Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. GSEB Class 10 Hindi Solutions नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. प्रश्न 2. ख. मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है ? ग. हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे ? प्रश्न 3. जैसे केप्टन का मजाक पानवाले ने उड़ाया था । लोग अपने देश के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते । लालच में आकर स्वयं को भी बेचने को तैयार हो जाते हैं। देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो अपने स्वार्थ के लिए जीते हैं और देशभक्त वीरों को भूल चुके हैं। प्रश्न 4. प्रश्न 5. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 6. ख. पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुंह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आखें पोंछता हुआ बोला – साहब केप्टन मर गया। ग. केप्टन बार-बार मर्ति पर चश्मा लगा देता था। प्रश्न 7. प्रश्न 8.
ख. आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करना चाहेंगे और क्यों ? ग. उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने
चाहिए? प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. भाषा-अध्ययन प्रश्न 12. ख. किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा। ग. यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था। घ. हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए। ङ. दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे। प्रश्न 13. प्रश्न 14. Hindi Digest Std 10 GSEB नेताजी का चश्मा Important Questions and Answers पाठेतर सक्रियता प्रश्न 1. ख. हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों को विद्यालय के किसी समारोह में राष्ट्रीय त्यौहारों के अवसर पर समाज के किसी कार्यक्रम में बुलाकर सम्मानित करेंगे। उनका विस्तृत परिचय देंगे ताकि सभी लोग उनके कार्यों से अवगत हैं। ऐसे विशिष्ट लोगों को पुरस्कार या सम्मान देकर उनके कार्यों को पुरस्कृत करेंगे। इससे इनका मनोबल बढ़ेगा और ये और भी आगे बढ़ सकेंगे। प्रश्न 2. महोदय, धन्यवाद, प्रश्न 3. प्रश्न 4.
हमारी भूमिका : हमारा यह कर्तव्य है कि नगरपालिका जो कार्य करती है उसमें हम किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें। जितना हो सके उतना नगरपालिका द्वारा किए जा रहे कार्यों में अपना योगदान दें तथा अन्य लोगों को भी अपना सहयोग देने के लिए प्रेरित करें। निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर : प्रश्न 1. उसके पास कोई स्थाई दुकान भी नहीं है। यह देखकर हालदार साहब को केप्टन के प्रति सहानुभूति हो गई । वे उसका सम्मान करने लगे। उसकी देशभक्ति पर वे फिदा हो गए जो नेताजी की मूर्ति पर तरह-तरह के चश्मे बदलकर अपनी देशभक्ति का परिचय दे रहा था। प्रश्न 2. वह व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों के प्रति सजग होगा। वह देश के स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति इज्जत व सम्मान की भावना रखता होगा। उस व्यक्ति ने जब नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के देखा होगा तो उसे वह मूर्ति अपूर्ण लगी होगी। संभवतः वह आर्थिक रूप से भी विपन्न होगा। तभी वह मूर्ति को असली चश्मा नहीं पहना पाया होगा। सरकंडे से चश्मा बनाकर उसने मूर्ति को पहनाया होगा और इस प्रकार उसने अपनी देशभक्ति की भावना का परिचय दिया होगा। प्रश्न 3.
प्रश्न 4. साथ-साथ जिस व्यक्ति ने सरकंडे की कलम पहनाया था वह भी एक आम नागरिक का परिचायक है। यह जरूरी नहीं कि देशभक्ति प्रदर्शित करने के लिए किसी बड़े अवसर की तलाश हो, छोटे-छोटे अवसर पर भी हम अपनी देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित कर सकते हैं। हालदार साहब के चरित्र द्वारा लेखक देशभक्त लोगों का सम्मान करवा कर उसकी महत्ता प्रतिपादित करते हैं। सरकंडे का चश्मा लगाने के कार्य में हमें अपने देश के प्रति देशप्रेम तथा देशभक्ति की भावना को मजबूत बनाने का संदेश मिलता है। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था। कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। जिसे पक्का मकान कहा जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाजार कहा जा सके वैसा एक ही बाज़ार था। कस्बे में एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक दो नगरपालिका भी थी। नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी। कभी कोई सड़क पकी करवा दी, कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए, कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी, तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया। इसी नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार ‘शहर’ के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। यह कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है, बल्कि उसके भी एक छोटे से हिस्से के बारे में। प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. 2. जैसा कि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फूट ऊँची। जिसे कहते है बस्ट । और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फौजी वर्दी में । मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो…’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 3. दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अंतर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है। पहले मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा है। हालदार साहब का कौतुक और बढ़ा। वाह भई ! क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती लेकिन चश्मा तो बदल ही सकती है। तीसरी बार फिर नया चश्मा था। हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया क्यों भई ! क्या बात है? यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है? प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 4. अब हालदार साहब को बात कुछ-कुछ समझ में आई। एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बगैर चश्मेवाली मूर्ति बुरी लगती है। बल्कि आहत करती है, मानो चश्मे के बगैर नेताजी को असुविधा हो रही हो। इसलिए वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है। लेकिन जब कोई ग्राहक आता है और उसे वैसे ही फ्रेम की दरकार होती है जैसा मूर्तिपर लगा है तो कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति पर लगा फ्रेम-संभवत: नेताजी से क्षमा मांगते हुए-लाकर ग्राहक को दे देता है और बाद में नेताजी को दूसरा फ्रेम लौटा देता है। वाह ! भई खूब ! क्या आइडिया है। लेकिन भाई ! एक बात अभी भी समझ में नहीं आई। हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, नेताजी का ऑरिजिनल चश्मा कहाँ गया? पानावाला दुसरा पान मह में तूंस चुका था। दोपहर का समय था, ‘दुकान’ पर भीड़-भाड़ अधिक नहीं थी। वह फिर आंखों-ही-आंखों में हंसा । उसकी तोंद थिरकी। कत्थे की डंडी फेंक, पीछे मुड़कर उसने नीचे पीक थूकी और मुसकुराता हुआ बोला, मास्टर बनाना भूल गया। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 5. पानवाले के लिए यह एक मजेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली। यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा ‘मूर्तिकार मास्तर मोतीलाल’ वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाए – काँचवाला – यह तय नहीं कर पाया होगा। या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा या बनाते बनाते ‘कुछ और बारीकी’ के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा। या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। उ.फ…! हालदार साहब को यह सब कुछ बड़ा विचित्र और कौतुकभरा लग रहा था । इन्हीं ख्यालों में खोए-खोए पान के पैसे चुकाकर, चश्मेवाले की देश-भक्ति के समक्ष नतमस्तक होते हुए वह जीप की तरफ़ चले, फिर रुके, पीछे मुड़े और पानवाले के पास जाकर पूछा, क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है ? या आजाद हिंद फौज़ का भूतपूर्व सिपाही ? प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 6. पानवाला नया पान खा रहा था। पान पकड़े अपने हाथ को मुंह से डेढ़ इंच दूर रोककर उसने हालदार साहब को ध्यान से देखा, फिर अपनी लाल काली बत्तीसी दिखाई और मुसकराकर बोला-नहीं साब ! वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में । पागल है पागल ! वो देखो, वो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फोटो-वोटो छपवा दो उसका कहीं। हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लंगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आंखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बांस पर टगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था। और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बॉस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी, नहीं ! फेरी लगाता है ! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है ? लेकिन पानवाले ने साफ़ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं । ड्राइवर भी बेचैन हो रहा था। काम भी था। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 7. फिर एक बार ऐसा हुआ कि मूर्ति के चेहरे पर कोई भी, कैसा भी चश्मा नहीं था। उस दिन पान की दुकान भी बंद थी। चौराहे की अधिकांश दुकानें बंद थी। अगली बार भी मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं था। हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पानवाले से पूछा – क्यों भई, क्या बात हैं? आज तुम्हारे नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है? पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुंह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला – साहब ! कैप्टन मर गया। और कुछ नहीं पूछ पाए हालदार साहब । कुछ पल चुपचाप खड़े रहे, फिर पान के पैसे चुकाकर जीप में आ बैठे और रवाना हो गए। बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हंसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूंढ़ती है। दुःखी हो गए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 8. पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गजरे। कस्बे में घुसने से पहले ही ख्याल आया कि कस्बे की हदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आंखों पर चश्मा नहीं होगा।… क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।… और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएंगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएंगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे। लेकिन आदत से मजबूर आखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ़ उठ गई। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको ! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न-रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज़-तेज़ कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हैं। इतनी-सी बात पर उनकी आंखें भर आई। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से चुनकर सही उत्तर लिखिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न
5. प्रश्न 6. सविग्रह समास भेद बताइए प्रश्न 1.
संधि विच्छेद कीजिए :
विशेषण शब्द बनाइए:
विलोम शब्द लिखिए :
दो-दो समानार्थी शब्द लिखिए :
भाववाचक संज्ञा बनाइए:
नेताजी का चश्मा Summary in Hindiलेखक-परिचय : स्वयं प्रकाश का जन्म सन् 1947 में मध्यप्रदेश के इन्दौर में हुआ था ! मैके निकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके उन्होंने एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी की । इनका बचपन और नौकरी का अधिकतर समय राजस्थान में बीता । स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के बाद अब ये भोपाल में रहते हैं। स्वयं प्रकाशजी वसुधा पत्रिका का सम्पादन करते हैं। ये समकालीन कहानी के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। अब तक इनके 13 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं| जिनमें ‘सूरज कब निकलेगा’, ‘आएंगे अच्छे दिन भी,’ ‘आदमी जात का आदमी’, ‘आसमाँ कैसे-कैसे’, ‘अगली किताब’, ‘अगले जनम’, ‘छोटू उस्ताद’, ‘जलते जहाज पर ईधन’, ‘ज्योति रथ के सारथी’ इनकी महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृतियाँ है । साहित्य की कई विधाओं में इन्होंने अपनी लेखनी चलाई है। अत: ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक हैं। स्वयं प्रकाश को राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान, वनमाली स्मृति पुरस्कार, सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार, – पहल सम्मान व बाल साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। प्रस्तुत पाठ ‘नेताजी का चश्मा’ के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि देशभक्ति की भावना को किसी भी रूप में व्यक कर सकते हैं। जैसे इस कहानी के नायक हालदार साहब अपने देशभक्ति की भावना को नेताजी की मूर्ति को देखते हुए प्रकट करते हैं । केप्टन चश्मेवाला भी नेताजी की आँखों को बिना चश्मे के बरदाश्त नहीं कर पाता । वह उन्हें तरह-तरह के चश्मे पहनाकर अपनी देशभक्ति की भावना को प्रकट करता है। देश पर मर मिटना ही देश भक्ति की भावना दर्शाता है ऐसा नहीं । मनुष्य को देश के लिए छोटे-छोटे कार्यों में सहयोग देकर देश की प्रगति में योगदान दें तो यह भी एक प्रकार की देशभक्ति ही कही जाएगी। पाठ का सार : कस्बे का परिचय : हालदार साहब जिस कस्बे से गुजरते थे वह बहुत बड़ा नहीं था। उसमें कुछ पक्के मकान थे, एक बाजार था। लड़के व लड़कियों के लिए एक-एक स्कूल था। सिमेंट का एक छोटा कारखाना था। वहाँ दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका थी जो इस-कस्बै के लिए कुछ न कुछ कार्य करती रहती थी। इस नगर पालिका में मुख्य बाजार के एक चौराहे पर नेताजी की प्रतिमा लगवा दी थी। मूर्ति को देखकर ऐसा लगता था कि किसी स्थानीय कलाकार से जल्दी-जल्दी में बनवाकर चौराहे पर लगा दी गई हो। हालदार साहब की नजर मूर्ति पर : हालदार साहब हर पन्द्रहवें दिन कम्पनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते थे। जब वे पहली बार वहाँ से गुजरे तो उनकी नजर मूर्ति पर पड़ी। संगमरमर की बनी नेताजी की मूर्ति टोपी की नोक से लेकर कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फीट ऊँची है। नेताजी की मूर्ति सुन्दर थी परन्तु उनकी आँखों पर चश्मा नहीं था। मूर्ति पर एक सामान्य काला चश्मा पहना दिया गया था। इस मूर्ति को हालदार साहब ने देखा तो उनके चेहरे पर कौतुकभरी मुस्कान फैल गई। मूर्ति पत्थर की और चश्मा असली । यो जब भी वे उस चौराहे से गुजरते तो मूर्ति पर नजर डालना न भूलते थे। मूर्ति पर हालदार साहब के विचार : मूर्ति को देखकर हालदार साहब के विचार कुछ इस तरह से थे कि वे सोच रहे थे कि लोगों का प्रयास सराहनीय है। मूर्ति के आकार का महत्त्व नहीं, महत्त्व लोगों की भावना का है। आज देशभक्ति तो मजाक की चीज बनती जा रही है। दूसरे दिन मूर्ति का बदला हुआ रूप देख हालदार साहब का कौतुक बढ़ा। कहने लगे “क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती लेकिन चश्मा तो बदल ही सकती हैं।” हालदार साहब जब भी कस्बे से गुजरता तो मूर्ति पर एक नजर डाल लेते थे। बार बार चश्मा बदले जाने का कारण जानने के लिए उन्होंने पानवाले से इस विषय में बात की। केष्टन का देश-प्रेम : हालदार साहब ने चश्मा बदलने के विषय में पानवाले से बात की तो उसने बताया कि यह काम केप्टन चश्मावाला करता है। वह मूर्ति का चश्मा बदल देता है। कोई मूर्ति पर लगे हुए चश्मे की मांग करता है और वैसा चश्मा केप्टन के पास न हो तो वह मूर्ति पर लगे चश्मे को निकालकर ग्राहक को देता है और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता है। हालदार साहब को इसमें केप्टन का देशप्रेम नजर आता है। संभवत: बिना चश्मे के नेताजी की मूर्ति केप्टन को अच्छा नहीं लगता होगा । एक बात अभी भी हालदार साहब को समझ में नहीं आई कि मूर्ति का ऑरिजिनल चश्मा कहाँ गया। पूछने पर पानवाले ने मुस्कुराते हुए बताया कि मास्टर बनाना ही भूल गया। मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल : नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मास्टर मोतीलाल को सौंपा गया था। वे कस्बे के अध्यापक थे। महीने भर में मूर्ति बनाने का वादा निभाया लेकिन पत्थर में कांचवाला पारदर्श चश्मा कैसे बनाया जाय – यह वे नहीं कर पाए या कोशिश करने पर असफल रहे होंगे या बनाते समय टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा बनाकर अलग से फिट किया होगा और बाद में वह निकल गया होगा। ये सभी बातें हालदार साहब को विचित्र व आश्चर्यजनक लगीं। कैप्टन का मजाक उड़ाना : हालदार साहब ने केप्टन के बारे में फिर पूछा कि क्या कैप्टन चश्मावाला नेताजी का साथी है या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही ? पानवाले ने हंसते हुए बताया कि वह लंगड़ा फौज़ में क्या जाएगा, वह तो पागल है। वह आ रहा है, उसी से बातें कर लें और कहीं उसका फोटो छपवा दें। हालदार साहब को केप्टन का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा। वे केप्टन को देखकर अवाक रह गए। बेहद बूढा, मरियल-सा, लंगडा, सिर पर गांधी टोपी, आँखों में काला चश्मा, हाथ में एक छोटी संदूकची, दूसरे हाथ में बांस पर टगे चश्मे का फ्रेम लिए केप्टन फेरी लगा रहा था। हालदार साहब सोच में पड़ गए कि क्या केप्टन ही उसका वास्तविक नाम है ? पानवाला अधिक बातें करने को तैयार न था। केप्टन साहब वहाँ से चले गए। केप्टन की मृत्यु : दो साल तक हालदार साहब काम के सिलसिले में वहाँ से होकर गुजरते थे। मूर्ति पर तरह-तरह के चश्मे बदलते रहे। एक दिन जब उन्होंने मूर्ति पर चश्मा नहीं देखा तो पानवाले से पूछा ‘आज नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है। क्या बात है?’ पानवाले ने रोते हुए बताया कि ‘साहब ! केप्टन मर गया।’ साहब बिना कुछ बोले जीप में बैठकर वहाँ से चले गए। हालदार साहब की आंखों में आंसू : केप्टन के मरने की खबर सुनकर हालदार साहब को बड़ा दुःख हुआ। वे सोच रहे थे कि देश की खातिर सबकुछ होम कर देनेवालों पर लोग हँसते हैं। वे दुःखी हो रहे थे। उन्होंने निश्चय किया कि वे अब जब भी यहां से गुजरेंगे, मूर्ति की ओर नहीं देखेंगे। बच्चों द्वारा सरकंडे का चश्मा लगाना : पंद्रह दिन बाद हालदार साहब फिर उसी कस्बे से गुजरे। कस्बे में घुसने से पहले उन्होंने निश्चय किया कि वे मूर्ति की तरह देखेंगे नहीं। सुभाषजी की प्रतिमा तो अवश्य होगी, पर उनकी आंखों पर चश्मा नहीं होगा। उन्होंने सोचा आज वे रूकेंगे नहीं, पान नहीं खाएगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे नीकल जाएगे। लेकिन आदत से मजबूर हालदार साहब की निगाहें मूर्ति पर पड़ ही गई। अचानक वे चौख उठे और गाड़ी रोकने के लिए कहा। वे मूर्ति के पास तेज कदमों से गए और सामने जाकर सावधान होकर खड़े गए। मूर्ति की आखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। इतनी सी बात पर भावुक हालदार साहब की आखें भर आई। शब्दार्थ-टिप्पण:
मुहावरे:
वाक्य-प्रयोग:
हालदार साहब ने अपने ड्राइवर को कस्बे में रुकने से क्यों मना किया?हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे क्योंकि हालदार साहब चौराहे पर लगी नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन मरा था किसी ने भी नेता जी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसीलिए जब हालदार साहब कस्ये से गुजरने लगे तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मनाकर दिया था ।
हालदार साहब कस्बे के चौराहें पर क्यों रुकते थे?उत्तर- हालदार साहब का चौराहे पर रुकना और नेताजी की मूर्ति को निहारना दर्शाता है कि उनके दिल में भी देशप्रेम का जज्बा प्रबल था और वो अपने देश के स्वतंत्रता सेनानियों का दिल से सम्मान करते थे। उन्हें नेताजी की मूर्ति पर चश्मा देखना अच्छा लगता था।
चौराहे पर मूर्ति को देखकर हालदार साहब भावुक क्यों हो गए?(ग) उचित साधन न होते हुए भी किसी बच्चे ने अपनी क्षमता के अनुसार नेताजी को सरकंडे का चश्मा पहनाया। बड़े लोगों के मन में जिस देशभक्ति का अभाव है वही देशभक्ति सरकंडे के चश्मे के माध्यम से एक बच्चे के मन में देखकर हालदार साहब भावुक हो गए।
हालदार साहब पान वाले से कैप्टन चश्मे वाले के बारे में क्या पूछना चाहते थे?क्या कैप्टन चश्मे वाला नेता जी का साथी है या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही? तब पान वाले ने चश्मे वाले का मजाक उड़ाते हुए कहा, नहीं साहब, वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है, पागल, वह देखो वह आ रहा है। आप उसी से बात कर लो।
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