opportunity cost in hindi meaning definition अवसर लागत क्या है उत्तर बताइए | अवसर लागत की अवधारणा परिभाषा सिद्धांत किसे कहते है ? Show सार्वजनिक क्षेत्र में मजदूरी इन्हीं कारणों से शेष अर्थव्यवस्था की तुलना में मजदूरी का भी संरक्षण किया जाता है। निःसंदेह, सार्वजनिक क्षेत्र में मजदूरी और नियोजन प्रत्यक्ष रूप से बजटीय आबंटन से जुड़ा होता है जो पुनः अर्थव्यवस्था की दशा पर निर्भर करता है। तथापि, एक महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि ये निर्णय अर्थव्यवस्था की तात्कालिक परिस्थितियों से प्रेरित नहीं होते हैं अपितु ये सरकार की राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित हो सकते हैं। विकासशील देशों में सरकार बेरोजगारी की समस्या को सुलझाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक लोगों को रख सकती है और स्थिर अथवा आकर्षक मजदूरी नीति का अनुसरण कर सकती है। राष्ट्रव्यापी अध्ययनों से पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद (स.घ.उ.)का बड़ा हिस्सा सामान्य प्रशासन और सशस्त्र बलों के वेतन और लाभों के भगतान पर व्यय होता है। यह विकासशील देशों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 4.2 प्रतिशत इस क्षेत्र के लिए वेतन भुगतान पर व्यय हुआ (इसी अवधि के दौरान श्रीलंका में 5.1 प्रतिशत, बांग्लादेश में 3.7 प्रतिशत और चीन में 3.8 प्रतिशत व्यय हुआ) जबकि अमेरिका में यह 2.3 प्रतिशत और स्वेडेन में 3 प्रतिशत था। विकासशील देशों में सरकारी क्षेत्र और शेष अर्थव्यवस्था के बीच मजदूरी में अधिक भिन्नता पाई जाती है। संभवतः यही मुख्य कारण है कि विकासशील देश की सरकारें अपनी जनसंख्या की तुलना में कम लोगों को रोजगार दे पाती हैं तथा विकसित देशों की तुलना में बहुत ही कम सार्वजनिक वस्तुएँ प्रस्तुत कर पाती हैं। भारत में सरकारी क्षेत्र (सामान्य प्रशासन और सशस्त्र सेवाओं) में औसत वेतन के 1990 के दशक के आरम्भ में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में 4 गुणा अधिक होने का अनुमान किया गया था। सामान्य प्रशासन के बाद, सरकार में मुख्य रूप से रोजगार उपलब्ध कराने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं जिन्होंने लाखों लोगों के लिए सुरक्षित समझे जाने वाले रोजगार का सृजन किया है तथा उसे बनाए रखा है। यद्यपि कि नौकरियों को स्थायी तौर पर सुरक्षित बनाने के लिए कोई स्पष्ट विधान नहीं है, सरकार ने श्रमिकों के एक वर्ग (सरकारी क्षेत्र में अथवा बृहत् निजी क्षेत्र फर्मों में) को कामबंदी अथवा छंटनी से संरक्षण प्रदान करने का उपाय किया है। यह 1976 और 1982 में वैधानिक हस्तक्षेप के माध्यम से सरकार की पूर्वानुमति के बिना बृहत् फर्मों को इकाइयों को बंद करते अथवा श्रमिकों की कामबंदी को निषिद्ध किया है। सरकार ने श्रमिक संघों के प्रति भी उदार नीति अपनाई है। रोजगार के संवर्द्धन और संरक्षण के अपने प्रयास में सरकार ने अस्सी के दशक तक सत्त् रूप से नए उपक्रमों की स्थापना की और कई दिवालिया निजी फर्मों को भी अपने हाथ में लिया। सार्वजनिक क्षेत्र के केन्द्रीय उपक्रमों की संख्या जो 1951 में 5 थी 1985 में बढ़ कर 245 हो गई तथा इन इकाइयों के कुल रोजगार में भी 1980 के दशक के मध्य तक सत् रूप से वृद्धि हुई और उसके बाद 1991 से इसमें गिरावट आ रही है। इसके विपरीत, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में औसत मजदूरी (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मचारियों की औसत वार्षिक परिलब्धियाँ) सांकेतिक और वास्तविक दोनों रूपों में विशेषकर 1980 के दशक के बाद से बढ़ रही है (देखिए आकृति 34.4)। इसका एक कारण सीधे-सीधे रोजगार में कमी आना है किंतु शक्तिशाली ट्रेड यूनियनों का दबाव, और 1980 तथा 1990 के दशक के आरम्भ में उच्च निर्गत वृद्धि के संभावित प्रभावों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। सभी दृष्टियों से यह स्पष्ट है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मचारियों की स्थिति अच्छी है। गैर-मजदूरी लाभ का अर्थ आवासों, टाउनशिप, स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी सुविधाओं के रख-रखाव पर सरकार का शुद्ध व्यय है। शुद्ध आँकड़ों की गणना सकल परिव्यय में से किराया, फीस इत्यादि के रूप में प्राप्त राशि को घटा कर किया जाता है। नए आवासों के निर्माण पर पूँजी व्यय को सम्मिलित नहीं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की मजदूरी प्रोफाइल की अनेक विशेषताएँ हैं। पहला, यदि हम सकल घरेलू उत्पाद में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की मजदूरी बिल का हिस्सा लेते हैं तो पाते हैं कि यह हिस्सा 1980 से स्थिर (2 प्रतिशत से अधिक) रहा है। यह अपने आप में इस बात को प्रदर्शित करता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के श्रमिक कितने सुरक्षित हैं। जहाँ सकल घरेलू उत्पाद में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लाभ के हिस्से की तुलना की जाती है, यह देखा जा सकता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का शुद्ध (कर पश्चात्) लाभ 1 प्रतिशत से कम रहा है। दूसरा, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में मजदूरी में वास्तविक दृष्टि से वृद्धि हो रही है और इसमें प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद से अधिक और इससे भी महत्त्वपूर्ण औसत औद्योगिक मजदूरी में अधिक वृद्धि हो रही है। सार्वजनिक क्षेत्र का एक कर्मचारी सकल घरेलू उत्पाद में अपने हिस्से का लगभग नौगुना और अर्थव्यवस्था में औसत औद्योगिक मजदूरी का लगभग दोगुना कमा रहा है। समय बीतने के साथ सार्वजनिक क्षेत्र और शेष अर्थव्यवस्था में मजदूरी अंतर में वृद्धि हुई है। दिखिए आकृति 34.4 और 35.5) तीसरा, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के पारिश्रमिक में गैर मजदूरी (अधिकांश वस्तु के रूप में) लाभ की अधिक मात्रा है। यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम शहरों में आवास सुविधाओं और सुनिश्चित शैक्षणिक. चिकित्सीय तथा अन्य सुविधाओं के रूप में है जो भारत में बहुत हद तक बीमा के समान है। प्रयोगकर्ता को इन सुविधाओं के प्रयोग के लिए नाम मात्र का फीस अथवा किराया चुकाना पड़ सकता है। किंतु इस मद में सरकार का शुद्ध वार्षिक व्यय बहुत ही अधिक है। इस शुद्ध वार्षिक व्यय को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के संपूर्ण श्रमबल द्वारा उपभोग किया जा रहा, सामूहिक गैर-मजदूरी लाभ कहा जा सकता है। हम निजी क्षेत्र के नियोजकों को शायद ही कभी इतना लाभ प्रदान करते हुए देखते हैं। बोध प्रश्न 3 सारांश आप यह पूछ सकते हैं कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था में मजदूरी में इस सत्त् वृद्धि के क्या कारण थे। यदि हम माँग और पूर्ति वक्रों की दृष्टि से सोचें तो यह कल्पना करना कि दोनों वक्र समय के साथ बढ़ रहे हैं, सही होगा। अब श्रमिक के अवसर लागत पर विचार कीजिए जो श्रमिक पूर्ति वक्र को निर्धारित करता है। यह संभव है कि कृषि के विकास के कारण मुख्य रूप से समय के साथ श्रमिक के अवसर लागत में वृद्धि हुई है। हरित क्रांति ने उत्पादन की रीति को स्थायी तौर पर बदल दिया है, लघु फसल चक्रों के कारण एकाधिक फसल उपजाए जाने लगे हैं और सरकार की कल्याणकारी कार्यकलापों ने निर्धनों की जीवन दशा में सुधार किया है। इन सबके परिणामस्वरूप कृषि मजदूरी दर में वृद्धि हुई, जिसने श्रमिक पूर्ति वक्र को प्रभावित किया और इसके परिणामस्वरूप औद्योगिक मजदूरी में भी वृद्धि हुईं अन्य संभव शक्तियाँ हैं जो मजदूरी के पक्ष में अथवा विरोध में सक्रिय रही हैं… श्रमिक संघ, औद्योगिक उत्पादों के लिए बाजार का प्रसार और श्रमिक उत्पादकता। इन शक्तियों में, उत्पादकता एक महत्त्वपूर्ण और बुनियादी निर्धारक है। किंतु हम श्रमिक उत्पादकता के बारे में क्या कह सकते हैं? क्या उच्च मजदूरी से उच्च उत्पादकता का पता चलता है? सामान्य रूप से औसत श्रमिक उत्पादकता के लिए प्रयोग किया जाने वाले माप-प्रति श्रमिक मूल्य संवर्धित औद्योगिक निर्गत-में इस अवधि में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है और इसे मजदूरी वृद्धि के पीछे प्रेरक के रूप में देखा गया है। किंतु उत्पादकता की यह माप अपरिष्कृत है। उत्पादकता सुधार के वास्तविक माप के लिए अधिक जटिल पद्धतियों, मुख्य रूप से मजदूरी संबंधी विभिन्न प्रतिस्पर्धी बलों की जटिल समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए, की आवश्यकता है। कुछ महत्त्वपूर्ण अध्ययनों में यह तर्क दिया गया है कि औसत श्रमिक उत्पादकता में स्पष्ट वृद्धि मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी उन्नयन और पूंजी के सघनीकरण के कारण हुआ है और न कि श्रम के प्रयोग में दक्षता में अधिक वृद्धि होने के कारण। यद्यपि इस दृष्टिकोण को चुनौती दी जा सकती है यह अनेक राष्ट्रव्यापी अध्ययनों के असंगत नहीं है जिसमें यह पाया गया कि पूर्वी एशियाई श्रमिकों की तुलना में भारतीय श्रमिक कम उत्पादक हैं। तथापि यह एक खुला प्रश्न है। अवसर लागत आप क्या समझते हैं?अवसर लागत की परिभाषा बताइए
✍️किसी साधन की अवसर लागत से अभिप्राय उसके दूसरे सर्वश्रेष्ठ विकल्प मूल्य के त्याग से हैं। ✍️अर्थव्यवस्था की दृष्टि से एक वस्तु की अतिरिक्त मात्रा की अवसर लागत दूसरी वस्तु की त्याग की गई मात्रा होती है। ✍️अवसर लागत किसी भी विकल्प का त्याग ना होकर दूसरे सर्वश्रेष्ठ विकल्प का त्याग है।
अवसर लागत सिद्धांत की मान्यता क्या है?अवसर लागत के इस सिद्धांत का प्रयोग उत्पादन के विभिन्न साधनों के वितरण में प्रमुखता से किया जाता है। किसी भी साधन को उपयोग करने के लिए यह माना जाता है कि उस साधन को कम से कम उतना मूल्य अवश्य मिलना चाहिए जितना कि उसे अन्य वैकल्पिक प्रयोगों में मिलना संभव हो सकता था।
अवसर लागत सिद्धांत का जनक कौन है?(1) वास्तविक लागत की विचारधारा पर आधारित रिकार्डो के तुलनात्मक लागत सिद्धान्त को अपर्याप्त और अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित बताते हुए हैबरलर ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अवसर लागत सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
अवसर लागत की क्या विशेषता है?अवसर लागत की परिभाषा
प्रो. लिप्सी के अनुसार, “किसी साधन के प्रयोग करने की अवसर लागत दूसरी वस्तु की वह मात्रा है जिसका कि स्पष्टतः त्याग करना पड़ता है।” संक्षेप में किसी एक वस्तु की अवसर लागत किसी दूसरी वस्तु के सर्वश्रेष्ठ विकल्प का त्याग होती है।
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