आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Class 10 Hindi Solutions नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग केप्टन क्यों कहते थे ?
उत्तर :
चश्मेवाला एक सच्चा देशभक्त था। न तो वह कोई सेनानी था न नेताजी का साथी था न आज़ाद हिन्द फौज का सिपाही। फिर भी लोग उसकी देशभक्ति की भावना को देख उसे केप्टन नाम से संबोधित करते थे। केप्टन को नेताजी की मूर्ति बिना चश्मेवाली देखकर आहत करती थी। वह बार-बार अनेक तरह के चश्मे पहनाकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करता था। उसकी देशभक्ति की भावना को देखकर लोग उसे केप्टन कहकर बुलाते थे।

प्रश्न 2.
हालदार साहब ने पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था बाद में तुरंत रोकने को कहा
क. हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे ?
उत्तर :
हालदार साहब को यह लगा कि केप्टन की मृत्यु के बाद अब कस्बे के मुख्य बाजार के चौराहे पर लगी नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगा होगा। मूर्ति पर चश्मा पहनानेवाला केप्टन मर चुका था। इसलिए हालदार साहब मायूस हो गए थे।

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ख. मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है ?
उत्तर :
मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा देख यह उम्मीद जगाता है कि हमारी आनेवाली पीढ़ी में भी देशप्रेम की भावना अब भी जीवित है। हालदार के अनुसार सरकंडे का चश्मा बच्चे बनाते हैं। हो सकता है किसी बच्चे ने सरकंडे का चश्मा बनाकर मूर्ति पर पहना दिया हो, यह इस बात की उम्मीद जगाता है कि हमारे देश के बच्चों में भी देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी है।

ग. हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे ?
उत्तर :
हालदार साहब ने मूर्ति पर जब सरकंडे का चश्मा देखा तो वो भावुक हो गए। इतनी-सी बात ने यह सिद्ध कर दिया था कि इस कस्बे में अब भी
केप्टन की तरह देशभक्त मौजूद हैं जो अपने कर्तव्यों को भलिभाँति समझते हैं। इसलिए हालदार साहब भावुक हो उठे थे।

प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट कीजिए –
‘बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर हंसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती हैं।’
उत्तर :
हालदार साहब लोगों में विलुप्त होती देशभक्ति की भावना से दु:खी है। केप्टन की मृत्यु पर लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा है। यही हाल हमारे समूचे देश का है। देश के जवान अपनी सारी जिन्दगी देश को समर्पित कर देते हैं अपना घर-बार-गृहस्थी यहाँ तक की जिंदगी भी समर्पित कर देते हैं किन्तु लोगों को ऐसे देशभक्त सैनिकों की कोई परवाह नहीं, उल्टे वे उनका मजाक उड़ाते हैं।

जैसे केप्टन का मजाक पानवाले ने उड़ाया था । लोग अपने देश के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते । लालच में आकर स्वयं को भी बेचने को तैयार हो जाते हैं। देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो अपने स्वार्थ के लिए जीते हैं और देशभक्त वीरों को भूल चुके हैं।

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प्रश्न 4.
पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
पानवाला व्यक्ति अत्यंत खुशमिज़ाज है और वह व्यंग्यात्मक भाषा में बात करता है। कस्बे के चौराहे पर उसकी पान की दुकान है। वह हमेशा पान उसा रहता है। दिखने में काला तथा मोटा है। उसकी तोंद बड़ी है। उसके दात पान खाने के कारण लाल काले हैं। वह वाक्पटू भी है। केप्टन के विषय में पूछने पर वह उसका उपहास करता नजर आता है। भावुक भी है क्योंकि जब केप्टन की मृत्यु हो जाती है और हालदार साहब उसके बारे में पूछते हैं तो वह उदास हो जाता है और उसकी आँखों में आँसू भी आ जाते हैं।

प्रश्न 5.
‘वो लंगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल।’
केप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर :
उपरोक्त उक्ति पानवाले ने केप्टन के लिए कहा है। केप्टन एक बूढा मरियल-सा लंगड़ा व्यक्ति था जिसमें देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। वह शरीर से तो देश की सेवा नहीं कर सकता था क्योंकि लंगड़ा था। किन्तु नेताजी की आखों पर चश्मे का न होना उसे आहत करता था। अत: अपने बेचे जानेवाले चश्मे में से एक मूर्ति को पहना देता था। यह छोटा सा कार्य भी देशप्रेम की भावना को दर्शाती है। अत: पानवाले का यह वाक्य उचित नहीं है। केप्टन ने एक तरफ मूर्ति के अधूरेपन को ढका तो दूसरी ओर कस्बे की कमी की ओर परदा डाला। यों केप्टन का यह कार्य सच्चे देशभक्त से कम नहीं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर संकेत करते हैं?
क. हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रूकते और नेताजी को निहारते ।
उत्तर :
हालदार साहब नेताजी का सम्मान करते थे। इसलिए वे चौराहे पर रूकते थे और निहारते थे। वे स्वयं एक देशभक्त थे।

ख. पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुंह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आखें पोंछता हुआ बोला – साहब केप्टन मर गया।
उत्तर :
पानवाला केप्टन के देश-प्रेम को पागलपन समझता है, फिर भी वह कैप्टन की मृत्यु से उदास हो जाता है। इनसे पानवाले की भावुकता का पता चलता है।

ग. केप्टन बार-बार मर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर :
इससे केप्टन की देशभक्ति की भावना का पता चलता है।

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प्रश्न 7.
जब तक हालदार ने केप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर :
जब तक हालदार साहब ने केप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर यह चित्र रहा होगा कि केप्टन सेना का रिटायर्ड जवान होगा। या फिर नेताजी की आज़ाद हिंद फौज में केप्टन रहा होगा तभी नेताजी के प्रति उसके मन में इतनी श्रद्धा भक्ति है।

प्रश्न 8.
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है
क. इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
उत्तर :
इस तरह की मूर्ति लगाने के उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं

  1. मूर्ति से प्रेरित होकर उसके जैसा महान कार्य करने के लिए संकल्प करें।
  2. देश की जनता को मूर्ति जिसकी भी हो, उसके कार्यों के विषय में जानकारी प्राप्त हैं।
  3. जिस महापुरुष की मूर्ति है समाज में, घर परिवार में उसके महत्त्वपूर्ण कार्यों के विषय में चर्चा करें ताकि घर के लोग भी उस महापुरुष की मूर्ति के महत्त्व को समझें।

ख. आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर :
हम अपने इलाके के चौराहे पर सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति स्थापित करना चाहेंगे। वे भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी के बाद वे भारत के प्रथम गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे। वे सच्चे देश प्रेमी थे। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता के बाद वहाँ की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी थी। वे सच्चे अर्थ में भारत के सरदार थे। आजादी के बाद बिखर रियासतों के एकीकरण में सरदार की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। हमें ऐसे नैतृत्व करनेवाले नेता की आज जरूरत है। इसलिए हम सरदारजी की मूर्ति अपने इलाके के चौराहे पर लगाना चाहते हैं।

ग. उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए?
उत्तर :
हमने जिसकी मूर्ति अपने चौराहे पर लगाई है लोगों को उनके कार्यों के विषय में अवगत कराएंगे। मूर्ति के रख-रखाव पर पूरा ध्यान देंगे। लोग – उस मूर्ति स्वरूप विस्थापित महापुरुष को राष्ट्रीय गौरव के रूप में जाने, उनका सम्मान करें। किसी भी स्थिति में मूर्ति को नुकसान न पहुंचाएं तथा उनका सदैव सम्मान करें। इन सबका ध्यान रखना और उनके द्वारा किए गए कार्यों का अनुशरण करना हमारा उत्तरयादित्व होगा।

प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फौजी ही देशप्रेम का परिचय नहीं देते । हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देशप्रेम प्रकट करते हैं, जैसे सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान न पहुंचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि । अपने जीवन जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उस पर अमल भी कीजिए।
उत्तरः
सीमा पर तैनात फौजी लोग ही देशप्रेमी है, यह जरूरी नहीं । भारत देश में रहनेवाले नागरिक अपने देश के भीतर या देश के बाहर रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए देश के प्रति अपनी निष्ठा, अपनी ईमानदारी प्रकट कर देश प्रेम का परिचय दे सकता है। देश को स्वच्छ रखना, गंदगी न फैलाना, साम्प्रदायिक सद्भावना बनाए रखना, नियमों, कर्तव्यों का पालन करना, सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान न करना देश की एकता व अखण्डता बनाए रखना ये सभी देशप्रेम का परिचायक है।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिन्दी में लिखिए।
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए, तो केप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया । उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर :
मानो कोई ग्राहक आ गया। उसको चौड़ा फ्रेम चाहिए तो केप्टन कहाँ से लाएगा? तो उसे मूर्तिवाला फ्रेम दे दिया और मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा दिया।

प्रश्न 11.
“भई खूब । क्या आइडिया है।” इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताई कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर :
एक भाषा में जब दूसरी भाषा के शब्द यथा स्थान आते हैं तो भाषा में सहज लचीलापन आ जाता है। भाषा में दुरूहता नहीं रहती। व्यक्ति जो कुछ कहना चाहता है वो स्पष्ट हो जाता है। इससे भावों को समझने में सरलता रहती है। दूसरे शब्द भाषा में इस प्रकार समा जाते हैं मानों वे उसी भाषा के शब्द हो । प्रस्तुत वाक्य में आइडिया अंग्रेजी शब्द है। हिन्दी भाषा में इस शब्द के प्रयोग करने पर कहीं ऐसा नहीं प्रतीत होता कि यह अंग्रेजी भाषा का शब्द हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों से निपात छोटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए :
क. नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी।
निपात – ‘तो’ ‘भी’।
वाक्य : भजनमंडली तो आज भी हमारे घर आ रही है।

ख. किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
निपात : ‘ही’।
वाक्य : दिल्ली तो मैं ही जाऊंगी। और कोई नहीं।

ग. यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
निपात : ‘तो’
वाक्य : राहुल तो गया था लेकिन उसका भाई घर पर था।

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घ. हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
निपात : “भी”
वाक्य : सोनिया मेम अब भी उसी विद्यालय में पढ़ाती हैं।

ङ. दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे।
निपात : ‘तक’
वाक्य : कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है और रहेगा।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए :
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था ।
(ग) पानवाले ने साफ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारा ।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
उत्तर :
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले से नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ बता दिया गया था।
(घ) ड्राईवर द्वारा जोर से ब्रेक मारा गया था।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया।

प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए –
जैसे – अब चलते हैं। – अब चला जाय।
(क) माँ बैठ नहीं सकती
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।
उत्तर :
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाय।
(घ) मा से रोया भी नहीं जाता।

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Hindi Digest Std 10 GSEB नेताजी का चश्मा Important Questions and Answers

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया –
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखें।
उत्तर :
क. मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार सोच रहा होगा कि वह इस कार्य को बड़ी मेहनत और लगन से करेगा। मूर्ति बनाते समय वह यह ध्यान रखेगा कि मूर्ति हू-ब-हू सुभाषचंद्र जैसी ही बननी चाहिए। इस मूर्ति के निर्माण के बाद उसकी यश प्रतिष्ठा बढ़ेगी। कुछ ऐसा भाव मूर्तिकार के मन में रहा होगा।

ख. हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों को विद्यालय के किसी समारोह में राष्ट्रीय त्यौहारों के अवसर पर समाज के किसी कार्यक्रम में बुलाकर सम्मानित करेंगे। उनका विस्तृत परिचय देंगे ताकि सभी लोग उनके कार्यों से अवगत हैं। ऐसे विशिष्ट लोगों को पुरस्कार या सम्मान देकर उनके कार्यों को पुरस्कृत करेंगे। इससे इनका मनोबल बढ़ेगा और ये और भी आगे बढ़ सकेंगे।

प्रश्न 2.
आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण छात्र हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएं, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।
उत्तर :
शिक्षा निर्देशक,
शिक्षा निर्देशालय,
नया सचिवालय, गांधीनगर
10 जुलाई, 2018
विषय : शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण छात्रों के लिए उचित व्यवस्था हेतु प्रार्थना पत्र ।

महोदय,
निवेदन है कि हमारे विद्यालय में शारीरिक रूप से अपंग छात्र पढ़ते हैं। उनकी इच्छा शक्ति प्रबल है किन्तु शारीरिक रूप से विपन्न होने के कारण उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर यदि उनके अनुरूप कुछ सुविधा मुहैया कराए जाए तो नि:संदेह उनकी कठिनाइयों में कमी आ सकती है। विद्यालय का कक्ष नीचे लाया जाय, कक्षा में कुछ छात्रों को बेंच पर बैठने में असुविधा होती हैं, उनके लिए गद्दे आदि का इंतजाम किया जाए। तो इन शारीरिक रूप से विपन्न छात्रों की कठिनाइयों का काम किया जा सकेगा।
आशा है कि आप उचित कार्यवाही करेंगे।

धन्यवाद,
भवदीय,
अनुष्का शर्मा,
कक्षा : 10-B
सरस्वती विद्यामंदिर, अहमदाबाद-382450

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प्रश्न 3.
केप्टन फेरी लगाता था ।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रति-दिन की बहुत-सी जरूरतों को आसान बना देते हैं । फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक सम्पादकीय लेख तैयार कीजिए।
सम्पादकीय लेख :
फेरीवालों का समाज में कोई स्थान नहीं है। फेरीवाले का कोई एक जगह स्थायी न होने पर वे लोग इधर-से उधर भटकते रहते हैं। इस कारण लोग इन पर विश्वास भी नहीं करते। धनाभाव के कारण इनके पास अपनी कोई निश्चित जगह नहीं है। वे साइकिल या लारी लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं। फेरीवालों को लोग संदिग्ध निगाहों से देखते हैं। समाज में इन्हें सम्माननीय स्थान नहीं मिलता।

प्रश्न 4.
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवायें हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर :
हमारे घर के आसपास नगरपालिका ने जो कार्य करवाएँ है उनकी सूची निम्नानुसार है

  1. सोसायटी की कच्ची सड़कों को आर.सी.सी. में तबदील करवाया।
  2. स्ट्रीट लाइट लगवाया है।
  3. स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करवाई है।
  4. नजदीक में ही पार्क बनवाया है ताकि बच्चे खेल सकें।
  5. जगह-जगह कूड़ेदान की व्यवस्था करवाई हैं।
  6. बड़े-बुजुर्गों के बैठने के लिए पक्की सीटें लगवाई हैं।
  7. प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की व्यवस्था करवाई है।

हमारी भूमिका : हमारा यह कर्तव्य है कि नगरपालिका जो कार्य करती है उसमें हम किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें। जितना हो सके उतना नगरपालिका द्वारा किए जा रहे कार्यों में अपना योगदान दें तथा अन्य लोगों को भी अपना सहयोग देने के लिए प्रेरित करें।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार कस्बे का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। जिसे पक्का मकान कहा जा सके वैसे कुछ ही मकान वहाँ थे। जिसे बाजार कहा जा सके वैसा एक ही बाजार वहाँ था। इस कस्बे में एक लड़कों के लिए तथा एक लड़कियों के लिए स्कूल था। सीमेंट का एक कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका थी।

प्रश्न 2.
नगरपालिका क्या कार्य करती थी ?
उत्तर :
इस कस्बे के लिए नगरपालिका कुछ-न-कुछ कार्य करती रहती थी। कभी कोई पक्की सड़क बनवाती थी तो कभी पेशाबघर बनवा दिया, कभी कबूतरों के लिए छतरी लगवा दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया। कभी बाजार के चौराहे पर सुभाषबाबू की प्रतिमा लगवा दी।

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प्रश्न 3.
नेताजी की मूर्ति कैसी थी?
उत्तर :
मूर्ति संगमरमर की बनी थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फूट ऊँची मूर्ति थी। मूर्ति सुंदर और मासूम तथा कमसिन लग रही थी। मूर्ति को फौजी वर्दी के कपड़ों में देख तुम मुझे खून दो का नारा याद आने लगता था।

प्रश्न 4.
मूर्ति को देखते ही किसकी कमी खटकती थी ?
उत्तर :
मूर्ति को देखते ही एक चीज की कमी खटकती थी, वह थी नेताजी की मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं था। चश्मा था लेकिन संगमरमर का नहीं
था। एक चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था।

प्रश्न 5.
मूर्ति को देखकर हालदार साहब किस निष्कर्ष पर पहुंचे ?
उत्तर :
मूर्ति को देखकर हालदार साहब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जाना चाहिए। महत्त्व मूर्ति के रूप, रंग या कद का नहीं है, देशभक्ति की भावना का है।

प्रश्न 6.
हालदार साहब की क्या आदत पड़ गई थी ?
उत्तर :
हालदार साहब जब भी कस्बे के पास से गुजरते थे तो कस्बे के चौराहे पर रुकना, पानवाले की दुकान से पान लेकर खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना उनकी आदत बन गई थी।

प्रश्न 7.
केप्टन क्या कार्य करता था?
उत्तर :
केप्टन चश्मा बेचने का व्यवसाय करता था। उसके पास चश्मा बेचने के लिए कोई स्थायी दुकान या जगह नहीं । इसलिए वह घूम-घूमकर चश्मा बेचा करता था।

प्रश्न 8.
नेताजी की मूर्ति पर किस प्रकार के चश्मे लगे होते थे ?
उत्तर :
नेताजी की मूर्ति पर तरह-तरह के चश्मे लगे होते थे। कभी गोल, कभी चौकोर, कभी लाल, कभी काला, कभी धूप का चश्मा तो कभी बड़े काँचोवाला गोगो चश्मा । यों केप्टन उन्हें तरह-तरह के चश्मे पहनाया करता था।

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प्रश्न 9.
नेताजी की आखों पर चश्मा क्यों नहीं था?
उत्तर :
नेताजी की आँखों पर तरह-तरह के चश्मे पहनानेवाला केप्टन मर चुका था इसलिए उनकी आँखों पर किसी प्रकार का कोई चश्मा नहीं था।

प्रश्न 10.
हालदार साहब क्यों चीख उठे ?
उत्तर :
केप्टन के मरने के बाद नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं था। हालदार साहब ने सोचा कि वे इस बार मूर्ति की तरफ नहीं देखेंगे किन्तु आदतन उनकी नजर मूर्ति पर पड़ी। उन्होंने नेताजी की आखों पर सरकंडे का बना चश्मा लगा हुआ देखा । इस कारण वे चीख उठे और जीप रोकने को कहा।

दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
हालदार साहब केप्टन के प्रति सहानुभूति क्यों रखते थे?
उत्तर :
जब हालदार साहब को पता चला कि नेताजी का चश्मा केप्टन बदलता है तो उन्होंने कल्पना की कि केप्टन शायद कोई फौजी व्यक्ति होगा। किन्तु जब हालदार ने केप्टन को देखा तो अवाक रह गए। वह एक मरियल-सा लंगड़ा व्यक्ति है और आजीविका के लिए फेरी लगाता है। एक हाथ में संदूकची और दूसरे हाथ में चश्मे से टगे बॉस को लेकर फेरी लगाता है।

उसके पास कोई स्थाई दुकान भी नहीं है। यह देखकर हालदार साहब को केप्टन के प्रति सहानुभूति हो गई । वे उसका सम्मान करने लगे। उसकी देशभक्ति पर वे फिदा हो गए जो नेताजी की मूर्ति पर तरह-तरह के चश्मे बदलकर अपनी देशभक्ति का परिचय दे रहा था।

प्रश्न 2.
जिस व्यक्ति ने नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का चश्मा लगाया होगा, उसे आप किस तरह का व्यक्ति मानते हैं और क्यों ?
अथवा
नेताजी की मूर्ति की आंखों पर सरकंडे का चश्मा लगानेवाले व्यक्ति के विषय में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
जिस किसी व्यक्ति ने नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का चश्मा लगाया होगा वह निश्चित तौर पर एक सच्चा देशभक्त रहा होगा। उसमें देशभक्ति की भावना प्रबल रूप से विद्यमान रही होगी तभी वह नेताजी की आँखों पर चश्मा न देख पाया होगा। इसलिए उसने सरकंडे का चश्मा बनाकर नेताजी की मूर्ति पर पहना दिया होगा ।

वह व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों के प्रति सजग होगा। वह देश के स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति इज्जत व सम्मान की भावना रखता होगा। उस व्यक्ति ने जब नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के देखा होगा तो उसे वह मूर्ति अपूर्ण लगी होगी। संभवतः वह आर्थिक रूप से भी विपन्न होगा। तभी वह मूर्ति को असली चश्मा नहीं पहना पाया होगा। सरकंडे से चश्मा बनाकर उसने मूर्ति को पहनाया होगा और इस प्रकार उसने अपनी देशभक्ति की भावना का परिचय दिया होगा।

आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

प्रश्न 3.
हालदार साहब के चरित्र का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
हालदार साहब के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. हालदार साहब सच्चे देशभक हैं। वे देशभक्त नागरिकों का सम्मान करना जानते हैं। केप्टन द्वारा नेताजी की मूर्ति को तरह-तरह के चश्मे पहनाए जाने का वे सम्मान करते हैं।
  2. वे एक सहृदय व्यक्ति हैं । केप्टन को देखने के बाद उनका हृदय सहानुभूति से भर उठता है।
  3. हालदार साहब दिल से बड़े भावुक व्यक्ति हैं। नेताजी की मूर्ति पर जब वे सरकंडे से बना चश्मा देखते हैं तो वे भावुक हो उठते हैं। जीप खड़ी करवाकर वे मूर्ति के सामने सावधान की स्थिति में खड़े हो जाते हैं।
  4. कोई भी व्यक्ति यदि देशभक्त लोगों का मजाक उड़ाता है तो उन्हें बहुत खराब लगता है। पानवाला जब केप्टन का मजाक उड़ाता है तो उन्हें बिलुकल अच्छा नहीं लगता। इस प्रकार हालदार साहब एक सकारात्मक सोचवाले सच्चे देशभक्त व्यक्ति हैं।

प्रश्न 4.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ द्वारा लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर :
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में प्रत्यक्ष रूप से नहीं तो परोक्ष रूप से देशभक्ति की भावना को अपने हृदय में उजागर रखने का संदेश देता है। आजकल लोगों में देशभक्ति की भावना कम होती जा रही है। लोग पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी पर ही अपनी इस भावना को प्रकट करते हैं। यहाँ लेखक ने केप्टन द्वारा नेताजी को तरह-तरह के चश्मे पहनाता हुआ बताकर उसके द्वारा देशभक्ति की भावना प्रकट करते हैं।

साथ-साथ जिस व्यक्ति ने सरकंडे की कलम पहनाया था वह भी एक आम नागरिक का परिचायक है। यह जरूरी नहीं कि देशभक्ति प्रदर्शित करने के लिए किसी बड़े अवसर की तलाश हो, छोटे-छोटे अवसर पर भी हम अपनी देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित कर सकते हैं। हालदार साहब के चरित्र द्वारा लेखक देशभक्त लोगों का सम्मान करवा कर उसकी महत्ता प्रतिपादित करते हैं। सरकंडे का चश्मा लगाने के कार्य में हमें अपने देश के प्रति देशप्रेम तथा देशभक्ति की भावना को मजबूत बनाने का संदेश मिलता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था। कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। जिसे पक्का मकान कहा जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाजार कहा जा सके वैसा एक ही बाज़ार था। कस्बे में एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक दो नगरपालिका भी थी।

नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी। कभी कोई सड़क पकी करवा दी, कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए, कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी, तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया। इसी नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार ‘शहर’ के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। यह कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है, बल्कि उसके भी एक छोटे से हिस्से के बारे में।

प्रश्न 1.
मुख्य चौराहे पर किसकी प्रतिमा थी ? वह किससे बनी थी?
उत्तर :
मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा थी और उसे संगमरमर से बनाया गया था।

प्रश्न 2.
कस्बे के लिए नगरपालिका क्या कार्य करती थी?
उत्तर :
नगरपालिका कस्बे के लिए कुछ-न-कुछ कार्य करती रहती थी। कभी सड़क बनवा देती थी, कभी पेशाबघर बनवाती थी तो कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया। इसी क्रम में नगरपालिका ने कस्बे के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगवा दी थी।

आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

प्रश्न 3.
‘पक्की’ तथा ‘उत्साही’ शब्द का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
‘पक्की’ × कच्ची
‘उत्साही’ × निरूत्साही

2. जैसा कि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फूट ऊँची। जिसे कहते है बस्ट । और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फौजी वर्दी में । मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो…’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था।

प्रश्न 1.
नेताजी की मूर्ति कैसी थी?
उत्तर :
नेताजी की मूर्ति सुन्दर, मासूम और कमसिन थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊंची थी। मूर्ति को फौजी वर्दी पहनाया गया था।

प्रश्न 2.
मूर्ति को देखते ही क्या याद आने लगता था ?
उत्तर :
मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो…’ के नारे आदि याद आने लगते थे।

प्रश्न 3.
नेताजी को कैसा चश्मा पहना दिया गया था ?
उत्तर :
नेताजी की आँखों पर चश्मा न होने ने कारण उनकी आँखों पर एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम पहना दिया गया था।

प्रश्न 4.
‘सराहनीय’ और ‘लक्षित’ शब्द में से प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर :
सराहनीय में “ईय” प्रत्यय है और लक्षित में ‘इत’ प्रत्यय लगा है।

आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

3. दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अंतर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है। पहले मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा है। हालदार साहब का कौतुक और बढ़ा। वाह भई ! क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती लेकिन चश्मा तो बदल ही सकती है। तीसरी बार फिर नया चश्मा था।

हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया क्यों भई ! क्या बात है? यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?

प्रश्न 1.
कस्बे से दूसरी बार गुजरते हुए हालदार साहब ने मूर्ति में क्या अंतर पाया ?
उत्तर :
कस्बे से दूसरी बार गुजरते हुए हालदार साहब ने मूर्ति में कुछ अन्तर पाया। उन्होंने देखा कि चश्मा दूसरा है। पहले मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा हैं।

प्रश्न 2.
कस्बे से गुजरते समय हालदार साहब की क्या आदत बन गई थी ?
उत्तर :
हालदार साहब जब भी कस्बे से गुजरते थे तो कस्बे के चौराहे पर रूकते थे, पानवाले की दुकान से पान खाते थे और मूर्ति को ध्यान से देखते थे। कस्बे से गुजरते समय हालदार साहब की ये आदत बन गई थी।

प्रश्न 3.
‘हालदार’ और ‘फ्रेमवाला’ शब्द में से प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर :
‘हालदार’ शब्द में ‘दार’ प्रत्यय लगा है और ‘फ्रेमवाला’ शब्द में ‘वाला’ प्रत्यय लगा है।

4. अब हालदार साहब को बात कुछ-कुछ समझ में आई। एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बगैर चश्मेवाली मूर्ति बुरी लगती है। बल्कि आहत करती है, मानो चश्मे के बगैर नेताजी को असुविधा हो रही हो। इसलिए वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।

लेकिन जब कोई ग्राहक आता है और उसे वैसे ही फ्रेम की दरकार होती है जैसा मूर्तिपर लगा है तो कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति पर लगा फ्रेम-संभवत: नेताजी से क्षमा मांगते हुए-लाकर ग्राहक को दे देता है और बाद में नेताजी को दूसरा फ्रेम लौटा देता है। वाह ! भई खूब ! क्या आइडिया है।

लेकिन भाई ! एक बात अभी भी समझ में नहीं आई। हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, नेताजी का ऑरिजिनल चश्मा कहाँ गया? पानावाला दुसरा पान मह में तूंस चुका था। दोपहर का समय था, ‘दुकान’ पर भीड़-भाड़ अधिक नहीं थी। वह फिर आंखों-ही-आंखों में हंसा । उसकी तोंद थिरकी। कत्थे की डंडी फेंक, पीछे मुड़कर उसने नीचे पीक थूकी और मुसकुराता हुआ बोला, मास्टर बनाना भूल गया।

प्रश्न 1.
केप्टन को नेताजी की चश्मारहित मति कैसी लगती थी ?
उत्तर :
केप्टन नेताजी की चश्मा रहित मूर्ति देखकर दुःखी होता था। चश्मे के बिना उसे नेताजी का व्यक्तित्व अधूरा-सा लगता था। उसे लगता था कि मानो चश्मे के बिना नेताजी को असुविधा हो रही हो।

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प्रश्न 2.
केप्टन मूर्ति का चश्मा क्यों बदल देता था ?
उत्तर :
केप्टन चश्मा बेचता था । यदि मूर्ति पर लगाया हुआ चश्मा किसी ग्राहक को पसन्द आता तो उसे उतार कर वह ग्राहक को बेच देता था, उसकी ।
जगह वह मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता है। यही कारण है कि केप्टन मूर्ति का चश्मा बदल देता था।

प्रश्न 3.
केप्टन किस बात के लिए नेताजी से क्षमा मांगता था ?
उत्तर :
केप्टन नेताजी के प्रति प्रेम व सम्मान की भावना रखता था, इसलिए वह मूर्ति पर चश्मा लगा देता था, किन्तु जब किसी ग्राहक को वही चश्मा पसंद आ जाता था तो चश्मा उतारते समय केप्टन नेताजी से क्षमा मांगता था और चश्मा उतारकर अपने ग्राहक को बेच देता था।

5. पानवाले के लिए यह एक मजेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली। यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा ‘मूर्तिकार मास्तर मोतीलाल’ वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाए – काँचवाला – यह तय नहीं कर पाया होगा। या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा या बनाते बनाते ‘कुछ और बारीकी’ के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा।

या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। उ.फ…! हालदार साहब को यह सब कुछ बड़ा विचित्र और कौतुकभरा लग रहा था । इन्हीं ख्यालों में खोए-खोए पान के पैसे चुकाकर, चश्मेवाले की देश-भक्ति के समक्ष नतमस्तक होते हुए वह जीप की तरफ़ चले, फिर रुके, पीछे मुड़े और पानवाले के पास जाकर पूछा, क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है ? या आजाद हिंद फौज़ का भूतपूर्व सिपाही ?

प्रश्न 1.
मूर्ति किसने बनाई थी ? मूर्ति पर ऑरिजिनल चश्मा क्यों नहीं था ?
उत्तर :
मूर्ति को कस्बे के एक अध्यापक मास्टर मोतीलाल ने बनाई थी। पानवाले के मुताबिक मूर्ति पर ऑरिजिनल चश्मा नहीं था क्योंकि मूर्तिकार उसे बनाना भूल गया था।

प्रश्न 2.
हालदार साहब के अनुसार मूर्ति पर ऑरिजिनल चश्मा न होने का क्या कारण था ?
उत्तर :
हालदार साहब के अनुसार मूर्तिकार के सामने यह समस्या रही होगी कि पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाय – काँचवाला वह यह तय नहीं कर पाया होगा। या कोशिश भी की होगी तो असफल रहा होगा। या बनाते समय बारीकी के चक्कर में टूट गया होगा। या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा।

प्रश्न 3.
‘देश-भक्ति’ समस्त पद का विग्रह करके समास का भेद बताइए।
उत्तर :
देश के लिए भक्ति व समास भेद है तत्पुरुष समास ।

आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

6. पानवाला नया पान खा रहा था। पान पकड़े अपने हाथ को मुंह से डेढ़ इंच दूर रोककर उसने हालदार साहब को ध्यान से देखा, फिर अपनी लाल काली बत्तीसी दिखाई और मुसकराकर बोला-नहीं साब ! वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में । पागल है पागल ! वो देखो, वो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फोटो-वोटो छपवा दो उसका कहीं।

हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लंगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आंखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बांस पर टगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था।

और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बॉस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी, नहीं ! फेरी लगाता है ! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है ? लेकिन पानवाले ने साफ़ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं । ड्राइवर भी बेचैन हो रहा था। काम भी था।

प्रश्न 1.
हालदार साहब को क्या अच्छा नहीं लगा?
उत्तर :
पानवाले ने केप्टन की देशभक्ति का मजाक उड़ाया था। हालदार साहब को यह अच्छा नहीं लगा।

प्रश्न 2.
केप्टन का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
केष्टन एक बेहद मरियल-सा लंगड़ा आदमी था। सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बांस पर टगे, बहुत से चश्मे लिए हुए थे।

प्रश्न 3.
केप्टन क्या कार्य करता था ?
उत्तर :
केप्टन चश्मा बेचता था। उसकी कोई स्थाई दुकान नहीं थी। वह फेरी लगाकर चश्मा बेचा करता था।

प्रश्न 4.
हालदार साहब चक्कर में पड़ गए।’ वाक्य भेद बताइए।
उत्तर :
‘हालदार साहब चकर में पड़ गए।’ यह सरल वाक्य है।

7. फिर एक बार ऐसा हुआ कि मूर्ति के चेहरे पर कोई भी, कैसा भी चश्मा नहीं था। उस दिन पान की दुकान भी बंद थी। चौराहे की अधिकांश दुकानें बंद थी। अगली बार भी मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं था। हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पानवाले से पूछा – क्यों भई, क्या बात हैं? आज तुम्हारे नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है?

पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुंह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला – साहब ! कैप्टन मर गया। और कुछ नहीं पूछ पाए हालदार साहब । कुछ पल चुपचाप खड़े रहे, फिर पान के पैसे चुकाकर जीप में आ बैठे और रवाना हो गए। बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हंसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूंढ़ती है। दुःखी हो गए।

प्रश्न 1.
नेताजी की आंखों पर चश्मा क्यों नहीं था?
उत्तर :
नेताजी की आँखों पर चश्मा इसलिए नहीं था क्योंकि केप्टन, जो उनकी आँखों पर चश्मा पहनाता था उसकी मृत्यु हो गई थी।

आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

प्रश्न 2.
केप्टन की मृत्यु की खबर सुनकर हालदार साहब क्या सोचने लगे ?
उत्तर :
केप्टन की मृत्यु की खबर सुनकर हालदार साहब यह सोचने लगे कि क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी जिंदगी सबकुछ होम कर देनेवालों पर भी हंसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूंढ़ती है।

प्रश्न 3.
आंख का पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर :
आंख का पर्यायवाची शब्द है ‘नयन, लोचन, नेत्र, दृग।’

8. पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गजरे। कस्बे में घुसने से पहले ही ख्याल आया कि कस्बे की हदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आंखों पर चश्मा नहीं होगा।… क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।… और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएंगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएंगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।

लेकिन आदत से मजबूर आखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ़ उठ गई। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको ! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न-रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज़-तेज़ कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए।

मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हैं। इतनी-सी बात पर उनकी आंखें भर आई।

प्रश्न 1.
पन्द्रह दिन बाद कस्बे के चौराहे से पुन: गुजरते समय हालदार साहब ने क्या सोचा ?
उत्तर :
हालदार साहब ने सोचा कि आज वे वहाँ नहीं रूकेंगे, पान भी नहीं खाएगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएंगे।

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प्रश्न 2.
हालदार साहब क्यों चीख पड़े ?
उत्तर :
हालदार साहब कस्बे का चौराहा आते ही आदतन मूर्ति की तरफ देखने लगे और इस बार उन्होंने मूर्ति पर सरकंडे से बना हुआ छोटा-सा चश्मा रखा था। इस कारण वे चीख उठे।

प्रश्न 3.
“चौराहा” शब्द का सामासिक विग्रह करते हुए उसका प्रकार बताइए।
उत्तर :
चौराहा शब्द का सामासिक है – चार रास्तों का समाहार और समास का प्रकार है द्विगु।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से चुनकर सही उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
कस्बे के मुख्य चौराहे पर किसकी प्रतिमा लगी थी ?
(क) नेताजी सुभाषचंद्र बोस
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) पंडित जवाहर लाल नहेरू
(घ) सरदार वल्लभभाई पटेल
उत्तर :
(क) नेताजी सुभाषचंद्र बोस

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प्रश्न 2.
मूर्ति कितने फूट ऊँची थी?
(क) नेताजी की मूर्ति 1 फूट ऊंची थी।
(ख) नेताजी की मूर्ति 2 फूट ऊंची थी।
(ग) नेताजी की मूर्ति 3 फूट ऊँची थी।
(घ) नेताजी की मूर्ति 4 फूट ऊँची थी।
उत्तर :
(ख) नेताजी की मूर्ति 2 फूट ऊँची थी।

प्रश्न 3.
दूसरी बार जब हालदार साहब गुजरे तो मूर्ति पर कैसा चश्मा था?
(क) मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा
(ख) मोटे फ्रेमवाला गोल चश्मा
(ग) छोटे फ्रेमवाला काला चश्मा
(घ) तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा
उत्तर :
(घ) तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा

प्रश्न 4.
नेताजी का चश्मा हरबार कौन बदलता था?
(क) हालदार साहब
(ख) पानवाला
(ग) नगरपालिका का अधिकारी
(घ) केप्टन चश्मावाला
उत्तर :
(घ) केप्टन चश्मावाला

प्रश्न 5.
पानवाला क्यों उदास था ?
(क) हालदार साहब के चले जाने पर
(ख) मूर्ति पर चश्मा न होने पर
(ग) केष्टन की मृत्यु होने पर
(घ) पान की दुकान न चलने पर
उत्तर :
(ग) केप्टन की मृत्यु होने पर

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प्रश्न 6.
मूर्ति पर चश्मा न होने का क्या कारण था ?
(क) मूर्तिकार बनाना भूल गया था।
(ख) चश्मा टूट गया था।
(ग) कोई चश्मा चुरा ले गया था।
(घ) चश्मा खो गया था।
उत्तर :
(क) मूर्तिकार बनाना भूल गया था।

सविग्रह समास भेद बताइए

प्रश्न 1.
चौराहा – चार राहों का समूह द्विगु समास

  • शासनावधि – शासन की अवधितत्पुरुष
  • देशभक्ति – देश के प्रति भक्त तत्पुरुष
  • दोपहर – दो पहरों का समूह द्विगु समास

संधि विच्छेद कीजिए :

  • शासनावधि = शासन + अवधि
  • दर्दमनीय = दुः + दमनीय

विशेषण शब्द बनाइए:

  • बारीकी – बारीक
  • द्रव – द्रवित
  • देशभक्ति – देशभक्त
  • प्रशासन – प्रशासनिक
  • स्थान – स्थानीय
  • सराहना – सराहनीय
  • फ़ौज – फौजी
  • मूर्त – मूर्तिवाला
  • भावना – भावुक

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विलोम शब्द लिखिए :

  • मजेदार × बेमज़ा
  • मुख्य × गौण
  • असुविधा × सुविधा
  • बुरा × भला
  • उपलब्ध × अनुपलब्ध
  • मरियल × मुश्तंड
  • वास्तविक × अवास्तविक
  • उदास × प्रसन्न
  • पारदर्शी × अपारदर्शी
  • सराहनीय × निंदनीय

दो-दो समानार्थी शब्द लिखिए :

  • आंख -चक्षु, नेत्र, अक्षि
  • देशभक्त – देशप्रेमी, राष्ट्रप्रेमी
  • राष्ट्रप्रेम – देशप्रेम, देशभक्ति
  • मूर्ति – प्रतिमा
  • फ़ौज – सेना, सैन्य
  • प्रसन्न -खुश, प्रफुल्ल

भाववाचक संज्ञा बनाइए:

  • भावुक – भावुकता
  • वास्तविक – वास्तविकता
  • प्रमुख – प्रमुखता
  • बुरा – बुराई
  • उदास – उदासी
  • बारीक – बारीकी

नेताजी का चश्मा Summary in Hindi

लेखक-परिचय :

स्वयं प्रकाश का जन्म सन् 1947 में मध्यप्रदेश के इन्दौर में हुआ था ! मैके निकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके उन्होंने एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी की । इनका बचपन और नौकरी का अधिकतर समय राजस्थान में बीता । स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के बाद अब ये भोपाल में रहते हैं। स्वयं प्रकाशजी वसुधा पत्रिका का सम्पादन करते हैं। ये समकालीन कहानी के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं।

अब तक इनके 13 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं| जिनमें ‘सूरज कब निकलेगा’, ‘आएंगे अच्छे दिन भी,’ ‘आदमी जात का आदमी’, ‘आसमाँ कैसे-कैसे’, ‘अगली किताब’, ‘अगले जनम’, ‘छोटू उस्ताद’, ‘जलते जहाज पर ईधन’, ‘ज्योति रथ के सारथी’ इनकी महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृतियाँ है । साहित्य की कई विधाओं में इन्होंने अपनी लेखनी चलाई है। अत: ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक हैं।

स्वयं प्रकाश को राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान, वनमाली स्मृति पुरस्कार, सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार, – पहल सम्मान व बाल साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। प्रस्तुत पाठ ‘नेताजी का चश्मा’ के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि देशभक्ति की भावना को किसी भी रूप में व्यक कर सकते हैं।

जैसे इस कहानी के नायक हालदार साहब अपने देशभक्ति की भावना को नेताजी की मूर्ति को देखते हुए प्रकट करते हैं । केप्टन चश्मेवाला भी नेताजी की आँखों को बिना चश्मे के बरदाश्त नहीं कर पाता । वह उन्हें तरह-तरह के चश्मे पहनाकर अपनी देशभक्ति की भावना को प्रकट करता है। देश पर मर मिटना ही देश भक्ति की भावना दर्शाता है ऐसा नहीं । मनुष्य को देश के लिए छोटे-छोटे कार्यों में सहयोग देकर देश की प्रगति में योगदान दें तो यह भी एक प्रकार की देशभक्ति ही कही जाएगी।

आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

पाठ का सार :

कस्बे का परिचय : हालदार साहब जिस कस्बे से गुजरते थे वह बहुत बड़ा नहीं था। उसमें कुछ पक्के मकान थे, एक बाजार था। लड़के व लड़कियों के लिए एक-एक स्कूल था। सिमेंट का एक छोटा कारखाना था। वहाँ दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका थी जो इस-कस्बै के लिए कुछ न कुछ कार्य करती रहती थी।

इस नगर पालिका में मुख्य बाजार के एक चौराहे पर नेताजी की प्रतिमा लगवा दी थी। मूर्ति को देखकर ऐसा लगता था कि किसी स्थानीय कलाकार से जल्दी-जल्दी में बनवाकर चौराहे पर लगा दी गई हो।

हालदार साहब की नजर मूर्ति पर : हालदार साहब हर पन्द्रहवें दिन कम्पनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते थे। जब वे पहली बार वहाँ से गुजरे तो उनकी नजर मूर्ति पर पड़ी। संगमरमर की बनी नेताजी की मूर्ति टोपी की नोक से लेकर कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फीट ऊँची है। नेताजी की मूर्ति सुन्दर थी परन्तु उनकी आँखों पर चश्मा नहीं था।

मूर्ति पर एक सामान्य काला चश्मा पहना दिया गया था। इस मूर्ति को हालदार साहब ने देखा तो उनके चेहरे पर कौतुकभरी मुस्कान फैल गई। मूर्ति पत्थर की और चश्मा असली । यो जब भी वे उस चौराहे से गुजरते तो मूर्ति पर नजर डालना न भूलते थे।

मूर्ति पर हालदार साहब के विचार : मूर्ति को देखकर हालदार साहब के विचार कुछ इस तरह से थे कि वे सोच रहे थे कि लोगों का प्रयास सराहनीय है। मूर्ति के आकार का महत्त्व नहीं, महत्त्व लोगों की भावना का है। आज देशभक्ति तो मजाक की चीज बनती जा रही है। दूसरे दिन मूर्ति का बदला हुआ रूप देख हालदार साहब का कौतुक बढ़ा।

कहने लगे “क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती लेकिन चश्मा तो बदल ही सकती हैं।” हालदार साहब जब भी कस्बे से गुजरता तो मूर्ति पर एक नजर डाल लेते थे। बार बार चश्मा बदले जाने का कारण जानने के लिए उन्होंने पानवाले से इस विषय में बात की।

केष्टन का देश-प्रेम : हालदार साहब ने चश्मा बदलने के विषय में पानवाले से बात की तो उसने बताया कि यह काम केप्टन चश्मावाला करता है। वह मूर्ति का चश्मा बदल देता है। कोई मूर्ति पर लगे हुए चश्मे की मांग करता है और वैसा चश्मा केप्टन के पास न हो तो वह मूर्ति पर लगे चश्मे को निकालकर ग्राहक को देता है और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता है।

हालदार साहब को इसमें केप्टन का देशप्रेम नजर आता है। संभवत: बिना चश्मे के नेताजी की मूर्ति केप्टन को अच्छा नहीं लगता होगा । एक बात अभी भी हालदार साहब को समझ में नहीं आई कि मूर्ति का ऑरिजिनल चश्मा कहाँ गया। पूछने पर पानवाले ने मुस्कुराते हुए बताया कि मास्टर बनाना ही भूल गया।

मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल : नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मास्टर मोतीलाल को सौंपा गया था। वे कस्बे के अध्यापक थे। महीने भर में मूर्ति बनाने का वादा निभाया लेकिन पत्थर में कांचवाला पारदर्श चश्मा कैसे बनाया जाय – यह वे नहीं कर पाए या कोशिश करने पर असफल रहे होंगे या बनाते समय टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा बनाकर अलग से फिट किया होगा और बाद में वह निकल गया होगा। ये सभी बातें हालदार साहब को विचित्र व आश्चर्यजनक लगीं।

कैप्टन का मजाक उड़ाना : हालदार साहब ने केप्टन के बारे में फिर पूछा कि क्या कैप्टन चश्मावाला नेताजी का साथी है या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही ? पानवाले ने हंसते हुए बताया कि वह लंगड़ा फौज़ में क्या जाएगा, वह तो पागल है। वह आ रहा है, उसी से बातें कर लें और कहीं

उसका फोटो छपवा दें। हालदार साहब को केप्टन का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा। वे केप्टन को देखकर अवाक रह गए। बेहद बूढा, मरियल-सा, लंगडा, सिर पर गांधी टोपी, आँखों में काला चश्मा, हाथ में एक छोटी संदूकची, दूसरे हाथ में बांस पर टगे चश्मे का फ्रेम लिए केप्टन फेरी लगा रहा था। हालदार साहब सोच में पड़ गए कि क्या केप्टन ही उसका वास्तविक नाम है ? पानवाला अधिक बातें करने को तैयार न था। केप्टन साहब वहाँ से चले गए।

केप्टन की मृत्यु : दो साल तक हालदार साहब काम के सिलसिले में वहाँ से होकर गुजरते थे। मूर्ति पर तरह-तरह के चश्मे बदलते रहे। एक दिन जब उन्होंने मूर्ति पर चश्मा नहीं देखा तो पानवाले से पूछा ‘आज नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है। क्या बात है?’ पानवाले ने रोते हुए बताया कि ‘साहब ! केप्टन मर गया।’ साहब बिना कुछ बोले जीप में बैठकर वहाँ से चले गए।

हालदार साहब की आंखों में आंसू : केप्टन के मरने की खबर सुनकर हालदार साहब को बड़ा दुःख हुआ। वे सोच रहे थे कि देश की खातिर सबकुछ होम कर देनेवालों पर लोग हँसते हैं। वे दुःखी हो रहे थे। उन्होंने निश्चय किया कि वे अब जब भी यहां से गुजरेंगे, मूर्ति की ओर नहीं देखेंगे।

बच्चों द्वारा सरकंडे का चश्मा लगाना : पंद्रह दिन बाद हालदार साहब फिर उसी कस्बे से गुजरे। कस्बे में घुसने से पहले उन्होंने निश्चय किया कि वे मूर्ति की तरह देखेंगे नहीं। सुभाषजी की प्रतिमा तो अवश्य होगी, पर उनकी आंखों पर चश्मा नहीं होगा। उन्होंने सोचा आज वे रूकेंगे नहीं, पान नहीं खाएगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे नीकल जाएगे।

लेकिन आदत से मजबूर हालदार साहब की निगाहें मूर्ति पर पड़ ही गई। अचानक वे चौख उठे और गाड़ी रोकने के लिए कहा। वे मूर्ति के पास तेज कदमों से गए और सामने जाकर सावधान होकर खड़े गए। मूर्ति की आखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। इतनी सी बात पर भावुक हालदार साहब की आखें भर आई।

आपके अनुसार हालदार साहब ने कस्बे के चौराहे पर न रुकने का फैसला क्यों लिया? - aapake anusaar haaladaar saahab ne kasbe ke chauraahe par na rukane ka phaisala kyon liya?

शब्दार्थ-टिप्पण:

  • प्रतिमा – मूर्ति
  • लागत – खर्चा
  • उपलब्ध बजट – खर्च के लिए प्राप्त धन
  • ऊहापोह – क्या करें क्या न करें की स्थिति
  • कसर – कमी
  • पटक देना – जैसे-तैसे बनाना
  • कमसिन – सुन्दर, नाजुक
  • कौतक भरी – आश्चर्ययुक्त
  • निष्कर्ष – सार, दुर्दमनीय जिसको दबाया न जा सके
  • ठसा हआ – भरा हुआ
  • गिराक – खरीददार, द्रवित पिघला हुआ
  • पारदर्शी – जिसके आर – पार देखा जा सके
    मरियल – बेहद कमजोर
  • प्रफाल – खुश

मुहावरे:

  • अवाक् रह जाना – आश्चर्यचकित होना।
  • होम कर देना – कुर्बान हो जाना।

वाक्य-प्रयोग:

  • इतने नन्हें बालक के मुंह से ऐसी बातें सुनकर सभी लोग अवाक् रह गये।
  • सीमा पर रक्षा करते हुए भारतीय सैनिक अपना पूरा जीवन होम कर देता है।

हालदार साहब ने अपने ड्राइवर को कस्बे में रुकने से क्यों मना किया?

हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे क्योंकि हालदार साहब चौराहे पर लगी नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन मरा था किसी ने भी नेता जी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसीलिए जब हालदार साहब कस्ये से गुजरने लगे तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मनाकर दिया था ।

हालदार साहब कस्बे के चौराहें पर क्यों रुकते थे?

उत्तर- हालदार साहब का चौराहे पर रुकना और नेताजी की मूर्ति को निहारना दर्शाता है कि उनके दिल में भी देशप्रेम का जज्बा प्रबल था और वो अपने देश के स्वतंत्रता सेनानियों का दिल से सम्मान करते थे। उन्हें नेताजी की मूर्ति पर चश्मा देखना अच्छा लगता था।

चौराहे पर मूर्ति को देखकर हालदार साहब भावुक क्यों हो गए?

(ग) उचित साधन न होते हुए भी किसी बच्चे ने अपनी क्षमता के अनुसार नेताजी को सरकंडे का चश्मा पहनाया। बड़े लोगों के मन में जिस देशभक्ति का अभाव है वही देशभक्ति सरकंडे के चश्मे के माध्यम से एक बच्चे के मन में देखकर हालदार साहब भावुक हो गए

हालदार साहब पान वाले से कैप्टन चश्मे वाले के बारे में क्या पूछना चाहते थे?

क्या कैप्टन चश्मे वाला नेता जी का साथी है या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही? तब पान वाले ने चश्मे वाले का मजाक उड़ाते हुए कहा, नहीं साहब, वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है, पागल, वह देखो वह आ रहा है। आप उसी से बात कर लो।