संसाधन मानवीय क्रियाओं का परिणाम है। मानव स्वयं संसाधनों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे पर्यावरण में पाए जाने वाले पदार्थो को संसाधनों में परिवर्तित करते हैं तथा उन्हें प्रयोग करते हैं। Show
भूमि, जल, वनस्पति और खनिज प्रकृति के उपहार हैं। इन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। ये उपहार, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आधार हैं। ये लोगों की आर्थिक शक्ति और संपन्नता के आधार स्तंभ है। आदि मानव अपने भरण-पोषण के लिए प्रत्यक्ष रूप से जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों पर ही निर्भर था। धीरे-धीरे उसने औजारों, उपकरणों, तकनीकों और कुशलताओं का विकास किया। पर्यावरण के साथ अंत:क्रियाएँ करते हुए, उसने अपने लिए उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त की। ये प्राकृतिक वस्तुएँ उसके लिए प्राकृतिक साधन बने। इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों ने मानव का आर्थिक विकास का आधार प्रदान किया है। मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर, अपने लिए रहने योग्य दुनिया बनाई। उसने मकानों, भवनों, सड़कों, रेलमार्गो, गावों, कस्बों, नगरों, मशीनों, उद्योगों और कई अन्य वस्तुओं की रचना की। ये सभी वस्तुएँ भी बहुत उपयोगी है। इन्हें मानव निर्मित संसाधन कहते हैं। प्राकृतिक और मानव-निर्मित दोनों ही संसाधन जीवन के लिए अति आवश्यक हैं। संसाधनों की कई विशेषताएँ हैं, उनकी भारी उपयोगिता है। सामान्यतः संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध है। ये उपयोगी वस्तुएँ बनाने में हमारी मदद करते हैं अथवा सेवाएँ प्रदान करते हैं। संसाधनों को उपयोगी बनाने के लिए हमें प्रयास करने पड़ते हैं। संसाधनों की उपयोगिता अथवा उनका प्रयोजन विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सुधार के साथ बदलता रहता है।
संसाधन (Resources) इच्छा आपकी आवश्यकता क्या है और आप उसे प्राप्त करने के लिए क्या करेंगे आप एक पोशाक खरीदना चाहते हैं धन आप एक फिल्म देखना चाहते हैं। आप वहाँ कैसे पहुँचेंगे? पैदल चलकर या बस में। परिवार अपने लिए एक घर बनाना चाहता है। भूमि तथा धन मित्र को जन्मदिन का कार्ड भेजना चाहते हैं। डाक टिकट और लिफाफा परीक्षा पास करना चाहते हैं। ज्ञान तथा पुस्तकें। संसाधनों का प्रयोगहमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने संसाधनों का प्रबंधन करना पड़ता है। कई बार हमें सीमित समय में कई लक्ष्यों को पूरा करना होता है। आप अपने समय का प्रबंधन किस प्रकार करेंगे ताकि आप एक दिन में निम्नलिखित सभी कार्यों को पूरा कर सकें जैसे परीक्षा के लिए पढाई. अपने मित्र से मिलना, अपनी छोटी बहन को पढ़ाना तथा परिवार के लिए रात्रि का भोजन तैयार करने में माता-पिता की सहायता करना। अतः आपको इन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए निम्न में से किसी उपाय का सहारा लेना पड़ेगाः
इन तीन संभव विकल्पों में से पहले विकल्प का सहारा नहीं लिया जा सकता है। आप जानते हैं कि समय सीमित संसाधन है; आपके पास एक दिन में केवल 24 घंटे ही हैं। अब आप क्या करेंगे? क्या आप अपने काम की मात्रा को कम करेंगे? जी नहीं, ये सभी महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं जिन्हें आप पूरा करना चाहते हैं। अब आपके पास केवल एक ही विकल्प बाकी है। इस विकल्प के अनुसार आपको अपने समय का प्रबंधन इस प्रकार करना होगा जिससे कि आप अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। यह केवल एक उदाहरण है। हम सभी को अपने दिन-प्रति-दिन के जीवन में अन्य संसाधनों के संबंध में भी इसी प्रकार की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या का एकमात्र समाधान है- संसाधनों का इष्टतम उपयोग। यह सभी संसाधनों पर लागू होता है। चूँकि संसाधन सीमित हैं, इस लिए हमें उनके उपयोग की योजना इस प्रकार बनानी होती है ताकि उनसे हमें अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। यह केवल उचित नियोजन से ही संभव है। संसाधनों के प्रकारसंसाधनों को कई प्रकार से बांटा गया है जैसे प्राकृतिक और मानव-निर्मित, नवीकरणीय और अनवीकरणीय तथा निजी, सामुदायिक च राष्ट्रीय संसाधन। प्राकृतिक और मानव-निर्मित संसाधन संसाधनों को सामान्यतः प्राकृतिक और मानव-निर्मित (सांस्कृतिक) वर्गों में बांटा जा सकता है। प्राकृतिक संसाधन प्रकृति प्रदत्त है। भूमि, जल, खनिजों और वनों की गणना प्राकृतिक साधनों में की जाती है। ये ससांधन भी दो प्रकार के है:-
भूमि, जल और मृदा अजैविक संसाधन है। जबकि वन और जीव-जंतु जैविक संसाधन है। कुछ खनिज भी जैविक है जैसे कोयला और कुछ खनिज अजैविक है। जैसे लोह-अयस्क। इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, मशीने, भवन, स्मारक, चित्रकलाएँ और सामाजिक संस्थाएँ कुछ मानव-निर्मित संसाधन हैं। इनके अतिरिक्त मनुष्य में अपनी वृद्धि विवेक, और कुशलताएँ हैं। उसमें स्वास्थ्य और अन्य कई गुण भी है। ये सभी उसके संसाधन हैं। प्राकृतिक संसाधनों के विकास के लिए मानव संसाधनों का होना आवश्यक है। जैविक संसाधनइन संसाधनों में पर्यावरण के समस्त जीवित तत्व सम्मिलित हैं। वन, वनोत्पाद, फसलें, पछी, वन्य जीव, मछलियां व अन्य समुद्री जीव जैव संसाधनों के उदाहरण हैं। ये संसाधन नवीकरणीय है क्योंकि ये स्वयं को पुनरूत्पादित व पुनर्जीवित कर सकते हैं। कोयला और खनिज तेल भी जैविक संसाधन है, परंतु ये नवीकरणीय नहीं हैं। अजैविक संसाधनइन संसाधनों में पर्यावरण के समस्त निर्जीव पदार्थ सम्मिलित है। भूमि, जल, वायु और खनिज यथा लोहा, ताँबा, सोना आदि अजैविक संसाधन हैं। ये समाप्त होने योग्य हैं व पुनर्नवीनीकरण के योग्य नहीं है, क्योंकि ये न तो नवीनीकृत हो सकते हैं और न ही पुनरूपादित।
प्राकृतिक संसाधनपरिभाषा - वे सभी संसाधन जो प्रकृति प्रदत्त हैं प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। जैसे- भूमि, जल, वनस्पति, जन्तु, हवा, प्रकाश, खनिज, इत्यादि। भारतीय परम्परा में प्रकृति को माता माना गया है चूँकि यह मानव की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। आदिकाल से ही हमनें अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के संसाधनों का उपयोग ही नहीं बल्कि दोहन किया है इन संसाधनों का हमारी सभ्यता के विकास में उल्लेखनीय योगदान है। अर्थ जैसा कि स्पष्ट है कि प्राकृतिक संसाधनों का अभिप्राय प्रकृति से है। इन संसाधनों की सतत् उपलब्धता तभी सम्भव है जब उनका बहुत ही सावधानी से उपयोग किया जायें अर्थात् जिस गति से इनको प्रक्ति से निकाला जाये लगभग उसी गति से प्रकृति में इनके संचयन की पद्धति भी अपनायी जाये। संचयन की विधि में इनके संरक्षण की एक अहम भूमिका होगी। संरक्षण से अभिप्राय अपनी अत्यावश्यक आवश्यकताओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का मात्र उपयोग ही है न कि दोहन (Exploitation) या दुरुपयोग। राष्ट्रपिता महत्मा गाँधी ने कहा था कि "प्रकृति हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम है किन्तु हमारे लालच की पूर्ति में वह अक्षम है (The nature is sufficient for our needs but it is insufficient for our greeds)" उक्त संसाधनों की सतत् उपलब्धता विशिष्ट चक्रो जैसे-जल चक्र, 02 चक्र, N2 चक्र, खनिज चक्र इत्यादि के माध्यम से प्रकृति द्वारा की है। मानव का अनावश्यक व अविवेकपूर्ण हस्ताक्षेप उक्त चक्रो को प्रभावित करता है। वर्गीकरण (Classification) प्राकृतिक संसाधनों को मुख्य रुप से दो भागों में बाँटा गया है। नवीकरणीय संसाधन (Renewable resources) ये वे संसाधन है जिनका लगातार नवीनीकरण ( उत्पादन) प्रकृति में होता रहता है फलतः प्रकृति में इनकी उपस्थिति बहुत लम्बे समय तक बनी रहेगी। इनकी उपस्थिति का सन्तुलन तभी बिगड़ सकता है जब इनका केवल अति दोहन ही किया जाये एवम् इनके पुर्नभरण (Recharge) के बारे में पहल न की जाये। जैसे– वायु, जल, मिट्टी, वन, खनिज, खाद्य, अपारम्परिक ऊर्जा स्त्रोत, जीव-जन्तु इत्यादि। अनवीकरणीय संसाधन (Non-Renewable resource) वे संसाधन जिनका नवीनीकरण एक लम्बे काल चक्र में होता है। अर्थात् यूँ कहें कि इनके नवीनीकरण की गति अति धीमी होती है। इसलिए आवश्यक परिस्थितियों में भी इन प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग अति सावधानी के साथ किया जाये। जैसे- कोयला, प्राकृतिक गैस खनिज, पदार्थ, पेट्रोलियम इत्यादि । नवीकरणीय संसाधन
प्राकृतिक संसाधनों का मानवीय सम्बन्ध मानव और समस्त प्राकृतिक संसाधनों (पृथ्वी, जल, ऊर्जा) के बीच एक घनिष्ट सम्बन्ध है मानव के समस्त आवश्यकताओं यहाँ तक कि मानव जाति के अस्तित्व के लिए इन संसाधनों की उपस्थिति अनिवार्य है। राम चरित मानस में आया है कि उक्त प्राकृतिक संसाधनों (पृथ्वी, जल, ऊर्जा, आकाश एवं वायुमण्डल हवा) के द्वारा ही मानव का अस्तित्व सम्भव है। अतः अपने अस्तित्व बनाए रखने के लिए हमको सदैव यह चिन्तन व प्रयास करना चाहिए की हमारी उपस्थिति से प्राकृतिक संसाधनों में उपरोक्त हास के बजाय वृद्धि हो रही है। प्राकृतिक ससाधनो की उपलब्धता व शुद्धता को बनाए रखने हेतु निम्नलिखित प्रयास होने चाहिए :
मानव निर्मित संसाधनमानव निर्मित संसाधन प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों का प्रयोग कर उत्पादित माल व सेवाएँ हैं। प्रायः, संसाधन मनुष्य के लिए उपयोगी तभी बन पाते हैं जब उनका मूल रूप बदल दिया जाता है। ऐसी वस्तुएं प्राकृतिक रूप से नहीं होतीं बल्कि मानव द्वारा उपभोग हेतु उत्पादित की जाती हैं। औषधियों, जैसे कुछ मानव निर्मित संसाधन आधुनिक मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, क्योंकि, टीका-द्रव्य जैसी औषधियों के बिना लोग रोग एवं मृत्यु के शिकार हो जाएँगे। किंतु, पीड़कनाशी जैसे कुछ मानव निर्मित संसाधन वैज्ञानिक रूप से प्रयोग न किए जाने पर प्राकृतिक पर्यावरण को हानि भी पहुंचा सकते हैं। कुछ मानव निर्मित संसाधन प्राकृतिक संसाधनों की भाँति ही होते हैं। उदाहरण के लिए, झीलें और ताल मानव-निर्मित संसाधन हैं। जबकि उनमें जल और मछलियाँ प्राकृतिक संसाधन हैं, किंतु उनमें जल मानव प्रयास द्वारा ही एकत्र होता है। ऐसे संसाधन अनेक लोगों के लिए खाद्य, आय और आमोद-प्रमोद अवसर पैदा करते हैं। इसी प्रकार, खेत भी प्रकृति से उपलब्ध पौधे एवं मृदा प्रयोग करने वाले मानव निर्मित संसाधन हैं। कागज जैसे कुछ अन्य मानव निर्मित संसाधन प्रायः पुस्तकों एवं तश्तरियों जैसे अन्य संसाधन तैयार करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। तारों एवं अर्धचालकों जैसे उच्च-प्रौद्योगिक उत्पाद मानव के प्रयोग हेतु बनी अन्य वस्तुएँ हैं। अन्य मानव निर्मित संसाधनों के उदाहरण हैं- अस्पताल, अनुसंधान केंद्र, शैक्षणिक संस्थान, आदि। ये सामुदायिक विकास हेतु संसाधनों के रूप में काम करते हैं। कुल मिलाकर वे अवसंरचना बन जाते हैं जो आर्थिक संवृद्धि एवं विकास की रीढ़ कहलाते हैं। संसाधनों के उपयोग के मार्गदर्शनसंसाधन सदैव ही समित होते हैं। हमारे पास धन की उपलब्धता भी सीमित ही होती है। हर व्यक्ति के पास एक दिन में उपलब्ध घंटों की संख्या भी 24 तक सीमित है। पृथ्वी पर भूमि की उपलब्धता भी सीमित ही है। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें अपने सीमित संसाधनों के साथ ही प्रबंधन करना पड़ता है। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि उनका उपयोग विवेकपूर्ण रूप से किया जाए। संसाधनों को कुशलतापूर्वक प्रयोग करने के कुछ मार्गदर्शन निम्नलिखित हैं:-
संसाधनों का विकाससंसाधन जिस प्रकार, मनुष्य के जीवन यापन के लिए अति आवश्यक हैं, उसी प्रकार जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ऐसा विश्वास किया जाता था कि संसाधन प्रकृति की देन है। परिणामस्वरूप, मानव ने इनका अंधाधुंध उपयोग किया है, जिससे निम्नलिखित मुख्य समस्याएँ पैदा हो गई है।
मानव जीवन की गुणवत्ता और विश्व शांति बनाए रखने के लिए संसाधनों की समाज में न्यायसंगत बँटवारा आवश्यक हो गया है। यदि कुछ ही व्यक्तियों तथा देशों द्वारा संसाधनों का वर्तमान दोहन जारी रहता है, तो हमारी पृथ्वी का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। इसलिए, हर तरह के जीवन का अस्तित्व बनाए रखने के लिए संसाधनों के उपयोग की योजना बनाना अति आवश्यक है। सतत् अस्तित्व सही अर्थ में सतत् पोषणीय विकास का ही एक हिस्सा है। संसाधनों का वर्गीकरण
संसाधनों का वर्गीकरण उत्पति के आधार पर 1- जैव संसाधन 2- अजैव संसाधन स्वामित्व के आधार पर 1- व्यक्तिगत संसाधन 2- सामुदायिक संसाधन 3- राष्टीय संसाधन 4- अंतराष्टीय संसाधन समाप्यता के आधार पर 1- नवीकरणीय संसाधन 2- अनवीकरणीय संसाधन विकास स्तर के आधार पर 1- संभावी संसाधन 2- विकसित संसाधन 3- भंडार 4- संचित कोष उत्पति के आधार पर
समाप्यता के आधार पर
स्वामित्व के आधार पर
रियो डी जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन, 1992 जून, 1992 में 100 से भी अधिक राष्ट्राध्यक्ष ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन में एकत्रित हुएँ सम्मेलन का आयोजन विश्व स्तर पर उभरते पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्याओं का हल ढूँढने के लिए किया गया था। इस सम्मेलन में एकत्रित नेताओं ने भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन और जैविक विविधता पर एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया। रियो सम्मेलन में भूमडलीय वन सिद्धांतों (Forest Principles) पर सहमति जताई और 21 वीं शताब्दी में सतत् पोषणीय विकास के लिए एजेंडा 21 को स्वीकृति प्रदान की। एजेंडा 21 यह एक घोषणा है जिसे 1992 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन (UNCED) के तत्वाधान में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा स्वीकृत किया गया था। इसका उद्देश्य भूमंडलीय सतत् पोषणीय विकास हासिल करना है। यह यह कार्यसूची है। जिसका उद्देश्य समान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं एवं सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावरणीय क्षति, गरीबी और रोगों से निपटना है। एजेंडा 21 का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रत्येक स्थानीय निकाय अपना स्थानीय एजेंडा 21 तैयार करें। राष्ट्रीय संसाधनतकनीकी तौर पर देश में पाये जाने वाले सारे संसाधन राष्ट्रीय हैं। देश की सरकार को कानूनी अधिकार है कि वह व्यक्तिगत संसाधनों को भी आम जनता के हित में अधिग्रहित कर सकती है। आपने देखा होगा कि सड़कें नहरें और रेल लाइनें व्यक्तिगत स्वामित्व को सरकार ने भूमि अधिग्रहण का अधिकार दिया हुआ है। सारे खनिज पदार्थ, जल संसाधन, वन, वन्य जीवन, राजनीतिक सीमाओं के अंदर सारी भूमि और 12 समुद्र मील (19.2 किमी०) तक महासागरीय क्षेत्र (भू-भागीय समुद्र) व इसमें पाए जाने वाले संरक्षण राष्ट्र की संपदा है। अंतर्राष्ट्रीय संसाधनकुछ अंतर्राष्ट्रीयय संस्थाएँ संसाधनों को नियंत्रित करती है। तट रेखा से 200 समुद्री मील की दूरी (अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र) से परे खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं है। इन संसाधनों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत 1968 में क्लब ऑफ रोम ने की। तत्पश्चात् 1974 में शुमेसर ने अपनी पुस्तक स्माल इज ब्यूटीफुल में इस विषय पर गांधी जी के दर्शन की एक बार फिर से पुनरावृत्ति की है। 1987 में बुन्डटलैंड आयोग रिपोर्ट द्वारा वैश्विक स्तर पर संसाधन संरक्षण में मूलाधार योगदान किया गया। इस रिपोर्ट ने सतत् पोषणीय विकास (Sustainable Development) की संकल्पना प्रस्तुत की और संसाधन संरक्षण की वकालत की। यह रिपोर्ट बाद में हमारा सांझा भविष्य (Our Common Future) शीर्षक से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। इस संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण योगदान रियो डी जेनेरो, ब्राजील में 1992 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वारा किया गया। विकास के स्तर के आधार पर संभावी संसाधन यह वे संसाधन हैं जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं परंतु इनका उपयोग नहीं किया गया है। उदाहरण के तौर पर भारत के पश्चिमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की अपार संभावना है, परंतु इनका सही ढंग से विकास नहीं हुआ है। विकसित संसाधन वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है। और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है। विकसित संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी और उनकी संभाव्यता के स्तर पर निर्भर करता है। भंडार पर्यावरण में उपलब्ध वे पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परंतु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में उसकी पहुँच से बाहर हैं. भंडार में शामिल है। उदाहरण के लिए, जल दो ज्वलनशील गैसों, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है तथा यह ऊर्जा का मुख्य स्रोत बन सकता है। परंतु इस उद्देश्य से, इनका प्रयोग करने के लिए हमारे पास आवश्यक तकनीकी ज्ञान नही है। संचित कोष यह संसाधन भंडार का ही हिस्सा है, जिन्हें उपलब्ध तकनीकी ज्ञान की सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है। परंतु इनका उपयोग अभी आरंभ नहीं हुआ है। इनका उपयोग भविष्य में आवश्यकता पूर्ति के लिए किया जा सकता है। नदियों के जल को विद्युत पैदा करने में प्रयुक्त किया जा सकता है। परंतु वर्तमान समय में इसका उपयोग सीमित पैमाने पर ही हो रहा है। इस प्रकार बाँधों में जल, वन आदि संचित कोष हैं जिनका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है। संसाधन नियोजनसंसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें निम्नलिखित सोपान हैं-
संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नियोजन एक सर्वमान्य रणनीति है। इसलिए भारत जैसे देश में जहाँ संसाधनों की उपलब्धता में बहुत अधिक विविधता है, यह और भी महत्पवपूर्ण है। यहाँ ऐसे प्रदेश भी है जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचुरता है, परंतु दूसरे तरह के संसाधनों की कमी है। कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं जो संसाधनों की उपलब्धता के संदर्भ में आत्मनिर्भर है और कुछ ऐसे भी प्रदेश है जहाँ महत्वपूर्ण संसाधनों की अत्यधिक कमी है। उदाहरणार्थ, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों में खनिजों और कोयले के प्रचुर भंडार है। अरूणाचल प्रदेश में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। परंतु मूल विकास की कमी है। राजस्थान में पवन और ऊर्जा संसाधनों की बहुतायत है, लेकिन जल संसाधनों की कमी है। लद्दाख का शीत मरूस्थल देश के अन्य भाग से अलग-थलग पड़ता है। यह प्रदेश सांस्कृतिक विरासत का धनी है परंतु यहाँ जल, आधारभूत अवसंरचना तथा कुछ महत्वपूर्ण खनिजों की कमी है। इसलिए राष्ट्रीय प्रांतीय प्रादेशिक और स्थानीय स्तर पर संतुलित संसाधन नियोजन की आवश्यकता है।
किसी क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता एक आवश्यक शर्त है परंतु प्रौद्योगिकी और संस्थाओं में तदनरूपी परिवर्तनों के अभाव में मात्र संसाधनों की उपलब्धता से ही विकास संभव नहीं है। देश में बहुत से क्षेत्र है जो संसाधन समृद्ध होते हुए भी आर्थिक रूप से पिछड़े प्रदेशों की गिनती में आते है। इसके विपरीत कुछ ऐसे प्रदेश है जो संसाधनों की कमी होते हुए भी आर्थिक रूप से विकसित हैं। उपनिवेश का इतिहास हमें बताता है कि उपनिवेशों में संसाधन संपन्न प्रदेश, विदेशी आक्रमणकारियों के लिए मुख्य आकर्षण रहे हैं। उपनिवेशकारी देशों ने बेहतर प्रौद्योगिकी के सहारे उपनिवेश के संसाधनों का शोषण किया तथा उन पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। अतः संसाधन किसी प्रदेश के विकास में तभी योगदान दे सकते हैं, जब वहाँ उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकास और संस्थागत परिवर्तन किए जाए। उपनिवेश के विभिन्न चरणों में भारत ने इन सबका अनुभव किया है। अतः भारत में संसाधन विकास लोगों के मुख्यतः संसाधनों की उपलब्धता पर ही आधारित नहीं था बल्कि इसमें प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन की गुणवत्ता और ऐतिहासिक अनुभव का भी योगदान रहा है। संसाधन नियोजन की आवश्यकता
संसाधनों का संरक्षणसंसाधनों की समाप्ति के पश्चात मानव जीवन की कल्पना मात्र भी दुष्कर है। संसाधनों का विवेकहीन उपभोग और अति उपयोग के कारण कई सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा हो सकती हैं जो मानव जाति की तबाही क लिए भी उत्तरदायी हो सकता है। इन समस्याओं से बचाव के लिए विभिन्न स्तरों पर संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। संसाधनों की समस्या के इतने भयावह रूप लेने से पहले ही कुछ महान लोगों ने संसाधनों के संरक्षण के महत्व को समझ लिया था और आजीवन लोगों को प्रेरित भी करते रहे उदाहरणस्वरूप गांधी जी ने संसाधनों के संरक्षण पर अपनी चिंता इन शब्दों में व्यक्त की है- "हमारे पास हर व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत कुछ है, लेकिन किसी के लालच की संतुष्टि के लिए नहीं। अर्थात् हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत है लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं। " उनके अनुसार विश्व स्तर पर संसाधन ह्रास के लिए लालची और स्वार्थी व्यक्ति तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी की शोषाणात्मक प्रवृत्ति जिम्मेदार है। वे अत्यधिक उत्पादन के विरुद्ध थे और इसके स्थान पर अधिक बड़े जनसमुदाय द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे। आर्थिक संसाधन क्या है उदाहरण सहित?आर्थिक भूगोल में मृदा, जल, जैव तत्त्व, खनिज, ऊर्जा आदि प्राकृतिक संसाधनों, आखेट, मत्स्य पालन,पशुपालन, वनोद्योग, कृषि, विनिर्माण उद्योग, परिवहन,संचार, व्यापार, वाणिज्य,आदि आर्थिक क्रियाओं तथा अन्य आर्थिक पक्षों एवं संगठनों के अध्ययनों को सम्मिलित करते है।
संसाधन क्या है उदाहरण सहित समझाइए?Solution : हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है। कोयला, जल, वायु, खनिज आदि, संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं।
आर्थिक संसाधनों की विशेषता क्या है?(1) संसाधन आर्थिक रूप से साध्य होते हैं! (2) कुछ संसाधन सीमित और कुछ संसाधन असीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं! (3) यह मनुष्य को प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए निशुल्क उपहार है! (4) ये मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं!
प्राकृतिक संसाधन क्या है उदाहरण सहित व्याख्या करें?Solution : ये प्राकृतिक साधन जिनका उपयोग मनुष्य अपने भोजन और विकास के लिए करता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। वायु, जल, मिट्टी, खनिज, ऊजो, इंधन के स्रोत जैसे कोयला, पेट्रोलियम इत्यादि हमारे प्राकृतिक संसाधन हैं।
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