काल बैसाखी से क्या तात्पर्य है यह स्थिति क्यों निर्मित है - kaal baisaakhee se kya taatpary hai yah sthiti kyon nirmit hai

काल बैसाखी से क्या तात्पर्य है यह स्थिति क्यों निर्मित है - kaal baisaakhee se kya taatpary hai yah sthiti kyon nirmit hai

September 27, 2021

  • जानिए बैसाखी कब है, क्यों मनाई जाती है,  अर्थ, पर्व का महत्व, कहां होती है, काल बैसाखी कब होती है ?
    • बैसाखी कब है – (Baisakhi Kab Hai)
    • बैसाखी का अर्थ – (Baisakhi Ka Arth)
    • जानिए बैसाखी क्यों मनाया जाता है? – (Baisakhi Kyu Mnayi Jati Hai)
    • बैसाखी का महत्व – (Baisakhi Ka Mahatva)
      • बैसाखी से जुड़ी कहानी –  (Baisakhi Ki Kahani)
      • काल बैसाखी क्या होती है?
      • काल बैसाखी कब होती है?
      • काल बैसाखी कहां होती है? और बैसाखी कब है- (Baisakhi Kanha Hoti Hai)

जानिए बैसाखी कब है, क्यों मनाई जाती है,  अर्थ, पर्व का महत्व, कहां होती है, काल बैसाखी कब होती है ?

बैसाखी का त्यौहार सिख धर्म के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। पंजाब में बैसाखी के पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। सिखों के लिए यह पर्व नव वर्ष का आरंभ होता है। बैसाखी के पर्व का सीधा संबंध फसल से भी है, इस दिन से तैयार हो चुकी फसल की कटाई आरंभ हो जाती है। दिवाली के त्यौहार की तरह ही इस त्योहार के आने से पहले ही तैयारियां होना शुरू हो जाती है। लोग अपने अपने घरों की सफाई में लग जाते हैं। सभी अपने अपने घरों को सजाते हैं और आंगन में रंगोलियां बनाई जाती है। 

इस दिन सिखों के अंतिम गुरू, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की सहायता से सिक्खों को संगठित किया था। इस दिन भक्त पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए नदियों के तटों पर भारी संख्या में दिखाई पड़ते हैं। बैसाखी के दिन पवित्र नदियों में किए गए स्नान को बहुत फलदायी माना गया है। बंगाल में बैसाखी के दिन को नबा वर्षा और केरल में इसे पूरम विशु के नाम से मनाया जाता है।

इस त्योहार पर अनाज को पूजा जाता है, प्रकृति और पृथ्वी माता को फसल के लिए धन्यवाद किया जाता है। इसे वैशाखी भी कहा जाता है। पूरे भारत बैसाखी को मनाया जाता है, लेकिन सिख धर्म के अनुयायियों के लिए यह विशेष होता है। आगे हम आपको बताएंगे कि इस दिन ऐसा क्या हुआ था और क्यों बैसाखी को मनाया जाता है?

बैसाखी कब है – (Baisakhi Kab Hai)

ग्रंथों के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर अपनी स्थिति को बदलता है, उस समय यह बैसाखी उत्सव मनाया जाता है। वैशाख माह के प्रथम दिन को बैसाखी आती है। इसे सौर नववर्ष और मेष संक्रांति कहा जाता है। वर्तमान में प्रयोग किए जाने वाले कैलेंडर के अनुसार इसे अप्रैल के महीने में मनाया जाता है।

प्रत्येक वर्ष इसे 13 अप्रैल को मनाया जाता है। लेकिन 12 या 13 वर्षों में कई बार बैसाखी का पर्व 14 अप्रैल के दिन आ जाता है। 

बैसाखी का अर्थ – (Baisakhi Ka Arth)

बैसाखी शब्द की उत्पत्ति वैशाख से हुई है। बैसाखी का अर्थ है वैशाख माह में आने वाली पूर्णिमा। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा के समय में होने की वजह से ही उसे बैसाखी कहा जाता है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा का दिन बहुत ही पवित्र माना जाता है। 

जानिए बैसाखी क्यों मनाया जाता है? – (Baisakhi Kyu Mnayi Jati Hai)

  • सिख पंथ के 10 वें गुरु का नाम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी था। गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना 13 अप्रैल 1699 के दिन की थी। तभी से इस दिन को बैसाखी त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा। 
  • वहीं दूसरी ओर इस समय रबी फसल लगभग तैयार हो चुकी होती है, इस त्योहार पर पकी फसल की कटाई शुरू कर दी जाती है। 
  • गुरु गोबिंद जी ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना और सिख समुदाय का मार्गदर्शक बनाया था। गुरु ग्रंथ साहिब सिखों का पवित्र धार्मिक ग्रंथ है, इसलिए इस दिन गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं। 
  • इसी दिन सिंह शब्द को अंतिम नाम के रूप में स्वीकार किया था। 
  • बैसाख के दिन अधिकतर मेलों का आयोजन नदी या तालाबों के किनारे किया जाता है। इसके पीछे कई मान्यताएं है और एक कथा भी प्रचलित है। जिसकी कहानी हम आपको आगे बताएंगे।
  • हिंदू मान्यताओं के अनुसार हजारों वर्षों पहले इसी दिन पृथ्वी पर गंगा माता जी अवतरित हुई थी, जिसमें कई प्राणियों को जीवन मिला। इसी वजह से बैसाखी के दिन गंगा स्नान पवित्र माना जाता है और हिंदुओं के लिए भी बैसाखी का त्योहार महत्वपूर्ण हो जाता है। 
  • बैसाखी के पर्व के बाद से मौसम मे बदलाव दिखाई देना शुरू हो जाता है, जिसमें धूप और गर्मी बढ़ती जाती है। इस नए मौसम का स्वागत करने के लिए इसे मनाया जाता है, क्योंकि बदलता मौसम नई फसल के लिए वातावरण तैयार करता है। सर्दी का मौसम इस दिन से पूरी तरह समाप्त माना जाता है।

बैसाखी का महत्व – (Baisakhi Ka Mahatva)

राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाए जाने वाली बैखासी को कृषि पर्व कहा जाता है। इस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव को रखा था। खालसा शब्द का अर्थ पावन, पवित्र और शुद्ध होता है। इसे खेती का पर्व भी कहा गया है, जो कि रबी फसल पकने पर खुशी का प्रतीक माना जाता है। 

अलग अलग धर्माें में इसे विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। उत्तरी भारत में पंजाब और हरियाणा राज्यों में इस दिन विशेष प्रकार का आयोजन किया जाता है। यहां पर ढोल और नगाड़ों को बजाकर गीत गाए जाते हैं। इस दौरान नृत्य करके बैसाखी का स्वागत किया जाता है। इस दिन दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है और सामान्य दिनों की अपेक्षा इस दिन अधिक फल की प्राप्ति होती है। वहीं पवित्र नदियों में स्नान करने से तन और मन पवित्र हो जाता है।

यह पर्व भाईचारे को दर्शाता है, इसी के साथ सिख समुदाय अपने 10 गुरुओं के  ऋण को याद किया जाता है। इस ऋण को ध्यान में रखते हुए माता पिता अपने बच्चे को सिख बनाकर अपने गुरुओं के चरणों में समर्पित कर देते हैं। इसे आध्यात्मिक पर्व की मान्यता भी प्राप्त है। इस शुभ अवसर पर पर्वतीय अंचल में मेलों का आयोजन किया जाता है और इन प्रांतों में इसे मेष संक्रांति के रूप में जाना जाता है। असम में बैसाखी के अवसर पर बिहू का त्योहार मनाते हैं। 

बैसाखी से जुड़ी कहानी –  (Baisakhi Ki Kahani)

सिख धर्म में प्रचलित कहानी के अनुसार सन 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने सिख भक्तों को आमंत्रित किया था। उस समय गुरु जी के मन में अपने भक्तों की परीक्षा लेने की इच्छा आई। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी तलवार निकालते हुए कहा कि मुझे शीश चाहिए। उनके मुख से यह सुनकर सभी भक्त आश्चर्यचकित रह गए। लेकिन गुरु की इच्छा का मान रखते हुए दयाराम नाम का भक्त उनके सामने आया और स्वयं को गुरु की शरण में अर्पित कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी उसको अपने साथ अंदर ले गए। जिसके कुछ समय बाद ही रक्त की धारा प्रवाहित होती नजर आई। उसके बाद वह फिर से बाहर आए और कहा मुझे और सिर चाहिए। इसके बाद धर्मदास नाम का सहारनपुर का रहने वाला भक्त सामने आया। गुरु गोबिंद साहिब उसे भी अंदर ले गए।

इसी प्रकार तीसरे क्रमांक पर जगन्नाथ को रहने वाला हिम्मत राय, द्वारका का भाई मुखाम चंद और अंत में पांचवें नंबर पर बिदर का निवासी साहिब चंद गुरु जी के साथ अपना शीश अर्पित करने के लिए अंदर गया। सभी भक्तों को लगा कि इन पांचों की बलि का रक्त बाहर की ओर बह रहा है। उसके कुछ समय बाद गुरु गोबिंद सिंह जी उन पांचों भक्तों के साथ बाहर आए और कहा मैंने इन पांचों के स्थान पर पशुओं की बलि दी है। मैंने तो मात्र आप लोगों की परीक्षा लेने के लिए ऐसा किया। तब गुरु जी ने इन पांचों को प्यादों के रूप में परिचित करवाया। इसके बाद उनको रसपान में अमृत पिलाया और कहा आज से तुमको सिंह के रूप में जाना जाएगा। 

तभी गुरु ने अपने इस पांच शिष्यों को निर्देश दिए कि तुम आज से आत्म रक्षा के लिए कृपाण रखेंगे, लंबे बालों और दाड़ी को हमेशा रखोगे, हाथों में कड़ा धारण करोगे और निर्बलों पर कभी अत्याचार नहीं होने देंगे। इसी घटना के बाद से ही उन्हें गुरु गोबिंद सिंह कहा जाने लगा। इससे पहले उनको गुरु गोबिंद राय कहकर बुलाते थे। इसलिए यह दिन सिख धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है।

इसके अलावा एक कथा महाभारत के पांडवो से भी जुड़ी हुई है। जिसमें युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देकर अपने चारों भाईयों को पुनः जीवित किया था। यह सब कटराज ताल पर हुआ था। इसलिए यहां पर नदी के किनारे मेले का आयोजन किया जाता है। बैसाख के दिन यहा पांच प्यादे नंगे पाव पूरे जुलूस में सबसे आगे चलते हैं।

काल बैसाखी क्या होती है?

आइये जानते है कब है काल बैसाखी , काल बैसाखी का मौसम का वह समय होता है, जिसमें मौसम काल बनकर मानव जीवन और प्रकृति को प्रभावित करता है। आंधी, तूफान, अंधाधुंध बारिश और चक्रवात आदि के रूप में काल बैसाखी आती है।

काल बैसाखी कब होती है?

ये काल बैसाखी में मार्च से जून तक का समय मानसून का समय होता है। लेकिन काल बैसाखी का प्रभाव अप्रैल और मई महीने में अधिक देखने को मिलता है। इस समय की अवधि तो कम होती है, लेकिन इसमें तबाही करने की इतनी ताकत होती है। जिसकी भरपाई करने में वर्षों का समय लग जाता है। कई लोग इसमें अपनी जान भी गवां बैठते है। 

काल बैसाखी कहां होती है? और बैसाखी कब है- (Baisakhi Kanha Hoti Hai)

काल बैसाखी वैसे तो किसी भी क्षेत्र में मौसम का कहर बनकर टूट सकती है। लेकिन भारत में पूर्वी और पूर्वात्तर राज्यों को यह अधिक प्रभावित करती है। बंगलादेश के क्षेत्रों में भी इसके प्रभाव देखने को मिलते हैं। वहीं भारत के राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पूर्वात्तर क्षेत्र इससे प्रभावित होते हैं। 

काल वैसाखी का अर्थ तेज गति से आने वाला तूफान है। इस प्रकार के तूफान में हवा की गति इतनी ज्यादा तीव्र होती है कि इसके सामने आने वाली हर चीज को यह उखाड़ फेंकती है। शुष्क और गर्म हवा जब मानसून की समुद्री हवाओं से मिलती है, उस समय मूसलाधार वर्षा का सामना करना पड़ता है। जिन स्थानों पर बारिश कम होती है उन जगहों पर यह हवाएं आंधी का तूफान उत्पन्न कर देती है। वहीं बवंडर भी काल वैसाखी का ही एक रूप है, जिसे चक्रवात कहा जाता है। तेजी से हवा के चक्रन को चक्रवात कहा जाता है, यह आकार में जितना बड़ा होता है, उतनी ही ज्यादा हानि करता है। काल बैसाखी ऐसे प्राकृतिक तूफान है जिसके विरुद्ध कुछ भी करने में मनुष्य सक्षम नहीं है।

काल वैशाखी से क्या तात्पर्य है यह स्थिति क्यों निर्मित होती है?

काल बैसाखी से मुख्यतः भारत और बांग्लादेश के इलाके प्रभावित होते हैं। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में जब मौसम कहर बनकर टूट पड़ता है तब उस स्थिति को काल बैसाखी कहा जाता है। जब हवाओं की रफ्तार हरिकेन यानी भीषण तूफान की शक्ल ले लेती है तब मौसम की उस स्थिति को भारत और बांग्लादेश में काल बैसाखी कहा जाता है

काल बैसाखी कब?

इसी पर्व को विषुवत संक्रान्ति भी कहा जाता है। बैसाखी पारम्परिक रूप से प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है।

बैसाखी का क्या महत्व है?

बैसाखी क्यों मनाते हैं? सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह जी ने बैसाखी के मौके पर 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी. इसलिए ये दिन सिख समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है. सिख धर्म की स्थापना के साथ इस त्योहार को फसल पकने के रूप में भी मनाया जाता है.

बैसाखी कब और क्यों मनाया जाता है?

बैसाखी के दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में विशेष उत्सव मनाते हैं क्योंकि इस दिन सिख धर्म के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंहजी ने 13 अप्रैल सन् 1699 में आनंदपुर साहिब में मुगलों के अत्याचारों से मुकाबला करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी। साथ ही गोविंद सिंहजी ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया था।