राष्ट्रीय चिन्ह में कितने सिंह है? - raashtreey chinh mein kitane sinh hai?

राष्ट्रीय चिन्ह किसी भी देश की संस्कृति और स्वतंत्र अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रतीक होता है. पूरी दुनिया में भारत की पहचान सुनहरी परंपराओं वाले महान राष्ट्र के रूप में होती है. इसमें अशोक स्तंभ की बहुत बड़ी भूमिका है. संवैधानिक रूप से भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय चिन्ह के तौर पर अशोक स्तंभ को अपनाया था क्योंकि इसे शासन, संस्कृति और शांति का सबसे बड़ा प्रतीक माना गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संसद भवन की नई बिल्डिंग की छत पर करीब 20 फीट ऊंचे कांसे के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का अनावरण किया. इस स्तंभ का निर्माण दो हजार से ज्यादा कर्मियों ने किया है. देखें भारत के राष्ट्रीय चिन्ह से जुड़े ऐतिहासिक औऱ रोचक तथ्य.

Government of India adopted the Ashoka Pillar as the national emblem on January 26, 1950, as it was considered the biggest symbol of governance, culture and peace. Prime Minister Narendra Modi on Monday unveiled the Ashoka Pillar, a 20-feet high bronze national emblem on the roof of the new Parliament building. More than two thousand workers have built this pillar. Watch historical and interesting facts related to the national symbol of India.

अशोक स्तंभ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है, हाल ही इसे नए संसद के शीर्ष स्थान पर लगाया गया है. सम्राट अशोक के शासन काल में बने चार सिंहों को दिखाने वाला ये स्तंभ आखिर कैसे देश का राष्ट्रीय प्रतीक बन गया. किस नेता ने इसके लिए सुझाव दिया और फिर किसने इसे छांटा. फिर किसने इसे इस तरह डिजाइन में उतारा कि हमेशा हमेशा के लिए भारतीय गणराज्य का प्रतीक होकर इस्तेमाल में आने लगा.

इस प्रतीक का उपयोग केंद्र सरकार, कई राज्य सरकारों और सरकारी संस्थाओं द्वारा किया जाता है. इस स्तंभ को अशोक ने 280 ईसा पूर्व बनवाया था. ये स्तंभ वाराणसी में सारनाथ संग्रहालय में रखा है. इसे 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया. ये प्रतीक भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का एक हिस्सा है. सभी भारतीय मुद्रा पर प्रकट होता है. भारतीय पासपोर्ट पर भी ये प्रमुख रूप से अंकित है. आधिकारिक पत्राचार के लिए किसी व्यक्ति या निजी संगठन को प्रतीक का उपयोग करने की अनुमति नहीं है.

नेहरू ने प्रस्ताव दिया और सुझाया भी
जब भारत आजाद होने वाला था. उससे पहले 22 जुलाई 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव संविधान सभा के सामने रखा कि देश के नए ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीक के लिए डिजाइन बनाया जाना चाहिए. नेहरू ने साथ ही ये सुझाव भी दिया कि बेहतर हो हम इन चीजों में मौर्य सम्राट अशोक के सुनहरे दौर के शासनकाल को रखें. आधुनिक भारत को अपने इस समृद्ध और चमकदार अतीत के आदर्शों और मूल्यों को सामने लाना चाहिए.

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जवाहर लाल नेहरू ने आजादी से पहले संविधान सभा मे राष्ट्रीय प्रतीक तय करने के संबंध एक प्रस्ताव पारित किया था. साथ ही सुझाव दिया था कि हमें राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और राष्ट्रीय ध्वज में सम्राट अशोक के सुनहरे दौर के शासन काल को जरूर रखना चाहिए. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

नेहरू ने संविधान सभा में इस बारे में आगे कहा, “चूंकि मैने सम्राट अशोक का जिक्र किया है तो ये बताना चाहूंगा कि सम्राट अशोक का काल भारतीय इतिहास में ऐसा दौर था जिसे ध्यान रखना चाहिए, जिसमें हमने अंतरराष्ट्रीय तौर पर छाप छोड़ी. ये केवल एक राष्ट्रीय दौर नहीं था बल्कि ऐसा समय था जबकि हमने भारतीय राजदूतों को दूर दूर के देशों में भेजा गया और वो साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं बल्कि शांति, संस्कृति और सद्भाव के प्रतीक बनकर गए.”

क्या जाहिर करते हैं सम्राट अशोक के ये चार शेर
सारनाथ में जो ये अशोक स्तंभ रखा है, वो 07 फुट से ज्यादा ऊंची है, उसमें दहाड़ते हुए एक जैसे शेर चारों दिशाओं में स्तंभ के ऊपर बैठे हैं. ये स्तंभ ताकत, साहस, गर्व और आत्मविश्वास को भी जाहिर करता है. दरअसल मौर्य शासन के ये सिंह चक्रवर्ती सम्राट की ताकत को दिखाते थे. जब भारत में इसे राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया तो इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई.

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जब राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर लोगों ने अपने डिजाइन पेश किए तो ये पसंद नहीं आए. तब एक आईसीएस अफसर तैयबजी की युवा पत्नी सुरैया ने अशोक स्तंभ के ग्राफिक वर्जन को प्रिंट कराकर पेश किया. ये सभी को पसंद आ गया.

कैसे अशोक स्तंभ राष्ट्रीय प्रतीक बना
हां ये सवाल अब भी बरकरार है कि सम्राट अशोक के ये शेर कैसे भारत के राष्ट्रीय प्रतीक बन गए. जब नेहरू ने संविधान सभा में इसके बारे में दूसरे नेताओं के साथ प्रस्ताव पास किया तो सभी एकमत थे कि देश के पास एक असरदार राष्ट्रीय प्रतीक होना ही चाहिए. ये भी तय था कि ये प्रतीक अशोक के दौर से ही लिया जाएगा. तब देशभर के कला स्कूलों के लोगों को इस संबंध में डिजाइन बनाने के लिए बुलाया गया. लेकिन कोई भी डिजाइन जम नहीं रहा था.

तब सुरैया तैयब ने अशोक स्तंभ के ग्राफिक वर्जन को ड्रा किया
तब एक आईसीएस अफसर बदरुद्दीन तैयबजी और उनकी पत्नी सुरैया तैयबजी ने अशोक स्तंभ को प्रतीक के तौर पर पेश किया. कई सालों बाद इस दंपति की बेटी लैला तैयबजी ने इस बारे में लिखा,
“मेरी मां ने इसका एक ग्राफिक वर्जन ड्रा किया और वायसराय लॉज (अब राष्ट्रपति भवन) की प्रेस ने कुछ बदलावों के साथ इसे जब प्रिंट किया तो हर किसी को ये पसंद आया, तब से ही ये चार शेर राष्ट्रीय प्रतीक बन गए. लैला ने आगे लिखा, मेरी मां तब केवल 28 साल की थीं. मेरे पिता और मां ने कभी नहीं सोचा था कि वो कभी राष्ट्रीय प्रतीक की डिजाइन करेंगे. जो हमेशा देश की पहचान से चस्पां हो जाएगा. लैला खुद भी बाद में देश की शीर्ष डिजाइनर बनीं.”

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अशोक स्तंभ के शेर के चित्र को बनाने का काम प्रख्यात चित्रकार दीनानाथ भार्गव ने किया. जो तब शांति निकेतन में फाइन आर्ट्स के छात्र थे.

कागज पर सिंह का डिजाइन किसने बनाया
कागज, दस्तावेजों और पासपोर्ट आदि पर आप जो सिंह का राष्ट्रीय प्रतीक देखते हैं, उसको बनाने का काम प्रख्यात चित्रकार और शांति निकेतन के कला शिक्षक नंदलाल बसु के एक शिष्य दीनानाथ भार्गव ने किया. वो तब शांति निकेतन में पढ़ रहे थे और बाद में उन्होंने अशोक स्तंभ के शेर को बतौर डिजाइन कागज पर उतारने का काम किया. इसे उन्होंने संविधान के पहले पेज पर भी स्केच किया. यही शेर जो उन्होंने डिजाइन किया, वो बाद मुद्रा, सरकारी दस्तावेजों और पासपोर्ट पर अंकित होने लगा.

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अशोक स्तंभ को सारनाथ में हुई खुदाई में 1905 में जर्मनी के सिविल इंजीनियर फ्रेडरिक आस्कर ने खोजा, उनको भारत के इतिहास और पुरातत्व में काफी रुचि थी.

अशोक स्तंभ को खोजा किसने
जर्मनी के एक सिविल इंजीनियर फ्रेडरिक आस्कर ओएर्टेल ने 1900 के आसपास सारनाथ में खुदाई शुरू की. आस्कर सिविल इंजीनियर तो थे लेकिन उनकी रुचि पुरातत्व में ज्यादा हो गई थी. दरअसल उन्होंने इस एरिया की खुदाई चीनी यात्रियों के किताबें पढ़ने के बाद शुरू की, जो मध्यकाल के शुरू में सारनाथ के आसपास आए थे.

जब खुदाई हुई तो 07 फुट से कहीं ज्यादा  ऊंचाई का ये स्तंभ 1905 में आस्कर को मिला. समय के साथ ये खराब भी हो गया था और टूटफूट भी हो चुकी थी. ये तीन हिस्से में टूटा हुआ मिला. लेकिन अच्छी बात ये थी अशोक स्तंभ का शेर वाला हिस्सा सलामत था और ये साफ नजर आ रहा था. स्तंभ पर जिस तरह से शेर को बारीकी से उभारा गया था, वो तो कला का नायाब नमूना था.

राष्ट्र चिन्ह में कितने सिंह हैं?

राजकीय प्रतीक मूल स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं, इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं

राष्ट्रीय चिन्ह का नाम क्या है?

राष्ट्रीय चिह्न अशोक चिह्न भारत का राजकीय प्रतीक है। इसको सारनाथ स्थित राष्ट्रीय स्तंभ का शीर्ष भाग राष्ट्रीय प्रतिज्ञा चिह्न के रूप में लिया गया है। मूल रूप इसमें चार शेर हैं जो चारों दिशाओं की ओर मुंह किए खड़े हैं। इसके नीचे एक गोल आधार है जिस पर एक हाथी के एक दौड़ता घोड़ा, एक सांड़ और एक सिंह बने हैं।

भारत के कितने राष्ट्रीय प्रतीक है?

यहां बहुत सारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं जिनके अपने अलग अर्थ हैं जैसे राष्ट्रीय चिन्ह् (चार शेर) शक्ति, हिम्मत, गर्व और विश्वास आदि को दिखाता है, राष्ट्रीय पशु (बाघ) जो मजबूती को दिखाता है, राष्ट्रीय फूल (कमल) जो शुद्धता का प्रतीक है, राष्टीय पेड़ (बनयान) जो अमरत्व को प्रदर्शित करता है, राष्ट्रीय पक्षी (मोर) जो सुन्दरता को ...

भारत का राष्ट्रीय शब्द क्या है?

भारत का राष्ट्रीय वाक्य : सत्यमेव जयते.