; जैसे-विद्युत-शक्ति के उत्पादन, ट्रान्समिसन, वितरण एवं उपभोग का नेटवर्क। बहुत से विद्युत परिपथ प्राय: प्रिन्टेड सर्किट बोर्डों पर संजोये जाते हैं। विद्युत परिपथ अत्यन्त लघु आकार के भी हो सकते हैं; जैसे एकीकृत परिपथ। जब किसी परिपथ में डायोड, ट्रान्जिस्टर या आईसी आदि लगे होते हैं तो उसे एलेक्ट्रॉनिक परिपथ भी कहा जाता है जो कि विद्युत परिपथ का ही एक रूप है। विद्युत परिपथ को परिपथ आरेख (सर्किट डायग्राम) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। प्रायः एक या अधिक बन्द लूप वाले नेटवर्क ही विद्युत परिपथ कहलाते हैं। .

27 संबंधों: ट्रांजिस्टर, एकीकृत परिपथ, डायोड, तुल्य परिपथ, थेवेनिन का प्रमेय, धारा दर्पण, परिपथ डिजाइन, परिपथ विश्लेषण, परिपथ आरेख, भेद प्रवर्धक, शक्ति एलेक्ट्रॉनिकी, श्रेणीक्रम और समानांतरक्रम परिपथ, साईकॉस, सिमूलिंक, संकर एकीकृत परिपथ, स्टार-डेल्टा परिवर्तन, विद्युत परिपथ, व्हीटस्टोन सेतु, ओम का नियम, आपरेशनल एम्प्लिफायर, इलेक्ट्रानिक परिपथ, इलेक्ट्रॉनिक परिपथ सिमुलेशन, इंस्ट्रुमेंटेशन एम्प्लिफायर, किरचॉफ के परिपथ के नियम, अध्यारोपण प्रमेय, अनुरूप एलेक्ट्रॉनिकी, अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी।

ट्रांजिस्टर

अलग-अलग रेटिंग के कुछ प्रथनक ट्रान्जिस्टर (प्रथनक) एक अर्धचालक युक्ति है जिसे मुख्यतः प्रवर्धक (Amplifier) के रूप में प्रयोग किया जाता है। कुछ लोग इसे बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण खोज मानते हैं। ट्रान्जिस्टर का उपयोग अनेक प्रकार से होता है। इसे प्रवर्धक, स्विच, वोल्टेज नियामक (रेगुलेटर), संकेत न्यूनाधिक (सिग्नल माडुलेटर), थरथरानवाला (आसिलेटर) आदि के रूप में काम में लाया जाता है। पहले जो कार्य ट्रायोड या त्रयाग्र से किये जाते थे वे अधिकांशत: अब ट्रान्जिस्टर के द्वारा किये जाते हैं। .

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एकीकृत परिपथ

माइक्रोचिप कम्पनी की इप्रोम (EPROM) स्मृति के एकीकृत परिपथ आधुनिक सरफेस माउण्ट आईसी ऐटमेल (Atmel) की एक आईसी, जिसके अन्दर स्मृति ब्लॉक, निवेश निर्गम (इन्पुट-ऑउटपुट) एवं तर्क के ब्लॉक देखे जा सकते हैं। यह एक ही चिप में पूरा तन्त्र (System on Chip) है। एलेक्ट्रॉनिकी में एकीकृत परिपथ या एकीपरि (इन्टीग्रेटेड सर्किट (IC)) को सूक्ष्मपरिपथ (माइक्रोसर्किट), सूक्ष्मचिप, सिलिकॉन चिप, या केवल चिप के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अर्धचालक पदार्थ के अन्दर बना हुआ एलेक्ट्रॉनिक परिपथ ही होता है जिसमें प्रतिरोध, संधारित्र आदि पैसिव कम्पोनेन्ट (निष्क्रिय घटक) के अलावा डायोड, ट्रान्जिस्टर आदि अर्धचालक अवयव निर्मित किये जाते हैं। जिस प्रकार सामान्य परिपथ का निर्माण अलग-अलग (डिस्क्रीट) अवयव जोड़कर किया जाता है, आईसी का निर्माण वैसे न करके एक अर्धचालक के भीतर सभी अवयव एक साथ ही एक विशिष्ट प्रक्रिया का पालन करते हुए निर्मित कर दिये जाते हैं। एकीकृत परिपथ आजकल जीवन के हर क्षेत्र में उपयोग में लाये जा रहे हैं। इनके कारण एलेक्ट्रानिक उपकरणों का आकार अत्यन्त छोटा हो गया है, उनकी कार्य क्षमता बहुत अधिक हो गयी है एवं उनकी शक्ति की जरूरत बहुत कम हो गयी है। संकर एकीकृत परिपथ भी लघु आकार के एकीपरि (एकीकृत परिपथ) होते हैं किन्तु वे अलग-अलग अवयवों को एक छोटे बोर्ड पर जोड़कर एवं एपॉक्सी आदि में जड़कर (इम्बेड करके) बनाये जाते हैं। अतः ये मोनोलिथिक आई सी से भिन्न हैं। .

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डायोड

निर्वात नलिका डायोड का योजनामूलक चित्र डायोड आकार-प्रकार में भिन्न दिख सकते हैं। यहाँ चार डायोड दिखाये गये हैं जो सभी अर्धचालक डायोड हैं। सबसे नीचे वाला एक ब्रिज-रेक्टिफायर है जो चार डायोडों से बना होता है। डायोड (diode) या द्विअग्र / द्वयाग्र एक वैद्युत युक्ति है। अधिकांशत: डायोड दो सिरों (अग्र) वाले होते हैं किन्तु ताप-आयनिक डायोड में दो अतिरिक्त सिरे भी होते हैं जिनसे हीटर जुड़ा होता है। डायोड कई तरह के होते हैं किन्तु इन सबकी प्रमुख विशेषता यह है कि यह एक दिशा में धारा को बहुत कम प्रतिरोध के बहने देते हैं जबकि दूसरी दिशा में धारा के विरुद्ध बहुत प्रतिरोध लगाते हैं। इनकी इसी विशेषता के कारण ये अन्य कार्यों के अलावा प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा के रूप में बदलने के लिये दिष्टकारी परिपथों में प्रयोग किये जाते हैं। आजकल के परिपथों में अर्धचालक डायोड, अन्य डायोडों की तुलना में बहुत अधिक प्रयोग किये जाते हैं। .

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तुल्य परिपथ

एक वास्तविक धारा स्रोत (करेंट सोर्स) का तुल्य परिपथ किसी तन्त्र या युक्ति के गणितीय मॉडल को जब किसी विद्युत परिपथ के रूप में निरुपित किया जाता है तो इस विद्युत परिपथ को तुल्य परिपथ (equivalent circuit) कहते हैं। उदाहरण के लिये किसी बैटरी को एक आदर्श वोल्टेज स्रोत एवं एक प्रतिरोध के श्रेणीक्रम (सिरीज) संयोजन के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है। इसी तरह समान्तर क्रम (पैरेलेल) में जुड़े कई प्रतिरोधों के स्थान पर एक ही प्रतिरोध लगाया जा सकता है जो परिपथ से उतनी ही धारा ले जो समान्तर क्रम में जुडे सभी प्रतिरोध मिलकर लेते हैं। समान्तर क्रम में जुड़े '''n''' प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध .

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थेवेनिन का प्रमेय

थेवेनिन का प्रमेय, परिपथ सिद्धान्त का एक महत्वपूर्ण प्रमेय है। इसे फ्रांस के टेलेग्राफ इंजीनीयर लियों चार्ल्स थेवेनिन (Léon Charles Thévenin (1857–1926)) ने प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार, वोल्टता स्रोत, धारा स्रोत एवं प्रतिरोधकों से निर्मित किसी भी रैखिक परिपथ का इसके किन्हीं दो सिरों (टर्मिनल्स) के बीच व्यवहार एक तुल्य वोल्तता स्रोत Vth एवं तुल्य प्रतिरोधक Rth के श्रेणीक्रम के द्वारा निरूपित किया जा सकता है। यह किसी एक आवृत्ति वाले प्रत्यावर्ती धारा के स्रोत एवं सामान्यीकृत प्रतिबाधा से युक्त परिपथों के लिये भी लागू होता है। इस सिद्धान्त की खोज सबसे पहले जर्मनी के वैज्ञानिक हर्मन वॉन हेल्मोल्ट्ज (Hermann von Helmholtz) ने सन् १८५३ में की थी, किन्तु बाद में थेवेनिन ने सन् १८८३ में इसे 'पुन: खोजा'। चित्र:Twierdzenie thevenina.PNG .

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धारा दर्पण

दो बीजेटी से निर्मित एक सरल धारा दर्पण विल्सन का धारा दर्पण धारा दर्पण (current mirror) उस विद्युत परिपथ को कहते हैं जिसके किसी एक अवयव में जितनी विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, उस परिपथ के एक अन्य अवयव में उस धारा के बराबर या उसके कुछ गुना धारा बहती है। उदाहरण के लिये, किसी परिपथ के ट्रांजिस्टर Q1 में १ अम्पीयर धारा जब बहती है तो Q2 में भी 1 अम्पीयर बहती है तथा जब Q1 में 3 अम्पीयर धारा बहायी जाती है तो Q2 में भी 3 अम्पीयर धारा बहने लगती है तो यह परिपथ एक 'धारा दर्पण' की तरह कार्य कर रहा है। किन्तु ध्यान देना चाहिये कि दो अवयव यदि श्रेणीक्रम में जुड़े हों तो भी उन दोनों में हर स्थिति में समान धारा बहेगी, किन्तु इस परिपथ को 'धारा दर्पण' नहीं कहा जाता। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धारा दर्पण वास्तव में धारा नियंत्रित धारा स्रोत (current-controlled current source (CCCS)) होता है। इलेक्ट्रानिकी में धारा दर्पण के मुख्यतः दो उपयोग हैं-.

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परिपथ डिजाइन

परिपथ अभिकल्प (सर्किट डिजाइन) का अर्थ बहुत व्यापक है। इसमें किसी आईसी के अन्दर केवल एक ट्रांजिस्टर का डिजाइन से लेकर जटिल एलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों की डिजाइन तक आता है। सरल कार्यों के लिये डिजाइन की प्रक्रिया एक ही व्यक्ति बिना किसी योजनाबद्ध डिजाइन प्रक्रिया का अनुसरण किये भी कर सकता है किन्तु अधिक कठिन और जटिल डिजाइनों के लिये डिजाइनरों की एक टोली (टीम) लगती है जो योजनाबद्ध मार्ग का अनुसरण करते हुए तथा कम्प्यूटर सिमुलेशन आदि का बुद्धिमतापूर्ण उपयोग करते हुए यह कार्य करती है।; प्रकार.

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परिपथ विश्लेषण

विश्लेषण के लिये दो लूप वाला एक सरल परिपथ इस परिपथ में लगे सभी प्रतिरोध '''R''' हों तो इस 'घन' के आमने-सामने के दो कोनों के बीच तुल्य प्रतिरोध '''(5/6)R''' होगा। किसी परिपथ के सभी अवयवों (वोल्टता स्रोत, धारा के स्रोत, प्रतोरोध, संधारित्र, ट्रांजिस्टर आदि) के मान (या अन्य वैशिष्ट्य) दिये होने पर परिपथ की विभिन्न शाखाओं में धारा एवं नोडों की वोल्टता ज्ञात करना परिपथ विश्लेषण (Circuit analysis) कहलाती है। वैश्लेषिक औजारों का उपयोग करते हुए किसी व्यक्ति द्वारा केवल सरल और प्रायः रैखिक नेटवर्कों का विश्लेषण ही किया जा सकता है। हजारों-लाखों अवयवों वाले बड़े परिपथों या अरैखिक अवयवों से युक्त परिपथों का विश्लेषण करने के लिये संगणक द्वारा परिपथ सिमुलेशन (circuit simulation) करना पड़ता है जिसमें कम्प्यूटर प्रोग्राम 'इटरेटिव सन्निकटन विधियों' का सहारा लेकर परिपथ विश्लेषण करता है। परिपथ विश्लेषण ही परिपथ डिजाइन (सर्किट डिजाइन) का आधार है। .

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परिपथ आरेख

चित्रात्मक (पिक्टोरियल) एवं योजनामूलक (स्कीमैटिक) परिपथ आरेखों की तुलना ४-बिट का टीटीएल काउन्टर का परिपथ आरेख किसी विद्युत परिपथ के सरलीकृत आरेख को परिपथ आरेख (circuit diagram), या विद्युत आरेख (electrical diagram) या एलेक्ट्रानिक स्कीमैटिक (electronic schematic) कहते हैं। विद्युत परिपथ में प्रयुक्त अवयवों को आरेख में उनके सरलीकृत मानक प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया जाता है। यह जरूरी नहीं है कि आरेख में चित्रित अवयव उस विन्यास दिखाये गये हों जिस तरह से वे अन्तिम परिपथ में लगे होते हैं। परिपथ आरेख, ब्लाक आरेख (block diagram) तथा विन्यास-आरेख (layout diagram) से इस मामले में भिन्न होते हैं कि परिपथ आरेख में सभी अवयव एवं उनकी परस्पर जोड़ (connections) को विस्तारपूर्वक दर्शाया जाता है। जिस रेखाचित्र (drawing) में सभी अवयव एवं उनके आपसी जोड़ को सही आकार एवं स्थान पर दिखाया जाता है उसे आर्टवर्क (artwork) विन्यास-आरेख या भौतिक-डिजाइन (physical design) कहते हैं विद्युत प्रौद्योगिकी एवं एलेक्ट्रानिकी में परिपथ आरेखों का बहुत महत्व है। इनका उपयोग परिपथों की डिजाइन, सिमुलेशन, पीसीबी ले-आउट बनाने एवं उपकरणों को सुधारने में होता है। डिजाइन की प्रक्रिया प्राय: निम्नलिखित क्रम में चलती है- .

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भेद प्रवर्धक

भेद प्रवर्धक का प्रतीकVs+: धनात्मक सप्लाईVs-: ऋणात्मक सप्लाईV+: नॉन-इन्वर्टिंग इनपुटV-: इन्वर्टिंग इनपुटVout: आउटपुट दो बीजेटी से निर्मित क्लासिकल भेद प्रवर्धक जिसे 'लम्बी पूँछ वाला भेद प्रवर्धक' कहते हैं। एक ऑप-ऐम्प से निर्मित भेद प्रवर्धक। तीन ऑप-ऐम्प से निर्मित भेद प्रवर्धक कई मामलों में इसकी अपेक्षा उत्कृष्ट होता है। भेद प्रवर्धक एक विशेष प्रकार का इलेक्ट्रानिक प्रवर्धक है जो दो इनपुट के बीच के अन्तर को प्रवर्धित करता है किन्तु उनके योग (अथवा 'कॉमन मोड सिगनल) को कम करता है। भेद प्रवर्धक में दो इन्पुट \scriptstyle V_\text^- तथा \scriptstyle V_\text^+ होते हैं और एक आउटपुट \scriptstyle V_\text होता है। किसी भेद प्रवर्धक का आउटपुट निम्नलिखित व्यंजक (इक्सप्रेशन) द्वारा लिखा जाता है- जहाँ \scriptstyle Ad इस प्रवर्धक का 'डिफरेंशियल मोड गेन' तथा Ac 'कॉमन मोड गेन' है। आदर्श भेद प्रवर्धक के लिये Ac .

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शक्ति एलेक्ट्रॉनिकी

हिताची की J100 परिवर्तनीय आवृत्ति ड्राइव का कार्ड ठोस-अवस्था-एलेक्ट्रानिकी का उपयोग करके विद्युत शक्ति का परिवर्तन एवं नियंत्रण से सम्बन्धित ज्ञान को शक्ति एलेक्ट्रॉनिकी (Power electronics) कहते हैं। यद्यपि शक्ति एलेक्ट्रानिकी में छोटे-मोटे सभी इलेक्ट्रॉनिक अवयव प्रयुक्त होते हैं, किन्तु निम्नलिखित अवयवय शक्ति एलेक्ट्रानिकी के विशिष्टि पहचान हैं-.

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श्रेणीक्रम और समानांतरक्रम परिपथ

एक श्रेणीक्रम परिपथ बहुत से विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक घटकों या अवयवों को जोड़कर विद्युत परिपथ बनते हैं। परिपथों में घटक दो प्रकार से जोड़े जा सकते हैं: श्रेणीक्रम और समानांतरक्रम में। जिस परिपथ में सभी घटक श्रेणीक्रम में जुड़े हों, उसे श्रेणी परिपथ और जिस परिपथ में सभी घटक समानांतर क्रम में जुड़े हों उसे समानांतर परिपथ कहा जा सकता है। श्रेणी परिपथ में हरेक घटक से समान धारा प्रवाहित होती हैरेस्निक, रॉबर्ट एवं हलिडे, डेविड, फ़िज़िक्स, अध्याय ३२, उदाहरण १(खण्ड I एवं II, संयुक्त संस्करण), जबकि समानांतर परिपथ में हरेक घटक पर समान वोल्टता उपलब्ध होती है।रेस्निक, रॉबर्ट एवं हलिडे, डेविड, फ़िज़िक्स, अध्याय ३२, उदाहरण ४ (खण्ड I एवं II, संयुक्त संस्करण) श्रेणी परिपथों में प्रत्येक घटक का कार्यरत रहना आवश्यक है, अन्यथा परिपथ टूट जायेगा। श्रेणीक्रम परिपथों में कोई भी घटक खराब होने पर भी शेष घटक कार्य करते रहेंगे, किन्तु किसी भी घटक को शॉर्ट सर्किट होने पर पूरा परिपथ शॉर्ट-सर्किट हो सकता है। यदि किसी परिपथ में किसी स्थान पर १० ओम के प्रतिरोध की आवश्यकता है किन्तु वह उपलब्ध नहीं है किन्तु ५-५ ओम के दो प्रतिरोध सुलभ हैं तो इनको श्रेणीक्रम में जोड़कर लगाया जा सकता है। इसी प्रकार यदि २०-२० ओम के दो प्रतिरोध उपलब्ध होने पर उन्हें समान्तरक्रम में जोड़ देने से १० ओम का तुल्य प्रतिरोध प्राप्त हो जाता है। डेढ़-दो वोल्ट सहन कर सकने वाले सैकड़ों बल्बों को श्रेणीक्रम में जोड़कर २३० वोल्ट से घरेलू बिजली से उनको जगमगाया जाता है। कहीं पर २४ वोल्ट की जरूरत हो तो १२ वोल्ट वाली दो बैटरियों को श्रेणीक्रम में जोड़कर २४ वोल्ट प्राप्त किया जा सकता है। परिपथों में भिन्न प्रकार के अवयव भी श्रेणीक्रम या समान्तरक्रम में जुड़े हो सकते हैं उदाहरण के लिये डायोड की रक्षा के लिये उसके श्रेणीक्रम में उपयुक्त मान का फ्यूज लगा दिया जाता है; या पंखे को चालू/बंद करने के लिये उसके श्रेणीक्रम में एक स्विच डाला जाता है। इसी तरह किसी विद्युत-अपघट्टीय संधारित्र में उल्टी दिशा में वोल्टता न लग जाये इसके लिये उसके समान्तरक्रम में एक डायोड (उचित पोलैरिटी में) डाल दिया जाता है। किसी स्थान पर २ अम्पीयर धारा वहन कर सकने वाला डायोड लगाना हो तो १ एम्पीयर धारा वहन कर सकने वाले दो डायोड समान्तरक्रम में लगा देने से भी काम चल सकता है। .

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साईकॉस

साईकॉस (Scicos) गतिक तंत्रों को ग्राफीय ब्लॉक आरेखों की सहायता से मॉडल एवं सिमुलेट करने वाला एक सॉफ्टवेयर पैकेज है। साइकोस के द्वारा मिश्रित गतिक तन्त्रों की गतिकी को मॉडल करके तत्पश्चात उसे कम्पाइल किया जा सकता है जिससे कार्यकारी (executable) कोड प्राप्त हो जाता है। यह मैटलैब के साथ आने वाले सिमूलिंक जैसा ही एक मुक्तस्रोत पैकेज है। आजकल यह साईलैब के साथ एक पैकेज रूप में आता है और www.scicoslab.org से डाउनलोड किया जा सकता है। साईकॉस, कन्ट्रोल सिस्टम्स के विश्लेषण एवं डिजाइन के लिये बहुत उपयोगी है। इसके अलावा संकेत प्रसंस्करण, एवं अन्य तन्त्रों की मॉडलिंग एवं सिमुलेशन के लिये भी बहुत उपयुक्त है। .

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सिमूलिंक

सिमूलिंक ब्लाकों द्वारा राडार डेटा प्रोसेसिंग सिमूलिंक (Simulink), बहुडोमेन वाले गतिज तंत्रों (multidomain dynamic systems) के मॉडलिंग, सिमुलेशन एवं विश्लेषण करने के लिये एक व्यापारिक सॉफ्टवेयर-औजार है। यह द मैथवर्क्स (The MathWorks) द्वारा निर्मित है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह ब्लॉक आरेख पर आधारित ग्राफिक इन्टरफेस प्रदान करता है जिससे मॉडलिंग एवं सिमेशन के लिये किसी प्रोग्राम के लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती और प्रयोक्ता को बहुत सुविधा होती है। इसमें गतिज तन्त्रों में प्रयोग आने वाले विभिन्न अवयवों के लिये ब्लॉक की व्यवस्था है। इसकी ब्लॉक लाइब्रेरी को अपनी आवश्यकता के अनुरूप ढाला जा सकता है। नियंत्रण तंत्र (कन्ट्रोल सिस्टम्स) एवं आंकिक संकेत प्रसंस्करण में सिमुलिंक का बहुतायत में प्रयोग होता है। .

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संकर एकीकृत परिपथ

एक प्रिंटित परिपथ बोर्ड पर नारंगी रंग के एपॉक्सी में गड़ा हुआ संकर परिपथ एक संकर परिपथ जिसमें लेजर से ट्रिम किये गये प्रतिरोध लगे हैं (काले रंग के क्षेत्र) अलग-अलग एलेक्ट्रॉनिक अवयवों (डायोड, ट्रान्जिस्टर, प्रतिरोध, सन्धारित्र आदि) को किसी उपयुक्त आधार (जैसे पीसीबी आदि) पर जोडकर निर्मित लघु आकार के परिपथ को संकर एकीकृत परिपथ (हाइब्रिड इन्टीग्रेटेड सर्किट) कहते हैं। संकर परिपथों को प्रायः ऊपर से एपॉक्सी से ढक दिया जाता है। संकर एकीकृत परिपथ, सामान्य एकीकृत परिपथ जैसे ही उपयोग किये जाते हैं - अर्थात किसी एक अवयव की भांति। अन्तर केवल यह है कि सामान्य एकीकृत परिपथ के अन्दर लगे हुए अवयव एक साथ ही निर्मित किये जाते हैं जबकि संकर एकीकृत परिपथ में प्रयुक्त अवयव पहले से निर्मित अवयव होते हैं जो कहीं और भी उपयोग में लिये जा सकते थे। संकर परिपथ का एक बहुत बड़ा लाभ यह है कि इनमें वे भी अवयव उपयोग में लाये जा सकते हैं जिन्हें सामान्य एकीकृत परिपथों में निर्मित करना कठिन या असम्भव होता है, जैसे बड़े-बड़े सन्धारित्र (कैपेसिटर), क्रिस्टल, तार लपेटकर बने ट्रान्सफार्मर, चोक आदि। .

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स्टार-डेल्टा परिवर्तन

स्टार-डेल्टा परिवर्तन (Y-Δ transform) एक गणितीय तकनीक है जो किसी विद्युत परिपथ के विश्लेषण को सरल बना देता है। इसे Y-delta, वाई-डेल्टा, डेल्टा-स्टार परिवर्तन, स्टार-मेश परिवर्तन, T-Π or T-पाई परिवर्तन आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका यह नाम विद्युत परिपथ की आकृति के आधार पर पड़ा है जो कि रोमन अक्षर Y और ग्रीक अक्षरΔ जैसे दिखती हैं। यह परिपथ परिवर्तन सन् १८९९ में आर्थर एड्विन केनेडी ने प्रकाशित किया था। .

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विद्युत परिपथ

एक सरल विद्युत परिपथ जो एक वोल्टेज स्रोत एवं एक प्रतिरोध से मिलकर बना है ब्रेडबोर्ड के ऊपर बनाया गया एक सरल परिपथ (मल्टीवाइव्रेटर) विद्युत अवयवों (वोल्टेज स्रोत, प्रतिरोध, प्रेरकत्व, संधारित्र एवं कुंजियों आदि) एवं विद्युतयांत्रिक अवयवों (स्विच, मोटर, स्पीकर आदि) का परस्पर संयोजन विद्युत परिपथ (Electric circuit) अथवा विद्युत नेटवर्क (electrical network) कहलाता है। विद्युत परिपथ बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हो सकते हैं; जैसे-विद्युत-शक्ति के उत्पादन, ट्रान्समिसन, वितरण एवं उपभोग का नेटवर्क। बहुत से विद्युत परिपथ प्राय: प्रिन्टेड सर्किट बोर्डों पर संजोये जाते हैं। विद्युत परिपथ अत्यन्त लघु आकार के भी हो सकते हैं; जैसे एकीकृत परिपथ। जब किसी परिपथ में डायोड, ट्रान्जिस्टर या आईसी आदि लगे होते हैं तो उसे एलेक्ट्रॉनिक परिपथ भी कहा जाता है जो कि विद्युत परिपथ का ही एक रूप है। विद्युत परिपथ को परिपथ आरेख (सर्किट डायग्राम) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। प्रायः एक या अधिक बन्द लूप वाले नेटवर्क ही विद्युत परिपथ कहलाते हैं। .

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व्हीटस्टोन सेतु

ह्वीटस्टोन सेतु की मूल संरचना व्हीटस्टोन सेतु (Wheatstone bridge) एक छोटा सा परिपथ है जो मापन में उपयोगी है। इसका आविष्कार सैमुएल हण्टर क्रिस्टी (Samuel Hunter Christie) ने सन् १८३३ में किया था किन्तु चार्ल्स ह्वीटस्टोन ने इसको उन्नत और लोकप्रिय बनाया। अन्य कामों के अतिरिक्त यह किसी अज्ञात प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिये प्रयुक्त होता है। .

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ओम का नियम

जॉर्ज साइमन ओम प्रतिरोध ''R'', के साथ ''V'' विभवान्तर का स्रोत लगाने पर उसमें विद्युत धारा, ''I '' प्रवाहित होती है। ये तीनों राशियाँ ओम के नियम का पालन करती हैं, अर्थात ''V .

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आपरेशनल एम्प्लिफायर

भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के ऑप-एम्प संक्रियात्मक प्रवर्धक का प्रतीक 741 ऑप-एम्प का आन्तरिक परिपथ 741 ऑप-ऐम्प के पिनों का विवरण संक्रियात्मक प्रवर्धक या आपरेशनल एम्प्लिफायर (या, ऑप-ऐम्प) एक एकीकृत परिपथ (आइ सी) के रूप में निर्मित DC-कपल्ड (DC-coupled), अत्यधिक-लब्धि (गेन) वाला वोल्टेज एम्प्लिफायर है। इसमें प्राय: डिफरेंसियल इनपुट और एकमेव आउटपुट होता है। आधुनिक एलेक्ट्रानिकी में इसके अनेकानेक उपयोग हैं। प्राय: इसे ऋणात्मक (निगेटिव) फीडबैक देकर अम्प्लिफायर आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है या धनात्मक (पॉजिटिव) फीडबैक देकर आसिलेटर आदि बनाये जाते हैं। इसका इनपुट इम्पीडेंस बहुत अधिक तथा आउटपुट इम्पीडेंस बहुत कम होता है। .

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इलेक्ट्रानिक परिपथ

घरों के पंखे, बल्ब आदि की शक्ति नियंत्रित करने वाला परिपथ; इसमें ट्रायक का उपयोग किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (electronic circuit) वह परिपथ है जिसमें प्रतिरोधक, संधारित्र, ट्रांजिस्टर, प्रेरकत्व, डायोड आदि तार से या बोर्ड पर बने चालक मार्गों से जुड़े हों। इसके मुख्य दो प्रकार हैं- एनालाग परिपथ और डिजिटल परिपथ। जिस परिप्थ में एनालॉग और डिजिटल दोनों का मिश्रण होता है उसे मिश्रि परिपथ (मिक्स्ड सर्किट) या संकर परिपथ (हाइब्रिड सर्किट) कहते हैं। श्रेणी:विद्युत परिपथ *.

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इलेक्ट्रॉनिक परिपथ सिमुलेशन

सर्किटलॉजिक्स का उपयोग करते हुए परिपथ का विश्लेषण एवं वेवफॉर्म का प्रदर्शन किसी परिपथ के गणितीय मॉडल का उपयोग करके उसके व्यवहार के बारे में बताना इलेक्ट्रॉनिक परिपथ सिमुलेशन (Electronic circuit simulation) कहलाता है। आजकल कम्प्यूटर सोफ़्टवेयर इस काम के लिए उपयोग किए जाते हैं। अधिकांश महाविद्यालय और विश्वविद्यालय इस तरह से सॉफ्टवेयरों का उपयोग करते हुए छात्रों कोइलेक्ट्रॉनिकी की शिक्षा देते हैं क्योंकि ये सॉफ़्तवेयर अत्यन्त शुद्ध परिणाम देते हैं और अत्यन्त शीघ्र परिणाम देते हैं। .

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इंस्ट्रुमेंटेशन एम्प्लिफायर

तीन ऑप-ऐम्प का उपयोग करके निर्मित इंस्ट्रुमेंटेशन एम्प्लिफायर का स्कीमैटिक डायग्रामU_a .

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किरचॉफ के परिपथ के नियम

गुस्टाव किरचॉफ सन् १८४५ में गुस्ताव किरचॉफ (या, गुस्ताव किरखॉफ) ने विद्युत परिपथों में वोल्टता एवं धारा सम्बन्धी दो नियम प्रतिपादित किये। ये दोनो नियम संयुक्त रूप से किरचॉफ के परिपथ के नियम कहलाते हैं। ये नियम विद्युत परिपथों के लिये वस्तुत: आवेश संरक्षण एवं उर्जा संरक्षण के नियमों के भिन्न रूप हैं। ये नियम वैद्युत इंजीनियरी से सम्बन्धित गणनाओं के आधार हैं और बहुतायत में प्रयोग होते हैं। ये दोनो नियम मैक्सवेल के समीकरणों से सीधे व्युत्पन्न किये जा सकते हैं किन्तु इतिहास यह है कि किरचॉफ ने इन्हें मैक्सवेल से पहले प्रतिपादित कर दिया था। .

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अध्यारोपण प्रमेय

अध्यारोपण प्रमेय (superposition theorem) सभी रेखीय तन्त्रों पर लागू होता है। विद्युत परिपथों के लिये अध्यारोपण के सिद्धान्त के अनुसार किसी रेखीय परिपथ के किसी शाखा में कुल धारा का मान प्रत्येक स्रोत द्वारा, अकेले कार्य करते हुए, उस शाखा में प्रवाहित धाराओं के बीजगणितीय योग के बराबर होती है। किसी एक स्रोत का योगदान निकालने के लिये अन्य स्रोतों को निष्क्रिय करना आवश्यक है। इसके लिये -.

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अनुरूप एलेक्ट्रॉनिकी

अनुरूप एलेक्ट्रॉनिकी (Analogue electronics / analog electronics) के अन्तर्गत वे एलेक्ट्रानिक प्रणालियाँ आतिं हैं जिनमें पाये जाने वाले संकेत क्रमश: या सतत बदलते हैं (न कि बहुत तेजी से, एकाएक)। इसके विपरीत आंकिक एलेक्ट्रॉनिकी में पाये जाने वाले संकेत केवल द्विस्तरीय होते हैं - शून्य या एक। एलेक्ट्रानिकी के आरम्भिक दिनों में अधिकांश प्रणालियाँ (जैसे रेडियो, टेलीफोन, आदि) अनुरूप एलेक्ट्रानिक प्रणालियाँ थीं किन्तु अब अधिकांश प्रणालियाँ या तो डिजिटल हो चुकीं हैं या शीघ्र होने वाली हैं। .

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अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी

अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी या डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स इलेक्ट्रॉनिक्स की एक शाखा है जिसमें विद्युत संकेत अंकीय होते हैं। अंकीय संकेत बहुत तरह के हो सकते हैं किन्तु बाइनरी डिजिटल संकेत सबसे अधिक उपयोग में आते हैं। शून्य/एक, ऑन/ऑफ, हाँ/नहीं, लो/हाई आदि बाइनरी संकेतों के कुछ उदाहरण हैं। जबसे एकीकृत परिपथों (इन्टीग्रेटेड सर्किट) का प्रादुर्भाव हुआ है और एक छोटी सी चिप में लाखों करोंड़ों इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ भरी जाने लगीं हैं तब से डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है। आधुनिक व्यक्तिगत कम्प्यूटर (पीसी) तथा सेल-फोन, डिजिटल कैमरा आदि डिजिटल इलेक्ट्रॉनिकी की देन हैं। लकडी की तख्ती पर हाथ से बुनी हुई एक द्विआधारी घड़ी एक औद्योगिक अंकीय नियंत्रक इनटेल 80486DX2 माइक्रोप्रोसेसर अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी, या सूक्ष्माड़विक आंकिक पद्धति ऐसी प्रणाली है जो विद्युत संकेतों को, रेखीय स्तर के एक निरंतर पट्टियों के बजाए एक अलग अलग पट्टियों की श्रृंखला के रूप में दर्शाती है। इस पट्टी के सभी स्तर संकेतों की एक ही अवस्था को दर्शाते हैं। संकेतो की इस पृथकता की वजह से निर्माण सहनशीलता के काऱण रेखीय संकेतो के स्तर में आये अपेक्षाकृत छोटे बदलाव अलग आवरण नहीं छोड़ते है। जिसके परिणाम स्वरुप संकेतो की अवस्था को महसूस करने वाला परिपथ इन्हे नजरअंदाज कर देता है। ज्यादातर मामलों में संकेतो की अवस्था की संख्या दो होती है और इन दो अवस्थाओं को दो वोल्टेज स्तरों द्वारा दर्शाया जाता है: प्रयोग में आपूर्ति वोल्टेज के आधार पर एक व दूसरा (आमतौर पर "जमीनी" या शून्य वोल्ट के रूप में कहा जाता है)| 1 उच्च स्तर पर होता है व 0 निम्न स्तर पर। अक्सर ये दोनों स्तर "लो" और "हाई" के रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं। आंकिक तकनीक का मूल लाभ इस तथ्य पर आधारित है कि संकेतो की एक सतत श्रृंखला को पुनरुत्पादित करने के बजाए, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को संकेतो की ० या १ जैसे किसी ज्ञात अवस्था में भेजना ज्यादा आसान होता है। डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स आम तौर पर लॉजिक गेट्स के वृहद संयोजन व बूलियन तर्क प्रकार्य के सरल इलेक्ट्रोनिक्स से बनाया जाता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

एलेक्ट्रॉनिक परिपथ, परिपथ, वैद्युत नेटवर्क, वैद्युत परिपथ।

विद्युत परिपथ ओं को परिपथ आरेख से क्यों निरूपित किया जाता है?

Solution : विद्युत परिपथ विभिन्न विद्युत अवयवों को व्यवस्था अनुरूप जोड़कर बनाया जाता है। इस परिपथ का आरेख सुविधाजनक ढंग से खींचने (बनाने) के लिए ही विद्युत अवयवों को परिपथ में प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जाता है।

परिपथ आरेख से आप क्या समझते हैं?

विद्युत परिपथों का प्रायः ऐसा व्यवस्था आरेख खींचना सुविधाजनक होता है जिसमें परिपथ के विभिन्न अवयवों को सुविधाजनक प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जाता है। सारणी 12.1 में सामान्य उपयोग में आने वाले कुछ वैद्युत अवयवों को निरूपित करने वाले रूढ़ प्रतीक दिए गए हैं

विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है इसके घटक का नाम लिखें?

Solution : विधुत धारा के बहने के पथ को विधुत परिपथ कहते है । इसके प्रमुख घटक है -<br> (i ) विधुत स्त्रोत ( बैटरी या सेल ) <br>(ii ) चालक<br>(iii ) प्रतिरोध<br>(iv ) स्विच (कुंजी) तथा<br> (v ) दूसरे अनेक उपकरण जो इससे जुड़े होते है ।

विद्युत परिपथ कब पूरा हुआ कहलाता है?

विद्युत् धारा प्रवाहित होने पर विद्युत् - बल्ब दीप्त हो उठता है। बंद विद्युत् - परिपथ में विद्युत् - धारा, विद्युत् सेल के एक टर्मिनल से दूसरे टर्मिनल तक प्रवाहित होती है। - स्विच एक सरल युक्ति है जो विद्युत् धारा के प्रवाह को रोकने या प्रारंभ करने के लिए परिपथ को तोड़ता अथवा पूरा करता है ।