एकाकी स्वामित्व से आप क्या समझते हैं - ekaakee svaamitv se aap kya samajhate hain

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Sole Proprietor In Hindi –  हेल्लो Engineers कैसे हो , उम्मीद है आप ठीक होगे और पढाई तो चंगा होगा आज जो शेयर करने वाले वो Entrepreneurship  के Sole Proprietor  के बारे में हैं, तो यदि आप जानना चाहते हैं की Sole Proprietor In Hindi  क्या हैं तो आप इस पोस्ट को पूरा पढ़ सकते हैं , और अगर समझ आ जाये तो अपने दोस्तों से शेयर कर सकते हैं |

 Sole Proprietor In Hindi

एकाकी स्वामित्व से आप क्या समझते हैं - ekaakee svaamitv se aap kya samajhate hain
Sole Proprietor In Hindi

  • Factors Affecting Entrepreneurship Development In Hindi
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Sole Proprietor In Hindi

Sole Proprietor (एकाकी व्यवसाय) से आशय –

एकाकी व्यापार व्यावसायिक संगठनों का वह प्रारूप है जिसे एक ही व्यक्ति स्थापित करता है । वह स्वयं की पूँजी लगाता है और प्रबंध के समस्त कार्य स्वयं ही सम्पन्न करता है और सम्पूर्ण लाभ – हानि को स्वयं ही वहन करता है।

हैने के अनुसार , ” एकाकी व्यापार व्यवसाय का वह स्वरूप है जिसका प्रमुख प्रायः एक व्यक्ति होता है जो उसके समस्त कार्यों के लिये स्वयं उत्तरदायी होता है और उसकी समस्त क्रियाओं का संचालन करता है । वह सम्पूर्ण हानि – लाभ भी स्वयं ही वहन करता है । “

Characteristics Of Sole Proprietor – एकाकी व्यापार की  विशेषताएँ-

Sole Proprietor (एकाकी व्यापार) की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

( i ) Sole proprietorship एकाकी स्वामित्व –

एकाकी व्यापार में व्यवसाय का स्वामित्व केवल एक ही व्यक्ति के हाथ में होता है । वह व्यवसाय के सभी साधनों – पूँजी , सम्पत्ति का अकेला स्वामी होता है ।

( ii ) unlimited liability (असीमित दायित्व) –

एकाकी व्यवसायी का दायित्व असीमित होता है । यदि एकाकी व्यापार में हानि होती है अथवा व्यावसायिक ऋणों का भुगतान करना हो तो उसमें निजी सम्पत्ति का उपयोग भी हो सकता है ।

( iii )Own management and control (एकाकी प्रबंध एवं नियंत्रण) –

एकाकी व्यापार में व्यवसायी अपने व्यापार का प्रबंध व संचालन स्वयं करता है । वह आवश्यकता पड़ने पर कर्मचारियों की नियुक्ति भी कर सकता है एवं उन्हें पद से हटा भी सकता है ।

( iv ) Freedom from legal formalities (वैद्यानिक औपचारिकताओं से मुक्ति) –

एकाकी व्यापार की एक विशेषता यह है कि इस प्रकार का व्यवसाय प्रारम्भ करने में न्यूनतम वैद्यानिक औपचारिकताएँ पूरी करनी होती हैं । वह अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यवसाय का प्रारम्भ कर सकता है । एक व्यवसाय में हानि होने पर उसे बंद करके दूसरा व्यवसाय शुरू कर सकता है ।

( v ) Freedom in business choice (व्यवसाय के चुनाव में स्वतंत्रता) –

एकाकी व्यवसायी को व्यवसाय चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है वह अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यवसाय को प्रारम्भ कर सकता है । एक व्यवसाय में हानि होने पर उसे बंद करके वह दूसरा व्यवसाय प्रारम्भ कर सकता है ।

( vi ) Limited work area (सीमित कार्य क्षेत्र) –

सीमित पूँजी , सीमित कार्यक्षमता एवं असीमित उत्तरदायित्वों के कारण एकाकी व्यापार का कार्य – क्षेत्र प्रायः सीमित रहता है । एकाकी व्यापार छोटे पैमाने पर ही किये जाते हैं ।

( vii ) Monopoly on capital (पूँजी पर एकाधिपत्य) –

एकाकी व्यापार में सम्पूर्ण पूँजी का प्रबंध अकेले एकाकी व्यापारी को ही करना पड़ता है , वह पूंजी या तो अपने पास से लगता है या अन्य व्यक्तियों से ऋण लेकर लगाता है । सम्पूर्ण पूँजी पर उसी का स्वामित्व होता है ।

( viii ) Optional start and end (ऐच्छिक आरम्भ एवं अंत) –

एकाकी व्यापारी अपना व्यापार मर्जी  से कभी भी शुरू कर सकता है और कभी भी बंद कर सकता है ।

( ix )No difference between business and its owner (व्यवसाय व उसके स्वामी में अंतर न होना) –

एकाकी व्यापार में व्यवसाय व्यवसाय के स्वामित्व में कोई अंतर नहीं होता है । व्यवसाय का उसके स्वामी से पृथक कोड अस्तित्व नहीं होता ।

( x )Suitable for specific ventures (विशिष्ट उपक्रमों के लिये उपयुक्त) –

जिन व्यवसायों में व्यक्तिगत योग्यता एवं । सतर्कता पायी जाती है उनके लिये एकाकी व्यवसाय का स्वरूप सर्वश्रेष्ठ है । जैसे विभिन्न पेशे के कार्य अध्यापक , वकील , चिकित्सक तथा अन्य फुटकर व्यापार के लिये यह सर्वश्रेष्ठ प्रारूप सिद्ध होगा ।

Advantages (properties) of Sole Proprietor – एकाकी व्यापार के लाभ ( गुण ) –

एकाकी व्यापार के निम्नलिखित लाभ हैं –

( i )Ease of starting and ending (प्रारम्भ एवं अंत करने में सरलता) –

एकाकी व्यवसाय का मुख्य गुण यह है कि । इसे चाहे जब प्रारम्भ व चाहे जब बंद किया जा सकता है । इसके लिये विशेष औपचारिकताएँ पूरी नहीं करनी होती , जबकि व्यवसाय के अन्य स्वरूपों की दशा में अधिक प्रावधानों की पूर्ति करना होती है ।

( ii )Quick decision (शीघ निर्णय) –

एकाकी व्यवसाय का एक प्रमुख गुण यह है कि इसमें सभी निर्णय एक ही व्यक्ति द्वारा लिये जाते हैं , अतः निर्णय लेने में विलम्ब नहीं होता व शीघ्र निर्णय के कारण व्यापारिक अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है ।

( iii )Privacy  (गोपनीयता) –

एकाकी व्यापार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें गोपनीयता | बनी रहती है क्योंकि व्यवसाय के सम्पूर्ण कार्यों की जानकारी केवल एक ही व्यक्ति को । होती है , अतः वह समस्त व्यापारिक रहस्यों को गोपनीय रख सकता है ।

( iv ) Direct inspiration (प्रत्यक्ष प्रेरणा) –

एकाकी व्यापार में व्यवसायी को प्रत्यक्ष प्रेरणा मिलती है जो जितना अधिक कार्य करता है , वह उतना ही अधिक लाभ अर्जित करता है अतः व्यवसायी अधिक कार्य करने के लिये प्रोत्साहित होता है ।

( v ) Austerity (मितव्ययिता) –

एकाकी व्यवसाय में साधनों के प्रयोग में मितव्ययिता रहती है । व्यापारी अपने साधनों का अधिकतम उपयोग करने का प्रयास करता है क्योंकि सम्पूर्ण लाभ एवं हानि के लिये वह स्वयं उत्तरदायी होता है ।

( vi ) Freedom of business (व्यवसाय की स्वतंत्रता) –

एकाकी व्यापार में व्यवसायी को व्यापार चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है । वह कोई भी व्यापार प्रारम्भ कर सकता है एवं उसमें कुछ भी परिवर्तन कर सकता है ।

( vii ) Personal contact (व्यक्तिगत सम्पर्क) –

एकाकी व्यापारी अपने ग्रहकों से घनिष्ठ व्यक्तिगत सम्पर्क रखता है , अतः वह उनकी खूबियों व प्रवृत्तियों से परिचित हो जाता है और उसी के अनुरूप सेवायें प्रदान करने की कोशिश करता है ।

( viii ) Facility to borrow (ऋण लेने में सुविधा) –

एकाकी व्यापारी को ऋण आसानी से मिल जाते है । क्योंकि उसके असीमित दायित्वों के कारण ऋणदाताओं पर कोई जोखिम नहीं रहता । ऋणदाता जानता है कि इस ऋण को व्यक्ति की निजी सम्पत्ति से भी वसल किया जा सकता है ।

( ix ) Alertness (सतर्कता) –

एकाकी व्यापार का प्रबंध एवं संचालन एक ही व्यक्ति द्वारा किया । जाता है अतः वह जोखिम व असीमित दायित्वों के कारण पूर्ण सतर्कता से कार्य करता है ।

( x ) Benefits of paternal fame (पैतृक ख्याति का लाभ) –

एकाकी व्यवसाय का एक प्रमख लाभ यह है कि व्यापारी को अपने पूर्वजों की ख्याति का लाभ मिलता है , जिससे वह व्यवसाय का विस्तार । आसानी से कर सकता है ।

Disadvantages of Sole Proprietor -(एकाकी व्यापार के दोष) –

एकाकी व्यापार के निम्नलिखित दोष है –

( i )Limited economic resources (सीमित आर्थिक साधन) –

एकाकी व्यापार का प्रमख दोष एक यह है एकाकी व्यापार के वित्तीय साधन सीमित होते हैं । यद्यपि वह अन्य व्यक्तियों से ऋण ले सकता हैं लेकिन उसके ऋण  लेने की शक्ति भी सिमित होते हैं | अतः वह बड़े पैमाने पर वयापार करने में असमर्थ होता हैं  |

( ii )Limited managerial capacity (सीमित प्रबंधकीय क्षमता) –

एक व्यक्ति सर्वगुणसम्पन्न नहीं हो सकता , अतः एकाकी व्यापार की प्रबंधकीय योग्यता सीमित रह जाती है जिससे वह बड़े व्यापार की दशा में कुशलतापूर्वक प्रबंध करने में असमर्थ होता है , परिणामतः Inexhaustibility  (अमितव्ययिता)  बढ़ती जाती है ।

( iii ) unlimited liability (असीमित दायित्व )-

एकाकी व्यापार का प्रमुख दोष यह है कि एकाकी व्यापारी के दायित्व असीमित होते हैं । यदि व्यवसाय में हानि होती है तो उसकी निजी सम्पत्ति को व्यावसायिक दायित्वों के भुगतान के लिये प्रस्तुत किया जा सकता है ।

( iv ) Temporary existence (अस्थाई अस्तित्व) –

एकाकी व्यापारी के जीवन के साथ – साथ उसके व्यवसाय का अस्तित्व भी जुड़ा रहता है । यदि एकाकी व्यवसायी की मृत्यु हो जाती है अथवा वह व्यापार चलाने में असमर्थ होता है तो उसका व्यवसाय भी बंद हो जाता है ।

( v ) Hasty decision (उतावले निर्णय) –

एकाकी व्यापारी समस्त निर्णय स्वयं अकेले लेता है जिससे निर्णयों में शीघ्रता रहती है , लेकिन जल्दबाजी में गलत निर्णय होने की पूर्ण संभावना बनी रहती है । कभी – कभी दोषपूर्ण निर्णय के कारण व्यवसाय का अंत भी हो जाता है ।

( vi )Dependence on employees (कर्मचारियों पर निर्भरता) –

एकाकी व्यापार में व्यापार का क्षेत्र बड़ा होने के कारण एकाकी व्यापारी सम्पूर्ण व्यापार पर स्वयं अकेले नियंत्रण नहीं रख सकता , अतः उसे पूर्णतः अपने कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ता है जिससे हानि की संभावनाएँ बढ़ जाती है

( vii ) Limited reputation (सीमित ख्याति )-

एक व्यक्ति की ख्याति सीमित होती है अतः एकाकी व्यापारी को सीमित ख्याति के कारण पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं हो पाती , अतः अपने व्यापार का विकास करने में वह असमर्थ होता है ।

( viii ) Loss in case of absence (अनुपस्थिति की दशा में हानि) –

एकाकी व्यापार में एकाकी व्यापारी अनुपस्थित रहता है तो हानि होने की अधिक संभावना होती है । ( ix ) विकासशील व्यवसाय के लिये अनुपयुक्त – एकाकी व्यापार विकासशील व्यवसाय के लिये अनुपयुक्त है ।


Final Word

दोस्तों इस पोस्ट को पूरा पढने के बाद आप तो ये समझ गये होंगे की Sole Proprietor In Hindi और आपको जरुर पसंद आई होगी , मैं हमेशा यही कोशिस करता हु की आपको सरल भासा में समझा सकू , शायद आप इसे समझ गये होंगे इस पोस्ट में मैंने सभी Topics को Cover किया हूँ ताकि आपको किसी और पोस्ट को पढने की जरूरत ना हो , यदि इस पोस्ट से आपकी हेल्प हुई होगी तो अपने दोस्तों से शेयर कर सकते हैं|

एकाकी स्वामित्व से आप क्या समझते है?

एकाकी व्यापारी स्वयं ही व्यवसाय का प्रबंधक और कर्मचारी होता हैं। वह स्वयं ही आवश्यक पूंजी लगाता हैं। लाभ-हानि का अधिकारी होता हैं तथा व्यापार के समस्त उत्तरदायित्वों को पूरा करता है। इन्ही विषेष ताओं के कारण उसे एकाकी व्यापारी, व्यक्तिगत साहसी, व्यक्तिगत व्यवस्थापक, एकल स्वामी तथा एकाकी स्वामित्व आदि भी कहा जाता हैं।

एकाकी स्वामित्व व्यवसाय की विशेषताएं क्या है?

एकल स्वामित्व की विशेषताएँ एकल स्वामित्व : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय का स्वामी एक ही व्यक्ति होता है। यह व्यक्ति ही व्यवसाय से सम्बन्धित सभी संपत्तियों का स्वामी होता है और यही सारे जोखिम उठाता है। इसलिए एकल स्वामित्व व्यवसाय स्वामी की मृत्यु के साथ या स्वामी की इच्छा से समाप्त हो जाता है।

एकाकी व्यापार से आप क्या समझते है इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

एकाकी व्यापार के प्रमुख लक्षण एवं विशेषताएं (ekaki vyapar visheshta) एकाकी व्यापार का कार्य-क्षेत्र व्यापार की सीमाओं मे सीमित होता है। अकेला होने के कारण वह अनेक स्थानों पर कार्य न करके एक स्थान पर कार्य-क्षेत्र सीमित करता है। व्यवसाय का स्वीम एक ही व्यक्ति होता है जो व्यापार की समस्त बातों के लिए उत्तरदायी होता है।

एकल स्वामित्व फर्म से आप क्या समझते हैं इसके गुणों एवं सीमाओं को समझाइए?

एकल स्वामित्व व्यवसाय संगठन का सबसे प्राचीन स्वरूप है। इस प्रकार का व्यापार एक व्यक्ति द्वारा ही स्थापित किया जाता है । इसका प्रबंध , संगठन एवं वित्त व्यवस्था भी वही व्यक्ति करता है। यह व्यक्ति व्यवसाय से होने वाले समस्त लाभ एवं हानि का स्वामी तथा व्यवसाय की समस्त क्रियाओं के लिए उत्तरदायी होता है ।