कुंडलिनी शब्द संस्कृत के कुंडल शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है घुमावदार। मान्यता है कि कुंडलिनी शक्ति प्रत्येक व्यक्ति के मूलाधार चक्र में सर्प के समान कुंडली मारकर सोयी रहती है, जिसे हठयोग... Show
Aparajitaहिन्दुस्तान फीचर टीम,नई दिल्ली Sat, 30 Mar 2019 06:09 PM हमें फॉलो करें ऐप पर पढ़ें कुंडलिनी शब्द संस्कृत के कुंडल शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है घुमावदार। मान्यता है कि कुंडलिनी शक्ति प्रत्येक व्यक्ति के मूलाधार चक्र में सर्प के समान कुंडली मारकर सोयी रहती है, जिसे हठयोग साधनाओं से जगाना होता है। इसे जगाने में आप जितने सफल होते जाएंगे, आपका संपूर्ण स्वास्थ्य उतना बेहतर होता जाएगा। कुंडलिनी जागृत करने के उपायों की जानकारी दे रहे हैं योगाचार्य कौशल कुमार कुंडलिनी जागरण की कला को अच्छी तरह समझने के लिए सबसे पहले हमें हठयोग के विषय में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करनी होगी। हठयोग योग का एक प्रमुख प्रकार है। हठयोग में हठ शब्द ह और ठ दो वर्णों के योग से बना है, जिसमें पहले का अर्थ सूर्य और दूसरे का चन्द्र होता है। सूर्य और चन्द्र के ऐक्य को ही हठयोग कहा जाता है। हठयोग ग्रंथों के अनुसार हमारे शरीर में 7 चक्र, 72 हजार नाड़ियां और 10 प्रकार की वायु या प्राण होते हैं। शरीर में मूलत: सात मुख्य चक्र होते हैं, जो मेरुदंड के मध्य से गुजरने वाली सुषुम्ना नाड़ी में स्थित हैं। सुषुम्ना मूलाधार चक्र से आरम्भ होकर सिर के शीर्ष भाग तक जाती है। ये चक्र नाड़ियों से संबद्ध होते हैं। चक्रों को प्रतीकात्मक रूप से कमल के फूल के रूप में दिखाते हैं। सप्त चक्रों का वर्णन स्वाधिष्ठान चक्र मणिपुर चक्र अनाहत चक्र विशुद्धि चक्र आज्ञा चक्र सहस्रार चक्र नाड़ियां इड़ा नाड़ी बायीं नासिका तथा पिंगला नाड़ी दायीं नासिका से संबद्ध है। इड़ा नाड़ी मूलाधार के बाएं भाग से निकलकर प्रत्येक चक्र को पार करते हुए मेरुदंड में सर्पिल गति से ऊपर चढ़ती है और आज्ञा चक्र के बाएं भाग में इसका अंत होता है। पिंगला नाड़ी मूलाधार के दाएं भाग से निकलकर इड़ा की विपरीत दिशा में सर्पिल गति से ऊपर चढ़ती हुई आज्ञा चक्र के दाएं भाग में समाप्त होती है। इड़ा निष्क्रिय, अंतर्मुखी एवं नारी जातीय तथा चन्द्र नाड़ी का प्रतीक है। पिंगला को सूर्य नाड़ी भी कहते हैं। इन दोनों के बीच में सुषुम्ना नाड़ी है, जो मेरुदंड के केंद्र में स्थित आध्यात्मिक मार्ग है। इसका आरंभ मूलाधार चक्र तथा अंत सहस्रार में होता है। इसी सुषुम्ना नाड़ी के आरंभ बिंदु पर इसका मार्ग अवरुद्ध किए हुए कुंडलिनी शक्ति सोयी पड़ी है। इस शक्ति के जग जाने पर शक्ति सुषुम्ना, जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहते हैं, में प्रवेश कर सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्रार चक्र पर शिव से मिल जाती है। जब बायीं नासिका में श्वास का प्रवाह अधिक होता है, तो इड़ा नाड़ी, जो हमारी मानसिक शक्ति का प्रतीक है, की प्रधानता रहती है। इसके विपरीत जब दायीं नासिका में श्वास का अधिक प्रवाह होता है, तो यह शारीरिक शक्ति का परिचायक है तथा यह शरीर में ताप, बहिर्मुखता को दर्शाता है। जब दोनों नासिकाओं में प्रवाह समान हो, तो सुषुम्ना का प्राधान्य रहता है। इड़ा एवं पिंगला में संतुलन लाने के लिए शरीर को पहले षटकर्म, आसन, प्राणायाम, बंध तथा मुद्रा द्वारा शुद्ध करना होता है। जब इड़ा एवं पिंगला नाड़ियां शुद्ध तथा संतुलित हो जाती हैं, तथा मन नियंत्रण में आ जाता है, सुषुम्ना नाड़ी प्रवाहित होने लगती है। योग में सफलता के लिए सुषुम्ना का प्रवाहित होना आवश्यक है। यदि पिंगला प्रवाहित हो रही है, तो शरीर अशांत तथा अति सक्रियता बनी रहेगी, यदि इड़ा प्रवाहित हो रही है, तो मन अति क्रियाशील और बेचैन रहता है। जब सुषुम्ना प्रवाहित होती है, तब कुंडलिनी जाग्रत होकर चक्रों को भेदती हुई ऊपर की ओर प्राण हठयोग ग्रंथों में प्राणायाम के अभ्यास की चर्चा की गई है। इनके अभ्यास से प्राण यानी ऊर्जा शक्ति पर नियंत्रण या नियमन संभव हो जाता है। प्राण वायु को अपान वायु में तथा अपान को प्राणवायु में हवन करने से भी कुंडलिनी शक्ति जागृत होकर सुषुम्ना के अंदर प्रवेश करती है और चक्रों का भेदन करती हुई सहस्रार चक्र में स्थित कराने में सहायक सिद्ध होती है। कुंडलिनी जागृत करने हेतु मुख्य प्राणायाम हैं-सूर्यभेदी, उज्जायी, शीतली, भ्त्रिरका, भ्रामरी, मूर्च्छ, प्लाविनी, नाड़ीशोधन आदि। योग के कितने चक्र होते हैं?कुण्डलिनी योग क्रिया के सबसे ज़रूरी हिस्से हैं चक्र, नाड़ियां और प्राण (वायु)। हमारे शरीर में सात चक्र हैं। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा चक्र, सहस्रार चक्र। ये प्राणशक्ति के केंद्र हैं।
7 चक्र क्या होते हैं?हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं, मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार। नवरात्रि में हर दिन एक विशेष चक्र को जाग्रत किया जाता है, जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। हम अगर इस ऊर्जा का ठीक प्रबंधन कर लें तो असाधारण सफलता भी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
चक्र कितने प्रकार के होते हैं?आइए जानते हैं इन चक्रों के बारे में.. मूलाधार चक्र. स्वाधिष्ठान चक्र. मणिपुर चक्र. अनाहत चक्र. विशुद्ध चक्र. आज्ञा चक्र. सहस्त्रार चक्र. शरीर में पहला चक्र कौन सा है?मूलाधार चक्र
मूल या जड़ चक्र शरीर का पहला चक्र है और रीढ़ के आधार में स्थित है। इसका काम आपके मन, शरीर और आत्मा को पृथ्वी से जोड़ना है।
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