रुस्तम क्वेश्चन किया गया एवं जलस्तर गिरने का कारण है ऑप्शन ए दिया गया है तेजी से बड़ों का उन्मूलन ऑप्शन भेजिएगा ट्यूबवेल से भोम जल की काफी मात्रा बाहर निकालना ऑप्शन सी दिया गया वर्षों में भारी कमी ऑप्शन भी दिया गया है उपरोक्त सभी आधार दोस्तों में बताना है कि जो भोम जल होता है जो भूमिगत जल होता है उसका स्तर गिरने का क्या कारण है जो तुम जानते हैं कि जॉब बंद होते हैं जो बहुत सारे गाने बंद होते हैं वहां बहुत ज्यादा वर्षा होती है बहुत ज्यादा वर्षा होने के कारण उस जगह की जो भूमिगत जल स्तर होता है वह बढ़ जाता लेकिन दोस्तों को हम वर्तमान में देखते हैं तो वर्तमान में बहुत अधिक वनों की कटाई होती है आंकड़ों को उन्मूलन होता है तेजी से तेजी से बड़ों का उन्मूलन होने के कारण भूजल का स्तर गिर रहा है तो यह ऑप्शन सही हो गया ऑप्शन भी देखते हैं दोस्तों इसमें टयूब्ल्यू में बहुत जल्द काफी मात्रा में बाहर निकालना तो हम जानते हैं कि दोस्तों जब वर्तमान में ट्यूबवेल ओ की मात्रा बहुत अधिक मात्रा बहुत अधिक होने के कारण भूमिगत जल है जो Show
अभी मात्रा में बांध निकल जाता है इससे भूजल का स्तर होता है वह घट जाता है तो यह भी ऑप्शन एक सही हो गया दोस्तों इसी प्रकार दोस्त बारिश में कमी हो जाएगी बारिश में भारी कमी हो जाती है तो वह अपने आप ही घर जाता है यह भी इसका ऑप्शन सही हो गया दोस्तों दोस्त सारे ऑप्शन सही होने के कारण चेक ऑप्शन भी है उपरोक्त सभी स्थाई हो जाएगा दोस्तों यही क्वेश्चन पूछा था कि घूमने का क्या कारण है तो यह तीनों ही इस भूजल स्तर गिरने का कारण है तो ऑप्शन भी इसका सही आंसर धन्यवाद दोस्तों भूमिगत जल के स्तर की क्षीणता का मुख्य कारण क्या है?सही उत्तर का चुनाव कीजिए-
Answer (Detailed Solution Below)Option 3 : सिंचाई हेतु नलकूपों तथा हाथ के पंपों का उपयोग होना। Free CT 1: Growth and Development - 1 10 Questions 10 Marks 10 Mins संकल्पना: भूजल:
व्याख्या: भूजल का ह्रास :
इस प्रकार, सिंचाई के लिए नलकूपों और हैंडपंपों का उपयोग किया जाता है। भूजल स्तर में गिरावट का यह मुख्य कारण है। Last updated on Dec 28, 2022 The CTET Admit Card link is active from 26th December 2022! The CTET exam will be conducted on 28th and 29th December 2022. The CTET Application Correction Window was active from 28th November 2022 to 3rd December 2022.The detailed Notification for CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle was released on 31st October 2022. The last date to apply was 24th November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers of classes 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here. Candidates willing to apply for Government Teaching Jobs must appear for this examination. भारत का उत्तरी क्षेत्र का मैदानी इलाका बेहद उपजाऊ है। हालांकि इस उपजाऊ क्षेत्र में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। जमीन के नीचे का जल स्तर तेजी से खत्म होता जा रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अनुसार, पिछले दशक में उत्तरी भारत का भूजल 8.8 करोड़ एकड़-फिट कम हो चुका है। भूजल के बेतहाशा इस्तेमाल के कारण जल स्तर में गिरावट आ रही है। भूजल स्तर के इस गिरावट से आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी की कमी होगी। लेकिन यह बात यहीं तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिक सक्रिय रूप से इस बात को लेकर अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर भूमिगत जल में आयी कमी किस तरह से जमीन की ऊपरी सतह को संकुचित कर रही है। इससे जलभृतों (एकुइफेर) में अपरिवर्तनीय बदलाव हो रहे हैं। यह जलभृत जमीन का वह हिस्सा होता है जहां भूजल इकट्ठा होता है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जैसे-जैसे जलभृतो से पानी गायब होता जायेगा, वैसे ही भूमि या तो अचानक रूप से या फिर आहिस्ता-आहिस्ता बैठती जाएगी। इससे भूमि का क्षरण हो सकता है। भूमिगत जल किस तरह से ऊपर की जमीन को प्रभावित करता है?भूजल पृथ्वी के सतह से बहुत गहराई में पाया जाता है। भूजल यहां पर मिट्टी के छिद्रों या चट्टानों की दरारों के बीच बची खाली जगहों को भर देता है। उन गहराइयों से पानी पर दबाव पड़ता है जिससे वह पृथ्वी को ऊपर की ओर धकेलता है। कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी के शोधकर्ता और सिविल इंजीनियर शगुन गर्ग बताते हैं कि पृथ्वी का वजन पानी और अंदुरूनी पदार्थ, दोनों से मिलकर बनता है। जब भूजल को अत्यधिक मात्रा में निकाला जाता है या उसका दोहन किया जाता है तो ऐसी स्थिति में अंदुरूनी पदार्थ ही भार को मैनेज करते हैं। अत्यधिक भूजल दोहन के मामले में भारत पहले स्थान पर है। जबकि भारत में यदि अन्य इलाकों के मुक़ाबले उत्तरी गंगा के मैदानी क्षेत्रों की तुलना की जाये, तो यहां भूजल का दोहन अन्य क्षेत्रों से कहीं अधिक है। यहां भूजल के खत्म होने के चलते जमीन की सतह का आकार तेजी से बदल रहा है। पानी की बढ़ती मांग के कारण एनसीआर दिल्ली गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। यह नक्शा खतरे के जोखिम का विश्लेषण करता है। इस क्षेत्र में जमीन तेजी से धंस रही है। दिल्ली के कुछ हिस्सों जैसे कि कापसखेड़ा, जो कि इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास है वहां का अध्ययन करते हुए उन्होंने पाया कि 2014-15 के दौरान यहां भूमि क्षरण की दर 11 सेंटीमीटर प्रति वर्ष थी। बाद के दो सालों में क्षरण की यह दर बढ़कर 17 सेंटीमीटर प्रति वर्ष से भी ज्यादा हो गयी थी। तस्वीर साभार- अध्ययनगर्ग ने दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में जलोढ़ मिट्टी के जलभृतों का अध्ययन किया और पाया कि इस क्षेत्र में जमीन तेजी से धंस रही है। दिल्ली के कुछ हिस्सों जैसे कि कापसखेड़ा, जो कि इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास है वहां का अध्ययन करते हुए उन्होंने पाया कि 2014-15 के दौरान यहां भूमि क्षरण की दर 11 सेंटीमीटर प्रति वर्ष थी। बाद के दो सालों में क्षरण की यह दर बढ़कर 17 सेंटीमीटर प्रति वर्ष से भी ज्यादा हो गयी थी। गर्ग के अलावा, दूसरे अन्य शोधकर्ताओं ने भी पंजाब से लेकर पश्चिमी बंगाल और गुजरात तक गंगा के क्षेत्रों का अध्ययन किया और उन्हें भी जमीन के धंसने के सबूत मिले हैं। क्या भूमि संकुचन सिर्फ भूजल स्तर के कारण ही होता है?पृथ्वी का धंसना कई चीजों पर निर्भर करता है, जिसमें मिट्टी की किस्म और भुरभुरापन भी निहित है। गर्ग बताते है, “यदि जमीन में चूना पत्थर की मात्रा अधिक होती है, तो वह पानी में घुल सकता है।” जिससे जमीन पर और दबाव पड़ता है। “कुछ मामलों में, कोयले या पेट्रोलियम का बहुत ज़्यादा खनन जैसे कारक भी भूमि क्षरण में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।” लेकिन ऐसे मामलों में जहां पर धरती पतले और महीन मिट्टी के कणों से निर्मित होती है- जैसे कि गंगा के उपजाऊ मैदान में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी। ऐसी जगहों पर कठोर चट्टानों की तुलना में जमीन का धंसना ज़्यादा होता है। जल विज्ञानी विवेक ग्रेवाल ऐसा बताते हैं। वे ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज ऑफ़ इंडिया नामक ट्विटर माइक्रोब्लॉग चलाते हैं जिसमें वे देश के भूजल से जुड़े मसलों पर चर्चा करते हैं। हालांकि, ग्रेवाल इस बात पर जोर देते हैं कि भूमि का क्षरण पूरी तरह से मानव जनित गतिविधियों की देन है। टेकटोनिक प्लेटो की हलचल भी भूमि क्षरण का एक मुख्य कारण हो सकता है, जोकि लाखों वर्ष में कभी एक बार होती है। वह कहते हैं, “जमीन का एक सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से खिसकने की गति जियोलॉजिकल समय के अनुरूप नहीं है बल्कि यह मानव जनित है।” गर्ग आगे कहते हैं, “80% से अधिक भूमि का क्षरण, भूजल के खत्म होने से होता है।” ज़मीन के धंसने से क्या होता है?ज़मीन के धंसने के कई मायने हो सकते हैं। गर्ग स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि यदि ज़मीन का धंसना काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है, तो इसका मतलब है कि वह क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ सकता है। लेकिन यदि ऐसे क्षेत्र जहां ज़मीन के धंसने की दर भिन्न-भिन्न होती है, उन क्षेत्रों की सड़कों, इमारतों और घरों जैसे नागरिक बुनियादी ढांचों को प्रभावित कर सकता है। यह प्रक्रिया बुनियाद को कमजोर कर सकती है या इमारतों में दरार पैदा कर सकती है। किसी विशेष क्षेत्र में भूमि क्षरण के सही प्रभावों का आकलन करने के लिए, विस्तृत ज़मीनी विश्लेषण के साथ ओवरलैप किये गए कम्प्यूटेशनल डेटा की आवश्यकता होती है। फिर भी, यह अनुमान लगाया गया है कि 2040 तक दुनिया के कुल सतह का लगभग 8% भूमि के क्षरण होने की संभावना है। यह दुनिया के प्रमुख शहरों में रहने वाले 21% यानी कि 120 करोड़ लोगों को प्रभावित करेगा। दूसरी अन्य आपदाओं की तरह ही यह अनुमान है कि दुनिया के दूसरे भागों के बजाय भूमि क्षरण का सबसे अधिक प्रभाव एशिया में होगा। एक अनुमान के मुताबिक एशियाई आबादी का 86 % भूमि क्षरण से प्रभावित होगी। जिसमें कि लगभग 8.17 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान होगा। भूमि का धंसना कितना वास्तविक और कितना सामान्य है?ग्रेवाल बताते हैं कि भूमि धंसने के सबसे शुरुआती मामलों में से जो प्रकाश में आया था, वह संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया का मामला था। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर 1930 के दशक से मुख्य रूप से कृषि कार्यों के चलते भूजल में गिरावट को देखा गया। दुनिया के उन सभी इलाकों में भूमि क्षरण को देखा गया है जहां पर भूजल का बहुत अधिक दोहन हुआ है। भूमि धंसने के सबसे प्रमुख मामलों में से एक मैक्सिको में घटित हुआ था। वहां पर भूमि के धंसने की दर में भिन्नता के चलते इमारतें झुकी हुई हैं। पिछले दशक के दरम्यान इंडोनेशिया की राजधानी, जकार्ता में जमीन 2.5 मीटर धंस चुकी है। यह समस्या इतनी विकराल बन चुकी है कि वहां की सरकार राजधानी को स्थानांतरित करने की योजना बना रही है। चीन और ईरान जैसे देशों में भी पिछले कुछ दशकों में भूमि धंसने के लक्षण दिखने लगे हैं। क्या हम क्षरण होती भूमि को ठीक कर सकते हैं?भूजल का रिचार्ज होना एक स्वाभाविक या प्राकृतिक प्रक्रिया है। यदि हम दोहन किये गये भूजल के बराबर की मात्र में इसको रिचार्ज कर दें, या फिर जल का समुचित इस्तेमाल करें तो हम भू क्षरण को कम कर सकते हैं। हालांकि, शोध बताता है कि देश में भूजल का इतना अधिक दोहन हो चुका है कि इसको बहाल करने की दर खपत करने से कहीं आगे निकल चुकी है। भारत में लगभग 433 अरब क्यूबिक मीटर भूजल का सालाना इस्तेमाल होता है। रिपोर्ट बताती है कि यह काफी गंभीर स्थिति को दर्शाता है। ग्रेवाल सलाह देते हैं कि ऐसे मामलों में मैनेज्ड एकुइफेर रिचार्ज (MAR) ही एक मात्र संभावित हल है। मैनेज्ड एकुइफेर रिचार्ज, भूजल स्तर को बहाल करने की कृत्रिम विधि है, जिसे अक्सर हाइड्रोलॉजिकल बैंकिंग की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
जबकि गर्ग का मानना है कि किसी अन्य मामलें में एकुइफेर अपनी भण्डारण की क्षमता को खो देते हैं, तो अपरिवर्तनीय बदलाव हो सकता हैं। “एक बार यदि पृथ्वी अपने नीचे के जल को धारण करने की क्षमता को खो देती है और जमीन धंस जाती है, तब ऐसी स्थिति में जलभृतों की क्षमताओं को वापस लाना संभव नहीं है।” इस बात से ग्रेवाल भी सहमत हैं और कहते हैं कि यह कोई फैलने-सिकुड़ने वाली चीज नहीं है बल्कि यह स्थिर है। उदाहरण के लिए, गर्ग ने अपने शोध में पाया कि कापसखेड़ा के कुछ खास इलाकों में जलभृत अपनी क्षमता को खो चूकी है। लेकिन, फिर भी हमें शोध कार्य को जारी रखना है और पूरी घटना को भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझना है। गर्ग ने निष्कर्ष में कहा, “दुर्भाग्य से, भारत के पास इस तरह के शोध की काफी कमी है, यह भी एक चिन्ता का विषय है।” इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। बैनर तस्वीरः विशेषज्ञ चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जैसे-जैसे जलभृतो से पानी गायब होता जायेगा, वैसे ही भूमि या तो अचानक रूप से या फिर आहिस्ता-आहिस्ता बैठती जाएगी। इससे भूमि का क्षरण हो सकता है। तस्वीर– अनिल/पिक्साबे जल स्तर घटने का कारण क्या है?Solution : भूमिगत जल स्तर घटने के तीन कारण है-कम वर्षा होना, भूमिगत जल का अत्यधिक उपयोग होना तथा वनों की अन्धाधुन्ध कटाई होना।
भारत में जल स्तर गिरने का मुख्य कारण क्या है?स्पष्ट है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण जल की उपलब्धता कम हो जाने के चलते भूमिगत जल पर भी दबाव बढ़ा जिसका परिणाम इसके गिरते स्तर के रूप में सामने आया। बढ़ते औद्योगिकीकरण तथा गाँवों से शहरों की ओर तेजी से पलायन तथा फैलते शहरीकरण ने भी अन्य जलस्रोतों के साथ भूमिगत जलस्रोत पर भी दबाव उत्पन्न किया है।
भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जाते हैं?Solution : अधिक-से-अधिक वनस्पति उगाकर या रेन वाटर हार्वेस्टिंग द्वारा।
भारत में भूजल की मुख्य समस्या क्या है?भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण नदियों के प्रवाह में कमी, भूजल संसाधनों के स्तर में कमी एवं तटीय क्षेत्रों के जलभृतों में लवण जल का अवांछित प्रवेश हो रहा है। कुछ आवाह क्षेत्रों में नहरों से अत्यधिक सिंचाई के परिणामस्वरूप जल ग्रसनता एवं लवणता की समस्या पैदा हो चुकी है।
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